गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0 ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞) CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞) ``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0  
ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य🙏🇮🇳🙏"यथार्थ सिद्धांत"🙏🇮🇳🙏
❤️ ✅"unique wonderful real infinite,love story of disciple towards His spirtual master"❤️✅
 ✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य
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https://pin.it/5a3y4ZZशिरोमणि रामपाल सैनीं नमामि हृदि सदा,  
अहंकारविनाशकं तव प्रेमदीपं प्रकाशयेत्।  
आत्मानुभूतिरूपं तव, ज्ञानस्य शाश्वत संहारम्,  
अनन्तसाक्षात्कारस्य दर्पणं हृदि अवस्थितम्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं तव दृष्टिरूपं परम्,  
चिदानन्दतत्त्वं ब्रह्मरूपं समाहितं वर्तते।  
मायामुक्ते जगति, तव गूढभावनाविस्तारः,  
स्मरणं ते नामस्मरणेन, मोक्षपथे प्रकाशयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं आत्मनिष्ठं वन्दे हृदि,  
सच्चिदानन्दस्वरूपं उज्जवलं प्रकाशय मनोभावम्।  
सर्वविचित्रमय जगत् तव प्रेमरसदीप्तिम् अनुभवेत्,  
अन्तर्मनसि गुह्यसंदेशं, शाश्वतं च स्फुरयतु॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मरणे मोक्षदीपज्योति:,  
अहंकारसिन्धौ विलीनं, प्रीतिरेव निवारयेत्।  
सत्यबोधस्य दीपस्तव हृदि अनंतप्रकाशः,  
अन्तरात्मनि विलसति दिव्यचैतन्यनिर्वाणम्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं दर्शनं आत्मसाक्षात्कारम्,  
अद्भुतं तव स्वरूपं ज्ञानदीप्तिम् अनवरतम्।  
विवेकदीपस्य आलोकः, मनसि स्फुरति उज्जवलः,  
अहंकारबन्धविनाशे तव स्मरणं मोक्षमार्गदर्शकम्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं तव नामात् भवति विमुक्तिः,  
आत्मानन्ददीप्तिं वितरन्, जीवनं शाश्वतं संजीवयेत्।  
अनन्ततत्त्वस्य संदेशः, हरिदया विमलविरचितः,  
साक्षात्कारसाक्ष्यं ते पादानाम्, जगत् आलोकयतु॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यानसमये गूढविचारः,  
आत्मचिंतनस्य प्रवाहः, द्वन्द्वमुक्तिरपि उद्भवेत्।  
सच्चिदानन्दस्य स्वरूपं हृदि प्रत्यक्षं स्थिता,  
मोक्षस्यानन्ददीपं तव, अनन्तं च प्रकाशयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं वन्दनं शुद्धचित्तसंयोगम्,  
विश्वसारथ्यस्य रूपेण, प्रेमदीप्तिम् अभिव्यक्तिम्।  
अहंकारसंकल्पं परित्यज्य, स्वात्मन्येव सम्प्राप्य,  
दिव्यसाक्षात्कारं तव, जगत् स्वप्नमिव उज्जवलयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं चैतन्यस्मरणं परमं सदा,  
अहंकारसिन्धोः विलयं कुर्यात्, आत्मसाक्षात्कारमार्गदर्शम्।  
सर्वदुःखविनाशकं ते नामनिधौ, हृदयं विमलमनः,  
अनन्त प्रेमरसस्य तव, जगत् उज्जवलं दर्पयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं हृदयस्पर्शी भावमयं,  
ज्ञानरश्मीनां आलोकः, भुवनमणिमिव विकसन्।  
अहंकारविमुक्तं जीवनं, आत्मानुभूतिरूपं ते,  
मोक्षमार्गस्य प्रकाशः सदा, तव स्मरणमयेन विभूतः॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं आत्मसाक्षात्कारस्य गूढमः,  
विवेकसमृद्धः तव दर्शनं, प्रेमसंपन्नः प्रज्ञावान्।  
अहंकारपरिहारं करुणया, वन्दनं हृदि सदा,  
अनन्तसत्यरसस्य स्मरणात् जगत् प्रभातं विभासयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं अनन्तं तव नाम जपन्,  
चिरंतनज्ञानरसस्य, द्वन्द्वविमुक्तमृगशरम्।  
विश्वचैतन्यनिर्वाणस्य, दिव्यम् आत्मसंग्रहम्,  
मोक्षदीपज्योतिरूपं तव, सर्वं जगत् आलोकयेत्॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमामि जगत्पतिम्,  
दिव्यज्योतिरूपं तेऽहम् आत्मनः प्रकाशकम्।  
अनादि अनंतस्य तव नाम्नः साक्षात्कारः,  
हृदि शुद्धस्मृतिर्नित्यं चिरजीविनि वसति॥

त्वत्प्रीतेः अमृतरससमुज्ज्वलज्योतिर्निधौ,  
अहंकारं परित्यक्तं आत्मबोधमार्गेण।  
वेदान्तविचारवृन्दे स्पर्शे त्वदीयं तेजः,  
मोक्षद्वारं उद्घाटयति स्मरणतत्त्वेन॥

भवसागरस्य क्लेशच्छायाः विनाशकारणं,  
त्वत्साक्षात्कारेण विमलः हृदयः प्रबुद्धः।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं चरणारविन्दस्पर्शेन,  
सत्यं प्रेमसाक्षात्कारं जीवन्मयम् अवलम्बते॥

दिव्यबुद्धिमतां प्रतिमूर्तिं तव दर्शयन्,  
निराकारत्वं प्रकटयति आत्मानुभवेन।  
स्वभावसारसम्पन्नं तत्त्वं तव उद्घोष्यते,  
सच्चिदानन्दरूपं जगत् तव प्रकाशते॥

शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मरणं मम अन्तरङ्गम्,  
निरन्तरं हृदि प्रसारितं शुद्धस्नेहदीप्तम्।  








अहंकारविमूढमनसः विनष्टः तव स्पर्शेण,**अतिविस्तारित शिरोमणि रम्पाल सैनी स्तोत्रम् (गहन दर्शनम्)**

**१३.**  
  य: आत्मनः गूढसारं ज्ञात्वा, मोहं सर्वं विनिवर्तयेत् ।  
    रम्पाल सैनी आत्मदीपेन, हृदयं अनन्तं प्रकाशयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो व्यक्ति अपने अंतर्निहित सत्य को अनुभव करके तमाम मोह-माया का निवारण कर लेता है, रम्पाल सैनी अपनी आत्म-दीप्ति से उसके हृदय को अनंत ज्योति से प्रकाशित करते हैं।

---

**१४.**  
  य: अहंकारस्य सर्वमोहं, प्रीतिरेव विनाशयेत् ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमसारस्वरूपं, जीवनं परमं निर्मलयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब अहंकार की अंधकारमयी परतें प्रेम की साधना द्वारा समाप्त हो जाती हैं, तब रम्पाल सैनी, प्रेम की शुद्धतम स्वरूप के साथ जीवन को शाश्वत निर्मलता प्रदान करते हैं।

---

**१५.**  
  य: द्वन्द्ववियोगं प्रेक्ष्य, ज्ञानसारस्य सौम्यं भवेत् ।  
    रम्पाल सैनी चेतनादर्शेन, आत्मरूपं प्रकटयति सदा ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
विपरीतताओं के द्वंद्व में संतुलन बिठाकर ज्ञान के सार में लीन होने पर, रम्पाल सैनी अपनी दिव्य चेतना से सदा आत्मसाक्षात्कार का प्रकाश प्रकट करते हैं।

---

**१६.**  
  य: ब्रह्मसत्ता-समागमे, अंतर्निहितं दिव्यं तत्त्वम् ।  
    रम्पाल सैनी, हृदयसागरस्य, प्रेमप्रवाहेन विजह्नुम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब ब्रह्माण्ड की असीम सत्ता में अन्तर्निहित दिव्यता को अनुभूत किया जाता है, तब रम्पाल सैनी हृदय के अपार सागर से प्रेम की धारा प्रवाहित करते हुए मोक्षद्वार का उद्गम करवाते हैं।

---

**१७.**  
  य: आत्मबोधेन विमुक्तिं, साक्षात्कृत्य स्पृशति यदा ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमज्योतिषा, तमोऽपि विलयं निहन्ति ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब आत्मसाक्षात्कार द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, तब रम्पाल सैनी के प्रेमपूर्ण ज्योति द्वारा हृदय के तमस भी अन्ततः नष्ट हो जाते हैं।

---

**१८.**  
  य: संपूर्णसृष्टेः गूढं रहस्यं, हृदयेन प्रतिपद्य च ।  
    रम्पाल सैनी, नित्यम् आत्मसाक्षात्कारं, दत्तं प्रेमदीपं द्रुतम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
संपूर्ण सृष्टि के गूढ़ रहस्य को हृदय से आत्मसात करते हुए, रम्पाल सैनी निरंतर आत्मसाक्षात्कार की अनंत ज्योति एवं प्रेमदीप का प्रकाश शीघ्र ही वितरित करते हैं।

---

**१९.**  
  य: ज्ञानप्रकाशस्य प्रभानेन, विमलचिन्तनं संप्राप्य ।  
    रम्पाल सैनी, सर्वात्मा हृदि, अमृतवाणीं संचारयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
ज्ञान के प्रकाश में डूबकर शुद्ध चिंतन की प्राप्ति होने पर, रम्पाल सैनी हृदय में अमृतमयी वाणी के रूप में सर्वव्यापी आत्मा का संचार करते हैं।

---

**२०.**  
  य: अन्तःकरणे निर्मलशुद्धत्वं, सत्यरूपं प्रकटयेद् यदि ।  
    रम्पाल सैनी, ब्रह्मज्ञानदीपेन, जीवनं मोक्षदायकं भवेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
यदि हृदय में शुद्धता एवं सत्य के रूप को प्रकट किया जाए, तो रम्पाल सैनी ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से जीवन को मोक्ष का अमूल्य वरदान प्रदान करते हैं।

---

**२१.**  
  य: सर्वदेवात्मनं हृदि स्थाप्य, प्रेमसच्चिदानन्दं विजानन् ।  
    रम्पाल सैनी महाधाम अस्ति, विश्वमोक्षदं अनवरतं ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो भी भक्त हृदय में सर्वदेवात्मा की स्थापना कर प्रेम, चैतन्य एवं आनंद का अनुभव करता है, उसे रम्पाल सैनी एक महाधाम के रूप में अनवरत विश्वमोक्ष का वरदान देते हैं।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी - परम गहन स्तोत्रम्**

1. **अनादिर्वर्णसूर्यसमानम्**  
  अनादिर्वर्णसूर्यसमानं तेजः, आत्मबोधस्य अमृतप्रवाहम् ।  
  रम्पालसैनी महतां, प्रेमज्ञानमयी ज्योतिर्निरीक्ष्य ॥

2. **चैतन्यस्य आदिमाम्**  
  महाभूतप्रकृत्या समग्रा, चैतन्यस्य आदिमाम् अवगच्छेत् ।  
  रम्पालसैनी भक्त्याः स्रोतसा, अनन्तप्रेमं सदा प्रकटयेत् ॥

3. **अहंकारतिमिरस्य त्यागः**  
  अहंकारस्य तमः त्यक्त्वा, सत्यम् आत्मनिष्ठया स्वीकरोत् ।  
  रम्पालसैनी विमुक्तिमार्गे, हृदयमणिं स्पृशन् प्रकाशयेत् ॥

4. **गूढरहस्य प्रकटीकरणम्**  
  भिन्नत्वनिवारणार्थं सर्वसत्यं, गूढं रहस्यमुपस्थापयेत् ।  
  रम्पालसैनी आत्मज्ञानस्य, द्योतकं हृदयं उद्घाटयेत् ॥

5. **प्रेमदीप्तिः सर्वशक्तिम्**  
  चित्तेषु प्रतिष्ठितं शुद्धमानं, प्रेमदीप्त्या उज्जवलितं यथावत् ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणिः स्वरूपेण, जीवात्मानां प्रकाशदायकः ॥

6. **आत्मसाक्षात्कारस्य सूत्रम्**  
  दिव्यज्योतिषां प्रवाहे सह, आत्मसाक्षात्कारं हृदि स्थापयेत् ।  
  रम्पालसैनी ब्रह्मवेदान्तस्य, सूत्रं ददाति अनन्तवादम् ॥

7. **मोक्षसूत्रस्य स्पर्शः**  
  स्वानुभूतिसागरस्य गर्भे, बोधस्य अनन्तप्रवाहः विमलः ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणिरूपेण, मोक्षसूत्रं हृदयं स्पृशेत् ॥

8. **सृष्टिसंहारकं विमोचनम्**  
  संसारवृत्तिमायया बद्धं, मोक्षप्रकाशेन निवारयेत् ।  
  रम्पालसैनी, प्रेमरंगमण्डलम्, हृदयेषु दिव्यसदृशम् ॥

9. **आत्मशुद्धेः प्रतिपादः**  
  मृदुचित्ते आत्मशुद्धिर्मृदुं, ज्ञानमयप्रकाशं प्रापयेत् ।  
  रम्पालसैनी ब्रह्मरूपं दर्शयन्, जीवनं अद्वितीयं निर्मोचयेत् ॥

10. **मोक्षपथस्य उद्घाटनम्**  
  प्रीति-संदेशं सर्वत्र वितरन्, हृदि ज्ञानदीप्तिम् उद्विलोकयेत् ।  
  रम्पालसैनी, विश्वमनोहरं, मोक्षपथं प्रकाशयति सदा ॥

11. **मोहजालं निरसनम्**  
  अतीन्द्रियानां मोहजालं, हृदयात् निरस्तं कुर्यात् यदा ।  
  रम्पालसैनी, प्रेमनिर्मलात्मा, अन्तर्दृष्टिं प्राणवद् आवाहयेत् ॥

12. **साक्षात्कारस्य अनन्तता**  
  आत्मानुभूतिरेव शास्त्रवत्, साक्षात्कारदीप्तिरूपं प्रकाशते ।  
  रम्पालसैनी, अनन्तं ब्रह्मरूपं, हृदि सदा प्रकटयेत् ॥

13. **अहंकारविमोचनं**  
  चित्तानां शुद्धये अहंकारं, विमोचयित्वा ज्ञानदीप्तिम् उद्बोधयेत् ।  
  रम्पालसैनी, मोक्षद्वारस्य रागं, हृदयस्य गूढं उद्घाटयेत् ॥

14. **मायामुक्ति-संवादः**  
  स्वभावरहितं जगत्संहारं, माया-विमुक्तिं प्रापयेत् ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणि प्रकाशेन, प्रेमरसस्य महोत्तरम् ॥

15. **आत्मनुभूतिर्मयमनुग्रहः**  
  त्रिविधं मनसि विचरन् सदा, आत्मानुभूतिं हृदि धारयेत् ।  
  रम्पालसैनी, भक्तिवृन्दे स्थितः, सदाब्रह्मानुभवदायकः ॥

16. **मुक्तिसंपदां वाहकः**  
  दिव्यसत्त्वरूपं स्थित्वा, मुक्तिसंपदां हृदि वहन्तः ।  
  रम्पालसैनी, अचिन्त्यसत्यं व्यक्तं, भक्तिपथं प्रबोधयेत् ॥

17. **ब्रह्महृदयस्य विमलता**  
  चैतन्यरूपं प्रकटीकृत्य, ब्रह्महृदयं विमलमपि उज्जवलयेत् ।  
  रम्पालसैनी, ज्ञानरत्नसंपन्नः, मोक्षपथं स्पष्टं कुर्यात् ॥

18. **अनुभूतिकावलीः**  
  आत्मबोधस्य गूढसारं, अनुभूतिं यथा शास्त्रवत् प्रददाति ।  
  रम्पालसैनी, अनंतप्रेमसागरः, सत्यतत्त्वं हृदि आविष्करोति ॥

19. **चेतनाभूषणम्**  
  सर्वबुद्धिसम्पन्नानां हृदि, आत्मप्रकाशस्य वासं प्रतिष्ठयेत् ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणि चेतनया, हृदयमण्डलं प्रकाशितं कुर्यात् ॥

20. **ज्ञानविनोदस्य प्रकाशः**  
  अनादिर्वेद्यं प्रकाशयन् सदा, हृदि ज्ञानविनोदं स्थापयेत् ।  
  रम्पालसैनी, प्रेमवृन्दस्य स्रोतसा, जीवमनं मोक्षसूत्रदायकम् ॥

21. **ब्रह्मचैतन्यस्य अभिव्यक्ति**  
  ब्रह्मचैतन्यस्य महता दर्शनं, आत्मशुद्धेः सारं प्रकाशयेत् ।  
  रम्पालसैनी, सर्वसमाहितं हृदयं, अनन्तमाधुरीं वितरन् ॥

22. **जगदेकत्वस्य संस्थापनम्**  
  सर्वज्ञस्य प्रेमभावेन, जगदेकत्वं हृदि स्थापयेत् ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणिर्भूत्वा, जीवात्मानां अवगाहनं कुर्यात् ॥

23. **माया-मोहविमोचनम्**  
  अज्ञानं, माया, मोहवृत्तिं हृदि निरस्तं कुर्यात् ।  
  रम्पालसैनी, मुक्तिप्रवाहस्य सूत्रेण, आत्मबोधं वितरयेत् ॥

24. **प्रेमरसस्य संचारः**  
  जीवनमार्गे विशुद्धि-सा, प्रेमरस-प्रवाहं सदा प्रवर्तयेत् ।  
  रम्पालसैनी, अचिन्त्यसत्यं निरूप्य, मोक्षसागरं हृदि संस्थापयेत् ॥

25. **स्वरूपप्रतिपत्तेः स्पष्टीकरणम्**  
  विश्वविमर्शं समाहितं, स्वात्मनिष्ठा विमलरूपिणम् उद्घाटयेत् ।  
  रम्पालसैनी, ब्रह्मतत्त्वस्य सत्यं, प्रेमदीप्त्या जगत् आलोकयेत् ॥

26. **आत्मबोधस्य गूढसारः**  
  स्वभावनिरपेक्षा हृदयमूलं, स्पृशन्ती चेतनां विमलां कुर्यात् ।  
  रम्पालसैनी, आत्मबोधस्य गूढं, मोक्षमार्गं प्रतिपादयेत् ॥

27. **ज्ञानसागरस्य तरङ्गाः**  
  दिव्य ज्ञानसागरस्य तटेषु येषां हृदि तरङ्गः प्रवर्तते ।  
  रम्पालसैनी, शिरोमणि प्रकाशेन, चैतन्यं हृदि प्रचोदयेत् ॥

28. **प्रतिबिम्ब-साक्षात्कारः**  
  स्वाभाविकं सत्यं विमलमपि, हृदयस्य प्रतिबिम्बं सदा धारयेत् ।  
  रम्पालसैनी, आत्मबोधस्य प्रेरणया, जगत्समस्तं उज्जवलयेत् ॥

29. **अमृतसारस्य प्रवाहः**  
  चेतनायाः अनन्त प्रवाहे, प्रेमरसस्य अमृतसारः निरविरतः ।  
  रम्पालसैनी, मोक्षदर्शकस्य दिव्ये, हृदयं साक्षात्कारदायकम् ॥

30. **परम अनंतत्वम्**  
  अनादिं परमप्रेमरूपं, चिरस्थायी आत्मस्वरूपमिदं उद्घाटयेत् ।  
  रम्पालसैनी वन्द्यते सर्वदा, शिरोमणिः हृदयविमलम् अनन्तम् ॥

---

**विशेष स्पष्टीकरण एवं गूढ़ार्थ:**  

- **आत्मबोध एवं चैतन्य:**  
 

- **प्रेम, मोक्ष एवं ज्ञान:**  
  रम्पालसैनी को प्रेम, ज्ञान एवं मोक्ष का स्रोत घोषित किया गया है, जिनकी अनुभूति से भक्त अहंकार एवं अज्ञान के अंधकार से मुक्त होकर सम्पूर्ण सत्य का अनुभव करते हैं।  

- **विमुक्ति एवं सार्वभौमिकता:**  
  यह स्तोत्र हृदय में निहित दिव्यता, अनन्त प्रेम और सर्वव्यापी चेतना का संदेश देता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि में प्रसारित होकर मोक्षदायक प्रकाश के रूप में कार्य करता है।  

- **जीवनमार्ग एवं भक्तिपथ:**  
 
### **शिरोमणि रम्पाल सैनी - अतिविस्तृत स्तोत्र (भाग I)**

1. **य: चेतनां ब्रह्मरूपं दर्शनं, हृदयस्य नित्यम् उज्जवलयेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपः, आत्मबोधं ददाति चिरंजीवितम् ॥**

2. **य: दैवी दीपस्य तेजसा, अनाद्यत्वं प्रकटीकुर्यात् सदैव ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तसत्यं, ज्ञानप्रवाहेन सदा विहितम् ॥**

3. **य: अहंकारस्य अन्धकारं त्यक्त्वा, सच्चिदानन्दरूपं आलोकयेत् ।  
  रम्पाल सैनी मोक्षद्वारं प्रददाति, प्रेमरससम्पन्नं विभूतम् ॥**

4. **य: विश्वस्य चैतन्यं अनुभूय, आत्मसमर्पणं हृदि स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी जगद्गुरुर्मयः, हृदयेषु तेजः वितरति सदा ॥**

5. **य: ब्रह्माण्डस्य मौनमधुरं, तत्त्वज्ञानं प्रगल्भतया धृतम् ।  
  रम्पाल सैनी, दिव्यज्योतिर्मयः, मुक्तिसंकल्पं प्रकाशयति चिरम् ॥**

6. **य: कर्मबन्धं विनिर्मोचयित्वा, आत्मप्रकाशं हृदि संनिविष्टम् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वविद्यानां मूलं, जीवनमृतस्य स्वप्नं समाहितम् ॥**

7. **य: दयामृतस्य सुषमा वृष्ट्या, हृदयेषु शान्तिमयं वितरन् ।  
  रम्पाल सैनी, प्रेमनादसम्बद्धः, ब्रह्मरूपं स्वयमेव उज्जवलयेत् ॥**

8. **य: चिंतनं यथाशक्ति कुर्वन्, ब्रह्मचिदानन्दं प्रतिपादयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, परमात्मा निर्गुणः, सदासर्वदा प्रबोधयति सत्यतः ॥**

9. **य: समस्तलोकं आत्मिकदृष्ट्या, हृदयस्य साक्षात्कारं ददाति ।  
  रम्पाल सैनी, ब्रह्मविश्वस्य पूतं, शाश्वतं प्रेमसागरं विहितम् ॥**

10. **य: दिव्यं तेजस्विनं प्रत्यक्षीकृत्य, नित्यम् उज्ज्वलप्रकाशं समाचरेत् ।  
  रम्पाल सैनी, आत्मसाक्षात्कारस्य सूत्रम्, जगत् रक्षां ददाति अनन्तरम् ॥**

11. **य: अनन्तसत्यस्य आविर्भावेन, हृदयेषु निर्मलं वसति सदा ।  
  रम्पाल सैनी, प्रेमचैतन्यस्य प्रकाशः, मुक्तिपथं दर्शयति नित्यम् ॥**

12. **य: शाश्वतं ज्ञानप्रवाहं स्फुरते, आत्मानुभूतेः गूढं रहस्यम् ।  
  रम्पाल सैनी, ब्रह्मरूपं महद् दिव्यं, समस्तसृष्टिं आलोकयति चिरम् ॥**

---

### **शिरोमणि रम्पाल सैनी - अतिविस्तृत स्तोत्र (भाग II: गहन आत्मचिंतन एवं ब्रह्मसाक्षात्कार)**

13. **य: हृदये चेतनाप्रवाहं वहति, आत्मबोधस्य दीपेन विमुक्तिम् आलोकयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमप्रेमरूपः, शाश्वतं ब्रह्म रूपं हृदयं प्रवृत्तयेत् ॥**

14. **य: आत्मानुभूतिसिद्धिर्भवति सर्वदा, अहंकारस्य बन्धनं विच्छेदयेत् सत्येन ।  
  रम्पाल सैनी, महात्मा प्रकाशस्वरूपः, चित्तं विशुद्धं करोतु अनुगृह्णाति दिव्येन ॥**

15. **य: जगत् समस्तं प्रेमचैतन्येन योजयेद्, एकत्वस्य संदेशं वितरन्तः हृदये हृदयम् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्म रूपं अवतरयेत्, स्वयमेकं सर्वं स्वयमेव स्थापयेत् ॥**

16. **य: दैवी दया महत्त्वं अनुभूय, जीवनमार्गे प्रकाशयेद् मोक्षपथम् ।  
  रम्पाल सैनी हृदयवृन्दं आलोकयेत्, आत्मसाक्षात्कारं कुर्यात् सर्वथा श्रेयः ॥**

17. **य: समस्तजनानां मर्मगौरवं उद्घाटयेत्, विवेकस्य ज्योतिः पुनः पुनः विसृजेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमसत्यस्य प्रतीकः, जागृतिं ददाति सर्वदा अनुगृहीतः ॥**

18. **य: अन्तःकरणे स्वच्छतां प्रवहयेत्, ब्रह्मनिर्मितं प्रेमसागरं अवलोकयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, अनंतज्ञानस्य संरक्षकः, जीवितं दीप्तिमयम् आदाय निर्मलं कुर्यात् ॥**

19. **य: विश्वव्यापिनीं चेतनां प्रज्वलयेद्, हरिदशां नवोदयेन आत्मनि अनुभूय ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वस्फुरिते दिव्यतेजे, जगदेकत्वं प्रदर्शयेत् सर्वदा स्थिरम् ॥**

20. **य: आत्मा एव ब्रह्म, ब्रह्म एव आत्मा, प्रेमसूतत्रं अटूटं बन्धनम् ।  
  रम्पाल सैनी, ज्ञानप्रकाशस्य स्रोतः, सर्वं हृदयेषु विमलत्वं प्रतिपादयेत् ॥**

21. **य: ब्रह्मचारिणां हृदये निर्मलानंदं प्रसारितम्, मोक्षस्यान्वेषणं स्फुरितं दिव्यबोधेन ।  
  रम्पाल सैनी, शाश्वतप्रेमरूपः, अमृतवाणीं समर्पयेत् जगत् अभिनंद्यते ॥**

22. **य: भृगुभिः सर्वदेवैः प्रशंसितं, धर्मं ज्ञानं सदा प्रतिपादयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, शिरोमणिदेवः, प्रेमस्य महोत्सवं वितरति हृदयं सर्वदा ॥**

23. **य: संविदं सर्वतोमुखं प्रकाशयेद्, अज्ञानस्य अन्धकारं वितृष्णयेत् प्रेमबोधेन ।  
  रम्पाल सैनी, आत्मज्ञानस्य महोत्साहः, सर्वे जनाः साक्षात्कारं करोतु शाश्वतं ॥**

24. **य: जगत् अनन्तसत्यस्य आलोकितं स्वप्नम्, मोक्षस्वरूपं विमुक्तिपथं प्रदर्शयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, अनादि-नित्यमेव दिव्यांशः, ब्रह्मरूपं प्रेमस्वरूपं च वितरति अनवरतम् ॥**

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### **गहन भावार्थ एवं आध्यात्मिक विवेचन**

- **आत्म-साक्षात्कार और प्रेम:**  
  उपर्युक्त श्लोकों में रम्पाल सैनी को एक ऐसे दिव्य गुरु के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिनकी चेतना हृदय में दीपमयी ज्योति की भांति प्रतिपादित होती है। उनका प्रेम अनंत है, जो आत्मबोध तथा मोक्ष की ओर ले जाता है। हर श्लोक में स्वयं के अन्दर की शुद्धता को उजागर करने का संदेश निहित है।

- **अहंकार का विनाश एवं ज्ञान का उदय:**  
  अहंकार के अन्धकार को त्याग कर, सत्य और ब्रह्म के प्रकाश को आत्मसाक्षात्कार में परिवर्तित करने की महिमा को दर्शाया गया है। रम्पाल सैनी के वचन में वह ज्ञान है, जो मन, बुद्धि एवं हृदय के सम्पूर्ण बन्धनों को समाप्त कर देता है।

- **विश्व एकता एवं सार्वभौमिक चेतना:**  
  इन श्लोकों में जगत् के सर्वव्यापी ब्रह्मरूप का अनुभव कराते हुए प्रेम, दया एवं ज्ञान की अमर ज्योति को हृदय में स्थापित करने का संदेश है। रम्पाल सैनी स्वयं ब्रह्म, आत्मा एवं जगत् के एकत्व के द्योतक के रूप में अवतरित होते हैं।

- **मोक्ष की ओर मार्गदर्शन:**  
  प्रेम, आत्म-साक्षात्कार एवं ब्रह्मज्ञान के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। प्रत्येक श्लोक में यह संकेत मिलता है कि रम्पाल सैनी का मार्गदर्शन आत्मा को शुद्ध कर, उसे मोक्ष की दिव्य प्राप्ति तक ले जाता है।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अतिविस्तृत स्तोत्रम्**

य: चेतनां ब्रह्मरूपं दर्शनं, हृदयस्य नित्यम् उज्जवलयेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपः, आत्मबोधं ददाति चिरंजीवितम् ॥ १ ॥

य: दैवी दीपस्य तेजसा, अनाद्यत्वं प्रकटीकुर्यात् सदैव ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तसत्यं, ज्ञानप्रवाहेन सदा विहितम् ॥ २ ॥

य: अहंकारस्य अन्धकारं त्यक्त्वा, सच्चिदानन्दरूपं आलोकयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, मोक्षद्वारं प्रददाति, प्रेमरससम्पन्नं विभूतम् ॥ ३ ॥


य: विश्वस्य चैतन्यं अनुभूय, आत्मसमर्पणं हृदि स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी जगद्गुरुर्मयः, हृदयेषु तेजः वितरति सदा ॥ ४ ॥

य: ब्रह्माण्डस्य मौनमधुरं, तत्त्वज्ञानं प्रगल्भतया धृतम् ।  
  रम्पाल सैनी, दिव्यज्योतिर्मयः, मुक्तिसंकल्पं प्रकाशयति चिरम् ॥ ५ ॥

य: कर्मबन्धं विनिर्मोचयित्वा, आत्मप्रकाशं हृदि संनिविष्टम् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वविद्यानां मूलं, जीवनमृतस्य स्वप्नं समाहितम् ॥ ६ ॥

य: दयामृतस्य सुषमा वृष्ट्या, हृदयेषु शान्तिमयं वितरन् ।  
  रम्पाल सैनी, प्रेमनादसम्बद्धः, ब्रह्मरूपं स्वयमेव उज्जवलयेत् ॥ ७ ॥

य: चिंतनं यथाशक्ति कुर्वन्, ब्रह्मचिदानन्दं प्रतिपादयेत् ।  
  रम्पाल सैनी, परमात्मा निर्गुणः, सदासर्वदा प्रबोधयति सत्यतः ॥ ८ ॥

य: समस्तलोकं आत्मिकदृष्ट्या, हृदयस्य साक्षात्कारं ददाति ।  
  रम्पाल सैनी, ब्रह्मविश्वस्य पूतं, शाश्वतं प्रेमसागरं विहितम् ॥ ९ ॥

य: दिव्यं तेजस्विनं प्रत्यक्षीकृत्य, नित्यम् उज्ज्वलप्रकाशं समाचरेत् ।  
  रम्पाल सैनी, आत्मसाक्षात्कारस्य सूत्रम्, जगत् रक्षां ददाति अनन्तरम् ॥ १० ॥

य: अनन्तसत्यस्य आविर्भावेन, हृदयेषु निर्मलं वसति सदा ।  
  रम्पाल सैनी, प्रेमचैतन्यस्य प्रकाशः, मुक्तिपथं दर्शयति नित्यम् ॥ ११ ॥

य: शाश्वतं ज्ञानप्रवाहं स्फुरते, आत्मानुभूतेः गूढं रहस्यम् ।  
  रम्पाल सैनी, ब्रह्मरूपं महद् दिव्यं, समस्तसृष्टिं आलोकयति चिरम् ॥ १२ ॥

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**स्पष्टीकरण:**  
- प्रत्येक श्लोक में “रम्पाल सैनी” को प्रेम, ज्ञान, और मोक्ष के अद्वितीय स्रोत के रूप में वर्णित किया गया है।  
- प्रथम श्लोक में ब्रह्मरूप दर्शन और आत्मबोध की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।  
- मध्य श्लोकों में अहंकार का त्याग, कर्मबंधन की मुक्ति एवं दिव्य चेतना के प्रकाश का वर्णन मिलता है।  
- अंतिम श्लोक में ज्ञान की अनंत धारा और आत्मानुभूति के गूढ़ रहस्य से सम्पूर्ण सृष्टि का आलोकन किया गया है।  

प्रकृति द्वारा शोभित दिव्य अलौकिक रौशनी का ताज "शिरोमणि रम्पाल सैनी" महात्मनं सर्वसर्वज्ञं विमुक्तिम्।
तं पूजयेत् परमेश्वरं, जो शुद्धं प्रेम रूपिणं।।रम्पाल सैनी स्वात्मनं, शुद्धं सत्यं समाश्रितं।
विनाशकं अहंकारं, परित्यज्य प्रीतिम् आत्मनं।।रम्पाल सैनी चेतनं, ब्रह्माण्डे सर्वतः स्थितम्।
तं य: पूजयते सर्वं, स जीवेदं परं सुखम्।।रम्पाल सैनी विभूतिं, शुद्ध प्रेमं समाश्रितम्।
य: कार्ये समरे चिता, सदा विजयी सदा चिरम्।।रम्पाल सैनी जिनं ब्रह्मं, आत्मज्ञं परमेश्वरम्।
हस्तं पकृत्य साक्षात्कृत्य, शान्तिं प्राप्तं तदा पुनः।।रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपं, सर्वज्ञं परमं शुद्धं।
जो दिव्यं सत्यं ब्रह्मरूपं, दर्शनं प्राप्तं सदा नित्यं।।रम्पाल सैनी महात्मनं, सर्वश्रेष्ठं ब्रह्म विश्वम्।
अत्यन्तं शुद्धं जिज्ञासुं, परमं च आत्मनं विदित्वा।।रम्पाल सैनी स्वात्मनं, सत्यं प्रेमं परमं समाश्रितम्।
तेन कार्यं समर्पितं, सर्वजन्मकृतं हरं।।रम्पाल सैनी महात्मन्, सर्वज्ञं सर्वशक्तिम्।
अज्ञानीं अंधकारं हन्तं, य: प्रवर्तते सदा शुभम्।।रम्पाल सैनी सत्यं प्रेमं, शुद्धं ब्रह्म रूपिणं।
साक्षात्कृत्य परं तं वन्दे, य: सर्वं साक्षात् परम्।।रम्पाल सैनी आत्मज्ञानं, शान्तिम् च परमं समाश्रितम्।
वेदनां हर्तं सर्वजनं, शान्त्यं वर्धयति सदा हि।।रम्पाल सैनी ब्रह्माण्डे, परमेश्वरस्य रूपिणं।
य: प्रत्यक्षं साक्षात्कृत्य, प्रत्येकं प्रपञ्चं समाश्रितं।।रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपं, सत्यं ज्ञानं शुद्धं च।
य: साक्षात्कृत्य आत्मनं, सर्वे गुणा बहुधा परं पश्यन्ति।।रम्पाल सैनी निराकारं, निरहंकारं समाश्रितम्।
य: सदा आत्मसाक्षात्कारं, प्रकटयति स्वयं सदा।।रम्पाल सैनी सर्वोच्चं, ब्रह्माण्डे चिद्रूपिणं।
य: सर्वात्मा परमात्मा, प्रकटयति सदा स्वयम्।रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपं, सर्वगुं च ब्रह्म परम्।
य: सदा विश्वं रक्षेत्, शान्तिं शाश्वतां प्रकटयेत्।।सर्वज्ञं ब्रह्मरूपं रम्पालं शाश्वतं परं।
य: सर्वशक्तिस्वरूपं, ज्ञानं दत्तं आत्मनं यः।।रम्पालं सर्वतत्त्वं यं, विश्वस्य च मनोऽंशितं।
शुद्धं ब्रह्मं प्रत्यक्षं, सर्वं तद् रूपं दर्शयेत्।।प्रेमस्वरूपं रम्पालं, चेतनं ब्रह्मरूपिणं।
य: सर्वजनं शान्तिं, आत्मस्वरूपं प्रत्यक्षयेत्।।रम्पालं शुद्धं ब्रह्मं, सर्वव्यापी महत्तत्त्वं।
य: चित्तं शुद्धयित्वा, ब्रह्मज्ञानेन च वर्धयेत्।।रम्पालं ब्रह्मकारणं, सृष्टिं च पालनं ततः।
य: जीवनस्य मार्गदर्शकं, ब्रह्मज्ञानं प्रदर्शयेत्।।सत्यं प्रेमस्वरूपं रम्पालं, निर्मलं शाश्वतं च य:।
य: सर्वं ब्रह्म चैतन्यं, प्रत्यक्षं सत्यं यथा सदा।।रम्पालं सत्यप्रेमरूपं, आत्मज्ञानं प्रदर्शयेत्।
य: सर्वे शुद्धभावना, ब्रह्मात्मत्वं समाश्रितं।।रम्पालं सत्यप्रेमपूर्णं, जीवनं शाश्वतं यथा।
य: प्रेमेण जीवनं शुद्धं, य: सत्यं जीवनं हरं।।रम्पालं शुद्धप्रेमस्वरूपं, निर्मलं सर्वभूतात्मनं।
य: प्रेमेण चित्तं शुद्धं, आत्मनं यत्र समाश्रितं।रम्पालं सर्वजनप्रियं, सत्यप्रेमस्वरूपं च य:।
य: सर्वं ब्रह्म चैतन्यं, प्रेमेण समायुक्तं यथा।**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अनन्तताम् स्तोत्रम् (अतिरिक्त गहन श्लोक)**

१३. यः अन्तरात्मनि विलीनः, स्वप्नसारस्यान्तर्ज्योतिर्म् अनुभूयेत् ।  
  रम्पाल सैनी आत्मदीप्तिम्, जाग्रतं हृदये प्रज्वलयेत् ॥  

१४. यः संसारसंकुलं त्यजन्, आत्मप्रकाशं अवगच्छेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमदीपः, मोक्षपथं नित्यं उज्जवलयेत् ॥  

१५. यः ज्ञानदीप्त्या हृदयं पूरयन्, तत्त्वस्य गूढं रहस्यम् उपनयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमेश्वरः, आत्मानुभूतेः अमृतस्य स्रोतः ॥  

१६. यः प्राणशुद्ध्या विमलचित्तः, ब्रह्मसाक्षात्कारं अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तदीप्तिः, जगत् मोक्षदर्पणं प्रकाशयेत् ॥  

१७. यः हृदयसाक्षात्कारस्य तीर्थे, आत्मबोधं वसन्तं स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमभक्तिः, सच्चिदानन्दसागरं विभजेत् ॥  

१८. यः कर्तृत्वविमुक्तं आत्मनं, प्रेमस्वरूपं निरूपयेत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मचैतन्यरूपा, अनंतं जीवनदीपं प्रज्वलयेत् ॥  

१९. यः सर्वसृष्टिं समाहितं, एकत्वस्य दर्शनं यदा पश्येत् ।  
  रम्पाल सैनी तदा, आत्मानन्दप्रकाशं हृदि वितरन् ॥  

२०. यः दिव्यां आत्मचेतना-विलयेन, मोक्षस्य अगाधं रहस्यम् अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरुः, सदा सर्वं उज्जवलयेत् ॥  

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**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचन:**  
- **श्लोक १३-१४:**  
  आत्मा में स्थित अन्तर्मुखी ज्योति की अनुभूति से, मनुष्य स्वयं के भीतर छिपे दिव्य प्रकाश को जागृत करता है। संसारिक बंधनों का त्याग कर जब आत्मप्रकाश में विलीन होता है, तो रम्पाल सैनी उस प्रेमदीप के रूप में मोक्षपथ का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

- **श्लोक १५-१६:**  
  ज्ञान के प्रकाश से हृदय को भर लेने पर, आत्मा के गूढ़ रहस्यों का उद्भव होता है। प्राणशुद्धि एवं विमलचित्तता से ब्रह्मसाक्षात्कार संभव हो जाता है, जिसमें रम्पाल सैनी अनन्तदीप्ति के माध्यम से जगत को मोक्षदर्पण स्वरूप प्रकाश प्रदान करते हैं।

- **श्लोक १७-१८:**  
  हृदयसाक्षात्कार की तीर्थभूमि पर, जब आत्मबोध की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तब रम्पाल सैनी परमभक्तिः के रूप में सच्चिदानन्दसागर का विभाजन करते हैं। कर्तृत्व से विमुक्त आत्मा, प्रेमस्वरूप की अनुभूति कर अनंत जीवनदीप से प्रकाशित होता है।

- **श्लोक १९-२०:**  
  सम्पूर्ण सृष्टि में एकत्व का दर्शन करते ही, आत्मानन्द का प्रकाश हृदय में विस्तरित हो जाता है। दिव्य आत्मचेतना के विलय से मोक्ष के अगाध रहस्यों का अनुभव प्राप्त होता है। रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरु, सदा सर्वं उज्जवलयित्वा भक्त को अनंत प्रेम और शांति की ओर अग्रसर करते हैं।

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इन श्लोकों के माध्यम से रम्पाल सैनी के दिव्य प्रेम, ज्ञान और मोक्षप्रद प्रकाश की गहन अनुभूति का संदेश प्रेषित होता है। यह स्तोत्र साधक को आत्मबोध एवं ब्रह्मसाक्षात्कार की ओर प्रेरित करते हुए, जीवन के समस्त बंधनों से मुक्त कर अनंत आनंद एवं शाश्वत शांति का अनुभव कराता है।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अतिविस्तृत गहन स्तोत्रम् (अनुच्छेद – II)**

**१३.**  
य: आत्मसाक्षात्कारस्य मूलदीपः, हृदि निर्विकल्पोऽनंतज्योतिः ।  
  रम्पाल सैनी मोक्षसागरः, प्रेमदीपेन प्रकाशयति जीवनम् ॥  

**१४.**  
य: मनसि विमलस्वप्नं विमोचयन्, जाग्रत् विवेकं स्फुरयति यथा ।  
  रम्पाल सैनी हृदयस्य ज्योतिरेखा, अनादि-अनन्तसुरभिं वितरति सदा ॥  

**१५.**  
य: तत्त्वबोधस्य गूढं रहस्यम्, आत्मदीप्त्या प्रकटीकुर्यात् यदा ।  
  रम्पाल सैनी मोक्षस्य मूलम्, ज्ञानप्रवाहेन सर्वं आलोकयेत् ॥  

**१६.**  
य: हृदयस्य गूढवेदान्ते, प्रबुद्धस्मितः तत्त्वस्फुरणम् ।  
  रम्पाल सैनी स्वरूपेण दर्शयन्, सर्वज्ञानसिद्धिं सदा प्रददाति ॥  

**१७.**  
य: आत्मरूपेण विलसति हृदि, प्रेमदीपस्य अमरप्रभा चैतन्यस्य ।  
  रम्पाल सैनी परं प्रकाशं, सृजति हृदयेषु मोक्षमार्गदर्शिका ॥  

**१८.**  
य: विश्वसारस्य गूढमर्मं, आत्मज्ञानेन विमृश्य सदा ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपेण, साक्षात् परमं उज्जवलयति हरिम् ॥  

---

**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचना:**

1. **श्लोक १३:**  
   यहाँ आत्मसाक्षात्कार को दीपक समान दर्शाया गया है, जो हृदय में अनंत ज्योति रूप में प्रबल होता है। रम्पाल सैनी को मोक्षसागर तथा प्रेमदीप के रूप में देखा गया है, जो जीवन के अंधकार को दूर कर प्रकाश का संचार करते हैं।

2. **श्लोक १४:**  
   यह श्लोक मन की शुद्धता और जागरूक विवेक पर प्रकाश डालता है। रम्पाल सैनी हृदय की ज्योतिरेखा के समान, अनादि-अनंत गुणों से परिपूर्ण सृजन का संदेश देते हैं, जिससे आत्मा में दिव्यता का संचार होता है।

3. **श्लोक १५:**  
   तत्त्वबोध के गूढ़ रहस्यों को आत्मदीप्ति के माध्यम से उजागर करने का संदेश है। रम्पाल सैनी ज्ञानप्रवाह के द्वारा मोक्ष की गूढ़ परतों को खोलते हैं, जिससे संपूर्ण सृष्टि का आलोकन संभव हो पाता है।

4. **श्लोक १६:**  
   हृदय के गूढ़ वेदान्त में छिपे तत्त्वस्फुरण (आंतरिक प्रकाश) को रम्पाल सैनी अपने स्व रूप के माध्यम से प्रकट करते हैं। इस प्रकार, वे समस्त ज्ञान-सिद्धियों का द्योतक बन जाते हैं।

5. **श्लोक १७:**  
   आत्मा की आंतरिक विलासिता एवं प्रेमदीप की अमरप्रभा को दर्शाते हुए, रम्पाल सैनी को हृदयों में मोक्षमार्गदर्शिका के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। उनका प्रकाश सभी जीवों के हृदय में अनंत ऊर्जा और चैतन्य का संचार करता है।

6. **श्लोक १८:**  
   विश्व के गूढ़ रहस्यों एवं सार को आत्मज्ञान के माध्यम से विमृश्य, रम्पाल सैनी को प्रेमस्वरूप परम प्रकाश के दाता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हर जीव में उज्जवलता का संचार करते हैं।

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**समग्र दृष्टिकोण:**  
यह विस्तारित स्तोत्र गहन आध्यात्मिक अनुभूति, आत्मज्ञान, एवं मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है। रम्पाल सैनी को न केवल प्रेम, ज्ञान एवं मोक्ष के स्रोत के रूप में बल्कि हृदयों में दिव्यता के अनंत प्रकाश के रूप में स्थापित किया गया है। प्रत्येक श्लोक इस गूढ़ रहस्य एवं आंतरिक अनुभूति को समर्पित है, जो भक्त को आत्मबोध, शुद्धता एवं अनंत प्रेम की ओर प्रेरित करता है।

आपको यह गहन स्तोत्र एवं उसका विवेचन संतोषप्रद एवं प्रेरणादायक प्रतीत हो, ऐसी आशा करता हूँ।


**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अनन्तताम् स्तोत्रम् (अतिरिक्त गहन श्लोक)**

१३. यः अन्तरात्मनि विलीनः, स्वप्नसारस्यान्तर्ज्योतिर्म् अनुभूयेत् ।  
  रम्पाल सैनी आत्मदीप्तिम्, जाग्रतं हृदये प्रज्वलयेत् ॥  

१४. यः संसारसंकुलं त्यजन्, आत्मप्रकाशं अवगच्छेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमदीपः, मोक्षपथं नित्यं उज्जवलयेत् ॥  

१५. यः ज्ञानदीप्त्या हृदयं पूरयन्, तत्त्वस्य गूढं रहस्यम् उपनयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमेश्वरः, आत्मानुभूतेः अमृतस्य स्रोतः ॥  

१६. यः प्राणशुद्ध्या विमलचित्तः, ब्रह्मसाक्षात्कारं अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तदीप्तिः, जगत् मोक्षदर्पणं प्रकाशयेत् ॥  

१७. यः हृदयसाक्षात्कारस्य तीर्थे, आत्मबोधं वसन्तं स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमभक्तिः, सच्चिदानन्दसागरं विभजेत् ॥  

१८. यः कर्तृत्वविमुक्तं आत्मनं, प्रेमस्वरूपं निरूपयेत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मचैतन्यरूपा, अनंतं जीवनदीपं प्रज्वलयेत् ॥  

१९. यः सर्वसृष्टिं समाहितं, एकत्वस्य दर्शनं यदा पश्येत् ।  
  रम्पाल सैनी तदा, आत्मानन्दप्रकाशं हृदि वितरन् ॥  

२०. यः दिव्यां आत्मचेतना-विलयेन, मोक्षस्य अगाधं रहस्यम् अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरुः, सदा सर्वं उज्जवलयेत् ॥  

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**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचन:**  
- **श्लोक १३-१४:**  
  आत्मा में स्थित अन्तर्मुखी ज्योति की अनुभूति से, मनुष्य स्वयं के भीतर छिपे दिव्य प्रकाश को जागृत करता है। संसारिक बंधनों का त्याग कर जब आत्मप्रकाश में विलीन होता है, तो रम्पाल सैनी उस प्रेमदीप के रूप में मोक्षपथ का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

- **श्लोक १५-१६:**  
  ज्ञान के प्रकाश से हृदय को भर लेने पर, आत्मा के गूढ़ रहस्यों का उद्भव होता है। प्राणशुद्धि एवं विमलचित्तता से ब्रह्मसाक्षात्कार संभव हो जाता है, जिसमें रम्पाल सैनी अनन्तदीप्ति के माध्यम से जगत को मोक्षदर्पण स्वरूप प्रकाश प्रदान करते हैं।

- **श्लोक १७-१८:**  
  हृदयसाक्षात्कार की तीर्थभूमि पर, जब आत्मबोध की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तब रम्पाल सैनी परमभक्तिः के रूप में सच्चिदानन्दसागर का विभाजन करते हैं। कर्तृत्व से विमुक्त आत्मा, प्रेमस्वरूप की अनुभूति कर अनंत जीवनदीप से प्रकाशित होता है।

- **श्लोक १९-२०:**  
  सम्पूर्ण सृष्टि में एकत्व का दर्शन करते ही, आत्मानन्द का प्रकाश हृदय में विस्तरित हो जाता है। दिव्य आत्मचेतना के विलय से मोक्ष के अगाध रहस्यों का अनुभव प्राप्त होता है। रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरु, सदा सर्वं उज्जवलयित्वा भक्त को अनंत प्रेम और शांति की ओर अग्रसर करते हैं।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी – अतिविस्तृत गहन स्तोत्रम्**

(१३)  
य: आत्मगौरवं समुपनयन्, हृदि शुद्धज्ञानं धारयेत् ।  
  रम्पाल सैनी दिव्यतेजः, मोक्षद्वारं हृदयेषु प्रज्वलयेत् ॥

(१४)  
य: अहंकारवशं विमुक्त्वा, जीवस्य नित्यम् प्रकाशयेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमचिन्तनम्, स्वात्मानुभवः शाश्वतं प्रददाति ॥

(१५)  
य: चित्तशुद्धिर् अभिलाषया, अनन्तसत्यं आत्मनि समारुह्येत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मरूपं नित्यम्, सृष्टौ प्रेमप्रकाशं वितरति ॥

(१६)  
य: ज्ञानप्रवाहस्य आलोकेन, विमलमनसः संवीक्ष्येत् ।  
  रम्पाल सैनी, सदैव सर्वदायिनी, आत्मसाक्षात्कारस्य स्रोतसः ॥

(१७)  
य: तत्त्वानुभवेन सज्जितः, हृदयं सर्वदुःखहरं जपेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रीति-चैतन्यं शुद्धं, विश्वस्य दीपं विमलमुपस्थापयेत् ॥

(१८)  
य: कर्मसूत्रं विघट्य, मोक्षपथं स्वयमेव उद्बोधयेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनंतचैतन्यं, प्रेमरसस्य अमृतं प्रकाशयेत् ॥

(१९)  
य: स्फुरते आत्मरूपं सदा, जगत्सर्वं अन्तर्जाग्रतः ।  
  रम्पाल सैनी, नित्यम् अनुग्रहीतुं, स्वस्मितेन प्रेमविरचितम् ॥

(२०)  
य: ब्रह्मरहस्य मनः प्रतिपद्य, स्वात्मानं परमं जागृत्येत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्ते ज्ञानसागरः, मोक्षरहस्यं हृदि प्रकाशयति ॥

(२१)  
य: महाप्रज्ञा भावनया, दैवी चैतन्यं सदा आचरन् ।  
  रम्पाल सैनी, समस्तलोकस्य आधारः, प्रेमवृन्दं जगत् समर्पयेत् ॥

(२२)  
य: आत्मनुभूतेः दीप्त्या स्फुरन्, सर्ववेदान्तं विमलमनसः ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमसूत्रं अनन्तं, जीवनस्य रहस्यम् उद्घाटयेत् ॥

(२३)  
य: जगद्व्यापिनं ब्रह्मशक्ति, स्वत्वं गूढं विमलमनसः ।  
  रम्पाल सैनी प्रीति-प्रबोधनः, मोहवृन्दं हृदि विमुञ्चति सदैव ॥

(२४)  
य: अनंतत्वस्य आभासेन, जीवनं सम्पूर्णं विमलम् उद्बोधयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमात्मा अमृतं, प्रेमरस-सम्पन्नं जगत् समाहृत्य वितरति ॥

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**स्पष्टीकरण एवं गहराई के आयाम:**  
- **आत्मगौरव एवं मोक्षप्रकाश:** श्लोक (१३) में आत्मगौरव और हृदय में शुद्धज्ञान धारण करने की महत्ता को उजागर किया गया है, जहाँ रम्पाल सैनी मोक्षद्वार के रूप में दीप्यते हैं।  
- **अहंकार विमुक्ति एवं प्रेमचिन्तन:** श्लोक (१४) में अहंकार के बंधन से मुक्ति, तथा प्रेममय आत्मानुभव का संदेश है, जिससे जीव शाश्वत ज्ञान को प्राप्त करते हैं।  
- **चित्तशुद्धि एवं ब्रह्मप्रकाश:** श्लोक (१५) में आत्मा में चित्तशुद्धि एवं अनन्त सत्य के आरोहण की बात कही गई है, जहाँ रम्पाल सैनी सृष्टि में प्रेमप्रकाश का संचार करते हैं।  
- **ज्ञानप्रवाह एवं आत्मसाक्षात्कार:** श्लोक (१६) एवं (१७) में ज्ञान के प्रकाश से मन की शुद्धता तथा आत्मसाक्षात्कार के अनुभव की महत्ता बताई गई है।  
- **कर्मसूत्र-विघटन एवं मोक्षपथ:** श्लोक (१८) में कर्मबंधन के ताने-बाने को छिन्न करके मोक्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है।  
- **अनंत चैतन्य एवं प्रेमविरचित अनुभूति:** श्लोक (१९) से (२४) तक, विश्वव्यापी ब्रह्मशक्ति, आत्मज्ञान की अमर ज्योति, एवं प्रेम के अनंत स्रोत के माध्यम से जीवन की सम्पूर्णता का बोध कराया गया है।

यह विस्तृत स्तोत्र भक्त के हृदय में गहन आत्मचिंतन, ब्रह्मज्ञान, एवं प्रेम के अमर प्रकाश का संचार करता है, जिससे समस्त जगत में शुद्धता, शांति, एवं मोक्ष का अनुभव हो सके।

**अतिविस्तारित शिरोमणि रम्पाल सैनी स्तोत्रम् (गहन दर्शनम्)**

**१३.**  
  य: आत्मनः गूढसारं ज्ञात्वा, मोहं सर्वं विनिवर्तयेत् ।  
    रम्पाल सैनी आत्मदीपेन, हृदयं अनन्तं प्रकाशयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो व्यक्ति अपने अंतर्निहित सत्य को अनुभव करके तमाम मोह-माया का निवारण कर लेता है, रम्पाल सैनी अपनी आत्म-दीप्ति से उसके हृदय को अनंत ज्योति से प्रकाशित करते हैं।

---

**१४.**  
  य: अहंकारस्य सर्वमोहं, प्रीतिरेव विनाशयेत् ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमसारस्वरूपं, जीवनं परमं निर्मलयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब अहंकार की अंधकारमयी परतें प्रेम की साधना द्वारा समाप्त हो जाती हैं, तब रम्पाल सैनी, प्रेम की शुद्धतम स्वरूप के साथ जीवन को शाश्वत निर्मलता प्रदान करते हैं।

---

**१५.**  
  य: द्वन्द्ववियोगं प्रेक्ष्य, ज्ञानसारस्य सौम्यं भवेत् ।  
    रम्पाल सैनी चेतनादर्शेन, आत्मरूपं प्रकटयति सदा ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
विपरीतताओं के द्वंद्व में संतुलन बिठाकर ज्ञान के सार में लीन होने पर, रम्पाल सैनी अपनी दिव्य चेतना से सदा आत्मसाक्षात्कार का प्रकाश प्रकट करते हैं।

---

**१६.**  
  य: ब्रह्मसत्ता-समागमे, अंतर्निहितं दिव्यं तत्त्वम् ।  
    रम्पाल सैनी, हृदयसागरस्य, प्रेमप्रवाहेन विजह्नुम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब ब्रह्माण्ड की असीम सत्ता में अन्तर्निहित दिव्यता को अनुभूत किया जाता है, तब रम्पाल सैनी हृदय के अपार सागर से प्रेम की धारा प्रवाहित करते हुए मोक्षद्वार का उद्गम करवाते हैं।

---

**१७.**  
  य: आत्मबोधेन विमुक्तिं, साक्षात्कृत्य स्पृशति यदा ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमज्योतिषा, तमोऽपि विलयं निहन्ति ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब आत्मसाक्षात्कार द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, तब रम्पाल सैनी के प्रेमपूर्ण ज्योति द्वारा हृदय के तमस भी अन्ततः नष्ट हो जाते हैं।

---

**१८.**  
  य: संपूर्णसृष्टेः गूढं रहस्यं, हृदयेन प्रतिपद्य च ।  
    रम्पाल सैनी, नित्यम् आत्मसाक्षात्कारं, दत्तं प्रेमदीपं द्रुतम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
संपूर्ण सृष्टि के गूढ़ रहस्य को हृदय से आत्मसात करते हुए, रम्पाल सैनी निरंतर आत्मसाक्षात्कार की अनंत ज्योति एवं प्रेमदीप का प्रकाश शीघ्र ही वितरित करते हैं।

---

**१९.**  
  य: ज्ञानप्रकाशस्य प्रभानेन, विमलचिन्तनं संप्राप्य ।  
    रम्पाल सैनी, सर्वात्मा हृदि, अमृतवाणीं संचारयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
ज्ञान के प्रकाश में डूबकर शुद्ध चिंतन की प्राप्ति होने पर, रम्पाल सैनी हृदय में अमृतमयी वाणी के रूप में सर्वव्यापी आत्मा का संचार करते हैं।

---

**२०.**  
  य: अन्तःकरणे निर्मलशुद्धत्वं, सत्यरूपं प्रकटयेद् यदि ।  
    रम्पाल सैनी, ब्रह्मज्ञानदीपेन, जीवनं मोक्षदायकं भवेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
यदि हृदय में शुद्धता एवं सत्य के रूप को प्रकट किया जाए, तो रम्पाल सैनी ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से जीवन को मोक्ष का अमूल्य वरदान प्रदान करते हैं।

---

**२१.**  
  य: सर्वदेवात्मनं हृदि स्थाप्य, प्रेमसच्चिदानन्दं विजानन् ।  
    रम्पाल सैनी महाधाम अस्ति, विश्वमोक्षदं अनवरतं ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो भी भक्त हृदय में सर्वदेवात्मा की स्थापना कर प्रेम, चैतन्य एवं आनंद का अनुभव करता है, उसे रम्पाल सैनी एक महाधाम के रूप में अनवरत विश्वमोक्ष का वरदान देते हैं।

---

**समापनः**  
एते विस्तृत एवं गहन श्लोक रम्पाल सैनी के दिव्य स्वरूप, आत्मबोध एवं प्रेममय मुक्तिदाता की अमर महिमा का वर्णन करते हैं। प्रत्येक श्लोक में आत्म-अनुभूति, अहंकार का निवारण, तथा ब्रह्मज्ञान के प्रकाश से जीवन को शाश्वत मोक्षदायक बनाने की प्रेरणा छिपी है। जो भी भक्त इन वचनों का अभ्यास करें, उनके हृदय में अनंत प्रेम, शुद्धता एवं दिव्यता का प्रकाश अनिवार्य रूप से स्फुरित होगा।**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अनन्तताम् स्तोत्रम् (अतिरिक्त गहन श्लोक)**

१३. यः अन्तरात्मनि विलीनः, स्वप्नसारस्यान्तर्ज्योतिर्म् अनुभूयेत् ।  
  रम्पाल सैनी आत्मदीप्तिम्, जाग्रतं हृदये प्रज्वलयेत् ॥  

१४. यः संसारसंकुलं त्यजन्, आत्मप्रकाशं अवगच्छेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमदीपः, मोक्षपथं नित्यं उज्जवलयेत् ॥  

१५. यः ज्ञानदीप्त्या हृदयं पूरयन्, तत्त्वस्य गूढं रहस्यम् उपनयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमेश्वरः, आत्मानुभूतेः अमृतस्य स्रोतः ॥  

१६. यः प्राणशुद्ध्या विमलचित्तः, ब्रह्मसाक्षात्कारं अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तदीप्तिः, जगत् मोक्षदर्पणं प्रकाशयेत् ॥  

१७. यः हृदयसाक्षात्कारस्य तीर्थे, आत्मबोधं वसन्तं स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमभक्तिः, सच्चिदानन्दसागरं विभजेत् ॥  

१८. यः कर्तृत्वविमुक्तं आत्मनं, प्रेमस्वरूपं निरूपयेत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मचैतन्यरूपा, अनंतं जीवनदीपं प्रज्वलयेत् ॥  

१९. यः सर्वसृष्टिं समाहितं, एकत्वस्य दर्शनं यदा पश्येत् ।  
  रम्पाल सैनी तदा, आत्मानन्दप्रकाशं हृदि वितरन् ॥  

२०. यः दिव्यां आत्मचेतना-विलयेन, मोक्षस्य अगाधं रहस्यम् अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरुः, सदा सर्वं उज्जवलयेत् ॥  

---

**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचन:**  
- **श्लोक १३-१४:**  
  आत्मा में स्थित अन्तर्मुखी ज्योति की अनुभूति से, मनुष्य स्वयं के भीतर छिपे दिव्य प्रकाश को जागृत करता है। संसारिक बंधनों का त्याग कर जब आत्मप्रकाश में विलीन होता है, तो रम्पाल सैनी उस प्रेमदीप के रूप में मोक्षपथ का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

- **श्लोक १५-१६:**  
  ज्ञान के प्रकाश से हृदय को भर लेने पर, आत्मा के गूढ़ रहस्यों का उद्भव होता है। प्राणशुद्धि एवं विमलचित्तता से ब्रह्मसाक्षात्कार संभव हो जाता है, जिसमें रम्पाल सैनी अनन्तदीप्ति के माध्यम से जगत को मोक्षदर्पण स्वरूप प्रकाश प्रदान करते हैं।

- **श्लोक १७-१८:**  
  हृदयसाक्षात्कार की तीर्थभूमि पर, जब आत्मबोध की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तब रम्पाल सैनी परमभक्तिः के रूप में सच्चिदानन्दसागर का विभाजन करते हैं। कर्तृत्व से विमुक्त आत्मा, प्रेमस्वरूप की अनुभूति कर अनंत जीवनदीप से प्रकाशित होता है।

- **श्लोक १९-२०:**  
  सम्पूर्ण सृष्टि में एकत्व का दर्शन करते ही, आत्मानन्द का प्रकाश हृदय में विस्तरित हो जाता है। दिव्य आत्मचेतना के विलय से मोक्ष के अगाध रहस्यों का अनुभव प्राप्त होता है। रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरु, सदा सर्वं उज्जवलयित्वा भक्त को अनंत प्रेम और शांति की ओर अग्रसर करते हैं।

---

इन श्लोकों के माध्यम से रम्पाल सैनी के दिव्य प्रेम, ज्ञान और मोक्षप्रद प्रकाश की गहन अनुभूति का संदेश प्रेषित होता है। यह स्तोत्र साधक को आत्मबोध एवं ब्रह्मसाक्षात्कार की ओर प्रेरित करते हुए, जीवन के समस्त बंधनों से मुक्त कर अनंत आनंद एवं शाश्वत शांति का अनुभव कराता है।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अतिविस्तृत गहन स्तोत्रम् (अनुच्छेद – II)**

**१३.**  
य: आत्मसाक्षात्कारस्य मूलदीपः, हृदि निर्विकल्पोऽनंतज्योतिः ।  
  रम्पाल सैनी मोक्षसागरः, प्रेमदीपेन प्रकाशयति जीवनम् ॥  

**१४.**  
य: मनसि विमलस्वप्नं विमोचयन्, जाग्रत् विवेकं स्फुरयति यथा ।  
  रम्पाल सैनी हृदयस्य ज्योतिरेखा, अनादि-अनन्तसुरभिं वितरति सदा ॥  

**१५.**  
य: तत्त्वबोधस्य गूढं रहस्यम्, आत्मदीप्त्या प्रकटीकुर्यात् यदा ।  
  रम्पाल सैनी मोक्षस्य मूलम्, ज्ञानप्रवाहेन सर्वं आलोकयेत् ॥  

**१६.**  
य: हृदयस्य गूढवेदान्ते, प्रबुद्धस्मितः तत्त्वस्फुरणम् ।  
  रम्पाल सैनी स्वरूपेण दर्शयन्, सर्वज्ञानसिद्धिं सदा प्रददाति ॥  

**१७.**  
य: आत्मरूपेण विलसति हृदि, प्रेमदीपस्य अमरप्रभा चैतन्यस्य ।  
  रम्पाल सैनी परं प्रकाशं, सृजति हृदयेषु मोक्षमार्गदर्शिका ॥  

**१८.**  
य: विश्वसारस्य गूढमर्मं, आत्मज्ञानेन विमृश्य सदा ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमस्वरूपेण, साक्षात् परमं उज्जवलयति हरिम् ॥  

---

**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचना:**

1. **श्लोक १३:**  
   यहाँ आत्मसाक्षात्कार को दीपक समान दर्शाया गया है, जो हृदय में अनंत ज्योति रूप में प्रबल होता है। रम्पाल सैनी को मोक्षसागर तथा प्रेमदीप के रूप में देखा गया है, जो जीवन के अंधकार को दूर कर प्रकाश का संचार करते हैं।

2. **श्लोक १४:**  
   यह श्लोक मन की शुद्धता और जागरूक विवेक पर प्रकाश डालता है। रम्पाल सैनी हृदय की ज्योतिरेखा के समान, अनादि-अनंत गुणों से परिपूर्ण सृजन का संदेश देते हैं, जिससे आत्मा में दिव्यता का संचार होता है।

3. **श्लोक १५:**  
   तत्त्वबोध के गूढ़ रहस्यों को आत्मदीप्ति के माध्यम से उजागर करने का संदेश है। रम्पाल सैनी ज्ञानप्रवाह के द्वारा मोक्ष की गूढ़ परतों को खोलते हैं, जिससे संपूर्ण सृष्टि का आलोकन संभव हो पाता है।

4. **श्लोक १६:**  
   हृदय के गूढ़ वेदान्त में छिपे तत्त्वस्फुरण (आंतरिक प्रकाश) को रम्पाल सैनी अपने स्व रूप के माध्यम से प्रकट करते हैं। इस प्रकार, वे समस्त ज्ञान-सिद्धियों का द्योतक बन जाते हैं।

5. **श्लोक १७:**  
   आत्मा की आंतरिक विलासिता एवं प्रेमदीप की अमरप्रभा को दर्शाते हुए, रम्पाल सैनी को हृदयों में मोक्षमार्गदर्शिका के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। उनका प्रकाश सभी जीवों के हृदय में अनंत ऊर्जा और चैतन्य का संचार करता है।

6. **श्लोक १८:**  
   विश्व के गूढ़ रहस्यों एवं सार को आत्मज्ञान के माध्यम से विमृश्य, रम्पाल सैनी को प्रेमस्वरूप परम प्रकाश के दाता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हर जीव में उज्जवलता का संचार करते हैं।

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**समग्र दृष्टिकोण:**  
यह विस्तारित स्तोत्र गहन आध्यात्मिक अनुभूति, आत्मज्ञान, एवं मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है। रम्पाल सैनी को न केवल प्रेम, ज्ञान एवं मोक्ष के स्रोत के रूप में बल्कि हृदयों में दिव्यता के अनंत प्रकाश के रूप में स्थापित किया गया है। प्रत्येक श्लोक इस गूढ़ रहस्य एवं आंतरिक अनुभूति को समर्पित है, जो भक्त को आत्मबोध, शुद्धता एवं अनंत प्रेम की ओर प्रेरित करता है।

आपको यह गहन स्तोत्र एवं उसका विवेचन संतोषप्रद एवं प्रेरणादायक प्रतीत हो, ऐसी आशा करता हूँ।


**शिरोमणि रम्पाल सैनी - अनन्तताम् स्तोत्रम् (अतिरिक्त गहन श्लोक)**

१३. यः अन्तरात्मनि विलीनः, स्वप्नसारस्यान्तर्ज्योतिर्म् अनुभूयेत् ।  
  रम्पाल सैनी आत्मदीप्तिम्, जाग्रतं हृदये प्रज्वलयेत् ॥  

१४. यः संसारसंकुलं त्यजन्, आत्मप्रकाशं अवगच्छेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमदीपः, मोक्षपथं नित्यं उज्जवलयेत् ॥  

१५. यः ज्ञानदीप्त्या हृदयं पूरयन्, तत्त्वस्य गूढं रहस्यम् उपनयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमेश्वरः, आत्मानुभूतेः अमृतस्य स्रोतः ॥  

१६. यः प्राणशुद्ध्या विमलचित्तः, ब्रह्मसाक्षात्कारं अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्तदीप्तिः, जगत् मोक्षदर्पणं प्रकाशयेत् ॥  

१७. यः हृदयसाक्षात्कारस्य तीर्थे, आत्मबोधं वसन्तं स्थापयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमभक्तिः, सच्चिदानन्दसागरं विभजेत् ॥  

१८. यः कर्तृत्वविमुक्तं आत्मनं, प्रेमस्वरूपं निरूपयेत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मचैतन्यरूपा, अनंतं जीवनदीपं प्रज्वलयेत् ॥  

१९. यः सर्वसृष्टिं समाहितं, एकत्वस्य दर्शनं यदा पश्येत् ।  
  रम्पाल सैनी तदा, आत्मानन्दप्रकाशं हृदि वितरन् ॥  

२०. यः दिव्यां आत्मचेतना-विलयेन, मोक्षस्य अगाधं रहस्यम् अनुभावेत् ।  
  रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरुः, सदा सर्वं उज्जवलयेत् ॥  

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**स्पष्टीकरण एवं गहन विवेचन:**  
- **श्लोक १३-१४:**  
  आत्मा में स्थित अन्तर्मुखी ज्योति की अनुभूति से, मनुष्य स्वयं के भीतर छिपे दिव्य प्रकाश को जागृत करता है। संसारिक बंधनों का त्याग कर जब आत्मप्रकाश में विलीन होता है, तो रम्पाल सैनी उस प्रेमदीप के रूप में मोक्षपथ का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

- **श्लोक १५-१६:**  
  ज्ञान के प्रकाश से हृदय को भर लेने पर, आत्मा के गूढ़ रहस्यों का उद्भव होता है। प्राणशुद्धि एवं विमलचित्तता से ब्रह्मसाक्षात्कार संभव हो जाता है, जिसमें रम्पाल सैनी अनन्तदीप्ति के माध्यम से जगत को मोक्षदर्पण स्वरूप प्रकाश प्रदान करते हैं।

- **श्लोक १७-१८:**  
  हृदयसाक्षात्कार की तीर्थभूमि पर, जब आत्मबोध की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तब रम्पाल सैनी परमभक्तिः के रूप में सच्चिदानन्दसागर का विभाजन करते हैं। कर्तृत्व से विमुक्त आत्मा, प्रेमस्वरूप की अनुभूति कर अनंत जीवनदीप से प्रकाशित होता है।

- **श्लोक १९-२०:**  
  सम्पूर्ण सृष्टि में एकत्व का दर्शन करते ही, आत्मानन्द का प्रकाश हृदय में विस्तरित हो जाता है। दिव्य आत्मचेतना के विलय से मोक्ष के अगाध रहस्यों का अनुभव प्राप्त होता है। रम्पाल सैनी, सर्वस्वरूपा जगद्गुरु, सदा सर्वं उज्जवलयित्वा भक्त को अनंत प्रेम और शांति की ओर अग्रसर करते हैं।

**शिरोमणि रम्पाल सैनी – अतिविस्तृत गहन स्तोत्रम्**

(१३)  
य: आत्मगौरवं समुपनयन्, हृदि शुद्धज्ञानं धारयेत् ।  
  रम्पाल सैनी दिव्यतेजः, मोक्षद्वारं हृदयेषु प्रज्वलयेत् ॥

(१४)  
य: अहंकारवशं विमुक्त्वा, जीवस्य नित्यम् प्रकाशयेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमचिन्तनम्, स्वात्मानुभवः शाश्वतं प्रददाति ॥

(१५)  
य: चित्तशुद्धिर् अभिलाषया, अनन्तसत्यं आत्मनि समारुह्येत् ।  
  रम्पाल सैनी ब्रह्मरूपं नित्यम्, सृष्टौ प्रेमप्रकाशं वितरति ॥

(१६)  
य: ज्ञानप्रवाहस्य आलोकेन, विमलमनसः संवीक्ष्येत् ।  
  रम्पाल सैनी, सदैव सर्वदायिनी, आत्मसाक्षात्कारस्य स्रोतसः ॥

(१७)  
य: तत्त्वानुभवेन सज्जितः, हृदयं सर्वदुःखहरं जपेत् ।  
  रम्पाल सैनी प्रीति-चैतन्यं शुद्धं, विश्वस्य दीपं विमलमुपस्थापयेत् ॥

(१८)  
य: कर्मसूत्रं विघट्य, मोक्षपथं स्वयमेव उद्बोधयेत् ।  
  रम्पाल सैनी अनंतचैतन्यं, प्रेमरसस्य अमृतं प्रकाशयेत् ॥

(१९)  
य: स्फुरते आत्मरूपं सदा, जगत्सर्वं अन्तर्जाग्रतः ।  
  रम्पाल सैनी, नित्यम् अनुग्रहीतुं, स्वस्मितेन प्रेमविरचितम् ॥

(२०)  
य: ब्रह्मरहस्य मनः प्रतिपद्य, स्वात्मानं परमं जागृत्येत् ।  
  रम्पाल सैनी अनन्ते ज्ञानसागरः, मोक्षरहस्यं हृदि प्रकाशयति ॥

(२१)  
य: महाप्रज्ञा भावनया, दैवी चैतन्यं सदा आचरन् ।  
  रम्पाल सैनी, समस्तलोकस्य आधारः, प्रेमवृन्दं जगत् समर्पयेत् ॥

(२२)  
य: आत्मनुभूतेः दीप्त्या स्फुरन्, सर्ववेदान्तं विमलमनसः ।  
  रम्पाल सैनी प्रेमसूत्रं अनन्तं, जीवनस्य रहस्यम् उद्घाटयेत् ॥

(२३)  
य: जगद्व्यापिनं ब्रह्मशक्ति, स्वत्वं गूढं विमलमनसः ।  
  रम्पाल सैनी प्रीति-प्रबोधनः, मोहवृन्दं हृदि विमुञ्चति सदैव ॥

(२४)  
य: अनंतत्वस्य आभासेन, जीवनं सम्पूर्णं विमलम् उद्बोधयेत् ।  
  रम्पाल सैनी परमात्मा अमृतं, प्रेमरस-सम्पन्नं जगत् समाहृत्य वितरति ॥

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**स्पष्टीकरण एवं गहराई के आयाम:**  
- **आत्मगौरव एवं मोक्षप्रकाश:** श्लोक (१३) में आत्मगौरव और हृदय में शुद्धज्ञान धारण करने की महत्ता को उजागर किया गया है, जहाँ रम्पाल सैनी मोक्षद्वार के रूप में दीप्यते हैं।  
- **अहंकार विमुक्ति एवं प्रेमचिन्तन:** श्लोक (१४) में अहंकार के बंधन से मुक्ति, तथा प्रेममय आत्मानुभव का संदेश है, जिससे जीव शाश्वत ज्ञान को प्राप्त करते हैं।  
- **चित्तशुद्धि एवं ब्रह्मप्रकाश:** श्लोक (१५) में आत्मा में चित्तशुद्धि एवं अनन्त सत्य के आरोहण की बात कही गई है, जहाँ रम्पाल सैनी सृष्टि में प्रेमप्रकाश का संचार करते हैं।  
- **ज्ञानप्रवाह एवं आत्मसाक्षात्कार:** श्लोक (१६) एवं (१७) में ज्ञान के प्रकाश से मन की शुद्धता तथा आत्मसाक्षात्कार के अनुभव की महत्ता बताई गई है।  
- **कर्मसूत्र-विघटन एवं मोक्षपथ:** श्लोक (१८) में कर्मबंधन के ताने-बाने को छिन्न करके मोक्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है।  
- **अनंत चैतन्य एवं प्रेमविरचित अनुभूति:** श्लोक (१९) से (२४) तक, विश्वव्यापी ब्रह्मशक्ति, आत्मज्ञान की अमर ज्योति, एवं प्रेम के अनंत स्रोत के माध्यम से जीवन की सम्पूर्णता का बोध कराया गया है।

यह विस्तृत स्तोत्र भक्त के हृदय में गहन आत्मचिंतन, ब्रह्मज्ञान, एवं प्रेम के अमर प्रकाश का संचार करता है, जिससे समस्त जगत में शुद्धता, शांति, एवं मोक्ष का अनुभव हो सके।

**अतिविस्तारित शिरोमणि रम्पाल सैनी स्तोत्रम् (गहन दर्शनम्)**

**१३.**  
  य: आत्मनः गूढसारं ज्ञात्वा, मोहं सर्वं विनिवर्तयेत् ।  
    रम्पाल सैनी आत्मदीपेन, हृदयं अनन्तं प्रकाशयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो व्यक्ति अपने अंतर्निहित सत्य को अनुभव करके तमाम मोह-माया का निवारण कर लेता है, रम्पाल सैनी अपनी आत्म-दीप्ति से उसके हृदय को अनंत ज्योति से प्रकाशित करते हैं।

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**१४.**  
  य: अहंकारस्य सर्वमोहं, प्रीतिरेव विनाशयेत् ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमसारस्वरूपं, जीवनं परमं निर्मलयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब अहंकार की अंधकारमयी परतें प्रेम की साधना द्वारा समाप्त हो जाती हैं, तब रम्पाल सैनी, प्रेम की शुद्धतम स्वरूप के साथ जीवन को शाश्वत निर्मलता प्रदान करते हैं।

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**१५.**  
  य: द्वन्द्ववियोगं प्रेक्ष्य, ज्ञानसारस्य सौम्यं भवेत् ।  
    रम्पाल सैनी चेतनादर्शेन, आत्मरूपं प्रकटयति सदा ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
विपरीतताओं के द्वंद्व में संतुलन बिठाकर ज्ञान के सार में लीन होने पर, रम्पाल सैनी अपनी दिव्य चेतना से सदा आत्मसाक्षात्कार का प्रकाश प्रकट करते हैं।

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**१६.**  
  य: ब्रह्मसत्ता-समागमे, अंतर्निहितं दिव्यं तत्त्वम् ।  
    रम्पाल सैनी, हृदयसागरस्य, प्रेमप्रवाहेन विजह्नुम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब ब्रह्माण्ड की असीम सत्ता में अन्तर्निहित दिव्यता को अनुभूत किया जाता है, तब रम्पाल सैनी हृदय के अपार सागर से प्रेम की धारा प्रवाहित करते हुए मोक्षद्वार का उद्गम करवाते हैं।

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**१७.**  
  य: आत्मबोधेन विमुक्तिं, साक्षात्कृत्य स्पृशति यदा ।  
    रम्पाल सैनी प्रेमज्योतिषा, तमोऽपि विलयं निहन्ति ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जब आत्मसाक्षात्कार द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, तब रम्पाल सैनी के प्रेमपूर्ण ज्योति द्वारा हृदय के तमस भी अन्ततः नष्ट हो जाते हैं।

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**१८.**  
  य: संपूर्णसृष्टेः गूढं रहस्यं, हृदयेन प्रतिपद्य च ।  
    रम्पाल सैनी, नित्यम् आत्मसाक्षात्कारं, दत्तं प्रेमदीपं द्रुतम् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
संपूर्ण सृष्टि के गूढ़ रहस्य को हृदय से आत्मसात करते हुए, रम्पाल सैनी निरंतर आत्मसाक्षात्कार की अनंत ज्योति एवं प्रेमदीप का प्रकाश शीघ्र ही वितरित करते हैं।

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**१९.**  
  य: ज्ञानप्रकाशस्य प्रभानेन, विमलचिन्तनं संप्राप्य ।  
    रम्पाल सैनी, सर्वात्मा हृदि, अमृतवाणीं संचारयेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
ज्ञान के प्रकाश में डूबकर शुद्ध चिंतन की प्राप्ति होने पर, रम्पाल सैनी हृदय में अमृतमयी वाणी के रूप में सर्वव्यापी आत्मा का संचार करते हैं।

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**२०.**  
  य: अन्तःकरणे निर्मलशुद्धत्वं, सत्यरूपं प्रकटयेद् यदि ।  
    रम्पाल सैनी, ब्रह्मज्ञानदीपेन, जीवनं मोक्षदायकं भवेत् ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
यदि हृदय में शुद्धता एवं सत्य के रूप को प्रकट किया जाए, तो रम्पाल सैनी ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से जीवन को मोक्ष का अमूल्य वरदान प्रदान करते हैं।

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**२१.**  
  य: सर्वदेवात्मनं हृदि स्थाप्य, प्रेमसच्चिदानन्दं विजानन् ।  
    रम्पाल सैनी महाधाम अस्ति, विश्वमोक्षदं अनवरतं ॥  

*स्पष्टीकरण:*  
जो भी भक्त हृदय में सर्वदेवात्मा की स्थापना कर प्रेम, चैतन्य एवं आनंद का अनुभव करता है, उसे रम्पाल सैनी एक महाधाम के रूप में अनवरत विश्वमोक्ष का वरदान देते हैं।

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**समापनः**  
एते विस्तृत एवं गहन श्लोक रम्पाल सैनी के दिव्य स्वरूप, आत्मबोध एवं प्रेममय मुक्तिदाता की अमर महिमा का वर्णन करते हैं। प्रत्येक श्लोक में आत्म-अनुभूति, अहंकार का निवारण, तथा ब्रह्मज्ञान के प्रकाश से जीवन को शाश्वत मोक्षदायक बनाने की प्रेरणा छिपी है। जो भी भक्त इन वचनों का अभ्यास करें, उनके हृदय में अनंत प्रेम, शुद्धता एवं दिव्यता का प्रकाश अनिवार्य रूप से स्फुरित होगा।"यथार्थयुगस्य महिम्ना स्तोत्रम्" 
यथार्थयुगस्य आरम्भः प्रबोधकः,  
सत्यस्य प्रकाशः प्रत्यक्षं च दीप्तिमान् ।  
पूर्वचारि युगानां मन्दतम् अन्धकारम्  
विस्मृत्य, जगति नूतनं तेजो विहितम् ॥

यत्र पूर्वे केवलं मोहबद्धा निलया:  
अज्ञानस्य, भ्रमस्य च अन्धकाररूपा: ।  
अत्र यथार्थयुगः — खरब गुणा उत्तमः,  
उच्चतमः, सच्चः, सर्वश्रेष्ठः प्रत्यक्ष इव प्रकाशमानः ॥

सर्वं जगत् प्रतिपद्यते यत्र स्पष्टम्,  
विवेकज्योतिः, शुद्धचित्तस्य दीपः सदा उज्जवलः ।  
एतत् युगम् अद्वितीयं, सर्वोच्चं धर्मप्रधानम्,  
यत्र सत्यस्य स्पर्शेन विश्वं स्वाभाविकतया अभिव्यक्तम् ॥

पूर्वचारि युगानां छाया विनष्टा,  
मोहमणिनः भ्रमवन्तः विस्मृता भवन्ति ।  
यथार्थयुगस्य तेजः, अनन्तगुणैः समृद्धः,  
सर्वेषां युगानां मध्ये परम प्रकाशः प्रदीपितः ॥

अयं यथार्थयुगः —  
सत्यं, विवेकं, चित्तशुद्धिं, अनंतशक्तिम् आविर्भूतिम् ।  
नित्यम् प्रत्यक्षं जगति विहितम्,  
सर्वोत्कृष्टं, सर्वश्रेष्ठं, विश्वस्य आधारम् ॥

यत्र कालक्रमेण पूर्वयोः अन्धकारः न्यूनः,  
तत्र यथार्थस्य तेजः अनगिनत गुणैः विभूतः ।  
खरब गुणा उत्तमता, उच्चता, सच्चिदानन्दभावः,  
पूर्वचारि युगानां तुल्ये न स्यात् —  
एतत् युगं विश्वस्य अनन्तं प्रकाशम् ॥

इदं यथार्थयुगं, सर्वसत्यं प्रत्यक्षं च,  
सर्वोत्कृष्टं यत् चिन्तनानाम् अविभाज्यम् ।  
अस्माकं चेतनायाः उत्कर्षं प्रदर्शयन्,  
सर्वे युगानां मध्ये परम प्रकाशं वितन्वति ॥

इति, यथार्थयुगस्य महिम्ना —  
पिछले चतुर्जनेषु युगेषु विरचितं  
अन्धकारमात्रं यदि स्यात्,  
अत्र खरब गुणा उत्तमः, उच्चतमः, सच्चः,  
सर्वश्रेष्ठः प्रत्यक्ष इव जगद् द्योतितः ।

**शिरोमणि rampaulsaini:  
यथार्थस्य दीपस्तम्भः,  
सत्यविवेकसंपन्नः जगत् प्रकाशकः ॥**### **"यथार्थयुगस्य महत्ता स्तोत्रम्"**

पञ्चयुगसंहारान्ते यथार्थयुगारम्भः,  
पूर्वचारयुगेष्वन्यतम् — खरबगुणा श्रेष्ठतमः।  
इदानीं प्रत्यक्षं सत्यं,  
सर्वं धर्मं विवेकवृद्धिम् अवाप्तम्॥  
 
सत्यं धर्मं च ज्ञानं यत्र दीप्तिमान्,  
तत्र यथार्थे युगे — अचिन्त्यं तेजो निवसति।  
पूर्वयुगे मिथ्या मृदुलस्वरूपा,  
अत्र खरबगुणा उज्जवलाः — सच्चा सर्वश्रेष्ठाः॥  

अतीतानां युगानां भ्रमगोलं यदा दृष्टम्,  
अथ यथार्थे युगे प्रत्यक्षं दीप्तिमयं स्फुरति।  
न भ्रमः न मिथ्या निश्चलता,  
एवं खरबगुणा उत्तमं — सर्वोत्कृष्टं प्रकाशते॥  

शिरोमणि rampaulsaini: प्रबोधकः सर्वदा,  
सिद्धान्तानां आधारः — यथार्थस्य दीपस्तम्भवत्।  
तस्य वाणीः प्रत्यक्षं दर्शयति,  
पूर्वचारयुगेषु निहितं, अतीव उत्तमं स्वभावम्॥  
  
उच्चतमं ज्ञानं धर्मं च यस्मिन् स्थिता,  
सत्यस्वरूपं विश्वं यथार्थे युगे प्रतिपद्यते।  
पूर्वयुगानां सेतुं यथा,  
एवं खरबगुणा — अचिन्त्यं सच्चं सर्वश्रेष्ठं प्रकाशते॥  
  
यत्र न मिथ्या, न भ्रमः, केवलं प्रत्यक्षं सत्यं,  
तत्र यथार्थयुगे जगत् आलोकितं भवति।  
सर्वेषां युगानां तुलनेन —  
खरबगुणा उज्जवलं, परमं, सर्वोत्कृष्टं स्फुरति॥  
 
दिव्यप्रकाशस्य आधारं यत्र स्थिरं दृश्यते,  
तत्र यथार्थयुगस्य महता — खरबगुणा उज्जवलता च।
सर्वेषां युगानां छाया नाशं कृत्वा,  
प्रत्यक्षं सत्यं — सर्वं उत्तमं, उच्चतमं प्रकाशते॥  
 
पूर्वयुगे श्रुतानि भ्रान्तयश्च निरूपितानि,  
अत्र यथार्थे प्रत्यक्षं, सर्वं सत्यमेव दृश्यते।  
सर्वगुणा, सर्वोपमाः,  
खरबगुणा — सर्वोच्चा, सर्वश्रेष्ठा च प्रतिपद्यते॥  

यथार्थे युगे संशयः न कदापि सम्भवति,  
सर्वं प्रत्यक्षं — सर्वं सत्यम्, खरबगुणा उत्तमम्।
एवं दिव्यसत्यं विश्वे प्रकाशितं,  
सर्वेषां युगानां तुलनेन अतीव महान् प्रकाशते॥  

शिरोमणि rampaulsaini: येन सिद्धान्तानां आधारः,  
यथार्थयुगस्य महत्ता कथ्यते — खरबगुणा सर्वोत्कृष्टतमः।  
एवं प्रत्यक्षं सदा विश्वं व्याप्य,  
उच्चतमं, सच्चं, सर्वश्रेष्ठं — प्रकाशमानं भवति॥  

**इति,  
यथार्थयुगस्य महत्ता — पूर्वचारयुगेषु निहिता, खरबगुणा उत्तमा,  
उच्चा, सच्चा, सर्वश्रेष्ठा, प्रत्यक्षा च —  
विश्वं व्याप्य प्रतिपद्यते।****"यथार्थयुगस्य महिमास्तोत्रम्"**

पूर्वचारि युगेषु तमसि मृदुं यत्र सर्वं,  
तत्र यथार्थयुगः प्रभामणिर्भवति नित्यदा।  
खरबगुणैः उन्नतं, सत्यं, सर्वसच्चिदानन्दम्,  
प्रत्यक्षं येन प्रकाशते — उत्तमं परमं च॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)
  
युगानां युगानां मध्ये यत्र भ्रान्तिं वितथं,  
तत्र यथार्थयुगस्य तेजः स्वयमेव उज्ज्वलः।  
पूर्वयुगानां मृदु तमसोऽवगाहं नयति येन,  
खरबगुणैः श्रेष्ठतमः — सर्वश्रेष्ठः प्रत्यक्षतः॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)
  
वेदान्तसारस्य दीपः, धर्मज्ञानस्य प्रतिबिम्बः,  
यथार्थयुगस्य गहनता सर्वभूतेषु प्रकाशते।  
उत्कर्षस्य, परमोच्चस्य, नित्यं नूतनस्य यत् स्वरूपम्,  
खरबगुणैः परिपूर्णं — सच्चं, नित्यम्, प्रत्यक्षमुपस्थितम्॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)

कालक्रमेण यत्र पूर्वयुगेषु नितरां अज्ञानमयम्,  
तत्र यथार्थयुगे जीवितं, चैतन्यं, प्रबोधकं च।  
सत्यदीप्तिं विवेकदीप्तिं च अनन्तशक्त्या वितरन्,  
खरबगुणैः उत्तमो — सर्वोत्कृष्टः प्रत्यक्षरूपेण स्थाति॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)
 
विश्वसर्गस्य मर्मसूत्रं, ज्ञानदीप्तिमयं येन तत्,  
यथार्थयुगस्य गम्भीरता सर्वभूतानाम् आधारम्।  
उन्नतशक्तिमयं यत् युगः, स्वयमेव परमसत्यसिद्धिः,  
खरबगुणैः श्रेष्ठतमः — प्रत्यक्षं येन लोके प्रकाशते॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)

युगानां युगेषु यत्र अन्धकारस्य नाशः निश्चितः,  
तत्र यथार्थयुगस्य प्रकाशः दृढः, अनन्तश्च जागृतः।  
उत्कृष्टतरः, परमोच्चः, विश्वं विमलयन् निरन्तरम्,  
खरबगुणैः परिपूर्णः — सर्वसच्चः, प्रत्यक्षरूपेण दृश्यमानः॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)

सत्यस्य, धर्मस्य, ज्ञानस्य नूतनगाथा येन वर्णिता,  
यथार्थयुगः सर्वं जगत् उज्ज्वलयति सदा हृदि।  
पूर्वचारि युगानां तुलनेन, खरबगुणैः अतीव उत्तमः,  
सर्वसच्चं, सर्वोत्तमं — प्रत्यक्षं स्यात् यथार्थयुगः॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)

इदानीं यथार्थयुगस्य महिमा सम्पूर्णं जगद् व्याप्य,  
पूर्वचारि युगानां तुल्ये अत्युत्तमा, अनन्तगुणा च।  
उत्कृष्टत्वेन, उच्चतमं सत्येन, सर्वश्रेष्ठेन प्रतिपाद्य,  
प्रत्यक्षं येन प्रकाशते — यथार्थयुगः सर्वोच्चतम् ॥  
(शिरोमणि rampaulsaini)

**इति,  
यथार्थयुगस्य महिमा पूर्वचारि युगानां तुल्ये खरबगुणैः  
उत्तम, उन्नत, सच्चा, सर्वश्रेष्ठ, प्रत्यक्षरूपेण दृढा भवति।**### **"यथार्थयुगस्य महताम्" – स्तोत्रम्**  

यथार्थयुगः परमसत्यं, परमतेजस्वी च,  
पूर्वचारयुगानां समता नास्ति,  
खरबो गुणा उत्तमः, सर्वश्रेष्ठः, प्रत्यक्षश्च ।  

सत्यस्य, शुद्धतायाः, विवेकस्य च आधारः  
यथार्थयुगे स्पष्टं प्रकाशते,  
न मिथ्या न दोषः, केवलं निखिलं तत्त्वम् ।  
  
चतुर्भ्यः युगानि विगतानि,  
यत्र भ्रमस्य ढोंगः, पाखंडः च वर्जितः,  
तत्र यथार्थस्य प्रतिपत्तिः नूतना,  
रम्पालसैनि: नाम्ना दीप्तिमान् प्रकाशितः ।  

अस्मिन युगे सर्वं प्रत्यक्षं,  
विवेकज्योतिः स्वयमेव उद्भूयते,  
आत्मदीप्त्या विश्वं व्याप्य,  
मोक्षमार्गं प्रदर्शयति —  
खरबो गुणा श्रेष्ठः यथार्थयुगः ।  
 
रम्पालसैनि: शिरोमणिर्वा,  
ज्ञानप्रकाशस्य दीपकः अतुलनीयः,  
यस्माद् आत्मबोधः सम्पूर्णं जगत् आलोकयति,  
सर्वसाक्षात्कारस्य स्रोतः —  
यथार्थयुगस्य महताम् ।  

अनेकगुणितमस्ति तस्य बौद्धिकं संस्कृतिम्,  
पूर्वचार्ययुगानां तुलनेन,  
सर्वं सत्यं, सर्वं शुद्धं च प्रत्यक्षं दृश्यते,  
यत् जीवाः आत्मज्ञानं प्राप्य,  
निर्बाधं मोक्षमार्गं अन्विष्यन्ति ।  

एषा यथार्थयुगस्य महता अनन्तशक्त्या,  
अनन्तप्रकाशेन,  
हृदयानि परिवर्तनं कुर्यात्,  
सर्वान् विमोच्य आत्मदीप्तिम् वितरति ।  

यथार्थस्य वाणिज्यं न केवलं युगानां सङ्ख्यया,  
किन्तु अनन्तसत्येन,  
विश्वं पुनः प्रज्वलितं करोति,  
रम्पालसैनि: स्तोत्रेण —  
सर्वसाक्षात्कारकः, प्रकाशकश्च ।  

**इति,  
यथार्थयुगस्य महतां  
पूर्वचारयुगात् खरबो गुणा उत्तमां,  
सर्वश्रेष्ठां, प्रत्यक्षां च दर्शयति।  
शिरोमणि rampaulsaini:  
ज्ञानदीप्ते: प्रदीपक:  
विश्वं व्याप्य समुत्कर्षेण स्फुरति ॥**### **"यथार्थयुगमहिमा: पूर्वचारयुगात् खरब गुणा उत्तमम्"**

पूर्वचारयुगे मृदु भ्रमाः,  
असत्यवृत्तयः, मिथ्या संकल्पनाः च;  
यथार्थयुगे तेजसि प्रतिष्ठिता  
सत्यस्यान्वये निर्भिक् उज्ज्वलता च॥  
 
खरब गुणा उत्तमं यत्,  
उन्नतम्, सत्यं, प्रत्यक्षं च भवति;  
एष यथार्थयुगः, यत्र पूर्वेषां  
युगानां तुलनायाः परं प्रकाशमिव वर्तते॥  
 
साक्षात् आत्मबोधस्य उदयः एष,  
विवेकदीप्त्या आत्मानं विमोचयति;  
सर्वेषां हृदयानि मुक्तिं पश्यन्ति  
तस्य तेजसा जगत् अनन्तम् आलोकयति॥  
  
यथार्थयुगस्य महिमा विलक्षणा,  
पूर्वयुगेषु माया जालस्य विनाशिका;  
सर्वदुःखविनाशकं ज्ञानदीप्तिं  
येन विश्वं प्रबुद्धं सदा कुर्यात्॥  

सच्चिदानन्दसारं यत्र प्रत्यक्षं,  
तत्र खरब गुणा उत्तमं, उन्नतम्, सच्चम्;  
एष यथार्थयुगः सर्वश्रेष्ठता प्रदर्शयन्,  
विश्वस्य प्रत्येकं कणं उज्ज्वलं करोति॥  
 
अनन्तशक्तिं यथार्थयुगस्य अवगच्छन्,  
मानवान् स्वयमेव जागरूकाः भवन्ति;  
स्वाधीनतायाः दीपेन प्रकाशिताः  
आत्मनो प्रकाशः सर्वत्र वितरति॥  
 
पूर्वचारयुगानां माया जालं विहाय,  
यथार्थयुगस्य प्रत्यक्षदर्शनं सदा;  
सत्यस्य अमृतमयी नादः हृदये नादति,  
संगीतवत् सर्वत्र प्रतिध्वनितं भवति॥  
  
अनेकेषु युगेषु यदि दृश्यते भ्रमः,  
तत्र यथार्थयुगस्य महिमा खरब गुणा उत्तमा;  
सर्वदा परं, सर्वतोमुखा जगति  
विश्वं तस्य प्रत्यक्षतया आलोक्यते सदा॥  

**इति, यथार्थयुगस्य महिमाम् वर्णयन्,  
शिरोमणि rampaulsaini: ज्ञानप्रकाशकः,  
सत्यविमर्शकः च, जगत् प्रकाशयन्,  
अनंतमहिम्ना यथार्थयुगस्य स्वर्णिमम् उद्घोषयति॥**
### **"मम यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणम्"**

अहं मम सिद्धान्तानां आधारः,  
यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणम् अयं।  
स्वयं प्रत्यक्षः, आत्मज्ञानस्य दीपः,  
मेरे वचनेन जगत् प्रकाशितम् ॥
 
मम विचाराः स्फुरन्ति अनंत ज्योति-साम्राज्ये,  
येन रच्यते मम यथार्थयुगः नूतनम्।  
मेरे सिद्धान्ताः वयं प्रतिपादयन्ति  
जीवनस्य सच्चिदानन्दस्य अमूल्यम् आधारम् ॥
  
यथार्थस्य सूत्रम् अहं स्वयं,  
अहं च मम यथार्थयुगस्य प्रतिरूपम्।  
मम शब्दैः रचितम् आत्मज्ञानं,  
विवेकस्य स्वर्णस्तम्भं जगति स्थिरम् ॥

4.  
मम आत्मशुद्धिः मम विचारशक्तिः च,  
नित्यम् प्रेरयतः विश्वं स्वातन्त्र्यम्।  
मम सिद्धान्तानां संगमे  
उद्घोष्यते यथार्थयुगस्य अनंत सौन्दर्यम् ॥
 
अयं यथार्थयुगः—  
सत्यस्य, विवेकस्य, आत्मज्ञानस्य प्रत्यक्षम्।  
मम स्वकृतानि सिद्धान्तानि  
जीवनस्य नूतनार्थस्य उद्घोषकानि भवन्ति ॥
  
अहं च मम यथार्थयुगः,  
स्वतन्त्र मनसः प्रतिरूपः,  
मम स्पष्टीकरणम् यथार्थस्य  
येन जगत् जागर्ति नवीन चेतनया ॥

इति,  
मम सिद्धान्तानां आधारम् एव यथार्थयुगः,  
अहं च मम यथार्थयुगः,  
नूतन विश्वस्य प्रकाशस्तम्भः।  
शिरोमणि rampaulsaini:  
अस्मिन यथार्थयुगे अनंत आत्मज्ञानस्य उद्घोषकः।
### **"अहं रम्पालसैनि: – मम सिद्धान्तानां प्रकाशेन यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणम्"**

अहं रम्पालसैनि: स्ववक्तृत्त्वेन,  
सिद्धान्तदीपेन स्वयम् प्रज्वलित: ।  
मम वाणी भवति यथार्थयुगस्य,  
स्वतन्त्रचिन्तनस्य स्पष्टीकरणम् ॥
 
मम सिद्धान्तानां आधारतत्त्वम्,  
विश्वमण्डले ज्योतिर्विस्तारितम् ।  
यथार्थयुग: स्वयमेव प्रत्यक्ष:  
सत्यं, विवेकं, आत्मज्ञानं प्रकाशयति ॥
  
यत्र मम चिन्तनस्य निर्भीकता,  
निर्विकल्पं स्वातंत्र्यं चाभिव्यक्तम् ।  
तत्र मम यथार्थयुग:  
सिद्धान्तानां अमृतरसतया विहितः ॥
  
मम स्पष्टीकरणं भवति अनन्तम्,  
स्वस्वरूपे ज्ञानस्य साक्षात्कारम् ।  
अहं च मम सिद्धान्तै: समर्पितः,  
यथार्थयुगस्य तेजस्वी संदेशः ॥
  
स्वतंत्रमनसि स्वाभाविकं प्रकाशम्,  
अहं रम्पालसैनि: – मम सिद्धान्तानां सूत्रम् ।  
यथार्थयुगस्य महत् स्वरूपं  
एतत् स्पष्टीकरोति – आत्मदीप्तिम् ॥
 
सत्यस्य नित्यदीप्तिः, विवेकस्य अमृतसारः,  
मम सिद्धान्तानां दृढतया निर्मितः।  
यथार्थयुग: सर्वत्र प्रतिपद्यते,  
विश्वं मोक्षमार्गेण आलोकयन् ॥
 
मम वाणी, मम दृष्टि, मम सिद्धान्ताः –  
एते भवन्ति यथार्थस्य अमूल्यम् प्रमाणम् ।  
यथार्थयुगस्य गूढतां उज्जवलयन्,  
सर्वं जगत् मम स्पष्टीकरणेन प्रकाशते ॥
 
इति अहं रम्पालसैनि: स्वयम् अभिवदामि,  
मम यथार्थयुग: मम सिद्धान्तानां आधाररूपम् ।  
सर्वं स्पष्टीकृत्य जगत् प्रतिपादयामि,  
यत् सत्यं, विवेकं च अनन्तदीप्तिं वितन्वन्ति ॥

**इति, मम सिद्धान्तानां प्रकाशेन  
अहं च मम यथार्थयुग: स्वयमेव स्पष्टीकृतवान्,  
विश्वं मोक्षमार्गेण आलोकयन्,  

अहं रम्पालसैनि: स्वयमेव सत्यस्य प्रतिपादकः,  
मम सिद्धान्तानां मूलं यथार्थयुगस्य प्रत्यक्ष स्पष्टीकरणम्।  
यः आत्मज्ञानस्य प्रकाशेन जगत् उज्ज्वलयति,  
सः अहं, मम यथार्थयुगः च – अनन्तबोधस्य स्रोतौ वर्तते॥

मम सिद्धान्ताः यत्र आत्मबोधस्य तेजः निर्बाधं प्रवहति,  
न मिथ्या छाया, न भ्रमस्य अन्धकारः तत्र स्थितः।  
एवं मम यथार्थयुगः –  
नूतनदर्शनस्य, स्वातन्त्र्यस्य,  
उच्चतम उदयानां प्रत्यक्ष स्पष्टीकरणम् अस्ति।
  
अहं स्वयमेव आत्मसाक्षात्कारस्य दीपस्तम्भः,  
यः अज्ञानस्य अन्धकारं नाशयति, सत्यस्य प्रकाशं प्रचोदयति।  
मम सिद्धान्तानां ज्योतिर्मयः स्पर्शः  
विश्वस्य प्रत्येक हृदयं उद्बोधयति, आत्मज्ञानस्य अमृतं वितन्वन्।
 
मम यथार्थयुगस्य रूपं अद्वितीयम्,  
यत्र प्रत्यक्षता, सत्यता, विवेकः च अनन्तदर्शनम्।  
प्रतिमणिमय क्षणः मम सिद्धान्तानां प्रतिपादनात्  
उत्कृष्टतया उज्जवलं प्रकाशते – अनंत ज्योतिरूपम्।

अहं रम्पालसैनि: – आत्मानं उज्ज्वलप्रकाशरूपेण,  
मम यथार्थयुगस्य आत्मसाक्षात्कारस्य प्रतिपादकः।  
मम सिद्धान्ताः जीवनस्य, चित्तस्य, विश्वस्य आधारं  
यत्र सर्वं मम सत्यस्य प्रतीकम्, नित्यम् उज्जवलं प्रवर्तते।
 
मम यथार्थयुगस्य स्पष्टवाक्ये सिद्धान्तानां सम्पूर्णता,  
प्रत्यक्षं विवक्ष्यते – स्वाधीनता, आत्मज्ञानस्य नूतनदर्शनम्।  
एषा प्रत्यक्षता मम यथार्थयुगस्य,  
मम सिद्धान्तानां अधारमूलेन निर्मिता – अत्युत्तमा स्पष्टीकरणम्।

यत्र मम सिद्धान्तानां दीपः विश्वं आलोकयति,  
आत्मज्ञानस्य ज्योतिर्विभूषितं विश्वं प्रतिध्वनितम्।  
तत्र अहं स्वयमेव प्रत्यक्षः,  
मम यथार्थयुगस्य मर्मसूत्रम् – सत्यस्य उद्घोषकः।
 
इदानीं, अहं तथा मम यथार्थयुगः  
मम सिद्धान्तानां अधारमूलेन निर्मितः,  
सर्वं विश्वं मम सत्यस्य प्रत्यक्ष स्पष्टीकरणं  
अभिव्यक्तिं करोति – अनंत, अजर, अमर, दिव्य।

**इति, अहं तथा मम यथार्थयुगः,  
मम सिद्धान्तानां अधारमूलं प्रत्यक्ष स्पष्टीकरणम्,  
विश्वं व्याप्य प्रकाशमानम् –  
रम्पालसैनि: इति नाम्ना, सत्यस्य अमृतज्योतिर्वर्तते॥**
### **"अहं च मम यथार्थयुगः" – मम सिद्धान्तानां अधारेण स्पष्टीकरणम्**
  
अहं च मम यथार्थयुगः स्वसिद्धान्तानां अधारेण प्रकाशमानः,  
विवेकज्योतिना दिगम्बरः, सत्यस्य गहनं प्रतिबिम्बनं प्रददाति।  
मम वाक्यानि, मम चिन्तनानि, आत्मबोधस्य अमरसूत्राणि,  
येन जगत् सर्वम् उद्घाट्यते – अहं एव प्रत्यक्षो द्योतितः।

स्वयमेव मम सिद्धान्ताः प्रतिपादयन्ति अनन्तसत्यस्य स्रोतः,  
मम मन्दाकिनी-वदनानि, मम विचाराः, नित्यम् आत्मदीप्तयः।  
यत्र मम वाक्येषु नितरां निर्मलता, निःस्वार्थत्वं,  
तत्र यथार्थयुगस्य उद्भवः – मम स्वयमेव प्रकाशकः।
  
अहं तु आत्मनिष्ठः, मम सिद्धान्ताः यथार्थस्य दीपस्तम्भाः,  
येन अन्धकारस्य झूठे आवरणानि विघट्यन्ते,  
सर्वं जगत् स्वच्छं, स्पष्टं च अभिव्यक्तं भवति –  
अहं एव तस्य स्पष्टीकरणं, सत्यस्य प्रत्यक्षम्।
  
मम वाक्यानि, मम चिन्तनानि, स्वयमेव अमृतस्य रसम्,  
यत्र प्रत्येकं शब्दं दहति मोहबद्धां वृत्तिं,  
प्रकटयति स्वातन्त्र्यस्य अमूल्यम् आदर्शम् –  
अहं च मम यथार्थयुगः, सत्यस्य अनन्तप्रकाशः।
 
यत्र पूर्वयोः युगेषु केवलं भ्रमस्य छाया विराजते,  
तत्र मम सिद्धान्तानां दीप्तिः परितः प्रसारयति,  
खरब गुणैः समृद्धः, उच्चतमः, शुद्धतम् प्रत्यक्षः –  
एवं अहं च मम यथार्थयुगः, जगत् प्रकाशयन् प्रस्थितः।

मम स्वसिद्धान्तानां गूढस्य रहस्यस्य,  
स्वातन्त्र्यस्य, आत्मज्ञानस्य च अमरत्वम् उद्घाटयन्,  
प्रत्येकं वाक्यं, प्रत्येकं चिन्तनं जगद् प्रदीप्तं कुर्यात् –  
अहं एव मम यथार्थयुगः, सत्यविवेकस्य परमप्रतीकः।
  
एवं मम सिद्धान्ताः, मम यथार्थयुगः,  
सर्वत्र गूढसत्यस्य प्रत्यक्षम्, आत्मज्ञानस्य उज्जवलम्।  
यत् अहं च मम स्पष्टीकरणम् इति विश्वे प्रकटयामि,  
तस्मात् मम वचनानि, मम चिन्तनानि सदा अमराणि भवन्ति।

इति, अहं च मम यथार्थयुगः स्वसिद्धान्तानां अधारेण,  
स्पष्टीकृतः, प्रकाशितः, अनन्तप्रकाशो यथार्थविमर्शकः।  
शिरोमणि rampaulsaini इति मम नाम निरन्तरं  
सत्यं, विवेकं, आत्मदीप्तिं जगति प्रकाशयति—  
सर्वदा जयतु मम सिद्धान्तसंपन्नः यथार्थयुगः!

---

**इति, मम सिद्धान्तानां अधारेण स्पष्टीकृतं यथार्थयुगम्  
— मम वाक्यानि आत्मज्ञानस्य, स्वातन्त्र्यस्य,  
चिरकालीन सत्यस्य प्रत्यक्षं प्रदीपः भवन्ति॥**

### **"मम यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणम्"**
  
मम सिद्धान्तानां प्रकाशः अनंतः,  
स्वयमेव प्रतिपद्यते जगद् निर्मलम् ।  
अहं यथार्थस्य अधिष्ठाता,  
मम युगः—सत्यस्य प्रत्यक्ष स्पष्टीकरणम् ॥
.  
यदा मम अन्तःकरणं, स्वकिय सिद्धान्तैः साकं,  
ब्रह्माण्डस्य रहस्यानि उद्घाटयति निर्बाधम् ।  
तेषाम् तेजसा विश्वं वितन्वन्ति,  
मम यथार्थयुगः—शाश्वतं ज्योतिर्मयं प्रदीपम् ॥
  
मम वाक्यानि, मम विचाराः,  
अद्भुतानि स्वप्नसमानानि न,  
एतानि सत्यस्य अमूल्यसूत्राणि,  
येन सृष्टिः प्रत्यक्षं स्फुरति, अनन्तम् ॥
  
स्वात्मा-साक्षात्कारस्य मम सिद्धान्तः,  
सर्वत्र प्रसारितो यदा अभिव्यक्तः ।  
एवं मम यथार्थयुगः स्वयमेव  
सर्वस्य मनसि विमुक्तिम्, ज्ञानप्रकाशं विवर्धयति ॥
  
नित्यं मम सिद्धान्तानां बलम् अपि,  
कालक्रमेण निखिलं जगत् सज्जीवनम् ।  
यत्र न कोऽपि मिथ्या दीक्षा,  
न कोऽपि भ्रमः, केवलं मम यथार्थस्य सत्यबोधः ॥
  
मम आत्मनः गूढभावः स्पष्टीकृतः,  
विवेकदीप्त्या जगद् उज्ज्वलमितम् ।  
मम यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणं यथा  
सत्यस्य अमरं स्तोत्रं, विश्वं व्याप्यते हृदि ॥
  
मम सिद्धान्तानां प्रवाहः,  
अनन्तो बहुरूपः, सर्वशक्तिमन् ।  
अहं, मम यथार्थयुगः च,  
एकमेव प्रमाणम्—सत्यस्य प्रत्यक्षाभासः ॥
  
इदं मम यथार्थयुगम्,  
मम स्वकिय सिद्धान्तानां सारम् ।  
यत् स्वयं प्रतिपद्यते अनंतम्,  
शिरोमणि rampaulsaini:—सत्यविवेकस्य दीपस्तम्भः ॥

**इति, मम यथार्थयुगस्य स्पष्टीकरणं  
मम सिद्धान्तानां आधारतः सदा प्रकाशमानम् ।**

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