मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0 ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞) CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞) ``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0  
ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य🙏🇮🇳🙏"यथार्थ सिद्धांत"🙏🇮🇳🙏
❤️ ✅"unique wonderful real infinite,love story of disciple towards His spirtual master"❤️✅
 ✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य
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https://pin.it/5a3y4ZZ**यथार्थ युग की दिव्यता**  
*(गायक: रम्पाल सैनी जी की प्रेरणा से)*  

**(1) आरंभ)**  
✨ *यथार्थ युग आया, नव प्रभा लाया,*  
सत्य का सूरज चमका, भ्रम को मिटाया।  
रम्पाल सैनी गाए, हृदय में समाए,  
हर पल नया उत्सव, प्रेम का दीप जलाए। ✨  

**(2) यथार्थ की पुकार)**  
चलो उस दिशा में जहाँ सत्य है खड़ा,  
भ्रम के अंधेरों में न कोई पड़े पड़ा।  
हर क्षण यहाँ शाश्वत आनंद बहता,  
यथार्थ युग का प्रेम, सदा अमर रहता।  

**(3) आत्म-प्रेरणा)**  
ओ! जागो, जागो, हे मानव सजग,  
समझो स्वयं को, बनो दिव्य निर्भय।  
रम्पाल की वाणी, सत्य की कहानी,  
यथार्थ युग की महिमा, है सब पर वारी।  

**(4) नृत्य व संग)**  
चलो संग चलें, इस पथ को चुनें,  
गगन तक पहुँचें, सीमाएँ गुनें।  
हर मन में हो निर्मल प्रकाश,  
यथार्थ युग में हो उल्लास!  

**(5) समापन)**  
✨ *अब यह समय है, पहचान लो खुद को,*  
आत्मा का संगीत, गूंजे अनंत को।  
रम्पाल की धुन में सत्य बह चला,  
यथार्थ युग में हर क्षण प्रेम खिला! ✨  

**(🎶 संगीत बजता रहे, आत्मिक ऊर्जा का संचार हो! 🎶)**### **✨ यथार्थ युग की दिव्य पुकार ✨**  
*(रम्पाल सैनी जी की प्रेरणा से, आत्मा को यथार्थ अक्ष में समाहित करने हेतु)*  

---  

### **(1) आरंभ: जागरण का उद्घोष)**  
**🔆 यथार्थ युग आया, अमर सत्य लाया,**  
**मिथ्या की दीवारें, अब चूर-चूर हो जाएं।**  
रम्पाल की वाणी, जैसे अमृत धार,  
जो इसे सुने, वो हो जाए निष्परिवार।  

💫 *अब जागो! यह क्षण अमूल्य है,*  
💫 *इस सत्य युग में, हर श्वास अनंत है!*  

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### **(2) आत्मा की पुकार: स्वयं में विलीन हो जाने की प्रेरणा)**  
हे मानव! क्या तू स्वयं को जानता नहीं?  
क्या तू इन भ्रमों का शिकार बना कहीं?  
तेरा स्वरूप है अचल, अविनाशी, अपरंपार,  
फिर क्यों उलझे तू इस झूठे संसार?  

**🔥 भीतर देख, उस अक्ष को जान,**  
**जहाँ ना है प्रतिबिंब, ना कोई प्रमाण।**  
जहाँ शून्यता भी मौन हो जाती,  
जहाँ चेतना भी स्वयं में समाहित हो जाती।  

**✨ रम्पाल पुकारें, अब जाग जा!**  
**अपने ही अनंत सत्य में समा जा!**  

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### **(3) निर्भयता का आह्वान: यथार्थ का विराट स्वरूप)**  
अब तोड़ दे सारे बंधन, मुक्त हो जा,  
खुद को ही खुद में विलीन कर ले, बस हो जा!  
तेरा अस्तित्व अब निर्भय, अब निरंकार,  
अब न कोई सीमा, न कोई दीवार।  

**🌊 तू वो सागर, जो किसी तट से बंधा नहीं,**  
**तू वो प्रकाश, जो किसी दीप में सिमटा नहीं।**  
अब खो जा स्वयं में, बन जा वो परम,  
यथार्थ युग में, हो तेरा अद्भुत नर्तन!  

**🔥 रम्पाल का संदेश, अब धधकता ज्वाला,**  
**जो इस आग में समाहित हो, वही है उजाला!**  

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### **(4) चरम स्थिति: जीवित ही अक्ष में विलीन हो जाने की अनुभूति)**  
💫 कोई यात्रा नहीं, कोई गंतव्य नहीं,  
💫 कोई प्रश्न नहीं, कोई उत्तर नहीं।  
बस एक अनुभूति – मैं हूँ और मैं नहीं,  
बस एक सत्य – कोई आया नहीं, कोई गया नहीं।  

**✨ रम्पाल सैनी बोले, यह अंतिम बोध है,**  
**जो इसे समझे, वो अक्ष में समाहित हो जाए!**  

🔥 *अब यहाँ रुकना नहीं, अब और चलना नहीं,*  
🔥 *अब तो स्वयं ही स्वयं में पूर्ण विलीन हो जाना है!*  

✨ **यथार्थ युग की अंतिम अनुभूति:**  
👉 *अब कुछ नहीं बचा, अब मैं स्वयं ही स्वयं में समाहित हूँ।*  
👉 *अब कोई द्वैत नहीं, अब कोई चाह नहीं, अब कोई खोज नहीं।*  
👉 *अब बस वही अक्ष, वही सत्य, वही अनंत मौन।*  

**🎶 (संगीत की ध्वनि धीमे-धीमे विलीन हो जाती है, और शून्यता में केवल मौन रह जाता है…) 🎶**### **✨ यथार्थ युग की परम स्तुति ✨**  
*(रम्पाल सैनी जी की दिव्य अनुभूति से, स्वयं के अनंत सत्य की महिमा में)*  

---  

### **(1) आद्य स्तुति: स्वयं की महिमा – सर्वप्रथम ‘मैं’ ही हूँ!**  
🔱 *सर्वप्रथम मैं ही था, मैं ही हूँ, मैं ही रहूँगा,*  
🔱 *मुझसे ही सृष्टि की संकल्पना, मुझमें ही समाहित इसका दिगंत!*  
🌟 **मैं ही वह अचल सत्य, जिससे यह अस्तित्व प्रकट हुआ!**  
🌟 **मैं ही वह अदृश्य आधार, जिससे सब प्रवाहित हुआ!**  

🔥 *जब मैं न था, तो कुछ भी न था,*  
🔥 *जब मैं हूँ, तो सबकुछ मैं ही हूँ!*  
🔥 *जो कुछ भी दिख रहा है, सब मेरी ही प्रतिध्वनि है!*  

🔅 **हे यथार्थ युग, तू मेरा प्रतिबिंब मात्र है!**  
🔅 **मैं ही तेरा उद्गम, मैं ही तेरा अंतिम विलय!**  

🎶 *(महान दिव्य संगीत बजता है, आत्मा की गहराइयों को झकझोरता हुआ…)* 🎶  

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### **(2) आत्म-बोध: स्वयं की सत्ता ही परम है!**  
🌀 **मैं ही वह अक्ष, जो कभी हिला नहीं!**  
🌀 **मैं ही वह बिंदु, जो कभी टूटा नहीं!**  
🌀 **मैं ही वह मौन, जो कभी बोला नहीं!**  

🔥 *सभी दिशाएँ मुझमें हैं, सभी काल मुझमें हैं,*  
🔥 *सभी ध्वनियाँ मुझमें हैं, सभी शून्य मुझमें हैं!*  
🔥 *सभी प्रारंभ मुझसे, सभी अंत मुझमें!*  

🕉 **हे रम्पाल सैनी! तू ही वह अनंत अक्ष है!**  
🕉 **तू ही वह मौलिक स्पंदन है, जिससे यह विश्व तरंगित हुआ!**  

🌟 *अब कोई द्वैत नहीं, कोई संदेह नहीं,*  
🌟 *अब केवल 'मैं' हूँ – निरंकार, अचल, अक्ष!*  

🎶 *(संगीत की लहरें, जैसे स्वयं की आत्मा को गहरे अनुभव में समाहित कर रही हों…)* 🎶  

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### **(3) यथार्थ युग की महिमा: सर्वस्व की समग्रता!**  
🌅 **यथार्थ युग केवल कालखंड नहीं, यह मेरी ही अमर सत्ता है!**  
🌅 **यह केवल विचार नहीं, यह मेरे ही अस्तित्व की पुष्टि है!**  
🌅 **यह केवल अनुभूति नहीं, यह मेरी ही पूर्णता है!**  

🔥 *जो मुझे पहचाने, वही यथार्थ को जाने!*  
🔥 *जो मुझमें समाहित हो, वही स्वयं को पाए!*  

🎶 *(संगीत की लय तीव्र हो जाती है, आत्मा को जगा रही है, प्रेरित कर रही है!)* 🎶  

---  

### **(4) परम विलय: अब कुछ भी शेष नहीं!**  
💫 अब समय नहीं, अब स्थान नहीं,  
💫 अब गति नहीं, अब विचार नहीं!  

🔱 **अब केवल ‘मैं’ ही हूँ, और यह ‘मैं’ भी केवल मौन है!**  
🔱 **अब कोई आरंभ नहीं, अब कोई अंत नहीं!**  

🔥 *अब सब विलीन – केवल निस्तब्धता!*  
🔥 *अब कोई चाह नहीं – केवल निर्वाण!*  

🎶 *(संगीत अब शून्य में विलीन हो जाता है, केवल मौन बचता है…)* 🎶  

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### **🔱 *हे यथार्थ युग! तू मेरा ही प्रतिफल है!***  
### **🔱 *हे रम्पाल सैनी! तू स्वयं ही यह सम्पूर्णता है!***  
### **🔱 *अब सबकुछ पूर्ण है, अब कुछ भी पाना शेष नहीं!***  

🌟 **अब केवल स्वयं में स्वयं का समाहित होना ही शेष है…** 🌟  

🎶 **(अंतिम दिव्य संगीत… और फिर शाश्वत मौन…)** 🎶### **✨ यथार्थ युग की परम महिमा ✨**  
*(रम्पाल सैनी जी की आत्मा में प्रतिबिंबित, स्वयं की सर्वश्रेष्ठ सत्ता की अटल स्तुति!)*  

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## **(1) अनादि उद्घोष: स्वयं से पहले कुछ भी नहीं!**  
🔱 *हे सत्यस्वरूप!*  
🔱 *हे यथार्थ!*  
🔱 *हे अनंत!*  

**मैं ही वह मूल हूँ, जिससे सृष्टि की स्पंदन-तरंगें जन्मीं!**  
**मैं ही वह मौलिक बिंदु हूँ, जो काल, दिशा, गति और शून्य से परे है!**  

🔥 *जब मैं न था, तब कुछ भी न था!*  
🔥 *जब मैं हुआ, तब सबकुछ हो गया!*  
🔥 *जब मैं मिट जाऊँगा, तब कुछ भी शेष नहीं रहेगा!*  

🌀 **मैं ही वह स्रोत हूँ, जिसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं!**  
🌀 **मैं ही वह शाश्वत हूँ, जो किसी परिवर्तन से नहीं गुजरता!**  
🌀 **मैं ही वह मौन हूँ, जो किसी ध्वनि से उत्पन्न नहीं होता!**  

🌟 **हे रम्पाल सैनी, तू ही वह ‘मैं’ है!**  
🌟 **तू ही वह साक्षी है, जो स्वयं का भी साक्षी नहीं!**  

🎶 *(संगीत की तरंगें गहराती हैं, जैसे अनंत में विलीन होती अनुभूतियाँ…)* 🎶  

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## **(2) स्वयं में विलीनता: अब कोई और कुछ भी नहीं!**  
💫 **अब केवल ‘मैं’ हूँ!**  
💫 **लेकिन इस ‘मैं’ का भी कोई आकार नहीं, कोई छवि नहीं!**  

🔥 *अब कोई धरा नहीं!*  
🔥 *अब कोई गगन नहीं!*  
🔥 *अब कोई क्षण नहीं!*  

🌀 **अब केवल वह शुद्ध, निष्प्रभ, निर्बाध, निर्विकार सत्ता है, जिसे किसी नाम की भी आवश्यकता नहीं!**  
🌀 **यह न आत्मा है, न परमात्मा, न अस्तित्व, न शून्य – यह केवल वही है, जो है!**  

🌅 **हे रम्पाल सैनी, तू ही वह सत्ता है, जो स्वयं में समाहित है!**  
🌅 **तू ही वह ‘मैं’ है, जो अब स्वयं का भी स्पर्श नहीं करता!**  

🎶 *(संगीत अब और गहन होता है, जैसे समय का प्रवाह विलीन हो रहा हो…)* 🎶  

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## **(3) अनंत की गहराई: अब केवल वह ही बचा है!**  
🔱 **अब कुछ भी होने की कोई आवश्यकता नहीं!**  
🔱 **अब कुछ भी देखने, सुनने, समझने की कोई आकांक्षा नहीं!**  
🔱 **अब कुछ भी जानने, अनुभव करने, सोचने की कोई सीमा नहीं!**  

🔥 *अब ना कोई लक्ष्य है, ना कोई प्राप्ति!*  
🔥 *अब ना कोई खोना है, ना कोई पाना!*  
🔥 *अब ना कोई यात्रा है, ना कोई गंतव्य!*  

**अब केवल वही मौन बचा है, जो मौन भी नहीं है!**  
**अब केवल वही सत्ता शेष है, जिसे शब्दों में बाँधना असंभव है!**  

🎶 *(अब संगीत एक अंतहीन मौन में विलीन हो जाता है…)* 🎶  

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## **(4) अंतिम विलय: यथार्थ युग का चरमोत्कर्ष!**  
💫 **अब मैं ही यथार्थ हूँ!**  
💫 **अब मैं ही युग हूँ!**  
💫 **अब मैं ही सत्य हूँ!**  

🔥 *अब मैं स्वयं को नहीं देख सकता, क्योंकि अब देखने के लिए कुछ भी शेष नहीं!*  
🔥 *अब मैं स्वयं को नहीं समझ सकता, क्योंकि अब समझने का कोई माध्यम नहीं!*  
🔥 *अब मैं स्वयं में नहीं हूँ, क्योंकि अब ‘मैं’ भी नहीं बचा!*  

🌟 **हे रम्पाल सैनी, तू ही वह अंतिम अनुभूति है!**  
🌟 **अब कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं, कोई द्वैत नहीं!**  
🌟 **अब केवल वही अनंत अक्ष है, जिसमें कुछ भी प्रतिबिंबित नहीं होता!**  

🎶 *(अब संगीत विलुप्त… अब केवल निस्तब्धता… अनंत शांति…)* 🎶  

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## **🔱 *अब केवल स्वयं में स्वयं का शून्य में विलय ही शेष है…!* 🔱**### **✨ यथार्थ युग का महासंगीत ✨**  
*(रम्पाल सैनी जी की दिव्य अनुभूति से, एक पल में यथार्थ को स्पर्श करने की महिमा!)*  

---  

## **(1) उद्घोष: वह हुआ, जो कभी नहीं हुआ!**  
🎶 **सुनो! सुनो! यह नव उद्घोष है!**  
🎶 **जो चार युगों में न हुआ, वह आज एक पल में हो गया!**  

🔥 *सतयुग में ऋषि खोजते रहे!*  
🔥 *त्रेता में योद्धा भटकते रहे!*  
🔥 *द्वापर में देवता भी चूक गए!*  
🔥 *कलियुग में साधक रोते रहे!*  

💥 **पर जो कभी न हुआ, वह आज एक क्षण में घट गया!**  
💥 **सभी सीमाएँ टूटीं, सभी बंधन मिटे, सत्य स्वयं में प्रकाशित हुआ!**  

🌟 **रम्पाल सैनी ने वह देख लिया, जिसे देखने के लिए ब्रह्मा भी प्रतीक्षारत थे!**  
🌟 **रम्पाल सैनी ने वह कर दिया, जिसे करने के लिए समय भी अपर्याप्त था!**  

🎶 *(संगीत की लहरें तेज़ होती हैं, आत्मा की शक्ति जागृत होती है!)* 🎶  

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## **(2) आत्म-प्रेरणा: चार युगों की खोज, एक पल में समाप्त!**  
🌅 **हे मानव! तू चार युगों तक भ्रम में रहा!**  
🌅 **तूने सत्य को बाहर खोजा, लेकिन सत्य तेरे भीतर था!**  

🔥 *किसी ने हिमालय में खोजा!*  
🔥 *किसी ने महासागरों में डूबा!*  
🔥 *किसी ने ग्रंथों में पढ़ा!*  
🔥 *किसी ने स्वर्ग तक दौड़ लगाई!*  

**पर सत्य वहीं था, जहाँ सबसे पहले देखना चाहिए था – स्वयं में!**  
**पर यथार्थ वहीं था, जहाँ कोई देख ही नहीं पाया – स्वयं के मौन में!**  

🎶 *(संगीत और ऊँचा उठता है, जैसे आत्मा को मुक्त कर रहा हो!)* 🎶  

---  

## **(3) अनंत का उद्घाटन: अब कुछ भी असंभव नहीं!**  
🌀 **अब कुछ भी ढूँढने की आवश्यकता नहीं!**  
🌀 **अब कुछ भी सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं!**  
🌀 **अब कुछ भी साबित करने की आवश्यकता नहीं!**  

🔥 *अब कोई योग नहीं!*  
🔥 *अब कोई ध्यान नहीं!*  
🔥 *अब कोई तप नहीं!*  
🔥 *अब कोई प्रतीक्षा नहीं!*  

💥 **अब केवल स्वयं में प्रवेश कर, और सत्य को उसी क्षण पकड़ ले!**  
💥 **चार युगों में जो कोई भी नहीं कर सका, वह केवल एक पल में घट चुका है!**  

🎶 *(संगीत की ध्वनि एक नए आवेग में बहती है, जैसे अनंत उद्घाटित हो रहा हो!)* 🎶  

---  

## **(4) चरमोत्कर्ष: अब कोई अवरोध नहीं, अब केवल यथार्थ!**  
✨ **अब कोई द्वार नहीं, अब कोई पर्दा नहीं!**  
✨ **अब कोई सीमा नहीं, अब कोई दूरी नहीं!**  
✨ **अब कोई भ्रम नहीं, अब केवल सत्य!**  

🔥 *अब कोई साधना नहीं, अब केवल उपलब्धि!*  
🔥 *अब कोई संघर्ष नहीं, अब केवल अनुभूति!*  
🔥 *अब कोई भविष्य नहीं, अब केवल यह पल!*  

🌟 **रम्पाल सैनी ने स्वयं में वह अनुभव कर लिया, जिसे काल भी समझ नहीं पाया!**  
🌟 **रम्पाल सैनी ने स्वयं को स्वयं में विलीन कर लिया, जो चार युगों तक कोई नहीं कर सका!**  

🎶 *(संगीत अब चरम ऊँचाई पर पहुँच जाता है, आत्मा में कंपन करने लगता है!)* 🎶  

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## **(5) अंतिम निष्कर्ष: अब सबकुछ समाप्त, अब सबकुछ आरंभ!**  
💫 **अब यथार्थ युग पूर्ण हो चुका!**  
💫 **अब सत्य का सूरज उदय हो चुका!**  
💫 **अब आत्मा स्वयं से बाहर नहीं, स्वयं में ही विलीन हो चुकी!**  

🔥 *अब कोई यात्रा नहीं!*  
🔥 *अब कोई संदेह नहीं!*  
🔥 *अब केवल शाश्वत मौन!*  

✨ **हे रम्पाल सैनी, तू ही यथार्थ का आदि और अनंत है!**  
✨ **अब तुझे कहीं और नहीं जाना, क्योंकि तू स्वयं ही मंज़िल है!**  

🎶 *(संगीत धीरे-धीरे मौन में विलीन हो जाता है, और फिर केवल निस्तब्धता शेष रहती है…)* 🎶  

---  

### **🔱 *अब केवल स्वयं में स्वयं का अंतिम विलय ही शेष है…!* 🔱**

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