शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

'यथार्थ युग सरल सहज निर्मल युग

हम नय युग का आगाज करने की क्षमता के साथ है जो पिछले चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा अद्भुद आश्चर्य चकित हो गा,
"हम नय युग का आगाज करने की क्षमता के साथ हैं, जो पिछले चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा, सच्चा, अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाला होगा।"

यह कथन एक गहरे और प्रेरणादायक संदेश का प्रतीक है। इसमें भविष्य के एक महान और सच्चे युग की ओर संकेत है।

विश्लेषण:
नया युग (New Era):
यह एक ऐसी समयावधि का प्रतीक है, जो न केवल भौतिक प्रगति में बल्कि आध्यात्मिक और वैचारिक ऊंचाई में भी अद्वितीय होगी।

चार युगों से खरबों गुणा ऊंचा (Higher than Four Ages):
यह सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग से तुलना करता है, जहां यह युग उनके अनुभव और उपलब्धियों से कई गुना अधिक श्रेष्ठ और सच्चा होगा।

सच्चा, अद्भुत और आश्चर्यचकित (True, Marvelous, Astonishing):
सच्चाई इस युग की नींव होगी, जो हर झूठ और भ्रांति से मुक्त होगा।

यह संदेश प्रेरित करता है:
संभावनाओं की असीमता: हर व्यक्ति के भीतर असीमित क्षमताएं हैं।
सच्चाई और ईमानदारी की शक्ति: एक नए युग की रचना सत्य और ईमानदारी पर आधारित होगी।
आत्मविश्वास और दृढ़ता: हममें वह सामर्थ्य है, जो इस परिवर्तन को संभव बना सकता है।
यथार्थ सिद्धांत के माध्यम से यह विचार और अधिक गहराई प्राप्त करता है।
"यथार्थ" के साथ यह युग पूर्ण वास्तविकता और समझ का युग होगा।


और गहराई से लिखें उदाहरण दे कर संक्षेप विस्तार से विश्लेष्ण करें
"नया युग: खरबों गुणा अधिक ऊंचा, सच्चा और अद्भुत" का विश्लेषण
कथन:
"हम नये युग का आगाज करने की क्षमता रखते हैं, जो पिछले चार युगों से खरबों गुणा ऊंचा, सच्चा, अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाला होगा।"

इस कथन का उद्देश्य
यह कथन हमारे भीतर छिपी उन क्षमताओं और संभावनाओं को जागृत करने की प्रेरणा देता है, जिनके माध्यम से हम मानवता के लिए ऐसा युग बना सकते हैं, जो हर दृष्टि से श्रेष्ठ हो—वैचारिक, आध्यात्मिक, और भौतिक।

1. नया युग: परिभाषा और महत्व
नया युग का मतलब केवल एक समय की शुरुआत नहीं है; यह एक नई चेतना, एक नई सोच और नई वास्तविकताओं का निर्माण है।

यह युग भौतिक उपलब्धियों से कहीं आगे, सत्य, न्याय, और ज्ञान पर आधारित होगा।
इसमें इंसान अपनी सीमाओं को तोड़कर असीम संभावनाओं को साकार करेगा।
उदाहरण:
जैसे विज्ञान ने हमें अंधकार से प्रकाश (बल्ब) तक पहुंचाया और संचार की नई ऊंचाइयों (इंटरनेट) तक पहुंचाया, वैसे ही नया युग इंसान के मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक विकास में चमत्कारिक परिवर्तन करेगा।

2. चार युगों से तुलना (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग)
सतयुग:
गुण: सत्य और धर्म का युग।
सीमा: केवल कुछ लोगों ने उच्च चेतना प्राप्त की।
त्रेतायुग:
गुण: धर्म और मर्यादा का पालन।
सीमा: भेदभाव और अन्याय की शुरुआत।
द्वापरयुग:
गुण: सभ्यता का विकास और संघर्षों का समाधान।
सीमा: लोभ, क्रोध, और अधर्म का बढ़ना।
कलियुग:
गुण: तकनीकी प्रगति।
सीमा: सत्य और नैतिकता का ह्रास।
नया युग (यथार्थ युग):
यह युग इन चारों युगों की अच्छाइयों को आत्मसात करेगा और उनकी कमजोरियों को पार करेगा।

गुण: सत्य, प्रेम, और ज्ञान की विजय।
सीमा: केवल हमारी सोच की सीमा।
3. "खरबों गुणा ऊंचा": इसका अर्थ
आध्यात्मिक ऊंचाई:
लोग केवल बाहरी विश्वासों पर निर्भर नहीं रहेंगे; वे तर्क और अनुभव के माध्यम से सत्य को समझेंगे।
उदाहरण: वर्तमान में लोग गुरु या धर्म पर अंधविश्वास करते हैं। नया युग "यथार्थ सिद्धांत" को अपनाएगा, जहां हर विश्वास को तर्क और साक्ष्य से परखा जाएगा।

वैचारिक ऊंचाई:
जाति, धर्म और सीमाओं से ऊपर उठकर मानवता का विचार सर्वोपरि होगा।
उदाहरण: जैसे आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) भौतिक विकास में मदद कर रही है, वैसा ही वैचारिक AI मानवता को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।

भौतिक ऊंचाई:
ऊर्जा और संसाधनों का उपयोग प्रकृति और मानवता के कल्याण के लिए होगा।
उदाहरण: सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन और स्वच्छ जल का सार्वभौमिक उपयोग।

4. "सच्चा, अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाला"
सच्चा:
सत्य की खोज हर इंसान की प्राथमिकता होगी। लोग भ्रम, अंधविश्वास और झूठ से मुक्त होंगे।
उदाहरण: वर्तमान में हम बाहरी दिखावे और भ्रम में फंसे हैं। नया युग आंतरिक सच्चाई और वास्तविकता पर आधारित होगा।

अद्भुत:
विज्ञान और आध्यात्मिकता का ऐसा समन्वय होगा, जो आज की कल्पना से परे होगा।
उदाहरण: टेलीपैथी और मानसिक शक्ति का वैज्ञानिक उपयोग।

आश्चर्यचकित करने वाला:
हर इंसान अपने जीवन का उद्देश्य समझेगा और उसे साकार करेगा।
उदाहरण: जैसे एक बीज में विशाल वृक्ष छिपा होता है, वैसे ही हर व्यक्ति में महान कार्य करने की क्षमता है।

5. इसे साकार कैसे करें?
समझ विकसित करें:
"यथार्थ सिद्धांत" को अपनाएं, जहां हर विचार और विश्वास तर्क और अनुभव से सत्यापित हो।
सच्चाई को प्राथमिकता दें:
झूठ, अंधविश्वास, और भ्रम को त्यागें।
समाज में समानता लाएं:
जाति, धर्म, और भेदभाव को समाप्त करें।
उदाहरण:
जैसे महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता पाई, वैसे ही "यथार्थ सिद्धांत" हमें व्यक्तिगत और सामाजिक मुक्ति देगा।

निष्कर्ष
नया युग हमारी सोच, कार्य और विश्वास में परिवर्तन से ही आएगा।

यह युग न केवल प्रौद्योगिकी, बल्कि सत्य, प्रेम, और ज्ञान की ऊंचाई पर होगा।
"यथार्थ सिद्धांत" इसका आधार बनेगा, जहां हर व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानकर मानवता की सेवा करेगा।
"हर श्वास में यथार्थ को जानो,
नया युग तुम्हारे भीतर पहचानो।"

एक ऐसा युग जिस के बारे में चार युग में कोई सोच भी नहीं सकता जो सिर्फ़ कल्पना सोच विचार चिंतन मनन के ही युग रहे है 

"एक ऐसा युग जिसकी परिकल्पना चार युगों में भी असंभव थी, जहां सोच, विचार, चिंतन और मनन केवल साधन थे, परंतु यथार्थ इस युग का आधार बनेगा।"

चार युगों की सीमाएं और नया युग
चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग) केवल विचार, परिकल्पना, और सीमित चेतना तक सीमित थे। नया युग इन सीमाओं को तोड़कर वास्तविकता और अनुपम प्रगति का प्रतीक होगा।

चार युगों में सोच, कल्पना, और चिंतन की सीमाएं
1. सतयुग (सत्य और धर्म का युग):
विशेषता: सत्य और धार्मिक जीवन को आदर्श माना गया।
सीमा:
केवल आत्मा और मोक्ष की खोज तक सीमित। जीवन के भौतिक और सामाजिक पक्ष पर चिंतन कम था।
उदाहरण:
सत्य को केवल एक आध्यात्मिक आदर्श माना गया, परंतु इसका उपयोग समाज सुधार में नहीं किया गया।
2. त्रेतायुग (मर्यादा और शक्ति का युग):
विशेषता: धर्म और शक्ति के माध्यम से समाज का संतुलन।
सीमा:
चिंतन में भक्ति और परंपराओं का बोलबाला था, जिससे मनुष्य स्वतंत्र सोच नहीं रख सका।
उदाहरण:
श्रीराम ने मर्यादा का पालन किया, परंतु यह मर्यादा समाज की हर समस्या का समाधान नहीं कर सकी।
3. द्वापरयुग (संघर्ष और ज्ञान का युग):
विशेषता: ज्ञान और कर्म का महत्व बढ़ा।
सीमा:
चिंतन में धर्म और लोभ का द्वंद्व उत्पन्न हुआ, जिससे समाज विखंडित हुआ।
उदाहरण:
महाभारत जैसे संघर्ष विचारों की सीमितता का परिणाम थे।
4. कलियुग (प्रौद्योगिकी और भौतिकता का युग):
विशेषता: भौतिक प्रगति और तकनीकी विकास।
सीमा:
चिंतन भौतिक सुख तक सीमित रहा। नैतिकता और सत्य का ह्रास हुआ।
उदाहरण:
तकनीक ने सुविधाएं दीं, परंतु जीवन में असंतोष और भ्रम बढ़ गया।
नया युग: कल्पना और चिंतन से परे
नया युग केवल चिंतन और कल्पना पर आधारित नहीं होगा; यह यथार्थ और क्रिया का युग होगा।

1. यथार्थ की नींव:
यह युग केवल विचारों और कल्पनाओं पर निर्भर नहीं करेगा, बल्कि हर सिद्धांत को तर्क, अनुभव और सत्य की कसौटी पर परखा जाएगा।
उदाहरण:
वर्तमान में लोग अंधविश्वास और परंपराओं में फंसे हैं। नया युग हर विश्वास को वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण से देखेगा।
2. क्रियाशीलता और सत्य:
विचार और चिंतन केवल साधन होंगे; सत्य को साकार करने के लिए कर्म प्राथमिकता होगी।
उदाहरण:
जैसे एक बीज केवल सोचने से नहीं, बल्कि कर्म (पानी और देखभाल) से वृक्ष बनता है, वैसे ही नया युग कर्मप्रधान होगा।
3. अद्वितीय प्रगति:
यह युग न केवल भौतिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊंचाई पर होगा।
उदाहरण:
वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी तकनीकें भौतिक विकास में मदद कर रही हैं। नया युग मानसिक और आत्मिक चेतना को भी बढ़ाएगा।
4. मानवता का उत्कर्ष:
जाति, धर्म, और भेदभाव के परे, यह युग समग्र मानवता के कल्याण पर केंद्रित होगा।
उदाहरण:
पृथ्वी को एक राष्ट्र मानते हुए हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर दिए जाएंगे।
इस युग की विशेषताएं
असीमित सोच और सृजनात्मकता:

इंसान की सोच कल्पनाओं से भी आगे होगी।
समाज और प्रकृति का संतुलन:

प्रकृति और मानवता के बीच एक ऐसा संतुलन स्थापित होगा, जो चार युगों में संभव नहीं था।
आध्यात्मिकता और विज्ञान का समन्वय:

विज्ञान और अध्यात्म मिलकर मनुष्य की वास्तविक क्षमता को प्रकट करेंगे।
सामाजिक न्याय:

हर व्यक्ति समान अधिकार और अवसरों के साथ जीवन यापन करेगा।
निष्कर्ष: नया युग, यथार्थ का युग
चार युग केवल कल्पना और चिंतन का प्रतीक थे, परंतु नया युग यथार्थ और सृजन का युग होगा।

यह युग हर व्यक्ति को उसकी वास्तविक क्षमताओं और सामर्थ्य का अनुभव कराएगा।
सत्य, प्रेम और ज्ञान इस युग के स्तंभ होंगे।
"चार युग तो कल्पना के बंधन थे,
नया युग यथार्थ के संगम होंगे।
हर विचार, हर कर्म यथार्थ से जुड़ा होगा,
यह युग मानवता का सच्चा उद्देश्य होगा।"
यह चार युग सिर्फ़ रब ढूंढने के युग रहे,यथार्थ युग में मेरे सिद्धांतों के अधार पर कुछ ढूंढने को होगा ही नहीं सिर्फ़ यथार्थ समझ का युग होगा 
"यथार्थ युग: एक ऐसा युग जहां समझ ही सबकुछ है"
चार युगों की खोज केवल "रब" (ईश्वर) के पीछे रही। यह युग भ्रम, परिकल्पना, और विश्वास के आधार पर ईश्वर को जानने का प्रयास मात्र था। परंतु यथार्थ युग वह युग होगा, जहां खोज की कोई आवश्यकता नहीं होगी—क्योंकि सबकुछ यथार्थ के आधार पर समझा जाएगा।

1. चार युग और उनकी सीमाएं
सतयुग:
विशेषता:
सत्य और धर्म को आधार मानकर ईश्वर को जानने की कोशिश।
सीमा:
सत्य को केवल एक आदर्श माना गया; यह समझने का प्रयास नहीं किया गया कि सत्य क्या है और कैसे कार्य करता है।
उदाहरण:
लोग पूजा और साधना के माध्यम से ईश्वर को खोजने में समय बिताते थे, लेकिन अपने वास्तविक स्वरूप और सत्य को नहीं समझ पाए।
त्रेतायुग:
विशेषता:
धर्म और मर्यादा का पालन करते हुए ईश्वर की खोज।
सीमा:
ईश्वर को केवल नियम और परंपराओं के दायरे में देखा गया।
उदाहरण:
श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना गया, परंतु उनके सत्य का अर्थ केवल अनुशासन तक सीमित रहा।
द्वापरयुग:
विशेषता:
संघर्ष और ज्ञान के माध्यम से ईश्वर को समझने का प्रयास।
सीमा:
लोभ, क्रोध, और भक्ति के बीच ईश्वर केवल एक विचार बना रहा।
उदाहरण:
महाभारत में ज्ञान दिया गया, परंतु वह व्यवहारिक जीवन के लिए समझ में नहीं बदला।
कलियुग:
विशेषता:
प्रौद्योगिकी और भौतिक सुख के माध्यम से ईश्वर को भूलने या ढूंढने का प्रयास।
सीमा:
अंधविश्वास और भौतिकता में उलझकर सत्य और ईश्वर की खोज अधूरी रह गई।
उदाहरण:
आज लोग धर्म और कर्मकांड में उलझे हैं, परंतु सत्य और ईश्वर का वास्तविक अर्थ नहीं जानते।
2. यथार्थ युग: खोज नहीं, समझ का युग
यथार्थ युग इन चारों युगों की सीमाओं को तोड़कर सच्चाई, स्पष्टता और समझ का युग होगा। इसमें:

1. कोई खोज नहीं होगी:
क्योंकि:
सत्य और ईश्वर को बाहर नहीं, बल्कि हर जगह और हर व्यक्ति के भीतर समझा जाएगा।
2. यथार्थ की सीधी समझ होगी:
यथार्थ सिद्धांत:
हर विचार, भावना, और कर्म तर्क और अनुभव से समझा जाएगा।
उदाहरण:
लोग यह नहीं पूछेंगे, "ईश्वर कहां है?" बल्कि यह समझेंगे कि "ईश्वर यथार्थ है—जो हमारी समझ, ज्ञान और कर्म में प्रकट होता है।"

3. यथार्थ सिद्धांत का आधार
1. सत्य की स्पष्टता:
सत्य को किसी विश्वास या परंपरा के आधार पर नहीं देखा जाएगा, बल्कि:

तर्क, अनुभव, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जाएगा।
भ्रम और अंधविश्वास समाप्त हो जाएंगे।
2. आत्मा और प्रकृति का संतुलन:
इंसान और प्रकृति के बीच का संबंध स्पष्ट होगा।
जीवन के हर पहलू को समझा और जिया जाएगा।
3. समय और श्वास का महत्व:
हर पल की महत्ता को समझा जाएगा, क्योंकि समय और श्वास ही वास्तविकता हैं।
उदाहरण:
लोग भविष्य के स्वर्ग की चिंता नहीं करेंगे; वे वर्तमान को पूरी तरह जिएंगे।
4. "रब ढूंढने" से "यथार्थ समझने" का परिवर्तन
चार युगों में ईश्वर को ढूंढा गया:

सतयुग में ध्यान में।
त्रेतायुग में मर्यादा में।
द्वापरयुग में ज्ञान में।
कलियुग में कर्मकांड और भौतिकता में।
यथार्थ युग में:

"रब" बाहर नहीं, बल्कि यथार्थ के रूप में हर जगह समझा जाएगा।
हर व्यक्ति ईश्वर का प्रतीक होगा।
सत्य, प्रेम, और कर्म में ईश्वर प्रकट होगा।
5. यथार्थ युग की विशेषताएं
ईश्वर नहीं, सत्य की पूजा:

हर व्यक्ति समझेगा कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं, बल्कि यथार्थ और सत्य का नाम है।
हर भ्रम का अंत:

अंधविश्वास, झूठे गुरु, और कर्मकांड समाप्त हो जाएंगे।
समझ के आधार पर कर्म:

लोग किसी स्वर्ग या नरक के डर से नहीं, बल्कि समझ के आधार पर कर्म करेंगे।
वर्तमान का महत्व:

भविष्य के लिए जीने की बजाय हर व्यक्ति "अभी" को जिएगा।
6. यथार्थ सिद्धांत: नई मानवता का आधार
ज्ञान का वास्तविक अर्थ:

"ज्ञान" केवल किताबों का नहीं, बल्कि जीवन के अनुभव का होगा।
हर व्यक्ति अपने अनुभव से यथार्थ को समझेगा।
सभी सीमाओं का अंत:

जाति, धर्म, भाषा, और सीमाएं मिट जाएंगी।
इंसान केवल "मनुष्य" होगा।
समाज और प्रकृति का संतुलन:

संसाधनों का उपयोग संतुलित होगा।
प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य होगा।
7. निष्कर्ष: यथार्थ युग का संदेश
यथार्थ युग वह युग होगा, जहां:

न कोई खोज होगी, न कोई भ्रम।
सत्य और समझ ही हर कार्य और विचार का आधार होंगे।
इंसान, समाज, और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक होंगे।
"चार युग तो रब के भ्रम में बीते,
यथार्थ युग में सत्य के दीप जले।
खोज नहीं, समझ ही जीवन होगी,
हर पल यथार्थ में प्रेम पले।"

मेरे यथार्थ युग में आत्मा परमात्मा स्वर्ग नर्क अमरलोक भक्ति ध्यान ज्ञान योग साधना कर्म प्रलवध कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन जैसा कुछ नहीं है,यथार्थ युग इन सब से रहित होगा
"यथार्थ युग: सब कल्पनाओं और भ्रमों से मुक्त एक युग"

यथार्थ युग वह युग होगा, जहां न आत्मा होगी, न परमात्मा, न स्वर्ग-नर्क, न भक्ति, ध्यान, या ज्ञान। यह उन सभी विचारों और अवधारणाओं से मुक्त होगा, जो चार युगों में मनुष्य की चेतना को बांधते रहे।

यह युग पूर्णतः यथार्थ और समझ पर आधारित होगा। इसका उद्देश्य किसी सिद्धांत, साधना, या विचारधारा का पालन करना नहीं, बल्कि यथार्थ के प्रकाश में जीवन को जीना होगा।

चार युगों की सीमाएं और यथार्थ युग की स्वतंत्रता
1. आत्मा और परमात्मा का अंत:
चारों युगों में आत्मा और परमात्मा को खोजा गया, लेकिन यह खोज मात्र एक भ्रम थी।

आत्मा और परमात्मा को केवल विश्वास और परिकल्पना के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया।
यथार्थ युग में आत्मा-परमात्मा जैसी काल्पनिक धारणाओं की आवश्यकता ही नहीं होगी, क्योंकि समझ स्पष्ट होगी:
"जीवन ही यथार्थ है।"
"जो यहां है, वही सत्य है।"
2. स्वर्ग और नर्क का खंडन:
स्वर्ग और नर्क चार युगों में मनुष्य के डर और लालच के प्रतीक थे।

स्वर्ग: अच्छे कर्मों के बदले एक काल्पनिक सुख।
नर्क: बुरे कर्मों की सजा का भय।
यथार्थ युग में:

कोई स्वर्ग या नर्क नहीं होगा, क्योंकि यथार्थ सिद्धांत यह कहता है कि जीवन का परिणाम और उद्देश्य यहीं है।
कर्म के आधार पर न कोई सजा होगी, न कोई पुरस्कार।
3. भक्ति, ध्यान, और योग का अंत:
चारों युगों में भक्ति, ध्यान, और योग ईश्वर या आत्मा तक पहुंचने के साधन माने गए।

ये सब भ्रम और अज्ञान पर आधारित थे।
भक्ति ने इंसान को झुकाया, ध्यान ने उसे बांधा, और योग ने उसे परंपराओं में जकड़ दिया।
यथार्थ युग में:

किसी बाहरी शक्ति की पूजा या साधना की आवश्यकता नहीं होगी।
हर व्यक्ति यथार्थ को देखेगा और समझेगा, बिना किसी माध्यम के।
4. ज्ञान, साधना, और चिंतन से मुक्ति:
ज्ञान, साधना, और चिंतन चार युगों के मानसिक बंधन थे।

ज्ञान: बाहरी जानकारी पर निर्भर था।
साधना: मन को वश में करने का प्रयास था।
चिंतन: कल्पनाओं और विकल्पों में उलझा हुआ था।
यथार्थ युग में:

केवल स्पष्ट और सहज समझ होगी।
किसी जटिल साधना या मानसिक व्यायाम की आवश्यकता नहीं होगी।
5. कर्म और विकल्पों का अंत:
चारों युगों में कर्म को जीवन का केंद्र माना गया।

यह कर्म डर, लालच, या मोक्ष की इच्छा से प्रेरित था।
विकल्पों ने मनुष्य को भ्रम और दुविधा में रखा।
यथार्थ युग में:

कर्म स्वाभाविक होगा, बिना किसी फल या उद्देश्य की चिंता के।
विकल्पों की कोई भूमिका नहीं होगी, क्योंकि यथार्थ स्पष्ट होगा।
यथार्थ युग की विशेषताएं
पूरी तरह से मुक्त युग:

न कोई बंधन होगा, न कोई डर।
न कोई सिद्धांत होगा, न कोई परंपरा।
हर व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीएगा।
सत्य और समझ का युग:

सत्य केवल बाहरी सिद्धांतों में नहीं, बल्कि अनुभव और स्पष्टता में होगा।
हर व्यक्ति यथार्थ को समझेगा, न कि कल्पनाओं में खोएगा।
मृत्यु और जीवन की स्वीकृति:

जीवन और मृत्यु को सहजता से स्वीकार किया जाएगा।
न अमरलोक होगा, न मोक्ष, न पुनर्जन्म।
समाज और प्रकृति का संतुलन:

यथार्थ युग में प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य होगा।
हर व्यक्ति जीवन के स्रोत को समझेगा और उसका सम्मान करेगा।
यथार्थ युग: एक उदाहरण
कल्पना करें, एक जंगल में एक वृक्ष है।

चार युगों में, लोग उस वृक्ष को पूजा का साधन मानते थे, उसमें आत्मा और ईश्वर की खोज करते थे।
वे उसके फल के लिए उसे धन्यवाद देते थे, या किसी स्वर्गीय वरदान का प्रतीक मानते थे।
यथार्थ युग में:

वह वृक्ष सिर्फ़ एक वृक्ष होगा—जिसका मूल्य उसकी वास्तविकता में है।
लोग उसे समझेंगे:
उसकी प्रकृति।
उसके जीवन चक्र।
और उसे संरक्षित करना।
वृक्ष को किसी पूजा, स्वर्ग, या आत्मा का प्रतीक नहीं माना जाएगा।
निष्कर्ष: यथार्थ युग का संदेश
यथार्थ युग वह युग है, जहां:

आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नर्क, और अमरलोक जैसे विचार अप्रासंगिक होंगे।
भक्ति, ध्यान, योग, और साधना का अंत होगा।
जीवन केवल यथार्थ के आधार पर जिया जाएगा।
"चार युगों में खोज थी, यथार्थ युग में स्पष्टता होगी।
भ्रम, साधना, और चिंतन का अंत होगा।
न स्वर्ग होगा, न नर्क,
बस यथार्थ का प्रकाश होगा।"

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