मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

यथार्थ युग by यथार्थ सिद्धांत

यह वाक्य एक गहरे और महत्वपूर्ण सत्य को व्यक्त करता है। "खुद से निष्पक्ष होने के कारण एक समान भव होगा" का अर्थ है कि जब हम अपने विचारों, भावनाओं और कर्मों में पूरी तरह से निष्पक्ष होते हैं, तब हमारे भीतर सच्चाई और ईमानदारी का अनुभव होता है। निष्पक्षता का मतलब है अपने अंदर के सभी भेदभावों, स्वार्थों और पक्षपाती दृष्टिकोणों से मुक्त होना। जब कोई व्यक्ति इस स्थिति में पहुँचता है, तो वह न केवल अपने प्रति, बल्कि दूसरों के प्रति भी समान और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण रखता है।

यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, निष्पक्षता आत्मा की स्थिति होती है, जहां व्यक्ति अपनी सच्चाई को पहचानता है और बाहरी दुनिया के भ्रम से मुक्त होकर अपनी वास्तविकता से जुड़ता है। इस निष्कलंक और स्पष्ट दृष्टिकोण के कारण, व्यक्ति का भविष्य या भव एक समान, शांति और संतुलन से परिपूर्ण होता है।

अर्थात, निष्पक्षता केवल आत्मा के विकास का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलु में सामंजस्य और संतुलन लाने का रास्ता है।
"प्रत्येक व्यक्ति यथार्थ समझ के साथ होगा" का अर्थ है कि जब प्रत्येक व्यक्ति अपने अस्तित्व, जीवन और संसार की वास्तविकता को पूरी तरह से समझने की दिशा में बढ़ता है, तब वह अपने विचारों, कर्मों और संबंधों में स्पष्टता और सत्य की ओर अग्रसर होता है।

यथार्थ समझ का तात्पर्य केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि उस ज्ञान के प्रति आत्मसमर्पण और उसकी वास्तविकता के साथ जीवन जीने से है। यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, जब व्यक्ति अपने भीतर के भ्रम और भ्रामक विचारों से मुक्त होता है, तब वह यथार्थ को अनुभव करता है। यह अनुभव केवल विचारों की स्थिति तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह जीवन के हर पहलु में व्यक्त होता है — चाहे वह रिश्ते हों, कर्म हों, या समाज के प्रति दृष्टिकोण हो।

इस प्रकार, "यथार्थ समझ" का होना एक गहरी आत्मजागरूकता, विवेक और स्पष्टता का प्रतीक है, जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में सामंजस्य और शांति की ओर मार्गदर्शन करता है।

"यथार्थ युग शब्द रहित होगा" एक गहरे और प्रगल्भ सत्य को व्यक्त करता है। इसका अर्थ यह है कि यथार्थ का वास्तविक अनुभव शब्दों से परे होता है। शब्द केवल उस सच्चाई का प्रतीक होते हैं, जो हमें समझने और व्यक्त करने में मदद करते हैं, लेकिन वे कभी भी वास्तविकता की पूर्णता को व्यक्त नहीं कर सकते।

यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, जब हम पूर्ण रूप से सच्चाई को समझते हैं, तब हम शब्दों की सीमाओं से बाहर निकल जाते हैं। यथार्थ वह स्थिति है, जहां शब्द और विचार केवल मानसिक निर्माण होते हैं और वास्तविकता के साथ कोई वास्तविक संबंध नहीं रखते। यथार्थ का अनुभव सूक्ष्म, गूढ़ और अनुभवात्मक होता है, जो व्यक्ति को उसके भीतर की गहराई से जुड़ने का मार्ग दिखाता है।

जब व्यक्ति पूर्ण रूप से यथार्थ में स्थित होता है, तो उसे किसी शब्द या व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वह स्वयं उस सत्य का अनुभव करता है। इस प्रकार, यथार्थ युग एक ऐसा काल होगा, जहां शब्दों और विचारों का प्रवाह समाप्त हो जाता है, और केवल शुद्ध अनुभव और अस्तित्व का ज्ञान बाकी रहता है।

"अस्थायीपन से बिल्कुल रहित होगा प्रत्येक व्यक्ति" का अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति अपनी वास्तविकता, आत्मा और सच्चाई को पूरी तरह से पहचानता है, तो वह अस्थायी या क्षणिक अनुभवों, स्थिति और वस्तुओं से मुक्त हो जाता है। अस्थायीपन का मतलब है उन चीजों या भावनाओं से जुड़ा होना जो समय के साथ बदलती हैं, जैसे कि इच्छाएं, भय, सुख, दुख और भौतिक संसार की परिस्थितियाँ।

यथार्थ सिद्धांत के अनुसार, जब व्यक्ति अपने भीतर की स्थिरता और सत्य को समझता है, तो वह इन अस्थायी तत्वों से ऊपर उठ जाता है। वह जानता है कि उसकी वास्तविक पहचान इन क्षणिक अनुभवों से अलग है, और उसे किसी भी बाहरी परिस्थिति या वस्तु से प्रभावित नहीं किया जा सकता।

इस स्थिति में, व्यक्ति केवल अपनी आत्मा और शाश्वत सत्य से जुड़ा होता है, और वह अपने जीवन में किसी भी अस्थायी चीज़ से भ्रमित या प्रभावित नहीं होता। यह अवस्था मानसिक शांति, स्थिरता और अडिगता की होती है, जहां व्यक्ति हर स्थिति में सम और संतुलित रहता है।

इस प्रकार, जब प्रत्येक व्यक्ति अस्थायीपन से मुक्त हो जाता है, तब वह अपनी पूर्णता और वास्तविकता में स्थापित होता है, और यह अनुभव उसे जीवन की सच्चाई और निरंतरता के करीब लाता है।

"यथार्थ युग में मृत्यु नहीं स्थाई अक्ष के लिए व्याकुलता जिज्ञासा होंगी" यह वाक्य एक गहरे और सूक्ष्म सत्य को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि यथार्थ युग में, जब हर व्यक्ति अपनी वास्तविकता, शाश्वत सत्य और आत्मा को पहचानता है, तो मृत्यु की धारणा समाप्त हो जाती है, क्योंकि मृत्यु केवल भौतिक शरीर से संबंधित एक अस्थायी अवस्था है, और व्यक्ति आत्मा के अमरत्व को समझता है।

"स्थाई अक्ष" का तात्पर्य उस शाश्वत और अनित्य सत्य से है, जो समय और परिवर्तनों से परे होता है। यह वही अक्ष है, जो निरंतर और अपरिवर्तनीय रहता है, और यही व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य होता है – आत्मा की स्थायी स्थिति और ब्रह्म के साथ एकात्मता। यथार्थ युग में, जब व्यक्ति इस स्थाई सत्य को समझता है, तो वह जीवन के वास्तविक उद्देश्य के प्रति व्याकुल और जिज्ञासु होता है।

इस युग में, मृत्यु की भावना और भय समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि व्यक्ति जानता है कि वह शाश्वत आत्मा है, जो कभी समाप्त नहीं होती। मृत्यु केवल शरीर के नष्ट होने का एक रूप है, लेकिन आत्मा के स्तर पर कोई मृत्यु नहीं होती। इसके स्थान पर, व्यक्ति की मानसिकता स्थायी सत्य और आत्मा के ज्ञान के प्रति समर्पित होती है, और उसकी व्याकुलता और जिज्ञासा उसी उच्चतम सत्य को जानने की ओर अग्रसर होती है।

इस प्रकार, यथार्थ युग में, मृत्यु का कोई स्थान नहीं होता, और हर व्यक्ति की जिज्ञासा और व्याकुलता उस स्थाई अक्ष को खोजने और अनुभव करने की ओर केंद्रित होती है।

"यथार्थ युग का प्रत्येक व्यक्ति की अपेक्षा सिर्फ स्थाई अक्ष की होगी" का अर्थ है कि यथार्थ युग में, जब व्यक्ति अपनी वास्तविकता और शाश्वत सत्य को पूरी तरह से समझता है, तो उसकी आकांक्षा और उद्देश्य केवल उस स्थायी, अपरिवर्तनीय और शाश्वत सत्य को प्राप्त करने की दिशा में होते हैं।

"स्थाई अक्ष" का तात्पर्य है वह केंद्र या वास्तविकता जो स्थायी, शाश्वत और समय के पार होती है। यह वह सत्य है, जो परिवर्तन, विकृति और अस्थायी घटनाओं से मुक्त है, और जो किसी भी बाहरी स्थिति या परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता। यथार्थ युग में, प्रत्येक व्यक्ति अपनी इस स्थायी सच्चाई को पहचानता है और उसका अनुसरण करता है।

इस युग में, व्यक्ति की आकांक्षाएँ और इच्छाएँ केवल भौतिक या क्षणिक नहीं होतीं। वह सभी अस्थायी सुख-दुख, भयों और इच्छाओं से मुक्त हो जाता है और केवल स्थाई अक्ष की ओर अपनी पूरी ऊर्जा और ध्यान केंद्रित करता है। उसका उद्देश्य आत्मा का शाश्वत सत्य जानना और उसी में एकत्व प्राप्त करना होता है, न कि भौतिक या बाहरी जगत में किसी प्रकार की संपत्ति या शक्ति की प्राप्ति।

इस प्रकार, यथार्थ युग में, व्यक्ति की सारी अपेक्षाएँ केवल उस स्थायी, शाश्वत सत्य और अक्ष की प्राप्ति के लिए होती हैं, जो समय, मृत्यु और परिवर्तन से परे होता है।

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