रविवार, 16 जुलाई 2023

ख़ुद को समझें बगैर दूसरी प्रजातियों से भिन नहीं है

शीर्षक: 
द अनबाउंड सेल्फ: ए जर्नी बियॉन्ड माइंड एंड मैटर इंट्रोडक्शन: ए जर्नी बियॉन्ड माइंड एंड मैटर इंट्रोडक्शन: ए वर्ल्ड इन टाइम एंड इंटेलेक्ट, जहां यादें और इच्छाएं हमारे अस्तित्व को आकार देती हैं, वहां एक रहस्यमय व्यक्ति मौजूद है जो इन पारंपरिक मानदंडों की अवहेलना करता है। यह असाधारण प्राणी मानव अनुभव की सीमाओं को पार करते हुए, समय, बुद्धि और स्मृति की सीमाओं से अछूते लेंस के माध्यम से जीवन को देखता है। उनका अस्तित्व उस गहन ज्ञान का प्रमाण है जो सामान्य समझ की समझ से परे है। सत्य का साधक, जिसे हम अनबाउंड स्वयं के रूप में संदर्भित करेंगे, एक ऐसे क्षेत्र में रहता है जहां वर्तमान क्षण सर्वव्यापी है, अतीत की बेड़ियों या भविष्य के भ्रम से मुक्त है। इस क्षेत्र में, हर पल एक नई शुरुआत है, और निरंतरता की धारणा एक भ्रम है। अनबाउंड स्वयं इच्छाहीन है, भौतिक लालसाओं के उलझनों से मुक्त है जो सामान्य प्राणियों को फँसाते हैं। आत्म-साक्षात्कार की खोज में, अनबाउंड स्वयं ने उनके वास्तविक सार और ब्रह्मांड के ताने-बाने के बीच के अंतर को पहचान लिया है, जिसे प्रकृति के रूप में जाना जाता है। वे समझते हैं कि जबकि बाकी सब कुछ ब्रह्मांडीय नृत्य का एक हिस्सा है, वे अलग खड़े हैं, प्रकृति के चंगुल से मुक्त हैं। प्रारंभ में, अनबाउंड सेल्फ ने एक आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में एकांत और भक्ति पाई, जो खुद को एक ऐसे प्रेम के प्रति समर्पण कर दिया जो व्यक्तिगत अस्तित्व से परे था। फिर भी, जैसे-जैसे समय बीतता गया, गतिशीलता बदल गई, और साधक को स्वयं की एक स्वतंत्र समझ बनाने के लिए अपने स्वयं के मार्ग का पता लगाने की आवश्यकता का एहसास हुआ। गहन आत्मनिरीक्षण की इस यात्रा में, अनबाउंड सेल्फ ने चेतना की गहराई में जाकर, मन की बुद्धि के परदे को पारंपरिक ध्यान से परे चिंतन के स्तर तक पहुंचने के लिए भेद दिया। उन्होंने पाया कि सच्ची आत्म-समझ एक सूक्ष्म क्षेत्र में निहित है जो दृश्य और अदृश्य, भौतिक और गैर-सामग्री के निर्माण से परे है। यह कथा अनबाउंड स्वयं के उल्लेखनीय ओडिसी को घेर लेती है, एक ऐसा प्राणी जो अस्तित्व के मानदंडों की अवहेलना करता है, हमें जीवन के सार पर पुनर्विचार करने के लिए चुनौती देता है। उनके अनुभवों के माध्यम से, हमें एक वास्तविकता की संभावना का पता लगाने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो मन की सीमाओं से परे और अपने स्वयं के अस्तित्व की वास्तविक प्रकृति पर विचार करने के लिए फैली हुई है। अनबाउंड सेल्फ की यात्रा हमें बुद्धि और स्मृति की सीमाओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करती है, हमें वर्तमान क्षण में मुक्ति की तलाश करने और हम सभी के भीतर मौजूद अनंत संभावनाओं को अपनाने का आग्रह करती है।
एक व्यक्ति के रूप में, आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, जो वास्तव में एक सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानव अधिकार है। यह अधिकार आपको भौगोलिक सीमाओं या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों की परवाह किए बिना अपनी राय, विचार और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों में निहित है, जिसमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा शामिल है। अपने आप को अच्छी तरह से खोजना और जानना व्यक्तिगत विकास और किसी के विश्वासों और मूल्यों को समझने का एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है। यह आत्म-जागरूकता आपकी अभिव्यक्तियों और विचारों की प्रामाणिकता और गहराई को बढ़ा सकती है। याद रखें कि जबकि आपको स्वतंत्र रूप से खुद को व्यक्त करने का अधिकार है, ऐसा जिम्मेदारी से और दूसरों के अधिकारों और गरिमा के सम्मान के साथ करना आवश्यक है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अभ्यास से रचनात्मक चर्चा और विविध दृष्टिकोणों का आदान-प्रदान हो सकता है, जो एक जीवंत और लोकतांत्रिक समाज में योगदान देता है। हालांकि, दूसरों पर अपने शब्दों के संभावित प्रभाव से सावधान रहना और हानिकारक भाषण में शामिल होने, हिंसा के लिए उकसाने, या गलत सूचना फैलाने से बचना भी आवश्यक है। कुछ मामलों में, कुछ देशों में ऐसे कानून या नियम हो सकते हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित या सीमित करते हैं, इसलिए कानूनी संदर्भ से अवगत होना और कानून के ढांचे के भीतर अपने अधिकारों का प्रयोग करना आवश्यक है। कुल मिलाकर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करना मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने, समझ को बढ़ावा देने और स्थानीय और विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुले संवाद को बढ़ावा देने में एक भूमिका निभा सकता है।
भक्ति, दान,सेवा सिर्फ़ तीन ही मर्ग हैं जिन से प्रभु या आत्मा को जाना जा सकता है, पर इन सब प्रयासों से भी कोई स्पष्ट प्रमाण समक्ष नही आय हैं।करोडों युगों से लेकर आज तक ।क्योकि जो भी जिस ने भी किया जब भी किया सिर्फ बुद्धि से ही किया।बुद्धि कभी भी किसी को भी खुद को समझने के लिए अनुमति ही नहीं देती।सर्व प्रथम बुद्धि की ही स्मृति कोष से ही बहर निकल कर ही खुद को समझा जा सकता है।मैं शुरू से ही इन सब से परे था ।सिर्फ एक चीज़ शेष रही थी वो था प्रेम (इश्क़ ) जो सिर्फ़ सच्चे इंसान से बो किया था गुरू से ।ऐसा इश्क़ किया था कि खुद को ही बिल्कुल ही भूला दिया था।खुद की स्मृति कोष से ही सब कुछ मिटा दिया था, यहां तक कि खुद का स्वरूप भी लागातर तीस बर्ष ।गुरु को मिले कई बर्ष बीत जाते थे।क्योकि मुझे खुद को समझने के शिवाय दूसरा कोई काम ही नहीं शेष रहा था।जब भी कई वर्षों के बाद गुरु के दर्शन करने जाता तब तब ही।गुरु जी से डांट मिलती थी।क्युकि पहले ही किसी ने शिकायतें लगा दी होती थी।कारण सिर्फ़ यह था कि मैं गुरु भाईओ के पास सिर्फ गुरु महिमा ही सुनाने जाता था।मुझे अच्छा लागता था ,और चाहत थी कि सभी गुरु से दिल से प्रेम और अटूट विश्वास करें।इन्हीं सब बातों से गुरु जी ने मुझे आश्रम जाने को माना कर दिया।मैं गुरु के इश्क़ में बहूत ही ज्यादा खो गया था।इक पल के लिए चिन्तन किया कि गुरु के लिए तो पूरा जीवन समर्पित कर दीया, इतनी गहराई में चला गया, गुरु जी को तो मेरी फ़िक्र और खबर भी नहीं,उस के पश्चात इक पल भी नहीं लगा खुद को समझने में।जब खुद को समझ गया तो सारी कायनात में कुछ भी शेष नहीं रहा समझने को।अब ऐसा लगता हैं सिर्फ़ मैं ही दूसरी प्रतेक वस्तु शब्द सिर्फ़ भ्रम है जो प्रकृति और द्दष्टि बुद्धि की स्मृति कोष का खेल है।जो मौत के साथ ही खत्म हो जाता हैं। इन्सान शरीर अत्यंत महत्वपूर्ण है खूद को समझने के लिए। अन्यथा दुसरी प्रजातियों से जरा सा भी भिन नहीं है। सिर्फ़ यही इक करण के लिए ही मिला था इन्सान शरीर। कोई कही जाना और कुछ ढुंढना ही नही था ।मैं आज भी बहा ही हूं यहाँ करोडों बर्ष और करोडों ब्रह्माण्ड होने या न होने का तत्पर्य ही नहीं।जो खुद को नहीं समझ सकता बो हमेशा दुसरों की उलझन में पैदा होता और मर जाता हैं।खुद को समझे बगैर सब कुछ ही भ्रम है।दुसरा कोई किसी को कभी भी नहीं समझ सकता चाहे कितने भी प्रयास कर ले।जब खुद को समझ जाता हैं तो फिर कभी भी संशय में नहीं आ सकता चाहे कई कोशिश कर ले।भक्ति, दान,सेवा सिर्फ़ तीन ही मर्ग हैं जिन से प्रभु या आत्मा को जाना जा सकता है, पर इन सब प्रयासों से भी कोई स्पष्ट प्रमाण समक्ष नही आय हैं।करोडों युगों से लेकर आज तक ।क्योकि जो भी जिस ने भी किया जब भी किया सिर्फ बुद्धि से ही किया।बुद्धि कभी भी किसी को भी खुद को समझने के लिए अनुमति ही नहीं देती।सर्व प्रथम बुद्धि की ही स्मृति कोष से ही बहर निकल कर ही खुद को समझा जा सकता है।मैं शुरू से ही इन सब से परे था ।सिर्फ एक चीज़ शेष रही थी वो था प्रेम (इश्क़ ) जो सिर्फ़ सच्चे इंसान से बो किया था गुरू से ।ऐसा इश्क़ किया था कि खुद को ही बिल्कुल ही भूला दिया था।खुद की स्मृति कोष से ही सब कुछ मिटा दिया था, यहां तक कि खुद का स्वरूप भी लागातर तीस बर्ष ।गुरु को मिले कई बर्ष बीत जाते थे।क्योकि मुझे खुद को समझने के शिवाय दूसरा कोई काम ही नहीं शेष रहा था।जब भी कई वर्षों के बाद गुरु के दर्शन करने जाता तब तब ही।गुरु जी से डांट मिलती थी।क्युकि पहले ही किसी ने शिकायतें लगा दी होती थी।कारण सिर्फ़ यह था कि मैं गुरु भाईओ के पास सिर्फ गुरु महिमा ही सुनाने जाता था।मुझे अच्छा लागता था ,और चाहत थी कि सभी गुरु से दिल से प्रेम और अटूट विश्वास करें।इन्हीं सब बातों से गुरु जी ने मुझे आश्रम जाने को माना कर दिया।मैं गुरु के इश्क़ में बहूत ही ज्यादा खो गया था।इक पल के लिए चिन्तन किया कि गुरु के लिए तो पूरा जीवन समर्पित कर दीया, इतनी गहराई में चला गया, गुरु जी को तो मेरी फ़िक्र और खबर भी नहीं,उस के पश्चात इक पल भी नहीं लगा खुद को समझने में।जब खुद को समझ गया तो सारी कायनात में कुछ भी शेष नहीं रहा समझने को।अब ऐसा लगता हैं सिर्फ़ मैं ही दूसरी प्रतेक वस्तु शब्द सिर्फ़ भ्रम है जो प्रकृति और द्दष्टि बुद्धि की स्मृति कोष का खेल है।जो मौत के साथ ही खत्म हो जाता हैं।इन्सान शरीर अत्यंत महत्वपूर्ण है खूद को समझने के लिए।अन्यथा दुसरी प्रजातियों से जरा सा भी भिन नहीं है।सिर्फ़ यही इक करण के लिए ही मिला था इन्सान शरीर।
एक व्यक्ति के रूप में, आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, जो वास्तव में एक सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानव अधिकार है। यह अधिकार आपको भौगोलिक सीमाओं या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों की परवाह किए बिना अपनी राय, विचार और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों में निहित है, जिसमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा शामिल है। अपने आप को अच्छी तरह से खोजना और जानना व्यक्तिगत विकास और किसी के विश्वासों और मूल्यों को समझने का एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है। यह आत्म-जागरूकता आपकी अभिव्यक्तियों और विचारों की प्रामाणिकता और गहराई को बढ़ा सकती है। याद रखें कि जबकि आपको स्वतंत्र रूप से खुद को व्यक्त करने का अधिकार है, ऐसा जिम्मेदारी से और दूसरों के अधिकारों और गरिमा के सम्मान के साथ करना आवश्यक है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अभ्यास से रचनात्मक चर्चा और विविध दृष्टिकोणों का आदान-प्रदान हो सकता है, जो एक जीवंत और लोकतांत्रिक समाज में योगदान देता है। हालांकि, दूसरों पर अपने शब्दों के संभावित प्रभाव से सावधान रहना और हानिकारक भाषण में शामिल होने, हिंसा के लिए उकसाने, या गलत सूचना फैलाने से बचना भी आवश्यक है। कुछ मामलों में, कुछ देशों में ऐसे कानून या नियम हो सकते हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित या सीमित करते हैं, इसलिए कानूनी संदर्भ से अवगत होना और कानून के ढांचे के भीतर अपने अधिकारों का प्रयोग करना आवश्यक है। कुल मिलाकर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करना मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने, समझ को बढ़ावा देने और स्थानीय और विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुले संवाद को बढ़ावा देने में एक भूमिका निभा सकता है।

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