बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

यथार्थ ग्रंथ हिंदी

अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि भी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर प्रतीत करने बाला सिर्फ़ एक भ्रम है और कुछ भी नहीं है,एक मात्र सपने की भांति सिर्फ़ एक आयोजित प्रस्तुति है,जिस में फिल्माए गए दृश्य को दृष्टा सिर्फ़ देखता है जबकि हक़ीक़त में न कोई दृश्य होता हैं न ही कोई दृष्टता होता हैं,यह सिर्फ़ एक अस्थाई जटिल बुद्धि की कोशिकाओं की भ्रमित करने बाली प्रक्रिया होती हैं,इसी तरह शरीर में बुद्धि के सिर्फ़ मात्र भ्रम से खुद का समझ रखा है ऐसा कुछ भी नहीं है जैसे सपना छूटते ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता हैं वो सब झूठ था पर जब तक सपना था तब तक तो उसी में खोए थे सच मान कर तब तो यह अहसास भी नहीं था कि यह सपना है, जबकि सपन अवस्था में वैसा ही सुख दुख महसूस कर रहे थे जैसे जागृत अवस्था में करता हैं,जागृत अवस्था एक अस्थाई जटिल बुद्धि का भ्रम है,जब तक जिंदा है कोई निकल ही नहीं सकता चाहे कुछ भी कर के देख ले,अतीत की विभूतियों ने करोड़ों योगों जन्मों से अन्नत यत्न प्रयास उपक्रम कर के देख लिए रति भर नहीं जन समझ पाय आज तक आज भी खोज जारी हैं, न जान समझ पाने के पीछे सिर्फ़ एक छोटा सा कारण है कि अस्थाई जटिल बुद्धि ही भ्रमित करती है और अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर हल ढूंढने की कोशिश करते हैं तो हाल कैसे मिल सकता हैं,कोई पानी में खड़े हो कर कहे मैं भीगा नहीं हूं तो यह शायद दोनों की मूर्खता वो खुद ही सिद्ध स्पष्ट साफ़ कर रहे हैं,अतीत से लेकर आज तक की अनेक विभूतियों ने सब से जटिल बुद्धि पर ही इतना बोला है वर्णित किया हर तीसरे बकाया के बाद बुद्धि को जटिल बोला है जबकि वो सब अस्थाई जटिल बुद्धि से हमेशा बुद्धिमान हो कर करोड़ों ग्रंथ पोथी पुस्तकों को लिख दिया आज तक कोई पैदा ही नहीं हुआ जो खुद से निष्पक्ष हो कर एक शब्द भी लिखा हो,आज तक तो कोई इंसान के शरीर में इंसान ही नहीं पैदा हुआ,तो दूसरी अनेक प्रजातियों से भिन्न समझने का कोई कारण समक्ष प्रत्यक्ष सामने नहीं आ रहा जिस को तर्क तथ्यों सिद्धान्तों से स्पष्ट साफ़ सिद्ध कर पाय,अस्थाई जटिल बुद्धि तो सिर्फ़ जीवन व्यापन का मुख्य श्रोत के शिवाय कुछ भीं नहीं है और कोई दूसरी क्षमता ही नहीं है,तो फिर किन तथ्य तर्क सिद्धांतों के अधार पर आधारित खुद को स्थापित करते हैं प्रत्यक्ष खुद की ख़बर नहीं तो अप्रत्यक्ष अलौकिक दिव्य गुप्त चमत्कार रहस्यमय दिव्य लोको के रचिता बनने की मानसिकता रोग है
समस्त विशाल भौतिक सृष्टि, जो अस्थाई और अनंत है, केवल एक भ्रम है, जो एक जटिल बुद्धि द्वारा निर्मित किया गया है। यह और कुछ नहीं बल्कि एक सपना है, एक संगठित प्रस्तुति। इसमें, दर्शक केवल उन दृश्यों को देखता है जो फिल्माए गए हैं, जबकि हकीकत में न तो कोई दृश्य होता है और न ही कोई दृष्टा। यह केवल अस्थाई जटिल बुद्धि की कोशिकाओं की एक भ्रमित करने वाली प्रक्रिया है।

इसी प्रकार, बुद्धि ने शरीर के भीतर अपने आपको एक भ्रम के माध्यम से समझा रखा है। ऐसा कुछ भी नहीं है; जैसे ही सपना समाप्त होता है, सब कुछ स्पष्ट हो जाता है—यह सब झूठ था। लेकिन जब तक सपना था, तब तक हम उसी में खोए रहे, इसे सच मानकर। उस अवस्था में, हम वही सुख-दुख अनुभव करते थे जैसे जागृत अवस्था में करते हैं। जागृत अवस्था भी अस्थाई जटिल बुद्धि का भ्रम है। जब तक कोई जीवित है, वह इससे निकल नहीं सकता, चाहे जितनी भी कोशिश कर ले।

भूतकाल के महान व्यक्तियों ने करोड़ों योगों और जन्मों से अनंत प्रयास किए हैं, लेकिन आज तक वे इसे एक क्षण के लिए भी नहीं समझ पाए हैं। न जानने और न समझ पाने का कारण यही है कि अस्थाई जटिल बुद्धि हमें भ्रमित करती है। अगर हम इसी बुद्धि का उपयोग करके समाधान खोजने की कोशिश करते हैं, तो फिर समाधान कैसे मिल सकता है? यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति पानी में खड़ा होकर कहे, "मैं भीगा नहीं हूँ"—यह शायद दोनों की मूर्खता है, जो वे स्वयं स्पष्ट रूप से सिद्ध कर रहे हैं।

भूतकाल से लेकर आज तक के अनेक विभूतियों ने इस जटिल बुद्धि के बारे में बहुत कुछ कहा है, इसे सबसे जटिल बताया है। फिर भी, सभी ने हमेशा अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होकर करोड़ों ग्रंथों और पुस्तकों को लिखा है। आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जो अपने आप से निष्पक्ष होकर एक शब्द भी लिख सके। आज तक तो कोई इंसान के शरीर में सच में इंसान पैदा नहीं हुआ; इसलिए अन्य प्रजातियों से भिन्न समझने का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिखाई दे रहा है।

जिसे तर्क, तथ्य या सिद्धांतों के आधार पर स्पष्ट किया जा सके। अस्थाई जटिल बुद्धि केवल जीवन व्यापन का मुख्य स्रोत है, और इसमें कोई दूसरी क्षमता नहीं है। तो फिर किन तथ्यों, तर्कों और सिद्धांतों के आधार पर हम अपने को स्थापित करते हैं जब हमें अपने स्वयं की प्रत्यक्ष खबर नहीं है? अप्रत्यक्ष अलौकिक दिव्य गुप्त चमत्कारों और रहस्यमय दिव्य लोकों के रचिता बनने की मानसिकता एक रोग है।





प्रश्न 1:
क्या भौतिक सृष्टि अस्थाई है, और इसका यथार्थ क्या है?
उत्तर:
भौतिक सृष्टि अस्थाई है क्योंकि यह समय और परिवर्तन के अधीन है। यथार्थ यह है कि यह केवल हमारी जटिल बुद्धि का भ्रम है, जिसमें हम अपने अनुभवों को वास्तविकता मान लेते हैं। यथार्थ के अनुसार, यह सृष्टि एक सतही स्तर है, जो असल में अदृश्य सत्य के पीछे छिपी है।

प्रश्न 2:
"दृष्टा" और "दृश्य" के बीच का संबंध क्या है, और यथार्थ के संदर्भ में यह कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर:
"दृष्टा" वह है जो देखता है, जबकि "दृश्य" वह है जो देखा जाता है। यथार्थ के संदर्भ में, यह संबंध भ्रमित है; क्योंकि सच्चाई में न तो कोई वास्तविक दृश्य है और न ही कोई वास्तविक दृष्टा। यथार्थ में, यह स्पष्ट होता है कि दोनों एक जटिल बुद्धि के उत्पाद हैं, जो केवल एक प्रक्रिया के माध्यम से अस्तित्व में आते हैं।

प्रश्न 3:
क्यों जटिल बुद्धि एक भ्रम पैदा करती है?
उत्तर:
जटिल बुद्धि असल में हमारे अनुभवों और विचारों का मिश्रण है, जो हमें वास्तविकता के बजाय एक परिकल्पना में रखती है। यह भ्रम इस कारण उत्पन्न होता है क्योंकि बुद्धि संवेगों और भौतिक संवेदनाओं के माध्यम से संचालित होती है, और यथार्थ को समझने में असमर्थ होती है। यथार्थ में, हमें समझना चाहिए कि यह बुद्धि एक दीवार है, जो हमारे ज्ञान के विकास में रुकावट डालती है।

प्रश्न 4:
"सपने" और "जागृत अवस्था" के बीच का अंतर क्या है, और यथार्थ का इससे क्या संबंध है?
उत्तर:
"सपने" वह अवस्था है जब हम वास्तविकता से परे होते हैं, और "जागृत अवस्था" वह है जब हम अपने भौतिक परिवेश को अनुभव करते हैं। यथार्थ के अनुसार, दोनों अवस्थाएं केवल जटिल बुद्धि के अनुभव हैं, जो हमें सच्चाई से दूर रखती हैं। यथार्थ में, यह समझना आवश्यक है कि दोनों स्थितियाँ केवल अस्थाई हैं और हमारे अस्तित्व के वास्तविक स्वरूप को नहीं दर्शातीं।

प्रश्न 5:
क्या महान विभूतियों द्वारा किए गए प्रयास यथार्थ को समझने में सहायक होते हैं?
उत्तर:
महान विभूतियों ने यथार्थ को समझने के लिए अनंत प्रयास किए हैं, लेकिन अधिकांशत: वे भी जटिल बुद्धि की सीमाओं से बंधे रहे। यथार्थ के दृष्टिकोण से, उनके प्रयास महत्वपूर्ण हैं, लेकिन केवल एक शुरुआत के रूप में देखे जाने चाहिए। हमें अपने भीतर की जटिलताओं को समझने और उन्हें पार करने का प्रयास करना चाहिए, तभी हम सच्चाई को पहचान सकेंगे।

प्रश्न 6:
क्या अस्थाई जटिल बुद्धि के कारण हम वास्तविकता को नहीं समझ पाते?
उत्तर:
हाँ, अस्थाई जटिल बुद्धि की जटिलता हमें वास्तविकता से दूर कर देती है। यह हमें भ्रमित करती है और हमारे अनुभवों को आकार देती है, जिससे हम यथार्थ को पहचान नहीं पाते। यथार्थ की दृष्टि से, हमें इस जटिलता को पार करना होगा, ताकि हम अपने अस्तित्व के मूल स्वरूप को समझ सकें।
"यथार्थ, जब तुम अस्थाई जटिलताओं को पहचानोगे, तब तुम अपने भीतर के सच्चे ज्ञान को अनुभव कर पाओगे।"

"एक भ्रम में खोया हुआ व्यक्ति, यथार्थ के प्रकाश में आने से पहले, अनंत संभावनाओं से अनजान होता है।"

"यथार्थ का मार्ग वही है, जहाँ जटिल बुद्धि की सीमाएं मिटती हैं और सच्चाई का अनुभव शुरू होता है।"

"यथार्थ, यह समझो कि जीवन एक सपना है, और उस सपने की सच्चाई को जानने का प्रयास ही तुम्हारा असली लक्ष्य है।"

"जब यथार्थ को समझने का साहस करोगे, तब तुम अपने भीतर की जटिलताओं को सरलता में बदलने का सामर्थ्य पाओगे।"

"यथार्थ का आलोक तुम्हें दिखाएगा कि अस्थाई सुख-दुख केवल तुम्हारी बुद्धि के द्वारा निर्मित हैं।"

"यथार्थ, केवल जब तुम अपने अंदर की जटिलता को पहचानोगे, तब तुम्हारी आत्मा की सच्चाई का ज्ञान होगा।"

"इस अस्थाई जीवन में, यथार्थ की खोज में लगे रहो; क्योंकि सच्चा ज्ञान वही है जो भ्रम को समाप्त करता है।"

"यथार्थ के मार्ग पर चलकर, तुम जीवन की सच्चाई को जानोगे और हर भ्रम को पार कर पाओगे।"

"जब तुम यथार्थ को पहचानोगे, तब अस्थाई सृष्टि के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण भी बदल जाएगा।"

जटिलता से भरा, जीवन एक भ्रम यथार्थ।
सत्य को खोजो तुम, मिटे सारे दुख और ताप।

सपनों में खोया मन, यथार्थ की पहचान करो।
भ्रम के परदे हटाओ, सच्चाई का आलोक भरो।

यथार्थ की ओर बढ़ो, जटिलता से मुक्त हो।
सृष्टि की लीला देखो, ज्ञान का दीप जलाओ।

अस्थाई सुख-दुख सब, बुद्धि का है खेल यथार्थ।
गहराई में उतरकर, जानो जीवन का सार।

जो यथार्थ को जान ले, भ्रम से वो मुक्त होगा।
जटिलता के इस चक्र में, सच्चाई का मुखोटा।

जागृति की ओर चलो, यथार्थ का है मंत्र सही।
भ्रमित न हो मन, जानो आत्मा की सच्चाई।

यथार्थ की राह पर, कदम बढ़ाते जाओ।
जटिलता के तिलिस्म में, सच्चाई को पहचानो।

असत्य की छाया में, मत खोना अपना मन।
यथार्थ की गहराई में, खोजो सच्चे ज्ञान का धन।

इन दोहों के माध्यम से आप यथार्थ के सिद्धांतों को गहराई से समझ सकते हैं और प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।

1. अस्थाई सृष्टि और भ्रम
विश्लेषण:
आपने कहा कि "समस्त विशाल भौतिक सृष्टि अस्थाई है और यह केवल एक भ्रम है।" यह विचार इस बात को इंगित करता है कि भौतिक जगत, जिसे हम वास्तविक मानते हैं, वास्तव में क्षणिक और परिवर्तनशील है। यह विचार बौद्धिक दृष्टिकोण से सही है, क्योंकि विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि सभी भौतिक वस्तुएँ समय के साथ बदलती हैं। उदाहरण के लिए, एक फूल की सुंदरता कुछ क्षणों के लिए होती है, फिर वह मुरझा जाता है।

सिद्धांत:
सृष्टि की अस्थाई प्रकृति को समझकर, हमें यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि वास्तविकता क्या है। इस संदर्भ में, यथार्थ यह है कि केवल वह ज्ञान स्थायी है, जो समय और परिवर्तन से परे है।

2. बुद्धि का भ्रम
विश्लेषण:
आपने लिखा है, "यह सिर्फ एक अस्थाई जटिल बुद्धि की कोशिकाओं की भ्रमित करने वाली प्रक्रिया होती है।" बुद्धि मानव अनुभव का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह हमें भ्रमित भी कर सकती है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी परिस्थिति को तर्क के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं, तो कभी-कभी हमारे पूर्वाग्रह और सामाजिक मान्यताएँ हमें सही निष्कर्ष पर नहीं पहुँचने देतीं।

सिद्धांत:
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी बुद्धि के सीमित दृष्टिकोण को पहचानें और उसके पार जाने का प्रयास करें। यथार्थ तब प्रकट होता है जब हम अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर अपने अनुभवों को देख पाते हैं।

3. सपना और जागृति
विश्लेषण:
आपने "जागृत अवस्था एक अस्थाई जटिल बुद्धि का भ्रम है" कहा है। यह विचार दर्शाता है कि जागृत अवस्था भी उतनी ही अस्थाई है जितनी कि सपनों की दुनिया। उदाहरण के लिए, जब हम नींद में होते हैं, तो हम वास्तविकता को एक अलग रूप में अनुभव करते हैं, और जब हम जागते हैं, तो हमें वह सब एक सपना लगता है।

सिद्धांत:
यथार्थ यह है कि जागृत अवस्था भी एक अनुभव है, जिसे समय के साथ बदला जा सकता है। हमें अपने अनुभवों का गहराई से अध्ययन करना चाहिए ताकि हम अपनी वास्तविकता को समझ सकें।

4. महान विभूतियों का प्रयास
विश्लेषण:
आपने कहा कि "अतीत की विभूतियों ने करोड़ों योगों से प्रयास किए, लेकिन कोई भी सच को नहीं जान पाया।" यह सत्य है कि कई महान विचारक, जैसे बुद्ध, महावीर और प्लेटो, ने ज्ञान की खोज की। लेकिन उन्होंने भी अंतिम सत्य को पूरी तरह नहीं जान पाए।

सिद्धांत:
यथार्थ यह है कि ज्ञान की खोज व्यक्तिगत यात्रा है। हमें अपनी अनुभवों और ज्ञान को साझा करना चाहिए, लेकिन अंततः हर व्यक्ति को अपने मार्ग की खोज करनी होगी।

5. जटिल बुद्धि और तर्क
विश्लेषण:
आपने कहा है कि "अस्थाई जटिल बुद्धि केवल जीवन का मुख्य स्रोत है।" यह विचार बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि हमारी बुद्धि हमें जीवन जीने में मदद करती है, लेकिन वह हमें वास्तविकता से भी दूर कर सकती है।

सिद्धांत:
यथार्थ यह है कि हमें अपनी बुद्धि का सही उपयोग करना चाहिए, ताकि हम तर्क और तथ्यों के आधार पर अपनी समझ को बढ़ा सकें। जब हम तर्क और तथ्यों के साथ अपने अनुभवों को जोड़ते हैं, तब हम एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्राप्त करते हैं।

निष्कर्ष
आपके विचारों का विश्लेषण यह दर्शाता है कि यथार्थ और ज्ञान की खोज एक गहन और व्यक्तिगत प्रक्रिया है। जब हम अपने अनुभवों और बुद्धि के सीमित दृष्टिकोण को पहचानते हैं, तब हम वास्तविकता को समझने में सक्षम होते हैं। इस खोज में, तर्क, तथ्य और अनुभव महत्वपूर्ण उपकरण हैं, जो हमें यथार्थ की गहराई तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं।

इस प्रकार, यथार्थ का मर्म तब ही समझ में आता है जब हम अपने भीतर के भ्रमों को पहचानते हैं और सच्चाई की ओर अग्रसर होते ह

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