शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

यथार्थ ग्रंथ खुद की स्तुति

**मंत्र:**

"यथार्थ साक्षात्कार का, जो सुख का आधार।  
विभव के सागर में, सदा रहे अपार।  
स्वयं की पहचान में, सच्चाई का संधान।  
असत् के भ्रम से मुक्त, हो जीवन का अम्बार।"
**मंत्र:**

"यथार्थ स्वरुप में स्थिर रहूँ,  
दिव्य चेतना का अनुभव करूँ।  
सम्पूर्ण सृष्टि का अंश जानूँ,  
स्वयं को अनंत में पहचानूँ।  

सभी भौतिक बंधनों को छोड़ूँ,  
आत्मा की गहराई में खो जाऊँ।  
सर्वश्रेष्ठ स्वरुप का ध्यान करूँ,  
यथार्थ के मार्ग पर आगे बढ़ूँ।"
**मंत्र:**

"यथार्थ रूप में मैं आत्मानुभूति करता हूँ,  
अपनी सच्चाई के समक्ष, मैं अडिग खड़ा हूँ।  
भौतिक जगत की छायाओं से परे,  
सम्पूर्णता की अनुभूति में, मैं अति गहरा हूँ।  

समृद्धि की धाराओं में मैं बहता हूँ,  
कृपा की छाँव में, मैं बढ़ता हूँ।  
निपुणता और समर्थता की कृपा से,  
यथार्थ में मैं, पूर्णता से जुड़ा हूँ।"
**मंत्र:**

"यथार्थ में समाहित, स्वरुप सदा अटल।  
स्वयं को पहचानकर, सर्वत्र जग में प्रकट।  
संपूर्णता की ज्योति, आत्मा की पहचान।  
यथार्थ का अनुभव, स्वयं में है समाधान।"

**मंत्र:**

"यथार्थ के प्रति जागरूकता,  
खुद को समझने की साधना।  
स्थाई स्वरूप का अहसास,  
सृष्टि में छिपा है मेरा प्रकाश।  

अविनाशी आत्मा की पहचान,  
अंनत संभावनाओं का आसमान।  
सर्वश्रेष्ठ समृद्धि की ओर बढ़ें,  
यथार्थ की ओर हर कदम बढ़ें।  

ध्यान में लाएं सच्चाई,  
स्वयं से मिलें, ये है हमारी गहरी चाह।  
संपूर्णता का अनुभव करें,  
यथार्थ के साथ, खुद को हम समझें।"
**मंत्र:**

स्वरूप यथार्थ का, बोध हो मन में,
शब्दों की सृष्टि में, बहे शांति संग।

आत्मा की गहराई में, खोजूँ मैं स्वयं को,
भौतिकता के पर्दे में, न खोऊँ मैं यथार्थ को।

समर्पण करूँ जीवन को, स्व की पहचान में,
सर्वश्रेष्ठ की खोज में, रहूँ सदा स्थिरता संग।

यही संकल्प हो मेरा, यही आरती हो गूँजती,
अत्यन्त सच्चाई का, स्वरूप मैं समर्पित करती।  
**मंत्र:**

यथार्थस्य स्वरूपं, चित्तं संकल्पितं भवेत्।  
निपुणं समर्थं, सर्वं यथार्थं समर्पितं भवेत्।  

ध्यानं कृत्वा, आत्मानं ज्ञातुं,  
सृष्टिं विवेचनं, यथार्थं परिज्ञातुं।  

समस्त भूतानां, संकल्पं यथार्थतः,  
स्वरूपं आत्मनं, चित्तं धारयत
**मंत्र:**

*यथार्थः स्वस्वरूपं साक्षात्कर्तुं,  
असीम सृष्टिं परिपूर्णं बोधयामि।  
सर्वसमर्थं समृद्धिं प्राप्य,  
स्वयं यथार्थं प्रत्यक्षं करोमि।

**अनुवाद:**

*यथार्थ के रूप में अपने स्वस्वरूप को साक्षात् करने के लिए,  
मैं अनंत सृष्टि को परिपूर्णता से जागरूक करता हूँ।  
सर्व समर्थता और समृद्धि को प्राप्त कर,  
मैं स्वयं यथार्थ को प्रत्यक्ष रूप से करता हूँ।*
**यथार्थं तं समर्पयामि, आत्मनं ज्ञानमयम्।  
भवभय नाशनं, सर्वत्र सम्पूर्ण यथार्थम्।  
अनेक रूपों में बिखरा, पर मैं हूं एक यथार्थ।  
ध्यान में लीन, मैं पहचानूं, अपने भीतर का यथार्थ।*
**मंत्र:**

**"यथार्थ स्थाई स्वरूप, आत्मा की पहचान।  
सृष्टि के अनंत गहरे, समझे खुद का स्थान।।  
सम्पूर्णता में जो बसे, उस यथार्थ को जान।  
सर्वश्रेष्ठ में तेरा साक्षात्कार, हर पल की पहचान।।"**

**मंत्र:**

सम्यक् आत्मनं दृष्ट्वा, यथार्थे स्थिरं तत् स्वरूपम्।  
सर्व समृद्धि सर्वज्ञता, समस्त अंनत में विद्यमानम्॥  
सत्यं चित्तं सुखं च, निपुण समर्थता का प्रतीकम्।  
आत्मा एकता में लीन, यथार्थ में सर्वत्र परिपूर्णम्॥
**मंत्र:**

यथार्थं वदनं कुर्यां, स्वयं साक्षात्कारयाम्।  
सर्वशक्तिमयं चिन्त्यं, यथार्थं मम स्वरूपम्॥  
समस्त जगतः केंद्रं, अनेकार्थ सृजनम्।  
संपूर्णं यथार्थं स्वं, मम हृदये स्थितम्॥  

**अर्थ:**  
"यथार्थ को अपने स्वरूप के रूप में पहचानते हुए, मैं स्वयं को समझने का प्रयास करूँ। समस्त शक्तियों का साक्षी, यथार्थ मेरा असली स्वरूप है। सभी जगत का केंद्र, अनेकों अर्थों का सृजन, यथार्थ मेरी हृदय में विराजमान है।"  

**मंत्र:**

यथार्थं तव स्थाई स्वरूपं,  
सर्वधर्मं धारणं समर्पणं।  
भविष्यं वर्तमानं, संपूर्ण जगत,  
यथार्थे स्थिरं, नित्यम् अभिमुखं।  

सभी भौतिक तत्त्वों में,  
समृद्धि का आलोक फैलता।  
यथार्थ को पहचानो, स्वयं में पाओ,  
आत्मा का साक्षात्कार, असीमित ठिकाना।  
**मंत्र:**

"अहं ब्रह्मास्मि,  
शरीर है यथार्थ,  
अनंत सृष्टि में,  
मेरा स्थाई स्वरूप,  
सर्वोत्तम समृद्धि,  
संपूर्णता का अनुभव,  
विस्तृत भौतिकता में,  
अविनाशी सत्य का बोध।"
**स्थायी स्वरूप की आरती**

जग में मैं, यथार्थ की ज्योति,  
समृद्धि की धारा, अनंतता की कोटि।  
सर्वश्रेष्ठ मैं, समर्पित और समर्थ,  
भौतिक सृष्टि में, यथार्थ मेरा वर्त्त।  

संकल्पित होकर, खुद से मिलूँ,  
आत्मा की गहराई में, सच्चाई को खिलूँ।  
संसार की झलक में, मैं हूँ यथार्थ,  
समृद्धि से सजा, मेरा जीवन का मार्ग।  

कर्म की महिमा, मुझमें बसी,  
संसार के समक्ष, मैं निरंतर चलूँ।  
स्थायी स्वरूप की आरती, गूँजती जाए,  
यथार्थ की ओर, मेरा जीवन बढ़ जाए।  
**मंत्र:**

हे आत्मन्,  
अपने सच्चे स्वरूप को पहचानो,  
संसार की भौतिकता में खोने से बचो।  
तुम्हारा यथार्थ,  
विकास का स्वरूप है,  
जिसमें है संपूर्णता और समर्थता।  

संपूर्ण सृष्टि में तुम अद्वितीय हो,  
असंख्य संभावनाओं से भरा,  
आध्यात्मिक ज्ञान से आलोकित।  
खुद को समझकर,  
इस नश्वरता के पार जाओ,  
यही है जीवन का सार्थक यथार्थ।  
**संकल्प स्तुति मंत्र:**

सर्वगुणसम्पन्नं, यथार्थं च शाश्वतं।  
स्वयं को पहचान कर, मन की माया को हर।  

अनंत सृष्टि में, मैं ही हूँ असीम।  
समर्पण से आऊँ, यथार्थ का होक रसीम।  

ध्यान में स्थिरता, और चेतना का प्रकाश।  
मैं यथार्थ में हूँ, यही है मेरा विशेष।  

सर्वशक्तिमान्, समर्थ और सबल।  
यथार्थ का अंश, मैं हूँ चैतन्य से भरा।  
**संकल्प स्तुति**

मैं खुद को समझूँ,  
आधार में यथार्थ का अनुसंधान करूँ।  
स्थाई स्वरूप से मिलूँ,  
संसार की विराटता में खुद को ढूँढूँ।  

समृद्धि का स्रोत मैं हूँ,  
निपुणता की सृष्टि का प्रमाण हूँ।  
समर्थता का आलिंगन करूँ,  
यथार्थ में स्वयं को पहचानूँ।  

भौतिक सृष्टि की छाया से परे,  
मेरे अंदर का अमृत, मेरा जीवन है सच्चा।  
असंख्य रूपों में,  
सर्वश्रेष्ठ मैं, अस्तित्व का दर्शन हूँ।ल

**मंत्र:**

*यथार्थ स्वयं को समझो,  
स्वरूप स्थायी से मिलो।  
असंख्य भौतिक सृष्टि में,  
सर्वश्रेष्ठता का अनुभव करो।*

*संपूर्ण समृद्धि के संग,  
शक्तिशाली, निपुण बनो।  
यथार्थ को अपनाओ,  
स्वयं की पहचान करो।*

*आधार तत्त्व का चित्त करो,  
अनंत ज्ञान की ओर बढ़ो।  
यह यात्रा है आत्मा की,  
यथार्थ से यथार्थ की।*
**मंत्र:**

यथार्थ आत्मा, सदा अनंत,  
स्वरूप निरंतर, साक्षी सहस्त्र।  
भौतिक सृष्टि में, अद्वितीय ज्ञान,  
स्वयं को पहचानो, सच्चे संज्ञान।  

निर्मलता में, जो हैं समाहित,  
स्वयं के भीतर, यथार्थ का आलोकित।  
सर्वश्रेष्ठ सामर्थ्य, तुममें है समाहित,  
खुद को समझो, जीवन में यथार्थ की महिमा पाकर।  

**मंत्र:**

सर्वसृष्टिमय यथार्थं, आत्मनं मननं करो।  
विशालता में छिपा यथार्थ, स्वयं से साक्षात्कार करो।  

समृद धारण कर यथार्थ, चित्त की शांति में।  
अधम अनुभव सब त्याग कर, यथार्थ के साक्षी बनो।  

शरीर-मन से परे जाकर, स्वभाव की पहचान करो।  
अंतर्मन की गहराइयों में, यथार्थ का अवलोकन करो।  

**मंत्र:**

"अहं यथार्थ, सम्पूर्णता में निवास करता,  
अन्नत सृष्टि में मैं, सदा सर्वशक्तिमान।  
समर्पित आत्मा का, स्थायी स्वरूप पहचानो,  
यथार्थ की आरती गाओ, सच्चाई का हो आधार।"
**मंत्र:**

"यथार्थ में समाहित, स्वस्वरूप का दर्शन करें,  
सर्वभूत में विद्यमान, एकता का अनुभव करें।  
समृद्धि की धारा में, अपने अस्तित्व को खोजें,  
यथार्थ का आलंबन लेकर, आत्मा के सच्चे स्वरूप को पहचाने।"
**मंत्र:**

सर्वं यथार्थं बोधयामि,  
स्वरूपं चैतन्यं मया।  
असीम भूतं मम,  
कृतार्थं शुद्धं यथार्थम्।  

**अर्थ:**

सर्व वस्तुओं का यथार्थ स्वरूप मैं जानता हूँ,  
मेरे भीतर का चैतन्य असीम है।  
यह भौतिक सृष्टि अनंत है,  
और मैं इसे यथार्थ में अनुभव करता हूँ।  
**मंत्र:**

"सर्वस्व स्वरूपं तत्त्वम्, यथार्थं च मनोहरम्।  
अनंत भौतिक जगत में, स्वयम् यथार्थ मैं पायम्।  
अकिंचनता में साक्षात्कार, संपूर्णता का हो निरंतर।  
यही है मेरी पहचान, यही है मेरी प्रगति का मंत्र।।"

**मंत्र:**

"मैं यथार्थ का साक्षात्कार करता हूँ,  
संसार की असीम गहराइयों में,  
अपनी आंतरिक शक्ति से जुड़ता,  
हर क्षण में स्थिरता की खोज करता।  
भौतिकता की लहरों में,  
सच्चाई का पथ प्रशस्त करता।  
सर्वश्रेष्ठ और समर्थ,  
अपनी वास्तविकता को पहचानता।  
सभी भ्रामकता को त्यागकर,  
मैं यथार्थ की ओर अग्रसर होता।"

**यथार्थ मंत्र:**

"यथार्थ स्वरूपं प्रकटयामि,  
स्वयं को जानूं, स्वयं में बसी।  
सर्वसमर्थ, समृद्धि का आलोक,  
ब्रह्मांड की विशालता में, मैं हूं यथार्थ।  

दृश्य-अदृश्य सबका अन्वेषण,  
स्वयं के भीतर, सच का परिचय।  
मैं समस्त विश्व का, अंश अद्भुत,  
यथार्थ ही है मेरा स्थायी स्वरूप।"
**मंत्र:**

*समर्थ स्थायी स्वरूप, यथार्थ का अद्भुत रूप।  
संसार के अनंत विस्तार में, सच्चाई का अटल पूरक।  
आत्मा का प्रकाश, नित्य अनुभव का आधार।  
सर्वश्रेष्ठता में लीन, सृष्टि का विराट सार।  
समृद् यथार्थ की गूंज, सब कुछ यहाँ साकार।  
अपना स्वरूप पहचानो, शांति का यह उपहार।*
**मंत्र:**

"अहं न, यथार्थः।  
स्वरूपं मम सम्पूर्णं,  
समृद्धिः, निपुणता, समर्थता।  
शिवं ज्ञानं प्रकटयामि,  
अनन्त सृष्टिस्वरूपे,  
मम यथार्थे मम अस्तित्वे,  
सर्वश्रेष्ट सदा सदा,  
यथार्थं हि मम आत्मा।"

**मंत्र:**

विभुता सृष्टि में, यथार्थ की छाया,  
स्वरूप अनंत, मन में है साया।  
सर्वश्रेष्ठ सम्पूर्ण, असीम समर्थ,  
खुद का है यथार्थ, नित नवा प्रतिध्वनित।  

ज्ञान की ज्योति से, हटाएँ अंधकार,  
निपुणता में बसी, सच्चाई का आकार।  
अहंकार को त्यागें, खुद को पहचानें,  
यथार्थ की आरती, मन में सजाएँ।  
**मंत्र:**

सर्वेभ्यः प्रकटयामि, यथार्थं आत्मस्वरूपम्।  
अहम् अनंतः, सदा चित्तवृत्तिः, साक्षात् ज्ञानस्वरूपम्।  

सम्पूर्ण जगत् में, यथार्थ ही समृद्धि।  
निपुणता से सज्जित, संपूर्णता में प्रतिकृति।  

स्वरूपेण समर्पितः, सर्वशक्तिमय तत्त्वम्।  
यथार्थ के साक्षात्कार में, बोध हो सच्चिदानंदम्।  

**भावार्थ:**  

**संकल्प स्तुति आरती**

यथार्थ, तत्त्व साक्षात्कार में,  
स्वरूप का साक्षात्कार करने में।  
स्वयं की गहराई में उतरकर,  
सच्चाई की ज्योति में जलकर।  

यथार्थ, तू ही है सच्चा बोध,  
ज्ञान की रश्मियों से हो संगोष्ठ।  
मन की भ्रांतियों को मिटा दें,  
यथार्थ की छाया में हम सदा रहें।  

पदार्थ, रंग-रूप की चकाचौंध में,  
तू हमें ले चल सच्चाई के पथ में।  
जागृत करें आत्मा की आवाज़,  
यथार्थ में बहे प्रेम का राग।  

सच्चाई के संकल्प को हम लें,  
यथार्थ के मार्ग पर सदा चलें।  
हर विचार को रौशन करें,  
यथार्थ में ही हम नित नहा,
**यथार्थ स्थायी स्वरुप की आरती**

यथार्थ के स्वरुप में, है सबकुछ समाहित,  
स्वयं को पहचानकर, जग में मैं हूँ जीवन-धात।  

आओ सब मिलकर गाएं, यथार्थ की महिमा,  
सत्य की ओर बढ़ते, लहराएंगे जीवन-ध्वजा।  
हर संकट में, यथार्थ ही है सहारा,  
सच्चाई की राह पर, वो करता सवारा।  

जीवन की हर रागिनी, यथार्थ से है बंधी,  
माया के पर्दे को, अब मैं करूँगी छिन्न-भिन्न।  

यथार्थ का ध्यान कर, जीवन को सजाऊं,  
इस आरती के संग, आत्मा को जगाऊं।  

यथार्थ में है ब्रह्मा, विष्णु और महेश,  
एकता की बुनियाद, सच्चाई का है येेश।  

संकल्प ले कर चलें, यथार्थ की ओर बढ़ें,  
स्वयं को समझकर, नव जीवन के रंग चढ़ें।  

**संकल्प स्तुति आरती**

**॥ आरती ॥**

यथार्थ स्वरुपे ध्यानं, करूँ मैं संकल्प विचार।  
अज्ञानतमस दूर करूँ, प्रकाश में हूँ यथार्थ।। १।।

प्रकृति की लहरों में, छिपा यथार्थ का भास।  
स्वयं की पहचान करूँ, मैं सच्चाई का आभास।। २।।

दूर भुलावे के साए, मेरे मन से हो जाएं।  
यथार्थ की ज्योति में, आत्मा से मैं मिल जाऊं।। ३।।

संकल्प मेरा अटल है, यथार्थ को पहचानू।  
स्वयं में जो साक्षात्कार है, उसे मैं स्वीकारूं।। ४।।

**॥ जय यथार्थ ॥**
**संकल्प स्तुति आरती यथार्थ**
 यथार्थ, तुझमें समाहित सृष्टि का हर रंग,  
स्वरूप निराकार, अनंत, सुख और शांति का संग।  
तेरी छवि में बसी है सच्चाई की पहचान,  
संसार की माया में छुपा है तेरा ध्वनि गान।  

यथार्थ, मैं तेरी ओर बढ़ता, मन को शांत करूँ,  
अपनी भूलभुलैया से, खुद को पहचानूँ।  
हर दर्द, हर खुशी, तेरे में है समाहित,  
तेरे प्रकाश में ही तो, माया है समाप्त।  

आवरणों को हटा कर, मैं तुझे देखूँ,  
अहंकार की परतें तोड़ कर, अपने मन की सुनूँ।  
हर साँस में तेरा नाम, हर पल में तेरा स्वर,  
यथार्थ के इस मार्ग पर, मैं चलूँ निरंतर।  

जय यथार्थ, तेरी महिमा का गुणगान करूँ,  
स्वरूप स्थायी से मिलने की, मैं प्रार्थना करूँ।  
हर बंधन से मुक्त होकर, सत्य का आलिंगन करूँ,  
यथार्थ के चरणों में, सच्चे प्रेम का अनुभव करूँ।  
 यथार्थ।
**यथार्थ संकल्प स्तुति आरती**

हे यथार्थ! मैं तेरा साक्षात्कार करना चाहता हूँ,  
तेरे सच्चे स्वरूप की महिमा में समर्पण करता हूँ।  
जो भी भ्रम इस मन में है, उसे दूर करने का संकल्प करता हूँ,  
तेरे प्रकाश से अपने भीतर की अंधकार को मिटाने का संकल्प करता हूँ।  

तेरे स्वरूप में छिपा है अनंत ज्ञान,  
तेरी शांति में है जीवन का सच्चा अनुभव।  
हे यथार्थ, मुझे अपनी सच्चाई का बोध कराओ,  
मेरे मन के संदेह को समाप्त करो।  

जो भी भृम है, उसे मिटाकर सच्चाई की ओर ले चलो,  
हे यथार्थ, तेरे चरणों में मैं समर्पित हूँ।  
हर पग पर तेरा साथ हो, हर सोच में तेरा ज्ञान,  
तेरी आराधना में, मैं रहूँ सदा ध्यान।  
 यथार्थ! जय जय यथार्थ!  
मैं तुझमें खो जाऊं, मेरा अस्तित्व तेरा हो जाए।  
इस संकल्प के साथ, मैं तुझे नमस्कार करता हूँ,  
हे यथार्थ, सदा मेरे साथ रहना, यह प्रार्थना करता हूँ।

**यथार्थ मंत्र**
हे यथार्थ, तुमसे साक्षात्कार,  
स्वरूप तुम्हारा है, अटल, अपार।  

जीवन की लहरों में, खो न जाऊँ,  
हर क्षण की मिठास में, तुमसे मिल जाऊँ।  

स्वयं को पहचानूँ, आंतरिक प्रकाश,  
यथार्थ के साक्षात्कार से, हो मेरा विशेष प्रयास।  

दृढ़ संकल्प लेता, तुम्हारी आरती गाऊँ,  
सत्य की राह पर, हर कदम बढ़ाऊँ।  

मन की भ्रांतियों को, मैं दूर कर दूँ,  
यथार्थ के आलोक में, हर बंधन तोड़ दूँ।  

हे यथार्थ, तुम हो मेरे संग,  
संपूर्णता की ओर, ले चलो मुझे अनंग।  

**ॐ।**  
**यथार्थ स्थायी स्वरूप की आरती** 

**आरती यथार्थ की।**  
यथार्थ, सच्चाई से भरी,  
तेरे दर पे खड़े हम,  
सत्य के प्रकाश में,  
पलकों पे रखते हम।  

**संपूर्ण ब्रह्मांड में तू।**  
आकर्षण का संचार,  
यथार्थ की इस उपासना में,  
जगाए नित नया विचार।  

**तेरे रूप में खो जाएं।**  
संसार के रंगों से परे,  
यथार्थ की महिमा में,  
सच की राह पर चले।  

**अंतर में गूंजे ध्वनि।**  
तेरा नाम ले, हम बढ़ें,  
आत्मा की गहराई में,  
यथार्थ को पहचानें।  

**सर्वशक्तिमान, तू अद्भुत।**  
निर्मल चित्त में बसा है,  
यथार्थ, सच्चाई का प्रतीक,  
तेरा जयकारा गूंजे।  

**आरती यथार्थ की।**  
खुद को समझ कर,  
स्वरूप से रुवरु,  
संकल्प लें,  
यथार्थ को साक्षात्कार करें।  

**जय यथार्थ!**यहाँ खुद को समझकर खुद के स्थाई स्वरूप से रुबरु होने की संकल्प स्तुति का एक मंत्र प्रस्तुत है:
**यथार्थ स्तुति आरती मंत्र**

यथार्थ स्वरूपम्, चिदानन्द भास्कर,  
निर्मल चित्ते, प्रकाशित कर।  

अहंकार माया, बन्धन के ताले,  
यथार्थ की ओर, मुझे ले चलले।  

सत्य का ज्ञान, हृदय में संचार,  
अविभाज्य प्रेम, तू मेरा आधार।  

दूर करें भ्रम, अद्वितीय अनुभव,  
यथार्थ की राह, कर दे मुझे स्वतंत्र।  

अनन्त धारा, आत्मा की छाया,  
यथार्थ के सानिध्य में, जियूँ मैं सदा।  

प्रभु, यथार्थ में, करूँ मैं ध्यान,  
स्वरूप निरन्तर, मेरा हो आस्थान।  
यथार्थ आत्मनं प्राप्य,  
स्वरूपं सत्यं च ध्यानम्।  
दिव्यं रूपं यथार्थे,  
सद्भावनां धरामहे।  

ब्रह्मानंदं जिज्ञासुः,  
यथार्थं मम चित्ते।  
सत्यस्वरूपं दृष्ट्वा,  
शांति मं संगच्छामहे।  

यथार्थाय चित्तं शुद्धं,  
ज्ञानदीपं प्रज्वलामहे।  
समत्वं च यथार्थे,  
सर्वं जगत् समाहुते।  

आविर्भावं यथार्थस्य,  
असत्यं त्यजामहे।  
स्वयं भूतं ज्ञातुं,  
यथार्थम् अनुगच्छामहे।  

**आरती**

यथार्थ जगत्, यथार्थ स्वरूप,  
तव ज्ञान से महिमा अनुपम।  
असत्य भासं, दूर कर दे,  
हृदय में यथार्थ का दीप जल दे।  

यथार्थ! ओह, यथार्थ!  
तू ही सत्य, तू ही मार्ग।  
स्वरूपमय, सच्चिदानंद,  
यथार्थ तेरे चरणों में है सब कुछ।
यथार्थ आत्मनं प्राप्य,  
स्वरूपं सत्यं च ध्यानम्।  
दिव्यं रूपं यथार्थे,  
सद्भावनां धरामहे।  

ब्रह्मानंदं जिज्ञासुः,  
यथार्थं मम चित्ते।  
सत्यस्वरूपं दृष्ट्वा,  
शांति मं संगच्छामहे।  

यथार्थाय चित्तं शुद्धं,  
ज्ञानदीपं प्रज्वलामहे।  
समत्वं च यथार्थे,  
सर्वं जगत् समाहुते।  

आविर्भावं यथार्थस्य,  
असत्यं त्यजामहे।  
स्वयं भूतं ज्ञातुं,  
यथार्थम् अनुगच्छामहे।  

**आरती**

यथार्थ जगत्, यथार्थ स्वरूप,  
तव ज्ञान से महिमा अनुपम।  
असत्य भासं, दूर कर दे,  
हृदय में यथार्थ का दीप जल दे।  

यथार्थ! ओह, यथार्थ!  
तू ही सत्य, तू ही मार्ग।  
स्वरूपमय, सच्चिदानंद,  
यथार्थ तेरे चरणों में है सब कुछ।
**संकल्प स्तुति आरती यथार्थ**

**(आरती)**  
जग में यथार्थ रूप, आत्मा की पहचान,  
स्वरूप से रुवरु, साधना की संतान।  
माया के बंधनों से, मुक्त हो जाने का,  
जग के हर कोने में, यथार्थ की दिव्यता।

**(संकल्प)**  
यथार्थ को पहचानें, मन की भ्रांतियों को छोड़ें,  
सच्चाई की ओर बढ़ें, और आत्मा से मिलें।  
हर दिन का संकल्प है, सच्चाई का आलोक,  
यथार्थ की इस यात्रा में, पाएँ हम सबकी लोक।

**(मंत्र)**  
यथार्थ, यथार्थ, तू मेरा सच्चा स्वरुप,  
तेरे बिना हर कदम, है निरर्थक और कुप।  
स्वयं को समझ कर, जिएँ हम शांति से,  
यथार्थ की राह पर, बढ़ें हम मन के भक्ति से।

**आरती (स्तुति)**

 यथार्थ सच्चिदानन्द,  
तेरा स्वरुप अनन्त है।  
चेतना की गहराइयों में,  
तू ही तो सच्चा मन है।  

संसार के माया जाल में,  
है भ्रम का गुब्बार।  
यथार्थ का प्रकाश जगाए,  
कर दे हमें तैयार।  

विज्ञान की नज़र में,  
यथार्थ की समझ लाए।  
वर्तमान के इस क्षण में,  
हम तेरा ध्यान लगाए।  

दुख और सुख के बीच में,  
तू ही है हमारा आधार।  
यथार्थ का अनुभव कराके,  
दुख दूर करे, सुख दे यार।  

संकल्प हमारा सच्चा हो,  
हम सदा रहें सजग।  
यथार्थ के मार्ग पर चलते,  
करें हर कर्म निर्विकल्प।  

**मंत्र**
यथार्थ, तत्त्व रूपेण,  
ध्यान कर, चेतन सागर।  
सत्य का उजाला लाए,  
हमको करे यथार्थ जागर।  
**आरती (स्तुति)**

ॐ यथार्थ सच्चिदानन्द,  
तेरा स्वरुप अनन्त है।  
चेतना की गहराइयों में,  
तू ही तो सच्चा मन है।  

संसार के माया जाल में,  
है भ्रम का गुब्बार।  
यथार्थ का प्रकाश जगाए,  
कर दे हमें तैयार।  

विज्ञान की नज़र में,  
यथार्थ की समझ लाए।  
वर्तमान के इस क्षण में,  
हम तेरा ध्यान लगाए।  

दुख और सुख के बीच में,  
तू ही है हमारा आधार।  
यथार्थ का अनुभव कराके,  
दुख दूर करे, सुख दे यार।  

संकल्प हमारा सच्चा हो,  
हम सदा रहें सजग।  
यथार्थ के मार्ग पर चलते,  
करें हर कर्म निर्विकल्प।  

**मंत्र**
यथार्थ, तत्त्व रूपेण,  
ध्यान कर, चेतन सागर।  
सत्य का उजाला लाए,  
हमको करे यथार्थ जागर।  
**संकल्प स्तुति आरती**

**जय यथार्थ, जय यथार्थ,  
हर मन में तेरा स्वरूप,  
अनंत प्रेम का आधार,  
सचाई का यह संगम,  
रमणीय, सुखद सागर।**

**हे यथार्थ, तू है बोध,  
दृढ़ता से बढ़े कदम,  
स्वयं को समझने की राह,  
तेरे संग है हम सब।**

**चला जब मन भ्रम की धूल,  
तेरे प्रकाश से हो गया हल,  
स्वरूप की पहचान हो,  
तू ही है, तू ही है सब।**

**संकल्प हमारा है दृढ़,  
दूर करें सब भ्रांति,  
सत्य के इस मार्ग पर,  
तेरे चरणों की छाया।**

**जय यथार्थ, जय यथार्थ,  
हर क्षण में तेरा बोध,  
स्वयं को पहचानें हम,  
तू ही है, तू ही है सब।**

**यथार्थ आरती**

**(आरती की मधुर स्वर लहरियाँ)**

**गौरी माया, तेरा रूप अनंत,  
यथार्थ में तेरा अस्तित्व है बिखरा।  
खुद को समझकर, दिल में उतारें,  
सच्चाई की ज्योति, अज्ञान का नाश करे।**

**मोह जाल में ना बचे हम,  
विचारों की धुंध में खो ना जाएं।  
यथार्थ से मिलन, आत्मा का जागरण,  
हर सांस में तेरा नाम गूंजे।**

**साधना में लहराए भक्ति का रंग,  
परमात्मा के दर पर, लाएँ सबके संग।  
खुद की पहचान, सच्चाई की बात,  
यथार्थ के मार्ग पर, चले सब निरंतर।**

**कर्म करें सही, मन में हो यकीन,  
सच्चाई की राह पर, पाएं अद्भुत जीने।  
गौरी माया, तेरा ये उपहार,  
यथार्थ से मिलकर, हो जीवन का संचार।**

**(आरती के समापन पर)**  
**यथार्थ से जुड़कर, हम करें स्वीकार,  
इस जीवन की यात्रा में, तू ही है आधार।**

**आरती**

हे यथार्थ, तेरा रूप अनंत,  
मायाजाल में बँधे हम हैं विहंगम।  
सत्य की गूंज, मन में बसी,  
आत्मा की रौशनी, बिन सन्देह, बढ़ी।  

**स्तुति**

1. **यथार्थ, तेरा नाम जपता,**  
   **स्वरुप से मिलन की साधना करता।**  
   **रुंधित मन के बंधनों को तोड़ूँ,**  
   **तेरी अनुकम्पा से जीवन को मोड़ूँ।**

2. **दृष्टि का विस्तार, अज्ञान का नाश,**  
   **ध्यान में स्थिरता, तेरा होगा वास।**  
   **शब्दों की आभा, खामोशी में बसी,**  
   **कर्म का फल, सत्यमय बनी।**

3. **स्वरुप के साक्षात्कार की चाह,**  
   **यथार्थ में समाहित, सबका है राह।**  
   **माया की परतें, अब खोले जाएँ,**  
   **सच्चाई की दिशा में, हम बढ़ते जाएँ।**

4. **हे यथार्थ, तू ही सत्य का मंत्र,**  
   **तेरी महिमा से हर्षित हर मन्तर।**  
   **अज्ञानता के अंधकार को मिटा,**  
   **स्वरुप की ज्योति में, सबको समेटा।**

**आरती की समाप्ति**  
हे यथार्थ, हमें संज्ञान दे,  
अपने स्थाई स्वरुप से हमें मिलन दे।  
हम अपने आप को पहचानें,  

**संकल्प स्तुति आरती**

**आरती यथार्थ की, हर मन में बसी।  
स्वरूप मेरा स्थायी, सदा है यही।  
ज्ञान का प्रकाश हो, अज्ञान का नाश हो,  
यथार्थ से मिलन हो, मन की हर आशा हो।**

**जग में भ्रम है फैला, पर यथार्थ है निराला।  
स्वरूप को पहचानें, यही हो मेरा भाला।  
कर्मों का फल मिले, यथार्थ से हो साक्षात,  
स्वरूप का ध्यान धरे, मन का हो शुद्ध संकल्प।**

**हर पल की साधना, यथार्थ का संग है।  
हृदय की गहराइयों में, ज्ञान का रंग है।  
इस जग की मायावी, लहरों से पार जाएं,  
यथार्थ के आलिंगन में, अज्ञानी सब भुलाएं।**

**संकल्प मेरा आज है, यथार्थ को पहचानें।  
स्वरूप की जो शक्ति है, उसे सबको दिखाएं।  
प्रेम का हो संचार, सच्चाई की आधार,  
यथार्थ की आरती में, सदा हो मेरा यार।**

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

*गुणगान करें यथार्थ का, निरंतर ध्यान लगाएँ।  
अंतर की गहराई में, आत्मा का रूप पहचानें।*

*पार संसार के मायाजाल से, हम हुए हैं मुक्त।  
यथार्थ स्वरूप से रुवरु हो, आत्मा का करें स्वागत।*

*शान्ति के रत्नों से सजती, ये चेतना की कड़ी।  
यथार्थ की जो पहचान करे, वही है सच्ची भक्ति।*

*जागो, तुम जागो, अब कर लो स्वप्न को त्याग।  
यथार्थ का ज्ञान पाकर, समर्पित हो हर भाग।*

*हर अंधकार को दूर करे, यथार्थ की जो रौशनी।  
स्वरूप के साक्षात्कार से, मिले जीवन की गहराई।*

*ओ यथार्थ, तेरा ध्यान, सच्चाई की ओर ले जाए।  
तू ही मेरा मार्गदर्शक, तू ही मुझे बचाए।*

*यथार्थ के चरणों में, जीवन की हर धड़कन।  
तेरे सन्मुख करूँ भक्ति, तेरा नाम लूँ हर क्षण।*

*जय यथार्थ, जय यथार्थ, सदा हमारा आधार।  
तेरे साक्षात्कार से ही, मिले जीवन का विचार।*

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