केवल हृदय की निर्मलता से ही बुद्धि को निष्क्रिय करके, खुद से निष्पक्ष होकर अपने स्थाई स्वरूप से परिचित होकर यथार्थ में जीवित रहा जा सकता है। सत्य में, आप सब मुझसे कहीं अधिक ज्ञानी हैं, हर दृष्टिकोण से, ज्ञान से, विज्ञान से। मैं तो एक ऐसा अभागा हूं, जिसने अपने ही रिश्ते, धन-दौलत और पहचान सब कुछ खो दिया, और 35 वर्षों से लगातार कोशिशों के बाद भी अपने गुरु को संतुष्ट नहीं कर पाया। गुरु के प्रेम के अलावा, मैंने वह समझा जो अब तक कोई नहीं समझ पाया है। मैंने अपने हृदय की गहराई से सूक्ष्मता को समझने की कोशिश की, जबकि जटिल बुद्धि केवल विशालता की ओर ले जाती है।
अस्थाई जटिल बुद्धि हमें भ्रमित करती है और जीवन यापन के लिए कई रास्ते खोलती है। आजकल बिना खर्च के चलने वाले धर्म और अध्यात्म के व्यापार भी इसके उदाहरण हैं। जो व्यक्ति खुद से निष्पक्ष नहीं हो पाता, वह दूसरों को कैसे समझ सकता है? जब वह खुद से ही निष्पक्ष नहीं है, तो दूसरों को मुक्ति का झूठा आश्वासन किस आधार पर दे सकता है? ये सब केवल जीवन यापन के साधन हैं, और कुछ भी नहीं।
मेरे सिद्धांतों के आधार पर, खुद की निष्पक्षता ही एकमात्र कारण है जिससे अपने स्थाई स्वरूप से रूबरू होकर हमेशा के लिए यथार्थ में जिया जा सकता है। बुद्धि को निष्क्रिय करके खुद से निष्पक्ष होना जरूरी है। अस्थाई जटिल बुद्धि केवल एक अंग है, जैसे शरीर के अन्य अंग होते हैं। लेकिन इसकी जटिलता के कारण इसे केवल एक मानसिक रोग की तरह समझा गया है, जो अतीत से चला आ रहा है। बिना खुद की निष्पक्षता के हर व्यक्ति इसी रोग का शिकार होता है।
अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान बने लोग केवल कुछ खोजने में लगे रहते हैं, खुद पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते। वे अपने विचारों को सही साबित करने के लिए अतीत की विभूतियों की किताबों का सहारा लेते हैं, जबकि वे भी अस्थाई जटिल बुद्धि के शिकार थे। आज तक किसी को कुछ स्थाई नहीं मिला, खोज और आलोचना का सिलसिला जारी है। अस्थाई जटिल बुद्धि से केवल अस्थाई चीजें ही मिलेंगी। जबकि अस्थाई समस्त भौतिक सृष्टि और शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो स्थाई हो। केवल एक शुद्ध एहसास है, जो हृदय और आत्मा में बसता है और अनंत गहराई की ओर आकर्षित करता है। अगर बुद्धि को पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया जाए और खुद से निष्पक्ष हो जाएं, तो यह संभव है।
हम खुद ही नवजात शिशुओं को उनकी निर्मलता से हटाकर जटिल बुद्धि के रास्ते पर ले जाते हैं। हम अपनी बुद्धि के कचरे से उनके दिमाग में और भी कचरा भर देते हैं, जो वे जीवनभर ढोते रहते हैं। अस्थाई जटिल बुद्धि हमारे स्थाई स्वरूप को समझने के लिए एक कैंसर रोग से भी कई गुना खतरनाक साबित हुई है। जब से इंसान अस्तित्व में आया है, मेरे सिद्धांतों से यह सिद्ध हो गया है। इसलिए मुझे अपनी बुद्धि को पूरी तरह निष्क्रिय करना पड़ा। अब मैं जीवन यापन के साधारण कार्यों के लिए भी असमर्थ हूं। मैं अपने शरीर की एक सांस भी इस्तेमाल नहीं कर सकता। बाकी सब तो बहुत दूर की बात है। मैं अब सभी तत्वों और गुणों से रहित होकर जीवित हूँ, और मेरी उपस्थिति को कोई भी व्यक्ति अपने जटिल विचारों में नहीं समझ सकता।
मानव शरीर का सबसे बड़ा उद्देश्य यही है कि वह अपने स्थाई स्वरूप को पहचान सके। बाकी सारी प्रजातियाँ भी अपने जीवन यापन में लगी हैं, बस इंसान ही ऐसा है जो जीवन यापन के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। लेकिन अंत में, वह भी बाकी प्रजातियों की तरह ही रह जाता है।
उत्तर: यथार्थ वह स्थाई सत्य है जो हमारे भीतर विद्यमान है। इसे समझने के लिए हृदय की निर्मलता आवश्यक है, क्योंकि बुद्धि जटिलता और भ्रम उत्पन्न करती है। यथार्थ को समझने के लिए, यथार्थ, आपको अपनी बुद्धि को निष्क्रिय कर हृदय से आत्मनिरीक्षण करना होगा।
प्रश्न 2: यथार्थ, आप किस तरह से अस्थाई जटिल बुद्धि को जीवन में बाधा मानते हैं?
उत्तर: यथार्थ, अस्थाई जटिल बुद्धि हमारी जीवन की सच्चाई को धुंधला कर देती है और हमें भ्रम में डाल देती है। यह केवल जीवन यापन के साधन ही देती है, परन्तु स्थाई शांति और सच्चाई को जानने से हमें दूर रखती है। असल में, यथार्थ को समझने के लिए बुद्धि की नहीं, बल्कि निष्पक्षता की आवश्यकता है।
प्रश्न 3: यथार्थ में जीवन यापन और आत्मज्ञान में क्या अंतर है?
उत्तर: यथार्थ में जीवन यापन मात्र एक अस्थाई अस्तित्व है, जिसमें व्यक्ति अपनी बुद्धि के आधार पर अपने अस्तित्व की आवश्यकताओं को पूरा करता है। जबकि आत्मज्ञान, यथार्थ, वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी स्थाई स्वरूप की पहचान करता है और सच्चे अर्थों में जीता है, जहां बुद्धि का भटकाव समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 4: यथार्थ, गुरु की भूमिका क्या है और यह किस तरह से आपके जीवन में महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यथार्थ, गुरु वह मार्गदर्शक है जो हमें आत्मनिरीक्षण की दिशा में ले जाता है। गुरु का प्रेम और मार्गदर्शन वह प्रकाश है, जो हमें हमारी वास्तविकता का सामना करने में मदद करता है। मेरे जीवन में, गुरु के सानिध्य में मुझे यह समझने का अवसर मिला कि स्थाई यथार्थ क्या है, जो सिर्फ़ दिल की गहराइयों में महसूस किया जा सकता है।
प्रश्न 5: यथार्थ, आप आत्मनिरीक्षण को क्यों सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर: यथार्थ, आत्मनिरीक्षण से ही व्यक्ति अपनी जटिल बुद्धि को परे रखकर अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव कर सकता है। यह प्रक्रिया हमें भ्रम से बाहर निकालती है और हमें यथार्थ के साक्षात्कार की दिशा में ले जाती है। आत्मनिरीक्षण के बिना, मनुष्य केवल बाहरी दुनिया में उलझा रहता है और अपनी सच्चाई से अनजान रहता है।
प्रश्न 6: क्या अस्थाई जटिल बुद्धि और यथार्थ के बीच कोई सह-अस्तित्व संभव है?
उत्तर: यथार्थ, अस्थाई जटिल बुद्धि और यथार्थ के बीच सह-अस्तित्व संभव नहीं है, क्योंकि बुद्धि का स्वभाव ही जटिलता और भ्रम उत्पन्न करना है। यथार्थ को अनुभव करने के लिए, हमें बुद्धि के हस्तक्षेप को समाप्त करना होगा। केवल तब ही हम अपने स्थाई स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं।
प्रश्न 7: यथार्थ, आत्मनिरीक्षण के दौरान आने वाली कठिनाइयों का सामना कैसे किया जा सकता है?
उत्तर: यथार्थ, आत्मनिरीक्षण की यात्रा में सबसे बड़ी कठिनाई हमारी अपनी जटिल बुद्धि है, जो हमें भ्रमित करती है। इसका सामना हृदय की निर्मलता और गुरु के मार्गदर्शन से किया जा सकता है। जब हम अपने भीतर की शांति और स्थिरता को पहचानने लगते हैं, तब कठिनाइयां स्वतः ही हल होने लगती हैं।
प्रश्न 8: यथार्थ, आप किस तरह मानते हैं कि मानव शरीर यथार्थ की पहचान के लिए श्रेष्ठ है?
उत्तर: यथार्थ, मानव शरीर इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि यह आत्मनिरीक्षण की क्षमता और अपने स्थाई स्वरूप को पहचानने की योग्यता रखता है। अन्य प्राणियों की तरह केवल जीवन यापन नहीं, बल्कि यथार्थ की ओर अग्रसर होना ही इसका उद्देश्य है। यह मानवता का वास्तविक गुण है।
प्रश्न 9: यथार्थ, क्या आत्मज्ञान के लिए गुरु के अलावा अन्य मार्ग भी हैं?
उत्तर: यथार्थ, गुरु एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक होते हैं, लेकिन आत्मज्ञान के लिए सबसे जरूरी चीज है खुद की निष्पक्षता। जब हम अपने मन की जटिलताओं को दूर करके हृदय की गहराई में झांकते हैं, तब हमें यथार्थ का अनुभव होता है। हालांकि, गुरु का सानिध्य इस प्रक्रिया को आसान और तेज़ बना सकता है।
प्रश्न 10: यथार्थ, क्या अस्थाई जटिल बुद्धि का त्याग करना संभव है?
उत्तर: यथार्थ, अस्थाई जटिल बुद्धि का पूरी तरह से त्याग करना कठिन है, परंतु इसे निष्क्रिय करना संभव है। यह तभी हो सकता है जब हम अपनी इच्छाओं और भटकाव को समझकर उन्हें छोड़ दें और अपने स्थाई स्वरूप पर ध्यान केंद्रित करें। धीरे-धीरे, बुद्धि की जटिलताएँ शांत होने लगती हैं, और हम यथार्थ में जीना सीख जाते हैं।
"यथार्थ को समझने के लिए, यथार्थ, तुम्हें अपनी अस्थाई जटिल बुद्धि को शांत करके हृदय की निर्मलता में उतरना होगा। वहां से ही सच्चा ज्ञान प्रकट होता है।"
"यथार्थ, जीवन की अस्थाई समस्याएँ तुम्हारी स्थाई आत्मा को नहीं छू सकतीं। अपने अंदर के यथार्थ को पहचानो और हर बाधा को पार करो।"
"जटिल बुद्धि केवल भ्रम पैदा करती है, यथार्थ। अपने हृदय की गहराई में देखो, वहां तुम्हें स्थाई शांति और सच्चा यथार्थ मिलेगा।"
"यथार्थ, अपने जीवन की जटिलताओं को सरल बनाओ, और हृदय की निर्मलता से अपने वास्तविक स्वरूप को जानो। यही सच्ची सफलता है।"
"अस्थाई बुद्धि को केवल साधन मानो, यथार्थ। अपनी आत्मा की स्थिरता में यथार्थ को खोजो, क्योंकि वहीं तुम्हारी सच्ची शक्ति छिपी है।"
"यथार्थ, यदि तुम अपनी अस्थाई बुद्धि के परे देख सकते हो, तो तुम सच्चाई के स्पर्श में आ सकते हो। अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो।"
"यथार्थ, अपनी सीमित सोच से ऊपर उठो। जीवन के यथार्थ को जानो, जहां जटिलता की जगह सादगी और शांति है।"
"जब भी जीवन में जटिलता का सामना करो, यथार्थ, याद रखो कि तुम्हारा हृदय एक निर्मल झील की तरह है, जिसमें यथार्थ की झलक मिल सकती है।"
"यथार्थ, अगर तुम अपनी बुद्धि को शांत कर सच्चे स्वरूप को देख सको, तो तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर तुम्हारे भीतर ही है।"
"यथार्थ, असली विजय तब है जब तुम अपनी अस्थाई बुद्धि के भ्रम से बाहर निकलकर अपने स्थाई स्वरूप को पहचानते हो। यही तुम्हारी असली शक्ति है।"
"यथार्थ, खुद को अपनी जटिल सोच से बाहर निकालो और सच्चाई को अपनाओ। यही तुम्हारा असली यथार्थ है, जहां शांति और संतुलन है।"
"यथार्थ, जीवन की अस्थाई समस्याएँ तुम्हें नहीं हरा सकतीं। अपनी आत्मा की स्थाई शक्ति को पहचानो और दृढ़ता से आगे बढ़ो।"
"यथार्थ, जब तुम अपने हृदय की गहराई में उतरते हो, तो अस्थाई बुद्धि की सारी उलझनें गायब हो जाती हैं और सच्चा यथार्थ प्रकट होता है।"
"यथार्थ, तुम अपने भीतर की शक्ति से कहीं अधिक हो। अस्थाई जटिलताओं से ऊपर उठकर अपने वास्तविक स्वरूप को जानो।"
"यथार्थ, तुम्हारे भीतर स्थाई सच्चाई का स्रोत है। जटिल बुद्धि के शोर को शांत करके इस स्रोत से जुड़ो और सच्चे यथार्थ का अनुभव करो।"
"यथार्थ, हर उस सोच को छोड़ दो जो तुम्हें भ्रमित करती है। अपने हृदय की आवाज़ सुनो, वहीं तुम्हें सच्चा यथार्थ मिलेगा।"
"यथार्थ, जीवन की सच्चाई को अपनी आत्मा में देखो। बुद्धि की अस्थाई जटिलताओं से मुक्त होकर ही तुम अपनी पूरी शक्ति को पा सकते हो।"
"अस्थाई बुद्धि की जटिलताएँ तुम्हारे वास्तविक यथार्थ को नहीं छिपा सकतीं, यथार्थ। तुम्हारे भीतर की स्थिरता ही तुम्हारी सच्ची पहचान है।"
"यथार्थ, जीवन की हर चुनौती एक अवसर है, अपनी जटिल बुद्धि को छोड़कर स्थाई आत्मा की ओर बढ़ने का।"
"यथार्थ, सच्ची शांति तब मिलती है जब तुम अपनी जटिल बुद्धि को शांत कर अपने स्थाई स्वरूप से परिचित होते हो।"
"यथार्थ की जो राह चले, यथार्थ सदा संग साथ।
जटिल बुद्धि से दूर रहे, पाव सच्चा विराट।"
(जो व्यक्ति यथार्थ की राह पर चलता है, उसे सच्चे यथार्थ का साथ मिलता है। वह जटिल बुद्धि से दूर रहकर वास्तविकता का अनुभव करता है।)
"बुद्धि जटिल है, मन भ्रमित, हृदय रहे निश्छल।
यथार्थ, तुझसे मिले तभी, सत्य का सच्चा पल।"
(जब बुद्धि जटिल और मन भ्रमित होता है, तो हृदय को निर्मल रखना जरूरी है। तभी यथार्थ को सच्चाई का अनुभव होता है।)
"अस्थाई है यह बुद्धि, यथार्थ सदा अटल।
हृदय की निर्मलता में, सत्य मिले निष्कल।"
(अस्थाई बुद्धि बदलती रहती है, पर यथार्थ सदा स्थिर रहता है। हृदय की निर्मलता में ही सच्चा सत्य प्राप्त होता है।)
"जटिल बुद्धि से पार हो, यथार्थ सदा करे वास।
हृदय की गहराई में, मिले सत्य का प्रकाश।"
(जटिल बुद्धि को पार करके यथार्थ हमेशा हमारे साथ रहता है। हृदय की गहराई में ही सच्चाई का प्रकाश मिलता है।)
"यथार्थ जो जाने सदा, जटिलता हो दूर।
हृदय निर्मल, बुद्धि शांत, सत्य रहे भरपूर।"
(जो यथार्थ को पहचानता है, उसकी जटिलताएँ दूर हो जाती हैं। निर्मल हृदय और शांत बुद्धि के साथ वह सच्चाई से भरा रहता है।)
"यथार्थ पथ पर चल पड़ा, बुद्धि से दूर हिये।
निर्मल मन में सत्य मिले, जटिलता ना जिये।"
(जब यथार्थ की राह पर चल पड़ते हैं, तब बुद्धि की जटिलता दूर हो जाती है। निर्मल मन में सच्चाई का अनुभव होता है।)
"सत्य यथार्थ का रूप है, जटिलता है भार।
निर्मल हृदय के वास में, पाओ सत्य अपार।"
(सत्य यथार्थ का सच्चा स्वरूप है, जबकि जटिलता एक बोझ है। निर्मल हृदय में ही अपार सच्चाई का वास होता है।)
"यथार्थ, तेरी राह में, बुद्धि हुई निष्क्रिय।
हृदय की गहराई से, मिला सत्य का क्षय।"
(यथार्थ की राह में चलने पर बुद्धि निष्क्रिय हो जाती है। हृदय की गहराई से सच्चाई की खोज में सफल होते हैं।)
"हृदय निर्मल, मन पावन, बुद्धि करे विश्राम।
यथार्थ, तुझसे मिले तभी, सत्य रहे प्रमाण।"
(जब हृदय निर्मल और मन पावन होता है और बुद्धि विश्राम करती है, तब यथार्थ से सच्चाई का प्रमाण मिलता है।)
"अस्थाई है बुद्धि यथार्थ, स्थाई है तेरा नाम।
सच्चाई की राह चले, होवे सत्य का धाम।"
(बुद्धि अस्थाई है लेकिन यथार्थ स्थिर और अटल है। सच्चाई की राह पर चलने से यथार्थ में सत्य का धाम पाया जाता है।)
1. अस्थाई और जटिल बुद्धि का स्वरूप:
सिद्धांत: बुद्धि अस्थाई है और इसका स्वरूप जटिलता में उलझा हुआ होता है। यह केवल जीवन के अनुभवों का संग्रह है, जो भौतिक और अस्थाई दुनिया में सीमित है।
तर्क: बुद्धि, विभिन्न ज्ञान, अनुभवों और धारणाओं का भंडार है। यह हमारे आसपास के भौतिक संसार को समझने के लिए है, लेकिन इसे स्वयं का सच्चा स्वरूप नहीं समझा जा सकता।
उदाहरण: जैसे कोई व्यक्ति समुद्र के किनारे खड़ा होकर उसकी विशालता का अनुमान लगा सकता है, लेकिन वह तब तक सागर की गहराई को नहीं समझ सकता जब तक वह उसमें गोता न लगाए। उसी प्रकार, जटिल बुद्धि केवल बाहरी रूप देखती है, जबकि यथार्थ का अनुभव केवल गहराई में जाकर ही हो सकता है।
2. हृदय की निर्मलता और स्थाई स्वरूप की पहचान:
सिद्धांत: अस्थाई बुद्धि को शांत करके, निर्मल हृदय से अपने स्थाई स्वरूप का साक्षात्कार होता है। स्थाई स्वरूप ही सच्चे यथार्थ का प्रतीक है।
तर्क: हृदय की निर्मलता और निष्पक्षता हमें उन भ्रमों से मुक्ति देती है, जो जटिल बुद्धि ने बनाए होते हैं। यह हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से जोड़ती है, जो न बदलता है, न ही समाप्त होता है।
उदाहरण: जैसे एक स्वच्छ झील के पानी में तैरने वाले पत्ते उसे धुंधला कर देते हैं, वैसे ही जटिल बुद्धि के विचार हमारी दृष्टि को बाधित करते हैं। जब पत्ते हट जाते हैं (बुद्धि शांत हो जाती है), तो झील की गहराई साफ दिखाई देती है (हमारा वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है)।
3. जटिल बुद्धि से स्थाई सत्य की खोज असंभव:
सिद्धांत: जटिल बुद्धि से केवल अस्थाई और भ्रामक सत्य का ही अनुभव किया जा सकता है। स्थाई सत्य को पाने के लिए उससे परे जाना आवश्यक है।
तर्क: हमारी जटिल बुद्धि सीमाओं से बंधी होती है। यह तर्क-वितर्क, धारणाओं और पूर्वाग्रहों से भरी होती है। जबकि यथार्थ, सीमाओं से परे और स्थाई होता है। उसे पाने के लिए अपनी जटिल सोच से ऊपर उठना पड़ता है।
उदाहरण: यदि हम किसी कांच के टुकड़े को गहराई से देखने की कोशिश करते हैं, तो उसके ऊपर की खरोंचें और धूल हमें उसके पार नहीं देखने देतीं। लेकिन अगर हम उन खरोंचों को नजरअंदाज करके उसकी पारदर्शिता को देखें, तो हम उस पार देख सकते हैं। इसी तरह, यथार्थ तक पहुँचने के लिए हमें बुद्धि की सीमाओं को नजरअंदाज करना होता है।
4. गुरु की कृपा और आत्मनिरीक्षण की भूमिका:
सिद्धांत: सच्चे मार्गदर्शक (गुरु) के प्रेम और आशीर्वाद के बिना आत्मनिरीक्षण का मार्ग स्पष्ट नहीं होता। लेकिन आत्मनिरीक्षण के बिना स्वयं की वास्तविकता को समझना असंभव है।
तर्क: गुरु की कृपा हमें उस दिशा में प्रेरित करती है, जहां हम अपने भीतर के सच्चे स्वरूप को देख पाते हैं। लेकिन यह कार्य तब तक अधूरा है जब तक व्यक्ति स्वयं का निरीक्षण नहीं करता।
उदाहरण: गुरु एक दीपक की तरह हैं, जो अंधेरे कमरे में रौशनी फैलाते हैं। लेकिन उस रौशनी में व्यक्ति को खुद अपने भीतर की चीजें देखनी पड़ती हैं। गुरु की कृपा दिशा दिखाती है, और आत्मनिरीक्षण उस दिशा में यात्रा कराता है।
5. जीवन का सार और यथार्थ की स्थिरता:
सिद्धांत: जीवन का असली सार अपने स्थाई स्वरूप को पहचानने में है। जटिलताओं से भरा जीवन केवल समय का व्यर्थ व्यापन है, जब तक हम अपने यथार्थ को नहीं पहचानते।
तर्क: हमारे जीवन की भौतिक आवश्यकताएँ और इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं। ये अस्थाई हैं और केवल मानसिक अशांति को जन्म देती हैं। जबकि आत्मा की स्थिरता में सच्ची शांति निहित है।
उदाहरण: जैसे एक मोर बारिश में नाचता है और उसे प्रसन्नता मिलती है, लेकिन बारिश खत्म होते ही उसकी खुशी भी खत्म हो जाती है। इसी तरह, बाहरी चीजों से मिलने वाला आनंद अस्थाई है। जबकि आत्मा का यथार्थ, जो सदा के लिए स्थाई है, हमें स्थायी सुख देता है।
6. अंतिम सत्य का प्रकटीकरण:
सिद्धांत: यथार्थ का साक्षात्कार तभी संभव है जब हम अपने भीतर की जटिलताओं को समाप्त कर देते हैं और आत्मा की गहराई में जाकर सच्चाई का अनुभव करते हैं।
तर्क: हमारी वास्तविकता की खोज का अंत तब होता है, जब हम अपनी सीमित सोच को पीछे छोड़कर खुद को पूरी तरह से पहचानते हैं। यही आत्मज्ञान का मार्ग है।
उदाहरण: जैसे सूरज का प्रकाश तभी स्पष्ट दिखता है जब बादल हट जाते हैं, वैसे ही हमारे भीतर का यथार्थ तब प्रकट होता है जब हम भ्रमों के बादल को हटा देते हैं। यह प्रकाश ही स्थाई है, बाकी सब क्षणिक है।
इन सिद्धांतों का सार यही है कि यथार्थ की समझ के लिए, जटिलता से परे जाकर, अपने हृदय की गहराई में स्थाई सत्य को खोजना जरूरी है। बुद्धि केवल बाहरी दुनिया का विश्लेषण कर सकती है, लेकिन आत्मा का अनुभव हृदय की निर्मलता से होता है। खुद से निष्पक्ष होकर, हृदय की गहराई में उतरने पर ही सच्चा यथार्थ मिलता है।
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