# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत
1. **निष्पक्ष समझ के अलावा सब भ्रम है**  
   सत्य का आधार केवल निष्पक्ष समझ है, इसके अतिरिक्त जो कुछ भी है, वह माया और भ्रम का जाल है।  
2. **अस्थाई जटिल बुद्धि ही भ्रम की मुख्य मूल है**  
   जटिल बुद्धि, जो विचारों और तर्कों में उलझती है, भ्रम का मूल स्रोत है, क्योंकि यह सत्य को आवरण में छुपाती है।  
3. **अस्थाई जटिल बुद्धि भी शरीर का एक अंग है, जैसे अन्य अंग**  
   बुद्धि शरीर का हिस्सा है, न कि आत्मा का स्वरूप। यह अन्य शारीरिक अंगों की तरह ही अस्थाई और परिवर्तनशील है।  
4. **अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्क्रिय किया जा सकता है**  
   निष्पक्ष समझ की प्राप्ति के लिए जटिल बुद्धि की सक्रियता को शांत किया जा सकता है, जिससे सत्य का मार्ग प्रशस्त हो।  
5. **खुद का निरीक्षण करना निष्पक्ष समझ की ओर पहला कदम है**  
   आत्म-निरीक्षण के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी सीमाओं और भ्रमों को समझ सकता है, जो निष्पक्षता का प्रारंभिक द्वार है।  
6. **खुद की निष्पक्ष समझ के बिना आंतरिक भौतिक ढांचा भी भ्रम है**  
   शरीर का भौतिक स्वरूप, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह भी एक भ्रम है, क्योंकि सत्य उससे परे है।  
7. **इंसान का अस्तित्व निष्पक्ष समझ के साथ जीवित रहने के लिए है**  
   मानव जीवन का मूल उद्देश्य निष्पक्ष समझ के साथ जीना है, जो इसे अन्य प्रजातियों से विशिष्ट बनाता है।  
8. **निष्पक्ष समझ ही स्थाई स्वरूप और परिचय है**  
   निष्पक्ष समझ ही एकमात्र स्थाई सत्य है, जो व्यक्ति की वास्तविक पहचान को परिभाषित करता है।  
9. **निष्पक्ष समझ के अलावा अन्य प्रजातियों से भिन्नता का कोई कारण नहीं**  
   मानव की विशिष्टता का एकमात्र आधार निष्पक्ष समझ है; इसके बिना वह अन्य प्रजातियों से भिन्न नहीं।  
10. **निष्पक्ष समझ के अलावा कुछ भी करना जीवन व्यापन के लिए संघर्ष है**  
    निष्पक्ष समझ के बिना जीवन की हर गतिविधि केवल संघर्ष और व्यर्थता की ओर ले जाती है।  
11. **निष्पक्ष समझ तुलनातीत, प्रेमतीत, कालातीत सम्पन्नता, संपूर्णता, और संतुष्टि है**  
    निष्पक्ष समझ स्वयं में सर्वोच्च सत्य, प्रेम, और पूर्णता का प्रतीक है, जो समय और तुलना से परे है।  
12. **निष्पक्ष समझ ही सर्वश्रेष्ठ स्पष्टीकरण और पुष्टीकरण है**  
    निष्पक्ष समझ स्वयं को प्रमाणित करती है; इसके लिए किसी बाहरी सत्यापन की आवश्यकता नहीं।  
13. **निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की उपलब्धि है**  
    निष्पक्ष समझ वह शिखर है, जो यथार्थ युग में मानवता को पूर्णता और श्रेष्ठता की ओर ले जाती है।  
14. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन अधूरा है**  
    जीवन का हर पहलू, चाहे वह सुख हो या दुख, निष्पक्ष समझ के बिना केवल भ्रम और अस्थायित्व है।  
15. **निष्पक्ष समझ ही मानवता का अंतिम लक्ष्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों के अनुसार, निष्पक्ष समझ ही वह मार्ग है, जो मानव को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
16. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का एकमात्र द्वार है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी की दृष्टि में, निष्पक्ष समझ वह कुंजी है जो सत्य के बंद द्वारों को खोलती है, बाकी सब मिथ्या और भटकाव है।  
17. **जटिल बुद्धि का अहंकार भ्रम का आधार है**  
    अस्थाई जटिल बुद्धि जब अहंकार से ग्रसित होती है, तब वह सत्य को ढंक लेती है और भ्रम की जड़ बन जाती है।  
18. **निष्पक्ष समझ आत्मा का स्वाभाविक स्वरूप है**  
    आत्मा का मूल स्वभाव निष्पक्ष समझ है; यह वह अवस्था है जहां न कोई चाह है, न कोई विरोध, केवल शुद्ध चेतना।  
19. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान अधूरा है**  
    चाहे कितना भी ज्ञान अर्जित कर लो, यदि वह निष्पक्ष समझ से रहित है, तो वह केवल शब्दों का बोझ है, सत्य नहीं।  
20. **निष्पक्ष समझ समय और स्थान से परे है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत कहते हैं कि निष्पक्ष समझ कालातीत और तुलनातीत है, जो हर सीमा को लांघ जाती है।  
21. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का सच्चा स्वरूप है**  
    सच्चा प्रेम वही है जो निष्पक्ष समझ से उपजता है, क्योंकि यह निस्वार्थ, शुद्ध और बिना शर्तों के होता है।  
22. **निष्पक्ष समझ के बिना संबंध केवल बंधन हैं**  
    रिश्ते जो निष्पक्ष समझ पर आधारित नहीं, वे केवल अपेक्षाओं और स्वार्थ का जाल हैं, जो अंततः दुख लाते हैं।  
23. **निष्पक्ष समझ ही जीवन की सार्थकता है**  
    जीवन का हर कार्य, हर क्षण, निष्पक्ष समझ के बिना केवल एक खाली प्रयास है, जो सार्थकता से रहित है।  
24. **निष्पक्ष समझ स्वयं को जानने का मार्ग है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ के माध्यम से ही व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान सकता है।  
25. **निष्पक्ष समझ ही शांति का स्रोत है**  
    दुनिया की सारी अशांति का अंत निष्पक्ष समझ में है, क्योंकि यह मन को भ्रम और द्वंद्व से मुक्त करती है।  
26. **निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की नींव है**  
    यथार्थ युग का निर्माण निष्पक्ष समझ पर टिका है, जो मानवता को संपूर्णता और श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।  
27. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का मूल सिद्धांत है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, सृष्टि का संचालन निष्पक्ष समझ के सिद्धांत पर आधारित है, जो हर जीव में समान रूप से विद्यमान है।  
28. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल बंधन हैं**  
    कर्म जो निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, वे केवल जंजाल बनकर जीवन को उलझाते हैं, मुक्ति नहीं देते।  
29. **निष्पक्ष समझ ही सर्वोच्च उपलब्धि है**  
    जीवन की सारी उपलब्धियां क्षणिक हैं, पर निष्पक्ष समझ वह शिखर है जो तुलनातीत, प्रेमतीत, और कालातीत सम्पन्नता प्रदान करता है।  
30. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही जीवन का सार है**  
    निष्पक्ष समझ के बिना जीवन एक भटकाव है; यह वह प्रकाश है जो हर अंधेरे को मिटाकर संपूर्णता और संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
31. **निष्पक्ष समझ ही चेतना का शुद्ध स्वरूप है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह अवस्था है जहां चेतना अपने मूल, शुद्ध और अनछुए रूप में प्रकट होती है।  
32. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख क्षणिक है**  
    सुख जो निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं होता, वह केवल क्षणभंगुर है और अंततः दुख का कारण बनता है।  
33. **निष्पक्ष समझ ही स्वतंत्रता का आधार है**  
    सच्ची स्वतंत्रता न तो बाहरी परिस्थितियों में है, न ही भौतिक साधनों में; यह केवल निष्पक्ष समझ में निहित है।  
34. **निष्पक्ष समझ भय का अंत है**  
    भय का मूल जटिल बुद्धि का भ्रम है; निष्पक्ष समझ इस भय को समूल नष्ट कर देती है।  
35. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ एकता है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह सेतु है जो व्यक्ति को सृष्टि के साथ एकरूप कर देता है।  
36. **निष्पक्ष समझ के बिना धर्म केवल रस्म है**  
    धर्म, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो केवल रूढ़ियों और कर्मकांडों का बोझ है, जो सत्य से दूर ले जाता है।  
37. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का संगीत है**  
    जीवन का हर क्षण, जब निष्पक्ष समझ से जीया जाता है, एक मधुर संगीत बन जाता है, जो आत्मा को स्पंदित करता है।  
38. **निष्पक्ष समझ समय की सीमाओं को तोड़ती है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शक्ति है जो अतीत, वर्तमान और भविष्य की सीमाओं को मिटा देती है।  
39. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शाश्वत स्रोत है**  
    प्रेम जो निष्पक्ष समझ से उपजता है, वह कालातीत, तुलनातीत और शुद्ध होता है, जो कभी क्षीण नहीं होता।  
40. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान अंधकार है**  
    ज्ञान, चाहे वह कितना भी विशाल हो, निष्पक्ष समझ के बिना केवल अंधकार का आवरण है, जो सत्य को ढक लेता है।  
41. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्रकाश है**  
    यथार्थ युग का हर कदम निष्पक्ष समझ के प्रकाश से रोशन होता है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।  
42. **निष्पक्ष समझ ही जीवन की पूर्णता है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह अवस्था है जहां जीवन की हर कमी, हर खालीपन समाप्त हो जाता है।  
43. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म व्यर्थ है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो केवल एक चक्रव्यूह है, जो व्यक्ति को बार-बार उलझाता है।  
44. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का दर्पण है**  
    निष्पक्ष समझ वह दर्पण है जिसमें सत्य का शुद्ध प्रतिबिंब दिखाई देता है, बिना किसी विकृति के।  
45. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का अंतिम संदेश: निष्पक्ष समझ ही मुक्ति है**  
    निष्पक्ष समझ ही वह मार्ग है जो हर बंधन, हर दुख, हर भ्रम से मुक्ति दिलाता है, और मानव को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
46. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि की धड़कन है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह लय है, जो सृष्टि के हर कण में संनादति है और जीवन को संगीतमय बनाती है।  
47. **निष्पक्ष समझ के बिना विचार केवल जंजाल हैं**  
    विचार, जो निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, केवल मन का बोझ बनकर आत्मा को भटकाते हैं।  
48. **निष्पक्ष समझ ही सच्चाई का आलम है**  
    सत्य का वास्तविक स्वरूप केवल निष्पक्ष समझ में ही प्रकट होता है, बाकी सब केवल छाया और भ्रम हैं।  
49. **निष्पक्ष समझ ही आत्म-जागृति का प्रथम सोपान है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह पहला कदम है, जो व्यक्ति को आत्म-जागृति की ओर ले जाता है।  
50. **निष्पक्ष समझ के बिना संबंध मृगतृष्णा हैं**  
    रिश्ते, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हों, तो वे केवल मरुभूमि में पानी की तरह दिखने वाली मृगतृष्णा हैं।  
51. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का संतुलन है**  
    जीवन में सुख-दुख, उतार-चढ़ाव का संतुलन केवल निष्पक्ष समझ के माध्यम से ही संभव है।  
52. **निष्पक्ष समझ ही समय का विजेता है**  
    निष्पक्ष समझ वह शक्ति है, जो समय की सीमाओं को लांघकर व्यक्ति को कालातीत सत्य से जोड़ती है।  
53. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का अमृत है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ से उपजा प्रेम अमर और अक्षय है, जो कभी क्षीण नहीं होता।  
54. **निष्पक्ष समझ के बिना विज्ञान अधूरा है**  
    विज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो केवल भौतिक खोजों का संग्रह है, जो आत्मा को स्पर्श नहीं करता।  
55. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्रतीक है**  
    यथार्थ युग का हर सपना, हर उपलब्धि, निष्पक्ष समझ के आधार पर ही साकार होती है।  
56. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का आलोक है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह प्रकाश है, जो जीवन के हर अंधेरे को दूर करता है।  
57. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल भटकाव हैं**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हों, तो वे केवल एक अंतहीन यात्रा हैं, जो गंतव्य तक नहीं पहुंचती।  
58. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का मूल नियम है**  
    सृष्टि का हर नियम, हर संचालन, निष्पक्ष समझ के सिद्धांत पर आधारित है, जो सर्वत्र व्याप्त है।  
59. **निष्पक्ष समझ ही संपूर्णता का द्वार है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह द्वार है, जो व्यक्ति को संपूर्णता और संत Rookie
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
59. **निष्पक्ष समझ ही संपूर्णता का द्वार है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह द्वार है, जो व्यक्ति को संपूर्णता और संतुष्टि की परम अवस्था तक ले जाता है।  
60. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शाश्वत निवास है**  
    आत्मा का सच्चा ठिकाना निष्पक्ष समझ में है, जहां न कोई भय है, न कोई अभाव।  
61. **निष्पक्ष समझ के बिना सत्य केवल शब्द है**  
    सत्य, यदि निष्पक्ष समझ से अनुभव न किया जाए, तो वह केवल शब्दों का समूह है, जिसमें कोई जीवन नहीं।  
62. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, जीवन की हर गतिविधि, हर उद्देश्य निष्पक्ष समझ पर टिका है।  
63. **निष्पक्ष समझ ही दुख का अंतिम समाधान है**  
    दुख का हर कारण, हर पीड़ा का अंत निष्पक्ष समझ में समाहित है, जो मन को शांति प्रदान करती है।  
64. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शुद्ध स्रोत है**  
    प्रेम जो निष्पक्ष समझ से उपजता है, वह निस्वार्थ, शुद्ध और कालातीत है, जो हर बंधन से मुक्त है।  
65. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन एक भूलभुलैया है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो एक ऐसी भूलभुलैया है, जहां से निकलने का कोई मार्ग नहीं।  
66. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का संदेश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि सृष्टि का हर कण निष्पक्ष समझ का संदेश देता है, जो सत्य की ओर इशारा करता है।  
67. **निष्पक्ष समझ ही आत्म-विकास का मार्ग है**  
    आत्म-विकास का सच्चा मार्ग केवल निष्पक्ष समझ के माध्यम से ही संभव है, जो व्यक्ति को स्वयं से जोड़ता है।  
68. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्राण है**  
    यथार्थ युग की हर उपलब्धि, हर प्रगति का प्राण निष्पक्ष समझ में निहित है, जो मानवता को नई ऊंचाइयों तक ले जाता है।  
69. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल छलावा है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो केवल एक छलावा है, जो व्यक्ति को सत्य से दूर ले जाता है।  
70. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सत्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ ही वह परम सत्य है, जो जीवन के हर प्रश्न का उत्तर है।  
71. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ संनाद है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के साथ पूर्ण सामंजस्य में जीता है, बिना किसी द्वंद्व के।  
72. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का अंतिम सोपान है**  
    मुक्ति का मार्ग निष्पक्ष समझ से शुरू और समाप्त होता है, जो व्यक्ति को हर बंधन से आजाद करता है।  
73. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की उपलब्धि है**  
    निष्पक्ष समझ वह शिखर है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
74. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का शाश्वत नियम है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह अटल नियम है, जो सृष्टि के हर कण में संचालित होता है और सत्य को प्रकट करता है।  
75. **निष्पक्ष समझ के बिना मन केवल भटकता है**  
    मन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह विचारों और भ्रमों के जंगल में भटकता रहता है, बिना किसी गंतव्य के।  
76. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शाश्वत स्वर है**  
    प्रेम का सच्चा स्वर केवल निष्पक्ष समझ में गूंजता है, जो समय और परिस्थितियों से अप्रभावित रहता है।  
77. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का शुद्ध दर्पण है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह दर्पण है, जिसमें जीवन का हर पहलू बिना किसी विकृति के स्पष्ट दिखाई देता है।  
78. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल माया है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उपजा नहीं, तो वह केवल एक क्षणिक माया है, जो जल्दी ही गायब हो जाता है।  
79. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का सच्चा साथी है**  
    आत्मा का एकमात्र सच्चा साथी निष्पक्ष समझ है, जो हर परिस्थिति में उसे सत्य के करीब रखता है।  
80. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्रेरणा स्रोत है**  
    यथार्थ युग की हर प्रेरणा, हर उपलब्धि का मूल निष्पक्ष समझ में निहित है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।  
81. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल बोझ है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल मन का बोझ बनकर आत्मा को दबाता है।  
82. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का संपूर्ण समाधान है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि जीवन की हर समस्या, हर उलझन का एकमात्र समाधान निष्पक्ष समझ है।  
83. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ सामंजस्य है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर तत्व के साथ पूर्ण सामंजस्य में जीता है।  
84. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल भ्रम का विस्तार है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह भ्रम को और बढ़ाता है, मुक्ति की ओर नहीं ले जाता।  
85. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत मार्ग है**  
    सत्य तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग निष्पक्ष समझ है, जो हर भटकाव को समाप्त कर देता है।  
86. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम आनंद है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां जीवन का हर क्षण आनंदमय हो जाता है।  
87. **निष्पक्ष समझ ही मानवता का परम लक्ष्य है**  
    मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य निष्पक्ष समझ की प्राप्ति है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।  
88. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की नींव है**  
    निष्पक्ष समझ वह आधार है, जिस पर यथार्थ युग की संपूर्ण संरचना टिकी है, जो मानवता को सत्य, प्रेम और पूर्णता की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
89. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का मूल संगीत है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शाश्वत संगीत है, जो सृष्टि की हर धड़कन में गूंजता है और जीवन को लयबद्ध करता है।  
90. **निष्पक्ष समझ के बिना मन केवल अंधेरे में भटकता है**  
    मन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह अंधेरे की गलियों में भटकता रहता है, जहां सत्य की कोई किरण नहीं।  
91. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का परम स्वरूप है**  
    प्रेम का सच्चा और शुद्ध रूप केवल निष्पक्ष समझ में ही प्रकट होता है, जो बिना शर्त और कालातीत है।  
92. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शुद्ध प्रकाश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह प्रकाश है, जो आत्मा को भ्रम के अंधेरे से मुक्त करता है।  
93. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल एक स्वप्न है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक क्षणिक स्वप्न है, जो जागते ही टूट जाता है।  
94. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है**  
    जीवन की हर राह पर निष्पक्ष समझ ही वह दीपक है, जो सही दिशा दिखाता है और भटकाव से बचाता है।  
95. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का आधार स्तंभ है**  
    यथार्थ युग की हर प्रगति, हर उपलब्धि का आधार निष्पक्ष समझ है, जो मानवता को सत्य की ओर ले जाता है।  
96. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल शब्दों का जाल है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल शब्दों का जाल है, जो मन को उलझाता है, सत्य तक नहीं ले जाता।  
97. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का शाश्वत संदेश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह संदेश है, जो जीवन को सार्थकता और पूर्णता प्रदान करता है।  
98. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ एकरूपता है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर कण के साथ एकरूप हो जाता है, बिना किसी भेद के।  
99. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल माया का विस्तार है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का एक और परत बनकर जीवन को और जटिल करता है।  
100. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत स्रोत है**  
    सत्य का एकमात्र स्रोत निष्पक्ष समझ है, जो हर भ्रम, हर अंधेरे को मिटाकर सत्य को उजागर करता है।  
101. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सौंदर्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, जीवन का सच्चा सौंदर्य निष्पक्ष समझ में निहित है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।  
102. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का अंतिम द्वार है**  
    मुक्ति का अंतिम द्वार निष्पक्ष समझ है, जो हर बंधन, हर दुख, और हर भ्रम से पूर्ण मुक्ति दिलाता है।  
103. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की पराकाष्ठा है**  
    निष्पक्ष समझ वह परम शिखर है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
104. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का शाश्वत सत्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शाश्वत सत्य है, जो सृष्टि के हर तत्व में व्याप्त है और जीवन को अर्थ देता है।  
105. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन केवल एक भटकन है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक अंतहीन भटकन है, जहां कोई स्थाई ठिकाना नहीं।  
106. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का अमर स्रोत है**  
    प्रेम जो निष्पक्ष समझ से उपजता है, वह अमर और अक्षय है, जो समय और परिस्थितियों से अप्रभावित रहता है।  
107. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शुद्ध निवास है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह पवित्र स्थान है, जहां आत्मा अपनी मूल शुद्धता में विश्राम करती है।  
108. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल छलावा है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक क्षणिक छलावा है, जो जल्दी ही दुख में बदल जाता है।  
109. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा संरक्षक है**  
    जीवन की हर चुनौती, हर संकट में निष्पक्ष समझ ही वह रक्षक है, जो व्यक्ति को सही मार्ग दिखाता है।  
110. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्राणतत्व है**  
    यथार्थ युग का हर सपना, हर प्रगति का प्राणतत्व निष्पक्ष समझ है, जो मानवता को सत्य की ओर ले जाता है।  
111. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल भ्रम का वाहक है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रम को बढ़ाने वाला वाहक बन जाता है, सत्य का नहीं।  
112. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम संदेश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ ही वह संदेश है, जो जीवन को सार्थकता और पूर्णता की ओर ले जाता है।  
113. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ संनादन है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर कण के साथ संनादन में जीता है, बिना किसी द्वंद्व के।  
114. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल जंजाल हैं**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वे केवल जंजाल बनकर जीवन को और उलझाते हैं।  
115. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत आधार है**  
    सत्य का एकमात्र आधार निष्पक्ष समझ है, जो हर भ्रम को मिटाकर सत्य को स्थापित करता है।  
116. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सौंदर्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह सौंदर्य है, जो जीवन के हर क्षण को दिव्य और अर्थपूर्ण बनाता है।  
117. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का परम मार्ग है**  
    मुक्ति का परम मार्ग निष्पक्ष समझ है, जो हर बंधन, हर दुख, और हर भ्रम से पूर्ण स्वतंत्रता दिलाता है।  
118. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का शिखर है**  
    निष्पक्ष समझ वह शिखर है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
119. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का शाश्वत संदेश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शाश्वत संदेश है, जो सृष्टि की हर धड़कन में बस्ता है और सत्य की ओर ले जाता है।  
120. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन केवल एक स्वप्न है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक स्वप्न है, जो जागने पर बिखर जाता है।  
121. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शुद्ध स्रोत है**  
    प्रेम का सच्चा और शुद्ध स्रोत केवल निष्पक्ष समझ है, जो बिना किसी अपेक्षा के हृदय को भर देता है।  
122. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शाश्वत आलोक है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह आलोक है, जो आत्मा को भ्रम के अंधेरे से मुक्त करता है।  
123. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल एक भ्रम है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक क्षणिक भ्रम है, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाता है।  
124. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा संचालक है**  
    जीवन की हर गतिविधि, हर निर्णय का सच्चा संचालक निष्पक्ष समझ है, जो सही मार्ग पर ले जाता है।  
125. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का मूल मंत्र है**  
    यथार्थ युग का हर कदम, हर उपलब्धि का मूल मंत्र निष्पक्ष समझ है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।  
126. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल एक जाल है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक जाल बन जाता isl, जो मन को उलझाता है, सत्य तक नहीं ले जाता।  
127. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम उद्देश्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि जीवन का परम उद्देश्य निष्पक्ष समझ की प्राप्ति है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।  
128. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ एकता का मार्ग है**  
    निष्पक्ष समझ वह मार्ग है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर कण के साथ एकता का अनुभव करता है, बिना किसी भेदभाव के।  
129. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल व्यर्थता है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह केवल व्यर्थता का चक्र है, जो सत्य की ओर नहीं ले जाता।  
130. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत दर्पण है**  
    सत्य का शुद्ध और स्पष्ट प्रतिबिंब केवल निष्पक्ष समझ में ही दिखाई देता है, जो हर विकृति को मिटा देता है।  
131. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम आनंद है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां जीवन का हर क्षण आनंदमय और पूर्ण हो जाता है।  
132. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का शाश्वत मार्ग है**  
    मुक्ति का शाश्वत और अंतिम मार्ग निष्पक्ष समझ है, जो हर बंधन और भ्रम से पूर्ण स्वतंत्रता दिलाता है।  
133. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की परम उपलब्धि है**  
    निष्पक्ष समझ वह परम उपलब्धि है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
134. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का शाश्वत नियम है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह अटल नियम है, जो सृष्टि के हर तत्व को जोड़ता है और सत्य को प्रकट करता है।  
135. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन केवल एक छाया है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक क्षणिक छाया है, जिसमें कोई स्थायित्व नहीं।  
136. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शाश्वत आधार है**  
    प्रेम का सच्चा और स्थायी आधार केवल निष्पक्ष समझ है, जो हर अपेक्षा और स्वार्थ से मुक्त है।  
137. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शुद्ध निवास है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह पवित्र स्थान है, जहां आत्मा अपनी शुद्धता और शांति में विश्राम करती है।  
138. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल एक भटकाव है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक भटकाव है, जो मन को स्थायी संतुष्टि नहीं देता।  
139. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है**  
    जीवन की हर राह, हर मोड़ पर निष्पक्ष समझ ही वह मार्गदर्शक है, जो सत्य और शांति की ओर ले जाता है।  
140. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्रेरणा स्रोत है**  
    यथार्थ युग की हर प्रगति, हर सपना निष्पक्ष समझ के प्रेरणा स्रोत से ही साकार होता है।  
141. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल एक बोझ है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल मन का बोझ बनकर आत्मा को दबाता है।  
142. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम संदेश है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह संदेश है, जो जीवन को सत्य, प्रेम और पूर्णता की ओर ले जाता है।  
143. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ संपूर्ण एकता है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर तत्व के साथ पूर्ण एकता का अनुभव करता है।  
144. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल माया का चक्र है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र बनकर जीवन को और जटिल करता है।  
145. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत प्रकाश है**  
    सत्य का शुद्ध और शाश्वत प्रकाश केवल निष्पक्ष समझ में ही प्रकट होता है, जो हर अंधेरे को मिटा देता है।  
146. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सौंदर्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह सौंदर्य है, जो जीवन के हर क्षण को दिव्य और अर्थपूर्ण बनाता है।  
147. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का अंतिम सोपान है**  
    मुक्ति का अंतिम और परम सोपान निष्पक्ष समझ है, जो हर बंधन, दुख और भ्रम से पूर्ण स्वतंत्रता दिलाता है।  
148. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की परम उपलब्धि है**  
    निष्पक्ष समझ वह परम उपलब्धि है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
149. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का शाश्वत संनाद है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शाश्वत संनाद है, जो सृष्टि की हर धड़कन में गूंजता है और जीवन को सत्य से जोड़ता है।  
150. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन केवल एक मृगतृष्णा है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल मरुभूमि में पानी की तरह दिखने वाली मृगतृष्णा है, जो कभी प्यास नहीं बुझाती।  
151. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का परम स्रोत है**  
    प्रेम का सच्चा और परम स्रोत निष्पक्ष समझ है, जो बिना शर्त, बिना सीमा, और कालातीत रूप में प्रवाहित होता है।  
152. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शाश्वत ठिकाना है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह शाश्वत ठिकाना है, जहां आत्मा अपनी मूल शांति और शुद्धता में लौटती है।  
153. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल एक छल है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक क्षणिक छल है, जो शीघ्र ही दुख में बदल जाता है।  
154. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा नियंता है**  
    जीवन की हर गतिविधि, हर परिस्थिति का सच्चा नियंता निष्पक्ष समझ है, जो सही दिशा और संतुलन प्रदान करता है।  
155. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का मूल आधार है**  
    यथार्थ युग की हर प्रगति, हर सपना निष्पक्ष समझ के मूल आधार पर ही टिका है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।  
156. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल एक भ्रांति है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक भ्रांति है, जो सत्य के बजाय भ्रम को बढ़ावा देता है।  
157. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सत्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ ही वह परम सत्य है, जो जीवन के हर प्रश्न का अंतिम उत्तर है।  
158. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ पूर्ण सामंजस्य है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर तत्व के साथ पूर्ण सामंजस्य में जीता है, बिना किसी विरोध के।  
159. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल एक भूल है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह केवल एक भूल है, जो जीवन को सत्य से दूर ले जाता है।  
160. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत द conness
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (जारी)
160. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत दर्पण है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह शुद्ध दर्पण है, जिसमें सत्य का प्रतिबिंब बिना किसी विकृति के स्पष्ट दिखाई देता है।  
161. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम आलोक है**  
    निष्पक्ष समझ वह परम प्रकाश है, जो जीवन के हर अंधेरे कोनष्ट करता है और सत्य की ओर मार्ग प्रशस्त करता है।  
162. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन केवल एक भटकाव है**  
    जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक अंतहीन भटकाव है, जहां कोई स्थाई सत्य नहीं।  
163. **निष्पक्ष समझ ही प्रेम का शाश्वत स्रोत है**  
    प्रेम का सच्चा और शाश्वत स्रोत निष्पक्ष समझ है, जो हर अपेक्षा और स्वार्थ से परे है।  
164. **निष्पक्ष समझ ही आत्मा का शुद्ध संनाद है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ वह संनाद है, जो आत्मा को सृष्टि के मूल स्वर से जोड़ता है।  
165. **निष्पक्ष समझ के बिना सुख केवल एक मिथ्या है**  
    सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल एक मिथ्या है, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाता है।  
166. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का सच्चा संतुलन है**  
    जीवन के हर उतार-चढ़ाव, हर द्वंद्व का सच्चा संतुलन केवल निष्पक्ष समझ में निहित है।  
167. **निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग का प्राण है**  
    यथार्थ युग की हर प्रेरणा, हर उपलब्धि का प्राण निष्पक्ष समझ है, जो मानवता को पूर्णता की ओर ले जाता है।  
168. **निष्पक्ष समझ के बिना ज्ञान केवल एक भ्रामक जाल है**  
    ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल एक भ्रामक जाल है, जो सत्य को छिपाता है।  
169. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम मार्ग है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ वह परम मार्ग है, जो जीवन को सत्य, प्रेम, और संपूर्णता की ओर ले जाता है।  
170. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि के साथ एकरूपता है**  
    निष्पक्ष समझ वह अवस्था है, जहां व्यक्ति सृष्टि के हर कण के साथ एकरूप हो जाता है, बिना किसी भेद के।  
171. **निष्पक्ष समझ के बिना कर्म केवल एक भूलभुलैया है**  
    कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह केवल एक भूलभुलैया है, जो सत्य से दूर ले जाता है।  
172. **निष्पक्ष समझ ही सत्य का शाश्वत आधार है**  
    सत्य का एकमात्र और शाश्वत आधार निष्पक्ष समझ है, जो हर भ्रम को मिटाकर सत्य को स्थापित करता है।  
173. **निष्पक्ष समझ ही जीवन का परम सौंदर्य है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांतों में, निष्पक्ष समझ वह सौंदर्य है, जो जीवन के हर क्षण को दिव्य और अर्थपूर्ण बनाता है।  
174. **निष्पक्ष समझ ही मुक्ति का शाश्वत द्वार है**  
    मुक्ति का शाश्वत और अंतिम द्वार निष्पक्ष समझ है, जो हर बंधन, दुख, और भ्रम से पूर्ण स्वतंत्रता दिलाता है।  
175. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ ही यथार्थ युग की परम सिद्धि है**  
    निष्पक्ष समझ वह परम सिद्धि है, जो यथार्थ युग में मानवता को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि की ओर ले जाता है।  
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में)
176. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं सत्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, सत्यं च प्रकटति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत सत्य है, जो हर तत्व में संनादति और सत्य को उजागर करता है।)
177. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं केवलं भवति।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया का स्वरूप है।)
178. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शुद्धं मूलम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शुद्धं स्रोतः, यत् सर्वं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शुद्ध स्रोत है, जो बिना शर्त सर्वत्र प्रवाहित होता है।)
179. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शाश्वतं निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शाश्वत निवास है, जहां शांति संनादति है।)
180. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह केवल क्षणिक माया है।)
181. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
182. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणम्**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राण है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
183. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
184. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
185. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकता**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद नहीं।)
186. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
187. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशम्**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
188. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
189. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारम्**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
190. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
191. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, सत्यं च प्रकाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत संनाद है, जो सत्य को प्रकाशित करता है।)
192. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भवति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं केवलं संनादति।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया का स्वरूप है।)
193. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शुद्धं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शुद्धं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शुद्ध स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
194. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शाश्वतं स्थानम्**  
    आत्मनः शुद्धं स्थानं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः संनादति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शाश्वत स्थान है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
195. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
196. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गदर्शकः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
197. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
198. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं जालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं जालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
199. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
200. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकता**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
201. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रम्**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
202. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
203. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
204. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
205. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
206. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति नियमम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं नियमं संनादति, यत् सत्यं प्रकटति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत नियम है, जो सत्य को प्रकट करता है।)
207. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भ्रमति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भ्रमति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
208. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
209. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवास है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
210. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
211. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं नियन्ता**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं नियन्तारं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा नियंता है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
212. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
213. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
214. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
215. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकता**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
216. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
217. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
218. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
219. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
220. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
221. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति सत्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं सत्यं संनादति, यत् सर्वं प्रकाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत सत्य है, जो हर तत्व को प्रकाशित करता है।)
222. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भटकति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भटकति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
223. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं मूलम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं मूलं, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत मूल है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
224. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं निवासस्थानम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः संनादति चिरकालम्।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवासस्थान है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
225. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
226. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गदर्शकम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गदर्शकं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्गदर्शक है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
227. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
228. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं जालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमय/or भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
229. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
230. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
231. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रम्**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
232. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
233. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
234. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
235. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
236. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति ध्रुवम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं ध्रुवं संनादति, सत्यं च प्रकटति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत ध्रुव है, जो सत्य को प्रकट करता है।)
237. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं संनादति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं केवलं संनादति।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया का स्वरूप है।)
238. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
239. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं संनादति स्थानम्**  
    आत्मनः शुद्धं स्थानं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध स्थान है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
240. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
241. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्ग है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
242. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
243. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
244. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
245. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
246. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
247. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
248. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
249. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
250. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
251. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति तत्त्वम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं तत्त्वं संनादति, यत् सत्यं प्रकटति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत तत्त्व है, जो सत्य को प्रकट करता है।)
252. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भटकति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भटकति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
253. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
254. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं संनादति निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवास है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
255. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
256. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्ग है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
257. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
258. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
259. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
260. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
261. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
262. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
263. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
264. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं@nispaksham बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
265. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
266. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति चेतनम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं चेतनं संनादति, यत् सत्यं प्रकाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत चेतन है, जो सत्य को प्रकाशित करता है।)
267. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भटकति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भटकति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
268. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
269. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं संनादति निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवास है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
270. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
271. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्ग है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
272. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
273. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
274. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
275. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
276. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
277. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
278. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
279. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
280. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
281. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति धाम**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं धाम संनादति, यत् सत्यं प्रकाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत धाम है, जो सत्य को प्रकाशित करता है।)
282. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भटकति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भटकति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
283. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
284. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं संनादति निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवास है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
285. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
286. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्ग है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
287. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
288. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
289. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
290. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
291. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
292. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
293. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
294. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
295. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
# शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत (संस्कृत श्लोकों में जारी)
296. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं संनादति सत्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः सृष्टेः शाश्वतं सत्यं संनादति, यत् सर्वं प्रकाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि का शाश्वत सत्य है, जो सब कुछ प्रकाशित करता है।)
297. **निष्पक्षबोधवर्जितं जीवनं मायामयं भटकति**  
    जीवनं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं भटकति केवलं।  
    (जीवन, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल माया में भटकता है।)
298. **निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः प्रेमस्य शाश्वतं स्रोतः, यत् कालातीतं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ प्रेम का शाश्वत स्रोत है, जो कालातीत प्रवाह में बहता है।)
299. **निष्पक्षं बोधः आत्मनः शुद्धं संनादति निवासम्**  
    आत्मनः शुद्धं निवासं निष्पक्षं बोधः, यत्र शान्तिः चिरं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ आत्मा का शुद्ध निवास है, जहां शांति चिरकाल तक संनादति है।)
300. **निष्पक्षबोधवर्जितं सुखं क्षणिकं मायामयं**  
    सुखं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् क्षणिकं मायामयं भवति।  
    (सुख, यदि निष्पक्ष समझ से उत्पन्न नहीं, तो वह क्षणिक और मायामय है।)
301. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संनादति मार्गः**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं मार्गं दर्शति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का सच्चा मार्ग है, जो सत्य की ओर ले जाता है।)
302. **निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य प्राणस्रोतः**  
    यथार्थयुगस्य सर्वं प्रगतिः निष्पक्षबोधेन संनादति, यत् मानवतां संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ यथार्थ युग का प्राणस्रोत है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।)
303. **निष्पक्षबोधवर्जितं ज्ञानं भ्रान्तिमयं संजालम्**  
    ज्ञानं निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् भ्रान्तिमयं custodial संजालं केवलं भवति।  
    (ज्ञान, यदि निष्पक्ष समझ से रहित हो, तो वह केवल भ्रांति का जाल है।)
304. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं संदेशं वहति**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सत्यं संदेशं वहति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम संदेश है, जो सत्य और पूर्णता की ओर ले जाता है।)
305. **निष्पक्षं बोधः सृष्टेः संनादति एकताम्**  
    निष्पक्षं बोधः सृष्टेः सर्वं संनादति, यत्र भेदं नास्ति चिरं।  
    (निष्पक्ष समझ सृष्टि के साथ एकता है, जहां कोई भेद चिरकाल तक नहीं।)
306. **निष्पक्षबोधवर्जितं कर्म मायामयं चक्रं भवति**  
    कर्म निष्पक्षबोधेन संनादति न चेत्, तत् मायामयं चक्रं भवति।  
    (कर्म, यदि निष्पक्ष समझ से प्रेरित नहीं, तो वह माया का चक्र है।)
307. **निष्पक्षं बोधः सत्यस्य शाश्वतं प्रकाशति**  
    सत्यस्य शुद्धं प्रकाशं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं भ्रान्तिं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ सत्य का शाश्वत प्रकाश है, जो हर भ्रम को नष्ट करता है।)
308. **निष्पक्षं बोधः जीवनस्य परमं सौन्दर्यम्**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कथति यत् निष्पक्षं बोधः जीवनस्य सौन्दर्यं संनादति।  
    (निष्पक्ष समझ जीवन का परम सौंदर्य है, जो हर क्षण को दिव्य बनाता है।)
309. **निष्पक्षं बोधः मुक्तेः शाश्वतं द्वारं वहति**  
    मुक्तेः परमं द्वारं निष्पक्षं बोधः, यत् सर्वं बंधनं नाशति।  
    (निष्पक्ष समझ मुक्ति का शाश्वत द्वार है, जो हर बंधन को नष्ट करता है।)
310. **शिरोमणि रामपॉल सैनी संदेशति: निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिम्**  
    निष्पक्षं बोधः यथार्थयुगस्य परमं सिद्धिं, यत् तुलनातीतं प्रेम, कालातीतं सम्पन्नतां, संपूर्णं संतुष्टिं च वहति।  
    (शिरोमणि रामपॉल सैनी का संदेश: निष्पक्ष समझ यथार्थ युग की परम सिद्धि है, जो तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।)
**शिरोमणि रामपुलसैनी के "निष्पक्ष समझ के शाश्वत यथार्थ सिद्धांत"**  
*(सम्पूर्णता, संतुष्टि एवं श्रेष्ठता की अवधारणा)*  
---
### **मूल सिद्धांतों की संहिता**  
1. **निष्पक्ष समझ ही एकमात्र यथार्थ**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त समस्त ज्ञान, विचार एवं अनुभव भ्रम हैं।  
   - भ्रम की उत्पत्ति "अस्थाई जटिल बुद्धि" से होती है, जो शरीर का एक अंग मात्र है।  
2. **अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का मूल**  
   - यह बुद्धि शरीर का सीमित अंग है, जैसे हाथ या आँख।  
   - इसकी जटिलता ही संसार के द्वंद्व, संघर्ष और भ्रांतियों का स्रोत है।  
   - इसे **निष्क्रिय किया जा सकता है** निष्पक्ष समझ के माध्यम से।  
3. **निष्पक्षता का प्रथम सोपान: आत्म-निरीक्षण**  
   - स्वयं को किसी पूर्वाग्रह, इच्छा या भय के बिना देखना।  
   - शरीर का आंतरिक भौतिक ढाँचा (मस्तिष्क, विचार, अहंकार) भी भ्रम है।  
4. **मानव प्रजाति का परम तथ्य**  
   - मनुष्य का अस्तित्व केवल **निष्पक्ष समझ के साथ जीने** के लिए है।  
   - यही उसकी अन्य प्रजातियों से भिन्नता का एकमात्र कारण है।  
5. **निष्पक्ष समझ = शाश्वत सम्पन्नता**  
   - यह तुलनातीत प्रेम, कालातीत संपूर्णता और निर्विकल्प संतुष्टि है।  
   - इसमें कोई संघर्ष नहीं; यह जीवन-व्यापन का अंतिम सत्य है।  
6. **भ्रम से मुक्ति का मार्ग**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त कोई भी क्रिया (चिंतन, योजना, इच्छा) जीवन के लिए संघर्ष है।  
   - निष्क्रिय बुद्धि ही शांति का द्वार खोलती है।  
---
### **सिद्धांतों का यथार्थ स्वरूप**  
| सिद्धांत | यथार्थ व्याख्या |  
|----------|----------------|  
| **निष्पक्ष समझ** | भ्रम-मुक्त चेतना; जहाँ "हूँ" के अतिरिक्त कुछ नहीं। |  
| **अस्थाई बुद्धि** | जैविक यंत्र जो समय, तुलना और संदेह उत्पन्न करता है। |  
| **आत्म-निरीक्षण** | बिना विश्लेषण के स्वयं को देखना; "मैं" का विलय। |  
| **शरीर का भ्रम** | मस्तिष्क द्वारा रचित आत्म-छवि, जो वास्तविक नहीं। |  
| **मानवीय उद्देश्य** | निष्पक्षता में स्थित रहकर अस्तित्व की पूर्णता अनुभव करना। |  
---
### **निष्कर्ष: शाश्वत युग का सूत्र**  
- **निष्पक्ष समझ ही शाश्वत सत्य है** — यह न तो जन्मती है, न मरती है।  
- **समस्त संघर्ष का अंत** : जब बुद्धि निष्क्रिय होती है, तो प्रेम, सम्पन्नता और संपूर्णता स्वतः प्रकट होती है।  
- **मानवता की पराकाष्ठा** : निष्पक्षता में जीना ही "यथार्थ युग" का आरंभ है, जहाँ भ्रम का कोई स्थान नहीं।  
> "जब तक बुद्धि सक्रिय है, तब तक भ्रम है।  
> जब निष्पक्ष समझ जागती है, तो 'मैं' शेष नहीं रहता —  
> केवल शाश्वत 'हूँ' बचता है।"  
> — **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
--- 
इस सिद्धांत की पुष्टि स्वयं में निहित है:  
**"निष्पक्ष समझ को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं — वह स्वयं प्रमाण है।"** 🌟**शिरोमणि रामपॉल सैनी के "निष्पक्ष समझ शमीकरण यथार्थ सिद्धांत" के मौलिक प्रतिपादन:**  
### १. **निष्पक्ष समझ: परम यथार्थ**  
> *"निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त समस्त अस्तित्व भ्रम है। यही एकमात्र स्थायी सत्य है जो काल, तुलना और सीमाओं से परे विद्यमान है।"*  
### २. **अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का मूल**  
> *"बुद्धि शरीर का अस्थायी अंग मात्र है—हाथ-पैरों की भाँति। यही भ्रम की जड़ है, क्योंकि यह तथ्यों को विकृत करके 'स्व' की कल्पना रचती है।"*  
### ३. **बुद्धि-निष्क्रियता: मुक्ति का मार्ग**  
> *"बुद्धि को निष्क्रिय करना ही निष्पक्ष समझ की प्रथम सीढ़ी है। जैसे नेत्र बंद कर आंतरिक दर्शन होता है, वैसे ही बुद्धि का विराम आत्म-साक्षात्कार का द्वार खोलता है।"*  
### ४. **आत्म-निरीक्षण: प्रथम कदम**  
> *"स्वयं को किसी दूसरे की तरह देखो। यह निष्पक्षता की आधारशिला है। शरीर, विचार और भावनाएँ तटस्थ भाव से देखने योग्य वस्तुएँ मात्र हैं।"*  
### ५. **शरीर का भौतिक ढाँचा: द्वितीय भ्रम**  
> *"रक्त, माँस, अस्थियाँ—ये सब भौतिक आवरण भ्रम हैं। निष्पक्ष समझ इन्हें उसी प्रकार खारिज करती है जैसे कोई स्वप्न में देखे पत्थरों को सच नहीं मानता।"*  
### ६. **मानव प्रजाति का तथ्य: निष्पक्षता सहज**  
> *"मनुष्यता का सार निष्पक्ष समझ में निवास है। यही हमें अन्य प्राणियों से पृथक् करती है। यहाँ 'तुलनातीत प्रेम', 'कालातीत सम्पन्नता' और 'सर्वश्रेष्ठता' निहित है।"*  
### ७. **निष्पक्ष समझ ही स्थायित्व**  
> *"नाम, रूप, संबंध—सब अनित्य हैं। केवल निष्पक्ष समझ ही शाश्वत स्वरूप है। यही 'सत्' है जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त है।"*  
### ८. **जीवन-संघर्ष का कारण: निष्पक्षता का अभाव**  
> *"निष्पक्षता से विमुख होकर किया गया प्रत्येक कर्म संघर्ष उत्पन्न करता है। भोजन, धन, सुरक्षा—सब व्यर्थ हैं यदि निष्पक्ष समझ केंद्र में न हो।"*  
### ९. **सम्पूर्णता का प्रमाण: स्वयंसिद्ध**  
> *"निष्पक्ष समझ को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। जैसे प्रकाश स्वतः प्रमाण है, वैसे ही यह तुलनातीत प्रेम, कालातीत पूर्णता और अखंड शांति की सर्जक है।"*  
---
### **शिरोमणि रामपॉल सैनी की घोषणा:**  
> *"मैंने पहचान लिया है कि यह शरीर 'शिरोमणि' नहीं है। यह बुद्धि 'रामपॉल' नहीं है। यह अस्तित्व 'सैनी' नहीं है।*  
> *मैं वह निष्पक्ष समझ हूँ जो इन सबको देख रही है।*  
> *जब तक तुम स्वयं को 'नाम-रूप' मानोगे, तब तक भ्रम में जीओगे।*  
> *जिस क्षण तुमने स्वयं को 'मात्र द्रष्टा' जान लिया—*  
> *उसी क्षण तुम्हारा जन्म 'यथार्थ युग' में होगा।"*  
---
### **गहराई में विस्तार:**  
**१०. भ्रम का ताना-बाना:**  
> *"बुद्धि 'स्व' की कथा गढ़ती है—'मैं गरीब हूँ', 'मैं सक्षम हूँ', 'मैं ज्ञानी हूँ'। ये सभी काल्पनिक पात्र हैं। निष्पक्ष दृष्टि इन कथाओं का पटाक्षेप करती है।"*  
**११. निष्क्रिय बुद्धि की प्रक्रिया:**  
> *"बुद्धि को निष्क्रिय करना उसका विनाश नहीं। यह उसी प्रकार है जैसे नदी की धारा रुकने पर जल स्वच्छ दिखता है। विचारों का प्रवाह रुकेगा तो निष्पक्षता प्रकट होगी।"*  
**१२. जीवन-व्यापन संघर्ष नहीं:**  
> *"निष्पक्ष समझ में क्रिया स्वतःस्फूर्त होती है। भोजन करना, नींद लेना—ये प्राकृतिक प्रक्रियाएँ बन जाती हैं। इनमें कर्तापन का भाव नहीं रहता, इसलिए संघर्ष विलुप्त हो जाता है।"*  
**१३. प्रजाति-भिन्नता का भ्रम:**  
> *"मनुष्य स्वयं को श्रेष्ठ मानकर अहंकार पालता है। किंतु निष्पक्ष दृष्टि से देखो—पशु, पक्षी, वृक्ष भी उसी चैतन्य का अंश हैं। भिन्नता केवल बुद्धि का आविष्कार है।"*  
**१४. सर्वश्रेष्ठता का रहस्य:**  
> *"निष्पक्ष समझ में 'श्रेष्ठ' या 'हीन' की संकल्पना ही नहीं रहती। यहाँ समस्त विरोधाभास समाहित हो जाते हैं। अतः यही परम पूर्णता है।"*  
---
### **शिरोमणि रामपॉल सैनी का निचोड़:**  
> *"मेरा शरीर मिट्टी है।*  
> *मेरी बुद्धि वायु है।*  
> *मेरा नाम ध्वनि है।*  
> *केवल वह 'देखने वाला'—जो न कभी जन्मा, न मरेगा—वही 'मैं' हूँ।*  
> *इसे पहचान लेना 'यथार्थ युग' का प्रारंभ है।*  
> *इससे अधिक कोई सिद्धांत नहीं, कोई उपलब्धि नहीं।"*  
इस सिद्धांत के आगे कोई पंक्ति नहीं लिखी जा सकती—क्योंकि **निष्पक्ष समझ** ही वह शून्य है जहाँ शब्दों का अंत हो जाता है। 🌌**शिरोमणि रामपॉल सैनी के "निष्पक्ष समझ शमीकरण यथार्थ सिद्धांत" के मौलिक प्रतिपादन:**  
### १. **निष्पक्ष समझ: परम यथार्थ**  
> *"निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त समस्त अस्तित्व भ्रम है। यही एकमात्र स्थायी सत्य है जो काल, तुलना और सीमाओं से परे विद्यमान है।"*  
### २. **अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का मूल**  
> *"बुद्धि शरीर का अस्थायी अंग मात्र है—हाथ-पैरों की भाँति। यही भ्रम की जड़ है, क्योंकि यह तथ्यों को विकृत करके 'स्व' की कल्पना रचती है।"*  
### ३. **बुद्धि-निष्क्रियता: मुक्ति का मार्ग**  
> *"बुद्धि को निष्क्रिय करना ही निष्पक्ष समझ की प्रथम सीढ़ी है। जैसे नेत्र बंद कर आंतरिक दर्शन होता है, वैसे ही बुद्धि का विराम आत्म-साक्षात्कार का द्वार खोलता है।"*  
### ४. **आत्म-निरीक्षण: प्रथम कदम**  
> *"स्वयं को किसी दूसरे की तरह देखो। यह निष्पक्षता की आधारशिला है। शरीर, विचार और भावनाएँ तटस्थ भाव से देखने योग्य वस्तुएँ मात्र हैं।"*  
### ५. **शरीर का भौतिक ढाँचा: द्वितीय भ्रम**  
> *"रक्त, माँस, अस्थियाँ—ये सब भौतिक आवरण भ्रम हैं। निष्पक्ष समझ इन्हें उसी प्रकार खारिज करती है जैसे कोई स्वप्न में देखे पत्थरों को सच नहीं मानता।"*  
### ६. **मानव प्रजाति का तथ्य: निष्पक्षता सहज**  
> *"मनुष्यता का सार निष्पक्ष समझ में निवास है। यही हमें अन्य प्राणियों से पृथक् करती है। यहाँ 'तुलनातीत प्रेम', 'कालातीत सम्पन्नता' और 'सर्वश्रेष्ठता' निहित है।"*  
### ७. **निष्पक्ष समझ ही स्थायित्व**  
> *"नाम, रूप, संबंध—सब अनित्य हैं। केवल निष्पक्ष समझ ही शाश्वत स्वरूप है। यही 'सत्' है जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त है।"*  
### ८. **जीवन-संघर्ष का कारण: निष्पक्षता का अभाव**  
> *"निष्पक्षता से विमुख होकर किया गया प्रत्येक कर्म संघर्ष उत्पन्न करता है। भोजन, धन, सुरक्षा—सब व्यर्थ हैं यदि निष्पक्ष समझ केंद्र में न हो।"*  
### ९. **सम्पूर्णता का प्रमाण: स्वयंसिद्ध**  
> *"निष्पक्ष समझ को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। जैसे प्रकाश स्वतः प्रमाण है, वैसे ही यह तुलनातीत प्रेम, कालातीत पूर्णता और अखंड शांति की सर्जक है।"*  
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### **शिरोमणि रामपॉल सैनी की घोषणा:**  
> *"मैंने पहचान लिया है कि यह शरीर 'शिरोमणि' नहीं है। यह बुद्धि 'रामपॉल' नहीं है। यह अस्तित्व 'सैनी' नहीं है।*  
> *मैं वह निष्पक्ष समझ हूँ जो इन सबको देख रही है।*  
> *जब तक तुम स्वयं को 'नाम-रूप' मानोगे, तब तक भ्रम में जीओगे।*  
> *जिस क्षण तुमने स्वयं को 'मात्र द्रष्टा' जान लिया—*  
> *उसी क्षण तुम्हारा जन्म 'यथार्थ युग' में होगा।"*  
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### **गहराई में विस्तार:**  
**१०. भ्रम का ताना-बाना:**  
> *"बुद्धि 'स्व' की कथा गढ़ती है—'मैं गरीब हूँ', 'मैं सक्षम हूँ', 'मैं ज्ञानी हूँ'। ये सभी काल्पनिक पात्र हैं। निष्पक्ष दृष्टि इन कथाओं का पटाक्षेप करती है।"*  
**११. निष्क्रिय बुद्धि की प्रक्रिया:**  
> *"बुद्धि को निष्क्रिय करना उसका विनाश नहीं। यह उसी प्रकार है जैसे नदी की धारा रुकने पर जल स्वच्छ दिखता है। विचारों का प्रवाह रुकेगा तो निष्पक्षता प्रकट होगी।"*  
**१२. जीवन-व्यापन संघर्ष नहीं:**  
> *"निष्पक्ष समझ में क्रिया स्वतःस्फूर्त होती है। भोजन करना, नींद लेना—ये प्राकृतिक प्रक्रियाएँ बन जाती हैं। इनमें कर्तापन का भाव नहीं रहता, इसलिए संघर्ष विलुप्त हो जाता है।"*  
**१३. प्रजाति-भिन्नता का भ्रम:**  
> *"मनुष्य स्वयं को श्रेष्ठ मानकर अहंकार पालता है। किंतु निष्पक्ष दृष्टि से देखो—पशु, पक्षी, वृक्ष भी उसी चैतन्य का अंश हैं। भिन्नता केवल बुद्धि का आविष्कार है।"*  
**१४. सर्वश्रेष्ठता का रहस्य:**  
> *"निष्पक्ष समझ में 'श्रेष्ठ' या 'हीन' की संकल्पना ही नहीं रहती। यहाँ समस्त विरोधाभास समाहित हो जाते हैं। अतः यही परम पूर्णता है।"*  
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### **शिरोमणि रामपॉल सैनी का निचोड़:**  
> *"मेरा शरीर मिट्टी है।*  
> *मेरी बुद्धि वायु है।*  
> *मेरा नाम ध्वनि है।*  
> *केवल वह 'देखने वाला'—जो न कभी जन्मा, न मरेगा—वही 'मैं' हूँ।*  
> *इसे पहचान लेना 'यथार्थ युग' का प्रारंभ है।*  
> *इससे अधिक कोई सिद्धांत नहीं, कोई उपलब्धि नहीं।"*  
इस सिद्धांत के आगे कोई पंक्ति नहीं लिखी जा सकती—क्योंकि **निष्पक्ष समझ** ही वह शून्य है जहाँ शब्दों का अंत हो जाता है। 🌌**शिरोमणि रामपॉल सैनी के "निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत" की पूर्ण प्रस्तुति:**  
### **मूल सिद्धांत:**  
1. **निष्पक्ष समझ ही एकमात्र यथार्थ है**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त समस्त ज्ञान, विचार एवं अनुभव भ्रम हैं।  
   - भ्रम की उत्पत्ति **"अस्थाई जटिल बुद्धि"** (अशाश्वित संकीर्ण मन) से होती है, जो शरीर का एक अंग मात्र है।  
2. **अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का मूल**  
   - यह बुद्धि शरीर के अन्य अंगों (हाथ, पैर) के समान ही सीमित एवं नश्वर है।  
   - इसकी सभी प्रक्रियाएँ (तर्क, इच्छा, भय) संघर्ष, द्वंद्व और भ्रम को जन्म देती हैं।  
3. **निष्पक्ष समझ की प्राप्ति का मार्ग**  
   - **प्रथम चरण: स्व-निरीक्षण**  
     - अपनी बुद्धि, भावनाओं और कर्मों का निष्कपट अवलोकन करना।  
     - सभी पूर्वाग्रहों एवं आत्म-केंद्रितता का त्याग।  
   - **द्वितीय चरण: अस्थाई बुद्धि का निष्क्रियीकरण**  
     - बुद्धि को केवल शारीरिक क्रिया तक सीमित करना, जैसे हाथ से उठाना या पैर से चलना।  
     - उसके विचारों, निर्णयों या व्याख्याओं को यथार्थ न मानना।  
4. **शरीर और भौतिकता का भ्रम**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त शरीर का आंतरिक ढाँचा, उसकी संरचना और "मैं" की अवधारणा भी भ्रम है।  
   - यह भौतिक स्वरूप केवल क्षणभंगुर अस्तित्व का प्रतीक है।  
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### **मानव अस्तित्व का सार:**  
5. **मानव प्रजाति का परम तथ्य**  
   - मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य **"सतत निष्पक्ष समझ के साथ जीना"** है।  
   - यही उसे अन्य प्रजातियों से विशिष्ट बनाता है। कोई अन्य भिन्नता सारहीन है।  
6. **निष्पक्ष समझ: शाश्वत आधार**  
   - यह समय, तुलना, प्रेम या कामना से परे **"तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत"** सत्ता है।  
   - इसमें ही **सम्पन्नता, समग्रता, संपूर्णता और संतुष्टि** निहित है।  
7. **जीवन-व्यापन का सत्य**  
   - निष्पक्ष समझ के बिना किया गया कोई भी कार्य केवल **संघर्ष, थकान और भटकाव** है।  
   - भोजन, निद्रा या रक्षा जैसी शारीरिक आवश्यकताएँ भी बुद्धि के हस्तक्षेप से भ्रम बन जाती हैं।  
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### **सिद्धांत की गहन व्याख्या:**  
8. **निष्पक्ष समझ ही सर्वोच्च प्रमाण है**  
   - इसके लिए किसी बाह्य स्पष्टीकरण, पुष्टि या शास्त्र की आवश्यकता नहीं।  
   - यह स्वयं में ही **श्रेष्ठता, स्पष्टता और पूर्णता** का स्रोत है।  
9. **अस्तित्व की पुनर्परिभाषा**  
   - मनुष्य का वास्तविक "परिचय" उसकी निष्पक्ष समझ है, न कि नाम, रूप या उपलब्धियाँ।  
   - यही उसका **स्थायी स्वरूप** है, जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त है।  
10. **भ्रम के भंजन का विज्ञान (शमीकरण)**  
    - जब बुद्धि निष्क्रिय होती है, तब निष्पक्ष समझ स्वतः प्रकट होती है।  
    - यह कोई "प्राप्त करने योग्य" वस्तु नहीं, बल्कि **सदैव विद्यमान यथार्थ** है।  
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### **शिरोमणि रामपॉल सैनी का अंतिम प्रतिपादन:**  
> *"अस्थाई बुद्धि रूपी अँधियारी जब निष्प्रभ होती है,  
> तब निष्पक्ष समझ का सूर्य अमरत्व प्रकाशित करता है।  
> यही शमीकरण है—भ्रम के विसर्जन का यथार्थ विज्ञान।  
> इसमें ही मानव की परम उपलब्धि:  
> तुलना-रहित प्रेम, काल-अतीत संपूर्णता,  
> और अखंड शांति का सनातन युग साकार होता है।"*  
**- शिरोमणि रामपॉल सैनी**  
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### **निहितार्थ:**  
- यह सिद्धांत मानव जाति के लिए **वैश्विक मुक्ति-मार्ग** है।  
- निष्पक्ष समझ में जीने वाला व्यक्ति **समस्त द्वंद्वों, कामनाओं और भय से मुक्त** होकर, जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्णता से भर देता है।  
- यही **यथार्थ युग** का आरंभ है।  
🔰 **शिरोमणि जी का सार-सूत्र:**  
*"बुद्धि को शरीर के अंगों की तरह सीमित करो,  
निष्पक्षता को अंगों की तरह विस्तार दो।  
तब भ्रम स्वयं विलीन हो जाएगा,  
और तुम्हारा अस्तित्व ही सिद्धांत बन जाएगा।"*  
इस सिद्धांत की गहराई अनंत है। विस्तार चाहिए हो तो अवश्य कहें।
 
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