: मेरी हिर्ध्ये के ख़्यालों की दुनियां के जितने भी किरदार थे वो सब इतने सच्चे थे कि अपने अनमोल सांस समय मे से मेरे लिए विनय किया जो सिर्फ़ मेरे लिए इतना अधिक सार्थिक सिद्ध हुआ जिस से प्रकृति द्वारा संभावना बैसे ही हालात उत्पन हुय जिस से मैने खुदकी अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ मे हुं यहा मेरे स्थाई अक्ष का भी प्रतिभिंव नहीं हैं और कुछ होने का तत्पर्य ही नहीं,मेरे गुरु से असीम प्रेम जो एक इश्क़ जूनून बन गया खुद की सुद्ध बुद्ध चेहरा तक भूल गया जिस से हिर्ध्ये मे ही पैंतिस बर्ष तक रहने से अस्थाई जटिल बुद्धि का निष्किर्य होना सभाविक संभव था,जिस से मै खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर यथार्थ मे हुं,
: अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर बुद्धि से तो हर पल संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन ही उत्पन हो सकता हैं जिस मे सारी क़ायनात ही भर्मित हैं, लगता हैं कुछ किया ही नहीं न कुछ करने को शेष रहा है, क्युकि सिर्फ़ समझने का ही विषय है कभी भी किसी भी काल युग में ढूंढने के लिए कुछ था ही नहीं सिर्फ़ एक भ्र्म मे ही हैं अतीत से लेकर अब तक,
: सिर्फ़ एक पल की समझ की दूरी है खुद से खुद के स्थाई परिचय की ,उस के बिना सब भ्र्म और बुद्धि मे कोई विकल्प ही नहीं अहंकार से हटने का
: मैंने कुछ भी नहीं किया सिर्फ़ गुरु के एक एक शव्द को तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों के आधार पर स्पष्ट सिद्ध किया हैं, सिर्फ़ निष्पक्ष समझ से,
मेरे गुरु सा गुरु ही नहीं सारी क़ायनात जिस की शरणागत में होते हुय वो सब सम्भव कर दिया जो अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर भी कोई सोच ही नहीं सकता
[ अफ़सोस कि मेरे गुरु ने IAS officer अपने विशेष कार्यकर्ता की एक शिकायत पर लजित कई आरोप लगा कर निष्कशित कर दिया एक पल का भी मौका नहीं दिया सफाई मे कुछ कहने का,और पगल घोषित कर पुलिस कोर्ट में घशिटने की धमकी दे कर, पर वो सब सिर्फ़ मेरे लिए ही इतना सर्थक सिद्ध हुआ,
: आज मै यथार्थ मे हुं यहा के लिए एक पल भर के लिए कोई भी सोच ही नहीं सका जब से इंसान अस्तित्व में हैं, मेरा गुरु आज भी बीस लाख सांगत के साथ बही ढूंढ रहा है जो मेरे दीक्षा के समय ढूंढ रहा था,जो सिर्फ़ एक कल्पना हैं जो सिर्फ़ एक मान्यता है जिसे दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण मे बंद कर तर्क तथ्य से वंचित किया जाता है जिस उपलक्ष के लिए दीक्ष ली उस के बारे में ही बात करने को गुरु शव्द का उलंगन मान कर उसे आश्रम से ही निष्कशित किया जाता हैं, लिया सब कुछ प्रत्यक्ष जाता है और बदले में देने के लिए काल्पनिक शव्द मुक्ति मृत्यु के बाद का झूठ अस्बासन क्युकि सबूत की जरूरत इसलिए नहीं कि कोई मरा स्पष्ट करने आ नहीं सकता और जिंदा मर नहीं सकता,इन्ही छल कपट के कारण ही अस्थाई जटिल बुद्धि को ही मैने हमेशा के निष्किर्य कर खुद से ही निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर यथार्थ मे हुं जो सारी क़ायनात मे सिर्फ़ मेरी उपलवधि हैँ ,कोई भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति मेरी ही तरह खुद को समझ कर जीवित ही हमेशा के यथार्थ मे रह सकता प्रत्यक्ष
जो गुरु एक निर्मल समान्य व्यक्तित्व को नहीं समझ सकता शेष सब तो बहुत दूर की बात है, निगाहो से पहचान करने या हिर्ध्ये मे उतरने की वृति से भी बंचित हैँ जो प्रत्येक जीव मे पर्याप्त हैं, वो जो प्रेम को भक्ति की मुलता कहते हैं प्रत्येक प्रवचन में, कथनी करनी में जमीं आसमा का अंतर होता है, बहुत कुछ सिर्फ़ कहने तक ही सिमित होता है जिस का हक़ीक़त मे कोई भी तत्पर्य नही हैं, लोगों को आकर्षित प्रभावित करने और व्यस्थ रखने के लिए सब कुछ किया जाता है कि एक पल की समझ की दूरी है खुद के स्थाई अक्ष की ,गुरु अपने लक्ष के लिए इतने अधिक स्तर्क होते सिर्फ़ एक पल का मौका नहीं देते कि कोई खुद से स्थाई अक्ष स्वरूप से रुवरु न हो पाय इतना अधिक व्यस्त रखते हैं उन को पता है एक भी खुद को समझ कर खुद के स्थाई अक्ष स्वरूप से रुवरु होगया तो उन का युगों से चल रहा धंधा बंद हो सकता हैं, यही मेरी बात मेरा गुरु निरंजन का उदाहरण दे कर खुद को हितेषी साबित करने के लिए कहते हैं,
[ कम से कम मै अंध कट्टर भक्त तोता वृति का तो बिल्कुल भी कभी भी नहीं था,विवेकी विचारिक तो जरूर था,मेरी नियम मर्यादा परंपरा मान्यता को खंडन करने के पीछे सिर्फ़ इश्क़ जूनून था ,नहीं तो दीक्षा के साथ शव्द प्रमाण मे तो मै भी इसी प्रकार ही बंदा था जैसे बीस लाख अंध कट्टर भक्त हैँ,जो सिर्फ़ गुरु के एक इशारे पर मर मिटने को हमेशा हिर्ध्ये से त्यार रहते जिस से वो खुद को सर्ब श्रेष्ठ गुरु मुख समझते है, वो सिर्फ़ तोते होते हैं जो जबाब न देने पर बोखला जाते है और झगड़े को त्यार रहते है,
: ज्ञान से वंचित लोग, जो केवल बाहरी दुनिया को देखकर अपनी समझ बनाते हैं, वास्तविकता से दूर होते हैं। वे अपने अतीत और ज्ञान के ग्रंथों में भी सच्चाई नहीं पाते। मेरे "यथार्थ सिद्धांत" को प्रकृति और महान वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों द्वारा प्रमाणित किया गया है। यह मानवता और प्रकृति के लिए एक प्रयास है, जिसमें हमें अपनी निष्पक्ष समझ के साथ अपने अस्तित्व को पहचानना है।
जीवन में केवल एक पल का ध्यान ही हमारे स्थायी स्वरूप को समझने के लिए पर्याप्त है। अस्थाई जटिल बुद्धि की भीतरी जटिलताओं से दूर रहकर, हमें अपनी आत्मा की वास्तविकता का अनुभव करना चाहिए। जब हम अपनी जटिलताओं से बाहर निकलते हैं, तब हम अपनी असली स्थिति में पहुँचते हैं।
प्रकृति की सुंदरता को पहचानते हुए, हमें अपने शिशु काल की सरलता और निर्मलता को फिर से अपनाना चाहिए। अस्थाई विचारों से परे जाकर, हमें अपने स्थायी स्वरूप से साक्षात्कार करना चाहिए।
: आदरणीय sir क्या आप जिद्दी हो, अच्छा नहीं लगता तो बड़े विनय पूर्ब छोड़ सकतें हो आप खुद ही पुरी तरह से स्वतंत्र हो, हम आप से क्षमा प्रार्थी हैं
[ धार्मिक आस्तिक विचारधारा का संथापिक सिर्फ़ कोई एक अस्थाई जटिल बुद्धि से कुछ अधिक ही बुद्धिमान होकर जटिलता मे विचारधारा खोया था कि उसने षढियंत्रों छल कपट ढोंग पखंड का तो बहुत ही अधीक इस्तेमाल कर के सिर्फ़ खरवों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए ही पखंड रचा था सिर्फ़ सरल सहज लोगों को मूर्ख बना कर हित साधने हेतु, गुरु दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण मे बंद कर तर्क तथ्य से वंचित कर विवेकी विचारिक नहीं कट्टर अंध भक्त बना कर अधिक मात्र भेड़ों की भिड़ में चाचित होने का शौंक रखने बाले खुद भी खुद से निष्पक्ष नहीं तो करोड़ों दुसरों को मृत्यु से निष्पक्ष कर मुक्ति कैसे किस तर्क तथ्य किस सिद्धांत से दे सकते हैँ,जो खुद को ही नहीं समझे वो दूसरों को क्या समझा सकते हैं।" यह सब एक मान्यता हैं जो सिर्फ़ गुरु को ही भरपुर संरक्षण देती है। और शिष्य को सिर्फ़ एक चीज समझ कर इस्तेमाल किया जाता हैं स्वर्ग अमर लोक काल्पनिक शव्द से आकर्षित कर और गुरु का शव्द कटने कर्म प्रलवध नर्क नियम मर्यादा का डर खौफ भय डाल कर, यह सब करने बाला तो कोई निर्मल व्यक्ति तो हो ही नहीं सकता,शिष्य को तो सिर्फ़ बंदुआ मजदूर बना कर पुरा जीवन इस्तेमाल किया जाता हैं जब भी किसी शिष्य की कोई भी बात कृत पसंद न आय तुरंत उसे गुरु शव्द कटने का आरोप लगा कर लजित कर निष्काषित कर दो तब शिष्य की दुहाई सुनाने बाला कोई नहीं होता चाहे करोड़ों शिष्य भी होंगे यह बात एक आग की तरह पुरी दुनियां में फैल जाती है और सभी उसे पगल हो गया है। एसे अहत भरे शव्द और दृष्टि से दिखे गे,जो उस शिष्य को आत्म हत्य करने पर भी मजबूर कर देते ,यह सब मेरे साथ बिता हैँ,इन सब के कारण मेरे अपने खास खुन के नाते भी इतनी दूर हो गय है कि कोई हद ही नहीं,
अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान इंसान के रोम रोम से बहुत करीब से जानता समझता हुं,
कृपा कुछ भी यहा न डाले ,यह मेरा खुद का शमीकरण "यथार्थ सिद्धांत"
ठीक नहीं लगता तो कृपा छोड़ कर जा सकते हो,
यहा पर बहुत ही अधीक ऊंचे सच्चे निर्मल लोग हैँ दुनिय भर के जो खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने की जिज्ञासा के साथ है,
खुद को इतना ही अधीक ऊंचा मत समजो कि लोग पहाड़ समझ कर खुद ही नया रास्ता निकाल कर खुद और दुसरों के लिए हमेशा के सुविधा खड़ी कर दे कि कोई भ्र्म ही न रहे इतनी अधिक निर्मलता की खुशवू विखेर दे कि आने बाली पीढ़ी ही हर कदम सांस में शुक्राना ही करती रहे,
इतने भी काल्पनिक प्रभुत्त्व शव्द के आहम अहंकार घमंड मे चूर हो कर इतना बड़ा पहाड़ न बनो कि आने बाली पीढ़ि हर सांस हर पल कोसती गलिया ही देती रहे ,झूठ एक दिन एक साल एक सादी एक युग चल सकता है एक दिन तो साफ स्पष्ट हो जाता हैं तो कही भी दुनियां में जगह ही नहीं मिलती कि कही छुप पाय क्युकि दुनियां को ही भ्र्म जाल मे डाला हुआ था फ़िर उन लोगों से बचना मुशिकल हो जाता हैं, जिन की सरलता सहजता निर्मलता का इस्तेमाल कर के खरवो के सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग दी होती ,जिन को बंदुआ मजदूर बना कर अपने हित साधने केलिय सिर्फ़ एक चीज समझ कर इस्तेमाल करते थे जो,उन को भेड़ियां बनने मे एक पल भी नहीं लगता,अगर गुरु गिरगिट की भांति दिन मे कई रंग बदलता हैं तो बीस लाख अंध कट्टर भक्त क्या गरंटी हैं वो एक भी रंग नहीं बदल सकते,मै भी तो उन बीस लाख मे सिर्फ़ एक हुं,
[ अगर मुझ अकेले पर सिर्फ़ अप की कृपा थी तो शेष सब बीस लाख सांगत को हित साधने के लिए परमार्थ के नाम पर मूर्ख क्यों बनाया,सिर्फ़ कोई एक बताओं जिस से आप खुद प्रेम करते स्पष्ट है बीस लाख सांगत सिर्फ़ आप से प्रेम करती,बीस लाख सांगत सिर्फ़ आप से दृढ़ बिश्वास करती है यह भी स्पष्ट है, अगर मै सिर्फ़ आप की कृपा से आज यहा हुं तो बीस लाख सांगत क्यों नही हैं, सिर्फ़ एक कोई बताओं जिस पर आप को दृढ़ विश्बास हैँ,अगर आप की मुझ पर कृपा नहीं तो मै यहा हुं वो क्यों हुं, किसी ने मुझे रखा मुझे तो आप ने पगल घोषित कर आश्रम से निष्कासित कर दिया था,तो मुझे दुनियां भर के वैज्ञानिक दर्शनिक प्रकृति ने भी एसा क्यों स्पष्ट सिद्ध कर दिया कि एसा (मेरे जैसा) जैसा इंसान आज तक सृष्टि मे ही पैदा नही हुआ जब से इंसान अस्तित्व में आया हैँ मै भारत के सर्ब श्रेष्ट मानसिक रोग के होस्टपिटल अमृतसर मे गया था बहा पर विशेष डक्टर की टीम ने छ: छ: घंटे मेरे और मेरी वेटी से कोंसलिंग की तिन दिन और उन्होंने कहा एसा इंसान नहीं देखा और सुना उसी दिन हार्मिंद्र साहिब गुरुदुवर मे प्रकृति दोवारा माथे पर मुकट रौशनी अत्यन सफ़ेद रौशनी से स्वागत करना प्रकृति द्वारा स्वीकृति थी जो फर्न दमपत्ति द्वारा देखी गई और उन्होंने फोटो खींच कर मुझे ढूंढ रहे थे पिछले एक घंटे से मै मिला तो उन के हाथ में खुद की फोटो देख कर चकित हो गया,उस के बाद उन्होंने विश्तार स विश्लेषण कर बताया,
बहुत ही अधिक रुपय दीय थे गुरु को हाथ में उन मे से एक करोड़ बपिस देने का खुद ही शव्द दिया था ,वो सब भूल कैसे सकते हैँ जो अपने प्रवचनों मे खुद के तीन बर्ष की आयु की बाते उदाहरण देने के लिए कई बार इस्तेमाल करते हैं,
जब कि मेरे पास एक रुय का भी कोई स्रोत नहीं हैँ क्युकि मै मानसिक रूप बिल्कुल ठीक नहीं हुं, खुद को समझ खुद से रुवरु होना एक अलग विषय है, जब कि मै एक वैज्ञानिक दर्शनिक वृति का था गुरु को पता था एक प्रोजेक्ट शॉक लेस सिस्टम की ब्लू फेईल पैटेंट लेने से पहले गुरु को दिखाई थी जब मेरे घर आय थे ,
: कभी भी थोड़ा सा भी दया रहम इंसानियत तक नहीं है इतना उन को स्पष्ट था कि कोई भी पैसा नहीं है ,इसी कारण अपनी वेटी को पढ़ने के सरकारी स्कूल में डाल रखा हैँ वो दसमी कक्षा में स्टेट मे सब से अधिक अंक प्रपत किय हैँ,मै कैसे जीवन व्यापन कर रहा हुं मेरे इलावा कोई सोच ही नहीं सकता,मै हमेशा संतुष्ट रहा,एक निर्मल इंसान को नजर अंदाज कर अस्थाई मिट्टी मे उलझना ,क्या एसे गुरु को सोभा देता है। जिस का मुख्य चर्चित श्लोगन ही यही हो "जो वस्तु मेरे पास है ब्रह्माड़ मे और कही नहीं" वो कोंन सी वस्तू हैं जो सरल सहज निर्मल व्यक्ति को ही नहीं समझ सकती शेष सब तो बहुत दूर की बात है, मेरे जैसे कोई दस बीस नहीं थे जब से इंसान अस्तित्व में आया तब से लेकर अब तक का सिर्फ़ अकेला इकलौता मै ही तो था ,मैंने सिर्फ़ इश्क़ ही तो किया था,गुणा क्या किया खुद ही मेरा गुरु प्रेम को भक्ति की जड़ कहते थे या फिर वो सब सिर्फ़ कहने तक ही सिमित है,
: इतनी अधिक ठोकरों से इतने अधीक छोटे निर्मल हो गय हैं कि कोई एक पल के लिए भी ध्यान मे ही नहीं ला सकता,कोई मेरा एक शव्द भी याद नहीं रख सकता,और किसी भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति को सिर्फ एक पल मे उसको उस के खुद के स्थाई स्वरुप रुवरु करवा कर जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ मे रख सकता हुं मेरी सिर्फ़ एक शीक्षा है,ढोंगी गुरु की दीक्षा तो बिल्कूल भी नहीं जो शव्द प्रमाण मे बंद कर सरल सहज निर्मल लोगों तर्क तथ्य से वंचित कर अंध कट्टर भक्त बना कर भेड़ों की भिड़ की पंक्ति मे खड़ा सई
सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग और यह कलयुग है यह इतिहैस हैँ यह सब था पर वो सब अस्थाई जटिल बुद्धि से ही प्रतीत करने का एक माध्यम था,
अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होकर एक एसा दृष्टिकोण उत्पन होता है जिस में अहम ब्राह्मशमी में भी भर्मित हो जाता है और खुद को अस्थाई समस्त अनंत विशाल भौतिक सृष्टि का रचेता के रूप में खुद मे ही प्रभुतत्व का अहसास करता है जो एक मानसिक रोग हैं, जब सब एक प्रकार के तत्व गुण से बने है तो कोई छोटा बड़ा कैसे हो सकता हैँ, सब एक समान ही हैं
मेरे सिद्धांतों के आधार पर सरल सहज निर्मल व्यक्ति से बड़ा कोई हो ही नहीं सकता सब कुछ जो लुटा कर भी खुश रहता है,
ढोंगी गुरु से बड़ा कोई काफ़िर नहीं जो सब कुछ सरल सहज निर्मल व्यक्ति से लूट कर आश्रम से ही निष्काशित कर देता यौवन अवस्था में इस्तेमाल कर वृद्ध अवस्था में धके मार कर निकलता जब उस का शरीर मानसिक रूप से भी दुर्वल हो जाता है, यह प्रत्यक्ष मेरे साथ हुआ हैमेरा एक एक वो शव्द हैं जो तत्व गुण रहित जो सारी क़ायनात मानवता कि सोच विचार चिंतन मनन से बिल्कूल अलग और अद्धभुद आश्चर्य चकित हैं मैने बिल्कुल वो सब नहीं किया जो इंसान प्रजाति अस्तित्व से लेकर आज तक कर रही हैं।अगरा अस्थाई समस्त अनंत विशाल भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष हैं जिस में कुछ भी अप्रत्यक्ष रहश्य आदृश्य अधिात्मिक आलौकिक दिव्य का रति भर भी स्थान ही नहीं,जो प्रत्यक्ष नहीं वो सिर्फ़ एक एसी कल्पना हैं जिसे कोई सिद्ध नहीं कर सकता वो सिर्फ़ एक ढोंग पखंड झूठ छल कपट धौख हैं षड्यंत्र चकरव्यू के रचा गया है, जो किसी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुय सिर्फ़ एक सैतान शातिर बदमाश चालाक दृष्टिकोण की उत्पति है उस समय की जिस को मान्यता के रूप में जिंदा रख कर पीढ़ी दर पीढी स्थापित किया जा रहा है, जिस में सिर्फ़ गुरु की पीढ़ी को ही संरक्षण दिया जा रहा और शिष्य को सिर्फ़ दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण मे मनसिक रूप से बंद कर स्वर्ग नर्क प्रलवध कर्म रब जैसे काल्पनिक का लालच डर खौफ भय डाल कर सिर्फ़ हित साधने हेतु सब से अधिक धोखा किया जाता है उन के साथ ही जो सब से अधिक प्रेम श्रद्धा अस्था रखते हैं जो गुरु के सिर्फ़ कहने मत्र से ही अपना तन मन धन सांस समय प्रत्यक्ष समर्पित कर उस ढोंगी गुरु के लिय प्रत्यक्ष ख़रवो का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग से मला माल कर देते है और खुद भिखारी बन उस दाता से कृपा मंगते है जिस भिखारी को खुद ही दाता बनाया हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर कोई निर्मल हो ही नहीं सकता ,जतिलता अधिक शैतान शातिर बदमाश चालाक कलाकार वृति हैं,जो पुरा जीवन भर दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण मे बन्द देते है, उन से उस तथ्य पर ही जिस तथ्य के लिए दीक्षा ली है उस पर ही कुछ पूछने पर उस को गुरु शव्द काटने का आरोप लगा कर सारी सांगत के समक्ष आरोप लगा लजीत अपमानित कर आश्रम से ही निष्काशित कर दिया जाता है, क्युकि गुरु के पास सर्थक उत्तर नहीं होता जिसे तथ्य तर्क से सिद्ध किया जा सकता हो,इस लिए शेष सब पर डर खौफ भय का माहौल क़ायम रखा जा सके और मुक्ति का स्वर्ग अमर लोक का लालच भी बना रहे,जिस से एक के जाने पर यह श्रलोगन बहुत ही चर्चित हैं एक गया हजार खड़ा,अगर गुरु खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से ही निष्पक्ष नहीं होकर खुद को ही नहीं समझा वो दूसरों को क्या समझा सकता हैँ,खुद से निष्पक्ष के बिना प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से एक मानसिक रोगी है,जो लेता प्रत्यक्ष हैं और उस के बदले में देने के लिए मृत्यु के बाद मुक्ति मृत्यु के बाद का एक झूठा अश्वासन हैँ,जबकि मुक्ति तो जीवन में चाहिए जटिल समस्यों से जीवन व्यपन के भोज से मानसिक तनाव से,मृत्यु तो खुद मे ही एक अटल सत्य है जिस को कोई पैदा ही नहीं हुआ जो जुटला सके या उस मे कोई हस्तक्षेप कर पाय किसी की ओकात ही नहीं, पर मृत्यु के बाद मुक्ति देना सब से बड़ा छल हैं क्युकि सिद्ध करने के लिए मर नही सकता और बताने के लिए मरा बापिस नहीं आ सकता,इसलिए पुरा जीवन भर बंदुआ मजदूर बना कर इस्तेमाल करने का मौका मिला जाता है जब कार्य करने के लिए उम्र के साथ असमर्थ हो जाता है एक चर्चित वैोहबर है शव्द काटने का आरोप लगा दो,निष्काशित कर दो कोन है पूछने बाला,कयुकि खुद ही अनपढ़ गवार एक भिखारी को ख़रवो का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग प्रभु का स्थान देकर उस मे खुद ही प्रभुतत्व पैदा किया हैं जिस के अहम घमंड अहंकार मे हैं दिन रात, यह एक कुप्रथा है अपने सिद्धांतो से सिद्ध स्पष्ट कर रहा हुं जो घतिक सिद्ध हो रही हैं यहा पर इंसानियत भी नहीं होती शेष सब तो छोड़ ही दो,गुरु शिष्य सिर्फ़ एक ही थाली के चटे बटे होते हैं जो इतने अंधे होते हैं सिर्फ़ तोते और खोते होते हैं जो सिर्फ़ करोडों युगों की मान्यता को स्थापित करते है,और विज्ञान को नहीं मानते और उस की हर सुविधा को दिन रात इस्तेमाल करते हैँ,और जुवा पर विज्ञान के लिए जहर उगलते रहते है, जिस युग काल की बात करते हैँ उस मे जा कर रहे न यह ढोंगी,
ChatGPT
You said
मेरा एक एक वो शव्द हैं जो तत्व गुण रहित जो सारी क़ायनात मानवता कि सोच विचार चिंतन मनन से बिल्कूल अलग और अद्धभुद आश्चर्य चकित हैं मैने बिल्कुल वो सब नहीं किया जो इंसान प्रजाति अस्तित्व से लेकर आज तक कर रही हैं।अगरा अस्थाई समस्त अनंत विशाल भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष हैं जिस में कुछ भी अप्रत्यक्ष रहश्य आदृश्य अधिात्मिक आलौकिक दिव्य का रति भर भी स्थान ही नहीं,जो प्रत्यक्ष नहीं वो सिर्फ़ एक एसी कल्पना हैं जिसे कोई सिद्ध नहीं कर सकता वो सिर्फ़ एक ढोंग पखंड झूठ छल कपट धौख हैं षड्यंत्र चकरव्यू के रचा गया है, जो किसी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुय सिर्फ़ एक सैतान शातिर बदमाश चालाक दृष्टिकोण की उत्पति है उस समय की जिस को मान्यता के रूप में जिंदा रख कर पीढ़ी दर पीढी स्थापित किया जा रहा है, जिस में सिर्फ़ गुरु की पीढ़ी को ही संरक्षण दिया जा रहा और शिष्य को सिर्फ़ दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण मे मनसिक रूप से बंद कर स्वर्ग नर्क प्रलवध कर्म रब जैसे काल्पनिक का लालच डर खौफ भय डाल कर सिर्फ़ हित साधने हेतु सब से अधिक धोखा किया जाता है उन के साथ ही जो सब से अधिक प्रेम श्रद्धा अस्था रखते हैं जो गुरु के सिर्फ़ कहने मत्र से ही अपना तन मन धन सांस समय प्रत्यक्ष समर्पित कर उस ढोंगी गुरु के लिय प्रत्यक्ष ख़रवो का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग से मला माल कर देते है और खुद भिखारी बन उस दाता से कृपा मंगते है जिस भिखारी को खुद ही दाता बनाया हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर कोई निर्मल हो ही नहीं सकता ,जतिलता अधिक शैतान शातिर बदमाश चालाक कलाकार वृति हैं,जो पुरा जीवन भर दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण मे बन्द देते है, उन से उस तथ्य पर ही जिस तथ्य के लिए दीक्षा ली है उस पर ही कुछ पूछने पर उस को गुरु शव्द काटने का आरोप लगा कर सारी सांगत के समक्ष आरोप लगा लजीत अपमानित कर आश्रम से ही निष्काशित कर दिया जाता है, क्युकि गुरु के पास सर्थक उत्तर नहीं होता जिसे तथ्य तर्क से सिद्ध किया जा सकता हो,इस लिए शेष सब पर डर खौफ भय का माहौल क़ायम रखा जा सके और मुक्ति का स्वर्ग अमर लोक का लालच भी बना रहे,जिस से एक के जाने पर यह श्रलोगन बहुत ही चर्चित हैं एक गया हजार खड़ा,अगर गुरु खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से ही निष्पक्ष नहीं होकर खुद को ही नहीं समझा वो दूसरों को क्या समझा सकता हैँ,खुद से निष्पक्ष के बिना प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से एक मानसिक रोगी है,जो लेता प्रत्यक्ष हैं और उस के बदले में देने के लिए मृत्यु के बाद मुक्ति मृत्यु के बाद का एक झूठा अश्वासन हैँ,जबकि मुक्ति तो जीवन में चाहिए जटिल समस्यों से जीवन व्यपन के भोज से मानसिक तनाव से,मृत्यु तो खुद मे ही एक अटल सत्य है जिस को कोई पैदा ही नहीं हुआ जो जुटला सके या उस मे कोई हस्तक्षेप कर पाय किसी की ओकात ही नहीं, पर मृत्यु के बाद मुक्ति देना सब से बड़ा छल हैं क्युकि सिद्ध करने के लिए मर नही सकता और बताने के लिए मरा बापिस नहीं आ सकता,इसलिए पुरा जीवन भर बंदुआ मजदूर बना कर इस्तेमाल करने का मौका मिला जाता है जब कार्य करने के लिए उम्र के साथ असमर्थ हो जाता है एक चर्चित वैोहबर है शव्द काटने का आरोप लगा दो,निष्काशित कर दो कोन है पूछने बाला,कयुकि खुद ही अनपढ़ गवार एक भिखारी को ख़रवो का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग प्रभु का स्थान देकर उस मे खुद ही प्रभुतत्व पैदा किया हैं जिस के अहम घमंड अहंकार मे हैं दिन रात, यह एक कुप्रथा है अपने सिद्धांतो से सिद्ध स्पष्ट कर रहा हुं जो घतिक सिद्ध हो रही हैं यहा पर इंसानियत भी नहीं होती शेष सब तो छोड़ ही दो,गुरु शिष्य सिर्फ़ एक ही थाली के चटे बटे होते हैं जो इतने अंधे होते हैं सिर्फ़ तोते और खोते होते हैं जो सिर्फ़ करोडों युगों की मान्यता को स्थापित करते है,और विज्ञान को नहीं मानते और उस की हर सुविधा को दिन रात इस्तेमाल करते हैँ,और जुवा पर विज्ञान के लिए जहर उगलते रहते है, जिस युग काल की बात करते हैँ उस मे जा कर रहे न यह ढोंगी,
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