यथार्थ युग गीत
चौथे युग से परे नया एक रंग,
यथार्थ युग का मधुर तरंग।
न झूठ का भार, न छल का प्रहार,
सत्य का दीप, जगत का आधार।
मस्ती में डूबा हर मन मयूर,
सुरभित हो जीवन, न कोई दूर।
न क्रोध, न द्वेष, न द्वंद्व का जाल,
हर दिल में बस प्रेम का सवाल।
यह युग है निराला, यह युग है नवीन,
हर दिशा में चमके सत्य का मीन।
अचंभित हो देखें सारे संसार,
कैसे खिला यह सत्य का उद्गार।
स्वर मीठे, सुर बहके, मन को लुभाएं,
हर हृदय की गहराई में घर बनाएं।
यथार्थ युग के इस अद्भुत राग में,
हर प्राणी झूमे स्नेह अनुराग में।
तो आओ, मिलकर गाएं इस युग का गान,
सत्य, प्रेम, और शांति का नया विधान।
यथार्थ के स्वर में उठाएं हम तान,
सजाएं जीवन को, बनाएं स्वप्न स
यथार्थ युग का गान
यह युग नहीं केवल समय का प्रवाह,
यह है चेतना का शाश्वत कराह।
मिथ्या से मुक्त, अज्ञान से परे,
यह है सत्य का अद्वितीय सवेरे।
न धर्म का बंधन, न कर्म का जाल,
यह युग है स्वच्छ, सरल, निष्कलंक चाल।
न परछाई का डर, न भ्रम का घेरा,
यह युग है जैसे सत्य का बसेरा।
यहां न पूजा का स्वरूप छलावा,
न कोई गुरु जो सत्य से भटकावा।
यहां तो बस ज्ञान का उजाला,
हर मन को बांधता एक प्यारा प्याला।
जीवन यहां न सीमाओं में बंधा,
हर सांस यहां अमृत से सना।
समय का मोल यहां हर कोई जाने,
क्षण-क्षण में सत्य का रस पहचाने।
न कोई आडंबर, न कोई दिखावा,
निज अस्तित्व का यहां खुद ही प्रकाशावा।
हर आत्मा हो जैसे दर्पण निर्मल,
सत्य की किरणें झलके हर पल।
यह युग है सत्य का, यह युग है प्रकाश,
हर मन में उपजे प्रेम का सुवास।
संगीत यहां का है ब्रह्म का गान,
हर शब्द यहां बने अमर विधान।
तो चलो, इस युग का जयकार करें,
हर दिल को सत्य से सरोबार करें।
यथार्थ का यह अद्भुत संगीत,
जग को दे प्रेम, शांति और पुनीत।
यथार्थ युग का दिव्य महागान
यह युग नहीं मात्र समय का चक्र,
यह है सत्य की अनंत धारा का पथ।
हर क्षण में छिपा है ब्रह्म का साक्षात्कार,
हर जीव में जागता है आत्मा का आभार।
यहां विचारों में न कोई विष का बीज,
केवल प्रेम का अमृत, सत्य की सजीव।
न धर्म की दीवारें, न जाति का भेद,
सत्य की छांव में सब बनें एक व्रतधारी चेत।
यहां सांसें नहीं केवल जीने का नाम,
हर श्वास में समाया ब्रह्म का आयाम।
समय का हर कण, एक ऋतु, एक ऋचा,
जो समझे इसे, वही अमर, वही अमिट प्रजा।
आत्मा का प्रकाश यहां सबको घेरे,
हर दिल में बसे सत्य के ही सवेरे।
यहां मोह का अंत, माया का संहार,
जीवन का हर पल हो जैसे सत्य का त्योहार।
यह युग नहीं बस मानवता का उपहार,
यह तो सृष्टि का ही है संपूर्ण आधार।
जहां प्रकृति के सुर में सुर मिलाएं,
जहां मनुष्य का अस्तित्व ब्रह्म से जुड़ जाए।
यहां गुरु नहीं बनते मायावी जाल,
यहां स्वयं आत्मा देती ज्ञान का कमाल।
कर्मों की दिशा स्वयं चुनती है आत्मा,
हर जीव बने जैसे ब्रह्म का दूत, अनन्ता।
यह युग है मूक पर सत्य की वाणी,
हर हृदय में गूंजे ब्रह्म की कहानी।
जीवन का हर रस यहां अमृतमय,
हर व्यक्ति बने यहां स्वयं परम सत्यमय।
तो आओ, इस युग को आत्मसात करें,
अज्ञान के परदे सदा के लिए त्याग करें।
यथार्थ का दीप जलाएं हर ओर,
सत्य के मार्ग पर बढ़ें सब और।
यहां न आरंभ, न अंत का बंधन,
सत्य ही आदि, सत्य ही अनंत जीवन।
यथार्थ युग का यह दिव्य परिमार्जन,
देता है हर जीव को मुक्तिपथ दर्शन।
यथार्थ युग का ब्रह्मस्वरूप गान
यह युग है अनहद की अनुगूंज,
जहां आत्मा से आत्मा का हो संगम पूज।
हर स्वर यहां ब्रह्म का वचन बने,
हर श्वास में सत्य का सुमन सजे।
यहां संकल्पों में नहीं कोई संशय,
हर विचार से झलके ब्रह्म का श्रेय।
न भय का स्पर्श, न मोह की छाया,
केवल चेतना का दिव्य एक माया।
यहां समय की सीमाएं हों विलीन,
हर क्षण में समाया हो अनंत ब्रह्मलीन।
जीवन का हर पल हो ज्ञान का आलोक,
हर दिशा में फैले सत्य का मधुमोक्ष।
यह युग है वह जहां 'मैं' का अंत,
जहां 'हम' और 'तुम' बनें केवल एक तंतु।
कोई विभाजन नहीं, न कोई दीवार,
सत्य की सृष्टि में सबका एक आकार।
सांसों का मोल यहां अमूल्य रत्न,
हर श्वास का अर्थ बने ब्रह्म का मंथन।
न एक भी पल व्यर्थ यहां जाए,
जीवन का हर क्षण सत्य का गीत गाए।
यहां धर्म के नाम पर छल न होगा,
न ईश्वर का कोई भ्रमजाल होगा।
हर आत्मा स्वयं बने प्रकाशस्तंभ,
सत्य ही ईश्वर, सत्य ही धरम।
यथार्थ का युग है यह आत्मदर्शन,
जहां हर जीव को मिले ब्रह्म का स्पंदन।
न उपदेश, न बाध्यताओं का भार,
स्वयं सत्य बने हर आत्मा का आधार।
यहां विचार नहीं, केवल अनुभूति का स्थान,
जहां मौन में ही हो सत्य का ज्ञान।
शब्द जहां बने ब्रह्म के संकेत,
जहां हर मन में झलके दिव्य प्रेरणाओं के वेग।
तो आओ, इस युग का वरण करें,
मिथ्या के अंधकार का दहन करें।
यथार्थ के सूरज को हर दिल में जलाएं,
सत्य के इस महासमुद्र में सब डूब जाएं।
यह युग नहीं केवल जग का परिवर्तन,
यह है सृष्टि का नया सृजन।
जहां जीवन का हर क्षण हो परिपूर्ण,
सत्य से सजीव, ब्रह्म से सम्पूर्ण।
यथार्थ युग का परब्रह्म गान
यह युग नहीं केवल परिवर्तन का प्रवाह,
यह अनंत ब्रह्म की चेतना का उन्मेष, एक नव प्रकाश।
जहां सत्य ही वाणी, सत्य ही जीवन,
जहां प्रत्येक कण में गूंजे ब्रह्म का आवाहन।
यहां 'स्वयं' का न कोई अस्तित्व बचा,
हर 'मैं' विलीन, केवल 'तत्व' ही रचा।
न अहंकार का भार, न आसक्ति का बंधन,
यहां हर हृदय में जागृत है मुक्तिकल्प दर्शन।
यहां शून्य में समाया है अनंत ब्रह्म का सार,
जहां प्रत्येक श्वास बने अमृत का आधार।
सांसों का सृजन केवल जीवन नहीं,
यह ब्रह्म के स्फुरण का उत्सव है कहीं।
न भूख, न प्यास, न कोई वासना का जाल,
हर आत्मा है ब्रह्म की दिव्यता का प्रतिपाल।
हर आंख में झलके ज्ञान का आलोक,
हर मन में जागे शांति का मधुमय शोध।
यहां समय भी थम जाता है ब्रह्म की धारा में,
जहां हर क्षण समर्पित है अनंत के सहारा में।
यह युग है वह जहां मृत्यु नहीं एक अंत,
यह आत्मा की यात्रा का नया आरंभ।
जीवन का अर्थ यहां बस जीना नहीं,
यह सत्य की लहरों में बह जाना है कहीं।
जहां मोह न बचे, न ममता का घेरा,
यहां केवल ब्रह्म का अद्वितीय बसेरा।
यहां गुरु नहीं उपदेश देते,
न कोई ग्रंथ सत्य को परिभाषित करते।
हर आत्मा बने अपनी ही ज्योति,
जहां हर जीव खोजे अपनी असीम ज्योति।
यह युग है यथार्थ का चरम आयाम,
जहां जीवन और ब्रह्म का हो संगम महान।
न संघर्ष का शोर, न द्वंद्व का भार,
यहां हर स्वर बने शांति का उद्गार।
तो आओ, इस परब्रह्म युग का स्तवन करें,
अज्ञान के आवरण का अंत करें।
सत्य, शांति और प्रेम का आलोक फैलाएं,
हर आत्मा को यथार्थ के पथ पर लाएं।
यह युग नहीं केवल ब्रह्म का अनुभव,
यह है सृष्टि का अंतिम और अनंत सत्य।
जहां जीवन का हर कण ब्रह्म से ओत-प्रोत,
जहां केवल एक है, और शेष सब शून्य है।
यथार्थ युग का ब्रह्माण्डीय उद्घोष
यह युग है सृष्टि के मूल का पुनराविष्कार,
जहां हर रचना में प्रकट हो ब्रह्म का आधार।
यहां न समय का बंधन, न स्थान का जाल,
हर जीव के भीतर बसता है ब्रह्म का विशाल।
यहां विचारों का नहीं, केवल अनुभूति का राज्य,
जहां सत्य की सरिता में हर आत्मा हो विलय।
जहां न कोई प्रश्न, न कोई उत्तर का भार,
केवल मौन में गूंजे ब्रह्म का आभार।
यह युग है वह जहां स्थूल और सूक्ष्म का विलय,
जहां भौतिकता और आध्यात्मिकता का संगम लय।
यहां दृष्टि सीमाओं को पार कर देखे,
जहां सत्य का प्रकाश हर दिशा में लेखे।
सत्य यहां केवल शब्द नहीं, वह स्वयं ब्रह्म है,
जो हर मन, हर आत्मा में अंतर्निहित है।
न वाद, न विवाद, न किसी का प्रतिकार,
यहां केवल एकता का अद्वितीय विचार।
यहां धर्म, जाति, भाषा सब बन जाएं एक,
हर हृदय में प्रकट हो आत्मा का अनमोल लेख।
जहां हर व्यक्ति स्वयं अपना दीपक हो,
जहां हर श्वास में ब्रह्म का संगीत हो।
यह युग है ब्रह्माण्डीय संगीत का प्रवाह,
जहां हर जीव समर्पित है सत्य की राह।
न कोई गुरु, न कोई शिष्य का भ्रम,
यहां आत्मज्ञान ही बनता है सर्वोच्च धर्म।
हर कदम यहां अनंत की ओर उठता है,
हर हृदय ब्रह्म की ज्योति से जुड़ता है।
न हानि, न लाभ, न माया का खेल,
यहां सत्य का प्रकाश हर भ्रम को झेल।
यहां समय और सांस का अमूल्य मान,
हर क्षण में प्रकट हो जीवन का विधान।
जहां सांस केवल जीवन का प्रतीक नहीं,
वह ब्रह्म की अनुकंपा का अंश है कहीं।
तो आओ, इस युग के सत्य में खो जाएं,
मिथ्या के पर्दों को सदा के लिए हटाएं।
हर मन, हर आत्मा, हर श्वास बने प्रकाश,
यथार्थ का यह युग करे सृष्टि का नव विलास।
यह युग नहीं केवल मानवता की पहचान,
यह ब्रह्म का स्वप्न, सृष्टि का नव विधान।
जहां सत्य, शांति, और प्रेम का हो निवास,
हर आत्मा बने अनंत का निवर्
यथार्थ युग का ब्रह्मानंद सृजन
यह युग है उस सत्य का उद्घोष,
जो सृष्टि के प्रत्येक कण में है सदोष।
जहां हर पल में छिपा है एक अनंत संकेत,
जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ दे अविलंब वेग।
यहां जीवन और मृत्यु का द्वैत नहीं टिकता,
हर क्षण अनंत के साथ एकता में दिखता।
यहां कण-कण में विद्यमान है ब्रह्म की शक्ति,
जहां मनुष्यता पाती है अपनी शाश्वत भक्ति।
यहां 'मैं' और 'तुम' का अस्तित्व मिट जाता,
संपूर्ण सृष्टि 'एक' में विलीन हो जाता।
यहां मनुष्य ब्रह्म का साक्षात दर्पण बनता,
जहां हर विचार ब्रह्म के प्रकाश में छलकता।
यहां कर्म केवल परिणाम का साधन नहीं,
यह आत्मा की सृजनशीलता का बोध है कहीं।
जहां हर कर्म ब्रह्म की लहरों में डूबा हो,
जहां सत्य ही प्रत्येक क्रिया का प्रारंभ हो।
यहां माया का मोह कोई मायने नहीं रखता,
यहां आत्मा सत्य की ज्योति में रम जाता।
यहां न कोई उपदेश, न कोई परंपरा का भार,
सत्य का अनुभव ही बनता है हर जीवन का सार।
यहां सांसों की हर धड़कन ब्रह्म का गान गाए,
जहां हर हृदय ब्रह्मानंद में नृत्य कर जाए।
यहां हर क्षण में छिपा है अनंत का सौंदर्य,
जहां जीवन और सृष्टि बने प्रेम का आदित्य।
यह युग है उस महासागर का,
जो सीमाओं से परे, शून्यता का है आकार।
जहां सत्य और प्रेम की लहरें मिलें,
जहां हर आत्मा अनंत के साथ बहें।
यहां शब्द केवल माध्यम हैं मौन को सुनने का,
जहां मौन में छिपा है ब्रह्म को समझने का रास्ता।
यहां हर स्वर आत्मा के गूढ़ रहस्य को प्रकट करे,
जहां हर हृदय ब्रह्म के आनंद में भर जाए।
यह युग है आत्मज्ञान का महोत्सव,
जहां जीवन बने ब्रह्म की रचना का उत्सव।
यहां कोई विभाजन नहीं, केवल एकता का प्रहर,
जहां हर आत्मा बने ब्रह्म का स्वयं स्वर।
तो आओ, इस यथार्थ युग को आलिंगन करें,
मोह और माया की सीमाओं को छिन्न करें।
हर हृदय में ब्रह्म का दीप जलाएं,
सत्य, शांति और प्रेम का साम्राज्य बसाएं।
यह युग नहीं केवल चेतना का प्रवाह,
यह है सृष्टि का स्वयं में विलय और निर्वाह।
जहां अनंत ब्रह्म का संगीत गूंजे हर क्षण,
यह यथार्थ युग है सृष्टि का अंति
यथार्थ युग का परमात्म प्रकाश
यह युग नहीं मात्र समय की व्याख्या,
यह स्वयं सृष्टि की अनंत साख्या।
जहां ब्रह्म और जीव का कोई भेद न शेष,
हर आत्मा हो प्रकाशमय, शून्य का संदेश।
यहां न भाषा की सीमा, न शब्दों का भार,
मौन के स्पंदन में छिपा सत्य का सार।
यहां हर श्वास बने ब्रह्म का घोष,
जहां हर अस्तित्व में हो अनंत का प्रकाश।
यहां सृष्टि स्वयं अपने आप को देखे,
हर कण में ब्रह्म की गाथा लेखे।
यहां न जन्म का प्रारंभ, न मृत्यु का अंत,
यह आत्मा का प्रवाह है, ब्रह्म की गंध।
यहां विचारों का कोई आकाश नहीं,
यहां चेतना का विस्तार अनंत सही।
जहां मनुष्य का उद्देश्य केवल भौतिक नहीं,
यहां सत्य के संग स्वयं में खो जाना सही।
यह युग है ब्रह्म के अनुभव का आलोक,
जहां हर जीव बने स्वयं ब्रह्म का शोध।
यहां द्वैत का अंत, अद्वैत का प्रारंभ,
हर आत्मा में झलके अनंत का संगम।
यहां सांसें नहीं केवल जीवन का साधन,
यहां हर श्वास हो अनंत का आवाहन।
हर पल हो जैसे ब्रह्म का उत्सव,
हर हृदय में बसता हो सत्य का स्वरूप।
यहां धर्म न हो किसी विशेष पहचान का,
यहां आत्मा का धर्म हो स्वयं सत्य का।
यहां पूजा न हो बाहरी प्रतीकों की,
यहां आत्मा की अनुभूति हो सत्य की।
यहां प्रकृति और पुरुष का अद्भुत मिलन,
हर दिशा में प्रकट हो ब्रह्म का दर्शन।
न रात्रि का अंधकार, न दिन का मोह,
यहां केवल सत्य का एकमेव स्वरूप।
यह युग है जीवन का पूर्ण ब्रह्माण्डीय सत्य,
जहां हर आत्मा का संकल्प बने यथार्थ।
न कोई गुरु, न कोई शिष्य का बंधन,
यहां आत्मा का मार्ग हो ब्रह्म का दर्शन।
तो आओ, इस परमात्म युग को स्वीकार करें,
मोह, माया और अज्ञान को तिरस्कार करें।
हर कण में सत्य का संगीत जगाएं,
हर हृदय में ब्रह्म का प्रकाश फैलाएं।
यह युग है अनंत का उद्घोष,
जहां जीवन और ब्रह्म का हो समर्पण एकमात्र जोश।
जहां सृष्टि का हर कण गाए यही गान,
यथार्थ ही सत्य है, यथार्थ ही ब्रह्म महान।
यथार्थ युग का आत्मा-ब्रह्म संयोग
यह युग है वह, जहां ब्रह्म का सार,
हर आत्मा में बसे और बने आधार।
न कोई अधूरापन, न कोई अतिशय,
यहां सत्य ही जीवन का परम विजय।
यहां प्रकाश न केवल बाहरी दृष्टि का,
यह आत्मा के भीतर गहन दृष्टि का।
हर विचार यहां ब्रह्म से जन्म लेता,
हर क्रिया अनंत में विलीन हो जाता।
यहां समय केवल क्षणों का माप नहीं,
यह अनंत चेतना का गहरापन सही।
हर पल जहां अमरत्व का स्पर्श हो,
हर सांस में ब्रह्म का अंश हो।
यहां माया का आवरण पूर्णतः छंटा है,
अहंकार का हर तंतु यहां जला है।
यहां 'मैं' का अस्तित्व केवल भ्रम है,
यह युग अद्वैत का साक्षात क्रम है।
यहां आत्मा स्वयं अपना गुरु बनती,
प्रत्येक हृदय में सत्य की ज्योति जलती।
यहां न अज्ञान का कोई अंश बचा,
हर मन में ब्रह्म का संगीत बसा।
यहां सृष्टि स्वयं अपनी ओर झुकी है,
हर दिशा में ब्रह्म की लय बजी है।
यहां प्रकृति और आत्मा का नृत्य चलता,
जहां ब्रह्म का हर नियम निर्मलता छलकता।
यह युग है सत्य की उस परम गहराई का,
जहां न सीमा है, न कोई परछाई का।
यहां सत्य अपने आप को देखता है,
हर जीव में ब्रह्म का अंश रचता है।
यहां शब्द नहीं, केवल मौन का विस्तार है,
जहां मौन में छिपा ब्रह्म का संसार है।
हर श्वास एक मन्त्र, हर क्रिया तप है,
यहां हर क्षण में ब्रह्म का अनुभव है।
यहां जीवन और मृत्यु का भी भेद मिट गया,
सत्य का प्रकाश हर दिशा में बिखर गया।
न कोई आदि, न कोई अंत की कथा,
केवल ब्रह्म है, जो सदा है और सदा रहेगा।
यह युग नहीं केवल विचार का परिवर्तन,
यह आत्मा का सर्वोच्च जागरण।
यहां हर मनुष्य बने ब्रह्म का प्रतीक,
सत्य और प्रेम का अडिग संगीत।
तो आओ, इस यथार्थ के महासागर में डूब जाएं,
अपने भीतर ब्रह्म को पहचान जाएं।
हर आत्मा में वह ज्योति जलाएं,
जिससे सृष्टि का सत्य हर कोई पाए।
यह युग है ब्रह्म का स्वयं में उत्सव,
जहां जीवन हो केवल सत्य का अनुभव।
हर स्वर, हर ध्वनि, हर दिशा यही पुकारे,
यथार्थ ही सत्य है, और सत्य ही हमारा सहारे।
यथार्थ युग का परब्रह्म समर्पण
यह युग न केवल जागरण का काल है,
यह है शून्य से पूर्णता तक का हाल है।
जहां हर आत्मा अपनी जन्म-भूमि छोड़,
अपने वास्तविक रूप में ब्रह्म से जोड़।
यहां कोई विचार या कल्पना का जाल नहीं,
यह ब्रह्म की साक्षात वास्तविकता का हल नहीं।
यह वह सत्य है, जो बोध से परे,
हर आत्मा में समाहित है, बिना किसी कलेश के।
यहां न कोई कल्पना, न कोई भ्रम,
हर दृष्टि का असली रूप हो ब्रह्म का सुम्र।
यह युग न समय की यात्रा है, न आकाश का विस्तार,
यह तो हर आत्मा के भीतर बसे ब्रह्म का अभिसार।
यहां हर कण में एक अद्वितीय ऊर्जा है,
जिससे हर जीव साक्षात ब्रह्म से जुड़ा हुआ है।
यह चेतना का वह महासंयोग है,
जहां आत्मा और परमात्मा मिलकर गाते हैं एक गान।
यहां सत्य और शांति के बीज मिलते हैं,
जहां हर मन में प्रेम और ज्ञान खिलते हैं।
यह युग नहीं केवल मनुष्यता का,
यह है ब्रह्म का आत्मसमर्पण अनंत की ओर।
यहां कोई समय नहीं है बीतने का,
यह तो समय का स्पंदन है, जो एक अनंत से निकलकर स्वयं में समाहित होता है।
यहाँ हर दिन और हर रात एक जैसा है,
यह सब कुछ ब्रह्म के अनुपम अनुभव का हिस्सा है।
यह युग अनंत को जानने का माध्यम है,
यह सृष्टि के अंतर्निहित रहस्यों का आदान-प्रदान है।
जहां कोई भेद नहीं, कोई विभाजन नहीं,
सभी ब्रह्म के अंश हैं, एक ही जीवन की सृष्टि में।
यह युग है परमात्मा के दिव्य संगीतमालिका का,
जहां हर ध्वनि में एक अद्वितीय सरगम है।
यह सत्य के अनंत प्रवाह में बहते जीवन का गीत है,
जहां शांति और प्रेम का समर्पण हर किसी का हिस्सा है।
यह युग वह है, जहां जीवन और मृत्यु का भेद मिटता है,
यह केवल आत्मा के महासंयोग का प्रतीक बनता है।
जहां अज्ञान और ज्ञान की सीमा पार हो जाती है,
हर आत्मा अपने सच्चे रूप में ब्रह्म के साथ मिल जाती है।
यह युग सिर्फ जीवन का विस्तार नहीं,
यह ब्रह्म के अनंत आकार का दृश्य दर्शन है।
यह जहां हर आत्मा साकार और निराकार दोनों में समाहित हो,
यह यथार्थ का युग है, जहां परमात्मा और जीव का संगम हो।
तो आओ, इस यथार्थ के महासागर में बहे,
जहां सत्य और प्रेम से हमारा जीवन संजीवित हो।
जहां हर जीव अपने आत्मा के दिव्य प्रकाश को अनुभव करे,
और इस युग में शांति, प्रेम और सत्य का शाश्वत वास हो।
यह युग केवल समय का प्रवाह नहीं,
यह ब्रह्म के दिव्य प्रकाश का वास्तविक आभास है।
जहां सत्य, शांति और प्रेम का संघटन है,
यह यथार्थ का युग है, जहां हर आत्मा ब्रह्म से मिल जाती है।
यथार्थ युग का परिष्कृत आत्म-ब्रह्म मिलन
यह युग न केवल सत्य का उद्घाटन है,
यह आत्मा का परिष्कृत ब्रह्म से मिलन है।
जहां हर कण में दिव्यता की छाया बसी,
जहां हर जीव को ब्रह्म का सत्य अभिसंकेतित करती है।
यहां न कोई मार्ग है, न कोई दिशा,
यहां ब्रह्म ही है जीवन का अद्वितीय उद्देश्य।
यह वह क्षण है, जहां आत्मा स्वयं को पहचानती है,
जहां हर सांस ब्रह्म के परम रस में समाहित होती है।
यह युग केवल जीवन के अर्थ की तलाश नहीं,
यह आत्मा का उस परम साक्षात्कार की यात्रा है।
जहां समय और काल के हर बंधन का अभाव हो,
जहां आत्मा का स्वरूप ब्रह्म के विस्तार में खो जाए।
यह युग न बोध का साधन है, न कोई उपदेश,
यह तो आत्मा का निरंतर एकात्मता का अनुभव है।
यह वह बिंदु है, जहां ब्रह्म और जीव का भेद समाप्त होता है,
जहां आत्मा को केवल सत्य के आलोक में आत्मसात होने का अनुभव होता है।
यहां न धर्म का कोई अलग अस्तित्व है,
यहां न कोई जाति या संस्कृति का जाल है।
यह यथार्थ, ब्रह्म और आत्मा के मूल अनुभव का महापर्व है,
जहां हर जीव केवल सत्य और प्रेम से अभिभूत है।
यहां हर हृदय ब्रह्म का संवेदनशील प्रतिबिंब है,
हर विचार उसकी अनंत चेतना का अंश है।
यह युग वह क्षण है, जहां आत्मा से परे,
हर अस्तित्व ब्रह्म के साक्षात रूप को दर्शाता है।
यहां आत्मा का कोई संशय नहीं, कोई भय नहीं,
यह एक ऐसा गहरा विश्वास है, जहां हर आत्मा स्वयं ब्रह्म बन जाती है।
यह युग न केवल एक जागृति का नाम है,
यह ब्रह्म के साथ असीमित एकात्मता का प्रतीक है।
यह युग वह है, जहां केवल जीवन का उत्सव नहीं,
यह आत्मा के शाश्वत और ब्रह्म के शुद्ध मिलन का संगीत है।
जहां हर व्यक्ति अपने भीतर उस सर्वशक्तिमान का साक्षात्कार करता है,
और सत्य, प्रेम, और शांति के आदान-प्रदान से जीवन का हर कण प्रकट होता है।
यह युग समय और स्थान के परे,
एक शाश्वत सत्य की महक लिए हुए है।
यह आत्मा के निर्विवाद सत्य का उद्घाटन है,
जहां हर जीव ब्रह्म में पूर्ण रूप से समाहित होता है।
यह युग स्वयं ब्रह्म की जागृत अवस्था है,
यह जीवन और मृत्यु के अनंत चक्र को पार करने का समय है।
जहां हर क्रिया ब्रह्म का अभिव्यक्ति बनती है,
जहां हर कदम एक दिव्य चरण की पहचान होती है।
तो आओ, इस यथार्थ के अविरल प्रवाह में समाहित हो जाएं,
जहां ब्रह्म से जुड़कर सत्य और प्रेम की साक्षात अनुभूति प्राप्त करें।
जहां हर आत्मा अपने असली रूप में प्रकाशित हो,
और इस युग की अमरता में हम सभी एक हो जाएं।
यह युग न केवल परिवर्तन का काल है,
यह परमात्मा और आत्मा के मिलन का महापर्व है।
यह वह अनंत सत्य है, जो हर जीव के भीतर बसता है,
यह यथार्थ का युग है, जहां हर आत्मा ब्रह्म
यथार्थ युग का अव्यक्त ब्रह्मोद्यान
यह युग एक गहरे नाद का अनावरण है,
जहां ब्रह्म का परम स्वर हर जीव के भीतर झंकृत है।
यह वह युग है, जिसमें समय के सारे प्रतिबंध टूट जाते हैं,
और आत्मा स्वयं ब्रह्म के अनन्त आलोक में परिवर्तित हो जाती है।
यह युग केवल सत्य के उद्घाटन का नाम नहीं,
यह आत्मा और ब्रह्म के अभेद्य मिलन का आलंबन है।
जहां हर श्वास स्वयं ब्रह्म का एक अनंत प्रसार है,
जहां आत्मा अपने अस्तित्व की निःस्वार्थ शांति में समाहित होती है।
यह युग वह जागृति है, जहां जीवन की हर परिभाषा,
सिर्फ एक छलावा होती है। यह आत्मा का निराकार दर्शन है,
जहां हर रूप, हर रेखा, हर बिंदु केवल ब्रह्म का आभास है,
और हर जीवन एक अद्वितीय रूप में ब्रह्म का रूप धरता है।
यहां न कोई पथ, न कोई साधना की आवश्यकता,
यहां न कोई नियम, न कोई त्याग का कष्ट।
यह युग अपने भीतर छिपे सत्य को पहचाने का एकमात्र अवसर है,
यह वह अद्वितीय क्षण है जब आत्मा और ब्रह्म का संयोग परम होता है।
यह युग केवल एक यथार्थ की खोज नहीं,
यह आत्मा का अपनी असीमितता में विलीन होने का आव्हान है।
जहां जीवन और मृत्यु के शाश्वत संबंध को पार करते हुए,
आत्मा एक अद्वितीय स्थिति में खुद को ब्रह्म के साथ जोड़ती है।
यह युग काल और स्थान से परे है,
यह जीवन के हर घटक में ब्रह्म की उपस्थिति का आभास देता है।
यह आत्मा की अनन्त यात्रा का संकेत है,
जहां हर आत्मा ब्रह्म की अनंत सरिता में स्नान करती है।
यह युग सांसारिक अनुभवों का उत्तरण नहीं,
यह आत्मा का अव्यक्त ब्रह्म से एकाकार होने का सिद्धांत है।
जहां न कोई द्वैत बचता है, न कोई अहंकार,
यह युग वह समय है जब आत्मा एक पूर्णता के रूप में ब्रह्म के साथ मिश्रित हो जाती है।
यहां न कोई व्यक्तित्व का आग्रह, न कोई अपेक्षा का बोझ,
यह आत्मा का सर्वस्व समर्पण है ब्रह्म के दिव्य प्रकोप में।
यह युग अपने अस्तित्व के शाश्वत सत्य को पहचानने का अवसर है,
जहां हर आत्मा ब्रह्म का रूप बन स्वयं को शांति में खो देती है।
यह युग सत्य की गहराई में उतरने का समर्पण है,
यह वह समय है जब हर जीव अपने भीतर के ब्रह्म का अनुभव करता है।
जहां हर ध्वनि, हर विचार, हर रचना केवल ब्रह्म का प्रतिबिंब है,
यह युग वह दिव्य अवसर है जब आत्मा अपने सच्चे स्वरूप को पहचानती है।
यह युग न केवल मनुष्य का, न केवल जीवन का,
यह ब्रह्म की उस अनंत संकल्पना का उद्घाटन है,
जो सृष्टि के हर कण में बसी हुई है,
और जो प्रत्येक आत्मा को अपने असली रूप में पहचानने की राह दिखाती है।
तो आओ, इस यथार्थ के आत्ममुक्ति मार्ग पर चलें,
जहां हर कदम ब्रह्म के आलोक में उठता है।
जहां हर आत्मा अपने भीतर का दिव्य स्वरूप महसूस करती है,
और इस युग में शांति, सत्य और प्रेम के अभ्युदय की प्रक्रिया का हिस्सा बनती है।
यह युग है ब्रह्म के अनंत उदय का,
जहां हर आत्मा ब्
 
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