गुरुवार, 16 जनवरी 2025

'यथार्थ युग मेरे सर्ब श्रेष्ट गुरू जी के चरण कमलों में समर्पित हैं

मैं इतना अधिक छोटा निर्मल हो गया हूं कि अत्यंत गहराई स्थाई ठहराव में हूं , भौतिक सृष्टि की शुद्ध बुद्ध नहीं है मैं हमेशा खुद में संपूर्ण रूप से रहा मुझे किसी से कुछ मतलब नहीं है, यह अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि ऐसी ही थी मै हमेशा इस में था ही नहींमैं इतना अधिक छोटा निर्मल हो गया हूं कि अत्यंत गहराई स्थाई ठहराव में हूं , भौतिक सृष्टि की शुद्ध बुद्ध नहीं है मैं हमेशा खुद में संपूर्ण रूप से रहा मुझे किसी से कुछ मतलब नहीं है, यह अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि ऐसी ही थी मै हमेशा इस में था ही नहींमैं इतना अधिक छोटा निर्मल हो गया हूं कि अत्यंत गहराई स्थाई ठहराव में हूं , भौतिक सृष्टि की शुद्ध बुद्ध नहीं है मैं हमेशा खुद में संपूर्ण रूप से रहा मुझे किसी से कुछ मतलब नहीं है, यह अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि ऐसी ही थी मै हमेशा इस में था ही नहींमैं ऐसा मरा बापिस एक पल के लिए भी जिंदा नहीं हो सका हजारों कोशिश करने के बावजूद भी, इस लिए मेरा मुख ही नहीं है कुछ वर्णन कर पाऊं, तो ही दूसरों लोगों के मुख से मेरे शब्द अच्छे लगते हैं,मेरे सिद्धांतों के अधार पर आधारित मेरे यथार्थ युग के लिए जीवित ही हमेशा के लिए कोई भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति रहने के लिए खुद ही खुद में संपूर्ण रूप से सक्षम निपुण सर्व श्रेष्ठ समर्थ समृद है, कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं है,जो भी वास्तविक सत्य निरंतर रुप से हो रहा हैं उसे ही अस्थाई जटिल बुद्धि से हट कर स्वीकार करना है और हर पल वर्तमान के उसी एक पल में रहते हुए मस्त रहना अतीत और भविष्य की चिंता के बिना, क्यूंकि करने ढूंढने कुछ हैं ही नहीं इतनी अधिक श्रेष्ठता की बात है कि हम इंसान हैं समझने की क्षमता के साथ हैं इस बड़ी बात कुछ हो ही नहीं सकती इसी में भरपूर संतुष्टि है,खुद की अस्थाई जटिल पक्षता के कारण खुद के सीमित हित साधने तक ही है प्रत्येक व्यक्ति, हम अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि का एक मत्र हिस्सा हैं यह छोटी बात नहीं है प्रकृति ने समस्त सृष्टि को संरक्षण के लिए सर्व श्रेष्ठ इंसान प्रजाति की उत्पति की थी पर यही इंसान प्रजाति खुद ही खुद का प्रकृति के विनाश की ओर अधिक तीव्रता से आगे बढ़ रही हैं, पिछले चार युगों से इसलिए मैंने अपने यथार्थ युग का आग़ाज़ किया है जो अतीत के चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ प्रत्यक्ष हैं स्पष्ट है समक्ष है संपूर्ण रूप से संतुष्टि से भरपूर है, मेरे सिद्धांतों तर्क तथ्यों के आधार पर,कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन ध्यान ज्ञान विज्ञान योग साधना आस्था श्रद्धा विश्वास प्रेम से ही अहम घमंड अंहकार की उत्पति होती हैं, जिस से कोई बहर निकल ही नहीं सकता क्योंकि कम से कम अस्थाई जटिल बुद्धि में तो बिल्कुल भी कोई विकल्प नहीं है अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर सिर्फ़ जीवन व्यापन ही कर सकता हैं और कुछ भी नहीं, अतीत गवा है, इंसान प्रजाति ने जीवन व्यापन के शिवाय कुछ किया ही नहीं तभी इंसान शरीर की संज्ञा के साथ सिर्फ़ एक जनवर ही है आज भी, मानव प्रजाति का अस्तित्व ही नहीं समझ पाया
मैं आज भी प्रत्येक व्यक्ति खुद सा ही मानता हूं अंतरिक और भौतिक रूप से क्योंकि एक समान ही तो है दोनों विकल्पों स्तरों पे कोई भी अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि का जीव एक समान ही तो है, प्रत्येक कण कण में अस्थाई रूप से और स्थाई पन से वो अन्नत सूक्ष्मता मौजूद है, बिना संकोच के,हम भी उसी निश्चित का एक मत्र हिस्सा ही हैं,एक कण में और हम में किसी भी प्रकार का स्थाई और अस्थाई रूप से अंतर नहीं है, इसी लिए इसी मिटी से जुड़े रहे क्यूंकि जो यह पृथ्वी की मिट्टी बातावरण है यह शायद ही अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में और कही मिले, यहां सब कुछ प्रत्यक्ष अलग से एक दृष्टिकोण उत्पन करता हैं, यहां का मानव खुद को समझने की क्षमता के साथ सर्व श्रेष्ठ उत्तम समर्थ समृद निपुण सक्षम हैं खुद ही खुद में अगर अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने की क्षमता निर्मलता गंभीरता दृढ़ता प्रत्यक्षता के साथ हैं, ऐसा सब सारी कायनात में और कही भी नहीं है सिर्फ़ सर्व श्रेष्ठ सर्व गुण तत्व संपन्न सर्व श्रेष्ठ पृथ्वी पर संभव है,
यह मेरे प्रति मेरी समझ थी थी मुझे रूप से सिर्फ़ खुद को समझना था अस्थाई समय निश्चित रूप से कार्य रत नहीं है क्या पाता कल हो न हो, सिर्फ़ एक पल में ही खुद को समझने की वृति के साथ उतावला पन जरूर रहता था, मुझे अपने सर्व श्रेष्ठ गुरु के प्रत्येक शब्द को तर्क तथ्यों मेरे सिद्धान्तों से स्पष्ट साफ़ सिद्ध कर खुद को संतुष्ट करने के पीछे का कारण यह था कि गुरु रब से भी खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ हिर्दे से माना था यहां दूसरा विकल्प भी नहीं था इस कारण गुरु के बिल्कुल साथ रहते भी शंका की दृष्टि बनी रहती थी की, कही गुरु की वृति रब की संज्ञा भी उपजी या कुछ ऐसा पाया जो प्रत्यक्षता के विरुद्ध हो तत्पर्य अप्रत्यक्ष अलौकिक रहस्य हो मेरा अंतरिक दृढ़ता डगमगा सकती थी, क्यूंकि रब को समझता हु रब कैसा हो सकता हैं तो ही रब से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ गुरु को माना तो खुद को ही स्पष्ट करने के लिए खुद में ही विवेक के साथ चिंतन मनन करना जरूरी था, आज तक मै एक पल भी न कभी न ही सोया हूं न ही कभी जगा हूं निरंतरता में ही हूं यह एक अदद बन चुकी हैं,मेरी औकात नहीं कि यहां मैं हूं उस के बारे में सोच भी पाऊं क्योंकि गुरु के प्रेम इश्क में मैंने गुरु दीक्षा के साथ दिए हुए नियम मर्यादा मान्यता परंपरा को नहीं माना क्योंकि इश्क़ हमेशा प्रत्येक युग काल में नियम मर्यादा मान्यता परंपरा का उल्लंघन करता हैं, मेरे गुरु ने ही हर पल पल में अंतरिक रूप से मुझे संभाला, मेरा सच्चा सर्व श्रेष्ठ साहिब मुझ से इतना करीब था की इतना मैं भी नहीं,फ़िर गुरु ने यह कहा था कि आप खुली आंखों से भी संपूर्ण रूप में अंतरिक सर्व श्रेष्ठ दुनियां में रहते हो मुझे उस से कोई मतलब नहीं था, पर मैं तो खुद के ह्रदय से उत्पन कि हुई गुरु के प्रेम इश्क की दुनियां में रहता था जिस में मेरा भी स्थान नहीं था,उसी में दिन रात रमा रहता था जिस के लिए खुद का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया था,मुझे मेरे सच्चे सर्व श्रेष्ठ साहिब ने सत्य पर चलने का आदेश दिया था, शायद सत्य को इतना अधिक महत्व दिया गुरु जी को भी छोड़ क्यूंकि गुरु का शब्द ही सर्वश्रेष्ठ था मुझे गुरु के बहरी शब्द से अंतरिक को समझना थामुझे मेरे सच्चे सर्व श्रेष्ठ साहिब ने सत्य पर चलने का आदेश दिया था, शायद सत्य को इतना अधिक महत्व दिया गुरु जी को भी छोड़ क्यूंकि गुरु का शब्द ही सर्वश्रेष्ठ था मुझे गुरु के बहरी शब्द से अंतरिक को समझना थापहले दिन मेरे सच्चे सर्व श्रेष्ठ साहिब जी के यह शब्द थे कि निर्मल और गंभीर दृढ़ हो आप यहीं शब्द को क़ायम रखने की कोशिश थी अब तक,खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ समझ के साथ अपने अन्नत सूक्ष्म स्थाई अक्ष में समहित हूं यहां मेरे उस अन्नत सूक्ष्म अक्ष के प्रतिभिम्व का भी स्थान नहीं है और कुछ होने का तो तत्पर्य ही नहीं हैखुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ समझ के साथ अपने अन्नत सूक्ष्म स्थाई अक्ष में समहित हूं यहां मेरे उस अन्नत सूक्ष्म अक्ष के प्रतिभिम्व का भी स्थान नहीं है और कुछ होने का तो तत्पर्य ही नहीं है,
मेरे गुरु सा गुरु जब से इंसान अस्तित्व में आया तब से लेकर अब तक नहीं है क्योंकि मैं अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अस्तित्व के पहले के अन्नत सूक्ष्म स्थाई ठहराव गहराई में अपने अन्नत सूक्ष्म अक्ष में समहित हूं, इसलिए अस्थाई अन्नत विशालता और स्थाई अन्नत सूक्ष्मता की समझ के साथ प्रत्यक्ष हूं, जो प्रत्यक्ष इतनी अधिक गहराई गहनता विवेकता सरलता सहजता निर्मलता गंभीरता दृढ़ता प्रत्यक्षता से चला होगा उस का गुरु तो पिछले चार युगों में तो बिल्कुल हो ही नहीं सकता , मेरी औकात तो इतनी भी नहीं कि इतने अधिक उच्च गुणवत्ता वाले गुरु के दर्शन इन बिष्ट से निर्मित शरीर से उन से बात दर्शन या वाणी सुन सकू, मैं नीच मैं काफ़िर जो अपने ही ऊंचे अस्तित्व को ही नहीं समझ सका,मेरी गुस्ताखी की मेरी अस्थाई जटिल बुद्धि ही थी, मेरा खुद का दुश्मन दूसरा कोई बहर का कोई था ही नहीं मेरा ख़ुद का ही अस्थाई जटिल बुद्धि से उपजा अस्तित्व ही था, जिसे मैंने सर्व श्रेष्ठ गुरु के चरण कमल में समर्पित कर दीक्षा के बाद शब्द प्रमाण में खुद को नहीं बंधने के पीछे का कारण यह था कि झूठी दुनियां के लिए प्रत्येक जीव गंभीर दृढ़ होता हैं, मैं गुरु के असीम प्रेम इश्क में खो गया खुद की शुद्ध बुद्ध चेहरा तक भुला दिया आज भी मुझे मेरा ही चेहरा याद नहीं इक पल पहले क्या हुआ या फ़िर क्या किया याद नहीं, संपूर्ण रूप से अस्थाई जटिल बुद्धि का निष्कर्ष करना तो मेरी औकात नहीं, यह सब तो मेरे सर्व श्रेष्ठ गुरु के चरण कमल के प्रेम के कारण हुआ, रब का अस्तित्व तो दीक्षा से पहले ही कर दिया था , क्योंकि निर्मलता से ह्रदय से यह स्वीकार किया था कि मेरा गुरु रब से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ है,यह सब खुद को तर्क तथ्यों से सिद्ध स्पष्ट करवा कर ही लगता गुरु के ही प्रेम में रमा रहा आज भी जो कुछ भी पाया यथार्थ युग,यथार्थ सिद्धांत, यथार्थ समझ,यथार्थ इश्क़, यथार्थ ग्रंथ, यह सब मेरे गुरु के चरण कमल के मात्र रख समान भी नहीं हैं,जो पिछले चार युगों में कोई भी आज तक नहीं कर पाया वो सब करवाने के पीछे का संपूर्ण वास्तविकता श्रेय प्रत्यक्ष मेरे सर्व श्रेष्ठ गुरु के चरण कमल में समर्पित हैं, मेरे गुरु ने मुझे मेरे असीम प्रेम को निखारने के लिए जिस पल जैसा बोला मैं इकलौता नीच काफ़िर जिद्दी कुत्ता था जो छोटी से छोटी बात का गुच्छ कर बैठता था,जैसा मैं नीच कुत्ता था गुरु ने बेसा ही समझा कर बिन बोल सुधरे सो मेरा सर्व श्रेष्ठ साहिब मैं तो अपने ही गुरु चरणों में मस्त हो कर हर पल रमता रहा, मेरे सर्व श्रेष्ठ गुरु ने मेरे भीतर आ कर वो सब कुछ प्रत्यक्ष किया जो मुझे खुद को समझने के लिए संभव था, मैं कोटिन बंधन करने के लिए भी शेष नहीं हूं मैं इतना अधिक छोटा हूं कि मेरा अस्तित्व ही खत्म हो गया हैं जो है सो मेरा साहिब, वो सब सिद्ध स्पष्ट साफ़ तर्क तथ्यों मेरे सिद्धान्तों प्रकृति द्वारा संभावना उत्पन हुई और प्रकृति ने ही स्पष्टीकरण दे दिया,
मेरा सच्चा सर्व श्रेष्ठ समृद समर्थ गुरु मेरे ही भीतर है मुझे ज़रा सी भी शंका नहीं है मेरा सर्व श्रेष्ठ साहिब मुझ में ही शाश्वत वास्तविक सत्य हैं जो मेरे भीतर से ही प्रकट हुआ, आज तक चार युगों में कोई खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु ही नहीं हुआ, कोई खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि से निष्पक्ष नहीं हुआ,कोई भी आज तक खुद को ही नहीं समझ पाया, अतीत से लेकर अब तक प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर अनेक विचारधारा के अनेक दृष्टिकोण अपनाता रहा, और एक मानसिक रोगी बना रहा, आज तक सिर्फ़ बेहोशी में ही प्रत्येक जीता रहा और दूसरी अनेक प्रजातियों की भांति ही मरता रहा, आज तक प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ जीवन व्यापन को ही गंभीरता दृढ़ता से लेता रहा, पर अब मेरा यथार्थ युग प्रत्येक सरल सहज निर्मल लोगों को इस में मुख्य प्रवेश के निमंत्रण देता हैं कि प्रत्येक व्यक्ति खुद ही खुद में संपूर्ण सक्षम निपुण सर्व श्रेष्ठ समृद समर्थ हैं इस में रहने के लिए जिस के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं है जैसा भी कोई स्वविक है वैसा ही संपूर्ण है सिर्फ़ खुद को समझना है करने ढूंढने को कुछ हैं ही नहीं है, क्यूंकि कुछ भी किसी का कभी भी गुम ही नहीं था सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर ही सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए जी रहा था, जिस में खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने का कोई विकल्प ही नहीं, खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने के लिए खुद ही खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होना पड़ता हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर खुद को स्थापित किया जाता हैं, खुद ही खुद का अस्तित्व खत्म करने के लिए अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होना पड़ता हैंकोई जितना भी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर परम सत्ता के बारे में सोच सकता हैं मैं उस को उस से खरबों गुणा अधिक उस को उस के अंतःकरण से उसे ही समझा कर प्रत्यक्ष समक्ष संतुष्ट कर सकता हूं तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों के साथ, मेरे सिद्धांतों के अधार पर आधारित स्पष्टीकरण यथार्थ युग है, जो अतीत के चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ प्रत्यक्ष हैं, कोई भी व्यक्ति रह सकता हैं, खुद ही खुद को समझने के लिए सिर्फ़ एक पल ही काफ़ी हैं और कोई दूसरा समझ या फिर समझा पाय सदियां युग भी कम है,

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