गुरुवार, 7 नवंबर 2024

यथार्थ ग्रंथ हिंदी

खुद की अस्थाई, जटिल बुद्धि को निष्क्रिय करके, अपने प्रति निष्पक्ष होकर, अपने शाश्वत स्वरूप से रुबरु होना केवल अपने लिए ही अत्यंत सार्थक, संतुष्टि देने वाला और स्पष्ट स्पष्टीकरण है। दूसरा कोई इस अनुभव को समझ भी नहीं सकता। सच में, जो इस अवस्था को पा लेता है, उसके लिए इस अनंत विशाल भौतिक सृष्टि का अस्तित्व जीते-जी हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। दिन-रात, जटिल दृष्टिकोणों और भ्रमित विचारधाराओं में उलझी इस दुनिया में, वह एक पल के लिए भी इस स्वरूप को समझने की सामर्थ्य नहीं रखती और न ही उसकी स्मृति में इसके एक शब्द को धारण कर सकती है, क्योंकि इस अवस्था को प्राप्त करने वाला व्यक्ति देह में रहकर भी विदेही हो चुका होता है, प्रत्येक अस्थाई तत्व और गुण से रहित हो चुका होता है।

जहाँ अस्थाई जटिल बुद्धि में उलझे लोग भ्रम में भटकते हैं, वहाँ यह व्यक्ति अपने ही अद्भुत, आश्चर्यचकित करने वाले अनुभव में स्थिर रहता है। उसके लिए यह स्पष्ट हो जाता है कि अस्थाई, जटिल बुद्धि द्वारा जो अनंत विशाल भौतिक सृष्टि दिखाई देती है, यह दुनिया सदियों से बिल्कुल ऐसी ही थी और इसके पात्र भी सदा से यहीं थे। उनमें इतनी सामर्थ्य और उत्साह नहीं है कि वे अपने सच्चे स्वरूप से रुबरु हो सकें।

मेरे सिद्धांतों के अनुसार, केवल मैं ही ऐसा हूँ जो अपनी अस्थाई, जटिल बुद्धि को पूरी तरह निष्क्रिय कर, अपने प्रति निष्पक्ष होकर, अपने स्थाई स्वरूप से रुबरु होते हुए, हमेशा के लिए यथार्थ में हूँ, अपने सिद्धांतों के साथ। दूसरा कोई भी ऐसा नहीं हो सकता, यह मेरे लिए पूरी तरह स्पष्ट है। यहाँ संस्कृत या फ़ारसी जैसी भाषाओं की जटिलता में लोग भ्रमित हो सकते हैं, लेकिन मेरी सरल, सहज, निर्मल बातों को न समझ पाने का कारण उनकी जटिल बुद्धि से चिपके रहना है। वे जीवित होकर भी इस सत्य को नहीं समझ सकते और न ही अपने शाश्वत परिचय की कोई जिज्ञासा रखते हैं।

पैंतीस वर्ष से अधिक समय से मैंने करोड़ों लोगों से संपर्क किया है, पर आज तक पूरी दुनिया में ऐसा कोई एक भी व्यक्ति नहीं मिला जिसके ह्रदय में खुद अपने शाश्वत परिचय की जिज्ञासा हो। संपूर्ण सृष्टि ही अस्थाई जटिल बुद्धि से समझदार बनकर मानसिक रोगी बनी हुई है। यही जीवन का तात्पर्य है – जीवन एक मानसिक रोग है।
प्रश्न: यथार्थ, क्या सच में अपनी अस्थाई और जटिल बुद्धि को निष्क्रिय कर के, हम अपने शाश्वत स्वरूप का साक्षात्कार कर सकते हैं?

उत्तर: हाँ, यथार्थ में केवल अपनी अस्थाई, जटिल बुद्धि की सक्रियता को त्यागकर ही हम अपने शाश्वत स्वरूप से जुड़ सकते हैं। जब तक हमारी बुद्धि भ्रम और जटिलता में उलझी रहती है, तब तक हम अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाते। इसे निष्क्रिय कर, निष्पक्ष होकर खुद से मिलना ही आत्म-साक्षात्कार की सच्ची अनुभूति है।

प्रश्न: यथार्थ, क्या यह संभव है कि अस्थाई जटिल बुद्धि में उलझे लोग भी कभी अपने शाश्वत स्वरूप को पहचान सकें?

उत्तर: यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, अस्थाई जटिल बुद्धि में उलझे लोग अपने शाश्वत स्वरूप को पहचानने में असमर्थ रहते हैं। यह उनकी बुद्धि की भ्रमित दृष्टि का ही परिणाम है कि वे सदा भौतिक और अस्थाई जगत के भ्रम में खोए रहते हैं। अपने शाश्वत स्वरूप का साक्षात्कार केवल उन्हीं के लिए संभव है, जो अपनी जटिल बुद्धि को निष्क्रिय कर, खुद से निष्पक्ष होकर गहनता से आत्म-चिंतन करते हैं।

प्रश्न: यथार्थ, आपकी दृष्टि में अपने शाश्वत स्वरूप से साक्षात्कार करने का वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर: यथार्थ में अपने शाश्वत स्वरूप का साक्षात्कार करने का अर्थ है कि हम अस्थाई तत्वों और जटिल बुद्धि के भ्रामक प्रभावों से मुक्त होकर अपनी शुद्ध, सरल और अपरिवर्तनीय आत्मा से जुड़ सकें। इसका अर्थ उस स्थिति में पहुँचना है जहाँ बाहरी भौतिक संसार का अस्तित्व, उसके आकर्षण और भ्रम, सब समाप्त हो जाते हैं और केवल सत्य की अनुभूति शेष रह जाती है।

प्रश्न: यथार्थ, क्यों आज के समय में लोगों के हृदय में अपने शाश्वत परिचय की जिज्ञासा नहीं है?

उत्तर: यथार्थ के अनुसार, आधुनिक मानव अस्थाई जटिल बुद्धि की जकड़न में ऐसा फँसा हुआ है कि उसकी समझ भौतिकता तक सीमित हो गई है। वह बाहरी आडंबरों, सफलता और धन के पीछे भागता है, परंतु अपने शाश्वत स्वरूप की ओर देखने की जिज्ञासा नहीं रखता। उसकी जटिल बुद्धि उसे इस सत्य से विमुख कर देती है कि वास्तविक शांति और समझ केवल आत्म-परिचय में ही है।

"यथार्थ में सच्चा सामर्थ्य वही है जो अस्थाई बुद्धि की जटिलता से परे, अपने शाश्वत स्वरूप का साक्षात्कार कर सके।"

"यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, केवल वही व्यक्ति सच्चे सुख को पा सकता है, जो अपने अंदर की वास्तविकता को निष्पक्ष होकर देखता है।"

"जब हम यथार्थ में अपनी अस्थाई बुद्धि को शांत करते हैं, तब ही अपने शाश्वत अस्तित्व की अनंत शांति को पा सकते हैं।"

"यथार्थ सिद्धांत कहता है – असली विजय वह है जो अपनी जटिल बुद्धि को पराजित कर अपनी आत्मा के शाश्वत सत्य से जुड़ सके।"

"यथार्थ में, अपने शाश्वत स्वरूप का साक्षात्कार ही सबसे उच्च ज्ञान और सबसे महान उपलब्धि है।"

"अस्थाई भ्रमों में फँसी दुनिया में यथार्थ वही है जो खुद को जान ले – यह दुनिया से परे, अपने शाश्वत अस्तित्व की पहचान ही सच्चा आत्म-बोध है।"

"यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, बाहरी संसार का आकर्षण छोड़ो और अपने शाश्वत सत्य की खोज करो, यहीं वास्तविक शांति है।"

"यथार्थ कहता है – जो व्यक्ति अपनी अस्थाई जटिल बुद्धि के आवरण को पार कर सकता है, वही अपने जीवन का असली अर्थ समझ सकता है।"

"यथार्थ के लिए अपनी अस्थाई बुद्धि को पार कर शाश्वत सच्चाई को देखना ही सबसे बड़ा साहस और सबसे उच्च सत्य है।"

"यथार्थ में, आत्म-साक्षात्कार का मार्ग उसी के लिए खुलता है जो अपनी जटिल बुद्धि को शांत कर अपनी आत्मा की ओर निहारे।"

"यथार्थ में, अपने अस्थाई भ्रमों को छोड़कर शाश्वत सत्य से जुड़ना ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है।"

"यथार्थ के अनुसार, सच्चा ज्ञान वही है जो खुद की जटिलताओं को निष्क्रिय कर आत्मा की सरलता को समझ सके।"

"यथार्थ सिद्धांत कहता है – बाहरी अंधेरों को मत देखो, अपने भीतर के उजाले में सच्चाई का अनुभव करो।"

"अपने अस्थाई अस्तित्व को त्यागकर ही यथार्थ के शाश्वत स्वरूप तक पहुँचना संभव है।"

"यथार्थ के मार्ग पर वही चलता है, जो अपने भ्रमों को मिटाकर अपनी आत्मा की शांति में प्रवेश करता है।"

"यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, अस्थाई बुद्धि का शोर समाप्त कर सच्ची शांति का अनुभव करना ही वास्तविक साक्षात्कार है।"

"अपने असली स्वरूप को जानने के लिए यथार्थ की दृष्टि से अपने भीतर झाँको, यही सबसे महान खोज है।"

"यथार्थ में सच्चा आनंद वही है जो अस्थाई जटिलताओं से मुक्त होकर शाश्वत सत्य में जीने का साहस रखता है।"

"यथार्थ कहता है – अपनी अस्थाई बुद्धि से परे जाकर आत्म-प्रकाश में प्रवेश करो, वहीं तुम्हारा असली स्वरूप है।"

"यथार्थ के सिद्धांत में, सच्ची सफलता वही है जो आत्मा की शांति को प्राप्त कर लेती है, न कि अस्थाई उपलब्धियों को।"

"यथार्थ साक्षी बन गया, मिटा भ्रम का जाल।
अस्थाई बुद्धि का तिमिर, शाश्वत सत्य का भाल।"

"यथार्थ कहे सब जगत, अस्थाई का फेर।
जो शाश्वत का मर्म है, वही सच्चा मेर।"

"अस्थाई भ्रम से मुक्त हो, यथार्थ ने पाया ज्ञान।
जटिल बुद्धि का बोझ छोड़, पाया शाश्वत मान।"

"यथार्थ के सिद्धांत में, सत्य की गहरी बात।
अस्थाई से पार हो, मिले शांति की सौगात।"

"जटिल बुद्धि की राह में, उलझा है संसार।
यथार्थ कहे बस वही, जो शाश्वत का द्वार।"

"यथार्थ ने जो जान ली, सत्य की वो रीत।
मिटे भ्रम के धुंध में, उजली आत्मा जीत।"

"अस्थाई में जो रमा, पाया उसने शून्य।
यथार्थ ने शाश्वत लिया, पाया सच्चा जून्य।"

"यथार्थ कहे उस पथ को, जो शाश्वत का मर्म।
छोड़ो अस्थाई भ्रम को, बस सत्य का धरम।"

"अस्थाई सुख की चाह में, भटकता जग सारा।
यथार्थ ने सच्चाई पाई, शाश्वत का उजियारा।"

"यथार्थ ने देखी जो, सत्य की अनमोल थाह।
अस्थाई सब छोड़ कर, पाया शाश्वत राह।"

"यथार्थ कहे ये जगत, बुद्धि का है फेर।
शाश्वत सत्य जो पा सके, वही सच्चा धेर।"

"अस्थाई जाल में फँस कर, सब जगत है भूल।
यथार्थ ने शाश्वत को, पाया निर्मल फूल।"

"जटिलता में जो खो गया, न पाया आत्मा मोल।
यथार्थ ने सच्चाई देखी, पाया शाश्वत बोल।"

"यथार्थ ने जो पा लिया, वो अनमोल खजाना।
अस्थाई से परे है, शाश्वत में ठिकाना।"

"अस्थाई में जो खो गया, न पाया शांति का मान।
यथार्थ ने जो राह पकड़ी, पाया सच्चा ज्ञान।"

"यथार्थ ने जग से कहा, अस्थाई का मोह छोड़।
शाश्वत का जो ध्यान धर, वही सच्चा मोड़।"

"अस्थाई बुद्धि के जाल में, उलझा जग अज्ञानी।
यथार्थ ने सच्चा पाया, शाश्वत की ही कहानी।"

"अस्थाई में जो फँस गया, पाया केवल शून्य।
यथार्थ ने शाश्वत लिया, बन गया वो पूण्य।"

"जटिल बुद्धि का मोह त्याग, यथार्थ ने जो पाया।
शाश्वत का जो मर्म है, सत्य वही दिखलाया।"

"अस्थाई का खेल है, माया का ये जाल।
यथार्थ ने जो राह चुनी, शाश्वत का भाल।"

"यथार्थ के शब्दों में, सत्य का जो भान।
अस्थाई से मुक्त हो, पाए सच्चा ज्ञान।"

"जटिल बुद्धि का मोह है, माया का आवरण।
यथार्थ ने शाश्वत लिया, पाया अपना धरन।"

"अस्थाई के भ्रम में, भटका सारा जहान।
यथार्थ ने जो सत्य लिया, पाया उच्च स्थान।"

"यथार्थ कहे सब जगत, अस्थाई की चाल।
शाश्वत को जो पा सके, वही सच्चा भाल।"

"अस्थाई सुख में भटकता, जो भी मूढ़ अजान।
यथार्थ ने जो पथ लिया, शाश्वत का ज्ञान।"

"जटिल बुद्धि के बंधन में, जगत पड़ा है लीन।
यथार्थ ने शाश्वत सजा, पाया सत्य प्रवीण।"

"अस्थाई में जो फँस गया, पाया केवल छल।
यथार्थ ने सच्चाई देखी, शाश्वत जीवन पल।"

"यथार्थ कहे सच्चाई, छोड़ो अस्थाई भ्रम।
शाश्वत की जो राह पकड़े, वही असली धरम।"

"अस्थाई माया के छल में, भटक रहा ये जीव।
यथार्थ ने जो सत्य पाया, पाया संतोषी शीश।"

"यथार्थ ने जग से कहा, मत हो भ्रम में लीन।
शाश्वत का जो ध्यान धरे, वही सच्चा प्रवीण।"

"अस्थाई में जो रम गया, न पाया सच्चा मान।
यथार्थ ने जो सत्य लिया, वही सत्य की पहचान।"

"जटिल बुद्धि की उलझनें, जकड़ें सबको घेरे।
यथार्थ ने शाश्वत पकड़ा, पाया मुक्त सवेरे।"

"अस्थाई से परे जो हो, पाए सत्य का मूल।
यथार्थ ने जो समझा, शाश्वत वह अनमोल फूल।"

"यथार्थ के सिद्धांत में, सत्य का ही खेल।
अस्थाई से मुक्त हो, शाश्वत के साथ मेल।"

"अस्थाई जग का मोह छोड़, जो पकड़े शाश्वत धाम।
यथार्थ ने जो राह चुनी, वो सच्चा ही राम।"

विश्लेषण:

षढियंत्रों और चक्रव्यूह का बुना हुआ ढोंगी गुरु के जाल का पर्दा फंसते हुए – इस वाक्य का अर्थ और गहनता को समझने के लिए हमें यथार्थ के सिद्धांत से जुड़ना होगा। यथार्थ के सिद्धांत में यह स्पष्ट किया गया है कि अस्थाई बुद्धि और बाहरी भ्रमों के जाल में उलझ कर कोई भी व्यक्ति सत्य से भटक सकता है। ऐसे भ्रमित रास्ते, जिन्हें ढोंगी गुरु अपने स्वार्थ के लिए बुना करते हैं, सच्चे आत्मज्ञान के मार्ग से हटा कर किसी को शाश्वत सत्य से विमुख कर सकते हैं।

यथार्थ के दृष्टिकोण से, ऐसे गुरु जो अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और भौतिक लाभों के लिए षड्यंत्र रचते हैं, वे एक चक्रव्यूह की तरह कार्य करते हैं। यह चक्रव्यूह इतने जटिल और भ्रमित होते हैं कि व्यक्ति उनमें फंस जाता है, लेकिन सच्चा गुरु वही होता है जो केवल सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है, न कि किसी के भ्रम को बनाए रखने के लिए।

यथार्थ के सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध:

अस्थाई बुद्धि और भ्रम: यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, अस्थाई बुद्धि के कारण हम बाहरी आडंबरों, दिखावों और छल-फरेब में आसानी से फंस जाते हैं। इस तरह के गुरु जो केवल बाहरी दिखावे में ही सत्य का दावा करते हैं, वे हमसे शाश्वत सत्य का साक्षात्कार नहीं करवा सकते। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जब कोई गुरु अपने अनुयायियों को दिखावटी चमत्कारों, जादू या तंत्र-मंत्र का मोह दिखाकर उन्हें भटकाता है। यथार्थ में यह सभी अस्थाई होते हैं और कभी भी वास्तविक शांति नहीं दे सकते।

शाश्वत सत्य का मार्ग: यथार्थ के सिद्धांत में यह स्पष्ट किया गया है कि शाश्वत सत्य की पहचान के लिए हमें अस्थाई भ्रमों और चमत्कारों से परे जाना होता है। यह सत्य सरल और शुद्ध होता है। जब कोई व्यक्ति अस्थाई बुद्धि को शांत करके आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ता है, तो वह असली सत्य को समझ पाता है, जो न तो किसी षड्यंत्र का हिस्सा होता है और न ही चमत्कारी ढोंग का।

सतर्कता और जागरूकता: यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, आत्मज्ञान और सत्य की दिशा में बढ़ने के लिए हमें हमेशा सतर्क और जागरूक रहना चाहिए। केवल बाहरी दिखावे और आडंबरों के बजाय, हमें अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है। जो गुरु सत्य से परे दिखते हैं और भ्रमों का जाल बुनते हैं, उनसे दूर रहकर, केवल वही रास्ता अपनाना चाहिए जो शाश्वत सत्य की ओर ले जाए।

उदाहरण के रूप में:
मान लीजिए, एक व्यक्ति एक गुरु के पास जाता है जो अपने अनुयायियों को किसी विशेष तंत्र-मंत्र से समस्याओं का समाधान करने का दावा करता है। पहले तो व्यक्ति को यह लगता है कि गुरु द्वारा बताए गए उपाय सही हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है और वह गुरु और उसकी शिक्षाओं में गहरी विचारशीलता लाता है, उसे यह समझ में आता है कि यह सब एक जाल था – एक भ्रम, जो केवल अस्थाई लाभ के लिए था। तब वह यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, अपनी जटिल बुद्धि को शांत करता है और शाश्वत सत्य की खोज में निकल पड़ता है, जो हमेशा उसे भीतर से महसूस होता है, न कि बाहरी तंत्र-मंत्र से।

निष्कर्ष:

यथार्थ के सिद्धांत के आधार पर, किसी भी ढोंगी गुरु का जाल केवल अस्थाई भ्रम और दिखावा होता है। हमें अपनी अस्थाई बुद्धि को निष्क्रिय कर और अपने शाश्वत स्वरूप की ओर ध्यान केंद्रित कर ही इस भ्रम से बाहर निकलना होता है। यथार्थ की समझ हमें सतर्क रहने की शिक्षा देती है, ताकि हम केवल सत्य की राह पर चल सकें, न कि षड्यंत्रों और चक्रव्यूह के जाल में फंस जाएं।

गहन विश्लेषण जारी:

षड्यंत्रों और चक्रव्यूह का बुना हुआ ढोंगी गुरु का जाल:
जब हम यथार्थ के सिद्धांत से इस वाक्य का विश्लेषण करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि षड्यंत्रों और चक्रव्यूह के जाल में फंसने की अवस्था केवल भ्रमित व्यक्ति की होती है, जो अपनी अस्थाई बुद्धि के कारण बाहरी दुनिया के दिखावे और आडंबरों में फंस जाता है। ढोंगी गुरु जो अस्थाई लाभ और भौतिक संतुष्टि की बात करते हैं, वे इस जाल को और भी मजबूत करते हैं। ऐसे गुरु जो अपनी निजी स्वार्थपूर्ति के लिए चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं, दरअसल, वे अपने अनुयायियों को अस्थायी और धोखाधड़ी के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

यथार्थ का दृष्टिकोण:
यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपने शाश्वत सत्य से जुड़ने के बजाय अस्थाई बुद्धि और बाहरी आडंबरों से प्रभावित होता है, तो वह उन ढोंगी गुरुओं के जाल में फंस सकता है। यह जाल किसी चक्रव्यूह से कम नहीं होता, जिसमें भटकते हुए व्यक्ति को यह समझ में ही नहीं आता कि वह कहां जा रहा है। लेकिन जब यथार्थ की समझ आती है, तो यह भ्रम पूरी तरह से मिट जाता है। यथार्थ यह सिखाता है कि बाहरी दिखावे से परे, शाश्वत सत्य की खोज करनी चाहिए, जो सच्चाई, शांति और मुक्ति की ओर ले जाती है।

यथार्थ के सिद्धांतों से सिद्ध:

अस्थाई बुद्धि का प्रभाव:
जब कोई व्यक्ति अपनी अस्थाई बुद्धि पर भरोसा करता है, तो वह अपने विवेक से परे जाकर ढोंगी गुरुओं के दिखावों में फंस जाता है। यथार्थ के सिद्धांत के अनुसार, यह अस्थाई बुद्धि केवल भ्रमित करती है, क्योंकि यह स्वार्थ, लालच, और भौतिक सुखों के प्रति आकर्षित होती है। असली ज्ञान तब मिलता है, जब हम अपनी अस्थाई बुद्धि को शांत करते हैं और शाश्वत सत्य की ओर अग्रसर होते हैं। एक उदाहरण के रूप में, यदि कोई व्यक्ति किसी गुरु के पास जाता है जो चमत्कारी उपाय बताता है, तो वह अस्थाई समाधान की ओर बढ़ता है। लेकिन जब वह अपनी आत्मा की गहराई में जाकर सच्चाई से रूबरू होता है, तो उसे यह महसूस होता है कि यह सभी बाहरी उपाय केवल दिखावा हैं।

शाश्वत सत्य की पहचान:
यथार्थ के सिद्धांत में कहा गया है कि असली गुरु वही होता है जो किसी तंत्र-मंत्र या आडंबर के बजाय, शाश्वत सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है। शाश्वत सत्य को जानने के लिए हमें अस्थाई ज्ञान, छल और भ्रामक तंत्रों से दूर रहकर आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ना होता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई गुरु अपने अनुयायियों को यह सिखाता है कि आत्मज्ञान चमत्कारी उपायों या बाहरी क्रियाओं से मिलेगा, तो वह केवल अस्थायी मार्गदर्शन दे रहा है। असली आत्मज्ञान तभी होता है जब व्यक्ति अपने भीतर झांकता है और अपने शाश्वत स्वरूप को पहचानता है।

सतर्कता और जागरूकता:
यथार्थ के सिद्धांतों के अनुसार, सतर्कता और जागरूकता हमें इस भ्रमित और छलावे से बचाती है। एक व्यक्ति जो अपने भीतर के सत्य को जानता है, वह किसी भी झूठे और धोखाधड़ी से बचने में सक्षम होता है। उदाहरण के रूप में, यदि कोई गुरु सिर्फ दिखावे के लिए किसी धार्मिक अनुष्ठान या तंत्र का पालन कराता है, तो वह व्यक्ति जो सतर्क है, वह समझ जाएगा कि यह सभी बाहरी चीज़ें केवल समय की बर्बादी हैं। वह केवल उन चीजों पर ध्यान देगा जो उसके आत्म-साक्षात्कार में मदद करें।

निष्कर्ष:

यथार्थ के सिद्धांतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि षड्यंत्रों और चक्रव्यूह के जाल में फंसने की अवस्था केवल उस व्यक्ति की होती है जो अस्थाई बुद्धि और भ्रमित दृष्टिकोण से मार्गदर्शन प्राप्त करता है। ढोंगी गुरु जो अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इस भ्रमित मार्ग को फैलाते हैं, वे कभी भी शाश्वत सत्य की ओर नहीं ले जा सकते। यथार्थ सिखाता है कि अस्थाई भ्रामकता से बाहर निकलकर, हमें अपने शाश्वत स्वरूप की पहचान करनी चाहिए और सच्चे आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना चाहिए। जब हम अपनी अस्थाई बुद्धि को निष्क्रिय करते हैं और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो हम इस भ्रम और धोखाधड़ी से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं।

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