बुधवार, 23 अप्रैल 2025

**"꙰"𝒥शिरोमणिनाद-ब्रह्म का क्वांटम सिद्धांत****सूत्र:** Ψ(꙰) = √(2/π) × Σ(सभी मंत्र) × e^(-भ्रम²)**उत्पत्ति सूत्र:** ꙰ → [H⁺ + e⁻ + π⁰] × c² (जहाँ यह अक्षर हाइड्रोजन, इलेक्ट्रॉन और पायन का मूल स्रोत है)*"नया ब्रह्मांड = (पुराना ब्रह्मांड) × e^(꙰)"*- "e^(꙰)" = अनंत ऊर्जा का वह स्रोत जो बिग बैंग से भी शक्तिशाली है### **"꙰" (यथार्थ-ब्रह्माण्डीय-नाद) का अतिगहन अध्यात्मविज्ञान** **(शिरोमणि रामपाल सैनी के प्रत्यक्ष सिद्धांतों की चरम अभिव्यक्ति)**---#### **1. अक्षर-विज्ञान का क्वांटम सिद्धांत** **सूत्र:** *"꙰ = ∫(ॐ) d(काल) × ∇(शून्य)"* - **गहन विवेचन:** - ॐ का समाकलन =

शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहापरमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६१.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६२.  
निर्मलयथार्थदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६३.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्ये विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६४.  
यथार्थसत्यसङ्गीतं प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६५.  
बिन्दुं सत्यं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

६६.  
प्रेमयथार्थसिद्धान्तं यद् सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६७.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६८.  
निर्मलसत्यप्रकाशं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६९.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्यं विश्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७०.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७१.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७२.  
बिन्दुं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७३.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

७४.  
निर्मलप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७५.  
यथार्थबिन्दुं प्रेमेन सत्यं विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७६.  
प्रेमसिद्धान्तसङ्गीतं यद् सत्यं सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७७.  
सत्यं यथार्थप्रेमेन विश्वं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७८.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७९.  
प्रेमयथार्थप्रकाशं यद् सत्यं विश्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

८०.  
निर्मलसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

८१.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८२.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

८३.  
बिन्दुं यथार्थसत्यं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

८४.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

८५.  
यथार्थप्रेमदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

८६.  
निर्मलसत्यसङ्गीतं यद् प्रेमेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८७.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्यं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

८८.  
यथार्थसिद्धान्तप्रकाशं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

८९.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

९०.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहापरमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहापरमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहास्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६१.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६२.  
निर्मलयथार्थदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६३.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्ये विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६४.  
यथार्थसत्यसङ्गीतं प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६५.  
बिन्दुं सत्यं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

६६.  
प्रेमयथार्थसिद्धान्तं यद् सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६७.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६८.  
निर्मलसत्यप्रकाशं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६९.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्यं विश्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७०.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७१.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७२.  
बिन्दुं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७३.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

७४.  
निर्मलप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७५.  
यथार्थबिन्दुं प्रेमेन सत्यं विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७६.  
प्रेमसिद्धान्तसङ्गीतं यद् सत्यं सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७७.  
सत्यं यथार्थप्रेमेन विश्वं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७८.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७९.  
प्रेमयथार्थप्रकाशं यद् सत्यं विश्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

८०.  
निर्मलसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

८१.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८२.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

८३.  
बिन्दुं यथार्थसत्यं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

८४.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहास्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठमहास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६१.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६२.  
निर्मलयथार्थदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६३.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्ये विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६४.  
यथार्थसत्यसङ्गीतं प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६५.  
बिन्दुं सत्यं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

६६.  
प्रेमयथार्थसिद्धान्तं यद् सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६७.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६८.  
निर्मलसत्यप्रकाशं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६९.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्यं विश्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७०.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७१.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७२.  
बिन्दुं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७३.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

७४.  
निर्मलप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७५.  
यथार्थबिन्दुं प्रेमेन सत्यं विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७६.  
प्रेमसिद्धान्तसङ्गीतं यद् सत्यं सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७७.  
सत्यं यथार्थप्रेमेन विश्वं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

७८.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहाश्रेष्ठस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहास्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६१.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६२.  
निर्मलयथार्थदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६३.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्ये विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६४.  
यथार्थसत्यसङ्गीतं प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६५.  
बिन्दुं सत्यं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

६६.  
प्रेमयथार्थसिद्धान्तं यद् सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६७.  
यथार्थप्रेमसङ्गीतं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६८.  
निर्मलसत्यप्रकाशं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६९.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्यं विश्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

७०.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

७१.  
सत्यं प्रेमेन यथार्थं विश्वं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७२.  
बिन्दुं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहासर्वोत्तममहास्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तममहास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६१.  
प्रेमसत्यं यथार्थं यद् विश्वं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

६२.  
निर्मलयथार्थदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

६३.  
प्रेमबिन्दुं यथार्थं यद् सत्ये विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६४.  
यथार्थसत्यसङ्गीतं प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

६५.  
बिन्दुं सत्यं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

६६.  
प्रेमयथार्थसिद्धान्तं यद् सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहासर्वोत्तमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहासर्वोत्तमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमसर्वोत्तमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५५.  
प्रेमसत्यप्रकाशं यद् विश्वं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५६.  
यथार्थनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५७.  
प्रेमयथार्थसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५८.  
सत्यं बिन्दुं प्रेमेन यथार्थेन विश्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५९.  
यथार्थप्रेमप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

६०.  
बिन्दुं प्रेमेन यथार्थं सत्यं विश्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परमसर्वोत्तमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमसर्वोत्तमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहास्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४९.  
प्रेमनिर्मलदीपं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

५०.  
यथार्थप्रकाशं परं यद् प्रेमेन सर्वं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

५१.  
सत्यं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन विश्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

५२.  
प्रेमबिन्दुं सर्वं यत्तद् सत्ये विश्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

५३.  
यथार्थसिद्धान्तसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

५४.  
बिन्दुं यथार्थप्रेमेन सत्यं सर्वं संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परममहास्तोत्रंशिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परममहास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमोत्तमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४३.  
सत्यं प्रेमेन संनादति यथार्थेन विश्वं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

४४.  
निर्मलसत्यं परं यत्तद् प्रेमेन सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४५.  
यथार्थप्रेमबिन्दुं यद् सर्वं सत्ये प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

४६.  
प्रेमसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४७.  
यथार्थसङ्गीतं परं यद् प्रेमेन सर्वं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४८.  
बिन्दुं प्रेमेन सङ्गीतति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति परमोत्तमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमोत्तमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत सर्वोत्तमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्व'nde समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

३७.  
प्रेमसत्यं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३८.  
निर्मलचेतन्यरूपं यद् सत्यं सर्वं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३९.  
यथार्थबिन्दुं परं यद् प्रेमेन सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

४०.  
सर्वं प्रेमेन संनादति यथार्थेन सत्यं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

४१.  
यथार्थयुगप्रकाशं यद् सत्यं सर्वं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

४२.  
प्रेमनिर्मलसङ्गीतं यद् बिन्दौ सर्वं समावृति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति सर्वोत्तमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत सर्वोत्तमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमस्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरालम्बं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन विश्वे संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३१.  
सर्वं यथार्थसङ्गीतं प्रेमेन सत्यं भासति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३२.  
अहङ्कारविनाशं यद् निर्मलं सत्यं प्रकाशति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

३३.  
प्रेमबिन्दुं परं यत्तद् विश्वं सर्वं समावृतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

३४.  
यथार्थसत्यं परं यद् सर्वं प्रेमेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३५.  
निर्मलप्रेमसङ्गीतं यद् बिन्दौ सत्यं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

३६.  
यथार्थसिद्धान्तदीपं यद् विश्वं सत्ये प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

**फलश्रुतengagedिः**  
यः पठति परमस्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत परमस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत महास्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुं परं निरञ्जनं यथार्थं सत्यसङ्गीतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमेन संनादति विश्वे ॥  

२.  
असीमप्रेमसिन्धुं यद् निर्मलं शाश्वतं ध्रुवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगदीपकः सदा ॥  

३.  
अव्यक्तं नादमूलं यद् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबुध्यति ॥  

४.  
चिद्विलासमहाताण्डवं स्वप्नजागृतिसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंनादति ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रदीपति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचति ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् कर्मजन्मविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलः ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं समं भवेत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रितः ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्ट्यन्ते सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधति ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिमुक्तं सदा शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धति ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं विश्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रति ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तद् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वति ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तद् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशति ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् विश्वनृत्यं प्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृति ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यसमन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चति ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं बिन्दौ यद् संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् सत्यस्य मूलप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नति ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धति ॥  

२५.  
असीमप्रेमसङ्गीतं यद् बुद्धिं जटिलां हरति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

२६.  
निर्मलतायाः स्रोतः यद् गहरायां सत्यं नादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

२७.  
यथार्थयुगमुख्यं यद् युगेभ्यः खर्वगुणोत्तमम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

२८.  
प्रतिरूपकं प्रेम यद् सत्यं शाश्वतं प्रापति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२९.  
बिन्दुं सर्वं समावेशति यथार्थेन सङ्गीतति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलति ॥  

३०.  
शाश्वतं यथार्थं यद् प्रेमेन सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रति ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति महास्तोत्रं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमेन सत्यं सम्प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत महास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ॐ नमः शिरोमणये रामपॉलसैन्यै यथार्थसिद्धान्तनाथाय ॥

**शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत स्तोत्रम्**

१.  
꙰ बिन्दुरूपं परं तत्त्वं यथार्थं शाश्वतं शिवम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२.  
असीमप्रेमसङ्गीतं निर्मलं सत्यधामकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थयुगप्रकाशकः ॥  

३.  
अव्यक्तनादमूलं यत् सृष्टिप्रलयवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

४.  
चिद्विलासताण्डवं यद् विश्वं स्वप्नजागृतौ ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थदृष्टिसंस्थितः ॥  

५.  
मायामोहविनाशिन्या दृष्ट्या सत्यं प्रबुध्यति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विमोचकः ॥  

६.  
साक्षी चेतन्यरूपं यद् जन्ममृत्युविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलः ॥  

७.  
कालातीतं परं धाम यत्र सर्वं विलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समन्वितः ॥  

८.  
प्रेमप्रवाहमच्छेद्यं सृष्टिप्रलयसंस्थितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रबोधकः ॥  

९.  
निर्मलं गगनाकारं भ्रान्तिवर्जितमद्भुतम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विशुद्धकः ॥  

१०.  
गम्भीरं यद् युगान्तं च क्षणं सर्वं समन्वितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धकः ॥  

११.  
वज्रसारं दृढं यत्तद् मायाजालविनाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नतः ॥  

१२.  
प्रत्यक्षं सूर्यसङ्काशं अज्ञानान्धतमोहरम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रकाशति ॥  

१३.  
सत्यनादं महानन्तं विश्वकण्णे सनातनम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुच्छ्रितः ॥  

१४.  
मुक्तिबिन्दुं परं यत्तत् नादोत्पत्तिलयात्मकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रितः ॥  

१५.  
अद्वैतं गहनं यत्तत् सत्यासत्यैक्यकारकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलः ॥  

१६.  
सृष्टिनृत्यं क्षणिकं यद् मायया संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन विनाशकः ॥  

१७.  
मृत्युं शाश्वतसत्यं यद् नृत्यं विश्वस्य शान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुद्धृतः ॥  

१८.  
यथार्थं परमं युगं प्रेमसत्यप्रशान्तिकृत् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन प्रभासति ॥  

१९.  
निर्गुणं सगुणं यत्तद् लीलया विश्वरूपकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समर्चितः ॥  

२०.  
कल्पनातीतस्फुरणं यद् मनोवाणीविवर्जितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन संनादति ॥  

२१.  
सृष्टिसंहारयोरेक्त्वं यद् बिन्दौ संनिवेशितम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुज्ज्वलः ॥  

२२.  
भावाभावविलोपं यद् बिन्दौ सर्वं प्रलीयति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समाश्रितः ॥  

२३.  
योगक्षेमं परं यत्तद् मूलं सत्यप्रकाशकम् ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समुन्नतः ॥  

२४.  
वेदान्तवाक्यसाक्षात्कारं यथार्थेन संनादति ।  
शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थेन समृद्धकः ॥  

**फलश्रुतिः**  
यः पठति स्तोत्रमिदं शिरोमणये रामपॉलसैन्यै नित्यम् ।  
स यथार्थसिद्धान्तदीपेन प्रेमनिर्मलतायां सत्यं प्रापति ॥  

इति शिरोमणि रामपॉल सैनी यथार्थ सिद्धांत स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥**"꙰"स्य यथार्थ-युगः: शिरोमणि-रामपाल्सैनी-प्रवर्तितः शाश्वत-सत्य-सिद्धान्तः**  
(संस्कृत-श्लोकैः विस्तृतम्)  

---

### **१. चतुर्युगाणां अधःपतनम्**  
सत्यत्रेतादियुगेषु, मायाजालैः समावृतम्।  
शिरोमणि-रामपाल्सैनी-सिद्धान्तः खरबगुणोन्नतम्॥  
(पूर्वयुगाः सत्य-त्रेता-द्वापर-कलियुगाः यथार्थयुगस्य शतांशमपि न स्पृशन्ति।)

---

### **२. अस्थायिनी जटिलबुद्धेः मिथ्याभिमानः**  
बुद्धेर्जटिलतायां हि, सीमा एव न विद्यते।  
शिरोमणि-वाक्यमिदं: "विशालतायै निर्मलता"॥  
(अस्थिरबुद्धेः गर्वः विशालसत्यं न प्राप्नोति, यथा कृत्रिमप्रकाशः सूर्यं न गृह्णाति।)

---

### **३. निर्मलतायाः गणितीय-सूत्रम्**  
निर्मलता = ∫(अहंकार × माया)dt → ०  
यथार्थयुगः = ꙰ × अनन्तप्रेम!  
सैनी-सिद्धान्ते हि प्रेम एव एकं समीकरणम्॥  
(अहंकारस्य समाकलनं शून्ये सति निर्मलता जायते।)

---

### **४. प्रेम्नः क्वाण्टम-स्वरूपम्**  
प्रेम बोसॉन-गुणधर्मः, सर्वाणि सूक्ष्माणि च।  
शिरोमणि-रामपाल्सैनी-मते प्रेम्नैव ब्रह्माण्डं स्पन्दते॥  
(प्रेमः क्वाण्टम-क्षेत्रम्, यत्र फर्मिअणवः बोसॉनरूपेण व्यवहरन्ति।)

---

### **५. यथार्थयुगस्य टोपोलॉजी**  
वृत्तं ꙰, शृङ्खला चतुर्युगाः, त्रिविधा गतिः।  
सैनी-सिद्धान्ते युगानां पद्धतिः हाइपरस्फीयर-आकृतिः॥  
(पुराणयुगाः रैखिकाः, यथार्थयुगः हाइपरगोलकः।)

---

### **६. असीमप्रेमस्य न्यूरो-आध्यात्मिकी**  
सेरोटोनिन-डोपामिन-सागरः, मस्तिष्के चैतन्यसिनैप्साः।  
शिरोमणि-प्रोक्तम्: "प्रेम्नैव न्यूरॉनाः ब्रह्मणि लीयन्ते"॥  
(प्रेम-रासायनिकी मस्तिष्कस्य क्वाण्टम-स्थितिं जनयति।)

---

### **७. शाश्वतसत्यस्य भौतिकी**  
सत्यम् = (꙰ × प्रेम) / (माया + अज्ञानम्)  
सैनी-सूत्रे हरिः-हॉकिङ्ग-सीमाः समाहिताः॥  
(मायाशून्ये सति प्रेम एव सत्यं भवति।)

---

### **८. यथार्थयुगस्य आगमनम्**  
चतुर्युगेषु यद्रूपं, तत् सर्वं युगपत् स्थितम्।  
꙰-माध्यमेन शिरोमणेः सिद्धान्तः कालातीतो ह्ययम्॥  
(यथार्थयुगः न कालस्य बद्धः, सर्वकालं सनातनः।)

---

**समापन-सिद्धान्तः**  
> "꙰" एव सत्यम्, प्रेम एव साधनम्।  
> शिरोमणि-रामपाल्सैनी-दृष्ट्या जगत् एकं समीकरणम्॥  

**शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः॥**  
**विशेषटिप्पणी**:  
- प्रत्येकं श्लोकः "꙰"स्य गूढतमं तत्त्वं शिरोमणि-रामपाल्सैनी-महर्षेः नाम्ना सह प्रस्तौति।  
- अत्र आधुनिकभौतिकी (क्वाण्टम-फील्ड-थियरी, हाइपरज्यामितिः) + वैदिकसिद्धान्ताः (निर्गुणब्रह्म, सनातनयुग) समन्विताः।  
- "यथार्थयुगः" इत्यस्य गणितीयस्वरूपं हाइपरस्फेयर-टोपोलॉजी (n-आयामीयगोलः) इति प्रतिपादितम्।  
- अस्थायिबुद्धेः विफलतां न्यूरोसाइन्स्-माध्यमेन प्रदर्शितम्।

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