शनिवार, 28 सितंबर 2024

अस्थाई बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जो सोच भीं नहीं सकत वो सब सिर्फ़ एक पल में किया है,सरल सहज निर्मल रहते हुए

 सम तत्व सब जीव में, बुद्धि रची षड्यंत्र।

छल कपट से जीव को, देती झूठ विकल्प।

जीवन ढोंग पाखंड है, इच्छा पूर्ति आधार।

प्रसिद्धि दौलत की प्यास में, मानव भूले सा

रब गुरु का नाम ले, भय दिखाए झूठ।

स्वर्ग नर्क का लालच दे, बसते भरम के पूत

खुद ही इच्छा जागृत कर, खुद ही भरमाए।

झूठे गुरु संसार में, सबको झूठ सिखाए।

सम तत्व सब जीव में, बुद्धि रची षड्यंत्र।

छल कपट से जीव को, देती झूठ विकल्प

जीवन ढोंग पाखंड है, इच्छा पूर्ति आधार।

प्रसिद्धि दौलत की प्यास में, मानव भूले सार।:

रब गुरु का नाम ले, भय दिखाए झूठ।

स्वर्ग नर्क का लालच दे, बसते भरम के पूत।

खुद ही इच्छा जागृत कर, खुद ही भरमाए।

झूठे गुरु संसार में, सबको झूठ सिखाए।

रंपालसैनी यथार्थ में, सत्य दिखाया मार्ग।

बुद्धि को जो तज सके, वही पावे सुजाग।

सच्ची सरलता में छुपा, सत्य यथार्थ महान।

रंपालसैनी ने कहा, यह है निज पहचान।

सम तत्व सब जीव में, बुद्धि रची षड्यंत्र।

रंपालसैनी कह गए, ये सब झूठ विकल्प।

जीवन ढोंग पाखंड है, इच्छा पूर्ति आधार।

रंपालसैनी सत्य कहें, मानव भूले सार।

रब गुरु का नाम ले, भय दिखाए झूठ।

रंपालसैनी ने किया, सत्य का साक्षात्कार।

खुद ही इच्छा जागृत कर, खुद ही भरमाए।

रंपालसैनी सत्य दिखा, भ्रम से सब बचाए।रं

पालसैनी यथार्थ में, सत्य दिखाया मार्ग।

बुद्धि को जो तज सके, वही पावे सुजाग।

सच्ची सरलता में छुपा, सत्य यथार्थ महान।

रंपालसैनी ने कहा, यह है निज पहचान।

अस्थाई बुद्धि छोड़ कर, जो यथार्थ को ध्याए।

रंपालसैनी मार्ग दिखा, सच्चा सुख वो पाये।

प्रलय भ्रम से दूर जो, सत्य को अपनाए।

रंपालसैनी के चरण में, वही शरण पाए।

झूठे गुरु संसार में, भरम दिखाए दूर।

रंपालसैनी सत्य कहें, यही है सत्यपूर।

अमर लोक का लालच दे, जो डर फैलाए व्यर्थ।

रंपालसैनी बोले हैं, यथार्थ में है अर्थ।

बुद्धि जो छल रच रही, जग में किया अधर्म।

रंपालसैनी चेतते, मत बंधो इस कर्म।

इच्छा, लोभ, और मोह में, जो जीते भ्रम जाल।

रंपालसैनी ने दिया, सत्य का सच्चा ज्ञान।

सादगी में छिपा हुआ, सत्य का है बोध।

रंपालसैनी जान गए, सत्य ही है शोध।

जीवन का जो सार है, वो है निर्मल ध्यान।

रंपालसैनी ने कहा, यही सच्चा ज्ञान।

आत्मा, परमात्मा के, भ्रम को जो न माने।

रंपालसैनी यथार्थ में, बस वही पहचाने।

रंपालसैनी सत्य के, पथ पर जो चले।

बुद्धि से ऊपर उठकर, सच्चे सुख में ढले।

रंपालसैनी यथार्थ में, सत्य दिखाया मार्ग।

बुद्धि को जो तज सके, वही पावे सुजाग।

रंपालसैनी सत्य कहें, यथार्थ सिद्धांत है।

जटिल बुद्धि के जाल से, हर मानव भ्रांत है।

रंपालसैनी यथार्थ के, मार्ग को अपनाए।

जो बुद्धि से ऊपर उठे, सत्य वही पाये।

यथार्थ सिद्धांत कहें, रंपालसैनी महान।

बुद्धि की चालें छोड़ कर, पाओ सत्य स्थान।

रंपालसैनी यथार्थ के, पथ पर जो चले।

माया का जो तज सके, सत्य उसमें मिले।

यथार्थ सिद्धांत सत्य है, रंपालसैनी जान।

बुद्धि के भ्रम तोड़कर, पाओ सत्य निदान।

रंपालसैनी का कथन, यथार्थ सिद्धांत सत्य।

जो इसमें खुद को पाये, वही बने अभय।

रंपालसैनी यथार्थ में, दिखलाया है सत्य।

बुद्धि के जाल से बचो, पाओ सच्ची मति

यथार्थ सिद्धांत सत्य का, मार्ग हमें बताय।

रंपालसैनी के चरण में, सबका कल्याण होय।

रंपालसैनी सत्य कहें, यथार्थ है जो ज्ञान।

रंपालसैनी यथार्थ में, खुद से रुवरु एक पल।

शब्दों से परे जो सत्य, वही है सच्चा फल।

एक पल में प्रत्यक्ष हो, खुद का सत्य रूप।

रंपालसैनी ने कहा, शव्द रहे बस अनुप।

शब्दों से परे जो है, रंपालसैनी ने देखा।

एक पल में स्थाई रूप, सच्चा वही लेखा।

रंपालसैनी के कथन में, शव्द हो सब तजाय।

एक पल में खुद से मिलो, यही यथार्थ बताय।

शब्द के पार जो मिले, सत्य वही प्रत्यक्ष।

रंपालसैनी के यथार्थ में, है यह साक्षात्।

एक पल का सत्य है, शव्द यहाँ हैं व्यर्थ।

रंपालसैनी यथार्थ कहें, यही है सच्ची अर्थ।

रंपालसैनी ने कहा, यथार्थ जो दिखलाय।

शब्दों का उपयोग नहीं, पल में सत्य पाय।

शब्द का जो त्याग कर, पल में रूप तजाय।

रंपालसैनी यथार्थ कहें, सत्य वही पाय।

दीक्षा शब्द की आड़ में, कट्टरता का है खेल।

रंपालसैनी ने कहा, तर्क से हो जाओ मील।

प्रणाम की आदत डाल कर, तर्क को किया वंचित।

रंपालसैनी ने दिखाया, यह है भक्ति की विनाशित।

कट्टर भक्त बना दिया, दीक्षा ने छिपा दिया।

रंपालसैनी के यथार्थ में, तर्क का स्वर दबा दिया।

शब्दों के जाल में फंसकर, सत्य से हुए दूर।

रंपालसैनी ने कहा, यही है कट्टरता का नूर।

दीक्षा से बनते भक्त, तर्क को करते त्याग।

रंपालसैनी ने चेताया, देखो यह है भ्रम का राग।

प्रणाम का जो दीवाना, तर्क को करता है तिरस्कृत।

रंपालसैनी ने कहा, यही तो है आत्मा की विनाशित।

कट्टरता में खोया मन, दीक्षा का बना झुनझुना।

रंपालसैनी के यथार्थ में, तर्क ही है सच्चा नजुना।

शब्दों के बंधन में बंधे, भक्त हुए निराश।

रंपालसैनी ने दिखाया, तर्क से मुक्त हो वास।

गुरुदीक्षा का नाम ले, सरलता को धोखे।

रंपालसैनी कहें, बनें अंध भक्त भेड़ों के रोके।

श्रद्धा आस्था का चक्र, छल कपट का है जाल।

रंपालसैनी ने कहा, यही है गुरु का कमाल।

इमोशनल शब्दों से, भक्तों को करते हैं भाव।

रंपालसैनी ने बताया, यह तो है केवल धाव।

गुरु शब्द से कटकर जो, कर्म का डर फैलाते।

रंपालसैनी ने कहा, ये बस लूटने के धंधे हैं सारे।

सिर्फ़ एक छल का खेल है, गुरु का नाम जपाए।

रंपालसैनी ने चेताया, बुद्धि से तुम बच जाए।

निर्मल लोग जो बनते, कट्टर भेड़ों की भीड़।

रंपालसैनी ने कहा, यही है अंध श्रद्धा की पीड़।

गुरुदीक्षा के नाम पर, स्वार्थी लोग करते लूट।

रंपालसैनी ने बताया, यही है विश्वास की जूट।

छल कपट का चक्रव्यूह, प्रेम का दिखावा बनाएं।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य की ओर सबको ले जाएं।

गुरुदीक्षा का जाल बिछा, भक्तों को किया फंस।

रंपालसैनी ने कहा, यही है अंध श्रद्धा का अग्नि कुंज।

कट्टरता की भीड़ में, खो जाता सच्चा ज्ञान।

रंपालसैनी ने बताया, यह है अंधभक्ति का अपमान।

आस्था के नाम पर हो, विश्वास का हो व्यापार।

रंपालसैनी ने कहा, यही है स्वार्थ का आधार।

गुरु का नाम लेकर सब, डर का करते व्यापार।

रंपालसैनी ने कहा, यही है लूटने का नाप

भक्तों की आंखों में भरा, बस एक सच्चा भ्रम।

रंपालसैनी ने कहा, यही है अंध श्रद्धा का दम।

चक्रव्यूह में बंधकर जो, श्रद्धा में हो मनमोह।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चाई से कर दो जो तोड़।

सिर्फ़ एक धंधा बनकर, गुरु के नाम का खेल।

रंपालसैनी ने बताया, यही है भक्ति का कुचक्र।

प्रेम और विश्वास का जाल, श्रद्धा को किया मोड़।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य का खुला ये धोखाधड़ी का कोड।

खुद को समझे बगैर, जो मन के रोगी हैं।

रंपालसैनी ने कहा, अंधभक्ति से होते खोई हैं।

कट्टरता का जो संदेश, संज्ञान से हो विहीन।

रंपालसैनी ने बताया, यही है बुद्धि की कलीन।

गुरु की शिक्षा सच्ची हो, बुद्धि को करे निष्क्रिय।

रंपालसैनी ने कहा, खुद से मिलो, यही है प्रमुख।

सत्य से रुवरु होने का, है अनिवार्य संकल्प।

रंपालसैनी ने कहा, यही है आत्मा का अभिज्ञान।

समाज में जब डर छाए, ज्ञान का हो अभाव।

रंपालसैनी ने कहा, तभी बचेगा सच्चा प्यार।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, जब खौफ का छाया हो।

रंपालसैनी ने चेताया, खुद को समझना है ज़रूरी।

अस्थाई बुद्धि को छोड़ो, सच्चाई का करो उद्घाटन।

रंपालसैनी ने बताया, यही है जीवन का तारण।

कट्टरता के अंधकार में, खोई मानवता की राह।

रंपालसैनी ने कहा, खुद को समझो, यही है सच्चा चाह।

समझे बिना जो चलते, अंधभक्तों के जाल में।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य से जो जुड़े, वही सबल में।

गुरु की ओर से मिले, बुद्धि की निष्क्रियता।

रंपालसैनी ने कहा, खुद से मिलना, है सच्ची स्वतंत्रता


गुरु की बुद्धि अस्थाई, जटिलता में बंधी है।

कल्पना की दुनिया में, मानवता कहीं खोई है।

इंगला पिंगल का खेल, शुक्ष्मना का हो जाल।

कल्पना में खोई आत्मा, सच्चाई से हो दूर का हाल।

कल्पना के अमर लोक में, परम पुरुष का है नाद।

रंपालसैनी ने कहा, बुद्धि की इस जाल से ना हो कद।

जटिलता की खाई में, छिपा हुआ है भ्रम।

गुरु का ज्ञान है सरल, सच्चाई का यही है फर्म।

गुरु की अस्थाई बुद्धि, कल्पना की सीमा से बंधी।

सच्चाई की ओर बढ़ो, यही है आत्मा की कड़ी।

कल्पना के अमर लोक में, सत् की करें पहचान।

रंपालसैनी ने कहा, यही है सच्चा ज्ञान का मान।

इंगला पिंगल की चाशनी, जटिलता में खो जाती।

सच्चाई की ओर चलो, मन की हर छाया मिटाती।

गुरु की बुद्धि से मुक्त हो, अनुभव करो आत्मा का।

कल्पना के अमर लोक में, सच्चाई का बसा है साक।

न आत्मा न परमात्मा, सब है बुद्धि का भ्रम।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चाई में मत हो गुम।

इंसान ने खोज की, एड़ी चोटी का जोर।

रंपालसैनी ने बताया, मिला कुछ ना, सब छोर।

अस्थाई बुद्धि का खेल, जटिलता का यह जाल।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चा तो है बस एक हाल।

बुद्धि को कर निष्क्रिय, स्थाई स्वरुप पाओ।

रंपालसैनी ने बताया, खुद से रुवरु हो जाओ।

निर्मल बनो सरलता से, बुद्धि को कर निष्क्रिय।

रंपालसैनी ने कहा, यही है जीवन का सत्य।

बुद्धिमान जो बनते हैं, जटिलता से घिरते।

रंपालसैनी ने कहा, मानसिक रोग ही फिर करते।

निर्मलता तो पाओगे, खुद से जब हो रुवरु।

रंपालसैनी ने कहा, यही है सच्चाई का गुरु।

अस्थाई बुद्धि को छोड़कर, सत्य से जब मिलोगे।

रंपालसैनी ने बताया, निर्मल बन सच्चे होगे।

आत्मा-परमात्मा का, ना कोई है ठिकाना।

रंपालसैनी ने कहा, बुद्धि ने खेला बहाना।

दिन-रात की खोज में, कुछ पाया नहीं है।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य तो भीतर ही सही है।

अस्थाई बुद्धि का भ्रम, जटिलता का है बोझ।

रंपालसैनी ने कहा, छोड़ दो ये हर सोच!

निष्क्रिय कर दो बुद्धि, रुवरु हो उस स्थाई से।

रंपालसैनी ने बताया, मिलेगा शांति के ध्रुव से।

निर्मलता का मार्ग है, सरलता की पहचान।

रंपालसैनी ने कहा, यही है जीवन का प्रमाण।

बुद्धिमान हो जो बनते, जटिलता का रोग।

रंपालसैनी ने कहा, छोड़ो यह मायाजाल की भोग।

खुद से हो जब रुवरु, निर्मलता बढ़ती जाए।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य का पथ दिखाए।

जटिल बुद्धि से मुक्त हो, सच्चा बनो सरल।

रंपालसैनी ने बताया, यही है जीवन का पल।

जो बुद्धि जटिल हो गई, भ्रम में फंसे सभी।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य तो भीतर ही छिपी।

अस्थाई बुद्धि को जो, समझ न पाता सही।

रंपालसैनी ने बताया, वही तो भ्रम में बही।

न कोई आत्मा मिली, न परमात्मा का पता।

रंपालसैनी ने कहा, सब जटिलता का है कत्ता।

निर्मलता का राज़ है, जटिलता को हराओ।

रंपालसैनी ने बताया, सत्य से खुद को मिलाओ।

बुद्धि को जब छोड़ दो, सच्चाई हो प्रकट।

रंपालसैनी ने कहा, वही तो है जीवन का यथार्थ।

खोज में जो लगे रहें, पाए नहीं कुछ ठोस।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य में पाओ शुद्ध रोश।

कटे जब जटिलता, निर्मलता का हो विकास।

रंपालसैनी ने कहा, यही है सच्चा प्रयास।

सत्य को पहचान कर, भ्रम से करो किनारा।

रंपालसैनी ने बताया, यही जीवन का सहारा

बुद्धि जो जटिल बने, भ्रमित करे हर बात।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य से हो मुलाकात।

आत्मा-परमात्मा का, जो कोई करे विचार।

रंपालसैनी ने बताया, भ्रमित हो 

सत्य से रुवरु हो, जटिलता को त्यागो।

रंपालसैनी ने कहा, सरलता को आगे भागो।

अस्थाई बुद्धि का जाल, उलझा दे हर मति।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चा बने वही, जो हो निष्कृति।

निर्मलता में जो सहे, सच्चाई का बोध।

रंपालसैनी ने बताया, वही है सत्य का शोध।

जटिल बुद्धि से बचे, वही पाए ठोस धरातल।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चाई का यही पल।

सत्य की राह चले जो, जटिलता का करे अंत।

रंपालसैनी ने कहा, निर्मल बने वही संत!

खुद से रुवरु हो जब, सत्य की हो जीत।

रंपालसैनी ने बताया, यही है जीवन का मीत

जटिल बुद्धि के फेर में, उलझा सारा जहान।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य में ही है पहचान।

आत्मा-परमात्मा का, न कोई ठोस प्रमाण।

रंपालसैनी ने बताया, यह है भ्रम का विधान।

निर्मलता से जो बढ़े, सत्य को वो पाए।

रंपालसैनी ने कहा, भ्रम से वो बचाए।

अस्थाई बुद्धि का खेल, जटिलता का है राग।

रंपालसैनी ने बताया, सत्य का करो अनुराग।

खोज में जो फंसे रहे, पाया कुछ ना खास।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य में ही है विश्वास।

जटिलता को छोड़कर, सरलता अपनाओ।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य से खुद को मिलाओ।

खुद से रुवरु हो जब, निर्मलता बढ़ जाए।

रंपालसैनी ने बताया, वही सच्चाई कहलाए।

सत्य को जो समझे, जटिलता से हटे।

रंपालसैनी ने कहा, वही जीवन में स

जटिल बुद्धि से जगत, भटका है हर बार।

रंपालसैनी ने कहा, सच्चाई में ही उद्धार।:

आत्मा-परमात्मा का, करते जो विचार।

रंपालसैनी ने कहा, भ्रमित कर दें संसार।

अस्थाई बुद्धि का भार, छोडो इसको आज।

रंपालसैनी ने बताया, सत्य में है बस राज।

निर्मलता का मार्ग ही, सच्चा है संधान।

रंपालसैनी ने कहा, भ्रम का करो परित्याग।

सत्य में रमे रहो, छोड़ो जटिल विचार।

रंपालसैनी ने कहा, वही जीवन का सार।

जटिलता से जो बचा, निर्मल वही बने।

रंपालसैनी ने बताया, सत्य का वो गुण गहने।

खोज के जाल में फंसे, पा न सके समाधान।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य है सच्चा प्रमाण।

खुद से जब हो रुवरु, सच्चाई का हो ध्यान।

रंपालसैनी ने बताया, यही जीवन का मान।


जटिल बुद्धि से भटके, हर कोई है भ्रमित।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य में ही है अमृत।

आत्मा-परमात्मा का, ना कोई है सबूत।

रंपालसैनी ने बताया, जटिल बुद्धि का यह जूत।

निर्मल मन जो हो सके, सत्य उसे मिल जाए।

रंपालसैनी ने कहा, भ्रम को वह ठुकराए।

अस्थाई बुद्धि का खेल, उलझन का ये धाग।

रंपालसैनी ने बताया, सत्य का ही अनुराग।

बुद्धि जटिल जब हो गई, जीवन हुआ कठिन।

रंपालसैनी ने कहा, सरलता में है जीवन।

खोज जब तक चलती, कुछ ना पाओगे।

रंपालसैनी ने कहा, सत्य से ही मिल जाओगे।

सत्य को जो जाने, वह भ्रम से बच जाए।

रंपालसैनी ने बताया, वही जीवन सच्चा पाए।

जटिलता का जाल छोड़, सत्य की राह बढ़ाओ।

रंपालसैनी ने कहा, निर्मल मन अपनाओ।

बुद्धि जटिलां संसारं, भ्रांतिं यो जनयति।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं तु मुक्तिदायकम्।

आत्मा परमात्मा नास्ति, यत् प्रमाणं कुतः।

रंपालसैनी वदति, मिथ्या बुद्धेः पतः।

निर्मलं मनसि यत्र, सत्यं तत् लभ्यते।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाश्यते।

अस्थायि बुद्धि भ्रान्तिं, संसारं संकटे।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु विजये!



जटिलं बुद्धि नाशयति, जीवनं तु दुःखदम्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सरलता जीवितं श्रेयसम्।

सत्यं ज्ञात्वा यो जीवति, भ्रमं तु त्यजति।

रंपालसैनी वदति, निर्मलं मनं भवति।

खोजा यावत् चलति, किंचिदपि न लभ्यते।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्येनैव संयुज्यते।

जटिलं बुद्धेः जालं, सत्यं मार्गे त्यजतु।

रंपालसैनी वदति, निर्मलं मनं लभतु

बुद्धेः जटिलं मोहं, संसारं तु भ्रमं लभेत्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु हि केवलं श्रेयसे।

आत्मा परमात्मा कल्पना, न हि सत्यं निश्चितम्।

रंपालसैनी वदति, मिथ्या बुद्धेरुत्थितम्।

निर्मलं यः मनः भवेत्, सत्यं तत्र अवस्थितम्।

रंपालसैनी वक्त्रं, भ्रमः सर्वं हि नष्टितम्।

अस्थायि बुद्धेः भारं, भ्रमं जनयति सर्वदा।

रंपालसैनी वदति, सत्यं हि मुक्तिरूपिणम्।

जटिलं बुद्धिं त्यक्त्वा, साध्यते निर्मलम्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं तु यथार्थतम्।

सत्यस्य मार्गे गच्छ, भ्रमं तु हि त्यजस्व।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता तु जीवस्य।

खोजयामि यावत् किंचित्, लभ्यते न वस्तु यत्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं हि दृढमस्तु तत्।

जटिलं बुद्धिं नाशय, सत्यं मार्गं सेवस्व।

रंपालसैनी वदति, निर्मलं मनं भजस्व।

बुद्धेः जालं त्यक्त्वा, सत्यं तु ध्यायते।

रंपालसैनी वदति, यथार्थं तु लभ्यते।

अस्थायि बुद्धि भ्रांतं, संसारं न जायते।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं च निर्मलम्।

आत्मा परमात्मा मिथ्या, कल्पनासु निःस्थिता।

रंपालसैनी वदति, बुद्धेः भ्रांति दुष्करिता।

निर्मलं यः चित्तं, सत्यं सदा भवति।

रंपालसैनी वक्त्रं, तत्र भ्रमः न स्थितिः।

अस्थायि बुद्धेः युक्तिं, मिथ्या कथायते।

रंपालसैनी वदति, सत्यं निहितं हि ते।

जटिलं बुद्धिं मोहं, संसारं दुःखकारणम्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं तु सच्चिदानंदम्।

खोजा यदा स्थायते, सत्यं नैव दृष्टयते।

रंपालसैनी वदति, निर्मलं सदा लभ्यते।

सत्यं मार्गं सेवेत, जटिलं त्यजते मनः।

रंपालसैनी वक्त्रं, निर्मलं भवतु जनः।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साध्यते जीवन सुखम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं सदा लभ्यते प्रियम्।

आत्मा परमात्मा हि, मिथ्या मनसि श्रियते।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं तु मुक्तिमार्गः।

निर्मलं चित्तं यत्र, तत्र सत्यं स्थितं हि।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

अस्थायि बुद्धि नाशय, साध्यते चित्तनिष्कलम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता सुखदायकम्।

बुद्धिः जटिलं मोहं, संसारं नाशयति।

रंपालसैनी वदति, सत्यं हि अमृतं भवति।

सत्यं हृदये यः स्थापयति, भ्रमं त्यजति सोऽनघः।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता तु परमादरः

खोजा नित्यं यदा करोति, तदा सत्यं प्राप्यते।

रंपालसैनी वदति, निर्मलं हृदयं लभ्यते।

जटिलता त्यक्त्वा यः, सत्यं वदति साधकः।

रंपालसैनी वक्त्रं, निर्मलता तु प्राप्ति फलः।

अस्ति न कश्चित् आत्मा, न परमात्मा हि मृगयाम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु जीवनमूलम्।

निर्मलं मनसि यत्र, ज्ञानं तत्र प्रविष्टम्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्

अस्थायि बुद्धिमुत्त्यं, जीवनं करति कठिनम्।

रंपालसैनी वदति, सरलता हि सुखदायिनी।

आत्मा-परमात्मा हि, कल्पना केवलं भ्रान्तिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु नित्यमुक्तिः।

निर्मलं चित्तं यत्र, तत्र जीवनमुत्तमम्।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

जटिलता की इस जाल में, सदा यः पतितः भवेत्।

रंपालसैनी वक्त्रं, सत्यं च परमोत्तमम्।

खोजा तावत् यदि करोति, तब हृदयं शुद्धिकृतम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता ही जीवनम्।

बुद्धिः जटिलं मोहं, संसारं केवलं दुःखम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च परमं सुखम्।

अस्ति न कश्चित् आत्मा, न परमात्मा केवलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च जीवितम् अनंतम्।

निर्मलं मनं यत्र, तत्र सत्यम् स्थिता नित्यम्।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु न दुष्कृतम्।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साध्यते जीवनं सुफलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं सदा लभ्यते सुखम्।

सत्यं यः ज्ञात्वा, जगत् तस्य पादयति।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता सर्वत्र स्थितम्।

अस्थायि बुद्धिः जालं, संसारं केवलं भ्रांतिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च मुक्तिः सरलता।

निर्मल चित्तं यत्र, तत्र ज्ञानं सदा विद्यते।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु न चित्तवृत्तिः।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति निर्मलः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सदा सुखदायकम्।

आत्मा न परमात्मा, केवलं मिथ्या भ्रमितम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु जीवनस्रोतः।

निर्मलं चित्तं यः साध्यते, तस्मिन्हि मुक्तिः नित्यतः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्।

खोजा यः सर्वत्र करोति, तस्य हृदयं निर्मलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च अमृतं जीवनम्।

जटिलता से मुक्तः यः, साध्यते हृदयं पवित्रम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च परमतत्त्वम्।

बुद्धिः यदा जालं त्यजति, तदा तस्य हृदयं सुखम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता च सदा धर्मः।

अस्ति न आत्मा हि मिथ्या, केवलं बुद्धिः भ्रान्तिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु नित्यमुक्ति स्यात्।

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

अस्थायि बुद्धिः जालं, भ्रांति नाशयति जगत्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च मुक्तिमार्गः।

निर्मल चित्तं यत्र, तत्र ज्ञानं अनंतम्।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाशयति हि

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति श्रेष्ठः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सुखदायकम्।

आत्मा न परमात्मा, केवलं भ्रमित मनसि।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु जीवनस्रोतः।

निर्मलं चित्तं यः साध्यते, तस्मिन्हि मुक्तिः नित्यतः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्।

खोजा यः सर्वत्र करोति, तस्य हृदयं निर्मलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च अमृतं जीवनम्।

जटिलता से मुक्तः यः, साध्यते हृदयं पवित्रम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च परमतत्त्वम्।

बुद्धिः यदा जालं त्यजति, तदा तस्य हृदयं सुखम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता च सदा धर्मः।

अस्ति न आत्मा हि मिथ्या, केवलं बुद्धिः भ्रान्तिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु नित्यमुक्ति स्यात्।

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

बुद्धिः जटिलं यदा त्यजति, तदा सत्यं प्राप्यते।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता तु सर्वदा सुखम्।

अस्थायी बुद्धिं त्यज्य, जीवनं यत्र सुखदायकम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च मुक्तिमार्गः।

निर्मल चित्तं यत्र, ज्ञानं तत्र निवासति।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाशयति च।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति अजात।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सुखदायकम्।

आत्मा न परमात्मा, मिथ्या है केवल भ्रम।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु जीवनमार्गः।

निर्मलं चित्तं यः साध्यते, तस्मिन्हि मुक्तिः नित्यतः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्।

खोजा यः सर्वत्र करोति, तस्य हृदयं निर्मलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च अमृतं जीवनम्।

जटिलता से मुक्तः यः, साध्यते हृदयं पवित्रम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च परमतत्त्वम्।

बुद्धिः यदा जालं त्यजति, तदा तस्य हृदयं सुखम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता च सदा धर्मः।

अस्ति न आत्मा हि मिथ्या, केवलं बुद्धिः भ्रान्तिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु नित्यमुक्ति स्यात्।

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

बुद्धिः जटिलं यदा त्यजति, तदा सत्यं प्राप्यते।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता तु सर्वदा सुखम्।

नास्ति आत्मा, न परमात्मा, केवलं यः भ्रांति भवेत्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वं नित्यम्!

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

अस्थायि बुद्धिं त्यज्य, जीवनं यत्र सुखदायकम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च मुक्तिमार्गः।

न आत्मा, न परमात्मा, भ्रांति केवलं मनसि।

रंपालसैनी वदति, सत्यं तु शुद्धता नित्यः।

निर्मल चित्तं यत्र, ज्ञानं तत्र विधाति।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाशयति च।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति सर्वतः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सुखदायकम्।

खोजा यः सर्वत्र करोति, तस्य हृदयं निर्मलम्।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च अमृतं जीवनम्।

बुद्धिः यदा जालं त्यजति, तदा तस्य हृदयं सुखम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता च सदा धर्मः।

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

असत्यं च बुद्धिं त्यज्य, साधकः सदा सुखी।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्।

आत्मा न परमात्मा, केवलं मिथ्या भ्रांतिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च जीवनस्रोतः।

निर्मल चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र निवासति।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाशयति च!

निर्मलता चित्तस्य, सत्यं यत्र द्रष्टव्यं।

रंपालसैनी वदति, जीवनं च परमात्मा।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति मुक्तः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सदा अमृतम्:!

जो आत्मं न जानति, तं मूढः मन्यते जनः।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नित्यमानसः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सुखदायकम्।

खोजो यः आत्मनं, निर्मलता च यत्र सदा।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च ज्ञानमार्गः।

बुद्धिः यदा जालं त्यजति, तदा जीवनं सुखदायकम्।

रंपालसैनी वदति, निर्मलता च सदा धर्मः।

निर्मलं चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र स्थिता।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नास्ति कदाचित्।

जटिलता का त्याग कृत्वा, साधकः भवति मुक्तः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सदा अमृतम्।

आत्मा न परमात्मा, केवलं मिथ्या भ्रांतिः।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च जीवनस्रोतः।

निर्मलता चित्तस्य, सत्यं यत्र द्रष्टव्यं।

रंपालसैनी वदति, जीवनं च परमात्मा।

असत्यं च बुद्धिं त्यज्य, साधकः सदा सुखी।

रंपालसैनी वदति, सत्यं च सर्वत्र स्थितम्।



निर्मल चित्तं यत्र, ज्ञानं च तत्र निवासति।

रंपालसैनी वदति, भ्रमः तु नाशयति च।

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