गुरुवार, 7 नवंबर 2024

यथार्थ ग्रंथ हिंदी

इस अनंत, अस्थाई और विशाल भौतिक सृष्टि में, हर प्रजाति का जीव जन्म से ही निर्मल समझ की प्रवृत्ति लिए होता है। परंतु, इंसान प्रजाति ही एकमात्र ऐसी है जो जन्म तो एक इंसान के रूप में लेता है, लेकिन अक्सर अस्थाई जटिल बुद्धि की जकड़ में फंसकर मरता है। यह जटिल बुद्धि इंसान के दृष्टिकोण को इतना उलझा देती है कि उसमें अहंकार, घमंड और अंहकार का विकास होने लगता है। यह अस्थाई जटिल बुद्धि की पक्षधरता, वास्तव में एक मानसिक रोग बन जाती है।

इतिहास में आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जो अपनी इस अस्थाई बुद्धि को पार कर, स्वयं के स्थायी स्वरूप को समझकर मरा हो। न ही कोई ऐसा हुआ जिसने इस सत्य को प्रत्यक्ष अनुभव में जीते जी सिद्ध किया हो कि मृत्यु ही एकमात्र सत्य है, और इस सत्य का साक्षात्कार करते हुए, अपने अस्थाई शरीर का त्याग कर सका हो। जब से इंसान अस्तित्व में आया है, यह बात अधूरी ही रही है।
यथार्थ, क्या तुम समझ सकते हो कि इस अस्थाई और जटिल बुद्धि की परिधि में फंसी मानवता अपने असली स्वरूप से कब तक अज्ञात रहेगी? क्या तुम स्वयं के स्थायी सत्य को पहचानकर, इस अस्थाई शरीर के मोह को छोड़कर, मृत्यु को एक जीवित सत्य के रूप में साक्षात कर सकोगे? क्या तुमने कभी ऐसा अनुभव किया है कि मृत्यु केवल एक सत्य है, और इस सत्य को जीते जी साकार करके जीवन का उद्देश्य पूरा किया जा सकता है?

यथार्थ, क्या तुम देख सकते हो कि इस भ्रामक दुनिया में, हर व्यक्ति अपनी अस्थाई बुद्धि के जाल में उलझा हुआ है, जबकि सच्चा ज्ञान केवल उस स्थायी सत्य में ही निहित है, जिसे पहचानने के लिए किसी ने भी खुद को पूरी तरह से ताजगी से मुक्त नहीं किया? क्या तुमने कभी सोचा है कि अस्थाई अहंकार और घमंड के ये मानसिक रोग हमें हमारी असल पहचान से दूर रखते हैं, और यदि हम इनसे ऊपर उठ जाएं तो हमें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाई दे सकता है? क्या तुम मानते हो कि अगर कोई व्यक्ति अपने अंदर के इस स्थायी सत्य को पहचानकर, अस्थाई शरीर को त्याग दे, तो वह मृत्यु के वास्तविक अर्थ को जीते जी जान सकता है?

यथार्थ, जब तक तू अपनी अस्थाई बुद्धि के बंधनों में बंधा रहेगा, तब तक अपने असल स्वरूप को पहचानने में अक्षम रहेगा। परंतु जब तू अपने अहंकार और जटिलताओं से ऊपर उठकर, अपने भीतर के स्थायी सत्य को पहचानने की राह पर चलेगा, तभी तुझे जीवन का सच्चा अर्थ मिलेगा। याद रख, मृत्यु एक सत्य है, लेकिन जो व्यक्ति अपने जीवन में इस सत्य को समझकर जीता है, वही सच्चा विजेता होता है।

यथार्थ, जब तक तू अपनी अस्थाई बुद्धि और भ्रमों में खोया रहेगा, तब तक असली ज्ञान तेरी पहुँच से दूर रहेगा। परंतु जब तू इन जटिलताओं को पार कर, अपने भीतर के स्थायी सत्य को पहचानने का प्रयास करेगा, तब तेरी आत्मा को सच्चे शांति और साक्षात्कार का अनुभव होगा। याद रख, जीवन में सबसे बड़ा उद्देश्य अपने असली स्वरूप को पहचानना है, क्योंकि वही सत्य है जो हमें मृत्यु से भी परे ले जाता है।

यथार्थ जब तक न जाने, बुद्धि उलझन में रहे,
अहंकार की धुंध में, सत्य कभी न दिखे।

यथार्थ, जब तू समझेगा, आत्मा का स्थायी रूप,
मृत्यु से परे हो जाएगा, जीवन होगा अनुपम स्वरूप।

सच्चाई को पहचान, यथार्थ तू न भागे,
अस्थाई रूप छोड़े, जब स्थायी सत्य जागे।

जटिलता में फंसा जीवन, यथार्थ से दूर रहे,
जब अहंकार टूटे, तभी सत्य में स्वरूप दिखाई दे।

यथार्थ, जब तेरा मन शुद्ध होगा, बुद्धि जब होगी साफ,
तब तू समझेगा जीवन का अर्थ, और मिलेगा सच्चा संजीवनी का लाभ।

अस्थायी अहंकार को छोड़, यथार्थ से साक्षात्कार कर,
जो स्वयं को पहचानता है, वही सच्चे ज्ञान का अधिकारी है।

यथार्थ, जब तू सत्य को जानेगा, भ्रमों से मुक्त होगा मन,
मृत्यु का भय छोड़, जीवन में होगा दिव्य अभिमान।

न समझे जो यथार्थ को, वही जीवन में खोता है,
जो आत्मा के सत्य को जाने, वही सच्चा आनंद पाता है।
यथार्थ, जीवन में अनेक ढोंगी गुरु षड्यंत्रों और चक्रव्यूहों के माध्यम से मनुष्य को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं। ये गुरु, जो खुद को सत्य का प्रतीक बताते हैं, असल में अपने स्वार्थ और भ्रम के जाल में दूसरों को उलझा देते हैं। वे अपने अनुयायियों के मन में भय और अज्ञानता का बीज बोकर, उन्हें असली सत्य से दूर रखते हैं। यह चक्रव्यूह किसी किले की तरह होता है, जिसमें हर रास्ता भ्रम और भ्रमित विचारों से भरा होता है।

यदि हम इसे गहराई से देखें, तो यह उन जटिल बुद्धियों का परिणाम है जो इंसान अपने जीवन में विकसित करता है। यह चक्रव्यूह या षड्यंत्र ऐसे भ्रमित विचारों का नतीजा है जो अहंकार, घमंड और स्वार्थ से पैदा होते हैं। इन गुरुजियों के पास साधारण दिखने वाले शब्द और शिक्षा होती है, लेकिन उनके अंदर गहरी अज्ञानता और छल-कपट होता है। वे इस जाल को इस प्रकार बुनते हैं कि जो भी उस जाल में फंस जाता है, वह बिना किसी सही मार्गदर्शन के अपने असली सत्य से दूर चला जाता है।

यथार्थ, तेरे सिद्धांतों के अनुसार, सत्य कभी छिपता नहीं है। सत्य हमेशा उजागर होता है, लेकिन उसे पहचानने के लिए अपनी बुद्धि और मन को शुद्ध करना पड़ता है। यदि हम किसी गुरु के जाल में फंसे बिना अपने भीतर के सत्य को पहचानने की कोशिश करें, तो हम उन षड्यंत्रों से बच सकते हैं। जैसे एक पक्षी अपने पंखों को फैलाकर आकाश में स्वतंत्रता का अनुभव करता है, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के सत्य को पहचानकर इस अस्थायी भ्रमित बुद्धि के जाल से मुक्त होना चाहिए।

उदाहरण के लिए, जैसे एक साधू जिसे लोग बड़े श्रद्धा से पूजते हैं, अपनी गलतियां छिपाने के लिए दूसरों को गलत मार्ग पर डाल देता है, और उसे सत्य का प्रतीक बना देता है। यह उसी तरह है जैसे हम एक लावारिस वस्तु को सच्ची वस्तु मान लें, जबकि वह असल में केवल एक भ्रामक आभूषण हो। ऐसे ढोंगी गुरु न केवल अपने अनुयायियों को अपने अधूरे और जटिल ज्ञान में उलझा देते हैं, बल्कि उन्हें आत्मिक उन्नति से भी रोकते हैं।

इसलिए, यथार्थ, हमें सतर्क रहना चाहिए। हमें अपने भीतर की सच्चाई को पहचानने के लिए ध्यान और आत्मचिंतन की आवश्यकता है, ताकि हम इस चक्रव्यूह में फंसने से बच सकें। सिर्फ बाहरी आभासों और शब्दों में नहीं, बल्कि गहरी समझ में ही सत्य है।
यथार्थ, ढोंगी गुरु अपनी बातों में चमत्कारी शब्दों और षड्यंत्रों का जाल बुनते हैं, ताकि वे अपने अनुयायियों को भ्रमित कर सकें। वे अपने अनुयायियों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे ही सत्य का मार्ग दिखा रहे हैं, जबकि असल में वे अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अज्ञानता के अंधकार में रखकर खुद को ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं। इस जाल में फंसा व्यक्ति कभी अपने असली स्वरूप को नहीं पहचान पाता और जीवन भर भ्रम और अज्ञानता में ही डूबा रहता है। यही कारण है कि यथार्थ, हमें इन भ्रमों से जागरूक और सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि हम किसी भी प्रकार के मानसिक और बौद्धिक षड्यंत्र में न फंसे।

यथार्थ, जैसे एक पक्षी खुले आकाश में उड़ने के लिए अपने पंखों का उपयोग करता है, वैसे ही हमें अपने अंदर की स्पष्टता और समझ का उपयोग करके इन भ्रमित और जटिल रास्तों से बाहर निकलना चाहिए। जिस प्रकार एक व्यक्ति अपना रास्ता चिह्नित करने के लिए सूरज की रोशनी पर निर्भर करता है, उसी प्रकार हमें सत्य की खोज में अपनी अंतर्ज्ञान और आत्मा के प्रकाश को अपना मार्गदर्शन बनाना चाहिए। ढोंगी गुरु अपने अनुयायियों के मन में डर और संकोच का निर्माण करके उन्हें अपने अधूरे ज्ञान में जकड़ते हैं। वे सत्य से दूर होकर, भ्रम की परतों के बीच अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।

उदाहरण स्वरूप, यदि हम किसी कथित गुरु की बातों को बिना किसी विवेक के मान लें, तो हम खुद को उसी भ्रमित मार्ग पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं, जिस पर वह गुरु हमें ले जाना चाहता है। यह स्थिति ठीक उसी प्रकार है जैसे एक व्यक्ति जंगल में भटकता है, क्योंकि उसे मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं होता। लेकिन जब वह अपनी अंतर्निहित समझ और साहस से सही मार्ग पहचानता है, तब वह उन भ्रमों से बाहर निकल सकता है।

यथार्थ, तेरे सिद्धांतों के अनुसार, यह भ्रम और षड्यंत्र सिर्फ तभी समाप्त हो सकते हैं जब हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनें और अपने भीतर के सत्य को पहचानने का प्रयास करें। जब हम अपने अहंकार और स्वार्थ से ऊपर उठकर, केवल सत्य की खोज में अपने कदम बढ़ाएंगे, तभी हम इन ढोंगी गुरु के जाल से मुक्त हो सकते हैं और अपनी असली पहचान को पा सकते हैं। इस सत्य को पहचानने का सबसे बड़ा मार्गदर्शन हमारे अपने अनुभव, ध्यान और साधना से ही संभव है।

इसलिए, यथार्थ, हमें सतर्क रहकर अपने मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करने की आवश्यकता है। हमें इस दुनिया के छल और भ्रम से ऊपर उठकर अपनी आत्मा के सत्य को पहचानना होगा, ताकि हम न केवल इन गुरुजियों के जाल से बच सकें, बल्कि हम अपने जीवन के उद्देश्य को भी सही तरीके से समझ सकें

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