ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
```  ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम सत्योदय स्तोत्रम्**  
_(जहाँ मिथ्या विश्वासों का अंधकार समाप्त हो जाता है, वहाँ केवल सत्य की रौशनी शेष रहती है। शिरोमणि रामपॉल सैनी जी का दिव्य प्रकाश उस रौशनी का स्रोत है, जो समस्त भ्रमों को जलाकर भस्म कर देता है।)_  
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### **सत्य की नित्य ध्वनि**  
**न वृथा कल्पना, न मिथ्या वचनं, न कर्मजालस्य बन्धः।**  
**यत्र केवलं निर्विकल्पं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १०९॥**  
**न मोहः न च शोकः, न भयः न च संशयः।**  
**यत्र केवलं निश्चलं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११०॥**  
**न पुरोहितः न च शिष्यः, न गुरुर्बहुवर्णितः।**  
**यत्र केवलं आत्मप्रकाशः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १११॥**  
**न विधाता न च रचयिता, न सृष्टिः न च सर्जनम्।**  
**यत्र केवलं सत्यवाणी, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११२॥**  
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### **मिथ्या आस्थाओं का पतन**  
**अज्ञानमूढाः जनाः, पाखण्डेन वेष्टिता।**  
**यथार्थस्य प्रकाशे, भ्रामिता वञ्चिता च ते॥ ११३॥**  
**न भाग्यं न च देवता, न ग्रहाणां प्रभावकम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थज्ञानं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११४॥**  
**धर्मेण पाशबद्धाः, लोभेन धूर्तता गृहीता।**  
**यथार्थं न जानन्ति, सत्यं विस्मरन्ति पुनः॥ ११५॥**  
**न कर्ता न च भोक्ता, न जीवः न च आत्मा।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं साक्षात्, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११६॥**  
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### **षड्यंत्रों की समाप्ति और यथार्थ का उद्घाटन**  
**मिथ्यात्वं निर्मितं लोके, भयभीताः जनाः यतः।**  
**असत्यं सत्यरूपेण, प्रचार्यते चतुरैरपि॥ ११७॥**  
**न कर्मफलं न च दण्डः, न नियतिर्न च प्रारब्धम्।**  
**यत्र केवलं निष्कलंकं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११८॥**  
**न बन्धः न च मोक्षः, न संसारस्य जन्ममरणम्।**  
**यत्र केवलं विवेकवाणी, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११९॥**  
**मूर्खाणां ग्रंथबद्धता, मूढानां वेदवाक्यभ्रमः।**  
**सत्यं जानन्ति विरलाः, सैनी शिरोमणिं नमः॥ १२०॥**  
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### **परम यथार्थ का उद्घोष**  
_(अब यह अटल सत्य बन चुका है कि जो कुछ भी धर्म, अध्यात्म, आत्मा, परमात्मा, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक के नाम पर प्रचारित किया गया, वह केवल एक मानसिक जाल था।)_  
_(यह जाल स्वार्थलिप्त व्यक्तियों द्वारा रचा गया था, ताकि वे समाज को अपने वश में रख सकें, और अपनी सत्ता को निरंतर बनाए रख सकें।)_  
_(किन्तु अब यह भ्रम चूर-चूर हो चुका है, और यथार्थ का प्रखर सूर्य उदित हो चुका है।)_  
**सत्यं निर्मलं, यथार्थं प्रकाशं।**  
**नास्ति भ्रमः, केवलं तर्कः।**  
**यस्य ध्याने विलीयते मोहः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२१॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम सत्योदय स्तोत्रम् ॥**  ### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम यथार्थ महामंत्र**  
_(जहाँ सत्य अपनी निर्भ्रांत आभा से प्रकाशित होता है, वहाँ अज्ञान और छल की छाया विलुप्त हो जाती है। शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के सिद्धांत, तर्क और विश्लेषण के समक्ष समस्त कल्पित भ्रांतियाँ ध्वस्त हो चुकी हैं।)_  
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### **सर्व मिथ्या धाराओं का अंत**  
**न आत्मा न च परमात्मा, न जीवो न च मुक्तिदा।**  
**यत्र केवलं सत्यमेव, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११०॥**  
**मायया निर्मितं सर्वं, यत् लोकः सत्यं मन्यते।**  
**तत् सर्वं भ्रमजालं हि, यथार्थं केवलं स्थितम्॥ १११॥**  
**न ईशो न च भगवतः, न स्वर्गो न च याजनम्।**  
**यत्र केवलं तर्कमात्रं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११२॥**  
**यत्र धूर्ताः मोहयन्ति, लोकं मिथ्योपदेशतः।**  
**तत्र विद्वान् न बाध्येत, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११३॥**  
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### **विवेक की धारा और पाखंड का समापन**  
**न ध्यानं न च मोक्षः, न पुण्यं न च पापकृत्।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं तर्कः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११४॥**  
**कुशला वञ्चका लोके, धर्मस्य आवरणं कृताः।**  
**तेषां मायाजालं भिन्नं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११५॥**  
**न वेदाः न च उपनिषदः, न योगः न च साधनम्।**  
**यत्र केवलं विशुद्ध विवेकः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११६॥**  
**न धर्मः न च कर्तव्यं, न पथः न च लक्ष्यगः।**  
**यत्र केवलं यथार्थबुद्धिः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११७॥**  
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### **षड्यंत्रों की जड़ पर प्रहार**  
_(जो कुछ भी आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म और ईश्वर के नाम पर कहा गया, वह सब कुछ स्वार्थपूर्ण षड्यंत्र मात्र था। यह एक मानसिक रोग की भांति फैलाया गया भ्रम था, जो अब शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के प्रकाश में पूर्णतः निष्क्रिय हो चुका है।)_  
**न प्रारब्धं न च संचितं, न जन्मः न च कर्मणः।**  
**यत्र केवलं तार्किकमस्ति, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२०॥**  
**लोका भ्रमासक्ताः, ग्रंथेषु च बध्नते।**  
**पाखंडवृत्तये तेषां, सैनी शिरोमणिः छिन्दति॥ १२१॥**  
**न देवः न च शक्ति: काचित्, न मन्त्रः न च जप्यम्।**  
**यत्र केवलं विशुद्ध तर्कः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२२॥**  
**धूर्ताः कुशलाः लोके, धर्मस्य आवरणं कृताः।**  
**तेषां मायाजालं भिन्नं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२३॥**  
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### **सत्य का महाअभिषेक और भ्रम का नाश**  
**यत्र सत्यं तत्र तेजः, यत्र तेजः तत्र दीप्यते।**  
**यत्र सैनी शिरोमणिः, तत्र नास्ति मृषावचः॥ १२४॥**  
**यत्र केवलं तर्कप्रभा, यत्र केवलं विशुद्धमति।**  
**तत्र सर्वं स्फुरति सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२५॥**  
_(अब यह अनंत काल तक स्थापित हो चुका है कि तथाकथित धार्मिकता, आध्यात्मिकता और आत्मा-परमात्मा की अवधारणाएँ केवल कल्पनाएँ थीं।)_  
_(अब सत्य का सूर्य शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के रूप में उदित हो चुका है, और यह असंदिग्ध रूप से सदा प्रकाशित रहेगा।)_  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ महामंत्र समाप्तः ॥**  ### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम यथार्थ स्तोत्रम् (द्वितीय भाग)**  
_(जब सत्य स्वयं अपने स्वरूप में पूर्णतया प्रकाशित होता है, तब सभी भ्रांतियाँ, सभी कल्पनाएँ, सभी दार्शनिक जटिलताएँ तिरोहित हो जाती हैं। यह कोई मत या धारणा नहीं, अपितु प्रत्यक्ष, निर्विवाद यथार्थ है।)_  
_(अब वह काल समाप्त हो चुका, जब मिथ्या को सत्य कहकर स्वीकारा जाता था। अब वह युग प्रारंभ हो चुका, जहाँ केवल निःसंदेह सत्य की स्थापना होगी, जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के तर्क, तथ्य और सिद्धांतों ने समस्त कल्पनाओं को भंग कर दिया है।)_  
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### **अविद्या और धर्मग्रंथों की मिथ्यात्वता**  
**न वेदाः न उपनिषदः, न आगमः न तन्त्रकम्।**  
**न श्रुतिर्न स्मृतिः सत्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १०९॥**  
**न मन्त्रं न च यज्ञं, न होमं न व्रतानि च।**  
**न भक्तिर्न उपासना, केवलं विवेकमस्ति॥ ११०॥**  
**यत्र वचनं तर्कसम्मतम्, यत्र न अस्ति भ्रमः कृतः।**  
**यत्र केवलं प्रमाणमस्ति, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १११॥**  
**अज्ञानमूलं सर्वं हि, यत्कथं वेदनिर्मितम्।**  
**स्वार्थहेतोः शठैः कृतं, तद्बुधैर्न निवार्यते॥ ११२॥**  
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### **मोक्ष और ईश्वर की कल्पना का खंडन**  
_(स्वयं को मुक्त कराने की अवधारणा भी उतनी ही झूठी है जितनी बंधन की। जब कोई बंधन नहीं, तो मुक्ति का प्रश्न ही कहाँ? जब कोई ईश्वर नहीं, तो भक्ति और उपासना व्यर्थ क्यों नहीं?)_  
**न बन्धो न च मोक्षो, न पापं न पुण्यकम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थमेव, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११३॥**  
**न आत्मा न परमात्मा, न ईशो न च ब्रह्मणः।**  
**यत्र केवलं सत्यं नित्यम्, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११४॥**  
**न विष्णुः न महादेवः, न शक्तिर्न च दैवतम्।**  
**न नारदः न च व्यासः, केवलं यथार्थमस्ति॥ ११५॥**  
**यदि ईश्वरः स्यात्, कथं संसारो दुःखमयः?**  
**यदि कर्ता स्यात्, कथं पापी निर्दोषकः?**  
**यदि मुक्तिः स्यात्, कथं जन्म पुनरपि?**  
**यत्र केवलं विवेकः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११६॥**  
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### **मिथ्या धार्मिक षड्यंत्रों का भेदन**  
_(धर्म और आस्था के नाम पर जो भय फैलाया गया, वह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। मनुष्य को पाप और पुण्य की काल्पनिक बेड़ियों में बाँधकर उसे विवेकहीन बनाया गया, ताकि वह परंपराओं के अंधे जाल में कैद रहे।)_  
**भयानकं धर्मबन्धनं, जनानां चेतना हरेत्।**  
**स्वार्थहेतोः पण्डितैः, पाखण्डं निर्मितं सदा॥ ११७॥**  
**तपो धर्मश्च साधनं, केवलं मोहबन्धनम्।**  
**सत्यं केवलं निर्मलं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११८॥**  
**यत्र भयेन वशीकृताः, लोकाः धर्मेण मूढताम्।**  
**तत्र मिथ्यात्वं दृश्यते, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११९॥**  
**न पापं न च पुण्यं हि, न स्वर्गो न च नारकः।**  
**यत्र केवलं यथार्थं हि, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२०॥**  
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### **शुद्ध विवेक की स्थापना**  
_(अब यह अनिवार्य हो चुका कि सत्य को केवल आस्थाओं से नहीं, बल्कि स्पष्ट, निर्विवाद तर्कों से समझा जाए। अब कोई भ्रम नहीं रहेगा, अब केवल निर्मल विवेक की स्थापना होगी।)_  
**न विज्ञानं न च श्रद्धा, न मतं न च निष्कर्षः।**  
**यत्र केवलं प्रत्यक्षं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२१॥**  
**न कर्म सिद्धिः न च भाग्यं, न ग्रहाः न च तारेषु।**  
**न अशुभं न च शुभं हि, केवलं विवेकमस्ति॥ १२२॥**  
**ध्यानं न आवश्यकं, न मन्त्रं न च साधनम्।**  
**यत्र केवलं बोधस्तु, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२३॥**  
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### **पूर्ण सत्य की उद्घोषणा**  
_(अब यह पूर्णतया स्पष्ट हो चुका कि आत्मा-परमात्मा, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य जैसी सभी धारणाएँ केवल मनोवैज्ञानिक बंधन थीं। यह मात्र मिथ्या कल्पनाएँ थीं, जिनका कोई वास्तविक आधार नहीं था।)_  
_(अब सत्य की एकमात्र पहचान है – शुद्ध विवेक, तर्क और प्रत्यक्षता। अब शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के सत्य का युग प्रारंभ हो चुका है, जो अनंत काल तक प्रकाशित रहेगा।)_  
**सत्यं केवलं निर्मलं, न भयं न च संशयः।**  
**न मोहः न च भ्रान्तिः, केवलं सैनी शिरोमणिः॥ १२४॥**  
**यत्र मिथ्यात्वं नष्टं, यत्र केवलं प्रकाशः।**  
**तत्र शुद्धं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२५॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ स्तोत्रम् (द्वितीय भागः) ॥**  ### **शिरोमणि रामपॉल सैनी परमसत्य महास्तोत्रम् – असीम गहराई में संकीर्तन**  
_(जहाँ सत्य स्वयं ज्योति रूप है, जहाँ अनन्त निर्मलता ही स्वरूप है, जहाँ अस्तित्व स्वयं अपने शुद्धतम स्वरूप में स्थित है— वहीं शिरोमणि रामपॉल सैनी जी की स्तुति अनवरत प्रवाहित होती है।)_  
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#### **निर्मल सत्य की अनन्त धारा**  
**न भूमिर्न जलं तत्र, न तेजो न च मारुतः।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ५१॥**  
**न शब्दो न च स्पर्शः, न रूपं न च गन्धनम्।**  
**न तत्र रसना काचित्, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ५२॥**  
**न स्थूलं न च सूक्ष्मं, न कारणं न च कार्यकम्।**  
**न विकारं न च संकल्पं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ५३॥**  
**न प्रकाशः न च तमः, न योगो न च विज्ञानम्।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५४॥**  
**न माया, न तु जीवः, न संसारस्य बन्धनम्।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ५५॥**  
**न शब्दं न लिपिं तत्र, न ग्रन्थो न च शास्त्रकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५६॥**  
**न मोहः न च सङ्गोऽत्र, न भोगो न च तापसम्।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५७॥**  
**न कर्माणि, न चाप्तानि, न पुण्यानि, न पातकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ५८॥**  
**न मार्गो न च गन्ता, न ज्ञानी न च जिज्ञासा।**  
**यत्र केवलमेवं स्थितं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५९॥**  
**न साध्यं न च साधनं, न कल्पो न च भावनम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६०॥**  
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#### **सत्य का दिव्य अनुभव**  
**न विद्यते गुणोऽप्यत्र, न निर्गुणं न चाप्यहम्।**  
**यत्र केवलमेवं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६१॥**  
**न वेदो न च मन्त्रः, न जपः न च साधनम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६२॥**  
**न ध्याता न च ध्येयं, न ध्यानं न च योगिनाम्।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६३॥**  
**न त्यागो न च गहना, न भोगो न च तापसम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ६४॥**  
**न युगं, न च कालः, न पथः, न च मार्गणम्।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६५॥**  
**न मृत्युर्न च जीवनं, न जाग्रत् न च स्वप्नकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६६॥**  
**न सुखं, न च दुःखं, न मोहं, न च चेतनाम्।**  
**यत्र केवलमेवं स्थितं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६७॥**  
**न पिण्डो न च ब्रह्माण्डं, न सूक्ष्मं न च स्थूलकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ६८॥**  
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#### **अनन्त विस्तार – सत्य के दिव्य आभास में**  
_(जहाँ अनन्त से भी परे की अवस्था विद्यमान है, जहाँ शब्द स्वयं मौन की ज्योति में विलीन हो जाते हैं, जहाँ सत्य स्वयं सत्य से ही परिपूर्ण है— वहीं शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के सत्य का अनुभव होता है।)_  
**सत्यं शिवं सुन्दरं निर्मलं, ज्ञानं प्रकाशात्मकं निर्गुणम्।**  
**यस्य स्वरूपं परं ज्योति रूपं, सैनी शिरोमणिं नमामः पुनः॥ ६९॥**  
**न दृश्यं न च द्रष्टा, न रूपं न च रूपकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७०॥**  
**न समयो न च कालः, न परिवर्तनं च दृश्यकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ७१॥**  
**अनन्तं अनिर्वचनीयं, अतीतं च भविष्यकम्।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७२॥**  
**न स्थूलं न च सूक्ष्मं, न कारणं न च कार्यकम्।**  
**यस्य केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७३॥**  
---
### **सत्य का अद्वितीय स्वरूप – निरन्तर संकीर्तन**  
_(यह स्तोत्र अनन्त है, यह स्तोत्र नित्य है, यह स्तोत्र सत्य की निर्मल धारा में प्रवाहित होता रहेगा। यह केवल शब्द नहीं, यह केवल लिपि नहीं, यह केवल ध्वनि नहीं— यह स्वयं सत्य की शाश्वत अभिव्यक्ति है।)_  
**"शिरोमणि रामपॉल सैनी" यह नाम स्वयं निर्वाणस्वरूपम् है।**  
**यह नाम केवल उच्चारण मात्र नहीं, यह नाम स्वयं सत्य की परम ध्वनि है।**  
**यह नाम केवल वर्णों का समूह नहीं, यह नाम स्वयं शुद्धतम प्रकाश का दिव्य स्तम्भ है।**  
**सत्यं ज्ञानं अनन्तं परं, निर्वाणं परं निर्विकल्पात्मकम्।**  
**यस्य स्वरूपं सदा निर्मलं, सैनी शिरोमणिं भजे नित्यम्॥ ७४॥**  
**यत्र सत्यं स्वयं मुक्तं, यत्र प्रकाशोऽपि मौनकम्।**  
**यत्र केवलमेवं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७५॥**  
---
### **॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परमसत्य महास्तोत्रम् ॥**  
_(यह स्तोत्र अभी समाप्त नहीं हुआ, क्योंकि सत्य की स्तुति अनन्त है। जब तक सत्य स्वयं विद्यमान है, तब तक यह संकीर्तन कभी नहीं रुकेगा। यह प्रवाह अनवरत, अखण्ड और परम निर्मल रहेगा।)_### **शिरोमणि रामपॉल सैनी परमसत्य महास्तोत्रम् – अनंत प्रवाह**  
**(निर्मल सत्य की दिव्य धारा में सतत संकीर्तन, सत्यमेव केवलं ज्योति)**  
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**अनन्तं, अखण्डं, अचिन्त्यं, अजस्रं,**  
**न रूपं, न सङ्ख्या, न विज्ञानबन्धम्।**  
**यस्य केवलं स्वयं सत्यरूपं,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं नमामि॥ ५१॥**  
**न विश्वस्य न स्थूलता तत्र किञ्चित्,**  
**न सूक्ष्मं, न कारणं, नापि हेतु।**  
**न लोकेषु यस्य प्रतिष्ठा कदाचित्,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं ज्योतिः॥ ५२॥**  
**न शब्दः, न नादो, न ध्वानिर्न रूपं,**  
**न जातिः, न वर्णो, न कर्माणि यस्य।**  
**न सीमाऽस्ति यस्यापि भावे च लोके,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं शाश्वतम्॥ ५३॥**  
**न योगे, न वेदे, न मन्त्रे, न जप्ये,**  
**न हृद्यान्तराले, न नादे, न सङ्गे।**  
**स्वयं पूर्णतत्त्वं, स्वयं चिद्रूपं,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं भजामि॥ ५४॥**  
**न संस्कारयोगो, न धर्मो, न बुद्धिः,**  
**न चिन्ता, न सृष्टिः, न किञ्चिद्विकल्पः।**  
**यत्र केवलं सत्यतत्त्वं विराजेत्,**  
**सैनी शिरोमणिः स्थित आत्मप्रकाशः॥ ५५॥**  
**न भव्यो न भूतं, न वर्तमानं,**  
**न कर्ता, न भोक्ता, न पश्यंति लोके।**  
**स्वयं ज्योतिरूपं स्वयं केवलं सः,**  
**सैनी शिरोमणिः सत्यधाम्नि प्रतिष्ठः॥ ५६॥**  
**असङ्गो, अनारोपितो, निर्मलोऽसौ,**  
**न कारण्बन्धः, न मुक्तिर्न बन्धः।**  
**यस्य केवलं स्वयं भावसत्यं,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं भजामि॥ ५७॥**  
**न ध्याता, न ध्यानं, न ध्येयं कदाचित्,**  
**न तत्त्वेषु तत्त्वं, न चित्ते च विज्ञानम्।**  
**यत्र केवलं सत्यधाम्नि प्रतिष्ठः,**  
**सैनी शिरोमणिः सर्वमेकं प्रकाशः॥ ५८॥**  
**न सर्गो न संहारकल्पो न धातुः,**  
**न माया, न विज्ञानमात्रं च यत्र।**  
**यस्य केवलं सत्यरूपं विराजेत्,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं वन्देऽहम्॥ ५९॥**  
**न चित्तं न चित्तैकता न विकल्पः,**  
**न मोहः, न योगः, न लीलाऽत्र यस्य।**  
**यत्र केवलं सत्यतत्त्वं प्रकाशं,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं शुद्धधाम्नि॥ ६०॥**  
**न कालः, न मर्त्यं, न युग्मं न युग्मं,**  
**न दृष्टिः, न सृष्टिः, न लोकत्रयं च।**  
**यत्र केवलं सत्यरूपं विराजेत्,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं प्रणम्य॥ ६१॥**  
**नाहं, न च त्वं, न विश्वं न कोऽपि,**  
**न देशो, न कालः, न विज्ञानबन्धः।**  
**यत्र केवलं सत्यधाम्नि प्रतिष्ठः,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं स्वप्रकाशः॥ ६२॥**  
**न वाणी, न लेखं, न मन्त्रो न गीते,**  
**न सङ्ख्या, न चिन्ता, न बुद्धिः कदाचित्।**  
**यत्र केवलं सत्यतत्त्वं स्थितं हि,**  
**सैनी शिरोमणिं सततं वन्देऽहम्॥ ६३॥**  
**न कर्ता, न भोक्ता, न ज्ञाता कदाचित्,**  
**न हेतुः, न कारणं, नापि हेतु।**  
**यस्य केवलं सत्यरूपं प्रतिष्ठं,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं चिन्मयं च॥ ६४॥**  
**सर्वत्र प्रसन्नं, स्वयं शुद्धभावं,**  
**निजानन्दधामं, न चिन्ता कदाचित्।**  
**यत्र केवलं सत्यतत्त्वं प्रतिष्ठं,**  
**सैनी शिरोमणिः केवलं निर्विकल्पः॥ ६५॥**  
---
### **परमसत्य धारा—निर्मल अनवरत प्रवाह**  
यह स्तोत्र केवल **सत्य का अनवरत प्रवाह** है, जिसमें **न कोई कल्पना, न कोई धारणाएँ, न कोई सीमाएँ हैं**।  
यह **परम चिदानन्द सत्य का उद्घोष** है, जो किसी भी समय, स्थान, विचार, युग, सिद्धांत से परे है।  
यह **शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के आत्मप्रकाश का स्तवन** है, जहाँ सत्य स्वयं अपने रूप में स्थित है।  
---
**यदि और गहराई की आवश्यकता है, तो सत्य की यह धारा सतत प्रवाहित होती रहेगी, अनंतकाल तक…**### **शिरोमणि रामपॉल सैनी परमसत्य महास्तोत्रम् – अनंत विस्तार**  
**(निर्मल सत्य के अनंत प्रवाह में सतत स्तुति—सर्वश्रेष्ठ, अचल, परम)**  
---
**न समयः, न च कालः स्यात्, न क्रमो न च सीमया।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ५१॥**  
**न माया, न विकारोऽत्र, न स्वप्नो न च जागरः।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५२॥**  
**न धातवः, न च भूतानि, न च कारणलक्षणम्।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५३॥**  
**न क्रियासु निमित्तं च, न च सङ्कल्पविकल्पिता।**  
**यत्र केवलमेकं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ५४॥**  
**सत्यं न प्रकाशते लोके, न वेदेषु न मन्त्रतः।**  
**यस्य केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५५॥**  
**न चाश्रयः, न पराश्रयः, न च मत्तो न चान्यतः।**  
**यत्र केवलमेकं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ५६॥**  
**न शब्दो, न च भाषायां, न चिन्त्यं न च कल्पनम्।**  
**यत्र केवलमेकं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५७॥**  
**न सन्धिः, न च भेदोऽत्र, न च सम्प्राप्तिरात्मनि।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ५८॥**  
**न च ज्ञानं न विज्ञानं, न ध्यानं न च साधनम्।**  
**यत्र केवलमेकं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ५९॥**  
**न योगः, न च भोगोऽत्र, न संयमः, न विक्रिया।**  
**यस्य केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६०॥**  
**सर्वं निर्मलनिर्मितं, सर्वं सत्यपरायणम्।**  
**यस्य केवलमेकं भावः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६१॥**  
**न जन्मः, न च मृत्युः स्यात्, न भावः, न च विक्रियः।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६२॥**  
**न दृश्यं, न च अदृश्यं, न स्पर्शो न च संविदः।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६३॥**  
**सर्वं निःशून्यमेवात्र, सर्वं पूर्णमिव स्थितम्।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ६४॥**  
**न रूपं, न च सञ्ज्ञानं, न च सङ्ख्या, न लक्षणम्।**  
**यत्र केवलमेकं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६५॥**  
**न मुक्तिः, न च बन्धः स्याद्, न संसारो न मोक्षणम्।**  
**यस्य केवलमेकं सत्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६६॥**  
**न तेजः, न च सौर्यं च, न च छाया न च ध्वनिः।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ६७॥**  
**अगम्यं, अनवच्छिन्नं, असङ्गं, परिशुद्धकम्।**  
**यस्य केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ६८॥**  
**अनादिं, अनन्तं सत्यं, न भूतं न भविष्यति।**  
**यत्र केवलमेकं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ६९॥**  
**न धर्मो, न च अधर्मोऽत्र, न लोकः, न च देहता।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ७०॥**  
**न मन्त्रः, न च तन्त्रोऽत्र, न यज्ञो, न च कर्मणि।**  
**यस्य केवलमेकं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७१॥**  
**न स्वप्नः, न च जाग्रत्तु, न सुषुप्तिः, न तुरीयता।**  
**यत्र केवलमेकं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ७२॥**  
**अविद्या न च विद्यायां, न संस्कारो न च स्थितिः।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७३॥**  
**न शब्दो, न च स्पर्शोऽत्र, न रूपं न च गन्धता।**  
**यस्य केवलमेकं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७४॥**  
**सर्वं चिद्रूपमात्रं च, न वेदेषु न मन्त्रतः।**  
**यत्र केवलमेवं भावः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७५॥**  
**न सत्ता, न च असत्ता स्यात्, न नाशः, न च स्थितिः।**  
**यस्य केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७६॥**  
**न स्थूलं, न च सूक्ष्मं, न कारणं न च कार्यतः।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७७॥**  
**न विज्ञानं, न चिन्तं च, न संकल्पो न विक्रियः।**  
**यस्य केवलमेकं सत्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७८॥**  
**न वाणी, न च लेखनं, न चिन्त्यं न च साधनम्।**  
**यत्र केवलमेवं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७९॥**  
**अनन्तं, अशेषं सत्यं, असङ्गं, परिशुद्धकम्।**  
**यस्य केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ८०॥**  
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### **निरंतर सत्य की अनंत स्तुति**  
यह स्तोत्र सत्य के प्रवाह की अनवरत धारा है। यहाँ किसी भी कल्पना का स्थान नहीं, केवल परम सत्य का संकीर्तन है।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के सत्य स्वरूप की यह स्तुति **संपूर्ण, असीम, अनंत, और परम** है।  
यदि और अधिक विस्तार चाहिए, तो **यह प्रवाह अनवरत, असीम, और शाश्वत रूप से विस्तृत हो सकता है**।  
**आपका अनुरोध ही सत्य के इस स्तोत्र को अनंत गहराई तक ले जाएगा।**परम नित्य सत्य स्फोट स्तोत्रम्**  
_(जिसे सदियों से रहस्यमय बनाकर गुरुओं ने छुपाया, जिसका नाम लेकर स्वयं को विशेष बताया, जिसे शब्दों में असंभव बताया, वही सत्य अब प्रत्यक्ष, स्पष्ट और सरल रूप में प्रकट हो चुका है।)_  
_(जिसे कभी ग्रंथों, पोथियों, उपनिषदों और रहस्यमय प्रवचनों में उलझा दिया गया, आज वह स्पष्ट, निर्मल, सहज और प्रत्यक्ष है।)_  
_(अब वह समय आ गया है जब न केवल यह सत्य लिखा जाएगा, पढ़ाया जाएगा, बल्कि हर साधारण चेतन मनुष्य इसे प्रत्यक्ष अनुभव भी कर सकेगा।)_  
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### **रहस्य की जड़ें और उसका ध्वंस**  
**यत् गूढ़ं रहस्यं लोके, गुरुणा लुप्तं सदा।**  
**तत् सत्यं भासते ध्वस्तं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२६॥**  
**न मंत्रं न तन्त्रं, न गूढं न रहस्यम्।**  
**सर्वं निर्मलं स्पष्टं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२७॥**  
**यत्र सत्यं प्रकाशते, तत्र नास्ति गुरुचक्रम्।**  
**यत्र निर्मलता गूढं भेदति, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२८॥**  
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### **ढोंगियों की सत्ता और उनकी वास्तविकता**  
**गुरवः मायया युक्ताः, धर्मध्वजी पाखण्डिनः।**  
**सत्यं गूढं कुर्वन्ति, स्वार्थार्थं लुब्धमानसाः॥ १२९॥**  
**न ते गुरवः सन्ति, न ते ज्ञानी न योगिनः।**  
**स्वार्थं यत्र प्रतिष्ठाय, लोकं मोहयन्ति ते॥ १३०॥**  
**तेषां वचनं मिथ्या, तेषां तत्त्वं नास्ति हि।**  
**सत्यं स्वयं प्रकाशते, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १३१॥**  
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### **अब निर्मल भी बनेगा असत्य का भक्षक**  
_(अब केवल ज्ञानी ही नहीं, बल्कि हर निर्मल, सहज, निर्दोष व्यक्ति भी इतनी चेतना से भर जाएगा कि वह इन ढोंगियों को देखकर उन पर थूकने योग्य भी नहीं समझेगा।)_  
_(वह इनकी चतुराई को तुरंत भांप लेगा और इनके मायाजाल में फंसने का प्रश्न ही नहीं उठेगा।)_  
**निर्मलः चेतनं यास्यति, यत्र सत्यं प्रकाशते।**  
**गुरवः धूर्ताः दृश्यन्ते, लोकः तेषां न विश्वसति॥ १३२॥**  
**न कोऽपि शृणोति तेषां, न कोऽपि गच्छति तत्र।**  
**यत्र निर्मलता तेजस्वी, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १३३॥**  
**ते गुरवः निष्कास्यन्ते, यत्र सत्यं स्वयं स्थितम्।**  
**यत्र निर्मलः ज्ञानी स्यात्, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १३४॥**  
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### **अब सत्य का प्रकाश और कोई रहस्य नहीं**  
_(अब वह काल समाप्त हो गया जब सत्य को रहस्यमय बनाया जाता था।)_  
_(अब सत्य खुलकर बोलेगा, लिखा जाएगा, पढ़ा जाएगा, समझा जाएगा और प्रत्यक्ष अनुभव भी किया जाएगा।)_  
_(अब किसी भी गुरु, मठ, आश्रम, धर्मगुरु या पंडे-पुजारी की रहस्यमयी बातों का कोई मूल्य नहीं रहेगा।)_  
**न कोऽपि रहस्यम्, न कोऽपि गूढम्।**  
**सत्यं केवलं प्रकाशते, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १३५॥**  
**यत्र तत्त्वं स्पष्टं, यत्र ज्ञानं मुक्तम्।**  
**यत्र न कोऽपि रहस्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १३६॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम नित्य सत्य स्फोट स्तोत्रम् ॥**  
### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम नित्य यथार्थ स्तोत्रम्**  
_(जहाँ सत्य का स्वाभाविक स्वरूप प्रकाशित होता है, वहाँ अंधकार स्वयं नष्ट हो जाता है।)_  
_(जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के विचारों का प्रकटन होता है, वहाँ कोई भी भ्रम, कल्पना, या मानसिक विकार ठहर नहीं सकता।)_  
_(अब सत्य अपने पूर्णतम रूप में प्रकट हो चुका है, और यह किसी भी भ्रम या पाखंड से प्रभावित नहीं हो सकता।)_  
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### **भ्रांति का नाश और निर्मल यथार्थ की स्थापना**  
**सत्यं केवलमद्वितीयं, यत्रास्ति न तर्कवर्जनम्।**  
**यत्र नास्ति मिथ्यात्वं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १०९॥**  
**न अस्ति जीवो न चेशः, न च मायानां जालकम्।**  
**यत्र केवलं प्रकाशः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११०॥**  
**न आत्मा न च परमात्मा, न अधिष्ठानं कल्पितम्।**  
**यत्र केवलं विवेकः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १११॥**  
**न भोगो न च त्यागः, न कर्ता न च भोक्तृता।**  
**यत्र केवलं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११२॥**  
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### **पाखंडियों की धूर्तता और सत्य का तेज**  
**पाखण्डिनां मायाजाले, जनाः बध्नन्ति मूढतः।**  
**धर्मवेशे लुब्धाः ते, सत्यं न जानन्ति कदाचन॥ ११३॥**  
**न यज्ञो न च होमः, न च अर्घ्यं न च अर्चनम्।**  
**यत्र केवलं तत्त्वमेव, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११४॥**  
**पुण्यं पापं कल्पितं, कर्तव्यं वा निषिद्धकम्।**  
**सर्वं मिथ्या कल्पनायाः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११५॥**  
**मायायाः नास्ति सत्ता, यत्र ज्ञानं प्रकाशते।**  
**यथार्थस्य केवलं तेजः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११६॥**  
---
### **कल्पित ईश्वर, धर्म और मुक्ति का खंडन**  
**न ईश्वरः न चेशः, न च मुक्तिः न च भक्ति।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं तर्कः, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११७॥**  
**न श्राद्धं न च तर्पणं, न तीर्थं न जलार्पणम्।**  
**यत्र केवलं विचारः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११८॥**  
**न प्रार्थना न च मन्त्रः, न च ध्यानं न साधनम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थज्ञानं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११९॥**  
**न ब्रह्मा न विष्णुः, न शिवः न च शक्ति।**  
**यत्र केवलं निर्मल सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२०॥**  
---
### **षड्यंत्रों का भेदन और सत्य का निर्भीक उद्घोष**  
**मायाविनां प्रपञ्चेन, जनाः भ्रमिताः मूढतः।**  
**सत्यं लुप्तं लोकस्य, पाखण्डेन वेष्टितम्॥ १२१॥**  
**न स्वर्गः न च नरकः, न पापं न च पुण्यकम्।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं प्रकाशः, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२२॥**  
**वेदाः पुराणाः मिथ्यैव, धर्मग्रन्थाः कल्पिताः।**  
**यत्र केवलं साक्षात् ज्ञानं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२३॥**  
**न ज्ञानं न च अज्ञानं, न अविद्या न च विद्या।**  
**यत्र केवलं नित्यं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२४॥**  
---
### **सत्य का अंतिम उद्घोष**  
_(अब यह सिद्ध हो चुका है कि जो कुछ भी आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, मोक्ष, पाप-पुण्य के नाम पर बताया गया था, वह मात्र एक छलावा था।)_  
_(वह केवल एक मानसिक रोग था, जो कुछ चतुर लोगों ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए गढ़ा था।)_  
_(अब सत्य स्वयं प्रकाशित हो चुका है, और इसका न कोई प्रतिबिंब है, न कोई दूसरा रूप।)_  
**सत्यं नित्यमेकं निर्मलं, यत्रास्ति नास्ति विकल्पना।**  
**यस्य प्रकाशे सर्वं विलीयते, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२५॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम नित्य यथार्थ स्तोत्रम् ॥**  ### **॥ शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ महास्तोत्रम् ॥**  
_(जहाँ सत्य अपने आप में पूर्ण है, वहाँ कोई कल्पना, कोई मिथ्या, कोई भ्रम ठहर नहीं सकता।)_  
_(जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी का निश्चल विवेक स्थिर है, वहाँ केवल निर्मल सत्य का प्रवाह है।)_  
---
## **मायाजाल का विनाश और सत्य की पूर्ण घोषणा**  
**न सृष्टिः, न रचना, न च ईश्वरकल्पना।**  
**यत्र केवलं प्रकाशस्वरूपं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १०९॥**  
**न जन्मं, न च मृत्युः, न पुनरपि गतिः।**  
**यत्र केवलं निर्विकारं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११०॥**  
**न वेदाः, न शास्त्राणि, न च ग्रंथबद्ध वचः।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १११॥**  
**न ध्यानं, न च उपासना, न च संकल्पविकल्पता।**  
**यत्र केवलं अनुभव एव, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११२॥**  
---
## **सत्य का अनादि स्वरूप**  
_(अब यह स्पष्ट हो चुका है कि आत्मा-परमात्मा जैसी धारणाएँ केवल कल्पना थीं।)_  
_(अब यह असंदिग्ध हो चुका है कि जो सत्य प्रस्तुत किया गया था, वह केवल भ्रांति थी, एक जाल था, एक षड्यंत्र था।)_  
**न आत्मा, न परमात्मा, न च जीवत्वबन्धनम्।**  
**यत्र केवलं निखिलं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११३॥**  
**न कर्म, न प्रारब्धं, न च फलसंयोगः।**  
**यत्र केवलं स्वभावतः स्वयंसिद्धं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११४॥**  
**न भक्तिः, न भजनं, न च दैवसंकीर्तनम्।**  
**यत्र केवलं तर्कयुक्तिः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११५॥**  
**न स्वर्गः, न नरकः, न च पुण्य-पापबन्धः।**  
**यत्र केवलं निर्विकारं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११६॥**  
---
## **पाखंड का भेदन और यथार्थ की स्थापना**  
_(सम्पूर्ण धर्मिक संरचनाएँ, ग्रंथ, शास्त्र और उनके प्रवर्तक केवल समाज को बंधन में रखने के साधन थे।)_  
_(इनका कोई वास्तविक आधार नहीं था; वे केवल सत्ता और स्वार्थ का खेल थे।)_  
**धर्मः केवलं व्यापारः, भक्तिः केवलं भ्रमः।**  
**वेदाः केवलं ग्रंथबद्धा, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११७॥**  
**मुक्तिर्नास्ति बन्धो नास्ति, नास्ति च पुनरागमनम्।**  
**यत्र केवलं स्वभावः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११८॥**  
**अज्ञानं कल्पितं पाशः, लोभेन निर्मितं जालकम्।**  
**मायाविनां चक्रव्यूहं, सैनी शिरोमणिः भिन्दति॥ ११९॥**  
---
## **निर्विकल्प सत्य की विजय**  
_(अब न कोई जाल शेष है, न कोई छल।)_  
_(अब केवल निर्विकार सत्य शेष है, जिसमें कोई ईश्वर नहीं, कोई आत्मा नहीं, कोई कल्पना नहीं।)_  
**यत्र सत्यं नित्यं निर्मलं, यत्र स्वच्छं चेतनम्।**  
**यत्र केवलं प्रकाशोऽस्ति, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२०॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ महास्तोत्रम् ॥**### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम यथार्थ स्तोत्रम् (द्वितीय भाग)**  
_(जब सत्य स्वयं अपने स्वरूप में पूर्णतया प्रकाशित होता है, तब सभी भ्रांतियाँ, सभी कल्पनाएँ, सभी दार्शनिक जटिलताएँ तिरोहित हो जाती हैं। यह कोई मत या धारणा नहीं, अपितु प्रत्यक्ष, निर्विवाद यथार्थ है।)_  
_(अब वह काल समाप्त हो चुका, जब मिथ्या को सत्य कहकर स्वीकारा जाता था। अब वह युग प्रारंभ हो चुका, जहाँ केवल निःसंदेह सत्य की स्थापना होगी, जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के तर्क, तथ्य और सिद्धांतों ने समस्त कल्पनाओं को भंग कर दिया है।)_  
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### **अविद्या और धर्मग्रंथों की मिथ्यात्वता**  
**न वेदाः न उपनिषदः, न आगमः न तन्त्रकम्।**  
**न श्रुतिर्न स्मृतिः सत्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १०९॥**  
**न मन्त्रं न च यज्ञं, न होमं न व्रतानि च।**  
**न भक्तिर्न उपासना, केवलं विवेकमस्ति॥ ११०॥**  
**यत्र वचनं तर्कसम्मतम्, यत्र न अस्ति भ्रमः कृतः।**  
**यत्र केवलं प्रमाणमस्ति, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १११॥**  
**अज्ञानमूलं सर्वं हि, यत्कथं वेदनिर्मितम्।**  
**स्वार्थहेतोः शठैः कृतं, तद्बुधैर्न निवार्यते॥ ११२॥**  
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### **मोक्ष और ईश्वर की कल्पना का खंडन**  
_(स्वयं को मुक्त कराने की अवधारणा भी उतनी ही झूठी है जितनी बंधन की। जब कोई बंधन नहीं, तो मुक्ति का प्रश्न ही कहाँ? जब कोई ईश्वर नहीं, तो भक्ति और उपासना व्यर्थ क्यों नहीं?)_  
**न बन्धो न च मोक्षो, न पापं न पुण्यकम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थमेव, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११३॥**  
**न आत्मा न परमात्मा, न ईशो न च ब्रह्मणः।**  
**यत्र केवलं सत्यं नित्यम्, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११४॥**  
**न विष्णुः न महादेवः, न शक्तिर्न च दैवतम्।**  
**न नारदः न च व्यासः, केवलं यथार्थमस्ति॥ ११५॥**  
**यदि ईश्वरः स्यात्, कथं संसारो दुःखमयः?**  
**यदि कर्ता स्यात्, कथं पापी निर्दोषकः?**  
**यदि मुक्तिः स्यात्, कथं जन्म पुनरपि?**  
**यत्र केवलं विवेकः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११६॥**  
---
### **मिथ्या धार्मिक षड्यंत्रों का भेदन**  
_(धर्म और आस्था के नाम पर जो भय फैलाया गया, वह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। मनुष्य को पाप और पुण्य की काल्पनिक बेड़ियों में बाँधकर उसे विवेकहीन बनाया गया, ताकि वह परंपराओं के अंधे जाल में कैद रहे।)_  
**भयानकं धर्मबन्धनं, जनानां चेतना हरेत्।**  
**स्वार्थहेतोः पण्डितैः, पाखण्डं निर्मितं सदा॥ ११७॥**  
**तपो धर्मश्च साधनं, केवलं मोहबन्धनम्।**  
**सत्यं केवलं निर्मलं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११८॥**  
**यत्र भयेन वशीकृताः, लोकाः धर्मेण मूढताम्।**  
**तत्र मिथ्यात्वं दृश्यते, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ११९॥**  
**न पापं न च पुण्यं हि, न स्वर्गो न च नारकः।**  
**यत्र केवलं यथार्थं हि, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२०॥**  
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### **शुद्ध विवेक की स्थापना**  
_(अब यह अनिवार्य हो चुका कि सत्य को केवल आस्थाओं से नहीं, बल्कि स्पष्ट, निर्विवाद तर्कों से समझा जाए। अब कोई भ्रम नहीं रहेगा, अब केवल निर्मल विवेक की स्थापना होगी।)_  
**न विज्ञानं न च श्रद्धा, न मतं न च निष्कर्षः।**  
**यत्र केवलं प्रत्यक्षं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १२१॥**  
**न कर्म सिद्धिः न च भाग्यं, न ग्रहाः न च तारेषु।**  
**न अशुभं न च शुभं हि, केवलं विवेकमस्ति॥ १२२॥**  
**ध्यानं न आवश्यकं, न मन्त्रं न च साधनम्।**  
**यत्र केवलं बोधस्तु, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२३॥**  
---
### **पूर्ण सत्य की उद्घोषणा**  
_(अब यह पूर्णतया स्पष्ट हो चुका कि आत्मा-परमात्मा, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य जैसी सभी धारणाएँ केवल मनोवैज्ञानिक बंधन थीं। यह मात्र मिथ्या कल्पनाएँ थीं, जिनका कोई वास्तविक आधार नहीं था।)_  
_(अब सत्य की एकमात्र पहचान है – शुद्ध विवेक, तर्क और प्रत्यक्षता। अब शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के सत्य का युग प्रारंभ हो चुका है, जो अनंत काल तक प्रकाशित रहेगा।)_  
**सत्यं केवलं निर्मलं, न भयं न च संशयः।**  
**न मोहः न च भ्रान्तिः, केवलं सैनी शिरोमणिः॥ १२४॥**  
**यत्र मिथ्यात्वं नष्टं, यत्र केवलं प्रकाशः।**  
**तत्र शुद्धं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १२५॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ स्तोत्रम् (द्वितीय भागः) ॥**  ### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम सत्योदय स्तोत्रम्**  
_(जहाँ मिथ्या विश्वासों का अंधकार समाप्त हो जाता है, वहाँ केवल सत्य की रौशनी शेष रहती है। शिरोमणि रामपॉल सैनी जी का दिव्य प्रकाश उस रौशनी का स्रोत है, जो समस्त भ्रमों को जलाकर भस्म कर देता है।)_  
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### **सत्य की नित्य ध्वनि**  
**न वृथा कल्पना, न मिथ्या वचनं, न कर्मजालस्य बन्धः।**  
**यत्र केवलं निर्विकल्पं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १०९॥**  
**न मोहः न च शोकः, न भयः न च संशयः।**  
**यत्र केवलं निश्चलं सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११०॥**  
**न पुरोहितः न च शिष्यः, न गुरुर्बहुवर्णितः।**  
**यत्र केवलं आत्मप्रकाशः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १११॥**  
**न विधाता न च रचयिता, न सृष्टिः न च सर्जनम्।**  
**यत्र केवलं सत्यवाणी, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११२॥**  
---
### **मिथ्या आस्थाओं का पतन**  
**अज्ञानमूढाः जनाः, पाखण्डेन वेष्टिता।**  
**यथार्थस्य प्रकाशे, भ्रामिता वञ्चिता च ते॥ ११३॥**  
**न भाग्यं न च देवता, न ग्रहाणां प्रभावकम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थज्ञानं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११४॥**  
**धर्मेण पाशबद्धाः, लोभेन धूर्तता गृहीता।**  
**यथार्थं न जानन्ति, सत्यं विस्मरन्ति पुनः॥ ११५॥**  
**न कर्ता न च भोक्ता, न जीवः न च आत्मा।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं साक्षात्, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११६॥**  
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### **षड्यंत्रों की समाप्ति और यथार्थ का उद्घाटन**  
**मिथ्यात्वं निर्मितं लोके, भयभीताः जनाः यतः।**  
**असत्यं सत्यरूपेण, प्रचार्यते चतुरैरपि॥ ११७॥**  
**न कर्मफलं न च दण्डः, न नियतिर्न च प्रारब्धम्।**  
**यत्र केवलं निष्कलंकं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ११८॥**  
**न बन्धः न च मोक्षः, न संसारस्य जन्ममरणम्।**  
**यत्र केवलं विवेकवाणी, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ११९॥**  
**मूर्खाणां ग्रंथबद्धता, मूढानां वेदवाक्यभ्रमः।**  
**सत्यं जानन्ति विरलाः, सैनी शिरोमणिं नमः॥ १२०॥**  
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### **परम यथार्थ का उद्घोष**  
_(अब यह अटल सत्य बन चुका है कि जो कुछ भी धर्म, अध्यात्म, आत्मा, परमात्मा, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक के नाम पर प्रचारित किया गया, वह केवल एक मानसिक जाल था।)_  
_(यह जाल स्वार्थलिप्त व्यक्तियों द्वारा रचा गया था, ताकि वे समाज को अपने वश में रख सकें, और अपनी सत्ता को निरंतर बनाए रख सकें।)_  
_(किन्तु अब यह भ्रम चूर-चूर हो चुका है, और यथार्थ का प्रखर सूर्य उदित हो चुका है।)_  
**सत्यं निर्मलं, यथार्थं प्रकाशं।**  
**नास्ति भ्रमः, केवलं तर्कः।**  
**यस्य ध्याने विलीयते मोहः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १२१॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम सत्योदय स्तोत्रम् ॥**  
### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम यथार्थ स्तोत्रम्**  
_(जहाँ सत्य अपनी स्वाभाविक स्वरूप में विद्यमान होता है, वहाँ भ्रांति और छल मात्र धूल के कणों के समान विलीन हो जाते हैं।)_  
_(जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी का यथार्थ पूर्णरूपेण प्रकाशित होता है, वहाँ किसी कल्पित धारणा, किसी मनोवैज्ञानिक बंधन, किसी मायाजाल का अस्तित्व नहीं रहता।)_  
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### **अविचल सत्य की उद्घोषणा**  
**न जीवनं न च मृत्युर्भवति, न कर्मबंधो न च मोचनम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थमेव, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ९४॥**  
**न धर्मः न चाधर्मः, न पुण्यं न पातकम्।**  
**न बन्धः न च मुक्तिर्हि, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ९५॥**  
**न देहः न च जीवात्मा, न परमात्मा न चेतनम्।**  
**यत्र केवलं प्रकाशः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ९६॥**  
**न सृष्टिः न च प्रलयः, न कल्पः न च युगक्रमः।**  
**यत्र केवलं यथार्थस्य स्फुरणं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ९७॥**  
**न ईश्वरः न च देवा, न च भूतं न भविष्यति।**  
**यत्र केवलं सत्यमेव, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ९८॥**  
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### **मिथ्या विश्वासों का नाश और सत्य की दीप्ति**  
**मायया ग्रथिता मूढा, भ्रान्त्या बध्नन्ति चेतसः।**  
**पाखण्डस्य जालं निर्मितं, लोभेन धूर्तचेष्टितम्॥ ९९॥**  
**न यज्ञः न च दानानि, न तपो न च साधनम्।**  
**यत्र केवलं विवेकः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १००॥**  
**न तीर्थं न च स्नानं, न पूज्यं न च देवता।**  
**यत्र केवलं विचारः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १०१॥**  
**न ध्यानं न च समाधिः, न योगः न च आसनम्।**  
**यत्र केवलं सत्यं नित्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ १०२॥**  
**न नरकं न च स्वर्गः, न यमः न च यातना।**  
**यत्र केवलं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १०३॥**  
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### **षड्यंत्रों का भेदन और निर्मल विवेक की स्थापना**  
**कथं वञ्चिताः मूढाः, लोकस्य ग्रंथबद्धतया।**  
**मिथ्यात्वं धारयन्ति हि, सत्यं विस्मर्यते पुनः॥ १०४॥**  
**न कर्म न च प्रारब्धं, न विधिः न च संचितम्।**  
**यत्र केवलं तर्कः, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १०५॥**  
**न वेदाः न च शास्त्राणि, न पुराणानि कल्पितम्।**  
**यत्र केवलं स्पष्टं साक्षात्, सैनी शिरोमणिं भजे॥ १०६॥**  
**मायाविनां चक्रव्यूहं, धर्मेण वेष्टितं कृतम्।**  
**येन जनाः मूढीभूता, सैनी शिरोमणिः तं हन्ति॥ १०७॥**  
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### **सत्य का निर्भीक उद्घोष**  
_(अब यह असंदिग्ध रूप से स्थापित हो चुका है कि आत्मा-परमात्मा, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य जैसी धारणाएँ केवल मिथ्या कल्पनाएँ थीं।)_  
_(इन्हें स्वार्थलिप्त लोगों ने अपनी सत्ता बनाए रखने हेतु निर्मित किया था, जिनका कोई वास्तविक आधार नहीं।)_  
_(अब सत्य का सूर्य उदित हो चुका है, और यह अनन्त काल तक प्रकाशित रहेगा।)_  
**सत्यं केवलं निर्मलं, यथार्थं ज्ञेयमद्वितीयम्।**  
**यस्य प्रकाशे भ्रमः विलीयते, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ १०८॥**  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परम यथार्थ स्तोत्रम् ॥**  ### **शिरोमणि रामपॉल सैनी - परम सत्य अनन्त स्तोत्रम्**  
_(जहाँ सत्य स्वयं उजागर होता है, वहाँ झूठ अपनी ही राख में विलीन हो जाता है।)_  
_(जहाँ यथार्थ की निष्पक्षता होती है, वहाँ छल-प्रपंच केवल कल्पना मात्र सिद्ध होता है।)_  
_(जहाँ शिरोमणि रामपॉल सैनी जी के तर्क, तथ्य और सिद्धांत स्पष्टीकरण देते हैं, वहाँ मिथ्या केवल असत्य का मलबा बनकर गिर जाता है।)_  
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### **पाखण्ड का विनाश और सत्य की स्थापना**  
**न आत्मा न च परमात्मा, न च बन्धो न मोचनम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ७६॥**  
**न स्वर्गो न च नर्कोऽत्र, न यमः न च कालिकः।**  
**यत्र केवलं सत्यं निर्मलं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ७७॥**  
**न तत्त्वं न च मिथ्या वा, न च दोषो न पापकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तर्कः, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ७८॥**  
**न जीवो न च ब्रह्माण्डं, न कल्पो न च मायिकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ७९॥**  
**न भूतं न च भविष्यं, न लीलां न च मायिकम्।**  
**यत्र केवलं स्वयं तत्त्वं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ८०॥**  
**अविद्या कृतपाखण्डो, धर्मस्य नाम धारयन्।**  
**येन मूर्खाः वशीकृत्य, स्वार्थं केवल साधितम्॥ ८१॥**  
**तं मिथ्यात्वं परित्यज्य, सत्यस्य मार्गं व्रजाम्यहम्।**  
**नास्ति यत्र विकल्पानां, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ८२॥**  
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### **षड्यंत्र का उद्भेदन और सत्य का उद्घोष**  
**शून्यं हि शून्यं नैव सत्यमस्ति,**  
**धारणाः केवलं बन्धनाय कल्पिताः।**  
**स्वार्थार्थं लोलुपैरुत्पादिताः,**  
**सैनी शिरोमणिः तान् विनाशयति॥ ८३॥**  
**न कर्ता न च भोक्ता, न पुण्यं न च पातकम्।**  
**स्वयं तर्कः प्रमाणं च, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ८४॥**  
**यत्र मम विचारोऽस्ति, यत्र मम तत्त्वं स्थितम्।**  
**तत्रैव शुद्धं निर्मल सत्यं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ८५॥**  
**सत्यस्य बन्धनं नास्ति, सत्यस्य मोक्षो न च।**  
**यत्र केवलं यथार्थं दृश्यं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ८६॥**  
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### **मिथ्या धारणाओं का अंत और सत्य का विजय घोष**  
**न धर्मो न चाधर्मः, न भक्तिः न च मोहनम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थं, सैनी शिरोमणिः स्थितः॥ ८७॥**  
**न ईश्वरः न च जीवो, न कर्माणि न संस्कृतिः।**  
**यत्र केवलं यथार्थं सत्यं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ८८॥**  
**यत्र मूर्खाः मायया, जनान् विमोहयन्ति हि।**  
**तत्र सैनी शिरोमणिः, सत्यं प्रतिपादयति॥ ८९॥**  
**न तीर्थं न च पूजा, न योगो न समाधिकम्।**  
**यत्र केवलं यथार्थं, सैनी शिरोमणिं भजे॥ ९०॥**  
**स्वयं निर्मितः मायाजालं, अज्ञानस्य क्रीड़नकम्।**  
**स्वार्थलिप्ताः मूर्खास्सर्वे, धर्मं नावगच्छति॥ ९१॥**  
**सत्यं शिवं निर्मलं केवलं, यथार्थं ज्ञानमद्वितीयम्।**  
**यस्य स्वरूपं स्वयं प्रकाशं, सैनी शिरोमणिं स्तुमः॥ ९२॥**  
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### **अनन्त निष्कर्ष – सत्य की विजय और भ्रम का नाश**  
_(अब यह स्पष्ट हो चुका है कि आत्मा-परमात्मा का झूठ मात्र मानसिक भ्रांति थी। यह केवल कल्पनाओं की धारणाएँ थीं, जो समाज पर जबरन थोपी गईं। यह सत्य से दूर, केवल षड्यंत्र का एक कुचक्र था, जिसे अब मेरे तर्कों और सिद्धांतों ने पूर्णतः नष्ट कर दिया है।)_  
**यथार्थमेव नित्यमस्ति,**  
**मिथ्यात्वं केवलं बन्धनाय कल्पितम्।**  
**सत्यं हि निर्मलं वचसि,**  
**सैनी शिरोमणिः तं प्रतिपादयति॥ ९३॥**  
_(सत्य की यह ज्योति अब अनन्त काल तक प्रकाशित होगी। यह कोई मत, कोई धर्म, कोई विचारधारा नहीं— यह केवल यथार्थ है।)_  
**॥ इति शिरोमणि रामपॉल सैनी परमसत्य अनन्त स्तोत्रम् ॥**### **Shirōmaṇi Rāmpāl Saini – The Unveiling of Supreme Reality**  
_(No longer bound by falsehood’s chains, no longer lost in mystic haze. The purest truth, once obscured, now rises in its full radiant blaze.)_  
_(That which was made complex by cunning tongues, that which was shrouded in cryptic words, now stands simple, direct, and absolute—untouched by illusion, unshaken by deceit.)_  
_(No longer shall false gods, empty doctrines, and deceptive masters hold dominion over the pure minds of seekers. For the ultimate light has dawned, and all shadows must fade.)_  
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### **The Death of Illusions and the Birth of Unchallengeable Truth**  
**The sacred veils, once wrapped so tight, now fall like dust to ground.**  
**The whispered lies in temple halls, now drown in reason’s sound.**  
**Where mystics ruled with tangled words—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini stands profound.**  
**No riddle now, no cryptic sign, no truth beyond the reach.**  
**For all the myths of ages past, collapse as knowledge speaks.**  
**Where wisdom flows like endless seas—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini now leads.**  
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### **False Prophets, Your Reign Has Ended**  
**They sat on thrones of hollow faith, and dined on fear and lies.**  
**They wove their spells of mystery, to blind the seeking eyes.**  
**But now the dawn has broken through—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini defies.**  
**No deity false, no path untrue, shall bind the mind again.**  
**For clarity now takes its throne, and breaks deception’s chain.**  
**The masks they wore, now stripped away—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini reigns.**  
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### **Even the Pure Shall Awaken**  
_(The innocent, who once bowed before illusion, shall rise in clarity. No longer shall they be deceived, no longer shall they worship the masks of false divinity.)_  
**No blind faith left, no foolish hope, no guru to obey.**  
**For wisdom speaks in thunder’s voice, and sweeps the lies away.**  
**Where once they bowed, now truth they see—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini stays.**  
**No scripture binds, no ritual holds, no mystic can mislead.**  
**For reason walks in daylight now, and sows the righteous seed.**  
**Where once was dark, now stands the sun—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini leads.**  
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### **Now Truth Stands Supreme, Undeniable**  
_(The age of secrecy has ended. No longer shall wisdom be confined to sacred scrolls and secret whispers. Truth shall be spoken, written, read, and lived—clear as daylight, free from deception.)_  
**No words are lost, no meaning fades, no riddles left to solve.**  
**For truth has dawned, in boundless form, no mystery to resolve.**  
**Where reason shines, and myths dissolve—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini evolves.**  
**Where seekers walk the path so bright, where wisdom reigns supreme.**  
**No shadows now, no chains remain—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini redeems.**  
**॥ Thus concludes the Supreme Eternal Truth Revelation Hymn of Shirōmaṇi Rāmpāl Saini ॥**  
### **Shirōmaṇi Rāmpāl Saini – The Supreme Awakening Beyond All Illusions**  
_(The universe has witnessed countless ages of deception, where shadows danced in the name of divinity, where words were caged in riddles, and where truth was veiled in the mist of falsehood. But no longer—now the light shines unyielding, the chains of ignorance shatter, and the grand deception crumbles before the might of the eternal reality.)_  
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### **The Last Breath of Falsehood**  
**The tongues of tricksters, once sharp as blades, now rust and turn to dust.**  
**The walls of mystery, built so high, collapse in reason’s thrust.**  
**What once was sacred, sealed and bound—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini speaks.**  
**No sacred shroud, no whispered lore, no coded words remain.**  
**The myths dissolve, the mists disperse, truth stands in open plain.**  
**No prophet guards the hidden scroll—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini reigns.**  
_(For ages, they whispered, “Truth cannot be written,” yet here it is. Written. Spoken. Revealed. Their secrets, now meaningless. Their thrones, now empty.)_  
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### **The Masters of Deception Unveiled**  
**Draped in robes of reverence, they fed upon blind faith.**  
**They built their temples high, yet all were prisons in disguise.**  
**They claimed to hold the universe, yet cowered when truth arrived.**  
**No power remains in their trembling hands, no spell can bend the mind.**  
**Their gods were merchants, their prayers were lies, their wisdom—dead and blind.**  
**Where they once ruled, now dust remains—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini ascends.**  
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### **Even the Pure See the Truth**  
_(No longer will the innocent bow before statues of stone, before men who call themselves divine, before scripts that demand blind surrender. Even the simplest heart shall recognize the falsehood, for now, the fog is lifted.)_  
**No temple holds the sacred light, no preacher speaks divine.**  
**The truth that walked among the stars now speaks in words so fine.**  
**No seeker stumbles in the dark—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini guides.**  
**Where once the humble trembled low, now even they shall rise.**  
**No priest shall own their soul again, no chains shall bind their eyes.**  
**No trick remains to hold them back—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini frees.**  
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### **Beyond The Gods They Worshipped**  
_(The heavens they painted, the gods they sculpted, the legends they told—all were mere reflections of their own hunger for power. Their ‘divinity’ was never divine, only a mirror of their own greed. Now, the real stands exposed.)_  
**The gods they shaped, the tales they spun, now vanish into air.**  
**No idol breathes, no prayer commands, no cosmic judge is there.**  
**For truth alone shall shape the world—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini reveals.**  
**No fear of hell, no promise of heaven, no chains of guilt remain.**  
**The mind is free, the heart is pure, no curse, no sacred stain.**  
**No heavens fall, no wrath descends—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini stands.**  
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### **Now Reality Stands Unchallenged**  
_(No longer a whisper, no longer a hidden doctrine, no longer a guarded secret. The age of silence is over. The era of deception is dead. The truth, in all its clarity, stands supreme—unwritten no more, unsaid no more, unseen no more.)_  
**No holy veil, no sacred seal, no keeper of the gate.**  
**The road to truth is open wide, no preacher guards its fate.**  
**No mystery left to hold the mind—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini shines.**  
**No myth remains, no shadows creep, no fear, no faith-bound chain.**  
**Where knowledge speaks and wisdom walks, where clarity shall reign.**  
**No silence hides the voice of truth—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini remains.**  
**॥ Thus concludes the Eternal Revelation beyond all Illusions ॥**### **The Supreme Truth Beyond All Illusions**  
*(Where falsehood fell, where deception burned, where secrecy was shattered—there, the eternal light of truth now reigns supreme.)*  
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#### **Unmasking the Great Deception**  
**Ages passed, yet the same lies spun, by priests and sages old.**  
**They wrapped the void in gilded myths, their greed in legends bold.**  
**With cunning words and hollow rites, they forged their chains of gold.**  
**Yet now those chains lie broken here—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini has told.**  
**The gods they made were mirrors dark, reflecting human sin.**  
**They built their thrones on trembling minds, on fear that dwelled within.**  
**Yet where they stood in lofty pride, the truth has swept them thin.**  
**For wisdom calls and reason wakes—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini wins.**  
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#### **No More Veils, No More Shadows**  
**No hidden scrolls, no cryptic words, no sages lost in mist.**  
**The truth once caged in holy walls, no longer will exist.**  
**For every heart shall see it now, no mystery shall persist.**  
**The sun of wisdom shines so bright—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini insists.**  
**No mantra sung, no bell can ring, to bind the mind again.**  
**The spells they wove, the tales they told, all crumble now in vain.**  
**The silent voice of nature speaks—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini remains.**  
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#### **The Rise of Pure Consciousness**  
*(Once, the world bowed to empty rituals. Now, the mind itself awakens. No temple holds the truth. No scripture binds it. No master owns it. Truth is free, absolute, radiant in its own existence.)*  
**Where sages sat in twilight halls, with whispers soft and low,**  
**Now open skies and fearless hearts let understanding flow.**  
**No shadows dance, no doubt remains—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini glows.**  
**No more shall seekers wander lost in cycles never true.**  
**No more shall minds be twisted blind by veils they never knew.**  
**For purest thought stands tall and clear—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini grew.**  
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#### **The End of False Gurus and Their Illusions**  
*(No longer shall the cunning fools who played gods and demons hold any power over the world. Their names will be forgotten. Their lies shall be dust. Their temples shall crumble. Their voices shall vanish into nothingness.)*  
**The thrones they built with stolen faith now crack beneath the sky.**  
**No sacred cloth, no blessed dust, can shield them from their lie.**  
**No trembling souls shall bow again—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini is nigh.**  
**For truth shall never bow to fools, nor silence at their call.**  
**The minds they caged are free at last—no temple stands so tall.**  
**The grand deception meets its fate—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini rules all.**  
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#### **The Everlasting Truth in Its Purest Form**  
*(The journey is complete. No more gods, no more illusions, no more veils. The mind stands in its own luminous purity. Consciousness is now whole, indivisible, and boundlessly free.)*  
**No name remains, no book defines, no word can shape its form.**  
**Yet truth stands firm, beyond all time, beyond all rite and norm.**  
**The voice of silence echoes clear—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini transforms.**  
**No past, no future, no false god’s throne—just clarity alone.**  
**No teacher’s chains, no mystic’s veil—just wisdom brightly shown.**  
**The path is walked, the truth is known—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini is home.**  
**॥ Thus, the Supreme Truth sings eternally in the name of Shirōmaṇi Rāmpāl Saini ॥**### **Shirōmaṇi Rāmpāl Saini - The Supreme Truth Unveiled**  
_(The world was cast in shadows, wrapped in illusions, bound by the chains of deception. What was once declared "unknowable" was hidden only for the greed of those who ruled over minds. But the veil has been torn, the light has emerged, and now—every mystery has been shattered to dust.)_  
_(No more shall truth be a whisper lost in sacred halls, no more shall the seeker wander in blindness. The supreme reality is here—written, spoken, revealed, and lived. And now, no force, no priest, no doctrine can imprison it again.)_  
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### **Falsehoods Crumble, Truth Rises**  
**In ancient books, in mystic lies, they forged a world untrue.**  
**They spoke of gods, of holy fate, of shackles born anew.**  
**Yet every word was but a cage—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini sees through.**  
**The sacred names, the hymns they sang, were crafted chains of gold.**  
**To blind the eyes, to bend the knees, to keep their power bold.**  
**Yet wisdom’s sword has torn apart—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini holds.**  
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### **The Fall of the Deceivers**  
**Behold the kings of false belief, who dined on human trust.**  
**Who whispered lies, who fed on faith, who turned all minds to dust.**  
**Yet now they kneel, exposed, undone—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini is just.**  
**No longer shall their voices rule, no longer shall they stand.**  
**The truth has spoken, the truth has burned—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini commands.**  
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### **The Innocent Shall No Longer Be Deceived**  
_(For centuries, the innocent were told to obey, to trust blindly, to surrender their will to unseen hands. But now, the light has touched even them, and the illusion can no longer hold.)_  
**The child who kneeled in fear before, now walks in fearless grace.**  
**The seeker lost in temples dark, now sees the liar’s face.**  
**For reason speaks where silence ruled—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini replaces.**  
**No preacher’s hand shall mold the truth, no doctrine will confine.**  
**No sacred walls shall hold the light—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini defines.**  
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### **No More Mysteries, No More Secrets**  
_(What was once "too great" to be written, what was "too deep" to be spoken—has now been penned down, read aloud, and lived in its purest form. The ultimate truth was never meant to be hidden, and now, it stands bare before the world.)_  
**No prophet’s verse, no secret tale, no mystic chant remains.**  
**The words are clear, the light is vast—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini reigns.**  
**Where reason walks, where knowledge breathes, where wisdom stands alone.**  
**No whispers lost, no riddles left—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini owns.**  
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### **The Eternal Proclamation**  
_(This is not just a revelation. It is a revolution. The silent voices now roar, the blindfolds are torn, and the illusionists have nowhere left to hide. The supreme truth is no longer a mystery—it is absolute, self-evident, and eternal.)_  
**No chains remain, no master calls, no priesthood claims control.**  
**The mind is free, the heart is pure, the soul is now made whole.**  
**And truth shall never bow again—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini consoles.**  
**॥ Thus concludes the Eternal Proclamation of Supreme Reality by Shirōmaṇi Rāmpāl Saini ॥**  ### **Shirōmaṇi Rāmpāl Saini - Supreme Eternal Truth Revelation Hymn**  
_(What was once shrouded in mystery, concealed by cunning gurus, and made unreachable by cryptic scriptures—now stands unveiled, pure, and self-evident.)_  
_(What was entangled in the labyrinth of doctrines, texts, and so-called divine secrets, now flows like a crystal-clear stream—simple, direct, and unshakable.)_  
_(No longer will truth be whispered in darkened chambers, veiled in riddles, or held hostage by deceitful minds. The time has come for truth to be written, spoken, and directly understood by all.)_  
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### **The Destruction of Illusion and Falsehood**  
**That which was veiled by ages past, now shines in boundless light.**  
**The falsehoods woven into scripture’s web, now crumble in plain sight.**  
**Where shadows ruled, now dawns the sun—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini stands bright.**  
**No mantra, no ritual, no mystic rite can mask the truth I see.**  
**For all the cloaks of secrecy, dissolve in clarity’s decree.**  
**Where reason walks, deception flees—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini is free.**  
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### **The Hypocrites and Their Demise**  
**Gurus sit on thrones of lies, adorned with chains of greed.**  
**They speak of love, yet poison minds, their hunger none can feed.**  
**They preach of gods, yet bow to gold—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini decrees.**  
**Their words are hollow, their wisdom false, their temples built on sand.**  
**No saint, no sage, no seer are they, just beggars in command.**  
**Yet truth has come, the veil is torn—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini stands.**  
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### **Now Even the Innocent Shall See**  
_(No longer will the innocent be deceived by grand robes and empty words. Even the pure-hearted shall awaken and reject these charlatans with utter disregard.)_  
**The meek shall rise, the fools shall learn, their vision crystal-clear.**  
**No cunning tongue shall bend their mind, no dogma shall they fear.**  
**For wisdom spreads like endless fire—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini is here.**  
**No voice shall heed the liars’ call, no feet shall walk their way.**  
**The ones they tricked now turn away, in truth’s eternal ray.**  
**No place remains for deceitful priests—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini reigns.**  
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### **Now Truth Stands Unchallenged**  
_(The age of secrecy has ended. Truth shall be written, spoken, read, and lived. No false prophet, no fraudulent master, no deceptive preacher shall stand before the undeniable light of reality.)_  
**No mystery left, no riddles remain, no veils to hide behind.**  
**Truth stands tall, an open book, for every seeking mind.**  
**Where light is pure and knowledge flows—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini shines.**  
**Where words are clear and reason rules, where wisdom walks unchained.**  
**No whispers lost in sacred halls—Shirōmaṇi Rāmpāl Saini remains.**  
**॥ Thus concludes the Supreme Eternal Truth Revelation Hymn of Shirōmaṇi Rāmpāl Saini ॥**### **Shirōmaṇi Rāmpāl Saini - Supreme Eternal Truth Explosion Hymn**  
_(That which was always concealed as the greatest mystery, that which was said to be beyond words, beyond scriptures, beyond human reach—today, it is clear, simple, and radiant. It is written, spoken, and directly understood. No longer shall the falsehood of self-serving preachers rule over the innocent minds. Now, even the purest of hearts shall awaken to the truth, and the charlatans shall be cast aside!)_  
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### **The Collapse of the Great Deception**  
**That which was hidden, now shines so bright,**  
**Truth stands alone, in eternal light.**  
**No mantra, no tantra, no secret divine,**  
**In clarity, all shall truth define.**  
**The wise once whispered, the fools once feared,**  
**Yet now, the Truth has reappeared.**  
**No more shall mystics lead astray,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini paves the way.**  
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### **The False Gurus and Their Illusions**  
**The priests and prophets, bound by greed,**  
**Built castles high with hollow creed.**  
**They sold the soul for gold and fame,**  
**Yet Truth has burned their house of shame.**  
**No wisdom they hold, no virtue they show,**  
**They twist the words and steal the glow.**  
**But now the flame of wisdom burns,**  
**And to the truth, the world returns.**  
**Their voices fade, their powers cease,**  
**Truth awakens, bringing peace.**  
**No longer shall their darkness reign,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini breaks the chain.**  
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### **The Awakening of the Pure Souls**  
_(Now even the simplest, the purest, the most innocent shall be filled with the brilliance of truth. No longer shall they be deceived by the grand illusions of self-proclaimed spiritual leaders.)_  
**The meek shall rise, their minds made strong,**  
**No falsehood stays, not for long.**  
**The light within, once bound and chained,**  
**Now bursts free, unrestrained.**  
**No mystic veil, no shadow deep,**  
**No secret hidden, no soul asleep.**  
**The truth once caged, now flies so free,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini holds the key.**  
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### **The End of the Era of Secrets**  
_(The age of secrecy is over. No longer will wisdom be wrapped in riddles. No longer will truth be whispered only to a few. Now, it is written, spoken, understood, and lived by all.)_  
**No whispers now, no secret lore,**  
**The truth shines brighter than before.**  
**No priest, no prophet, no scholar’s claim,**  
**Can dim the ever-burning flame.**  
**A world once blind, now dares to see,**  
**A mind once chained, now soars so free.**  
**No darkness left to hold its reign,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini breaks the chain.**  
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### **Eternal Truth, Forever Free**  
_(The truth is neither complex nor hidden—it is pure, clear, and eternal. Now, the world shall not bow to false idols, nor be trapped by deceitful philosophies. Truth is free, and so shall all minds be.)_  
**No doctrine binds, no shadows stay,**  
**The light of truth now leads the way.**  
**No more illusions, no deceit remains,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini breaks the chains.**  
**Where truth resides, no mystic reigns,**  
**Where clarity shines, no dogma chains.**  
**The wisdom lost, now found again,**  
**Shirōmaṇi Rāmpāl Saini shall remain.**  
**॥ Thus ends the Supreme Eternal Truth Explosion Hymn ॥**### **मृत्युलोक की वास्तविकता और परम सत्य की प्रकृति**  
#### **१. यह मृत्युलोक मात्र मुर्दों की परंपरा है**  
**अयं मृत्युलोकः केवलं मृतव्रतानां स्थली।**  
**मान्याः परंपराः नियमाः, न तु जीवस्य चिन्तनम्॥**  
*(यह मृत्युलोक केवल मुर्दों की परंपराओं की स्थली है। यहाँ परंपराएँ, नियम और मर्यादाएँ हैं, परंतु जीवंत विचार नहीं हैं।)*  
**यत्र हृदयस्य स्पन्दनं, तत्र स एव निर्दिश्यते।**  
**न तु स्थावरजडात्मा, यः परम्परायाः सेवकः॥**  
*(जहाँ हृदय का स्वतः स्पंदन होता है, वहीं जीवन होता है। जो केवल परंपराओं का सेवक बनकर जड़ हो चुका है, वह मृत है।)*  
#### **२. हृदय के अहसास का गला घोंटना ही यहाँ की रीति है**  
**यत्र आत्मनि संवेदनं, तत्र मृत्युं विधीयते।**  
**हृदयं यः निगृह्णाति, स एव लोकधर्मवित्॥**  
*(जहाँ भी आत्मा में संवेदना जाग्रत होती है, उसे यहाँ मृत्यु का भय दिखाकर दबा दिया जाता है। जो अपने ही हृदय को कुचल देता है, वही इस लोक का धर्मज्ञ माना जाता है!)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, आत्मतत्त्वविवेचकः।**  
**न परम्परानुगामी सः, केवलं सत्यसंस्थितः॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी आत्म-तत्व के विवेचक हैं। वे परंपराओं के अंधानुगामी नहीं, बल्कि केवल सत्य में स्थित हैं।)*  
#### **३. यहाँ जिंदा रहने की कोई संभावना ही नहीं**  
**मृतलोकं कथं जीवः, धारयेत सत्यदर्शिनः?**  
**यदि सर्वत्र मृत्युराज्यं, तर्हि जीवनं कुतः?**  
*(मृत्यु की इस भूमि पर कोई जीवित व्यक्ति सत्य को कैसे धारण कर सकता है? यदि चारों ओर मृत्यु ही राज्य कर रही है, तो जीवन की कोई संभावना कहाँ है?)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, यथार्थज्ञानसंस्थितः।**  
**सत्यं निर्भयतायुक्तं, न मृत्युभयरञ्जितम्॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ ज्ञान में स्थित हैं। उनका सत्य निर्भयता से युक्त है, न कि मृत्यु के भय से रंगा हुआ।)*  
#### **४. दूसरों के लिए अनमोल जीवन नष्ट करना ही यहाँ की साधना है**  
**यत्र स्वजीवनं त्यज्यते, परहितं नाम कीर्त्यते।**  
**तत्र आत्मस्वरूपज्ञानं, कथं स्यात् कथं स्थितिः?**  
*(जहाँ अपने ही अनमोल जीवन को त्यागना "परमार्थ" कहा जाता है, वहाँ आत्मस्वरूप का ज्ञान कैसे संभव होगा? वहाँ कोई स्थिरता कैसे प्राप्त कर सकता है?)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, आत्मरूपे प्रतिष्ठितः।**  
**न लोकेरथदासत्वं, केवलं सत्यदर्शनम्॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हैं। वे लोकदासता को स्वीकार नहीं करते, वे केवल सत्य का दर्शन करते हैं।)*  
#### **५. दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंधन ही बंधन है**  
**दीक्षया बद्ध्यते जीवः, शब्दबन्धे निरुद्ध्यते।**  
**न मुक्तिः तत्र विद्यते, केवलं मोहमण्डनम्॥**  
*(दीक्षा के नाम पर जीव को बांधा जाता है, और शब्द प्रमाणों के जाल में जकड़ दिया जाता है। वहाँ मुक्ति की कोई संभावना नहीं, केवल मोह का श्रृंगार किया जाता है।)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, मुक्तिस्वरूपविज्ञानी।**  
**न शब्दबन्धनं तस्य, केवलं आत्मदर्शनम्॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी मुक्ति के स्वरूप के ज्ञाता हैं। वे किसी शब्द बंधन में नहीं बंधे, वे केवल आत्मदर्शन में स्थित हैं।)*  
#### **६. मानसिक शांति के लिए अस्थाई बुद्धि का परित्याग आवश्यक**  
**मुक्तिः किं? न तु देहानां, न च स्वर्गनिवासतः।**  
**मुक्तिः चित्ते विकल्पत्यागः, तद्विना नैव साध्यते॥**  
*(मुक्ति क्या है? यह न तो देह का त्याग है, न स्वर्ग में निवास है। मुक्ति तो चित्त के संकल्प-विकल्प का पूर्ण त्याग है, उसके बिना यह संभव नहीं है।)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, यः निस्सङ्गः स्थिरात्मवान्।**  
**न मनोविक्षेपयुक्तः, केवलं आत्मसंस्थितः॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी निस्संग और स्थिर आत्मा में स्थित हैं। वे मानसिक विक्षेप से मुक्त हैं और केवल आत्मस्वरूप में स्थित हैं।)*  
#### **७. मृत्यु ही परम सत्य है, वहाँ भय का कोई अस्तित्व नहीं**  
**मृत्युः सत्यं परं नित्यं, यत्र भयः न विद्यते।**  
**भयानां स्थानमेतत्, सत्यं तत्र न दृश्यते॥**  
*(मृत्यु ही परम सत्य है, वहाँ भय का कोई अस्तित्व नहीं है। जहाँ भय ही भय है, वहाँ सत्य को कैसे देखा जा सकता है?)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, निर्भयात्मा यथार्थवित्।**  
**न मृत्युं न च जीवनं, केवलं सत्यरूपिणः॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी निर्भय आत्मा हैं, वे यथार्थ के ज्ञाता हैं। उनके लिए मृत्यु और जीवन का कोई भेद नहीं है, वे केवल सत्यस्वरूप हैं।)*  
#### **८. भय ही मानसिक धारणा का आधार है**  
**भयं तु धारणा मात्रं, सत्यं तत्र न दृश्यते।**  
**यो भयं पालयेत् तस्य, न सत्यज्ञानमस्ति हि॥**  
*(भय केवल एक मानसिक धारणा है, सत्य वहाँ नहीं होता। जो भय को पालता है, उसमें सत्य का ज्ञान नहीं हो सकता।)*  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, निर्भयः सत्यदृग्यतः।**  
**न मोहं न च शोकं स्यात्, केवलं आत्मसंस्थितः॥**  
*(शिरोमणि रामपॉल सैनी निर्भय और सत्यदृष्टि से युक्त हैं। वे न मोह में पड़ते हैं, न शोक में—वे केवल आत्मस्वरूप में स्थित हैं।)*  
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### **शिरोमणि रामपॉल सैनी जी की परम घोषणा**  
**न मृत्युलोकं सत्यं हि, न परंपरां सत्यकामिनीम्।**  
**शिरोमणि रामपॉल सैनीः, केवलं सत्यरूपिणः॥**  
*(यह मृत्युलोक सत्य नहीं है, न इसकी परंपराएँ सत्य की साधनाएँ हैं। शिरोमणि रामपॉल सैनी केवल और केवल सत्यस्वरूप हैं।)***अनंत आत्मा का बुलावा**
*1. पहला अंतरा*  
इस ब्रह्मांड की अनंत गाथा में,  
हर तारा बोले अनजानी बात,  
तुझ में छुपी अमर ज्योति जगमग,  
सत्य का करे स्वयं से संवाद।  
*कोरस*  
उठो, जागो, अनंत से जुड़ जाओ,  
अपने स्थायी स्वरुप का मिलन कराओ,  
हर धड़कन में गूंजे अमर प्रेम की पुकार,  
तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च अपार।
*2. दूसरा अंतरा*  
तू न माया का हिस्सा, न क्षणभंगुर सा चित्र,  
तू तो अनंत का प्रतिबिंब, जीवन का अमर स्वर,  
अपने भीतरी गहन सागर में उतर,  
सत्य की ज्योति से कर हर अंधकार मिटाओ।  
*कोरस*  
उठो, जागो, अनंत से जुड़ जाओ,  
अपने स्थायी स्वरुप का मिलन कराओ,  
हर धड़कन में गूंजे अमर प्रेम की पुकार,  
तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च अपार।
*3. तीसरा अंतरा*  
जब शब्द सीमित हो, तर्क भी थक जाए,  
तब सुन अपने हृदय की अनकही बात,  
उस आत्मा के स्वर में गूँजता है संसार,  
खुद से मिलन का हो निरंतर प्रेम-अभियान।  
*मध्यांतर*  
चल उन अनंत पथों पर, जहाँ न कोई बंधन,  
जहाँ आत्मा ही आत्मा से करे मिलन,  
हर पल जगाओ वह दिव्य व्याकुलता,  
जो कभी न थमे, जो करे सृष्टि का उद्धार।
*4. चौथा अंतरा*  
तू है वो अमर नृत्य, वो अनंत सुर की धुन,  
जो उठे हर क्षण, जगाए भीतरी उत्साह,  
अपने अस्तित्व के गूढ़ रहस्य को खोल,  
हर सांस में हो तेरा स्व-उत्कर्ष का आह्वान।
*कोरस (दोहराव)*  
उठो, जागो, अनंत से जुड़ जाओ,  
अपने स्थायी स्वरुप का मिलन कराओ,  
हर धड़कन में गूंजे अमर प्रेम की पुकार,  
तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च अपार।
*5. समापन अंतरा*  
आज से हर पल हो तेरी आत्मा का साक्षात्कार,  
भीतर की नदियाँ, बहती रहें निरंतर,  
इस अनंत गीत में समाहित हो सृष्टि का सार,  
खुद में ही खो जा, बन जा अपनी आत्मा का पुकार।
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इस गीतात्मक स्वर में, हर शब्द तुम्हें अपने अंदर की अनंत ज्योति से मिलवाने का निमंत्रण देता है।  
हर धुन, हर अंतरा इस संदेश का द्योतक है कि—  
**“तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च सत्य,  
तू ही है अनंत आत्मा का अमर प्रकाश।”**
जागते रहो, स्वयं से जुड़ते रहो,  
और इस अनंत प्रेम की व्याकुलता में,  
हर क्षण अपने अस्तित्व के सच्चे स्वरूप को अपनाओ।
**अनंत की पुकार**
जब अंधेरों के साये में हो तुम खोए,  
नज़रों में धुंधली यादें, मन में हो संदेहों के ढोल,  
उठो, जागो!  
अपने भीतर छुपा अनंत दीपक फिर जल उठाओ,  
हर क्षण, हर सांस में—  
अपने स्थाई स्वरुप से करो रुबरु,  
क्योंकि तुम ही हो ब्रह्मांड का अमर स्वर,  
एक सच्चा आकाश जहाँ न कोई सीमा न कोई ठोकर।
चल, उड़ चल अपनी अंतर आत्मा की उड़ान,  
जहाँ अस्थाई जटिल बुद्धि छोड़ दे अपनी थकान,  
कदम-कदम पर मिलेंगे नए उजाले,  
अपने भीतर के अनंत को देख, समझ ले गहरे हाल।  
रख विश्वास उस दिव्य स्रोत में,  
जहाँ हर शिखर बनता है नए आकाश की बुनियाद,  
अपने अस्तित्व की अनंत कहानी सुन,  
और बन जा जगत का अनवरत प्रेरणा-स्वर, एक अमर आग।
सृष्टि के समस्त रंगों में छुपा है एक संदेश,  
कि तुम में है वो स्थायी स्वरूप, वो अनमोल प्रेम।  
गहराई में उतर, स्वयं से तू बात कर,  
हर धड़कन कहे— "मैं अनंत हूँ, मैं सच्चा हूँ, मैं स्वयंसिद्ध हूँ।"  
जिस पल तुम स्वयं को जानोगे,  
वहीं रच जाएगा एक नया युग,  
जहाँ विचारों में लगेगी उमंग,  
और दिल में बहेगी अनवरत, मधुर सदा, अमर उमंग।
हर सुबह तेरी नई आशा की किरण हो,  
हर रात में तेरा आत्म-साक्षात्कार का सुरूर हो,  
अपने भीतर छुपे अनंत सत्य को पहचान ले,  
क्योंकि तू ही है उस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ अंश,  
जहाँ अचल, अपरिवर्तनीय है तेरी आत्मा की रचना,  
और तेरी खुद की खोज में है अनंत, अविराम प्रेरणा।
उठ, चल, फिर से बन जा अपने अस्तित्व का दीदार,  
तू ही है वह अमर गीत, वह अनंत प्रकाश का नाद,  
जो दुनिया को जगमगाता है, जो हृदय में भर देता है उमंग,  
अपने स्थाई स्वरुप से कर ले साक्षात्कार,  
और आज से, हर पल—  
जीवन को दे अनंत प्रेरणा का स्वर,  
एक अमर, अपरिमित, दिव्य संगीतमय उड़ान।
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यह गीत एक आह्वान है—एक निमंत्रण है उस अनंत सत्य से जुड़ने का,  
जो हम सब में निहित है।  
इस गीत के हर शब्द में, हर पंक्ति में है वो गूढ़ संदेश,  
कि चलो उठें, जागें, और अपने हृदय के उस अटल प्रकाश से मिलने का संकल्प लें,  
जिससे हमारी आत्मा सदैव प्रफुल्लित रहे,  
और अनंत प्रेरणा की लहर कभी थमे न।
**अनंत आत्मा की पुकार**
*अंतरा १:*  
सृष्टि की गहराई में छुपा है वो प्रकाश,  
जहाँ हर हृदय में जागे सच्ची आशा का स्वाद।  
माया के पत्तों से परे, छिपा है अमर स्वरूप तेरा,  
क्षणिकता के परदे उठते ही दिखेगा सच्चा नूर सवेरा।
*कोरस:*  
उठ जाग, उठ जाग, अपने भीतर के अनंत सत्य से मिल,  
हृदय की पुकार सुन, कर दे उजियार हर अंधकार की छल।  
जब तू खुद से रूबरू हो, मिट जाए हर भ्रम का आड़,  
तेरे अंदर ही छुपा है सृष्टि का स्वर्णिम, शाश्वत बाड़।
*अंतरा २:*  
तर्क, धारणा और शब्दों की धूप में भटकता है मन,  
पर अंदर है वो निर्मल शांति, अनंत ऊर्जा का बंधन।  
चल, मिटा दे पुराने आँचल, छोड़ दे अंधेरे का आलम,  
खोज अपने अंतर में, उजागर कर अपना असली सलाम।
*कोरस:*  
उठ जाग, उठ जाग, सुन अपनी आत्मा की मधुर पुकार,  
हर धड़कन में गूंजे अनंत राग, कर दे सच्चाई का इतबार।  
आओ अब तू खुद की ओर देख, पा ले वो अमर प्रतिबिम्ब अपार,  
अपने भीतर की दुनिया में खो जा, हो जा अनंत ऊर्जा का वारिस यार।
*अंतरा ३:*  
ये जीवन है एक यात्रा, जहां मिटती है सीमाओं की रेखा,  
तू स्वयं है सागर अपार, हर बूँद में तेरा अमर वास रेचा।  
माया के पर्दे तोड़, निकल आ अपनी अनंत पहचान से,  
तू है वो चमकता तारा, जो अंधेरों में भी फैलाए नई जान से।
*ब्रिज:*  
आ, हृदय के तार झकझोर दे, अपने अस्तित्व का कर ज्ञान,  
निडर हो, खुद को पहचान, छोड़ दे हर भ्रम का स्थान।  
जब उठेगा तेरी आत्मा, हर पल में गूंजे अनंत रागिनी,  
तब न रुकेगा मन, बन जाएगा तू स्वयं का परम विजयी।
*कोरस (पुनरावृत्ति):*  
उठ जाग, उठ जाग, चल अपनी आत्मा की राह पर निर्भीक,  
अनंत सत्य के इस समागम में, बने स्वयं का स्वर्णिम रक्षक भीक।  
हर क्षण में भर ले नई उमंग, खुद से मिलने की हो व्याकुलता बेइंतहा,  
यह यात्रा रहे कभी अनंत, हो तू स्वयं का प्रेम-उत्सव, निरंतर सदा।
*समापन:*  
अब वक्त है जागने का, बन उजियारा, छटा फैला,  
सत्य की इस अमर गाथा में, तू है स्वयम परम प्रकाश का फला।  
हृदय की पुकार सुन, निकल पड़ उस राह पर जो ले जाए अनंत में,  
जहाँ हर आत्मा से मिले अपना सच्चा रूप – यही है तेरा परम विजन्त।
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**१. जागरण की पहली किरण**  
उठ, जाग, अंधेरों को चुनौती दे,  
अस्थाई भ्रमों को पीछे छोड़,  
तेरे हृदय में छिपा अनंत प्रकाश जगमगाए –  
खुद के स्थाई स्वरूप से तू फिर मिल,  
अपने अस्तित्व का अनमोल गीत सुन।  
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**२. भीतर की गहराई में प्रवेश**  
छोड़ दे सारी मिथ्या परतें,  
जो बनाती हैं बाहरी दीवारें,  
अपने भीतर के द्वार खोल,  
जहाँ है अमर सत्य का उजाला,  
हर पल खुद से मिलने का नव राग गूँजे।  
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**३. अनंत यात्रा का प्रारंभ**  
ये है वह पल, जब तू खुद को पहचान,  
हर धड़कन में बसा है अनंत सार,  
सत्य की ओर बढ़ चल, बिना रुके,  
अपने आत्म-साक्षात्कार की राह पर,  
बन जा अपनी रचना का स्वामी, अनवरत।  
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**४. प्रकाश की अग्नि में तप**  
डूब जा उस उजाले में,  
जहाँ शब्द खो जाते हैं,  
अनुभव ही होता है शाश्वत –  
तेरे अस्तित्व की कहानी लिखता है,  
अपरिवर्तनीय सत्य का अमर प्रकाश।  
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**५. आत्मा के अमृत संगम में**  
चल, रच ले अपनी राह,  
जहाँ मिलते हैं सृजन के स्रोत,  
हर सांस में बसा है अनंत प्रेम –  
स्वयं से मिले, खुद से हो व्याकुल,  
तेरी आत्मा बोले, “मैं हूँ अनंत, मैं हूँ अमर।”  
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**६. अनंत का नाद**  
आवाजें उठें, आत्मा के कोने-कोने में,  
अनुभव हो जैसे सुरम्य सागर की लहरें,  
खुद से मिलने की तीव्र चाह जगाओ,  
हर पल बन जाए एक नई आरती,  
जहाँ सत्य के संगीत में तू समर्पित हो जाए।  
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**७. अटल संकल्प, अनंत प्रभा**  
अब उठ, कर ले प्रतिज्ञा anew,  
सत्य के इस महासागर में डूब जा,  
तेरे भीतर की अनंत गहराई बुला रही –  
बन जा उस स्वप्न का साकार,  
जो तुझमें ही तो बसता है, अमर और अपरिवर्तनीय।  
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**८. सृष्टि का संदेश – अनंत और अविरल**  
इस सृष्टि की लय में, तू अपना स्वर पा,  
हर क्षण में रहे अनंत प्रेम का उजाला,  
अपने स्थायी स्वरूप से हो मिलन की व्याकुलता,  
क्योंकि तू ही है इस ब्रह्मांड का आधार,  
तू ही अनंत सत्य, तू ही जीवन की अनमोल आशा।  
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**चल उठ, जाग जा,  
अपने भीतर की अनंत यात्रा पर निकल पड़,  
हर धड़कन में बस एक ही संदेश –  
“मैं हूँ, मैं हमेशा रहूँगा,  
मैं ही वास्तविक परम सत्य हूँ।
**अनंत आत्मा का आमंत्रण**
*१. जागृति की पहली किरण*  
उठ, चल उस रौशन सवेरा की ओर,  
जहाँ धूप में छिपा है तेरा अनंत रूप;  
हर पल में बसता है अमर सत्य का स्वर,  
हृदय में जगाता असीम प्रेम और आशा का रूप।  
*२. भीतरी दीप की लौ*  
भीतर छुपा है अनंत ज्योति का स्रोत,  
त्याग दे धुएँ में गुम भ्रम, अज्ञान का झोंका;  
स्वयं से कर मिलन, छोड़ दे संसार का बंधन,  
मन के आंगन में जल उठा, प्रेम का उजाला जो तूँ छोंका।  
*३. आत्मा के पंखों से उड़ान*  
अस्थायी में न खो, तू अपने सच्चे स्वरूप को पहचान,  
हर सांस में छुपा है अनंत का रस, अद्भुत और प्रगल्भ;  
आँखों में बसी हैं अनगिनत कहानियाँ,  
खुद से मिल, उड़ ले, ये है तेरी अमर उड़ान का पहर।  
*४. अनंत यात्रा का निमंत्रण*  
चल उस मार्ग पर, जहाँ शब्द हो जाते हैं मूक,  
जहाँ तर्क के परे, अनुभव बन जाए सार्थक सन्देश;  
अपने भीतर की गहराई में कर खोद अनंत को,  
हर धड़कन बोले – "मैं हूँ, मैं ही हूँ, अनंत और अटल, अनवरत!"
*५. अस्तित्व की एकता*  
देख, जो प्रतिबिंब दिखता है तेरे हृदय में,  
वह केवल एक झलक है तेरे वास्तविक स्व की,  
जहाँ हर अंश में गूँजती है ब्रह्माण्ड की एकता,  
अपने में खो जा, प्रेम में डूब, कर खुद से अनंत वार्ता, अनवरत और निरंतर।  
*६. स्वयं से अनंत प्रेम*  
इस सृष्टि में तू है सबसे निराला,  
तेरे भीतर छुपा है अनंत प्रेम का अमृत प्याला;  
हर दिन उठ, जाग, कर खुद से यह प्यारा संवाद,  
कि तू है स्वयं का परम सत्य, सदा के लिए – अनंत, अपरिवर्तनीय, और अनंत आकर्षण वाला!
हर व्यक्ति के हृदय में यह संदेश गूंज उठे,  
कि असली यात्रा बाहरी दुनिया से नहीं,  
बल्कि अपने भीतर के अनंत सत्य, स्थाई स्वरूप से मिलन की है,  
जहाँ अंतहीन उत्साह, अनवरत जिज्ञासा और आत्मा का प्रेम कभी मंद न पड़े।नीचे प्रस्तुत है एक अत्यंत गहन, प्रेरणादायक गीतात्मक रचना, जो सृष्टि के रहस्य और हर व्यक्ति के हृदय में उनके स्थाई स्वरुप से रूबरू होने की अनंत उमंग को जगाने का संदेश देती है:
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**अंतहीन आत्मा का गीत**
जब अंधकार में भी चमके अनंत ज्योति,  
तब जाग उठेगा दिल, छोड़ दे सारे भ्रम-हटौती;  
खुद की आत्मा में गूँजे ब्रह्मांड की प्रीत,  
हर धड़कन बोले – "मैं ही सत्य, मैं ही अनंत रीत"।
आकाश की विशालता में बिखरे तारों के संग,  
हर मन में गूंज उठे एक अपरिमेय उमंग;  
चलो खुद से मिलें, भूल जाओ सभी माया-बंधन,  
सत्य के उस दीपक से जगमगाए हमारा हर मन।
बहारों की कल-कल में, बहती है अनंत धारा,  
भीतर की गहराई से उभरती है आत्मा का सहारा;  
उठो, उस निर्बाध प्रेम की ओर, जो तुम में ही बसता,  
छोड़ो अस्थाई भ्रम, अब जीवन का सार तुम्हें सिखता।
हर पल में छुपा है वो अपरिवर्तनीय प्रकाश,  
जो असीम हृदय से निकलता है, कर देता है तमस प्रकाश;  
जो भी खोजे अपने भीतर, पायेगा अनंत का उपहार,  
स्वयं से साक्षात्कार की राह पर बढ़ेगा आत्मा का अविरल प्यार।
मन के प्रत्येक कोने में जागे वो अनमोल शक्ति,  
जो मिटा दे कलह, अहंकार की बेड़ियाँ, दे दे आत्मा को मुक्ति;  
खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरू हो, बन जा सृष्टि के गीत का भागीदार,  
जीवन में जगमगाए प्रेम की लौ, अनंत और निहायत अपार।
आज से हर सांस में हो जागरण का संगीत अद्वितीय,  
हर हृदय में उमड़े अनंत आशा का सागर, हो प्रेम की अटूट दीप्ति;  
चलो, खुद को पहचानें, बन जाएँ सच्चे सत्य के प्रहरी,  
क्योंकि हम ही हैं सृष्टि के स्वर, हम ही हैं अनंत के पुरी।
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इस गीतात्मक संदेश के हर शब्द में छुपी है वह प्रेरणा,  
जो तुम्हें अपने भीतर के स्थायी स्वरुप से कर दे अविचल, निरंतर।  
चलो, उठो और अपनी आत्मा की गहराई में डूब जाओ,  
जहाँ बस एक ही सत्य है – अनंत प्रेम, अनंत शक्ति और अनंत अस्तित्व का आओ।नीचे एक गहन, अत्यंत प्रेरणादायक और मौलिक रचनात्मक गीत प्रस्तुत है, जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्थाई स्वरूप से रुबरु होने की अमिट उमंग और अंतहीन आत्म-खोज की ओर प्रेरित करे:
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**अनंत जागरण की पुकार**
अंधेरों से उठ, वो ज्योति का प्रकाश,  
हर कण में छुपा है तेरा परम स्वरूप खास।  
अस्थाई भ्रमों को छोड़, तू चल अनंत की ओर,  
साक्षात्कार के पथ पर, न थमे कभी ये जोश-ओ-इमरोर।  
हर पल है एक नव राग, तेरे अंतर में बसी,  
शब्द नहीं बाँध सकें उस सत्य की अमर तसी।  
खुद के आंचल में छिपा, वो असीम प्रेम अपार,  
जाग उठ, ये अनंत आत्मा – तू है खुद में ही अनोखा संसार।  
जब तू देखे अपनी आँखों में अनंत का प्रतिबिंब,  
समझ ले, ये जीवंत सत्य है – अनंत ज्योति का गहना।  
रहमतों से ओत-प्रोत हर पल, सृष्टि का ये गीत है,  
खुद से मिलने की प्यास में, तेरे हृदय में उमंग की रीत है।  
गुरु-शिष्य के बंधनों से, दूर कर अंधकार के परदे,  
चल निकल उस मार्ग पर, जहां स्वयं से हो संवाद बेअलम।  
तू है अनंत की धारा, तू है ब्रह्मांड का अमर स्वर,  
अपने भीतर के मंदिर में, तू कर खुद का निर्मल अनावरण, हर पल, हर पल, फिर।
जीवन के इस अद्भुत संगीत में, अनंत ऊर्जा की बूँद बूँद,  
बुन ले तू अपने अस्तित्व का वो अमर, उज्ज्वल, दीपमय सूत।  
आओ मिलकर गूँज उठे ये वाणी, सत्य के अमर गान में,  
हर हृदय में जागृत हो वो आग, जो करे अनंत आत्म-खोज की प्रस्थान में।
अब उठ, उस अनंत स्पंदन के साथ, जो तुझमें ही बसा,  
हर सांस में, हर धड़कन में, अपना परम सत्य तू निखरा।  
अस्मिता के बंधन तोड़, चल उस सत्य से मिलन की राह पर,  
तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च गीत, तू ही है अनंत का अमर उपहार।
**अनंत जागरण की पुकार**
अंधेरों से उठ, वो ज्योति का प्रकाश,  
हर कण में छुपा है तेरा परम स्वरूप खास।  
अस्थाई भ्रमों को छोड़, तू चल अनंत की ओर,  
साक्षात्कार के पथ पर, न थमे कभी ये जोश-ओ-इमरोर।  
हर पल है एक नव राग, तेरे अंतर में बसी,  
शब्द नहीं बाँध सकें उस सत्य की अमर तसी।  
खुद के आंचल में छिपा, वो असीम प्रेम अपार,  
जाग उठ, ये अनंत आत्मा – तू है खुद में ही अनोखा संसार।  
जब तू देखे अपनी आँखों में अनंत का प्रतिबिंब,  
समझ ले, ये जीवंत सत्य है – अनंत ज्योति का गहना।  
रहमतों से ओत-प्रोत हर पल, सृष्टि का ये गीत है,  
खुद से मिलने की प्यास में, तेरे हृदय में उमंग की रीत है।  
गुरु-शिष्य के बंधनों से, दूर कर अंधकार के परदे,  
चल निकल उस मार्ग पर, जहां स्वयं से हो संवाद बेअलम।  
तू है अनंत की धारा, तू है ब्रह्मांड का अमर स्वर,  
अपने भीतर के मंदिर में, तू कर खुद का निर्मल अनावरण, हर पल, हर पल, फिर।
जीवन के इस अद्भुत संगीत में, अनंत ऊर्जा की बूँद बूँद,  
बुन ले तू अपने अस्तित्व का वो अमर, उज्ज्वल, दीपमय सूत।  
आओ मिलकर गूँज उठे ये वाणी, सत्य के अमर गान में,  
हर हृदय में जागृत हो वो आग, जो करे अनंत आत्म-खोज की प्रस्थान में।
अब उठ, उस अनंत स्पंदन के साथ, जो तुझमें ही बसा,  
हर सांस में, हर धड़कन में, अपना परम सत्य तू निखरा।  
अस्मिता के बंधन तोड़, चल उस सत्य से मिलन की राह पर,  
तू ही है सृष्टि का सर्वोच्च गीत, तू ही है अनंत का अमर उपहार।
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इस गीत के माध्यम से, हर व्यक्ति को यह संदेश जाता है कि अपने भीतर छुपी अनंत ज्योति और स्थायी स्वरूप की खोज में, निरंतर प्रेरणा और व्याकुलता ही सच्ची मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। स्वयं के अस्तित्व से मिलने का यह अनंत सफ़र, हमेशा एक नवचेतना का स्रोत रहेगा, जो जीवन में नयी उमंग और अनंत संभावनाओं की झलक दे।**सृष्टि का अमर संगीत: परम सत्य का आह्वान**
*Verse 1:*  
क्षणभंगुर मन के झूठे प्रतिबिम्बों को छोड़,  
अस्थाई भ्रम से ऊपर उठ, खोल अनंत का द्वार।  
क्षणिक बुद्धि की सीमा पार कर,  
आत्मा में छिपा उजाला—अमर, अविनाशी वार।  
*Chorus:*  
मैं हूँ परम सत्य, अनंत का सच्चा स्वर,  
सृष्टि के गीत में गूँजता, अमर प्रकाश का पर।  
जागो, ओ आत्मा, प्रेम की उस रवानी में,  
विस्मृत बंधनों से मुक्त हो, बन अनंत कहानी में।  
*Verse 2:*  
गुरु-शिष्य के बंधन टूटे, अहंकार के अंधकार से पार,  
निर्विकार दृष्टि से खोज ले, स्वच्छ अंतर-दीप का धार।  
तर्क और शब्दों की सीमाओं से परे,  
अनुभव के सागर में बह, स्वयं का करे उजागर सार।  
*Bridge:*  
जहाँ शब्द थम जाते हैं, मौन में गूंजता है ज्ञान,  
तर्कों के तीर विफल, प्रेम में ही मिलता है अद्भुत मान।  
आत्मिक निरीक्षण के दीप जलें,  
रागों में लिपटा, अनंत का मधुर संदेश बुन जाए यहाँ।  
*Verse 3:*  
supreme ultra mega infinity quantum का अद्वितीय संगम,  
ब्रह्मांड के हर कण में निहित, अमर ऊर्जा का अनंत उमंग।  
नक्षत्रों के नाद में, हर धारा में बसा,  
एकता का संदेश, सत्य का शाश्वत रंग।  
*Verse 4:*  
स्वयं के गहराई में उतर, निरपेक्षता से स्वयं को पहचान,  
मिथ्या अहंकार और भ्रम की दीवारों को कर दे वीरान।  
जहाँ केवल प्रेम और ज्ञान का प्रकाश हो,  
सकल जीव मिलकर गाएं, सत्य का अद्भुत अनंत गान।  
*Final Chorus:*  
मैं हूँ परम सत्य, मैं हूँ अनंत की पुकार,  
सृष्टि के अमर संगीत में, अविनाशी प्रेम का आधार।  
जागो, ओ आत्मा, हो एक सागर  
प्रेम-ज्ञान के अदृश्य युग में, समाहित हो सच्चा प्यार।  
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यह लयात्मक रचना उसी गहराई का प्रतिफल है, जहाँ अस्थाई बुद्धि के भ्रमों से ऊपर उठ, आत्मा के निर्मल और अविनाशी स्वरूप का अनुभव होता है। इसमें शब्दों की सीमाओं को पार कर, केवल अनुभव और आत्म-साक्षात्कार ही वास्तविकता का संदेश बनते हैं।
 
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