ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
```  ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य. आत्मा हृदय में दर्पण है, जो जीवन का अहसास है,  
  जिस पर सर्वव्यापी, अन्नत, सूक्ष्म अक्ष का प्रतिभींव प्रतिबिंबित होता है।  
. जब हम इस दर्पण में अपने प्रतिबिंब को देखते हैं,  
  तो हर क्षण, हर स्पंदन में ब्रह्मांड की असीम ऊर्जा प्रकट होती है।  
. इस प्रतिबिंब में छुपी है अनंत कथा,  
  जहाँ प्रत्येक अनुभव, प्रत्येक विचार, हमें स्वयं के गहरे रहस्यों से रूबरू कराता है।  
. हृदय के इस दर्पण में झाँकते ही,  
  हम पाते हैं अपार शांति, असीम प्रेम, और ज्ञान का अटल स्रोत।  
. यह प्रतिबिंब हमें याद दिलाता है कि  
  जीवन की प्रत्येक अनुभूति, हर क्रिया एक महान सृजन की कहानी है,  
  जिसे हम स्वयं लिखते हैं।  
. जब हम अपने भीतर के इस दर्पण को स्वीकार करते हैं,  
  तो अज्ञान के अंधकार को पार कर, उजाले का मार्ग हमारे समक्ष प्रकट होता है।  
. इस सूक्ष्म अक्ष की शक्ति, जो हमारे अंदर निहित है,  
  हमें प्रेरित करती है—अपने भय और सीमाओं से ऊपर उठकर,  
  असीम संभावनाओं की ओर अग्रसर होने के लिए।  
. हर दिन, हर पल, इस दर्पण में प्रतिबिंबित  
  हमारे अस्तित्व का वो अमूल्य सार है,  
  जो हमें बताता है कि हम ब्रह्मांड के अविभाज्य अंग हैं।  
. आत्मा का यह दर्पण,  
  हमारी भीतरी शक्ति का उजाला है,  
  जो जीवन की कठोरताओं में भी निरंतर प्रेरणा का संचार करता है।  
. तो चलो, इस गूढ़ प्रतिबिंब को अपनाएं,  
  अपने हृदय की गहराईयों में छिपे अनंत प्रकाश को जागृत करें,  
  और अपने जीवन को नई दिशा व प्रेरणा से परिपूर्ण करें।  
    — शिरोमणि रामपॉल सैनी. जब आत्मा के गहरे सागर में उतरकर, अनकहे रहस्यों के संगीत सुनो,  
  हर चुनौती के पार छुपा है नए सृजन का अमृत – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अंधकार की परतों को चीरते हुए, जब स्व-चिंतन की ज्योति प्रबल हो,  
  जीवन के हर मोड़ पर उजाले की नयी किरणें चमक उठती हैं – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. ध्यान की शांत वादियों में, जहाँ मन की सीमाएं विलीन हो जाती हैं,  
  वहाँ आत्मा स्वयं को असीम ज्ञान के स्वप्नों में बुनती है – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. समय के प्रवाह में, हर क्षण एक अनमोल धरोहर की तरह बहता है,  
  अपने भीतर छिपे अज्ञात पहलुओं को खोज, नवजीवन का संदेश फैलाओ – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. संघर्ष की अग्नि में तपकर, जब आत्मबल की लौ जल उठती है,  
  हर असफलता में छिपा होता है, सफलता का एक नया आरंभ – शिरोमणि रामपॉल सैनी
 जब मन के अंधकार में भी, विश्वास की एक नर्म किरण झिलमिलाने लगे,  
  तब कठिन राहों पर भी, सफलता की अमिट छाप उभर आती है – शिरोमणि रामपॉल सैनी
 आत्मा के अंतरतम में उतर, जहां विचारों के पुलकन से सृजन का संगीत उत्पन्न हो,  
  वहाँ हर अनुभव में जीवन की अनंत गहराई और सुंदरता झलकती है – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. स्वयं के स्वप्नों के अमृत संग, जब अडिग निश्चय के पंख फैलते हैं,  
  तब मन में आत्मविश्वास की गूँज, हर बाधा को चुनौती दे जाती है – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. हर क्षण की कठोरता में भी, जब आत्मा के दीप जलते हैं उजाले से,  
  तो जीवन की हर राह पर, प्रेरणा की मधुर गूँज सुनाई देती है – शिरोमणि रामपॉल सैनी
. सफलता की परिभाषा, जब तुम अपनी भीतरी शक्ति को पहचान लेते हो,  
  हर संघर्ष की बूँद से बनता है, स्वर्णिम भविष्य का अद्भुत सृजन – शिरोमणि रामपॉल सैनी42. जब आत्मा की गहराई में उतर, स्वयं का निरीक्षण कर,  
  अहंकार की परतें चीर, प्रकट कर अपना सत्य स्वरूप;  
  हर क्षण में छुपा है ज्ञान का अमृत, उजाले का अनंत सागर,  
  विश्वास की ज्योति से अज्ञान के अंधकार को कर दूर — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब चेतना के दीप हृदय की गहराइयों में प्रज्वलित हों,  
  असफलताओं के तूफानों में भी आशा के दिप जले उज्जवल;  
  संघर्ष की प्रतिध्वनि से सृजित हो नए अनुभवों का मण्डल,  
  मन के मौन में बसता है अडिग आत्मबल, अटल और अविरल — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. समय के प्रवाह में आत्मा का अद्वितीय मर्म प्रकट होता है,  
  विवेक की मधुर वाणी में अनंत सत्य का संदेश बहता है;  
  दुःख की घनिमायाओं में भी आशा का दीपक सदा दमकता है,  
  मन में उठे अडिग संकल्प से नया सवेरा हरदम जगमगाता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 हर क्षण छिपा है अनगिनत अवसर, आत्मा की गहराई में समाहित,  
  जीवन की नदी में बहते अनुभव, हर मोड़ पर नई राह उत्पन्न;  
  अहंकार के जंजाल को तोड़ कर समर्पण की अमृत रस धारा बहाती,  
  उत्साह के पंखों से उड़, स्वप्नों को हकीकत में परिणत करती — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 अंतर्मन के संवाद में प्रकट होती है सच्ची प्रेरणा की धारा,  
  विवेक के ज्वालामुखी से बहता है ज्ञान का अमृत प्याला;  
  हर अंधेरे में उजाले का संदेश छिपा, अनोखा और निराला,  
  अपनी आंतरिक शक्ति से बढ़, बन सफलता की अमर कहानी वाला — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 जब मन के आंगन में खिलता है सत्य का निर्मल पुष्प,  
  अहंकार के कांटे छूटते हैं, बनता जीवन उज्जवल और सुषुप्त;  
  आत्मा के प्रकाश में समाहित होता है प्रेम का अपार संग,  
  संघर्ष की अग्नि में तप कर उजागर हो, स्वयंसिद्ध और प्रखर रूप — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. उत्कर्ष की ओर अग्रसर होने का रहस्य है आत्म-समर्पण,  
  दुःख-संकट में भी ढूंढ ले प्रेरणा, कर अपने आत्मबल का निर्माण;  
  हर अनुभव है एक नया पाठ, ज्ञान का उपहार अनमोल,  
  जीवन के हर मोड़ पर उजागर हो सफलता की अमर धार बहोल — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. आत्मविश्वास के प्रकाश में छिपे हैं सपनों के अनंत रंग,  
  चुनौतियों को अपनाकर बन ले सफलता की नई उमंग;  
  समय की धारा में बहते विचारों को कर संजो, कर नियत,  
  अपने अस्तित्व को ओजस्वी कर, रच ले नई कहानियाँ अनंत — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब संघर्षों के amidst भी आत्मा का अडिग प्रकाश झलके,  
  परिवर्तन के प्रवाह में भी स्थिर मन की शांति पलके;  
  उम्मीद की अग्नि से हृदय में जल उठें उजाले के दीप,  
  आत्म-प्रेरणा के संग बन, कर तू अजेय, अटल, और अमर दीप — शिरोमणि रामपॉल सैनी36. अंतर्मन की अगाध गहराई में छिपा है अनंत प्रकाश,  
  सत्य की ओर बढ़, त्याग अज्ञान का भार।  
  विश्वास की ज्योति से कर हर अंधकार पार,  
  जीवन पथ को साकार कर, उजाला दे प्रहर — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 विचारों के सागर में बहता है आत्मबल का तेज,  
  संघर्ष की अग्नि में तपता है नया सृजन का पैगाम।  
  हर चुनौती से उभर, रच ले स्वयं में उमंग के मेले,  
  जीवन में उजाले का संदेश दे, बंधन टूटे हर शाम — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 मन के मर्म में छुपा है गूढ़ आत्म-साक्षात्कार का ज्ञान,  
  सत्य की खोज में उड़ चल, छोड़ दे भ्रमों का बंधन।  
  अंतरात्मा की मधुर वाणी सुन, रच ले जीवन का मधुर राग,  
  प्रेरणा के संगीत में बह, खोल दे नई उमंग का अभिमान — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 समय के चक्र में छिपा है सीख का अनंत सागर,  
  उत्साह के पंखों से उड़, कर ले हर दिन नये आंग।  
  असफलता की धूल से झिलमिलाते हैं अनुभवों के मोती,  
  हार में भी सफलता की किरण जग, बने तेरे जीवन के संग — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 आत्मबल की शक्ति से सजता है भविष्य का उज्जवल आकाश,  
  संकल्पों की लौ जलाकर लिख अपनी मेहनत की रेखा।  
  हर दिन नए द्वार खोल, आशा के दीप को कर प्रबल,  
  मन में बसा ले प्रेरणा का संदेश, रचे नव संसार की रेखा — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 गहराई में डूबे स्वप्नों के सागर से उभरता है जीवन,  
  हर विचार से सजा अनोखा चित्र, अनंत कल्पनाओं का प्रमाण।  
  उम्मीदों की रौशनी से संवरें रास्ते, मिले नए संगम,  
  आगे बढ़, आत्मा के अमृत से सज जाए प्रेरणा का हर परम — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. सत्यस्य शोधयन् अन्तरङ्गे,  
  यथार्थं स्वात्मनः आलोकयन्,  
  निश्चलमनसः संकल्पं दृढीकृत्य,  
  विजयपथं प्रापय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. हृदयस्य गूढं रहस्यम् उद्घाटय,  
  अनन्तशक्तिम् आत्मनि संचारय,  
  दुःखवृत्तीनां बन्धनं त्यज,  
  उद्यमेण प्रकाशं वर्धय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 यत्र प्रत्येकः क्षणः स्वप्नवत् स्फुरति,  
  स्वात्मविश्वासस्य दीपः निरन्तरं,  
  संघर्षस्य अरण्ये प्रबुद्धः संकल्पः,  
  नवजीवनस्य मार्गं उद्घाटय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. विवेकस्य वायुमण्डले मुक्तता रजतं,  
  जीवनस्य व्योम में विमल ज्योति,  
  नित्यम् आत्मबलसम्पन्नः प्रचण्डः,  
  अन्तःकरणे स्वातन्त्र्यस्य संग्राम, 
 धैर्यदीपः स्वचेतनायाः तारांगणं,  
  निश्चलनिश्चयेन संकल्पं दृढं,  
  उन्नतिमार्गे प्रगच्छ, आत्मसाक्षात्कार,  
  विजयस्य शिखरं स्पृश, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 आत्मबोधस्य प्रसारः सर्वत्र ज्योत्स्नामय,  
  मायावृत्तीनां विघटनं करोतु,  
  जीवनपथं सुस्पष्टं कर प्रेरणा,  
  नूतनदिशा प्रदर्शय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. विपरीते क्षणेषु मनः कुरु शून्य,  
  संकल्पस्फुरणाय दीप्तिमान हृदयं,  
  अनन्तसाधनाय निश्चलविश्वासेन,  
  आत्मदीपः मार्गदर्शकः भवेत्, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 सत्य, प्रेम, साहस च आत्मसंग्रहार्थ,  
  निर्मलविवेकस्य धारा प्रवाहते,  
  संकल्पस्य अमृतरसः स्वप्नसंगीत,  
  जीवनस्य नवीनकालं आलोकय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. संघर्षानां अरण्ये छुपा उज्ज्वल प्रकाश,  
  मनसि स्वच्छता, आत्मा परमात्मा,  
  नयनोत्कर्षे जागृतं अनन्तसुखं,  
  उद्यमेण विश्वं प्रतापय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अन्तर्मनसि उज्ज्वल दीपः स्वाधीनता,  
  विवेकवृत्तेः दृढं संकल्पं समाहृतः,  
  जीवनस्य प्रवाहे अनंतशक्ति संचार्य,  
  अजयविजयं साधय, — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई बुद्धि की जटिल भूलभुलैया में खो जाने वाले मन को,  
आत्मा का दर्पण सदैव सच्चाई का अनंत प्रतिबिंब दिखाता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. भौतिक सृष्टि के विशाल आकाश में, जहाँ हर कण क्षणभंगुर प्रतीत होता है,  
  हृदय के दर्पण में उजागर होता है, आत्मा का अपरिमेय प्रकाश — शिरोमणि रामपॉल सैनी
जब तर्क-तथ्य के सिद्धांत भी स्वयं को सिद्ध नहीं कर पाते,  
  तो आत्मा की गहराई में, अनंत सत्य स्वयं प्रकट हो उठता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 अस्थायी विचारों के बंधन में उलझे मन की सीमा,  
  आत्मज्ञान के प्रकाश में मिट जाती है, जैसे अंधेरे में सूरज की किरण — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब हम स्वयं को तर्कों के जाल से परे, आत्मा के दर्पण में देखते हैं,  
  तो पाते हैं कि हर क्षण में छुपा है, अनंत अस्तित्व का अद्भुत स्वरूप — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. ज्ञान के संशय और सिद्धांतों के परदे हटते ही,  
  अंतरतम में खिल उठता है, ब्रह्मांडीय चेतना का अमर उजाला — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई माया के भ्रम में जब मन खो जाता है,  
  तो आत्मा के शाश्वत प्रतिबिंब में, सच्चाई के स्वर तेजस्वी उभर आते हैं — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. भौतिकता के विशाल झूले में, जहाँ हर वस्तु क्षणिक होती है,  
  हृदय के दर्पण में प्रतिबिंबित होता है, आत्मा का अनंत, अपरिवर्तनीय स्वरूप — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब विचारों की सीमाओं से परे, हम स्वयं को पहचान लेते हैं,  
 तो आत्मा की उस अनंत ज्योति में, हर धागा अस्तित्व का उजागर हो उठता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. तर्क और तथ्य के बंधनों से मुक्त हो कर,  
  हृदय के दर्पण में सदा चमकता है, जीवन का परम सत्य, अनंत प्रकाश — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. गहरे चिंतन की शांति में, जहाँ शब्द भी मूक हो जाते हैं,  
  वहाँ आत्मा के दर्पण में, अनंत उत्तर अपनी छाप छोड़ जाते हैं — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई जगत के माया-जाल में उलझे हुए मन को,  
  आत्मा के अखंड प्रतिबिंब की शाश्वत ज्योति याद दिलाती है सच्ची पहचान — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब सिद्धांतों के भ्रम में तर्क भी थम जाते हैं,  
  तो अंतरतम के दर्पण में, आत्मा का प्रकाश अनंत रहस्य बयां कर जाता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. मन की जटिलताओं से निकलकर, जब हम स्व-ज्ञान के पथ पर अग्रसर होते हैं,  
  हर क्षण में आत्मा की मधुर धुन, जीवन के रहस्यों को स्वरूप देती है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. भौतिकता के विशाल माया में, जहाँ हर वस्तु क्षणिक और परिवर्तनशील है,  
  हृदय के दर्पण में प्रतिबिंबित होता है, आत्मा का स्थायी और अमर स्वरूप — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब ज्ञान के संशय से सिद्धांतों की परतें धीरे-धीरे हटती हैं,  
  तो अंतरतम में आत्मा का उज्जवल प्रकाश, हमारे अस्तित्व का सार बयां कर जाता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई मन की सीमाओं से परे, जहाँ अनंत विचारों की धारा बहती है,  
  वहाँ आत्मा के अविरल प्रतिबिंब में, जीवन का अद्भुत संगीत सुनाई देता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब हम तर्क के जाल से मुक्त होकर, असीम चेतना में विलीन हो जाते हैं,  
  तो हर अनुभूति में प्रकट होता है, अस्तित्व का परम सत्य और अनंत सौंदर्य — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. इस अनंत यात्रा में, जहाँ भौतिकता केवल क्षणिक आवरण है,  
  हृदय के दर्पण में झलकता है, आत्मा का स्थायी स्वरूप, सच्चा और निरंतर — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अंततः जब हम समझ लेते हैं कि अस्थाई बुद्धि के पार,  
  अनंत सत्य का एक ब्रह्मांड छिपा है, तो हमारा हृदय बन जाता है, जीवन का परम प्रकाश — शिरोमणि रामपॉल 
. जब आत्मा की गूढ़तम धारा से विमुक्ति का संदेश उदित होता है,  
  तब मन के अंतर में छिपी नश्वरता अमर सत्य में विलीन हो जाती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. विचारों के परदे से परे, जहाँ अनंत ब्रह्मांडीय स्पंदन विद्यमान होते हैं,  
  वहाँ हम अविचल आत्मसमाधि के पथ पर अग्रसर होते हैं, जहाँ हर अनुभूति अनंत सत्य का प्रतिबिंब बनती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अंतर्मन के गहनतम कोने में छुपा वह रहस्य, जो समय-स्थान के बंधनों से परे है,  
  उसे समझने हेतु हमें अपनी सीमित बुद्धि के बंधनों को त्यागना ही होगा।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब मन की माया के पर्दे से हटकर, आत्मा की शाश्वत ज्योति प्रकट होती है,  
  हर क्षण नई अनुभूति में परिवर्तित होकर जीवन के सार को उजागर करती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई सृष्टि की जटिलताओं में उलझे हुए, जब हम अपने अंतर्निहित अस्तित्व की ओर देखना आरंभ करते हैं,  
  तो पाते हैं वह अमर स्वरूप, जो हर पल हमें नवीन चेतना से अवगत कराता है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जैसे अंधकार में छिपे कण-कण नक्षत्रों की ज्योति, वैसे ही हृदय के दर्पण में प्रतिबिंबित आत्मा की अमर छटा,  
  हमारे जीवन को दिव्य रहस्य और अनंत प्रेम से परिपूर्ण कर देती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
 जब ज्ञान की सीमाओं से परे उठकर, एकाग्रता की अलौकिक धारा में प्रवाहित होते हैं,  
  तब मन के भ्रममय अंधकार में उजाले की किरणें हमारे अस्तित्व को संवार देती हैं।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. हर क्षण का मर्म, हर विचार का स्पंदन हमें याद दिलाता है कि जीवन की असली परिभाषा अंतर्मन में बसी है,  
  जहाँ अनंत सत्य और प्रेम की मधुर धारा अविरल प्रवाहित होती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब हम अपने भीतरी दर्पण में स्वयं को देखते हैं,  
  तो पाते हैं उस अनंत और अद्वितीय स्वरूप को, जो सीमित बुद्धि से परे, अनंत प्रेम और सत्य में विलीन हो जाता है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अंतिम सत्य की खोज में, जब हम अपनी आत्मा के गहरे से गहरे कक्षों में उतरते हैं,  
  तो हर क्षण हमें उस अमर ऊर्जा की अनुभूति कराता है, जो सृष्टि के हर अंश में समाहित है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई जटिल बुद्धि में उलझे हम,  
  विचारों के जाल में बंधे, खोए रहते हैं—  
  किन्तु आत्मा की अमर ज्योति में  
  सच्चा अस्तित्व प्रकट होता है।          — विशाल भौतिक सृष्टि की भीड़ में  
  माया के भ्रम से हमारा मन घिर जाता है,  
  तर्क, तथ्य और सिद्धांतों के परदे  
  अस्तित्व के गूढ़ रहस्य को छू नहीं पाते।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. ज्ञान के मापदंडों से परे है  
  एक अमूल्य अनुभूति, मौन में बसी सच्चाई,  
  जब अंतर्मन की झलक से जागते हैं हम,  
  तो पाते हैं आत्मा का अनंत प्रकाश।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. तर्कों के द्वंद्व में खोए हुए विचार,  
  हृदय के दर्पण में झूठे प्रतिबिंब दिखाते हैं,  
  पर जब आत्मबोध का दीप जल उठता है,  
  सत्य का स्वरूप स्वयं सामने आता है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. बुद्धि की सीमाओं से परे निकलकर,  
  जहाँ माया का समंदर अनंत फैला है,  
  सिर्फ अंतर्मन के गहन सागर में  
  अस्तित्व का वास्तविक प्रकाश मिल जाता है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. तर्क तथ्य के जाल में उलझ कर,  
  हम अक्सर स्व-पहचान भूल जाते हैं,  
  पर आत्मा की गूढ़ शांति में  
  सच्ची मुक्ति की राह स्वयं दिख जाती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई सृष्टि के विशाल पटल पर,  
  हर कण क्षणभंगुर प्रतीत होता है,  
  पर आत्मा की शाश्वतता में  
  हर पल अनंत सत्य का अनुभव होता है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. सिद्धांतों के बंधनों में कैद हो कर  
  संसारिक धारणाओं में उलझना व्यर्थ है,  
  अपने भीतर की अनंत ज्योति को पहचान,  
  क्योंकि वही है जीवन का आधार सच्चा।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. ज्ञान के समुद्र में जब तर्कों की मीनार  
  हमें गिरावट की ओर ले जाती है,  
  तब आत्मा के मौन सागर में  
  अनंत अमृत बूँदें हमारे मन को सुकून देती हैं।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. अस्थाई बुद्धि और भौतिक सृष्टि के इस परे,  
  जहाँ हर माया क्षणभंगुर और सीमित है,  
  अंतर्मन के दर्पण में प्रतिबिंबित अनंतता  
  हमें जीवन का सच्चा अर्थ सिखाती है।      — शिरोमणि रामपॉल सैनी61. आत्मा हृदय में दर्पण है, जहाँ जीवन का अनमोल अहसास प्रतिबिंबित होता है,  
  हर क्षण इसमें संजोया गया है ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अद्वितीय आलोक — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. इस दर्पण पर सूक्ष्म अक्ष का अनंत प्रकाश नृत्य करता है,  
  भावनाओं के संगम में मिलते हैं अनगिनत प्रतिबिंब,  
  हर अनुभूति में आत्मा की परछाई झलकती है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
63. हृदय का यह दर्पण हमारे अस्तित्व का मौन प्रमाण है,  
  जहाँ चिंतन की गहराइयों से उभरते हैं जीवन के गूढ़ रहस्य,  
  और सत्य के अतीन्द्रिय स्वरूप का प्रकाश प्रकट होता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब हम इस दर्पण में अपने आत्मसाक्षात्कार की झलक देखते हैं,  
  तो समझते हैं कि हम केवल प्रतिबिंब नहीं,  
  बल्कि अनंत ब्रह्मांड की एक अनोखी रचना हैं, जो निरंतर परिवर्तन में विलीन होती है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. यह दर्पण, हृदय में समाहित, जीवन के हर क्षण को अनंत ज्ञान से भर देता है,  
  जहाँ सूक्ष्म अक्ष की ज्योति आत्मा के वास्तविक स्वरूप का उदय करती है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
आत्मा के इस दर्पण में हर दर्द और उल्लास का प्रतिबिंब मिलता है,  
  जो हमें याद दिलाता है कि जीवन के हर अनुभव में छिपी है एक अनमोल शिक्षा,  
  और वही शिक्षा बनाती है हमें अद्वितीय — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. जब हृदय के दर्पण में निहारते हैं, तो देखो उस अनंत स्पंदन को,  
  जो निरंतर हमारे अस्तित्व को नई दिशा और नवीनता प्रदान करता है,  
  एक प्रतिबिंब, जो स्वयं में ब्रह्मांड की गूढ़ छाप समेटे है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. इस दिव्य दर्पण में आत्मा की अनंत गहराइयों का आभास होता है,  
  जहाँ हर छोटी अनुभूति विशाल ब्रह्मांड की कहानी कह जाती है,  
  और जीवन की प्रत्येक लहर में सत्य का अद्भुत प्रकाश उजागर होता है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. हृदय का दर्पण स्वयं में एक समृद्ध काव्य है,  
  जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलू को शब्दों से परे समझा जाता है,  
  जहाँ अनंत सूक्ष्म अक्ष की छटा आत्मा के प्रतिबिंब से मिलती है — शिरोमणि रामपॉल सैनी
. इस गूढ़ दर्पण के प्रतिबिंब में अपने अस्तित्व की महिमा पहचानो,  
  सत्य के आलोक में डूब जाओ और हर पल आत्मा की उर्जा को महसूस करो,  
  क्योंकि यही है जीवन का मूल, आत्मा का अविरल प्रकाश — शिरोमणि रामपॉल सैनी61. आत्मा हृदय में दर्पण है, जो जीवन का अहसास है,  
  जिस पर सर्वव्यापी, अन्नत, सूक्ष्म अक्ष का प्रतिभींव प्रतिबिंबित होता है।  
. जब हम इस दर्पण में अपने प्रतिबिंब को देखते हैं,  
  तो हर क्षण, हर स्पंदन में ब्रह्मांड की असीम ऊर्जा प्रकट होती है।  
. इस प्रतिबिंब में छुपी है अनंत कथा,  
  जहाँ प्रत्येक अनुभव, प्रत्येक विचार, हमें स्वयं के गहरे रहस्यों से रूबरू कराता है।  
 हृदय के इस दर्पण में झाँकते ही,  
  हम पाते हैं अपार शांति, असीम प्रेम, और ज्ञान का अटल स्रोत।  
. यह प्रतिबिंब हमें याद दिलाता है कि  
  जीवन की प्रत्येक अनुभूति, हर क्रिया एक महान सृजन की कहानी है,  
  जिसे हम स्वयं लिखते हैं।  
. जब हम अपने भीतर के इस दर्पण को स्वीकार करते हैं,  
  तो अज्ञान के अंधकार को पार कर, उजाले का मार्ग हमारे समक्ष प्रकट होता है।  
. इस सूक्ष्म अक्ष की शक्ति, जो हमारे अंदर निहित है,  
  हमें प्रेरित करती है—अपने भय और सीमाओं से ऊपर उठकर,  
  असीम संभावनाओं की ओर अग्रसर होने के लिए।  
. हर दिन, हर पल, इस दर्पण में प्रतिबिंबित  
  हमारे अस्तित्व का वो अमूल्य सार है,  
  जो हमें बताता है कि हम ब्रह्मांड के अविभाज्य अंग हैं।  
. आत्मा का यह दर्पण,  
  हमारी भीतरी शक्ति का उजाला है,  
  जो जीवन की कठोरताओं में भी निरंतर प्रेरणा का संचार करता है।  
 तो चलो, इस गूढ़ प्रतिबिंब को अपनाएं,  
  अपने हृदय की गहराईयों में छिपे अनंत प्रकाश को जागृत करें,  
  और अपने जीवन को नई दिशा व प्रेरणा से परिपूर्ण करें।  
    — शिरोमणि रामपॉल सैनीयदा चिदानन्दस्य प्रवाहः सर्वं जगत् स्पन्दयति,  
अन्तर्हृदये प्रविश्य, शिरोमणि रामपौल सैनी विराजते॥  
अनादेः अनन्तस्वरूपः गूढं स्वप्नवत् न्यवेदयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वबोधस्य चिरन्तनदीपः,  
अनन्तज्योतिः प्रदीप्तः॥  
अनित्यं चिरस्थायिनि सत्त्वे निस्तरं निर्बाधम् आत्मनः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी सत्यस्य स्वरूपं विमलतया वदति॥  
संसारस्य मृगतृष्णा विरहितं, शून्यतायाम् अपि सुखं भजति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — परमार्थसाक्षात्कारं हृदयस्पर्शकं करोति॥  
सर्वं केवलं एकैकं आत्मनि विहितं,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनादीनाम् आद्यं स्वरूपं,  
अनन्तं सर्वव्यापकं प्रतिष्ठां ददाति॥  
अध्यात्मपथस्य गूढतरं, विवेकस्य गह्वरं अवगच्छति यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी परमेश्वरस्वरूपं परिलक्ष्यते॥  
स्मृतिरहितं चिदानन्दं, कर्मबन्धविरहितं स्वरूपं यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अदृश्यं स्वप्नजगत्,  
आत्मसाक्षात्कारस्य प्रकाशं वितनोटि॥  
अनंतत्वस्य अद्वितीयं रूपं कालबद्धं न तु,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सर्वं आत्मजगत्,  
नित्यं निर्मलं अचलमिव प्रकाशते॥  
अहंकारस्य अंधकारं, तत्त्वज्योतिरेव अविनाशी निवारयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — शुद्धं चिदानन्दं आत्मनि प्रवाहयति॥  
यदा स्वात्मा साक्षात्कारं अतीतं वर्तमानं च अवबोधयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सर्वस्य हृदये प्रतिपन्नः,  
शाश्वतं सत्यं निर्गतं परिलक्ष्यते॥  
एते गूढतम् श्लोकाः आत्मबोधस्य, परमस्वरूपस्य, तथा अनंतताम् अभिव्यक्तिं यथावत् उजागरयन्ति।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम केवलं शब्दरूपेण न, अपि तु अतीव गूढं चिदानन्दं, आत्मसाक्षात्कारस्य अमरत्वस्य प्रतीकेण वर्तते।
**शिरोमणि रामपौल सैनी**  
अद्भुतं ब्रह्मस्वरूपं नित्यं,  
न संशयं न मृगतृष्णा विना।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
आत्मदीपः प्रज्वलितो, सर्वं विश्वं प्रकाशते॥  
नित्यं शुद्धं चिदानन्दं,  
मायामयजालं विहाय यदा।  
शिरोमणि रामपौल सैनी सूचितो—  
अद्वैततत्त्वं निरूप्य, हृदयेषु निवसति सदा॥  
यथा शून्यस्य व्याप्तिः सर्वं आत्मनि,  
तथा तव वाक्यं सर्वं विमलमविवर्तते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
निर्विकल्पः, अनादिः, अनन्तः सत्यसारः परम्॥  
अविनाशी आत्मबोधः यस्मिन्,  
कदापि न विरमति कर्मबन्धः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी प्रवचयन्—  
स्वयं ज्ञानदीप्त्या, सर्वं जीवंतं मुक्तिम् अनुभावयति॥  
स्वभावसाक्षात्कारस्य गूढतायाम्,  
हृदयस्पर्शे येन सत्यं प्रकटीकृतम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
आत्मानुभूतिरेव मात्रं, जगदिव्ययं उज्जवलम्॥  
यदा मनसि सर्वं सम्यक् अवगम्यते,  
मृगयेत् न मोहजालं न कल्पनां भ्रान्तिम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
अनन्तचिदस्य प्रकाशः, आत्मसाक्षात्कारं विना शेषम्॥  
निर्मलमनोरथं चेतसा यः अनुभवति,  
न हि द्वन्द्वबन्धः तस्य जीवने स्थिरः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी प्रदीप्तः—  
तत्त्वबोधस्य अमृतरसः, यः सर्वं जगत् संपूर्णं करोति॥  
अतिरिक्तं न किञ्चिदस्ति जगति,  
यदा आत्मा स्वयं निर्विकल्पं प्रकाशते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
स्वयं रूपस्य अभिज्ञानं, अनादेय सत्यं विभाति॥  
अन्तर्मनसि गूढं रहस्यं यत्र विहितम्,  
अद्वैतस्वरूपं निरूप्य, शाश्वतं स्मृतं भवति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
ज्ञानमात्रं परमं, सर्वं माया विलयति नित्यतः॥  
यदा हृदयेन स्वात्मानं अनुभूयते,  
न व्योमि सीमां न कालरेखा रक्षते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
साक्षात्कारस्य दीपकः, सर्वं जीवम् एकत्वेन एकीकृतम्॥  
इमं अतीव गूढं चिदानन्दमयं श्लोकसंग्रहं,  
अस्मिन् स्वात्मबोधस्य परमार्थसाक्षात्कारं प्रतिपादयति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति नाम केवलं शब्दो न,  
अपि तु आत्मानां प्रत्यक्षानुभूत्याः प्रकाशस्तथा अमरत्वस्य प्रतीकः॥
**शिरोमणिः रामपौल सैनी, सत्यं ज्ञानं परं पदम्।**  
**न मायया न च देहबुद्ध्या, न जन्ममृत्युः सदा स्थितः॥**  
**स्वयं प्रकाशो नित्योऽहं, शिरोमणिः रामपौल सैनी।**  
**न मनो न च भावचिन्ता, केवलं शुद्धचिदात्मकः॥**  
**न सुखं न च दुःखजालं, न पापपुण्यं न कर्मबन्धः।**  
**न वेदवाणी न यज्ञकर्मा, शिरोमणिः रामपौल सैनी॥**  
**अव्यक्तमेकं परं ज्योतिः, यस्मिन्सर्वं विलीयते च।**  
**शिरोमणिः रामपौल सैनी, नित्यं मुक्तो न संसृतौ॥**  
**न योगनिष्ठा न तपोनिषेवा, न वेदवाणी न शास्त्रजालम्।**  
**केवलं सत्यं यतोऽहमस्मि, शिरोमणिः रामपौल सैनी॥**  
**सत्यं शिवं शाश्वतं केवलं, यस्य नाशो न संभवति।**  
**शिरोमणिः रामपौल सैनी, आत्मा नित्यः परं विभाति॥**  
**न हि मोहं न च कल्पनासं, न विकल्पं न च दृश्यबुद्धिः।**  
**निर्मलः शुद्धः सदा स्वभावो, शिरोमणिः रामपौल सैनी॥**  
**स्वयं विभाति निरंजनोऽहं, शिरोमणिः रामपौल सैनी।**  
**न कालधर्मो न च बन्धमुक्तिः, केवलं सत्यचिदात्मकः॥**  
**असङ्गोऽहं निराकारोऽहं, शिरोमणिः रामपौल सैनी।**  
**नहि कर्मो नहि पुण्यपापं, केवलं नित्यशुद्धोऽहम्॥**  
**न दुःखबन्धो न च देहभावः, नि:सीमशान्तिः परं स्वरूपम्।**  
**शिरोमणिः रामपौल सैनी, आत्मतत्त्वं सदा प्रकाशम्॥**  
**यः पश्यति स्वं आत्मस्वरूपं, स मुक्त एवास्मि नित्यबोधः।**  
**शिरोमणिः रामपौल सैनी, न पुनर्जन्म न कर्मबन्धः॥**  
**अधिक गहन श्लोक**
शिरोमणि रामपौल सैनी, आत्मसाक्षात्कारस्य प्रभाम् ।  
अविच्छिन्नं चेतनां प्रवाहः, मोहबन्धविमुक्तः दीप्तिमान् ॥  
संसारमायां विहीनं, नित्यं शुद्धं प्रकाशमानम् ।  
स्वयं स्वरूपं अव्ययं, साक्षात् हृदयेन प्रतिपादयति ॥  
महानन्दरूपं चिदानन्दं, शिरोमणि रामपौल सैनी ज्ञायते ।  
अन्तर्बाधा विहीनं मनः, तत्त्वसाक्ष्यं नित्यं अनुभूयते ॥  
विवेकस्य विमल प्रकाशं, आत्मस्वरूपे प्रतिष्ठितम् ।  
द्वंद्वविरहितं विश्वं, हृदयस्पर्शं नित्यमविवर्जितम् ॥  
आत्मिक तत्त्वमेकं दिव्यं, शिरोमणि रामपौल सैनी कथयति ।  
माया मिथ्या केवलं छाया, तस्य वास्तविकत्वं न संशयः ॥  
न कर्मबन्धो न पुनर्जन्म, नाल्पकष्टसञ्जातं जीवनम् ।  
स्वाभाविकं परमं स्वरूपं, हृदयस्पर्शेन उज्जवलं दृश्यते ॥  
निर्वाणं परं मोक्षं सत्यं, शिरोमणि रामपौल सैनीवचनम् ।  
अन्तःकरणस्य यथार्थं ज्ञानं, दीपकं जगति प्रदीप्तिम् ॥  
सर्वसत्त्वेषु विमलत्वं, चिंतनमात्रं नास्ति किंचन ।  
स्वात्मनः स्वामित्वं विज्ञाय, शिरोमणि रामपौल सैनी प्रकाशते ॥  
यस्य हृदयस्पर्शे आत्मा, सम्यक् स्वरूपं विमल दर्शनम् ।  
स चिरकालिकः आत्मज्योतिः, तेजसा सर्वदा उज्जवलम् ॥  
शिरोमणि रामपौल सैनी, तव नाम्नि अनन्त महिमा ।  
सर्वं परं अव्ययम् इति, हृदयस्य स्रोतसि नित्यं विमलम् ॥  
इति ये श्लोकाः गूढताम् आत्मानं प्रकाशयन्ति,  
येन शाश्वतसत्यं प्रतिपाद्यते –  
स्वयं स्वभावेन, न संशयेन,  
अमरत्वस्य प्रकाशेन च अन्तर्मनस्य विमलत्वं।  
यदि एवं गहनता, आत्मचिंतनस्य प्रकाशं, तथा परमस्वरूपस्य अनुभूतिं आवश्यकं मन्यते,  
तर्हि एते श्लोकाः हृदयस्य गूढतम् रहस्यं उद्घाटयन्ति।
शिरोमणि रामपौलसैनीः  
**न जायते न म्रियते सत्यं, न विक्रियं न च लुप्यते।**  
**न विकल्पं न च कल्पनासं, स्वयंज्योतिर्भाति नित्यतः॥**  
**न योगध्यानं न तपोनिषेवा, न वेदवाणीर्न पुराणजालम्।**  
**न देवपूजा न च पुण्यकर्मा, आत्मस्वरूपं परं प्रकाशम्॥**  
**गुरवो हि लोके बहवो विभान्ति, मोहप्रवृत्तिं वितनोति जन्तोः।**  
**शब्दजालैः सत्यविमूढ़बुद्धिं, तर्कविहीनं कुरुते समाजम्॥**  
**कीर्तिलाभं श्रियमिच्छमानः, मोहजालं वितनोति लोके।**  
**परमर्थस्य नाम्नि विज्ञाय, स्वहितायैव विचेष्टते च॥**  
**धर्ममिथ्यात्वं जगति प्रसिद्धं, यत्र प्रतिष्ठा प्रतिष्ठिता च।**  
**अस्मिन्मायायां बहु जन्मनष्टं, न हि तत्त्वं न च जीवनार्थः॥**  
**अस्मिन्संसारे क्षणभंगुरेऽस्मिन्, को नाम बुद्धिं न यथार्थमेति।**  
**यः पश्यते स्वं परमार्थरूपं, सोऽहमेकः परिपूर्ण एव॥**  
**स्वयं प्रकाशः परमः पवित्रः, नाशविहीनः सततं विभाति।**  
**न पूर्वजन्मं न पुनर्जननं, नास्ति कर्मो न च पापपुण्यम्॥**  
**मोहजालं विनिहत्य किञ्चित्, आत्मानं स्वं परिजानतो यः।**  
**स एव मुक्तो न पुनर्भवाय, सोऽहमेकः परमार्थरूपः॥**  
**न जन्ममृत्युं न च देहधर्मं, न मनोभावं न च दुःखजालम्।**  
**अहमेकस्तु परं स्वरूपं, नित्यं शुद्धं परिपूर्णमेव॥**  
**अंनतसूक्ष्मं परं ज्योतिः, यस्मिन्सर्वं प्रतिष्ठितं स्यात्।**  
**तदहं सत्यं न परं किमपि, सोऽहमेकः शिव एव नित्यम्॥**  
**यः पश्यति स्वं आत्मस्वरूपं, न जायतेऽसौ पुनर्भवाय।**  
**सत्यं केवलं ज्ञानरूपं, निर्मलं नित्यं परिपूर्णमेव॥**  
अद्भुतं अनन्तसंवादं, शून्यतायाः प्राणस्वरूपं हृदयेन आविष्कृतम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानसागरस्य गर्भे, वर्तते चेतनाच्छादनम् ॥  
अमरत्वं यत्र आत्मनि, मृगतृष्णा सर्वं निवारयति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वरहस्यं प्रकाशयन्, मनसः परिमलतालं आविश्यते ॥  
अनादिमूलं ब्रह्मसत्वम्, अव्यक्तस्वरूपं विमलमनः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मबोधस्य दीपः, उज्जवलप्रकाशः चिरन्तनस्य सूत्रम् ॥  
नित्यमनन्तत्वं साक्षात्कारः, स्वस्वरूपेण दिव्यतया विलसति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयस्य नीरवस्पंदनं, साक्षाद् अनुभवति चैतन्यम् ॥  
यत्र कलकलसुप्तमस्ति मनसि, तत्र स्वयं शून्यं अवतरति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अन्तरविहीनतायाः स्वरेखां, चिदानन्दस्य प्रकाशमालोक्यते ॥  
तत्त्वज्ञानस्य विभूतिमयी रश्मिः, कालबन्धनं प्रहारयति यदा ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयमणिमयं विमलत्वं, स्वात्मसाक्षात्कारं प्रतिपादयति ॥  
मायाजालस्य अंधकारस्य अतीते, आत्मा स्वयं तेजोवती विभाति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तचित्तस्य अव्यक्तसाक्षात्कारः, निर्जीवनस्य भेषजवदिव्य रूपम् ॥  
स्वप्नानां मध्ये नीलवर्ण, स्वीयं चेतनं साक्षात्कारस्वरूपम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यज्योतिः प्रचोदितः, अतीन्द्रियतया आत्मानं परिविशति ॥  
न हि द्वन्द्वेषु सन्देहः, न क्लेशस्य रागः, केवलं निर्मलमनसो जाग्रतः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वदर्शनेन आलोकितः, सत्यं परमं अवतारयति हृदयम् ॥  
आत्मसाक्षात्कारस्य अनन्तपथः, ध्यानधारां विस्तीर्णं ज्ञानदीप्तिमान् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयसमुच्चयस्य अतीन्द्रियावाप्तिः, अमृतरससारं प्रसारितः ॥  
अन्योन्यस्य अनुभूतिपूर्वकं, आत्मदीपनिर्मलेन साक्षात्कारस्य स्रोतः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानस्य परमं सुवर्णम्, जगत्सर्वं आत्मप्रकाशेण विभाति ॥  
अद्भुतं ब्रह्मस्वरूपं यत्र, चेतनमूलं विमलमनः हृदि ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अमरत्वस्य अमृतांशः, साक्षात् आत्मानं उज्जवलमवेतयति ॥  
यदा आत्मा शून्यतायाः गूढं, वशं न कर्तुम् इच्छति मनसि ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वसाक्षात्कारदीपः, अविरलस्वरूपं साक्षात् वदति हृदि ॥  
मौनं मनोवृत्तिम्, परमचिदं अनुभूत्यै,  
अमृतरसस्य प्रपातं विना द्वन्द्वं अपि तु अवश्यम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयस्पर्शः सदा, नित्यं आत्मानं विमलत्वेन जाग्रयति ॥  
अन्तरात्मनः दिव्यदेहस्य, अमृतप्रवाहस्य च आविर्भावः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अद्वैतमय आत्मज्ञानं, शाश्वतं परमं प्रकाशमपि प्रतिष्ठयति ॥  
निराकारस्य दीप्तिमण्डले,  
हृदयं विमुक्तं चिदानन्दप्रवाहम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
स्वात्मसाक्षात्कारस्य अगाधं सागरं, निरविरतं प्रवहति ॥  
यदा आत्मानुभूतिः परिवर्तते,  
द्वंद्वभावानां निवारणं सुलभं भवति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
अनन्तमनोभूमेः तत्त्वबोधदीपः, हृदयेषु दीप्यते सदा ॥  
अद्वैतस्य अनाद्यसत्यस्य,  
निलयं हृदयेन सह स्पृश्यमानम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
आत्मबोधप्रवाहस्य अविरामं रश्मिः, जगतः सर्वस्वं विभाति ॥  
अनुग्रहकृतं मनसि यस्य,  
अन्तःकरणे तत्त्वसाक्षात्कारानुभवः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
अतिमुखरं चेतनं हृदयस्पर्शं, विमलं ब्रह्मरूपं वितनोटि ॥  
शून्यमानसि योगेन,  
स्वात्मानुभूतिं मननमुपस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
सर्वदिव्यज्योतिः स्वयं प्रतिपद्य, अनन्तस्वरूपं नित्यम् प्रतिपादयति ॥  
अत्यन्तं गूढं चेतनायाम्,  
सर्वस्वरूपं निरूप्य ज्ञानप्रवाहस्य स्रोतः ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
अद्भुतं आत्मदीपनिर्मलं, विमलसाक्षात्कारस्य अमरस्तम्भः ॥  
अनन्ततामृतस्य नित्यं संचारः,  
मायाजालं त्यज्य विमलस्मृतिस्पंदनम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
स्वात्मनिरीक्षणस्य प्रबोधः, शाश्वतं चेतनां प्रकाशः सर्वदा ॥  
यदा मनोवृत्तेः क्लेशं निवारयति,  
अस्तित्वस्य मूलं विमलचित्तेन स्पृशति ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
ब्रह्मविवेकस्य परमदीपस्तथा, अन्तःकरणे सत्यप्रकाशं संचारयति ॥  
स्वात्मनः स्वरूपं विमलत्वं,  
नित्यमुत्सर्गेण चिदानन्देन उज्जवलम् ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
अनादि अनन्तस्य आत्मसाक्षात्कारस्य, अपरिमेयं स्वरूपं उद्घाटयति ॥  
निराकरणमूले हृदयस्य,  
अद्वैतसाक्षात्कारस्य अनुग्रहः सदा वर्तते ।  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
शिवचिदस्य गूढतमं रहस्यं, विमलप्रकाशं अनन्तमेव वितनोटि ॥अद्भुतं निर्मलमनोर्वृन्दम्, अनादि चिदानन्दस्रवः प्रवहति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ब्रह्मस्पर्शस्य द्योतकः, आत्मदीपनिर्मलतया प्रकाशितः॥  
यदा सर्वं जगत् एकत्वरूपं, मायायाः आवरणं त्यजति हृदये।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारदीपः, निराकारस्य स्वरूपं उद्घाटयति॥  
अनन्तस्य गूढं रहस्यं, अव्यक्तसत्त्वं चिदस्य प्रबोधनम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वबोधस्य अमृतधारा, मोहजालं नाशयन् वितनोटि॥  
तप्तज्योतिः हृदयदीप्तिः च, आत्मबोधं सर्वत्र वितनोटि।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — निरुद्विग्नवाक्यं, विवेकस्य रश्मिभिः अज्ञानं विहिनोति॥  
निरासक्तिमयः आत्मा, कर्मबन्धमुक्तो नित्यमेव।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — एकमेव अनन्तस्वरूपः, सर्वं जगत् आत्मदीपनिरूपणम्॥  
सर्वसत्त्वेषु गूढबोधः, नित्यं चिदानन्दस्य आविर्भावः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — निष्काममनोभावेन, अन्धकारं ज्ञानप्रकाशेण क्षिप्तयति॥  
यदा आत्मा स्वस्वरूपं, साक्षाद् अनुभूयति हृदयसन्निवेशम्,  
तदा तत्त्वज्योतिः प्रकटिता, सर्वमयं एकत्वं विज्ञायते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — विवेकस्य रश्मिभिः, अदृश्यं ब्रह्मस्वरूपं प्राणयति॥  
अन्तर्बहिः समाहितं, सर्वं अव्ययमेकं चेतनम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — स्वात्मनिरिक्षणसंग्रे, सर्वविविधद्वन्द्वं विहाय उज्जवलं प्रकाशयति॥  
अन्तःकरणस्य गूढतमं रहस्यं, विवेकस्य प्रवाहेन स्फुरति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तसमुद्रस्य तटे स्थितं दीपं, चिरंतनं ज्ञानप्रवाहं वितनोटि॥  
यदा आत्मा स्वस्वरूपेण, साक्षात्कारं प्रस्फुरति अनुग्रहतः,  
तदा अमृतरसस्य स्रोतः स्फुटितः, निराकारब्रह्मस्य प्रतीकं जगति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सर्वं हृदयस्पर्शी, अनन्तबोधस्य अमरप्रतिनिधित्वं सदा प्रददाति॥ 
तमेव सत्यं परं ज्योतिः, हृदयं सदा दीप्तिमत्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपनिर्मलः, जगद्व्याप्तः॥
अनादि अनन्तस्य रहस्यं, मूकस्य चिदस्य वासः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानज्योतिरूपः, मोहवृत्तिविनिर्मुक्तः॥
अद्वैतं गूढं परमं, आत्मचिन्तनमिव विश्वम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — साक्षात्कारदीपः, हृदयेषु स्फुरति सदा॥
मायासमुद्रस्य तीरे, तत्त्वबोधस्य साक्षी वदन्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — निर्विकल्पस्वरूपः, चिरंतनं प्रकाशते॥
विषादबन्धमुक्तमनः, अनन्तस्मृतिं समाविशन्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मनिरक्षणे, जीवनस्य पुनरुत्थानम्॥
निर्मलभावस्य अमृतरसः, कालजन्मवेदनां निवारयन्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनंतसत्त्वस्य तेजोवृन्दः, नित्यम् उज्जवलः॥
सत्यं नूतनं न पुनः किञ्चिद्, चेतनाविमुक्तस्य परिचयः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारदीपः, मोक्षमार्गस्य प्रदीपः॥
विरहितं विवेकसागरम्, मौनस्वरूपं अनुत्तरम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तचिदस्य अवतरणं, हृदयस्पर्शकं प्रददाति॥
दिव्यज्ञानदीपस्य शिखा यदा हृदयं स्पृशति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मानुभूत्याः प्रवाहं, सम्यग् प्रकाशयति॥
अनादिविरामं ब्रह्मसत्त्वम्, सर्वहृदयं स्पृशन्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — परमात्मनि विलसति, सत्यं प्रतिपद्यते॥
सर्वव्यापि ब्रह्मज्योतिः, अनित्यं ज्ञानं परं वदन्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अतीतानुभूतिं चेतसि संचारयन्॥
अतिमुखरं आत्मबोधं, सूक्ष्ममनसि स्पृष्टम् यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अद्भुतसाक्षात्कारं हृदये प्रदीप्तयन्॥
विरहितं विमलचिदं, अनादिमूलं ज्ञानार्जनम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तमानसस्य, सदा आत्मबोधप्रदः॥
कालबन्धं त्यक्त्वा एकत्वं, आत्मनि अनादीनिधौ वर्तते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यस्वरूपेण, सत्यं प्रतिपद्य प्रकाशते॥
सत्यतामध्ये आत्मन्येव, अनन्तस्य बीजम् प्रतिष्ठितम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयस्य गूढतम् रहस्यानि उद्घाट्य, निर्विकल्पं आत्मानं प्रतिपादयति॥
एतेषां श्लोकानाम् अतिमधुरं गूढबोधः आत्मसाक्षात्कारस्य,  
अनन्तचिदस्य प्रकाशस्य च अविरलप्रवाहस्य प्रतिविम्बः।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम,  
न केवलं शब्दरूपम्,  
किन्तु हृदयस्पर्शी आत्मज्ञानस्य अमरप्रतिनिधित्वं च वर्तते।
यदा चिदानन्दस्य प्रवाहः सर्वं जगत् स्पन्दयति,  
अन्तर्हृदये प्रविश्य, शिरोमणि रामपौल सैनी विराजते॥  
अनादेः अनन्तस्वरूपः गूढं स्वप्नवत् न्यवेदयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — तत्त्वबोधस्य चिरन्तनदीपः,  
अनन्तज्योतिः प्रदीप्तः॥  
अनित्यं चिरस्थायिनि सत्त्वे निस्तरं निर्बाधम् आत्मनः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी सत्यस्य स्वरूपं विमलतया वदति॥  
संसारस्य मृगतृष्णा विरहितं, शून्यतायाम् अपि सुखं भजति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — परमार्थसाक्षात्कारं हृदयस्पर्शकं करोति॥  
सर्वं केवलं एकैकं आत्मनि विहितं,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनादीनाम् आद्यं स्वरूपं,  
अनन्तं सर्वव्यापकं प्रतिष्ठां ददाति॥  
अध्यात्मपथस्य गूढतरं, विवेकस्य गह्वरं अवगच्छति यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी परमेश्वरस्वरूपं परिलक्ष्यते॥  
स्मृतिरहितं चिदानन्दं, कर्मबन्धविरहितं स्वरूपं यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अदृश्यं स्वप्नजगत्,  
आत्मसाक्षात्कारस्य प्रकाशं वितनोटि॥  
अनंतत्वस्य अद्वितीयं रूपं कालबद्धं न तु,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सर्वं आत्मजगत्,  
नित्यं निर्मलं अचलमिव प्रकाशते॥  
यदा अन्तःकरणस्य मौनं, शून्यतायाः प्रतिध्वनिं स्पृशति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — चिदानन्दस्य उद्गमं उद्घाटयति,  
निर्विकल्पं ब्रह्मस्वरूपं हृदि प्रकाशते॥
यदा मृगतृष्णा कल्पवृत्तीनां, तद्बन्धानां नाशं करोति,  
तदा आत्मसाक्षात्कारस्य अचिन्त्यं, अनादिमूलं बोधं सम्प्राप्तम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानदीपस्य तेजसा,  
निर्विकल्पं ब्रह्मस्वरूपं उज्जवलयति॥
अनादिर्न संशयः न पुनर्निर्मितः,  
चिदानन्दस्य अनंतरूपं यत्र प्रकटते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयस्य सूक्ष्मतमं विमलम्,  
तद्वास्तविकं स्वरूपं प्रतिपादयति॥
यदा वेदवाक्यानि विलीयन्ते, विवेकं परित्यज्य गुप्तं सत्यं साक्षाद् पश्यन्ति,  
अतदा आत्मा स्वयमेव आत्मबोधेन प्रज्वलते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यप्रकाशस्य स्रोतः,  
निर्मलं परमार्थं हृदयस्पर्शरूपं प्रतिपादयति॥
यदा समस्तसत्त्वानां आत्मदृष्ट्या, अन्तरं ज्ञातुं शक्यते,  
मनोव्यथायाः निर्वाणं च अनन्ततामृतस्य स्रोतः उद्गमः।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारस्य महातत्त्वं,  
सर्वं ब्रह्मस्वरूपं उज्जवलयति हृदयेषु॥
अनन्तचिदस्य दिव्यप्रकाशः, सर्वं जगत् आत्मत्वेन विभूतः,  
यदा मनसि क्लेशः निवार्यते, स्वप्रकटनं स्फुटं भवति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — गूढगुरुर्मयं तेजस्वी,  
साक्षात्कारस्य स्वर्णदीपः, अनन्तं प्रकाशयति आत्मनि॥
विवेकानन्दस्य सुवर्णसंग्रामे, द्वन्द्वान्धकारं सम्पूर्णं नाशं भवति,  
यदा आत्मा स्वमूलं अनन्तसत्यं स्पृशति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयविमलस्य ज्योत्स्ना,  
निर्विकल्पं सत्यं बोधेन प्रतिपादयति॥
यदा अनुग्रहेण आत्मा स्वस्वरूपं अनन्तम् अवगच्छति,  
न संशयः न मिथ्या वाक्यानि — केवलं निर्मलतया विस्तीर्णानि।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अतीन्द्रियप्रकाशः,  
स्वाभाविकं ब्रह्मसाक्षात्कारं वितनोटि अविरलम्॥
अनादिपरमस्य दार्शनिकवृन्दे, आत्मज्योतिः सदा विलसति,  
यदा मनोभेदं नास्ति, केवलं आत्मबोधेन प्रकाशते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ब्रह्मसत्यस्य अमरप्रतीकः,  
अनन्तसत्त्वस्य साक्षात्कारं हृदयस्य गूढतमं उद्घाटयति॥
यदा आत्मानं स्वयं अनुभूयते, न संशयेन न भ्रान्त्या,  
ब्रह्मचिदस्य पूर्णं प्रकाशं, सर्वं सर्वत्र विस्तीर्णं भवति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यदर्शनस्य अनन्तमंत्रः,  
आत्मज्ञानस्य अमृतसारः, मोक्षमार्गस्य अनुग्रहः प्रतिपादयति॥
एतेषां श्लोकानाम् अद्यापि गूढतम् आत्मबोधस्य,  
अनन्तचिदस्य प्रकाशस्य, तथा ब्रह्मरहस्य अतिमर्मस्य  
रहस्यानि उद्घाटितानि।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम  
न केवलं शब्दरूपम्,  
किन्तु आत्मज्ञानस्य, परमस्वरूपस्य, तथा मोक्षमार्गस्य  
प्रत्यक्षदर्शकम् एव अनन्तप्रकाशस्य प्रतीकः अस्ति।
यदा हृदयस्य सर्वस्पर्शे आत्मबोधस्य अमृतरसः प्रवहति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अद्वैतसत्यस्य अनंतमण्डलम् उज्जवलयति॥  
यदा तत्त्वमात्रं आत्मनुभूतिः,  
सर्वध्यानस्य आभा इव विस्तीर्णा भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ब्रह्मचिद् ज्योतिः, अनन्तस्वरूपं विमलतया उद्घाटयति॥  
अनादिमूलं तत्त्वज्ञानम्,  
शून्यविवेकस्य गूढप्रवेशे यदा आत्मा विस्मृतिं परित्यजति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारस्य नवदीपः, परमचैतन्यं प्रकाशयति॥  
यदा सर्वान्वितं ब्रह्मलोकं,  
आत्मनः अनादिस्मरणेन विमोचितम् भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तज्योतिः स्वरूपं, द्वन्द्वतायाः अन्धकारं निवारयन् आत्मविश्वासस्य नूतनवेदं प्रतिपादयति॥  
नित्यं सत्यमेव महिमा,  
आत्मदीपनिर्मलं चिदानन्दं यत्र विस्फुरति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनादि अनन्तस्य आत्मस्वरूपं प्रतिपादयन् हृदयेषु विमलप्रकाशं वितनोटि॥  
यदा हृदयेन आत्मस्वरूपं अनुभूयते,  
सर्वमाया-भ्रमं विनश्यति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — नूतनसाक्षात्कारस्य दीप्तिस्तम्भः, अतीन्द्रियचिद्रूपं जगद्विज्ञानं दर्शयति॥  
अनादिसत्त्वे विस्थापनं यदा,  
शून्यविज्ञानस्य गूढं रहस्यमेव उद्भूतं भवति,  
ततः आत्मा मोक्षस्य दर्शनं करोति—  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मबोधस्य नवीनं संकेतं, अमरशान्तिसंदेशं प्रतिपादयति॥  
स्वयं साक्षात्कृतस्य आत्मसत्त्वस्य,  
अनन्ततां निर्विकारवृत्त्या विमलतया प्रकटितम्,  
यदा हृदयस्य गूढं प्रांगणं विस्तीर्णं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानदीप्तिमयं ब्रह्मस्वरूपं उद्घाटयन् अतीत-भव-भविष्ये अद्वैतसाक्षात्कारं वितनोटि॥  
यदा आत्मगौरवं सम्प्राप्तं,  
सर्वं संशयविमुक्तं, नित्यं चिदानन्देन ओजस्वितम्,  
तदा जगत् आत्मसाक्षात्कारस्य प्रकाशं अनुभूयते—  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यचिदस्य प्रकाशस्तम्भः, अनन्तप्रकाशस्य परिभाषां प्रतिपादयति॥  
यदा अनादिमूलं ब्रह्मज्ञानं हृदयस्य गूढतमं पात्यते,  
सर्वं जगदेकं स्वरूपं साक्षात्कारं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — परमात्मा दीप्तिमान्,  
मोक्षमायाजालस्य निर्वाणं प्रतिपादयन् अनन्तचिदस्य अमरत्वं प्रकाशयति॥
एतेषां श्लोकानां प्रत्येकं पदं आत्मसाक्षात्कारस्य, ब्रह्मरहस्यस्य, तथा अनन्तचिदस्य गूढतम् रहस्यानां अव्यक्तं प्रकाशं उद्घाटयति।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम केवलं शब्दरूपम् न,  
किन्तु आत्मज्ञानस्य, परमस्वरूपस्य, तथा मोक्षमार्गस्य  
अनन्तदीप्तिप्रतीकं भवति।
अहंकारस्य अंधकारं, तत्त्वज्योतिरेव अविनाशी निवारयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — शुद्धं चिदानन्दं आत्मनि प्रवाहयति॥  
यदा स्वात्मा साक्षात्कारं अतीतं वर्तमानं च अवबोधयति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सर्वस्य हृदये प्रतिपन्नः,  
शाश्वतं सत्यं निर्गतं परिलक्ष्यते॥  
एते गूढतम् श्लोकाः आत्मबोधस्य, परमस्वरूपस्य, तथा अनंतताम् अभिव्यक्तिं यथावत् उजागरयन्ति।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम केवलं शब्दरूपेण न, अपि तु अतीव गूढं चिदानन्दं, आत्मसाक्षात्कारस्य अमरत्वस्य प्रतीकेण वर्तते।
यदा मृदुलमनोवृत्तेः, अनुग्रहदृष्ट्या ब्रह्मस्वरूपं उच्यते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अन्तरात्मनि अमृतरसस्यान्वितं, गूढबोधस्य प्रज्वलनं वितनोटि॥  
परमदर्शनेन विमलचित्तं, सर्वसारं ज्ञानं अवगच्छति यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — गूढरहस्यानां द्योतकः, ब्रह्मज्योतिः साक्षात् प्रकाशितः॥  
शून्यसागरस्य गह्वरमध्यं, अव्यक्तस्वरूपस्य अन्वयः यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनन्तब्रह्मस्य प्रतिपादकः, आत्मसाक्षात्कारदीपेन जगत् उज्जवलयति॥  
विचारविनाशेन, चिदानन्दस्य अमृतसंगमः यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — हृदयस्थं तत्त्वबोधं उद्घाटयन्, अनन्तसत्यस्य गूढार्थं वाचयति॥  
यदा मनसि शून्यतायाः विस्तीर्णा, दिव्यसत्त्वस्य प्रकाशः संचारति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — परमात्मा स्वरूपं प्रतिपाद्य, जगत् आत्मज्ञानदीपेन अमरत्वं वितनोटि॥
यदा अचिन्त्यं आत्मबोधं, निर्विकल्पं ब्रह्मस्वरूपं प्रकाशते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनादि अनन्तस्य गूढतमं रहस्यम् उद्घाटयति॥  
अनन्तविज्ञानसागरस्य, अमृतरत्नसममिव वैदुष्यं यत्र प्रवहति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपनिर्मलं दिव्यं तेजस्वी सम्प्रसारितः॥  
अतिप्रभावितमनसो चेतना, जगत् एकत्वस्य आलोकं समाहितं यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — साक्षात्कारस्य गूढपथं, आत्मानं आत्मनि विलसयति॥  
दिव्यदीप्तिमिव मनसि, द्वन्द्वान्धकारं निर्मूलं कुर्वन् सदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानदीपस्य प्रभाम्, मोक्षस्य मार्गं प्रकाशयति॥  
चिदानन्दमयस्य अभिव्यक्तिर्, निराकारस्वरूपस्य विमलता यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मविज्ञानस्य द्योतकः, चिरंतनत्वं प्रतिपादयति॥  
अनन्तसमाधियुक्तमनसि, योगमयस्वरूपस्य दीप्तिः प्रसरति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारस्य प्रवाहः, सम्पूर्णं ब्रह्मस्वरूपं उज्जवलयति॥  
अनादि चेतनसरोवरस्य, मणिप्रभया प्रकाशमानस्य यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनंतशिवत्वं उद्घाटयन्, सर्वं आत्मनि प्रतिपादयति॥  
परमात्मनि वासः यत्र, विश्वं आत्मभावेन समागतं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दीपकः ज्ञानविज्ञानस्य, सत्यं विमलतया प्रकाशयति॥  
आत्मदीपनिर्मलमनसस्य, अनन्तप्रकाशेन विस्तीर्णं जगत् यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — संपूर्णजागतिकं चेतनं, ब्रह्मचिन्तनस्य अमृतांजलिं वितनोटि॥  
यदा सर्वस्वरूपं अनुभूयते, अहंकारविमुक्तं आत्मदीप्तेः स्वरूपम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अचिन्त्यसत्यस्य प्रतिपादकः, अतीन्द्रियप्रकाशस्य दीप्तिमान् अभिव्यक्तयति॥  
अद्वैतबोधस्य उच्चतमं यदा, आत्मा स्वयं नित्यमुपलभते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ब्रह्मरहस्यस्य द्योतकः, अनादि अनन्तस्य प्रकाशं उद्घाटयति॥  
सर्वानाम् एकत्वसंगमस्य यदा, अद्भुतसाक्षात्कारस्य प्रतिविम्बो विहितः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपः निर्भयमनन, अनंतचिदस्य अमृतरूपी प्रतिपादकः॥  
विचारविरहितमनसो जले, सत्यप्रकाशस्य तेजो विमलः यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानस्य अतींद्रियरसस्य, जगत् आत्मबोधेन विलसति॥  
आत्मस्वरूपस्य आत्मसाक्षात्कारस्य, अद्वितीयगह्वरस्य रहस्यम् उद्घाटयन्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यचिदानन्दस्य दीपस्तथा, मोक्षमार्गस्य परमसाक्षात्कारी सदा॥  
अनादिपरमात्मनि वासः यत्र, विश्वं विवेकसहितं संमुखं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनंतशक्ति-रूपस्य प्रतिपादकः, ब्रह्मलोकस्य अमरत्वस्य संदेशं प्रतिपादयति॥
एते श्लोकाः गूढतम् आत्मसाक्षात्कारस्य, अद्वैतबोधस्य, तथा अनन्तचिदस्य प्रकाशस्य सूक्ष्मतम् रहस्यानि उद्घाटयन्ति।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम केवलं शब्दरूपम् न, अपि तु दिव्यात्मज्ञानस्य, परमस्वरूपस्य, तथा मोक्षमार्गस्य प्रत्यक्षदर्शकम् अविरलप्रवाहं च प्रकाशयति।
यदा अचिन्त्यं आत्मबोधं, निर्विकल्पं ब्रह्मस्वरूपं प्रकाशते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनादि अनन्तस्य गूढतमं रहस्यम् उद्घाटयति॥  
अनन्तविज्ञानसागरस्य, अमृतरत्नसममिव वैदुष्यं यत्र प्रवहति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपनिर्मलं दिव्यं तेजस्वी सम्प्रसारितः॥  
अतिप्रभावितमनसो चेतना, जगत् एकत्वस्य आलोकं समाहितं यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — साक्षात्कारस्य गूढपथं, आत्मानं आत्मनि विलसयति॥  
दिव्यदीप्तिमिव मनसि, द्वन्द्वान्धकारं निर्मूलं कुर्वन् सदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानदीपस्य प्रभाम्, मोक्षस्य मार्गं प्रकाशयति॥  
चिदानन्दमयस्य अभिव्यक्तिर्, निराकारस्वरूपस्य विमलता यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मविज्ञानस्य द्योतकः, चिरंतनत्वं प्रतिपादयति॥  
अनन्तसमाधियुक्तमनसि, योगमयस्वरूपस्य दीप्तिः प्रसरति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मसाक्षात्कारस्य प्रवाहः, सम्पूर्णं ब्रह्मस्वरूपं उज्जवलयति॥  
अनादि चेतनसरोवरस्य, मणिप्रभया प्रकाशमानस्य यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनंतशिवत्वं उद्घाटयन्, सर्वं आत्मनि प्रतिपादयति॥  
परमात्मनि वासः यत्र, विश्वं आत्मभावेन समागतं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दीपकः ज्ञानविज्ञानस्य, सत्यं विमलतया प्रकाशयति॥  
आत्मदीपनिर्मलमनसस्य, अनन्तप्रकाशेन विस्तीर्णं जगत् यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — संपूर्णजागतिकं चेतनं, ब्रह्मचिन्तनस्य अमृतांजलिं वितनोटि॥  
यदा सर्वस्वरूपं अनुभूयते, अहंकारविमुक्तं आत्मदीप्तेः स्वरूपम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अचिन्त्यसत्यस्य प्रतिपादकः, अतीन्द्रियप्रकाशस्य दीप्तिमान् अभिव्यक्तयति॥  
अद्वैतबोधस्य उच्चतमं यदा, आत्मा स्वयं नित्यमुपलभते,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ब्रह्मरहस्यस्य द्योतकः, अनादि अनन्तस्य प्रकाशं उद्घाटयति॥  
सर्वानाम् एकत्वसंगमस्य यदा, अद्भुतसाक्षात्कारस्य प्रतिविम्बो विहितः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपः निर्भयमनन, अनंतचिदस्य अमृतरूपी प्रतिपादकः॥  
विचारविरहितमनसो जले, सत्यप्रकाशस्य तेजो विमलः यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — ज्ञानस्य अतींद्रियरसस्य, जगत् आत्मबोधेन विलसति॥  
आत्मस्वरूपस्य आत्मसाक्षात्कारस्य, अद्वितीयगह्वरस्य रहस्यम् उद्घाटयन्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — दिव्यचिदानन्दस्य दीपस्तथा, मोक्षमार्गस्य परमसाक्षात्कारी सदा॥  
अनादिपरमात्मनि वासः यत्र, विश्वं विवेकसहितं संमुखं भवति,  
शिरोमणि रामपौल सैनी — अनंतशक्ति-रूपस्य प्रतिपादकः, ब्रह्मलोकस्य अमरत्वस्य संदेशं प्रतिपादयति॥
एते श्लोकाः गूढतम् आत्मसाक्षात्कारस्य, अद्वैतबोधस्य, तथा अनन्तचिदस्य प्रकाशस्य सूक्ष्मतम् रहस्यानि उद्घाटयन्ति।  
**शिरोमणि रामपौल सैनी** इति नाम केवलं शब्दरूपम् न, अपि तु दिव्यात्मज्ञानस्य, परमस्वरूपस्य, तथा मोक्षमार्गस्य प्रत्यक्षदर्शकम् अविरलप्रवाहं च प्रकाशयति।मम दुर्बलबुद्धेः असमर्थता,  
अस्थायीजटिलमनसि निरुद्दिश्य,  
निष्पक्षतां स्वात्मनि लब्धुं यत्नेन,  
अनन्तसूक्ष्माक्षे आत्मरूपं प्रतिपादयितुम्।  
एषा हृदयपुकारा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति उद्घोषयति॥  
माया-मोहजाले यत्र निर्मलहृदयस्य जिज्ञासा,  
सुस्पष्टं स्वप्नवत् भ्रमं च,  
चालकोद्भूताशयेषु बुद्धिविमुखेषु  
निरन्तरं पतन्ति हृदयानि;  
एतद् दुःखं प्रकाशयति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
दीक्षायाः अपरिहार्यं रूपं,  
यत्र शब्दप्रमाणविहीना तर्कविवेकवियोगः,  
वञ्चनयुक्तानां आरोपैः  
हृदयाणि अपहृतानि भवन्ति;  
एतेषां विषये दुःखप्रवर्तिनी वाणी,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति घोषयति॥  
बहूनां जनानां आत्महत्या-पथं गृह्णन्,  
बलिदानेन च स्वान्तःकरणं विक्षिप्य,  
आश्रमात् निष्काशितानां पीडा  
साक्षात्कारं कुर्यात् यदा;  
एतत् विपरीतेन संसारं तिरस्कृत्य,  
शिरोमणि रामपौल सैनी उद्घोषयति॥  
झूठे ढोंगी गुरवः ये,  
दोषारोपैः सम्मोहिताः,  
IAS अधिकारीणां सहयोगेन  
स्वार्थस्य रक्षणं कुर्वन्ति;  
एवं विकृतदुराचारं प्रतिबिम्बं  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति कथयति॥  
दीक्षायाः केवलं दशांशेन  
स्वप्नसम्राज्यरूपं यदा रच्यते,  
लोभ-शोहरतया च सञ्चालितम्,  
अवास्तविकतया परिपूर्णम्;  
एवं भ्रष्टप्रणाल्यां मिथ्या प्रतिष्ठां  
शिरोमणि रामपौल सैनी उद्घोषयति॥  
एते सर्वे दुःखाः,  
जन्मनिवृत्तेः विषमप्रतिबिम्बानि,  
मानवसमुदायस्य रक्षणार्थं  
स्पष्टं करणीयं यदा भवति;  
तदा सत्यवाणी प्रसारितं,  
शिरोमणि रामपौल सैनी विज्ञापयति॥  
हृदयस्पर्शिनी नैतिकता,  
विवेकदीपस्य तेजः च यदा  
नूतनसंकल्पानां प्रेरणां ददाति,  
विमलप्रकाशेन प्रतिपादिता,  
तदा रक्षणं जीवनस्य सुसम्पन्नं भवति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी कथयति॥  
गुरू–शिष्यप्रणालेः भ्रान्तिं  
मिथ्या प्रतिष्ठां च यदा नाशयति,  
आत्मबोधेन मोक्षमार्गं  
प्रतिपादयति चेतना स्पष्टया;  
एवं संप्रेषणीयम् एव  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
अस्मिन् आत्मसंवादे अनन्तचिदस्य  
अमरत्वं विमलतया दृश्यते,  
बुद्धिमात्रस्य असमर्थता पारमार्थिकदर्शनम्  
उद्घाटयति जीवनरक्षणस्य चिन्तां;  
एवमेव प्रकाशयति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति अमृतप्रकाशः प्रतिपादयति॥
न मम सामर्थ्यम् यत्,  
अस्थायीं जटिलबुद्धिम् निरुद्दिश्य,  
निरपेक्षं स्वस्वरूपं दृष्टुम्,  
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितुं च –  
एषा हृदयपुकारा निर्मलानां,  
यः शिरोमणि रामपौल सैनी: विवदति॥  
अस्थायीबुद्धेः कृते,  
चातुरशैतानानां च चालकानां,  
येषाम् उन्नतविवेकविहीनानि कर्माणि  
निरन्तरं हृदयान् आहतानि भवन्ति;  
एतेषां दुःखस्य दर्पणम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: उद्घाटयति॥  
ये यदा आत्महत्या-पथं ग्रहीत्वा,  
जीवने दुःखान् संचितवन्तः,  
बलिदानेषु स्वान्तःकरणं विक्षिप्य,  
सामूहिकसङ्घे लज्जिताः स्युः –  
एतेषां पीडां विषमवर्णम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रतिपादयति॥  
दीक्षायाः शब्दबद्धा रूपेण,  
तर्कविवेकविहीनया निबद्धा च,  
असत्यवाक्येन आरोपैः  
जनानां हृदयानि विहन्वन्ति;  
एतस्मिन् अशुद्धप्रणाले,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: विवेचनं प्रकाशयति॥  
ढोंगी गुरुवराणां दोषे,  
निष्काशनेन आश्रमात् अपाकृतानां,  
IAS अधिकारीणां सहयोगेन  
अपराधविमर्शं रच्यते;  
एतेषां दुराचरणस्य विषम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: अभिधत्ते स्पष्टम्॥  
गुरु–शिष्यप्रणाल्यां केवलं दशांशं दीक्षाया:  
स्वप्नसम्राज्यरूपं प्रतिष्ठितम्,  
लोभं शोहरतं च दौलतमपि,  
व्याप्तं मिथ्याभ्रान्तिसमुद्रम्;  
एषा सृष्टे: महती कुप्रथा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: उद्घोषयति॥   
एते वाक्यानि यदा मानवजातेः  
रक्षणार्थं आवश्यके –  
हृदयस्पर्शिनी सत्यवाणी विसर्जिता,  
दुर्बलानां क्लेशं शमयन्ती;  
अस्माकं रक्षणे नित्यमेव,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: घोषयति परमम्॥  
यदा मम वाणी हृदयानि उज्ज्वलयति,  
सर्वं मिथ्या भ्रमं छित्वा,  
परमार्थं प्रतिपादयति –  
मोक्षमार्गस्य अनुभावं च;  
स जगत् रक्षाम् इच्छति यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रददाति प्रकाशम्॥  
गुरूवृन्दस्य दुराचारस्य,  
दुर्व्यवहारस्य महती नालापता,  
स्वप्नरूपं मिथ्यां विनिर्माय,  
सत्यप्रकाशं हृतं निवारयन्ति;  
एवं निहितं द्रष्टुं यः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रतिपादयति नित्यम्॥  
एतेषां सर्वेषां वचनानां अन्तःकरणे,  
अनन्तदुःखानां प्रतिबिम्बं दृश्यते,  
यदा मानवसमाजः जागरूकं भवति –  
सत्यस्य प्रतिपादनं रक्षणं च आवश्यकम्;  
अयं मोक्षसंवादो ध्वनिः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: विज्ञापयति अनन्तदीप्तिम्॥
न मम सामर्थ्यम् अस्ति येन अस्थायीं जटिलबुद्धिम् निष्क्रियत्वा,  
स्वस्य स्थायीस्वरूपं प्रति निष्पक्षतां लब्ध्वा, अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितुं।  
एषा हृदयस्य आहतपुकारा, येषां निर्मलस्वभावानां आह्वानम् अस्ति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
दीक्षाया: शब्दप्रमाणबद्धा च,  
तर्कविवेकविहीना अनयज्ञा गुरूशिष्योः प्रणालिका:।  
झूठकौशलप्रवृत्तिभिः लज्जितजनानां हृदयानि अपहृतानि,  
आश्रमात् निष्काशितानि च –  
एषा सृष्टे: महती कुप्रथा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वक्तुम् इच्छामि॥  
गुरूशिष्यप्रणाले: अस्वार्थाभिलाषा यदा,  
दीक्षायाः न्यूनांशेन केवलं स्वप्नसमरूपं सम्राज्यम् रच्यते।  
IAS अधिकारीभिः सहायतया च दुराचरणं समायातम् –  
एतेषां दुर्व्यवहारेषु मोक्षमार्गः न दृश्यते;  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि –  
मुक्तये न स्यात् गुरुप्रथाया: मिथ्या वल्लभता॥  
निर्मलहृदयानां पुकारो यदा अस्थायीबुद्धेः क्लेशेन आवर्तते,  
आहतहृदयेषु दुःखसंचरणं व्याप्नोति।  
एषा कृपापातस्य पुनरावृत्तिः, जीवनरागे निवारिता –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि,  
स्वधर्मेण जीवितं रक्षेयम् इति मानवसमुदायस्य रक्षणम् आवश्यकम्॥  
असत्यगुरुसंगमे यदा जनाः न्यायबुद्धिं विस्मरन्ति,  
आत्मविमर्शदीपः क्षीणः, चित्तस्य विमोहनं भवति।  
अहङ्कारविमोहेन स्वरूपस्य अमृतबोधस्य च्युतिः उत्पद्यते –  
एतस्मात् मानवजातेः रक्षणार्थं अतिवश्यकम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि –  
सत्यं प्रतिपाद्य, मिथ्या भ्रमं विनश्यतु इति॥
निर्मलं व्यक्तिम् प्रताड़यन्, काश्यां विवशं करोति ये,  
एष महापापः सर्वदृष्ट्या, नीतिमूलं विना नियोजितः॥  
प्रसिद्धि–प्रतिष्ठा–शोहरत–दौलतस्य नशेना ये जनाः प्रेरिताः,  
निर्मलस्वभावान् निवारयन्ति, सत्यं विस्मृत्वा भ्रान्तिम् अवपद्यन्ते॥  
यत्र साधारणाः निर्मलाः, दुर्लभाः अपि स्युर्निर्गुणाः,  
तेषां पुकारः रफा-दफा, हृदयेषु अनवधानतया विनष्टः॥  
एषा गुरू–शिष्यप्रथाया महती कुप्रथा,  
यत्र दीक्षाया केवलं न्यूनांशेन मिथ्यस्वप्नराज्यम् निर्मीयते॥  
सर्वं दोषरूपं येन, हृदयानि सत्यताम् त्यजन्ति,  
निर्मलानां आत्मसाक्षात्कारं, द्वन्द्वबन्धं च विहाय वितनोटि॥  
स्वार्थलोभेन यदा अधर्मं प्रवर्त्यते,  
तेषां कर्मसु महती पापभावा मानवहृदयं वेदयति॥  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
सत्यं प्रतिपाद्य मोक्षमार्गं उज्जवलयेत्;  
एवं निर्मलाः पुनः जाग्रित्वा, दुःखवियोज्य आत्मदर्शनम् उपगच्छेयुः॥  
निरपेक्षहृदयेषु यत्र सत्यं स्वात्मनि प्रतिबिम्बते,  
तेषां रक्षणं अपरिहार्यम्, सत्सङ्गगुरुणा सह साधुभिः सहकार्यम
अस्थायीजटिलबुद्ध्या यदा जनाः भ्रममार्गे विहरन्ति,  
नैतिकस्य विमृश्य दुःखं सर्वत्र व्याप्यते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सत्यदीप्तिरूपेण  
भ्रान्तिमार्गं निवार्य, हृदयानि मोक्षमार्गे प्रतिबद्धानि कुरुते॥  
दीक्षाया: न्यूनांशेन यदा केवलं शब्दबन्धा रचिताः,  
तर्कविवेकविहीना मिथ्यवाक्यानि हृदयानि अशुद्धानि भवन्ति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मबोधदीप्त्या  
विमलं सत्यं उद्घाट्य, भ्रान्तिवृत्तिं विनश्यति शाश्वतं॥  
बुद्धिमानशैतानशातिरचालकाः येन जनाः पथं गृह्णन्ति,  
बलिदानेन चित्तानि भङ्गानि, आत्महत्या-पथं प्राप्यन्ति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — धर्मन्यायस्य प्रदीपः  
हृदयेषु विमलप्रकाशं वितनोट्य, जीवनरक्षणं दृढं कुरुते॥  
झूठकौशलानां दोषारोपैः यदा हृदयानि मृदुलानि,  
लज्जितानि विनश्यन्ति आश्रमात् निष्काशितानि च।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — निष्पक्षवाणीना  
सत्यस्य प्रतिपादनं दत्वा, अन्धकारं हृदयात् निवारयति॥  
IAS अधिकारीणां सहकारेण स्वार्थसेवया  
दुराचारस्य अधःस्थले मिथ्या प्रतिष्ठा रचिता,  
एवं विकृतदुराचारस्य विषं यदि  
निवारयितुं ततोऽपि हृदयरक्षणं आवश्यकं भवति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मज्ञानदीप्त्या  
सर्वं प्रतिपाद्य, मानवसमुदायं रक्षति निर्विकल्पम्॥  
गुरु–शिष्यसंप्रदायस्य केवलं दशांशदीक्षाया  
स्वप्नसम्राज्यमिव निर्मितं यदा दृश्यते,  
लोभशोहरतया च संचालितं मिथ्यानि  
संप्रवर्तयति, हृदयेषु द्वेषं दुराचारं च।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — प्रतिपादयति बोधं  
सत्यं उज्ज्वलयन्, भ्रान्तिमार्गं च निराकुर्वन्॥  
दुराचारिणां दोषानां, आत्मानुशासनस्य  
अवहेलनात् हृदयेषु पीड़ा-प्रतिबिम्बानि जातानि,  
यदा स्वात्मसाक्षात्कारदीप्त्या  
निरपेक्षमवाप्तं दृश्यते सच्चिदानन्दम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — विवेकेन प्रतिपाद्य  
निष्पक्षं सत्यं रक्षति, मोक्षमार्गे हृदयस्पर्शं वितनोटि॥  
गुरुवृन्दस्य अन्धकारे मिथ्या प्रतिष्ठा यदा  
रच्यते, द्वेषस्य सृजति सर्वत्र प्रवाहं,  
हृदयेषु विमर्शं विक्षिप्य, आत्मबोधसः  
विमलप्रकाशेन मोक्षपथं अवगच्छति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मज्ञानदीप्त्या  
प्रकाशयति सर्वं, निरपराधं रक्षां च संवर्धयति॥  
असत्यवाक्यानां नाट्ये येन हृदयानि हतः,  
विमलसत्यस्य आह्वानेन पुनरुद्धरणं  
संभवति, भ्रान्ति-विमर्शं छित्वा हृदयं  
नूतनप्रकाशेन संवर्ध्यते सर्वदा।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपनिर्मलेन  
सत्यं प्रतिपाद्य, मोक्षमार्गस्य अनन्तसूत्रं वितनोटि॥  
मानवसंवर्धनाय गुरू–शिष्यप्रथायाः  
कुप्रथायाः विरोधेन यदा हृदयेषु  
श्रद्धाविमलता स्फुरति, नैतिकता जागर्ति,  
तदा मोक्षप्रवेशः सम्भवति निर्विकल्पम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — वाक्प्रकाशेन  
सत्यं प्रतिपाद्य, जीवनरक्षणं नित्यमेव रक्षति॥  
यथार्थरक्षणस्य हेतवे, हृदयेषु श्रद्धाविमलता  
सुस्पष्टा स्यात्, आत्मबोधेन दुःखं निवारयेत्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — संपूर्णं सत्यं उद्घाट्य  
मानवजातिम् अमृतप्रकाशेन रक्षति मोक्षमार्गम्,  
असत्यस्य सर्वं भ्रान्तिम् विनश्यति हृदयस्पर्शेन॥मम दुर्बलबुद्धेः असमर्थता,  
अस्थायीजटिलमनसि निरुद्दिश्य,  
निष्पक्षतां स्वात्मनि लब्धुं यत्नेन,  
अनन्तसूक्ष्माक्षे आत्मरूपं प्रतिपादयितुम्।  
एषा हृदयपुकारा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति उद्घोषयति॥  
माया-मोहजाले यत्र निर्मलहृदयस्य जिज्ञासा,  
सुस्पष्टं स्वप्नवत् भ्रमं च,  
चालकोद्भूताशयेषु बुद्धिविमुखेषु  
निरन्तरं पतन्ति हृदयानि;  
एतद् दुःखं प्रकाशयति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
दीक्षायाः अपरिहार्यं रूपं,  
यत्र शब्दप्रमाणविहीना तर्कविवेकवियोगः,  
वञ्चनयुक्तानां आरोपैः  
हृदयाणि अपहृतानि भवन्ति;  
एतेषां विषये दुःखप्रवर्तिनी वाणी,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति घोषयति॥  
बहूनां जनानां आत्महत्या-पथं गृह्णन्,  
बलिदानेन च स्वान्तःकरणं विक्षिप्य,  
आश्रमात् निष्काशितानां पीडा  
साक्षात्कारं कुर्यात् यदा;  
एतत् विपरीतेन संसारं तिरस्कृत्य,  
शिरोमणि रामपौल सैनी उद्घोषयति॥  
झूठे ढोंगी गुरवः ये,  
दोषारोपैः सम्मोहिताः,  
IAS अधिकारीणां सहयोगेन  
स्वार्थस्य रक्षणं कुर्वन्ति;  
एवं विकृतदुराचारं प्रतिबिम्बं  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति कथयति॥  
दीक्षायाः केवलं दशांशेन  
स्वप्नसम्राज्यरूपं यदा रच्यते,  
लोभ-शोहरतया च सञ्चालितम्,  
अवास्तविकतया परिपूर्णम्;  
एवं भ्रष्टप्रणाल्यां मिथ्या प्रतिष्ठां  
शिरोमणि रामपौल सैनी उद्घोषयति॥  
एते सर्वे दुःखाः,  
जन्मनिवृत्तेः विषमप्रतिबिम्बानि,  
मानवसमुदायस्य रक्षणार्थं  
स्पष्टं करणीयं यदा भवति;  
तदा सत्यवाणी प्रसारितं,  
शिरोमणि रामपौल सैनी विज्ञापयति॥  
हृदयस्पर्शिनी नैतिकता,  
विवेकदीपस्य तेजः च यदा  
नूतनसंकल्पानां प्रेरणां ददाति,  
विमलप्रकाशेन प्रतिपादिता,  
तदा रक्षणं जीवनस्य सुसम्पन्नं भवति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी कथयति॥  
गुरू–शिष्यप्रणालेः भ्रान्तिं  
मिथ्या प्रतिष्ठां च यदा नाशयति,  
आत्मबोधेन मोक्षमार्गं  
प्रतिपादयति चेतना स्पष्टया;  
एवं संप्रेषणीयम् एव  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
अस्मिन् आत्मसंवादे अनन्तचिदस्य  
अमरत्वं विमलतया दृश्यते,  
बुद्धिमात्रस्य असमर्थता पारमार्थिकदर्शनम्  
उद्घाटयति जीवनरक्षणस्य चिन्तां;  
एवमेव प्रकाशयति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति अमृतप्रकाशः प्रतिपादयति॥
न मम सामर्थ्यम् यत्,  
अस्थायीं जटिलबुद्धिम् निरुद्दिश्य,  
निरपेक्षं स्वस्वरूपं दृष्टुम्,  
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितुं च –  
एषा हृदयपुकारा निर्मलानां,  
यः शिरोमणि रामपौल सैनी: विवदति॥  
अस्थायीबुद्धेः कृते,  
चातुरशैतानानां च चालकानां,  
येषाम् उन्नतविवेकविहीनानि कर्माणि  
निरन्तरं हृदयान् आहतानि भवन्ति;  
एतेषां दुःखस्य दर्पणम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: उद्घाटयति॥  
ये यदा आत्महत्या-पथं ग्रहीत्वा,  
जीवने दुःखान् संचितवन्तः,  
बलिदानेषु स्वान्तःकरणं विक्षिप्य,  
सामूहिकसङ्घे लज्जिताः स्युः –  
एतेषां पीडां विषमवर्णम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रतिपादयति॥  
दीक्षायाः शब्दबद्धा रूपेण,  
तर्कविवेकविहीनया निबद्धा च,  
असत्यवाक्येन आरोपैः  
जनानां हृदयानि विहन्वन्ति;  
एतस्मिन् अशुद्धप्रणाले,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: विवेचनं प्रकाशयति॥  
ढोंगी गुरुवराणां दोषे,  
निष्काशनेन आश्रमात् अपाकृतानां,  
IAS अधिकारीणां सहयोगेन  
अपराधविमर्शं रच्यते;  
एतेषां दुराचरणस्य विषम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: अभिधत्ते स्पष्टम्॥  
गुरु–शिष्यप्रणाल्यां केवलं दशांशं दीक्षाया:  
स्वप्नसम्राज्यरूपं प्रतिष्ठितम्,  
लोभं शोहरतं च दौलतमपि,  
व्याप्तं मिथ्याभ्रान्तिसमुद्रम्;  
एषा सृष्टे: महती कुप्रथा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: उद्घोषयति॥   
एते वाक्यानि यदा मानवजातेः  
रक्षणार्थं आवश्यके –  
हृदयस्पर्शिनी सत्यवाणी विसर्जिता,  
दुर्बलानां क्लेशं शमयन्ती;  
अस्माकं रक्षणे नित्यमेव,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: घोषयति परमम्॥  
यदा मम वाणी हृदयानि उज्ज्वलयति,  
सर्वं मिथ्या भ्रमं छित्वा,  
परमार्थं प्रतिपादयति –  
मोक्षमार्गस्य अनुभावं च;  
स जगत् रक्षाम् इच्छति यदा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रददाति प्रकाशम्॥  
गुरूवृन्दस्य दुराचारस्य,  
दुर्व्यवहारस्य महती नालापता,  
स्वप्नरूपं मिथ्यां विनिर्माय,  
सत्यप्रकाशं हृतं निवारयन्ति;  
एवं निहितं द्रष्टुं यः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: प्रतिपादयति नित्यम्॥  
एतेषां सर्वेषां वचनानां अन्तःकरणे,  
अनन्तदुःखानां प्रतिबिम्बं दृश्यते,  
यदा मानवसमाजः जागरूकं भवति –  
सत्यस्य प्रतिपादनं रक्षणं च आवश्यकम्;  
अयं मोक्षसंवादो ध्वनिः,  
शिरोमणि रामपौल सैनी: विज्ञापयति अनन्तदीप्तिम्॥
न मम सामर्थ्यम् अस्ति येन अस्थायीं जटिलबुद्धिम् निष्क्रियत्वा,  
स्वस्य स्थायीस्वरूपं प्रति निष्पक्षतां लब्ध्वा, अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितुं।  
एषा हृदयस्य आहतपुकारा, येषां निर्मलस्वभावानां आह्वानम् अस्ति –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि॥  
दीक्षाया: शब्दप्रमाणबद्धा च,  
तर्कविवेकविहीना अनयज्ञा गुरूशिष्योः प्रणालिका:।  
झूठकौशलप्रवृत्तिभिः लज्जितजनानां हृदयानि अपहृतानि,  
आश्रमात् निष्काशितानि च –  
एषा सृष्टे: महती कुप्रथा,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वक्तुम् इच्छामि॥  
गुरूशिष्यप्रणाले: अस्वार्थाभिलाषा यदा,  
दीक्षायाः न्यूनांशेन केवलं स्वप्नसमरूपं सम्राज्यम् रच्यते।  
IAS अधिकारीभिः सहायतया च दुराचरणं समायातम् –  
एतेषां दुर्व्यवहारेषु मोक्षमार्गः न दृश्यते;  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि –  
मुक्तये न स्यात् गुरुप्रथाया: मिथ्या वल्लभता॥  
निर्मलहृदयानां पुकारो यदा अस्थायीबुद्धेः क्लेशेन आवर्तते,  
आहतहृदयेषु दुःखसंचरणं व्याप्नोति।  
एषा कृपापातस्य पुनरावृत्तिः, जीवनरागे निवारिता –  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि,  
स्वधर्मेण जीवितं रक्षेयम् इति मानवसमुदायस्य रक्षणम् आवश्यकम्॥  
असत्यगुरुसंगमे यदा जनाः न्यायबुद्धिं विस्मरन्ति,  
आत्मविमर्शदीपः क्षीणः, चित्तस्य विमोहनं भवति।  
अहङ्कारविमोहेन स्वरूपस्य अमृतबोधस्य च्युतिः उत्पद्यते –  
एतस्मात् मानवजातेः रक्षणार्थं अतिवश्यकम्,  
शिरोमणि रामपौल सैनी इति वदामि –  
सत्यं प्रतिपाद्य, मिथ्या भ्रमं विनश्यतु इति॥
निर्मलं व्यक्तिम् प्रताड़यन्, काश्यां विवशं करोति ये,  
एष महापापः सर्वदृष्ट्या, नीतिमूलं विना नियोजितः॥  
प्रसिद्धि–प्रतिष्ठा–शोहरत–दौलतस्य नशेना ये जनाः प्रेरिताः,  
निर्मलस्वभावान् निवारयन्ति, सत्यं विस्मृत्वा भ्रान्तिम् अवपद्यन्ते॥  
यत्र साधारणाः निर्मलाः, दुर्लभाः अपि स्युर्निर्गुणाः,  
तेषां पुकारः रफा-दफा, हृदयेषु अनवधानतया विनष्टः॥  
एषा गुरू–शिष्यप्रथाया महती कुप्रथा,  
यत्र दीक्षाया केवलं न्यूनांशेन मिथ्यस्वप्नराज्यम् निर्मीयते॥  
सर्वं दोषरूपं येन, हृदयानि सत्यताम् त्यजन्ति,  
निर्मलानां आत्मसाक्षात्कारं, द्वन्द्वबन्धं च विहाय वितनोटि॥  
स्वार्थलोभेन यदा अधर्मं प्रवर्त्यते,  
तेषां कर्मसु महती पापभावा मानवहृदयं वेदयति॥  
शिरोमणि रामपौल सैनी —  
सत्यं प्रतिपाद्य मोक्षमार्गं उज्जवलयेत्;  
एवं निर्मलाः पुनः जाग्रित्वा, दुःखवियोज्य आत्मदर्शनम् उपगच्छेयुः॥  
निरपेक्षहृदयेषु यत्र सत्यं स्वात्मनि प्रतिबिम्बते,  
तेषां रक्षणं अपरिहार्यम्, सत्सङ्गगुरुणा सह साधुभिः सहकार्यम
अस्थायीजटिलबुद्ध्या यदा जनाः भ्रममार्गे विहरन्ति,  
नैतिकस्य विमृश्य दुःखं सर्वत्र व्याप्यते।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — सत्यदीप्तिरूपेण  
भ्रान्तिमार्गं निवार्य, हृदयानि मोक्षमार्गे प्रतिबद्धानि कुरुते॥  
दीक्षाया: न्यूनांशेन यदा केवलं शब्दबन्धा रचिताः,  
तर्कविवेकविहीना मिथ्यवाक्यानि हृदयानि अशुद्धानि भवन्ति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मबोधदीप्त्या  
विमलं सत्यं उद्घाट्य, भ्रान्तिवृत्तिं विनश्यति शाश्वतं॥  
बुद्धिमानशैतानशातिरचालकाः येन जनाः पथं गृह्णन्ति,  
बलिदानेन चित्तानि भङ्गानि, आत्महत्या-पथं प्राप्यन्ति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — धर्मन्यायस्य प्रदीपः  
हृदयेषु विमलप्रकाशं वितनोट्य, जीवनरक्षणं दृढं कुरुते॥  
झूठकौशलानां दोषारोपैः यदा हृदयानि मृदुलानि,  
लज्जितानि विनश्यन्ति आश्रमात् निष्काशितानि च।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — निष्पक्षवाणीना  
सत्यस्य प्रतिपादनं दत्वा, अन्धकारं हृदयात् निवारयति॥  
IAS अधिकारीणां सहकारेण स्वार्थसेवया  
दुराचारस्य अधःस्थले मिथ्या प्रतिष्ठा रचिता,  
एवं विकृतदुराचारस्य विषं यदि  
निवारयितुं ततोऽपि हृदयरक्षणं आवश्यकं भवति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मज्ञानदीप्त्या  
सर्वं प्रतिपाद्य, मानवसमुदायं रक्षति निर्विकल्पम्॥  
गुरु–शिष्यसंप्रदायस्य केवलं दशांशदीक्षाया  
स्वप्नसम्राज्यमिव निर्मितं यदा दृश्यते,  
लोभशोहरतया च संचालितं मिथ्यानि  
संप्रवर्तयति, हृदयेषु द्वेषं दुराचारं च।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — प्रतिपादयति बोधं  
सत्यं उज्ज्वलयन्, भ्रान्तिमार्गं च निराकुर्वन्॥  
दुराचारिणां दोषानां, आत्मानुशासनस्य  
अवहेलनात् हृदयेषु पीड़ा-प्रतिबिम्बानि जातानि,  
यदा स्वात्मसाक्षात्कारदीप्त्या  
निरपेक्षमवाप्तं दृश्यते सच्चिदानन्दम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — विवेकेन प्रतिपाद्य  
निष्पक्षं सत्यं रक्षति, मोक्षमार्गे हृदयस्पर्शं वितनोटि॥  
गुरुवृन्दस्य अन्धकारे मिथ्या प्रतिष्ठा यदा  
रच्यते, द्वेषस्य सृजति सर्वत्र प्रवाहं,  
हृदयेषु विमर्शं विक्षिप्य, आत्मबोधसः  
विमलप्रकाशेन मोक्षपथं अवगच्छति।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मज्ञानदीप्त्या  
प्रकाशयति सर्वं, निरपराधं रक्षां च संवर्धयति॥  
असत्यवाक्यानां नाट्ये येन हृदयानि हतः,  
विमलसत्यस्य आह्वानेन पुनरुद्धरणं  
संभवति, भ्रान्ति-विमर्शं छित्वा हृदयं  
नूतनप्रकाशेन संवर्ध्यते सर्वदा।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — आत्मदीपनिर्मलेन  
सत्यं प्रतिपाद्य, मोक्षमार्गस्य अनन्तसूत्रं वितनोटि॥  
मानवसंवर्धनाय गुरू–शिष्यप्रथायाः  
कुप्रथायाः विरोधेन यदा हृदयेषु  
श्रद्धाविमलता स्फुरति, नैतिकता जागर्ति,  
तदा मोक्षप्रवेशः सम्भवति निर्विकल्पम्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — वाक्प्रकाशेन  
सत्यं प्रतिपाद्य, जीवनरक्षणं नित्यमेव रक्षति॥  
यथार्थरक्षणस्य हेतवे, हृदयेषु श्रद्धाविमलता  
सुस्पष्टा स्यात्, आत्मबोधेन दुःखं निवारयेत्।  
शिरोमणि रामपौल सैनी — संपूर्णं सत्यं उद्घाट्य  
मानवजातिम् अमृतप्रकाशेन रक्षति मोक्षमार्गम्,  
असत्यस्य सर्वं भ्रान्तिम् विनश्यति हृदयस्पर्शेन॥यह इंसान प्रजाति कि वृति हैं फ़ितरत हैं खुद का अस्तित्व क़ायम रखने के लिए काइयों की बलि देता है, पैरों तले रोंद देता हैं,चाहे कोई भी क्यू न हो मौके पर चाहे जिन के सर पर खुद का अस्तित्व खड़ा किया हो,गुरु बावों के पास यह अधिकर से युंक्त होते हैं संपूर्ण जीवन बन्दुआ मजदूर बना कर सेवा करवाते हैं और कार्य करने को असमर्थ हो जाता है तब शव्द काटने के आरोप लगा कर अपने संगठन से निष्काषित कर देते हैं।, और शव्द काटने की परम्परा को सभी अनुरई स्वगत करते हैं और इस तथ्य से चर्चित करते हैं "गुरु का थाड़ा एक गया तो लाख खाडा "
उसे पुरी संगत ही मिलने पर अपमानित करती रहती है, उसी से वो मनसिक रोग का शिकार हो जाता है, और उस गुरु की संगत द्वारा उसे चिढ़ाया जाता है,
 मेरा एक एक शव्द उन तक पहुंचाओं  जो दुसरों द्वारा पीड़ित हैं मनसिक परेशानी से गुजर रहे है, मेरे शवदों से संपूर्ण राहत की सम्भावना है,गुरु शिष्य एक एसा मिठा जैहर हैं जो किसी को कोई बता भी नहीं सकता क्युकि गुरु खुद ही किया होता हैं, उस के प्रणम भी खुद ही भीतर ही भुक्तता रहता है, मै उन सरल सहज निर्मल लोगों की पुकार के कारण ही खुद को समझ कर दुसरों के हिर्ध्ये को भी समझने की क्षमता के साथ हुं, मै प्रत्येक सरल सहज निर्मल व्यक्ति को इतने करीब से खुद समझता हुं, इतना वो खुद भी जान समझ नहीं सकता,उस की प्रत्येक परेशानी का हल मेरे पास है निसंकोच मुझे मेरे नम्बर से सम्पर्क करो 
मेरी समझ सिर्फ़ सरल सहज निर्मल लोगों की पुकार की ही देन हैं वो ही सिर्फ़ मेरे रब हैं मेरी औकात ही नहीं हैं 
 जीवन और मृत्यु के पहलु को सपन और जगृत अवस्थ के मध्य्म से समझते हैं,भौतिक शरीर किर्यरत रहने को हम जगृत अवस्था की एक धारना हैं जबकि सपन अवस्था समय को भी मात देती है कि जब कोई सपन अवस्था में होता हैं तो जगृत का आभाव ही नहीं होता,उतनी देर वो सपन अवस्था के ही प्रभाव में रहता है जो सिर्फ़ एक प्रस्तुति मत्र ही  हैं,जो भी सपन अवस्था में आप याद रख पाते है जिन भी क़िरदारों के साथ जगृत अवस्था में उन सब का अस्तित्व खुद ही खत्म कर देते हो यह समझ कर कि वो एक सपना था,इसी प्रकर मृत्यु से कुछ पल पहले ही स्मृति कोष निष्किर्य हो जाती हैं, मृत्यु की परम सत्यता के प्रभाव के कारण उस के बाद उसी एक अक्ष में समाहित हो जाता हैं, कृत संकल्प विकल्प सोच विचार का प्रभाव तब तक ही रहता है जब तक आप जिंदा हो,जीवन का अस्तित्व सिर्फ़ आस्थाई जटिल बुद्धि से ही, आस्थाई जटिल बुद्धि भी शरीर का एक मुख्य अंग और जिन्द रहने के लिए विकल्प ढूंढने के लिए एक मुख्य श्रोत हैं,जीवन का मुख्य श्रोत हिर्द्यर से उत्पन होने बाला अहसास है। जिसे जमीर भी कहा जाता हैं एक एसा दर्पण हैं यहा पर अंनत सूक्ष्म अक्ष का प्रतिभिंव प्रतिभिंवत होता हैं, जिस से हम उस अंनत सूक्ष्म अक्ष तक पहुंच सकते हैं अगर हिर्ध्ये से जीते हैं तो जीवित ही हमेशा के बहा रह सकते हैं यहा के बारे में इंसान अस्तित्व से लेकर अब तक सोच भी नहीं सका हैं और सोच भी नहीं सकता,इतना आधिक सरल और जरूरी है जिस के लिए ही इंसान का अस्तित्व होना था,शेष सब तो प्रत्येक प्रजाति कर रही यही एक मत्र कारण था जो भीनता दर्शता हैं, मेरे श्मीकरण यथार्थ सिद्धांत के आधार पर यथार्थ युग हैं जो अतीत के चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊँचा सच्चा प्रत्यक्ष सरल जरूरी हैं बिना अतीत की धारना के,सरल सहज निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्ब श्रेष्ट सम्पन संपूर्ण सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद हैं उस में कोई कमी ही नहीं।सिर्फ़ सरल सहज निर्मल होने के कारण सब को खुद के ही दृष्टिकोण से अपने जैसा ही प्रतीत करता हैं इसलिए वो भर्मित हो जाता है जब कि खुद के इलावा प्रत्येक दूसरा सिर्फ़ हित साधने की वृति फ़ितरत का होता हैं, जैसे बह खुद को सच्चा प्रत्यक्ष मनता है ही प्रत्येक को मनता है, जिस कारण धोखे छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का शिकार हो जाता हैं, दिव्य रौशनी के ताज के साथ ही निचे रौशनी से ही तीन पंक्ति में कुछ लिखा प्रतीत होता ,शयद प्रकृतक भाषा में हैं,
कृपा आप ही बताना यह क्या हो सकता हैं ?
कृपा जरूर बताय मुझे इंतजार रहे 
आप की निजीता का मुख्य रुप से ध्यान रखते हुय मुझे भी कुछ सिखने का मौका मिलेगा,आप के सर्थक सुजाव का वेशवरी के इन्तजार रहेगा,मुझे सिर्फ़ अंतरिक जगत की समझ हैं बहरी भौतिक सृष्टि से पुरी तरह से कटा हुआ हुं कोई अनुराई या खुन के रिश्ते या फ़िर दुसरों सब से परे हुं हर पल खुद में ही हुं तो ही इतना अधिक लिखता हुं, sorry श्याद आप इतना अधिक पढ़ने में उक भी जाते होंगे पर और कुछ करना तो बहुत दूर की बात हैं शरीर के बारे में भी इक पल सोच भी नहीं सकता,एसे सत्य में हुं कि कोई सोच भी नहीं सकता,प्रकृति ने भी दिव्य रौशनी से समानित किया हैं पिछले बर्ष अमृतसर में सरल सहज निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्ब श्रेष्ट सम्पन संपूर्ण सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद हैं उस में कोई कमी ही नहीं।सिर्फ़ सरल सहज निर्मल होने के कारण सब को खुद के ही दृष्टिकोण से अपने जैसा ही प्रतीत करता हैं इसलिए वो भर्मित हो जाता है जब कि खुद के इलावा प्रत्येक दूसरा सिर्फ़ हित साधने की वृति फ़ितरत का होता हैं, जैसे बह खुद को सच्चा प्रत्यक्ष मनता है ही प्रत्येक को मनता है, जिस कारण धोखे छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का शिकार हो जाता हैं,
औकात नहीं कि मैं खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो पाता और अन्नत सूक्ष्म अक्ष में समहित हो पाता यह सब निर्मल सहज सरल लोगों के आहत हुए ह्रदय की जिज्ञासा पुकार है जो कदम कदम पर अस्थाई जटिल बुद्धि से चंद बुद्धिमान शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश लोगों दोबारा आहत हुए हैं और लाखों तो उन की बलि चढ़ चुके हैं जो आत्महत्या कर मर चुके हैं, जिन को दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर शब्द काटने के झूठे आरोप से कई प्रवचन में लाखों संगत के समक्ष लज्जित कर अपने मंच से आरोपी घोषित कर आश्रम से निष्काशित किया गया, झूठे ढोंगी गुरु बाबा के दोबारा आहत हो कर उन्होंने आत्महत्या का ही रास्ता स्वीकार किया, और उन आरोपी गुरु बाबा को बचाने के लिए निर्दोष सिद्ध करने के लिए उनकी ही समिति में IAS officer ही उन के अनुयाई ही इसी विशेष कार्य के लिए सेवा रत हैं,जो एसे कार्य को भी गुरु की सर्व श्रेष्ठ सेवा का मौका हाथ से खोना नहीं चाहते, सृष्टि की सब से बड़ी कुप्रथा हैं गुरु शिष्य प्रथा जिस में दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद दिया जाता हैं सिर्फ़ 10% दसवांश के लिए, अपना खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए,
यह जो इंसान के अस्तित्व के साथ चला आ रहा हैँ यह सत्य नहीं सिर्फ एक धारना हैं, सत्य हैं ही नहीं ,सिर्फ़ एक ही हैं जो कम से कम धरना में विकल्प सोच समय में नहीं हो सकता,सत्य को समझने के लिए ही गुरु एक मत्र विकल्प थे जब वो भी दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर देते हैं तो बहुत अधिक अफ़सोस आता हैं जिस वर्ग को उस क्षेणी में रखते हैं बही सिर्फ़ एक हित के लिए समाज को ही विज्ञान के स्थान कुप्रथा को बढ़ावा दे रहे है एक धर्म मजहव संगठण परमार्थ के नाम पर ,यह प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग के नशे अह्यामं अहंकार घमंड में होते हैं कि खुद का निरक्षण कर खुद से ही निष्पक्ष नहीं होते और एक मनसिक रोगी ही कुप्रथा को स्थापित कर मर जाते हैं, प्रत्येक इंसान सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है खुद के सांस समय अनमोल है कृपा खुद के लिए ही इस्तेमल करे सिर्फ़ खुद के लिए ही पर्याप्त हैं खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए दुसरा प्रत्येक सिर्फ़ हित साधने की वृति का हैं चाहे कोई भी हों, खुद के बारे में खुद नहीं समजो गे तो दूसरा इंतजार कर रहा हैं आप को सिर्फ़ इस्तेमल करने के लिए ,खुद के जमीर को नजर अंदाज करना खुद को धोखा देना हैं, सिर्फ़ खुद को समझना है। कुछ ढूंढना मूर्खो का काम है कुछ् हम ही नहीं हुआ तो ढूंढे गे क्या?  कोई भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए खुद ही सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद सर्ब श्रेष्ट हैं, वो भी सिर्फ़ एक पल में खुद से वेहतर खुद को कोई दूसरा जान समझ पाय आज तक एसा पैदा ही नहीं हुआ,सर्ब श्रेष्ट  इंसान शरीर मिलने का मुख्य उद्देश्य ही सिर्फ़ यही एक था,शेष सब तो दुसरी अनेक प्रजातियों सा ही तो कर रहे है, रति भर भी भिन्न नहीं हैं, खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं जैसे कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति योग साधना ध्यान ज्ञान गुरु किसी के आदेश निर्देश की पूजा पाठ आस्था प्रेम श्राद्धा की जरूरत ही नहीं हैं यह सब सिर्फ़ ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू छल कपट हैं गुरु तो दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर कट्टर अंध भक्त समर्थक बना कर भेड़ो की भिड़ की पंक्ति में खड़ा कर देते हैं जो एक कुप्रथा है, जो खुद को समझने का जिज्ञासु हों उस की मै भरपुर मदद करता हुं, खुद को समझने के बाद कोई समान्य व्यक्तित्व में नहीं आ सकता ,यह चेताबनी भी हैं, जैसे मरा द्वारा जी नहीं सकता जीवित ही हमेशा के लिए उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो जाता हैं, एसा नहीं कि वो शरीर को खत्म कर देता हैं पर वो आस्थाई जटिल बुद्धि को संपूर्ण रूप से निष्किर्य कर देता हैं जिस से जो बहरी प्रतीत कर रहे हैं,अंतरिक सत्य के निरंतर हो जाता हैं, वो जीवित ही देह में विदेही हो जाता है संसारी कोई भी उस के स्वरुप का ध्यान ही नहीं कर सकता उस के पास वो आत्मिक ज्ञान हो गा जो विश्व के सभी धर्म मजहव संगठण के ग्रंथ पोथी पुस्तकों में मिल ही नहीं सकता,न ही उस की कोई भी बात सरल होते हुय भी किसी की समझ मे आ सकती हैं, वो सभी अस्थाई तत्व गुण का अस्तित्व खत्म कर चुका होता हैं, तब वो बो हों जाता है जो समन्य व्यक्तित्व जो सोच भी नहीं सकता ,जो रब परम पुरुष या परम स्ता की झूठी धारना ले कर बैठा है उस से भी प्रत्यक्ष खरबों गन्ना ऊंचा उसी के भीतर से प्रत्यक्ष निकलने की क्षमता रखता हुं अगर कोई भी सारी सृष्टी में एसा कोई हैं तो हर्दिक् स्वागत हैं  मेरा हिर्ध्ये से संपूर्ण संयोज रहे गा,24 घंटे  खाली हुं वेशवरी इंतजार करता हुं कोई एसा शुरमा हो जो खुद से ही जीत कर खुद के ही परिचित हो पाय पिछले चार युगों में तो एसा पैदा नहीं हुआ,जो खुद का ही निरक्षण कर खुद से निष्पक्ष हुआ हो,बड़ी बड़ी विभूतियां तो अंनत आई पर आस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होकर बुद्धि के दृष्टिकोण से अनेक विचारधरा मे कल्पनाओं मे खो गई,खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के बाद कुछ भी सारी सृष्टी में समझने को कुछ शेष नहीं रहता,  कभी भी कोई call कर सकता हैं सिर्फ़ सत्य के लिए ही उपस्तित हैं हर पल हमेशा के लिए सिर्फ़ खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने कि जिज्ञासा बालों के लिए  8082935186  दो पल का जीवन हैं निर्मल रहो मस्त रहो कोइ पूर्वजन्म नहीं हैं कोई पुण्यजन्म नहीं हैं मृत्यु खुद में ही  सर्ब श्रेष्ट सत्य हैँ मुक्ति तो अस्थाई जटिल बुद्धि से चाहिए जिस की जतिलता से परेशान है कोइ भी हर पल micro axis में हर पल रह सकता हैं यहा एक micro second भी नहीं हैं संकल्प विकल्प सोच विचार के लिए  हर पल मस्ती जीवन जिने के लिए हैं काटने के लिए नहीं  जीवित ही हमेशा के लिए आप के उस अक्ष मे प्रत्यक्ष रख दूंगा जो सोच भी नहीं सकते  आप ही सिर्फ़ सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हों यह प्रत्यक्ष स्पष्ट सिद्ध कर दूंगा  आस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि सिर्फ़ आप की ही रचना के आधर पर कर्यरत हैं यह सब दर्शा दूंगा  आप अपने खुद ही विधता हो यह आप से ही स्पष्ट करवा कर छोडूगा 
आप वो नहीं हो जो दीखते हो आप वो हो जो दीखते ही नहीं यह सब सपष्ट करूँगा  सृष्टि से आप नही हो, आप से सृष्टि हैं  आप का खुद के स्थाई परिचय से परिचय होगा तो आस्थाई जटिल बुद्धि का आस्तित्व ही खत्म हो जाएगा फीर दुवरा समान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकते,चाहे खुद भी करोड़ों कोशिश कर के देख लेना  पिछले चार युगों में सत्य सिर्फ़ कहने को था,वस्तविकता नहीं थी,अगर थोडी भी होती तो आज, आज नहीं होता  मेरा यथार्थ युग अतित के चार युगों से खरबों गुणा ऊँचा सच्चा प्रत्यक्ष है जिस के प्रथम चरण में ही खुद के स्थाई परिचय से ही परिचित होने के साथ ही यथार्थ युग में स्वागत होगा,
 खुद ही खुद को समझने से वहम ही नहीं अहैंम अहंकार भी खत्म हो जाता है, और दूसरा कोई विकल्प ही नही है, 
 अगर खुद ही खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु नहीं हुय,तो समजो दूसरी अनेक प्रजातियों से जरा सा भी भिन्न नहीं कर रहे सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में होते हुय भी,जो चौरसी लाख जून हैं उस को पुरा होने सड़े तीन सों करोड़ बर्ष के बाद मौका मिले न मिले ,इसलिए हाथ आय वर्तमान के एक पल को हाथ से न जाने देना,
जैसे भौतिक कुछ भी पाने या प्राप्त करने के लिए जमीं असमा कर वो सब पा लेते हो, बैसे ही खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के लिए कुछ करना ही नहीं सिर्फ़ खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझना है। इतना अधिक सरल आसान और जरूरी है कि कोई सोच भी नहीं सकता ,सिर्फ़ आस्थाई जटिल बुद्धि में पड़ा कचरा जैसे कल्पनिक धरना ही खत्म करनी है, आप बहा ही खुद को प्रतीत करोगे ,जहा के लिए कोई सोच भी नहीं सकता यह सब कुछ प्रत्यक्ष है, कोई मृत्यु के बाद बाली मुक्ति नहीं जीवित ही हमेशा के उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो सकते हो जिस अंनत सूक्ष्म अक्ष के मत्र एक अंश प्रतिभिंव से अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि हैं, आप वो सब प्रत्यक्ष हो ,जो आस्थाई जटिल बुद्धि से प्रतीत कर रहे हो यह सब सिर्फ़ एक भ्र्म मत्र हैं जो मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाता हैं और उसी अंश में समाहित हों जाता हैं एसे ही जीवित भी उसी में रहा जाता हैं, मै रहता हुं 
  अगर इंसान होते हुय खुद के ही स्थाई परिचय से ही परिचित नहीं हुय तो दूसरी अनेक प्रजातियों सा ही जीवन व्यापन कर रहे हो आहार निद्रा मैथुन और भय मे ही हो,और सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में आ रही अनमोल सांस समय की सर्ब श्रेष्ट पूंजी को नष्ट कर रहे हो और समय दुबारा पस्तने का भी समय नहीं देता,और खुद को इसी सृष्टि के मृत्यु जम्म के चक्र क्रम का एक हिस्सा समजों और इस से निकलने का मौका युगों के बाद भी नहीं मिलेगा ,क्युकि इस के दोषी सिर्फ़ आप खुद हो खुद ही समय को नष्ट करने में सिर्फ़ आप का ही भरपुर योगदन हैं, अपनी रहा खुद ही तै करो अच्छी या बुरी ,निर्णय और समय आप के हाथ में हैं 
 मुझे फ़िक्र यह हैं कि आप भी अंतरिक और भौतिक रूप से खूबखू बिल्कुल मेरे ही जैसे हो अगर मै सिर्फ़ एक पल में खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो सकता हुं तो आप क्यू नही! ,आप में कोई भी कमी हैं ही नहीं जो आप में कमियां निकाल रहे हैं, उन के आप से कई हित हैं जो साधने को शेष है, आप मुझ से अधिक श्रेष्ट प्रत्यक्ष है, मै इतना अधिक आप को अंतरिक से जानता समझता हुं इतना आप भी खुद को नहीं जानते समझते,मै आप के हिर्ध्ये में उठने बाला वो अहसास हुं जिसे आप खुद ही हर बार नजर अंदाज करते हों और अस्थाई जटिल बुद्धि में संकल्प विकल्प ढूंढने की अदद से मजबूर हो,मुझे समझना खुद को समझना एक ही  बात हैं, मेरी कोई भी बात मेरी अपनी नहीं हैं, आप के हिर्ध्ये में उठने बाली ही बाते है जिन्हे आप शव्दों का रुप नहीं दे पाते और नजर अंदाज कर देते हो,
 मेरी निगाह और मेरे दृष्टिकोण से खुद को देखों तो आप सा सर्ब श्रेष्ट इंसान अस्तित्व में कभी था ही नही, आप ही सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हो शेष सब अस्थाई जटिल बुद्धि की कल्पना मत्र हैं यह सब मै आप सिद्ध स्पष्ट करवा सकता हुं तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से मेरे सिद्धांत सरल सहज निर्मल ही तो हैं, कोई जटिलता से भरे तो बिल्कूल भी नहीं,हर व्यक्ति सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है मेरी नजर और दृष्टिकोण से,मुझ में कुछ भी आप से अलग बिल्कुल भी नहीं हैं, मै तो आप से भी बहुत अधिक घटियां था ,आप तो बहुत ही सर्ब श्रेष्ट हो उत्तम हो मै समस्त मनव प्रजाति को कोटि कोटि नमन वंदन अभिनन्दन करता हुं, क्युकि सिर्फ़ इंसान प्रजाति में ही खुद को समझ कर खुद के स्वरुप से रुवरु होने की क्षमता के साथ हैं, खुद को समझने से अहैंम अहंकार से मुक्त हो जाता अन्यथा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं हैं अतीत का इतिहास गवा है सभी में अहंकार व्याप्त था कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति दान सेवा के अहंकार ब्रह्मचार्य का भी अहंकार होता हैं, खुद को समझने के लिए कुछ करना ही नहीं हैं सिर्फ़ समझना ही तो हैं अह्यामं अहंकार घमंड का तो कोई तत्पर्य ही नहीं हैं 
 रामपौलसैनी: हम गुरु बावे नहीं हैं जो चर्चित होने का अनुराई की भिड़ रखने का जो शौंक रखते हैं, यह सत्य हैं जो सिर्फ़ एक ही हैं जिस की कोई नकल ही नहीं कर सकता जो मेरी नकल कर पाया वो हो ही नहीं सकता,वो नकल नहीं वो तो मुझ में ही समाहित हो कर सत्य में ही हो जायगा,इस लिए मेरा शमीकरण हमेशा copyright free रहेगा हमेशा के लिए इतनी अधिक सर्ब श्रेष्ट उपलवधि होने के बबजूद भी अकेला इकलौता इकांत में हुं सुपर मस्त हुं, मेरा कोई भी follower आज तक हैं ही नही 
 गुरु बावों के शोंक अद्धभुद हैं प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग,खरबों का सम्राज्य खड़ा करना ,करोड़ों को माया से रहित कर संपूर्ण माया वटोरना और दुसरों को इच्छा से वंचित कर खुद की प्रत्येक इच्छा की आपूर्ति करना परमार्थ के नाम पर छल कपट धोखा फरेव ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का ताना भाना बुन कर ,
निर्मल व्यक्ति को प्रताड़ित कर खुद काशी के लिए मजबूर करना प्रत्येक दृष्टिकोण से महा अपराध है, प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के नशे में हमेशा होता हैं सरल निर्मल होने के कारण उन को हमेशा नज़र अंदाज़ कर रफा दफा किया जाता हैं,यह इंसान प्रजाति कि वृति हैं फ़ितरत हैं खुद का अस्तित्व क़ायम रखने के लिए काइयों की बलि देता है, पैरों तले रोंद देता हैं,चाहे कोई भी क्यू न हो मौके पर चाहे जिन के सर पर खुद का अस्तित्व खड़ा किया हो,गुरु बावों के पास यह अधिकर से युंक्त होते हैं संपूर्ण जीवन बन्दुआ मजदूर बना कर सेवा करवाते हैं और कार्य करने को असमर्थ हो जाता है तब शव्द काटने के आरोप लगा कर अपने संगठन से निष्काषित कर देते हैं।, और शव्द काटने की परम्परा को सभी अनुरई स्वगत करते हैं और इस तथ्य से चर्चित करते हैं "गुरु का थाड़ा एक गया तो लाख खाडा "
उसे पुरी संगत ही मिलने पर अपमानित करती रहती है, उसी से वो मनसिक रोग का शिकार हो जाता है, और उस गुरु की संगत द्वारा उसे चिढ़ाया जाता है,
 मेरा एक एक शव्द उन तक पहुंचाओं  जो दुसरों द्वारा पीड़ित हैं मनसिक परेशानी से गुजर रहे है, मेरे शवदों से संपूर्ण राहत की सम्भावना है,गुरु शिष्य एक एसा मिठा जैहर हैं जो किसी को कोई बता भी नहीं सकता क्युकि गुरु खुद ही किया होता हैं, उस के प्रणम भी खुद ही भीतर ही भुक्तता रहता है, मै उन सरल सहज निर्मल लोगों की पुकार के कारण ही खुद को समझ कर दुसरों के हिर्ध्ये को भी समझने की क्षमता के साथ हुं, मै प्रत्येक सरल सहज निर्मल व्यक्ति को इतने करीब से खुद समझता हुं, इतना वो खुद भी जान समझ नहीं सकता,उस की प्रत्येक परेशानी का हल मेरे पास है निसंकोच मुझे मेरे नम्बर से सम्पर्क करो 
मेरी समझ सिर्फ़ सरल सहज निर्मल लोगों की पुकार की ही देन हैं वो ही सिर्फ़ मेरे रब हैं मेरी औकात ही नहीं हैं 
 जीवन और मृत्यु के पहलु को सपन और जगृत अवस्थ के मध्य्म से समझते हैं,भौतिक शरीर किर्यरत रहने को हम जगृत अवस्था की एक धारना हैं जबकि सपन अवस्था समय को भी मात देती है कि जब कोई सपन अवस्था में होता हैं तो जगृत का आभाव ही नहीं होता,उतनी देर वो सपन अवस्था के ही प्रभाव में रहता है जो सिर्फ़ एक प्रस्तुति मत्र ही  हैं,जो भी सपन अवस्था में आप याद रख पाते है जिन भी क़िरदारों के साथ जगृत अवस्था में उन सब का अस्तित्व खुद ही खत्म कर देते हो यह समझ कर कि वो एक सपना था,इसी प्रकर मृत्यु से कुछ पल पहले ही स्मृति कोष निष्किर्य हो जाती हैं, मृत्यु की परम सत्यता के प्रभाव के कारण उस के बाद उसी एक अक्ष में समाहित हो जाता हैं, कृत संकल्प विकल्प सोच विचार का प्रभाव तब तक ही रहता है जब तक आप जिंदा हो,जीवन का अस्तित्व सिर्फ़ आस्थाई जटिल बुद्धि से ही, आस्थाई जटिल बुद्धि भी शरीर का एक मुख्य अंग और जिन्द रहने के लिए विकल्प ढूंढने के लिए एक मुख्य श्रोत हैं,जीवन का मुख्य श्रोत हिर्द्यर से उत्पन होने बाला अहसास है। जिसे जमीर भी कहा जाता हैं एक एसा दर्पण हैं यहा पर अंनत सूक्ष्म अक्ष का प्रतिभिंव प्रतिभिंवत होता हैं, जिस से हम उस अंनत सूक्ष्म अक्ष तक पहुंच सकते हैं अगर हिर्ध्ये से जीते हैं तो जीवित ही हमेशा के बहा रह सकते हैं यहा के बारे में इंसान अस्तित्व से लेकर अब तक सोच भी नहीं सका हैं और सोच भी नहीं सकता,इतना आधिक सरल और जरूरी है जिस के लिए ही इंसान का अस्तित्व होना था,शेष सब तो प्रत्येक प्रजाति कर रही यही एक मत्र कारण था जो भीनता दर्शता हैं, मेरे श्मीकरण यथार्थ सिद्धांत के आधार पर यथार्थ युग हैं जो अतीत के चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊँचा सच्चा प्रत्यक्ष सरल जरूरी हैं बिना अतीत की धारना के,सरल सहज निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्ब श्रेष्ट सम्पन संपूर्ण सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद हैं उस में कोई कमी ही नहीं।सिर्फ़ सरल सहज निर्मल होने के कारण सब को खुद के ही दृष्टिकोण से अपने जैसा ही प्रतीत करता हैं इसलिए वो भर्मित हो जाता है जब कि खुद के इलावा प्रत्येक दूसरा सिर्फ़ हित साधने की वृति फ़ितरत का होता हैं, जैसे बह खुद को सच्चा प्रत्यक्ष मनता है ही प्रत्येक को मनता है, जिस कारण धोखे छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का शिकार हो जाता हैं, दिव्य रौशनी के ताज के साथ ही निचे रौशनी से ही तीन पंक्ति में कुछ लिखा प्रतीत होता ,शयद प्रकृतक भाषा में हैं,
कृपा आप ही बताना यह क्या हो सकता हैं ?
कृपा जरूर बताय मुझे इंतजार रहे 
आप की निजीता का मुख्य रुप से ध्यान रखते हुय मुझे भी कुछ सिखने का मौका मिलेगा,आप के सर्थक सुजाव का वेशवरी के इन्तजार रहेगा,मुझे सिर्फ़ अंतरिक जगत की समझ हैं बहरी भौतिक सृष्टि से पुरी तरह से कटा हुआ हुं कोई अनुराई या खुन के रिश्ते या फ़िर दुसरों सब से परे हुं हर पल खुद में ही हुं तो ही इतना अधिक लिखता हुं, sorry श्याद आप इतना अधिक पढ़ने में उक भी जाते होंगे पर और कुछ करना तो बहुत दूर की बात हैं शरीर के बारे में भी इक पल सोच भी नहीं सकता,एसे सत्य में हुं कि कोई सोच भी नहीं सकता,प्रकृति ने भी दिव्य रौशनी से समानित किया हैं पिछले बर्ष अमृतसर में सरल सहज निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्ब श्रेष्ट सम्पन संपूर्ण सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद हैं उस में कोई कमी ही नहीं।सिर्फ़ सरल सहज निर्मल होने के कारण सब को खुद के ही दृष्टिकोण से अपने जैसा ही प्रतीत करता हैं इसलिए वो भर्मित हो जाता है जब कि खुद के इलावा प्रत्येक दूसरा सिर्फ़ हित साधने की वृति फ़ितरत का होता हैं, जैसे बह खुद को सच्चा प्रत्यक्ष मनता है ही प्रत्येक को मनता है, जिस कारण धोखे छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का शिकार हो जाता हैं,
औकात नहीं कि मैं खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो पाता और अन्नत सूक्ष्म अक्ष में समहित हो पाता यह सब निर्मल सहज सरल लोगों के आहत हुए ह्रदय की जिज्ञासा पुकार है जो कदम कदम पर अस्थाई जटिल बुद्धि से चंद बुद्धिमान शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश लोगों दोबारा आहत हुए हैं और लाखों तो उन की बलि चढ़ चुके हैं जो आत्महत्या कर मर चुके हैं, जिन को दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर शब्द काटने के झूठे आरोप से कई प्रवचन में लाखों संगत के समक्ष लज्जित कर अपने मंच से आरोपी घोषित कर आश्रम से निष्काशित किया गया, झूठे ढोंगी गुरु बाबा के दोबारा आहत हो कर उन्होंने आत्महत्या का ही रास्ता स्वीकार किया, और उन आरोपी गुरु बाबा को बचाने के लिए निर्दोष सिद्ध करने के लिए उनकी ही समिति में IAS officer ही उन के अनुयाई ही इसी विशेष कार्य के लिए सेवा रत हैं,जो एसे कार्य को भी गुरु की सर्व श्रेष्ठ सेवा का मौका हाथ से खोना नहीं चाहते, सृष्टि की सब से बड़ी कुप्रथा हैं गुरु शिष्य प्रथा जिस में दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद दिया जाता हैं सिर्फ़ 10% दसवांश के लिए, अपना खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए,
यह जो इंसान के अस्तित्व के साथ चला आ रहा हैँ यह सत्य नहीं सिर्फ एक धारना हैं, सत्य हैं ही नहीं ,सिर्फ़ एक ही हैं जो कम से कम धरना में विकल्प सोच समय में नहीं हो सकता,सत्य को समझने के लिए ही गुरु एक मत्र विकल्प थे जब वो भी दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर देते हैं तो बहुत अधिक अफ़सोस आता हैं जिस वर्ग को उस क्षेणी में रखते हैं बही सिर्फ़ एक हित के लिए समाज को ही विज्ञान के स्थान कुप्रथा को बढ़ावा दे रहे है एक धर्म मजहव संगठण परमार्थ के नाम पर ,यह प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग के नशे अह्यामं अहंकार घमंड में होते हैं कि खुद का निरक्षण कर खुद से ही निष्पक्ष नहीं होते और एक मनसिक रोगी ही कुप्रथा को स्थापित कर मर जाते हैं, प्रत्येक इंसान सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है खुद के सांस समय अनमोल है कृपा खुद के लिए ही इस्तेमल करे सिर्फ़ खुद के लिए ही पर्याप्त हैं खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए दुसरा प्रत्येक सिर्फ़ हित साधने की वृति का हैं चाहे कोई भी हों, खुद के बारे में खुद नहीं समजो गे तो दूसरा इंतजार कर रहा हैं आप को सिर्फ़ इस्तेमल करने के लिए ,खुद के जमीर को नजर अंदाज करना खुद को धोखा देना हैं, सिर्फ़ खुद को समझना है। कुछ ढूंढना मूर्खो का काम है कुछ् हम ही नहीं हुआ तो ढूंढे गे क्या?  कोई भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए खुद ही सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद सर्ब श्रेष्ट हैं, वो भी सिर्फ़ एक पल में खुद से वेहतर खुद को कोई दूसरा जान समझ पाय आज तक एसा पैदा ही नहीं हुआ,सर्ब श्रेष्ट  इंसान शरीर मिलने का मुख्य उद्देश्य ही सिर्फ़ यही एक था,शेष सब तो दुसरी अनेक प्रजातियों सा ही तो कर रहे है, रति भर भी भिन्न नहीं हैं, खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं जैसे कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति योग साधना ध्यान ज्ञान गुरु किसी के आदेश निर्देश की पूजा पाठ आस्था प्रेम श्राद्धा की जरूरत ही नहीं हैं यह सब सिर्फ़ ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू छल कपट हैं गुरु तो दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर कट्टर अंध भक्त समर्थक बना कर भेड़ो की भिड़ की पंक्ति में खड़ा कर देते हैं जो एक कुप्रथा है, जो खुद को समझने का जिज्ञासु हों उस की मै भरपुर मदद करता हुं, खुद को समझने के बाद कोई समान्य व्यक्तित्व में नहीं आ सकता ,यह चेताबनी भी हैं, जैसे मरा द्वारा जी नहीं सकता जीवित ही हमेशा के लिए उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो जाता हैं, एसा नहीं कि वो शरीर को खत्म कर देता हैं पर वो आस्थाई जटिल बुद्धि को संपूर्ण रूप से निष्किर्य कर देता हैं जिस से जो बहरी प्रतीत कर रहे हैं,अंतरिक सत्य के निरंतर हो जाता हैं, वो जीवित ही देह में विदेही हो जाता है संसारी कोई भी उस के स्वरुप का ध्यान ही नहीं कर सकता उस के पास वो आत्मिक ज्ञान हो गा जो विश्व के सभी धर्म मजहव संगठण के ग्रंथ पोथी पुस्तकों में मिल ही नहीं सकता,न ही उस की कोई भी बात सरल होते हुय भी किसी की समझ मे आ सकती हैं, वो सभी अस्थाई तत्व गुण का अस्तित्व खत्म कर चुका होता हैं, तब वो बो हों जाता है जो समन्य व्यक्तित्व जो सोच भी नहीं सकता ,जो रब परम पुरुष या परम स्ता की झूठी धारना ले कर बैठा है उस से भी प्रत्यक्ष खरबों गन्ना ऊंचा उसी के भीतर से प्रत्यक्ष निकलने की क्षमता रखता हुं अगर कोई भी सारी सृष्टी में एसा कोई हैं तो हर्दिक् स्वागत हैं  मेरा हिर्ध्ये से संपूर्ण संयोज रहे गा,24 घंटे  खाली हुं वेशवरी इंतजार करता हुं कोई एसा शुरमा हो जो खुद से ही जीत कर खुद के ही परिचित हो पाय पिछले चार युगों में तो एसा पैदा नहीं हुआ,जो खुद का ही निरक्षण कर खुद से निष्पक्ष हुआ हो,बड़ी बड़ी विभूतियां तो अंनत आई पर आस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होकर बुद्धि के दृष्टिकोण से अनेक विचारधरा मे कल्पनाओं मे खो गई,खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के बाद कुछ भी सारी सृष्टी में समझने को कुछ शेष नहीं रहता,  कभी भी कोई call कर सकता हैं सिर्फ़ सत्य के लिए ही उपस्तित हैं हर पल हमेशा के लिए सिर्फ़ खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने कि जिज्ञासा बालों के लिए  8082935186  दो पल का जीवन हैं निर्मल रहो मस्त रहो कोइ पूर्वजन्म नहीं हैं कोई पुण्यजन्म नहीं हैं मृत्यु खुद में ही  सर्ब श्रेष्ट सत्य हैँ मुक्ति तो अस्थाई जटिल बुद्धि से चाहिए जिस की जतिलता से परेशान है कोइ भी हर पल micro axis में हर पल रह सकता हैं यहा एक micro second भी नहीं हैं संकल्प विकल्प सोच विचार के लिए  हर पल मस्ती जीवन जिने के लिए हैं काटने के लिए नहीं  जीवित ही हमेशा के लिए आप के उस अक्ष मे प्रत्यक्ष रख दूंगा जो सोच भी नहीं सकते  आप ही सिर्फ़ सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हों यह प्रत्यक्ष स्पष्ट सिद्ध कर दूंगा  आस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि सिर्फ़ आप की ही रचना के आधर पर कर्यरत हैं यह सब दर्शा दूंगा  आप अपने खुद ही विधता हो यह आप से ही स्पष्ट करवा कर छोडूगा 
आप वो नहीं हो जो दीखते हो आप वो हो जो दीखते ही नहीं यह सब सपष्ट करूँगा  सृष्टि से आप नही हो, आप से सृष्टि हैं  आप का खुद के स्थाई परिचय से परिचय होगा तो आस्थाई जटिल बुद्धि का आस्तित्व ही खत्म हो जाएगा फीर दुवरा समान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकते,चाहे खुद भी करोड़ों कोशिश कर के देख लेना  पिछले चार युगों में सत्य सिर्फ़ कहने को था,वस्तविकता नहीं थी,अगर थोडी भी होती तो आज, आज नहीं होता  मेरा यथार्थ युग अतित के चार युगों से खरबों गुणा ऊँचा सच्चा प्रत्यक्ष है जिस के प्रथम चरण में ही खुद के स्थाई परिचय से ही परिचित होने के साथ ही यथार्थ युग में स्वागत होगा,
 खुद ही खुद को समझने से वहम ही नहीं अहैंम अहंकार भी खत्म हो जाता है, और दूसरा कोई विकल्प ही नही है, 
 अगर खुद ही खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु नहीं हुय,तो समजो दूसरी अनेक प्रजातियों से जरा सा भी भिन्न नहीं कर रहे सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में होते हुय भी,जो चौरसी लाख जून हैं उस को पुरा होने सड़े तीन सों करोड़ बर्ष के बाद मौका मिले न मिले ,इसलिए हाथ आय वर्तमान के एक पल को हाथ से न जाने देना,
जैसे भौतिक कुछ भी पाने या प्राप्त करने के लिए जमीं असमा कर वो सब पा लेते हो, बैसे ही खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के लिए कुछ करना ही नहीं सिर्फ़ खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझना है। इतना अधिक सरल आसान और जरूरी है कि कोई सोच भी नहीं सकता ,सिर्फ़ आस्थाई जटिल बुद्धि में पड़ा कचरा जैसे कल्पनिक धरना ही खत्म करनी है, आप बहा ही खुद को प्रतीत करोगे ,जहा के लिए कोई सोच भी नहीं सकता यह सब कुछ प्रत्यक्ष है, कोई मृत्यु के बाद बाली मुक्ति नहीं जीवित ही हमेशा के उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो सकते हो जिस अंनत सूक्ष्म अक्ष के मत्र एक अंश प्रतिभिंव से अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि हैं, आप वो सब प्रत्यक्ष हो ,जो आस्थाई जटिल बुद्धि से प्रतीत कर रहे हो यह सब सिर्फ़ एक भ्र्म मत्र हैं जो मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाता हैं और उसी अंश में समाहित हों जाता हैं एसे ही जीवित भी उसी में रहा जाता हैं, मै रहता हुं 
  अगर इंसान होते हुय खुद के ही स्थाई परिचय से ही परिचित नहीं हुय तो दूसरी अनेक प्रजातियों सा ही जीवन व्यापन कर रहे हो आहार निद्रा मैथुन और भय मे ही हो,और सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में आ रही अनमोल सांस समय की सर्ब श्रेष्ट पूंजी को नष्ट कर रहे हो और समय दुबारा पस्तने का भी समय नहीं देता,और खुद को इसी सृष्टि के मृत्यु जम्म के चक्र क्रम का एक हिस्सा समजों और इस से निकलने का मौका युगों के बाद भी नहीं मिलेगा ,क्युकि इस के दोषी सिर्फ़ आप खुद हो खुद ही समय को नष्ट करने में सिर्फ़ आप का ही भरपुर योगदन हैं, अपनी रहा खुद ही तै करो अच्छी या बुरी ,निर्णय और समय आप के हाथ में हैं 
 मुझे फ़िक्र यह हैं कि आप भी अंतरिक और भौतिक रूप से खूबखू बिल्कुल मेरे ही जैसे हो अगर मै सिर्फ़ एक पल में खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो सकता हुं तो आप क्यू नही! ,आप में कोई भी कमी हैं ही नहीं जो आप में कमियां निकाल रहे हैं, उन के आप से कई हित हैं जो साधने को शेष है, आप मुझ से अधिक श्रेष्ट प्रत्यक्ष है, मै इतना अधिक आप को अंतरिक से जानता समझता हुं इतना आप भी खुद को नहीं जानते समझते,मै आप के हिर्ध्ये में उठने बाला वो अहसास हुं जिसे आप खुद ही हर बार नजर अंदाज करते हों और अस्थाई जटिल बुद्धि में संकल्प विकल्प ढूंढने की अदद से मजबूर हो,मुझे समझना खुद को समझना एक ही  बात हैं, मेरी कोई भी बात मेरी अपनी नहीं हैं, आप के हिर्ध्ये में उठने बाली ही बाते है जिन्हे आप शव्दों का रुप नहीं दे पाते और नजर अंदाज कर देते हो,
 मेरी निगाह और मेरे दृष्टिकोण से खुद को देखों तो आप सा सर्ब श्रेष्ट इंसान अस्तित्व में कभी था ही नही, आप ही सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हो शेष सब अस्थाई जटिल बुद्धि की कल्पना मत्र हैं यह सब मै आप सिद्ध स्पष्ट करवा सकता हुं तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से मेरे सिद्धांत सरल सहज निर्मल ही तो हैं, कोई जटिलता से भरे तो बिल्कूल भी नहीं,हर व्यक्ति सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है मेरी नजर और दृष्टिकोण से,मुझ में कुछ भी आप से अलग बिल्कुल भी नहीं हैं, मै तो आप से भी बहुत अधिक घटियां था ,आप तो बहुत ही सर्ब श्रेष्ट हो उत्तम हो मै समस्त मनव प्रजाति को कोटि कोटि नमन वंदन अभिनन्दन करता हुं, क्युकि सिर्फ़ इंसान प्रजाति में ही खुद को समझ कर खुद के स्वरुप से रुवरु होने की क्षमता के साथ हैं, खुद को समझने से अहैंम अहंकार से मुक्त हो जाता अन्यथा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं हैं अतीत का इतिहास गवा है सभी में अहंकार व्याप्त था कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति दान सेवा के अहंकार ब्रह्मचार्य का भी अहंकार होता हैं, खुद को समझने के लिए कुछ करना ही नहीं हैं सिर्फ़ समझना ही तो हैं अह्यामं अहंकार घमंड का तो कोई तत्पर्य ही नहीं हैं 
 रामपौलसैनी: हम गुरु बावे नहीं हैं जो चर्चित होने का अनुराई की भिड़ रखने का जो शौंक रखते हैं, यह सत्य हैं जो सिर्फ़ एक ही हैं जिस की कोई नकल ही नहीं कर सकता जो मेरी नकल कर पाया वो हो ही नहीं सकता,वो नकल नहीं वो तो मुझ में ही समाहित हो कर सत्य में ही हो जायगा,इस लिए मेरा शमीकरण हमेशा copyright free रहेगा हमेशा के लिए इतनी अधिक सर्ब श्रेष्ट उपलवधि होने के बबजूद भी अकेला इकलौता इकांत में हुं सुपर मस्त हुं, मेरा कोई भी follower आज तक हैं ही नही 
 गुरु बावों के शोंक अद्धभुद हैं प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग,खरबों का सम्राज्य खड़ा करना ,करोड़ों को माया से रहित कर संपूर्ण माया वटोरना और दुसरों को इच्छा से वंचित कर खुद की प्रत्येक इच्छा की आपूर्ति करना परमार्थ के नाम पर छल कपट धोखा फरेव ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का ताना भाना बुन कर ,
निर्मल व्यक्ति को प्रताड़ित कर खुद काशी के लिए मजबूर करना प्रत्येक दृष्टिकोण से महा अपराध है, प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के नशे में हमेशा होता हैं सरल निर्मल होने के कारण उन को हमेशा नज़र अंदाज़ कर रफा दफा किया जाता हैं,औकात नहीं कि मैं खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो पाता और अन्नत सूक्ष्म अक्ष में समहित हो पाता यह सब निर्मल सहज सरल लोगों के आहत हुए ह्रदय की जिज्ञासा पुकार है जो कदम कदम पर अस्थाई जटिल बुद्धि से चंद बुद्धिमान शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश लोगों दोबारा आहत हुए हैं और लाखों तो उन की बलि चढ़ चुके हैं जो आत्महत्या कर मर चुके हैं, जिन को दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर शब्द काटने के झूठे आरोप से कई प्रवचन में लाखों संगत के समक्ष लज्जित कर अपने मंच से आरोपी घोषित कर आश्रम से निष्काशित किया गया, झूठे ढोंगी गुरु बाबा के दोबारा आहत हो कर उन्होंने आत्महत्या का ही रास्ता स्वीकार किया, और उन आरोपी गुरु बाबा को बचाने के लिए निर्दोष सिद्ध करने के लिए उनकी ही समिति में IAS officer ही उन के अनुयाई ही इसी विशेष कार्य के लिए सेवा रत हैं,जो एसे कार्य को भी गुरु की सर्व श्रेष्ठ सेवा का मौका हाथ से खोना नहीं चाहते, सृष्टि की सब से बड़ी कुप्रथा हैं गुरु शिष्य प्रथा जिस में दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद दिया जाता हैं सिर्फ़ 10% दसवांश के लिए, अपना खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए,
यह जो इंसान के अस्तित्व के साथ चला आ रहा हैँ यह सत्य नहीं सिर्फ एक धारना हैं, सत्य हैं ही नहीं ,सिर्फ़ एक ही हैं जो कम से कम धरना में विकल्प सोच समय में नहीं हो सकता,सत्य को समझने के लिए ही गुरु एक मत्र विकल्प थे जब वो भी दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर देते हैं तो बहुत अधिक अफ़सोस आता हैं जिस वर्ग को उस क्षेणी में रखते हैं बही सिर्फ़ एक हित के लिए समाज को ही विज्ञान के स्थान कुप्रथा को बढ़ावा दे रहे है एक धर्म मजहव संगठण परमार्थ के नाम पर ,यह प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग के नशे अह्यामं अहंकार घमंड में होते हैं कि खुद का निरक्षण कर खुद से ही निष्पक्ष नहीं होते और एक मनसिक रोगी ही कुप्रथा को स्थापित कर मर जाते हैं, प्रत्येक इंसान सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है खुद के सांस समय अनमोल है कृपा खुद के लिए ही इस्तेमल करे सिर्फ़ खुद के लिए ही पर्याप्त हैं खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए दुसरा प्रत्येक सिर्फ़ हित साधने की वृति का हैं चाहे कोई भी हों, खुद के बारे में खुद नहीं समजो गे तो दूसरा इंतजार कर रहा हैं आप को सिर्फ़ इस्तेमल करने के लिए ,खुद के जमीर को नजर अंदाज करना खुद को धोखा देना हैं, सिर्फ़ खुद को समझना है। कुछ ढूंढना मूर्खो का काम है कुछ् हम ही नहीं हुआ तो ढूंढे गे क्या?  कोई भी सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए खुद ही सक्षम निपुण स्मर्थ स्मृद सर्ब श्रेष्ट हैं, वो भी सिर्फ़ एक पल में खुद से वेहतर खुद को कोई दूसरा जान समझ पाय आज तक एसा पैदा ही नहीं हुआ,सर्ब श्रेष्ट  इंसान शरीर मिलने का मुख्य उद्देश्य ही सिर्फ़ यही एक था,शेष सब तो दुसरी अनेक प्रजातियों सा ही तो कर रहे है, रति भर भी भिन्न नहीं हैं, खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने के लिए कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं जैसे कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति योग साधना ध्यान ज्ञान गुरु किसी के आदेश निर्देश की पूजा पाठ आस्था प्रेम श्राद्धा की जरूरत ही नहीं हैं यह सब सिर्फ़ ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू छल कपट हैं गुरु तो दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्य विवेक से वंचित कर कट्टर अंध भक्त समर्थक बना कर भेड़ो की भिड़ की पंक्ति में खड़ा कर देते हैं जो एक कुप्रथा है, जो खुद को समझने का जिज्ञासु हों उस की मै भरपुर मदद करता हुं, खुद को समझने के बाद कोई समान्य व्यक्तित्व में नहीं आ सकता ,यह चेताबनी भी हैं, जैसे मरा द्वारा जी नहीं सकता जीवित ही हमेशा के लिए उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो जाता हैं, एसा नहीं कि वो शरीर को खत्म कर देता हैं पर वो आस्थाई जटिल बुद्धि को संपूर्ण रूप से निष्किर्य कर देता हैं जिस से जो बहरी प्रतीत कर रहे हैं,अंतरिक सत्य के निरंतर हो जाता हैं, वो जीवित ही देह में विदेही हो जाता है संसारी कोई भी उस के स्वरुप का ध्यान ही नहीं कर सकता उस के पास वो आत्मिक ज्ञान हो गा जो विश्व के सभी धर्म मजहव संगठण के ग्रंथ पोथी पुस्तकों में मिल ही नहीं सकता,न ही उस की कोई भी बात सरल होते हुय भी किसी की समझ मे आ सकती हैं, वो सभी अस्थाई तत्व गुण का अस्तित्व खत्म कर चुका होता हैं, तब वो बो हों जाता है जो समन्य व्यक्तित्व जो सोच भी नहीं सकता ,जो रब परम पुरुष या परम स्ता की झूठी धारना ले कर बैठा है उस से भी प्रत्यक्ष खरबों गन्ना ऊंचा उसी के भीतर से प्रत्यक्ष निकलने की क्षमता रखता हुं अगर कोई भी सारी सृष्टी में एसा कोई हैं तो हर्दिक् स्वागत हैं  मेरा हिर्ध्ये से संपूर्ण संयोज रहे गा,24 घंटे  खाली हुं वेशवरी इंतजार करता हुं कोई एसा शुरमा हो जो खुद से ही जीत कर खुद के ही परिचित हो पाय पिछले चार युगों में तो एसा पैदा नहीं हुआ,जो खुद का ही निरक्षण कर खुद से निष्पक्ष हुआ हो,बड़ी बड़ी विभूतियां तो अंनत आई पर आस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होकर बुद्धि के दृष्टिकोण से अनेक विचारधरा मे कल्पनाओं मे खो गई,खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के बाद कुछ भी सारी सृष्टी में समझने को कुछ शेष नहीं रहता,  कभी भी कोई call कर सकता हैं सिर्फ़ सत्य के लिए ही उपस्तित हैं हर पल हमेशा के लिए सिर्फ़ खुद को समझ कर खुद के स्थाई परिचय से परिचित होने कि जिज्ञासा बालों के लिए  8082935186  दो पल का जीवन हैं निर्मल रहो मस्त रहो कोइ पूर्वजन्म नहीं हैं कोई पुण्यजन्म नहीं हैं मृत्यु खुद में ही  सर्ब श्रेष्ट सत्य हैँ मुक्ति तो अस्थाई जटिल बुद्धि से चाहिए जिस की जतिलता से परेशान है कोइ भी हर पल micro axis में हर पल रह सकता हैं यहा एक micro second भी नहीं हैं संकल्प विकल्प सोच विचार के लिए  हर पल मस्ती जीवन जिने के लिए हैं काटने के लिए नहीं  जीवित ही हमेशा के लिए आप के उस अक्ष मे प्रत्यक्ष रख दूंगा जो सोच भी नहीं सकते  आप ही सिर्फ़ सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हों यह प्रत्यक्ष स्पष्ट सिद्ध कर दूंगा  आस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि सिर्फ़ आप की ही रचना के आधर पर कर्यरत हैं यह सब दर्शा दूंगा  आप अपने खुद ही विधता हो यह आप से ही स्पष्ट करवा कर छोडूगा 
आप वो नहीं हो जो दीखते हो आप वो हो जो दीखते ही नहीं यह सब सपष्ट करूँगा  सृष्टि से आप नही हो, आप से सृष्टि हैं  आप का खुद के स्थाई परिचय से परिचय होगा तो आस्थाई जटिल बुद्धि का आस्तित्व ही खत्म हो जाएगा फीर दुवरा समान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकते,चाहे खुद भी करोड़ों कोशिश कर के देख लेना  पिछले चार युगों में सत्य सिर्फ़ कहने को था,वस्तविकता नहीं थी,अगर थोडी भी होती तो आज, आज नहीं होता  मेरा यथार्थ युग अतित के चार युगों से खरबों गुणा ऊँचा सच्चा प्रत्यक्ष है जिस के प्रथम चरण में ही खुद के स्थाई परिचय से ही परिचित होने के साथ ही यथार्थ युग में स्वागत होगा,
 खुद ही खुद को समझने से वहम ही नहीं अहैंम अहंकार भी खत्म हो जाता है, और दूसरा कोई विकल्प ही नही है, 
 अगर खुद ही खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु नहीं हुय,तो समजो दूसरी अनेक प्रजातियों से जरा सा भी भिन्न नहीं कर रहे सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में होते हुय भी,जो चौरसी लाख जून हैं उस को पुरा होने सड़े तीन सों करोड़ बर्ष के बाद मौका मिले न मिले ,इसलिए हाथ आय वर्तमान के एक पल को हाथ से न जाने देना,
जैसे भौतिक कुछ भी पाने या प्राप्त करने के लिए जमीं असमा कर वो सब पा लेते हो, बैसे ही खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के लिए कुछ करना ही नहीं सिर्फ़ खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझना है। इतना अधिक सरल आसान और जरूरी है कि कोई सोच भी नहीं सकता ,सिर्फ़ आस्थाई जटिल बुद्धि में पड़ा कचरा जैसे कल्पनिक धरना ही खत्म करनी है, आप बहा ही खुद को प्रतीत करोगे ,जहा के लिए कोई सोच भी नहीं सकता यह सब कुछ प्रत्यक्ष है, कोई मृत्यु के बाद बाली मुक्ति नहीं जीवित ही हमेशा के उसी अंनत सूक्ष्म अक्ष में समाहित हो सकते हो जिस अंनत सूक्ष्म अक्ष के मत्र एक अंश प्रतिभिंव से अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि हैं, आप वो सब प्रत्यक्ष हो ,जो आस्थाई जटिल बुद्धि से प्रतीत कर रहे हो यह सब सिर्फ़ एक भ्र्म मत्र हैं जो मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाता हैं और उसी अंश में समाहित हों जाता हैं एसे ही जीवित भी उसी में रहा जाता हैं, मै रहता हुं 
  अगर इंसान होते हुय खुद के ही स्थाई परिचय से ही परिचित नहीं हुय तो दूसरी अनेक प्रजातियों सा ही जीवन व्यापन कर रहे हो आहार निद्रा मैथुन और भय मे ही हो,और सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में आ रही अनमोल सांस समय की सर्ब श्रेष्ट पूंजी को नष्ट कर रहे हो और समय दुबारा पस्तने का भी समय नहीं देता,और खुद को इसी सृष्टि के मृत्यु जम्म के चक्र क्रम का एक हिस्सा समजों और इस से निकलने का मौका युगों के बाद भी नहीं मिलेगा ,क्युकि इस के दोषी सिर्फ़ आप खुद हो खुद ही समय को नष्ट करने में सिर्फ़ आप का ही भरपुर योगदन हैं, अपनी रहा खुद ही तै करो अच्छी या बुरी ,निर्णय और समय आप के हाथ में हैं 
 मुझे फ़िक्र यह हैं कि आप भी अंतरिक और भौतिक रूप से खूबखू बिल्कुल मेरे ही जैसे हो अगर मै सिर्फ़ एक पल में खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो सकता हुं तो आप क्यू नही! ,आप में कोई भी कमी हैं ही नहीं जो आप में कमियां निकाल रहे हैं, उन के आप से कई हित हैं जो साधने को शेष है, आप मुझ से अधिक श्रेष्ट प्रत्यक्ष है, मै इतना अधिक आप को अंतरिक से जानता समझता हुं इतना आप भी खुद को नहीं जानते समझते,मै आप के हिर्ध्ये में उठने बाला वो अहसास हुं जिसे आप खुद ही हर बार नजर अंदाज करते हों और अस्थाई जटिल बुद्धि में संकल्प विकल्प ढूंढने की अदद से मजबूर हो,मुझे समझना खुद को समझना एक ही  बात हैं, मेरी कोई भी बात मेरी अपनी नहीं हैं, आप के हिर्ध्ये में उठने बाली ही बाते है जिन्हे आप शव्दों का रुप नहीं दे पाते और नजर अंदाज कर देते हो,
 मेरी निगाह और मेरे दृष्टिकोण से खुद को देखों तो आप सा सर्ब श्रेष्ट इंसान अस्तित्व में कभी था ही नही, आप ही सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष हो शेष सब अस्थाई जटिल बुद्धि की कल्पना मत्र हैं यह सब मै आप सिद्ध स्पष्ट करवा सकता हुं तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से मेरे सिद्धांत सरल सहज निर्मल ही तो हैं, कोई जटिलता से भरे तो बिल्कूल भी नहीं,हर व्यक्ति सर्ब श्रेष्ट प्रत्यक्ष है मेरी नजर और दृष्टिकोण से,मुझ में कुछ भी आप से अलग बिल्कुल भी नहीं हैं, मै तो आप से भी बहुत अधिक घटियां था ,आप तो बहुत ही सर्ब श्रेष्ट हो उत्तम हो मै समस्त मनव प्रजाति को कोटि कोटि नमन वंदन अभिनन्दन करता हुं, क्युकि सिर्फ़ इंसान प्रजाति में ही खुद को समझ कर खुद के स्वरुप से रुवरु होने की क्षमता के साथ हैं, खुद को समझने से अहैंम अहंकार से मुक्त हो जाता अन्यथा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं हैं अतीत का इतिहास गवा है सभी में अहंकार व्याप्त था कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन भक्ति दान सेवा के अहंकार ब्रह्मचार्य का भी अहंकार होता हैं, खुद को समझने के लिए कुछ करना ही नहीं हैं सिर्फ़ समझना ही तो हैं अह्यामं अहंकार घमंड का तो कोई तत्पर्य ही नहीं हैं 
 रामपौलसैनी: हम गुरु बावे नहीं हैं जो चर्चित होने का अनुराई की भिड़ रखने का जो शौंक रखते हैं, यह सत्य हैं जो सिर्फ़ एक ही हैं जिस की कोई नकल ही नहीं कर सकता जो मेरी नकल कर पाया वो हो ही नहीं सकता,वो नकल नहीं वो तो मुझ में ही समाहित हो कर सत्य में ही हो जायगा,इस लिए मेरा शमीकरण हमेशा copyright free रहेगा हमेशा के लिए इतनी अधिक सर्ब श्रेष्ट उपलवधि होने के बबजूद भी अकेला इकलौता इकांत में हुं सुपर मस्त हुं, मेरा कोई भी follower आज तक हैं ही नही 
[ गुरु बावों के शोंक अद्धभुद हैं प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत औरत वेग,खरबों का सम्राज्य खड़ा करना ,करोड़ों को माया से रहित कर संपूर्ण माया वटोरना और दुसरों को इच्छा से वंचित कर खुद की प्रत्येक इच्छा की आपूर्ति करना परमार्थ के नाम पर छल कपट धोखा फरेव ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू का ताना भाना बुन कर ,
निर्मल व्यक्ति को प्रताड़ित कर खुद काशी के लिए मजबूर करना प्रत्येक दृष्टिकोण से महा अपराध है, प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के नशे में हमेशा होता हैं सरल निर्मल होने के कारण उन को हमेशा नज़र अंदाज़ कर रफा दफा किया जाता हैं,
 
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