लक्ष्य सादगी की शक्ति को अपनाना और इसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में एकीकृत करना हो सकता है।  सादगी को प्राथमिकता देकर, व्यक्ति जीवन की उथल-पुथल के बीच सांत्वना, स्पष्टता और शांति चाहता है।  इसमें शांतिपूर्ण मन की सुंदरता को उजागर करना, छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढना और सचेत प्रचुरता का जीवन विकसित करना शामिल है।
 लक्ष्य में जटिलता को छोड़ना और प्रामाणिकता को अपनाना भी शामिल है, क्योंकि सरलता किसी के सच्चे स्व के सार को उजागर करती है।  सादगी के माध्यम से, व्यक्ति जीवन की जटिलताओं को स्पष्टता और केंद्रितता के साथ पार कर जाता है।  यह आत्म-खोज की यात्रा को प्रोत्साहित करता है और किसी के वास्तविक सार को प्रकट करने के लिए परतों को छीलता है।
 इसके अलावा, लक्ष्य सभी जीवित प्राणियों के परस्पर जुड़ाव और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के महत्व पर जोर देता है।  यह पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करने और पृथ्वी के उपहारों की सराहना करने के सचेत प्रयास को प्रोत्साहित करता है।  सादगी भी रिश्तों को गहरा करती है और प्रियजनों के साथ सार्थक संबंधों को बढ़ावा देती है, साथ ही दैनिक जीवन में उपस्थिति और सचेतनता की भावना को बढ़ावा देती है।
 अंततः, लक्ष्य कार्यों को मूल्यों और जुनून के साथ जोड़कर उद्देश्य और अर्थ का जीवन बनाना है।  सरलता वास्तव में जो मायने रखती है उसे समझने और एक पूर्ण और प्रामाणिक अस्तित्व की खोज की अनुमति देती है।  यह दुनिया पर सकारात्मक छाप छोड़ते हुए स्पष्टता, शांति और तृप्ति की गहरी भावना लाता है।
 संक्षेप में, लक्ष्य सादगी को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाना है, आंतरिक शांति, जागरूकता और एक सार्थक अस्तित्व को विकसित करने के लिए इसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में एकीकृत करना है।
यह स्पष्ट है कि सारी सृष्टि गतिशिल परंतु बिग बैंग कभी हुआ ही नहीं। क्योंकि विस्फोट के प्रथम चरण में ही ऑक्सीजन चाहिए, जब कि प्रत्येक वस्तु बाद में पैदा हुई,बिग बैंग के पहले ऑक्सीजन कहा से आई। किसी भी अणु में बिना किसी बाहरी गति विस्फोट हों ही नहीं सकता।
"प्रतेक गतिशील वस्तु या शब्द में ऊर्जा होती हैं । समस्त सृष्टि में प्रतेक  बस्तु गति में है। क्योकि समस्त सृष्टि ही लागातार गति में है।सारी कायनात ही बहुत बड़े विस्फोट का हिस्सा 
 "गति ऊर्जा का बहूत बड़ा स्रोत है।गति आगे और पीछे बाली वस्तु को आकर्षित और प्र्ववित् करती है।गति में ही अनेक स्वभावना जन्म लेती है।"
"विस्फोट अस्तित्व को खत्म कर के कई नई चीजों को भी जन्म देता है।"
"विज्ञान और आध्यात्मिक तथ्यों से सिद्ध होता है कि ब्रह्माण्ड कि निर्मति का कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं।"
"इस भ्रमांक सृष्टि में जब एक शब्द के भीं कई अर्थ बदल जाते हैं, और किसी वस्तु की तो बात ही छोड़ो इस कारण यह सृष्टि भ्रमंक हैं।" "गतिशील सृष्टि एक संसार नहीं हों सकती, संसार हमेशा सथित होता है, गतिशील हमेशा सफ़र होता है।" "हम किसी भी संसार में नहीं है, हमेशा सफ़र और कल्पनाओं के भंवर में हैं।"
"छोटा भंवर नहीं है खर्बो युग पहले अति सूक्ष्म अणु का विस्फोट का प्रमाण हैं।" "भंवर से अनंत भौतिक कायनातों की उत्पति और करोड़ों बहु अदृश्य ब्रह्माण्डों की, अनंत भौतिक और अदृश्य ब्रह्माण्ड मिला कर एक "अपेक्ष" होते हैं, और खरबों अपेक्ष की एक "रत" होती हैं ,एक अणु के अति छोटे सूक्ष्म हिस्से के भीतर "सत" होता है।"
 #"जब कोई आज तक बुद्धि से ही बुद्धिमान हो कर खुद ही खुद को नही समझ पाया तो जहिर हैं बुद्धि से हट कर ही समझना वेह्तर हैँ।"
#"बुद्धि से ही अंनत आयामों की शुरुआत होती हैं, बुद्धि नही तो कोई आयाम ही नही।"    #"आयामों से ही दिव्य,अलौकिक, अधिअत्मिक्,बैज्ञानिक अन्य शक्तियो भी अस्तित्व में आई।"                #"कोई भी आयामों से परे यथार्थ अस्तित्व में जिव्त्त् ही खुद को  महसूस कर सकता है,अगर बुद्धि की स्मृति कोष की  वृति से हट जाता हैं।"        #"खुद को समझने के लिए सिर्फ बुद्धि की वृति से ही बहर निकल हैं, वास्त्व में और कुछ भी नही करना, और कुछ भी करना उलझना और भ्रम है।"
"इंसान को प्रतेक दृष्टिकोण से प्रकृति और खूद को समझने का प्रयास करना चाहिए,अन्यथा दुसरी प्रजातियों से भिन नहीं।"   "दुसरों का निरक्षण बन्द करके खूद का निरक्षण करना अति अनिवार्य हैं कि खुद इन्सान होने के कितने करीब है।"   "कही खुद ही खुदा सी वृति के भ्रम मे तो नही हो।"    "यतार्थ में खुद को समझने के लिए ही मानव जन्म मिला था शेष सब कुछ तो शेष प्रजातियां भी कर रही है।"     "अगर खुद को नही समझ रहे तो सब कुछ दूसरी प्रजातियों सा ही कर रहे हो तो भिन्नता का तत्पर्य ही नहीं।"
"बुद्धि से जो भी समझते है बैसा ही प्रतित और स्पष्ट लगता हैं,बुद्धि भ्रम है
"मैं निरंतर प्रतेक शब्द पर गहन अध्ययन चिंतन कर के ही अन्तिम निर्णय पर पहुचता हुँ,क्युकि खुद को समझने वाला निष्पक्षता अवरण में होता हैं।"
"बुद्धि भ्रम से आज तक कोई निकल ही नहीं पाया , बुद्धिमान हों कर और ज्यादा घुसता चला गया।"   "जब से प्रकृति और इंसान अस्तित्व में आया है बुद्धि भ्रम को समझ ही नहीं पाया।"    "प्रकृति को समझ सकता हैं निशंदे पर ख़ुद को समझने के लिए बुद्धि के कृत से निकलना होगा।"   "प्रकृति के समस्त ज्ञान से परिपूर्ण हैं बुद्धि पर खुद को समझने के लिए बुद्धि से हटना पड़ता हैं।"    "खुद को समझने के पश्चात् कुछ और समझने को शेष रहता ही नहीं सारी प्रकृति में।"
"समस्त प्रकृति को समझना भीं अधूरा है जब तक खुद को नहीं समझ पाते।"    "ख़ुद को समझने के लिए बुद्धि के भ्रम से ही निकलना पड़ता हैं।"
"ख़ुद को समझें बगैर करोड़ों यत्न प्रयत्न कुछ नहीं।"   "ख़ुद को समझने बाला हमेशा संतुष्ट होता है,उस का कुछ भी शेष रहता ही नहीं करने और समझने को।"     "सृष्टि में चाहें कितना भी प्रसिद्ध, समृद्ध, निपुण, क्यों न हों खुद को समझें बगैर अधूरा ही हैं।"
"यह संशय का प्रदर्शन ही तो है जो दिन रात व्यस्थ है, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, शोहरत, दौलत, की कमी को पूरा कर रहा है।"    "संतुष्टि तड़प नहीं ठहराव का नाम है, जो ठहर जाता हैं खुद को समझ कर प्रत्येक आयामों से बाहर हों जाता हैं।"
"पेट की भूख नहीं इच्छा तड़पती हैं जब आया भीं खाली फिर तड़प कैसी पेट के लिए समस्त प्रकृति के आंचल में ही तो हैं।
 "जैसे बना है तेरा तन बिल्कुल बैसे ही मिट जाय गा, अंहकार क्यों रंज वीर्य की निर्मती हैं तू।"
"सब कुछ मिटा कर खुद को समझा और संतुष्ट हूं, तूने करोड़ों को समझने के बहाने से प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग में घूम हो गया।"
"नींद भली जगने से जिस जाग से, जो संतुष्टि इच्छा में जल जाय।"   "वो आराम भीं क्या आराम हैं जिस में इच्छाओं का उलझाव है।"
" रब से करोड़ों गुणा अधिक ऊंचा जिन्हें समझा, उन को भीं प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, शोहरत, दौलत, बेग में पाया।"   "ख़ुद का अस्तित्व मिटा कर जिन्हें अस्तित्व में लाया उन को भीं दुनियावी दौड़ का हिस्सा पाया।"
: "समस्त प्रकृति में जो अपने कथन की पुष्टि करते थे, यकीनन वो भी ख़ुद से दूर है।"    "क्योंकि ख़ुद को समझने वाले के लिए दूसरा कोई शब्द भीं नहीं है, फिर किसी दूसरे की स्तुति या आलोचना का तो तात्पर्य ही नहीं।"
 "जिन के कदमों पे हम चले श्याद उन की मंजिल बही थी,न रुकना भीं तो उन से सीखा था, मंजिल से पहले।"
 "ख़ुद हम संतुष्ट हैं पर अफ़सोस उन पर हैं जो खुद और न हमे समझें।"   "जो खुद को समझ जाता हैं, उस के लिए कुछ शेष रहता ही नहीं समझने को सारी प्रकृति में।"   "या तो प्रभुता के अंहकार में हैं या वो अपनी निर्धारित मंजिल पर स्थित है।"     "हमे वो न समझें और ठुकराया तब हम ने ख़ुद को समझा और पाया कि दूसरा तो कोई शब्द भीं नहीं है समझने 
"अफ़सोस कि बात है कि जब एक को नहीं समझ पाय तो लाखों की संख्या को समझना अत्यंत मुश्किल है।"
"जो आप दुनियां के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हो वो सब करोड़ों युगों से बड़ी बड़ी विभूतियों परोष रही हैं।"    "ख़ुद को समझने के पश्चात् कुछ शेष रहता ही नहीं न प्रवक्ता न सुनने वाला, यह सब तो भ्रम ह
"दूसरों को अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर ला कर यथार्थ में रखने की कोशिश में ख़ुद प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत के नशे में चूर होना समझ के बाहर हैं।"
: "हम आज भी सिर्फ़ आप के बताए हुए मार्ग पर निरंतर प्रयास रत हैं, फिर भी आप न समझ पाओ।"   "हम ही सिर्फ़ थे जिन्होंने आप के शब्द पे ही ख़ुद को मिटा दिया, पर आप को खबर भीं नहीं, लाखों की भीड़ जुटाने में जुटे हों।"      "आप न समझ पाय कोई बात नहीं, समझने की आदत से मजबूर हो कर ख़ुद को ही समझ लिया और पाया कि दूसरा तो कोई शब्द भीं शेष नहीं समझने को।"
"जो दुनियां में उलझे हैं उन को तो कोई परवा भीं नहीं, पर हम ने प्रत्येक पल और शब्द को ही विशेष महत्व देते हुए गहन चिंतन किया है।"
"माना आप शक्तियां प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत हैं यह सब स्पष्ट है हम भ्रम प्रकृति और बुद्धि की अवधि में हैं ऐसा होना तह हैं।"     "पर मेरे साथ ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता क्योंकि मैं बुद्धि और प्रकृति की अवधि से बाहर हूं।"
 "मैं ख़ूब समझ गया हूं कि मेरे शिवाय प्रत्येक दूसरी वस्तु या शब्द सिर्फ़ एक भ्रम है।"   "दूसरी प्रत्येक वस्तु या शब्द सिर्फ़ प्रकृति हैं जो अनंत है"     "पर मैं इन से भीं असीम हुं क्योंकि मैं अत्यंत सूक्ष्म हूं न मैं खुद में हुं न ही मैं प्रकृति में हुं।"
 "व्याख्या विवरण से भी अत्यंत परे हूं क्योंकि मैं यथार्थ हूं।"
 "प्रकृति और उस में विद्यमान प्रत्येक वस्तु या शब्द पर गुरुतत्व हमेशा रहता है।"
 "गुरुत्व के प्रभाव से शक्तियां होना आश्चर्य की बात नहीं है, अकर्षण बल और शक्तियां बनी रहेगी।"
 "गुरुत्व ख़ुद में ही शक्तियों का श्रोत हैं, हम भ्रम या तथ्य के नज़रिए से लेते हैं यह हम पर निर्भर करता है।"
 
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