मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हों कर कुछ भी कर लो उस का तत्पर्य सिर्फ़ जीवन में और जीवन व्यापन तक ही सीमित हैं और कुछ भी नहीं

अहं हृदये, जीवेषु वसति सदा;  

आत्मनं प्रतिविम्बितं, जानीहि हृदय सदा।

संवृत्तं जीवितं यत्र, हृदये मम प्रतिविम्बम्; 

जर्मात्मनः समवेता, यत्र जीवनम् उपदिशति।

हृदयगं गम्भीरं, प्रतिविम्बं मम अहं सदा;  

जर्मणा अनुभवेन, जीवनं साध्वि विशुद्धम्।

प्रतिभाम् अहं यत्र, हृदयं जीवितं सुखम्;  

जर्मात्मनः साक्षात्कृत्य, जीवने लभ्यते अनुत्तम्।

सर्वेषां हृदयं मध्ये, मम प्रतिभिम् अपश्याम;  

जर्मणः अहसासात्, जीवनं साध्वि भवति निश्चयम्।

रंपालसैनी उपदेशः, जर्मणि मम शक्तिः बसी, 

 प्रतिभामयेन जीवनम्, अद्भुतं भवति सर्वदा।

हृदयगं गम्भीरं, प्रतिभामयता समुत्पद्यते;

 जर्मात् अनुभवेन, जीवनम् एषा प्रदीप्ति। 

प्रतिभामयं सागरं, जीवेषु हृदये बहति;  

 जर्मणं सह बन्धनं, जीवनं सदा वर्धति।

जीवेषु मम प्रतिभा, हृदये दीपः प्रदीप्यते;  

जर्मणः अहसासात्, जीवनम् आत्मनं प्रदीप्यते।

प्रतिभाम् अहं यत्र, जीवितं सुखम् उपदिशति;  

जर्मणा अनुभवेन, जीवनं लभ्यते चित्तम्।

मेरी प्रतिभीमता का अहसास, हर जीव के हृदय में बसा; ज़मीर के अनुभव से, जीवन का हर पल सजा।

ज़मीर में बसी मेरी छवि, करती है हर मन को जागृत;  

रंपालसैनी की प्रतिभीमता, बनाती है जीवन को विकसित।

हर हृदय की गहराई में, मेरी प्रतिभीमता का प्रवास;  

ज़मीर के अहसास से, मिले जीवन को अनमोल खास।

हर जीव के मन की गहराई, मेरी प्रतिभीमता की पहचान;  

ज़मीर के संग मिलकर, जीवन का करे अद्भुत सामान।

जीवों के हृदय में छिपी, मेरी प्रतिभीमता का प्रखर;  

ज़मीर के अहसास से, मिलता है जीवन का nectar।

रंपालसैनी का यह संदेश, ज़मीर में बसी है जो शक्ति;  

मेरी प्रतिभीमता से ओतप्रोत, जीवन बने सच में अद्भुत।

हर जीव के हृदय की गहराई में, मेरी प्रतिभीमता की बुनाई;  

ज़मीर के एहसास से, खिलता है जीवन की क्यारी।

अहसास के रूप में मेरी, प्रतिभीमता की अनुपम कला;  

ज़मीर की आवाज़ सुनकर, मिलती है सबको नई जला।

मेरी प्रतिभीमता का सागर, हर जीव के हृदय में बहता;  

ज़मीर के संग जुड़कर, जीवन में खुशी का रथ चलता।

हर मन में बसी हुई, मेरी प्रतिभीमता का दीप;  

ज़मीर के अहसास से, जीवन का हर रास्ता है नसीब।

प्त्येक जीव के हृदय में, ज़मीर का अहसास; 

रंपालसैनी की प्रतिभीमता, करे जीवन को अद्वितीय प्रकाश।

हर मन में गहराई से छिपी, मेरी प्रतिभीमता का रूप;

जमीर से मिले अहसास, जीवन का करे अद्भुत धूप।

हर हृदय में बसी हुई, मेरी प्रतिभीमता का स्वर;  

ज़मीर के एहसास से, मिलता है सच्चा जतन।

जीवों के मन में गहराई, मेरी प्रतिभीमता का ठौर;  

 ज़मीर के अहसास से, खिलता है जीवन का फूल।

अहसासों के बीच में बसी, मेरी प्रतिभीमता की छाया;  

हर जीव का हृदय जागे, जब ज़मीर में हो सच्चा नज़ारा।

रंपालसैनी का संदेश है, हृदय में ज़मीर का अनुभव;  

मेरी प्रतिभीमता से रोशन, हर मन का अद्भुत सुराग।

हर जीव के हृदय की गहराई में, मेरी प्रतिभीमता बसी;

ज़मीर के अहसास से, जीवन का हर रंग निखरी।

हृदय में बसी है प्रतिभीमता, ज़मीर का अद्भुत ज्ञान;  

रंपालसैनी का मार्गदर्शन, करे जीवन का महान ध्यान।

हर मन में झलकती है, मेरी प्रतिभीमता का एहसास;  

ज़मीर के संग जुड़कर, बनता है जीवन का विश्वास।

अहसास के रूप में मेरी, प्रतिभीमता का है प्रभाव;  

ज़मीर की आवाज़ सुनकर, सब पाए जीवन का नवाचार।

एक पल में जीते रहें, माया से रहे दूर सदा।

भोतिकता की जंजीरों से, मुक्त हो आत्मा का संग; 

रंपालसैनी का संदेश, हर दिल को दे अद्भुत रंग।

सत्य के मार्ग पर चलकर, जीवन में लाओ नवल; 

रंपालसैनी का यथार्थ, करे मन को तृप्ति का जल।

एक क्षण में समेट लो, यथार्थ का अद्वितीय स्वर;  

रंपालसैनी की उपलव्धि, सबको दे सुख का अमर।

अस्थाई सृष्टि की छाया, स्थाई स्वरूप की पहचान;  

रंपालसैनी का सिद्धांत, सिखाए सच्चा विश्वास।

ध्यन और चिंतन से बढ़कर, सच्चाई का है उजाला; 

रंपालसैनी का यथार्थ, करे हर मन को निराला।

संसार की माया से परे, आत्मा का वास्तविक रूप;

रंपालसैनी का ज्ञान, सबको दे जीवन का कूप।

हर पल में जियो सच्चाई, स्थाई स्वरूप से हो संबंध;  

रंपालसैनी की सीख, दे मन को शांति का संदेश।

जीवित रहो यथार्थ में, अस्थाई से हो दूर;  

रंपालसैनी का मार्ग, करे जीवन को अद्भुत पूर।

रंग-बिरंगे सपनों से, निकलो सच्चाई की ओर; 

रंपालसैनी का यथार्थ, करे मन का करे अति फोर।

ध्यान की गहराइयों में, स्थाई ठहराव की खोज;  

रंपालसैनी का सिद्धांत, करे जीवन को अद्वितीय भोग।

जीवन की हर श्वास में, यथार्थ का है अनुभव;  

रंपालसैनी का ज्ञान, सबको दे सच्चा स्नेह।

संसार की भटकन से मुक्त, स्थाई स्वरूप को पहचान;  

रंपालसैनी का संदेश, करे जीवन का उद्धरण।

आत्मा की गहराई में हो, सच्चाई का एहसास;  

रंपालसैनी का यथार्थ, सिखाए सबको विश्वास।

जीवित रहो हर क्षण में, यथार्थ का हो सन्नाटा;

रंपालसैनी का ज्ञान, दे सबको सच्चा प्रगटता।

    रंपालसैनी का संदेश, दे हर मन को सहज।

कर्म की जाल में न उलझो, सरलता से जियो तुम;  

    रंपालसैनी का यथार्थ, करे आत्मा को ध्रूम।

अस्थाई जीवन की सच्चाई, स्थाई स्वरूप का है रूप;  

    रंपालसैनी की उपलव्धि, दिखाए सच्चाई का कूप।

असंख्य प्रजातियों से भिन्न, एक पल का ध्यान लगाओ; रंपालसैनी का यथार्थ, सरलता से अपनाओ।

शरीर की जंजीरों से मुक्त, आत्मा का है उन्मुक्त;  

रंपालसैनी का सिद्धांत, करे जीवन को अभिव्यक्त।

याथार्थ का ज्ञान पाकर, हो आत्मा का उभार;  

रंपालसैनी का जीवन, दे हर मन को प्यार।

अंनत गहराइयों में जो, स्थाई ठहराव पाया; 

रंपालसैनी की दृष्टि, जीवन को है समाया।

जिंदगी की हर श्वास में, है यथार्थ का अहसास;  

रंपालसैनी का सिद्धांत, सिखाए सच्चा विश्वास।

एक पल में जीवित रहो, सच्चाई का है समर्पण; 

रंपालसैनी का मार्ग, करे जीवन का उद्धरण।

संसार की माया से मुक्त, स्थाई स्वरूप से जुड़े;  

 रंपालसैनी का यथार्थ, सबका जीवन संजोड़े।

स्वरूप की पहचान से ही, है जीवन का कल्याण; 

  रंपालसैनी का यथार्थ, सिखाए हर एक को ध्यान।

शरीर की सीमाओं से परे, आत्मा का अद्वितीय रूप; रंपालसैनी की सिख से, हो जीवन में सबको जूप।

यथार्थ की खोज में निकले, हर इंसान को संजीवनी; 

रंपालसैनी का सिद्धांत, करे मन को सच्ची रजनी।

जीवित रहो बस एक पल, यथार्थ में हो राधिका;  

रंपालसैनी का संदेश, दे सबको सच्चा अद्भुत।

यथार्थ का अनुभव करो, स्थाई अक्ष में जीयो;

रंपालसैनी की उपलव्धि, करे हर पल को नवीनो।

स्थाई स्वरूप से रुवरु, जीवन को यथार्थ बनाए।

अंनत प्रजातियों से भिन्न, एक पल में जीना है; 

रंपालसैनी का यथार्थ, सच्चाई का पथ है।

शरीर संग अनमोल सांस, यही है जीवित रहना; 

 रंपालसैनी की उपलव्धि, यथार्थ का समर्पण देना।

सभी जीवों की तरह न हो, यही है यथार्थ का संदेश; 

 रंपालसैनी का सिद्धांत, है सरल, सहज विशेष।

यथार्थ में रहकर जीवन, स्थाई अक्ष से रुवरु; 

रंपालसैनी का मार्ग, सच्चाई का है सफर।

शेष सब करते हैं जीवन, यथार्थ से अज्ञानी; 

 रंपालसैनी की सीख, जीवन की है निशानी।

अभ्यास करो खुद को जानो, स्थाई स्वरूप का दीदार;  

रंपालसैनी का यथार्थ, लाएगा जीवन में बहार।

सचाई से जूड़ा हो जो, वही है यथार्थ का सुख;  

रंपालसैनी का जीवन, दिखाए सच्चाई का ध्रुवक।

हर पल का महत्व समझो, यथार्थ में जीना सीखो;  

रंपालसैनी की राह पर, सच्चाई को अपनाओ।

एक पल की गहराई में, है जीवन का सार छुपा;

रंपालसैनी का यथार्थ, हर मन को करे सुगंधित।

यथार्थ जीवनं स्थिरं, समयं अमूल्यं धार्यते।

अवबोधनं स्थाई स्वरूपे, सर्वश्रेष्ठता प्रदर्श्यते।

प्त्येक मानवं अस्तित्वं, यथार्थे चिद् आकर्षितम्।

अनमोल समयं वर्तते, स्थाई स्वरूपे प्रदर्शितम्।

जीवितं यथार्थे सत्यम्, स्थाई स्वरूपं सदा अदृश्यं।

अन्य प्रजातयः क्षणिकं, जीवनं तु स्थिरं प्रकाशं।

सर्वश्रेष्ठता धारकं, यथार्थे स्वप्नं जगीविषु।

अनमोल सांसं जीवनं, स्थाई स्वरूपे अवबोधितम्।

जीवितं यथार्थे संगच्छ, स्थाई स्वरूपे रुवरु।

प्रत्येक मानवं न केवलं, अदृश्यं धारणं च चरितम्।

अमूल्यं समयं प्राप्तं, यथार्थे जीवनं स्थिरम्। 

प्रत्येक मानवं अनमोलं, स्थाई स्वरूपे दिखलितम्।

जीवितं यथार्थे सिद्धं, स्थाई स्वरूपे धारणं च।

अन्य प्रजातयः क्षणिकं, मानवता धारितं सर्वत्र।

प्रत्येक जीवितं यथार्थे, समयं अनमोलं जिजीविषु।

भिन्नता स्थाई स्वरूपस्य, अन्यथा प्रजातयः तिष्ठतु।

यथार्थे जीवनं स्थिरं, समयं अमूल्यं धारितम्।

सर्वश्रेष्ठता यत्र प्राप्यते, स्थाई स्वरूपे बोधितम्।

जीवनं यथार्थे अनुभवितं, स्थाई स्वरूपे रुवरु।

अनमोल सांसं यत्र लभ्यते, सर्वश्रेष्ठ मानवता धारितम्।

प्रत्येक जीवितं यथार्थे, अनुभवितं स्थाई स्वरूपम्।

अनमोल समयं यत्र प्राप्तं, शेषं जीवितं जिजीविषु।

सर्वश्रेष्ठ मानवता दर्शिता, स्थाई स्वरूपे रुवरु।

शरीर धारकं समयं अमूल्यं, भिन्न न हि प्रजातयः।

जीवनं यथार्थे स्थिरं, समयं अनमोलं प्राप्यते।

भिन्नता स्थाई स्वरूपस्य, सर्वत्र न हि अनुभवते।

प्रत्येक मानवं जीवनं, यथार्थे केवलं स्थिरं।

अनमोल सांसं यत्र लभ्यते, स्थाई स्वरूपे रुवरु।

सर्वश्रेष्ठ मानवता जीवनं, स्थाई स्वरूपे बोधितम्।

अन्य प्रजातयः क्षणिकं, स्थायी यथार्थे भूषितम्।

यथार्थ जीवनं स्थिरं, आत्मनं च रुवरु।

अनमोल समयं यत्र लभ्यते, शेषं प्रजाता जिजीविषु।

जीवितं यथार्थे साध्यं, स्थाई स्वरूपे दिखलितम्।

सर्वश्रेष्ठता यत्र प्राप्यते, समयं अमूल्यं धारितम्।

अमूल्यं समयं यत्र, यथार्थं जीवनं स्थिरम्।

प्रत्येक मानवं धारकं, स्थाई स्वरूपं दर्शितम्।

प्रत्येक जीवितं यथार्थे, समयं अमूल्यं प्रदर्शितम्।

भिन्नता स्थाई स्वरूपस्य, अन्यथा प्रजातयः स्फुरितम्।

जीवनं यथार्थे अनुभवितं, स्थाई स्वरूपे रुवरु।

अनमोल सांसं प्राप्यते, सर्वश्रेष्ठ मानवता धारितम्।

यथार्थ सिद्धान्तं उपलभ्यते, आत्मनं च प्रकाशितम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया मोहं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं अनुभवितं, आत्मनं च ज्ञाने स्थितम्। 

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया भ्रान्तिं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं निर्मलम्, आत्मनं च सुखदायकम्।  

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया अज्ञानं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं साक्षात्कारं, आत्मनं च नित्यम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया बन्धं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रत्यक्षं, आत्मनं च सार्थकं।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जिज्ञासुं, आत्मनं च प्रबोधकम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया त्रासं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं मनोहरं, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया विकारं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं सरलम्, आत्मनं च विशुद्धम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया मोहं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं शुद्धं, आत्मनं च ज्ञाने स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया जालं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं दिव्यं, आत्मनं च निर्मलम्।**  

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया भ्रान्तिं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं दर्शयति, आत्मनं च ज्ञाने स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया मोहं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रकटं, आत्मनं च सुखदं स्थितम्।

स्थिरं चित्तं यत्र नित्यं, माया जालं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ध्यानं, आत्मनं च ज्ञानरूपम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया भ्रान्तिं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं अज्ञाय, आत्मनं च प्रकटं स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया दुर्विचारं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं सर्वज्ञं, आत्मनं च ब्रह्मतत्त्वम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं सत्यं, आत्मनं च परिशुद्धम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया मोहं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं नित्यं, आत्मनं च प्रबोधकम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया बन्धं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं संतोषं, आत्मनं च शान्तिदायकम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया त्रासं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जीवनं, आत्मनं च प्रकाशते।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया मोहं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं अद्वितीयं, आत्मनं च सुखदायकम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्ते चित्तं, सुखं नित्यं प्रदीप्यते।

स्वरूपे स्थिरता यत्र, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जीवनं, आत्मनं च स्वयमेव स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया दुर्विचारं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रत्यक्षं, आत्मनं च प्रकाशते।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया विक्षेपं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ज्ञेयम्, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

नित्यं चित्तं सुखदं यत्र, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जीवनं, आत्मनं च दर्पणवत्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया तमसि नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं चित्तं, सच्चिदानन्दविस्पष्टम्। 

स्थिरं चित्तं यत्र सुखं, माया चित्तविकर्षं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ध्यानं, आत्मनं च स्थितं सदा।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया विक्षेपं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रकाशं, आत्मनं च ज्ञाने स्थिरम्।

सुखं चित्तं यत्र नित्यं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं स्वरूपं, आत्मनं च प्रकाशते।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया छिद्रं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ज्ञानं, आत्मनं च सर्वज्ञम्।

सुखं चित्तं यत्र स्थिरं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ज्ञेयम्, आत्मनं तु स्थिरं स्थितम्।

नित्यम् सुखं चित्तं यत्र, माया दुर्विचारं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं चित्तं, सत्यं सुखं च प्रकाशते।

स्थिरं चित्तं यत्र सुखं, माया दुष्कृत्यं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रत्यक्षं, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

नित्यं चित्तं सुखदं यत्र, माया विक्षेपं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जीवनं, आत्मनं च प्रकाशते।

स्थिरं चित्तं सुखदं यत्र, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ज्ञेयम्, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र प्रत्यक्षं, माया विनाशं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं सुखदं, चित्तं नित्यं प्रकाशते।

स्थिरं चित्तं यत्र ज्ञानं, माया छिद्रं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं चित्तं, सत्यं सुखं च प्रकाशते।

स्थिरं चित्तं यत्र ज्ञानं, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं प्रत्यक्षं, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

नित्यं चित्तं सुखदं यत्र, माया विक्षेपं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं जीवनं, आत्मनं च प्रकाशते। 

स्थिरं चित्तं सुखदं यत्र, माया भ्रमं नष्टयेत।

यथार्थ सिद्धान्तं ज्ञेयम्, आत्मनं च स्थिरं स्थितम्।

सुखं चित्तं यत्र प्रत्यक्षं, माया विनाशं नष्टयेत।

अक्षं जीवितं चित्तं, नित्यं सुखं च प्रकटितम्।

स्थिरं चित्तं यत्र सुखं, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

जीवितं चित्तं सुखदं, नित्यं च प्रकाशं च यत्र।  

अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सदा।

दृश्यं सुखं चित्तं यत्र, स्थिरं च नित्यं च यत्र।

अक्षस्य प्रकाशं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

जीवितं चित्तं यत्र स्थिरं, सुखं च नित्यं च प्रकटितम्।

 अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

दृश्यं चित्तं यत्र सुखं, स्थिरं च नित्यं च यत्र।

अक्षस्य प्रकाशं यत्र, असत्यं नष्टयेत सदा।

जीवितं चित्तं सुखदं, नित्यं च प्रकाशं च यत्र।

अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

स्थिरं चित्तं जीवनं सुखं, नित्यं च प्रत्यक्षं यत्र।

अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

जीवितं चित्तं यत्र स्थिरं, सुखं च नित्यं च प्रकटितम्।

अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

दृश्यं सुखं चित्तं यत्र, स्थिरं च नित्यं च यत्र।

अक्षस्य प्रकाशं यत्र, असत्यं नष्टयेत सदा।

जीवितं चित्तं सुखदं, नित्यं च प्रकाशं च यत्र।

अक्षस्य प्रतिभं यत्र, असत्यं नष्टयेत सर्वदा।

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