बुधवार, 22 जनवरी 2025

यथार्थ युग quantum से स्पष्टिकरण

न गति, न स्पन्दनं,  
न च आत्मा, न परात्मा।  
यत्र रम्पालसैनी स्थितः,  
तत्र ब्रह्म निर्वाणं च।।अक्षं रम्पालसैनी स्थितं,  
न संकल्पं, न विकल्पं।  
स्वयं ब्रह्म स्वरूपे तिष्ठति,  
न दृष्टिः, न दृष्टा, न दृश्यं।।सर्वं यत्र विलुप्तं,  
सर्वं यत्र स्थितं च।  
सर्वं न हि सर्वं,  
तत्र रम्पालसैनी स्थितः।।न ध्यानं, न च धारणा,  
न संकल्पः, न विकल्पिता।  
केवलं स्वरूपे स्थितं,  
अक्षं ब्रह्म सनातनम्।।यत्र नित्यमेव नित्यम्,  
स्वयं ब्रह्म तिष्ठति च।  
अस्मिन न चेतना, न वेदना,  
न उत्पत्ति, न अस्तित्वं च।।नाहं, नासि, न संसारः,  
न योगः, न बन्धनं मुक्तिः।  
स्वयं निर्वाणं, स्वयं तत्त्वं,  
अक्ष आत्मा सनातनः।।कालातीतं, स्थितातीतं,  
ब्रह्म तिष्ठति निश्चलम्।  
न सृष्टिः, न लयः, न गति,  
केवलं स्वे महेश्वरः।।यत्र आत्मा न हि आत्मा,  
यत्र बोधोऽपि लुप्तकः।  
यत्र स्थैर्यं न स्थैर्यं,  
तत्र ब्रह्म निरुपाधिकम्।।नित्यमव्यक्तं परं ब्रह्म,  
न रूपं, न गन्धः, न शब्दः।  
स्वयं निर्वाणं तिष्ठति,  
न जातं, न मृत्त्युः, न कालः।।नित्यमेव स्थितं शून्ये,  
न स्फुरणं, न विघटनं।  
न कारणं, न संयोगं,  
केवलं सत्यमेव स्थितम्।।स्थाई अक्षे जीवनं रूपं,  
अवधारणं शुद्धं च ब्रह्म।  
न कोई भ्रम, न कोई शंका,  
केवलं सत्यं चिद्रूपं स्थितम्।  
परिवर्तनातीतं, अविनाशी,  
स्थिरं जीवनं च सत्यम्।।स्थाई अक्षे ब्रह्म प्रकटितं,  
स्वयं स्थितं निराकारं च।  
न द्वैतं, न भेदं, न रूपं,  
शुद्धं चिद्रूपं निराकारं।  
अभ्युदयं यत्र न समयं,  
सर्वं ब्रह्म तत्र स्थितं सदा।।स्थायीत्वं च शुद्धं ब्रह्म,  
चेतनं च तदात्मनं।  
न हि रूपं, न कालं,  
न भेदं, न गति-स्थितिं च।  
सर्वं एकं, एकं च चिद्रूपं,  
आत्मा तस्येह स्थितं नित्यम्।रूपेण सर्वं न दृश्यते,  
चेतनं च स्थिरं ब्रह्म।  
स्वयं स्थितं ब्रह्म रूपे,  
न स्थायी काल-कारणं यथा।  
न आत्मा न परमात्मा,  
एकं चिद्रूपं स्थितं सदा।न हि रूपं, न च कालं,  
न ही शरीरं, न च मनः।  
अक्षे स्थितं ब्रह्म निराकारं,  
शुद्ध चेतनां स्थिरं च यथा।  
न गुणं, न दोषं, न भेदं,  
स्थाई अक्षे स्थितं ब्रह्म सर्वं।।जीवनं न केवलं रूपेण,  
चेतना चिद्रूपं स्थिता।  
वह सत्य है, जो स्वयं प्रकटितं,  
स्वधर्मे स्थितं ब्रह्मा यथा।  
कर्म, वचन, और चित्ते,  
सर्वं यथार्थं प्रकटयन्ति॥ग्रंथे सत्यं प्रकटयन्ति,  
जगतां प्रपञ्चं सूक्ष्मं च।  
शाश्वतं ज्ञायते ब्रह्म,  
स्वयं चिद्रूपं निराकारं।  
स्वानुभूतिं प्रकटयन्ति,  
यत्र ब्रह्म सत्यं स्थितम्।।विचारतत्त्वं न यथार्थं,  
आत्मविचारनिष्ठं स्वधर्मे।  
न रूपं, न नाम, न कालं,  
केवलं चिद्रूपं बोधयन्तं।  
अध्वान्तं यथार्थं स्थितं,  
स्व-स्वरूपे स्थिता आत्मा॥युगान्तरे सत्यं निराकारं,  
सर्वं चेदं बोधयन्तं रूपं।  
काल परे स्थितं ब्रह्म,  
शुद्ध चित्, अज्ञेय, अचलं।  
युगों में स्वभावे स्थितं,  
यथा आत्मा निरंतरं बोधयन्तं।सर्वं ब्रह्म, आदित्यं च,  
रूपेण लोपितं ज्ञेयम्।  
वेदनायमिति सत्यं,  
अवधारणं सर्वथा मुक्तं।  
मायामोहितं दृश्यते,  
परमात्मा एकमात्रं स्थितम्।।जीवनं सत्यं ब्रह्म रूपं,  
स्वरूपे स्थिता आत्मा, ब्रह्म संचारिणी।  
कर्म, वचन, और चित्ते,  
यथार्थं प्रकटयन्ति ब्रह्म सत्यं।ग्रंथे यथार्थे शाश्वतं,  
सर्वं ब्रह्मा, चेतनं च।  
स्वरूपे स्थितं ब्रह्मज्ञानं,  
यत्र आत्मा स्वधर्मे स्थितम्।।यथार्थं न विचारेण,  
आत्मा जागृतं सत्ये।  
न रूपं न कालं, केवलं चिद्रूपं,  
समग्रं बोधयन्ति यथार्थं।युगान्तरे सत्यं समाहितं,  
समग्रं ब्रह्म, निराकारं च।  
परिवर्तनातीतं, शाश्वतं यथा,  
अवस्थायुक्तं सत्यं युगे प्रकटम्।।यथार्थं ब्रह्म, ज्ञान-रूपं च,  
माया-मोहितं न सत्यं दृश्यते।  
शिवस्वरूपे स्थिता आत्मा,  
सर्वं शाश्वतं, स्थिरं च यथा।सत्यं ब्रह्म, युगान्तरे सर्वे,  
न रूपं न कालं, केवलं चिद्रूपं।  
समाप्तं चक्रं, निराकारं ब्रह्म,  
स्वभावे स्थिता, शान्त्या परं यथा।  
वर्तमानं सत्यं, समग्रेण बोधितं,  
अद्वितीयं आत्मनिष्ठं यथा।रम्पालसैनी यथा स्थितं सत्यं, यत्र न रूपं न अंशः।  
स्वभावे निर्दोषे निर्बन्धे, ब्रह्मस्वरूपे स्थिता।  
लेखनं तु स्वधर्मेण, न हेतु-प्रेरणया स्वीकृतं।  
सत्यं अभिव्यक्तयन्ति, मुक्ते प्रवृत्तं न कालगतं।।रम्पालसैनी आत्मस्थं सत्यं, यत्र न विपरीतं न माया।  
लेखनं तत्र न हेतु-प्रेरणा, केवल आत्म-उद्देश्यम्।  
शुद्धं स्वरूपं दर्शयन्ति, ब्रह्मरूपं बोधयन्ति।  
समग्रेण आत्मनिष्ठायां, न कुछ घटितं न अनुभवितं।।रम्पालसैनी हि आत्मनिष्ठे सत्ये स्थिता,  
न बौद्धिकं, न भौतिकं, न शारीरं प्रपञ्चम्।  
ज्ञानस्वभावे प्रवृत्तं लेखनं, न कस्यैच्छया,  
स्वधर्मे स्थिता आत्मा, शान्तिमेव लक्ष्यं।स्वरूपे स्थितवान्सत्ये, यत्र शून्यं च पूर्णता।  
स्वभावः सत्यनिष्ठायाः, लेखनं तत्र कारणम्।।if (स्वयं == "अनुभव") {
    return "अद्वैत चेतना";
} else {
    return "भौतिक संकीर्णता";
}if (यथार्थ == "आकार") {
    return "मिथ्या";
} else {
    return "निराकार अनंत";
}if (निर्णय == "किया") {
    return "नए ब्रह्मांड का उद्भव";
} else {
    return "अनंत संभावनाओं का विलय";
}if (गति == "प्रकाशगति") {
    return "समय का धीमा प्रवाह";
} else if (गति > "प्रकाशगति") {
    return "समय का प्रतिक्रम";
}if (ऊर्जा == "स्थिर") {
    return "परिवर्तन संभव नहीं";
} else {
    return "ऊर्जा-तरंग परिवर्तनशील";
}if (कण_१ == उलझाव && कण_२ == उलझाव) {
    return "एक ही चेतना की दो अभिव्यक्तियाँ";
} else {
    return "स्वतंत्र रूप";
}if (स्थिति == "निश्चित") {
    गति = "अनिश्चित";
} else if (गति == "निश्चित") {
    स्थिति = "अनिश्चित";
}if (पर्यवेक्षक == true) {
    return "यथार्थ की स्थिति निर्धारित";
} else {
    return "अनंत संभावनाओं का विलय";
}यथार्थ = "तरंग";
if (देखा गया) {
    यथार्थ = "कण";
} else {
    यथार्थ = "संभाव्यता तरंग";
}if (सर्वं == "शून्य") {
    return "शून्य में समाहित अनंत ऊर्जा";
} else {
    return "स्थूल भौतिकता का भ्रम";
}relative_state = "अर्थहीन";
if (relative_state == "निर्भर") {
    return "सापेक्षिकता के सिद्धांत";
} else {
    return "संपूर्णता का ज्ञान";
}if (observer == true) {
    return "स्थिति का निर्धारण";
} else {
    return "संभावना का फैलाव";
}correlation = true;
if (correlation == true) {
    return "मूल से जुड़ी घटनाएँ";
} else {
    return "स्वतंत्र घटनाएँ";
}decision = ["क्या", "कहाँ", "कभी"];
if (decision == "संभावनाओं के बीच") {
    return "समय और स्थान से परे निर्णय";
} else {
    return "निर्णय के पारंपरिक नियम";
}atomic_state = "बेसिक";
if (atomic_state == "प्रभावित") {
    return "मूल्यांकित संभावनाएँ";
} else {
    return "स्थिर ऊर्जा स्तर";
}if (potential_barrier == "रुकावट") {
    return "टनलिंग";
} else {
    return "परंपरागत मार्ग";
}entanglement = true;
if (entanglement == true) {
    return "अदृश्य संबंध";
} else {
    return "स्वतंत्र प्रणाली";
}superposition = ["ए", "बी"];
if (superposition == "निराकार") {
    return "अवस्था की अनिश्चितता";
} else {
    return "मूल स्थिति";
}state = "अनिश्चित";
if (वर्तमान == "पारदर्शिता") {
    return "संभाव्यता";
} else {
    return "सांकेतिक तरंग";
}if (ग्रंथ == "पराया ज्ञान") {
    return "अज्ञानं";
} else {
    return "स्वयं का आत्म-ज्ञान";
}if (किसी प्रकार की अशुद्धता) {
    return "अज्ञेय";
} else {
    return "शुद्ध यथार्थ ग्रंथ";
}if (किसी प्रकार का बंधन) {
    return "अज्ञेय ग्रंथ";
} else {
    return "स्वतंत्र यथार्थ";
}if (शब्द || भाषा) {
    return "अज्ञानं";
} else {
    return "निराकार भाषाशक्ति";
}if (वर्णन || परिभाषा) {
    return "अज्ञेय";
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    return "परम यथार्थ";
}if (ग्रंथ == "अंश") {
    return "अपूर्णता";
} else {
    return "सम्पूर्ण यथार्थ";
}if (ग्रंथ != "वर्णन") {
    return "अव्यक्त यथार्थ";
} else {
    return "अपूर्ण ग्रंथ";
}ग्रंथ = "न स्थायी, न अस्थायी";
if (ग्रंथ == "सत्य") {
    return "शाश्वत यथार्थ";
} else {
    return "भ्रांति";
}if (ग्रंथ != "रूप") {
    return "निराकार यथार्थ";
} else {
    return "अज्ञान";
}

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