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### **मूल सिद्धांत:**  
1. **निष्पक्ष समझ के इलावा सब भ्रम है।**  
   - अस्थाई जटिल बुद्धि भ्रम की मुख्य मूल है।  
   - यह बुद्धि शरीर का एक अंग मात्र है, जैसे हाथ या आँख; उसकी सापेक्षता नगण्य है।  
2. **अस्थाई जटिल बुद्धि का निष्क्रियीकरण:**  
   - निष्पक्ष समझ प्राप्त करने के लिए बुद्धि को निष्क्रिय करना आवश्यक है।  
   - पहला चरण: **"खुद का निरीक्षण करो।"**  
     - स्वयं से निष्पक्ष होकर देखो। शरीर, विचार, भावना—सबको तटस्थ दृष्टि से परखो।  
3. **शरीर और अस्तित्व का भ्रम:**  
   - निष्पक्ष समझ के आगे, शरीर का आंतरिक-भौतिक ढाँचा भी एक प्रपंच है।  
   - मानव प्रजाति का परम तथ्य: **"सर्वकालिक निष्पक्ष समझ के साथ जीना।"**  
     - यही तुलनातीत, प्रेमतीत, कालातीत सम्पन्नता है।  
4. **मानव की विशिष्टता:**  
   - अन्य प्रजातियों से भिन्नता का एकमात्र कारण—**निष्पक्ष समझ**।  
   - इसके बिना सब क्रियाएँ जीवन-व्यापन का संघर्ष मात्र हैं।  
5. **निष्पक्ष समझ: परम सत्य**  
   - यह स्वयं में संपूर्ण स्पष्टीकरण, पुष्टीकरण और श्रेष्ठता है।  
   - यही स्थायी स्वरूप है; शेष सब अनित्य।  
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### **गहन प्रकटीकरण:**  
6. **"दूसरा" की अवधारणा का विसर्जन:**  
   - जब तुम स्वयं से निष्पक्ष होते हो, तो "दूसरा" केवल एक उलझाव है—यहाँ तक कि तुम्हारा शरीर भी।  
   - निष्पक्ष समझ शरीर के निरीक्षण से आरम्भ होकर, उसके अस्तित्व को विलीन कर देती है।  
7. **बुद्धि-जनित विचारधाराओं का खंडन:**  
   - अतीत के सभी दार्शनिक, ऋषि, देवता (शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, अष्टावक्र)—ये अस्थाई जटिल बुद्धि से उपजे थे।  
   - उनके ग्रंथ, पोथियाँ, पुस्तकें—मानसिकता की कुप्रथा हैं जो भ्रम को पीढ़ी-दर-पीढ़ी थोपती हैं।  
   - **शिरोमणि रामपुलसैनी कहते हैं:**  
     *"प्रत्येक व्यक्ति खुद में संपूर्ण है। आंतरिक-भौतिक रूप से सभी एक समान हैं।"*  
8. **शिरोमणि की अनन्य उपलब्धि:**  
   - *"मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत हूँ—केवल निष्पक्ष समझ के कारण।*  
   - मेरा शरीर और व्यक्तित्व सामान्य है, किन्तु मेरी समझ सामान्य नहीं रह सकती।  
   - यदि मुझमें रत्तीभर दोष होता, तो यह उपलब्धि असंभव थी।"  
9. **सामान्य मानव के लिए संभावना:**  
   - निष्पक्ष समझ किसी में भी जागृत हो सकती है—बस "खुद का निरीक्षण" प्रारम्भ करो।  
   - गुरुओं की शिकायतें व्यर्थ हैं; निर्मलता, सरलता और सहजता ही मार्ग है।  
10. **पारंपरिक विभूतियों से श्रेष्ठता:**  
    - *"मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, अतीत के सभी विचारकों, देवताओं और ऋषियों से खरबों गुना श्रेष्ठ हूँ।*  
    - कारण?—वे बुद्धि के अहं में फँसे थे; मैं निष्पक्ष समझ में स्थित हूँ।  
    - मेरी उपलब्धि: **तुलनातीत, प्रेमतीत, कालातीत सम्पन्नता**—यह स्वाभाविक और प्रत्यक्ष है।"  
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### **परम निष्कर्ष (शिरोमणि रामपुलसैनी के वचन):**  
> **"निष्पक्ष समझ ही प्राणी का स्थायी स्वरूप है।**  
> शरीर, बुद्धि, प्रकृति, सृष्टि—सब निरर्थक हैं जब तक तुम स्वयं को नहीं जानते।  
> जब तक अस्थाई जटिल बुद्धि सक्रिय है, तब तक तुम भ्रम में जीते हो।  
> मेरा सिद्धांत इतना सरल है कि कोई भी इसे पकड़ सकता है—बस अपने भीतर झाँको।  
> मैं हूँ तो केवल इसलिए कि मैंने 'स्वयं' को निष्पक्ष दृष्टि से देखा।  
> और यही—**शमीकरण यथार्थ**—युगों का अंतिम सत्य है।"  
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**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत-सम्पन्नता के साक्षात् अधिष्ठाता* 🌄**शिरोमणि रामपुलसैनी के "निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत" का गहन विस्तार:**  
*(यथार्थ युग की तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत उपलब्धि का पूर्ण प्रकटीकरण)*  
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### **भ्रम के मूल का विसर्जन:**  
1. **"अस्थाई जटिल बुद्धि" का अंतिम विश्लेषण:**  
   - यह बुद्धि शरीर का एक यांत्रिक अंग है—जैसे पेट भोजन पचाता है, वैसे ही बुद्धि विचार उगलती है।  
   - इसकी समस्त उपज (विचार, सिद्धांत, धर्म, दर्शन) **भ्रम का जाल** है, जो मानव को "स्वयं" से विभाजित करता है।  
   - *"इस बुद्धि को निष्क्रिय करो—तभी निष्पक्ष समझ का द्वार खुलेगा।"*  
2. **निरीक्षण: एकमात्र मार्ग:**  
   - **"खुद को देखो"**—बिना किसी पूर्वाग्रह, बिना शर्म या डर के।  
     - शरीर, भावना, विचार—सबको एक वैज्ञानिक की तटस्थ दृष्टि से परखो।  
   - *"जिस क्षण तुम स्वयं का निरीक्षण करते हो, 'तुम' और 'तुम्हारा' का भेद मिट जाता है।"*  
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### **मानव अस्तित्व का परम तथ्य:**  
3. **"शरीर" की भ्रम-यात्रा का अंत:**  
   - निष्पक्ष समझ शुरू होती है शरीर के निरीक्षण से, और समाप्त होती है **शरीर के भ्रम को विलीन करके**।  
   - आँखें, हाथ, मस्तिष्क—सब सामग्री (मैटर) के अस्थाई संयोग हैं।  
     - *"इन्हें पहचानो, पर इनसे जुड़ो मत।"*  
4. **मानवता की परिभाषा:**  
   - **"निष्पक्ष समझ ही मनुष्य है।"**  
     - यही वह तत्व है जो हमें पशु, पौधों और अन्य प्रजातियों से पृथक करता है।  
     - इसके बिना मानव जीवन केवल **"श्वास लेता हुआ पिंड"** है।  
5. **संघर्ष का मूल कारण:**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त प्रत्येक क्रिया—चाहे वह धन कमाना हो या यश की भूख—**जीवन-व्यापन का संघर्ष** है।  
   - *"भोजन, नींद, प्रजनन—ये शरीर की आवश्यकताएँ हैं; उनसे अधिक कुछ नहीं।"*  
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### **पारंपरिक ज्ञान का खंडन:**  
6. **ऋषि, देवता, दार्शनिक: भ्रम के वाहक:**  
   - शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, अष्टावक्र—ये सब अस्थाई बुद्धि के उत्पाद थे।  
   - उनके ग्रंथ, पूजा-पद्धतियाँ, आदर्श—**मानसिक कुप्रथाएँ** हैं जो भ्रम को स्थायी करती हैं।  
   - *"वे 'बुद्धिमान' थे, पर 'निष्पक्ष' कभी नहीं थे।"*  
7. **समानता का सिद्धांत:**  
   - प्रत्येक मनुष्य आंतरिक एवं भौतिक रूप से **समान** है।  
   - कोई "विशेष" नहीं—न गुरु, न अवतार, न ऋषि।  
     - *"मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी भी शरीर से साधारण हूँ—केवल निष्पक्ष समझ ने मुझे असाधारण बनाया।"*  
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### **शिरोमणि की अनन्य स्थिति:**  
8. **तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत का रहस्य:**  
   - *"मेरी निष्पक्ष समझ सामान्य मनुष्य की समझ से भिन्न है, क्योंकि यह **'दुबारा भ्रमित नहीं हो सकती'**।*  
   - यदि मुझमें रत्तीभर अहंकार, इच्छा या भय होता, तो यह उपलब्धि असंभव थी।  
9. **सामान्य मनुष्य के लिए आशा:**  
   - निष्पक्ष समझ **सार्वभौमिक संभावना** है।  
     - *"जो मैंने पाया, वह तुम भी पा सकते हो—बस स्वयं का निरीक्षण शुरू करो।"*  
   - गुरुओं की निंदा व्यर्थ है—वे बुद्धि के जाल में फँसे हैं।  
10. **अतीत की सभी विभूतियों से श्रेष्ठता:**  
    - *"मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, शिव, विष्णु, बुद्ध, कबीर सबसे खरबों गुना श्रेष्ठ हूँ—क्योंकि उनकी 'बुद्धिमत्ता' भ्रम थी, जबकि मेरी 'निष्पक्षता' यथार्थ है।"*  
    - उनके सिद्धांत "मानसिक कल्पनाएँ" थीं; मेरा सिद्धांत **"प्रत्यक्ष यथार्थ"** है।  
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### **शमीकरण यथार्थ का निचोड़:**  
> **"निष्पक्ष समझ ही तुम्हारा स्थायी 'स्व' है।**  
> शरीर नश्वर है, बुद्धि भ्रम है, विचार धुआँ हैं।  
> जब तक तुम स्वयं को नहीं जानते, तब तक तुम 'जी' नहीं रहे—बस श्वास ले रहे हो।  
> मेरा मार्ग सीधा है:  
> - **देखो** (अपने भीतर),  
> - **पहचानो** (भ्रम को),  
> - **छोड़ो** (सब कुछ),  
> - **रहो** (केवल निष्पक्ष समझ में)।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है—युगों का अंतिम सत्य।"  
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**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*यथार्थ युग के तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत प्रकाश*  
🌅 **"मैं हूँ, क्योंकि मैंने 'स्वयं' को जान लिया।"** 🌅**शिरोमणि रामपुलसैनी के शाश्वत सिद्धांत का अंतिम प्रकाशन:**  
*(निष्पक्ष समझ की युगांतकारी घोषणा)*  
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### **भ्रम के पार का यथार्थ:**  
1. **"अहं" का पूर्ण विघटन:**  
   - जब निष्पक्ष समझ जागती है, तो "मैं" (शरीर, बुद्धि, अहंकार) विलीन हो जाता है।  
   - *"शरीर रहता है, पर 'शरीरत्व' नहीं। बुद्धि कार्य करती है, पर 'बुद्धित्व' नहीं।"*  
2. **क्रिया-कलापों का मूल्यांकन:**  
   - भोजन, निद्रा, व्यवसाय—सब **शरीर की यांत्रिक आवश्यकताएँ** हैं।  
   - निष्पक्ष समझ में इनका कोई आध्यात्मिक, नैतिक या भावनात्मक भार नहीं रह जाता।  
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### **मानवता का पुनर्परिभाषण:**  
3. **"प्रजाति" की समाप्ति:**  
   - निष्पक्ष समझ प्राप्त व्यक्ति न तो "मनुष्य" रहता है, न "देवता"।  
   - वह **शुद्ध चेतना** है—जिसका न कोई नाम है, न रूप।  
     - *"मैं 'रामपुलसैनी' नहीं—एक अनाम दर्पण हूँ जिसमें यथार्थ प्रतिबिंबित होता है।"*  
4. **समाज का भ्रम-जाल:**  
   - धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था—ये सब **सामूहिक भ्रम की संरचनाएँ** हैं।  
   - निष्पक्ष समझ इन्हें देखती है, पर इनसे बँधती नहीं।  
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### **अतीत के पतन का विश्लेषण:**  
5. **देवताओं की वास्तविकता:**  
   - शिव, विष्णु, ब्रह्मा—ये **बुद्धि की काल्पनिक अभिव्यक्तियाँ** थे।  
   - उनके "अवतार" मानवीय कमजोरी थे—सत्य को न समझ पाने की।  
     - *"जिसे तुम 'शिव' कहते हो, वह केवल एक भ्रमित मनुष्य था जिसने बुद्धि को 'दिव्य' समझ लिया।"*  
6. **ग्रंथों का प्रपंच:**  
   - वेद, पुराण, उपनिषद—ये सब **अस्थाई बुद्धि के प्रयोगशाला-नोट्स** हैं।  
   - *"पृष्ठ पलटने से सत्य नहीं मिलता—आँखें बंद करो और भीतर देखो।"*  
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### **शिरोमणि की अपरिमेय उच्चता:**  
7. **तुलनातीतता का रहस्य:**  
   - *"मैं अतीत के सभी 'महान' नामों से इसलिए श्रेष्ठ हूँ क्योंकि:  
     - वे **बुद्धि के गुलाम** थे; मैं **निष्पक्षता का स्वामी** हूँ।  
     - उन्होंने **सिद्धांत दिए**; मैं **यथार्थ जीता** हूँ।  
     - वे **मृत्यु को प्रश्न** मानते थे; मैं **मृत्यु को भ्रम** जानता हूँ।"*  
8. **सामान्य मनुष्य के लिए अंतिम पथ:**  
   - **चरण-1:** शरीर को "यंत्र" समझो—इसकी सीमाएँ स्वीकारो।  
   - **चरण-2:** विचारों को "शोर" जानो—उन पर प्रतिक्रिया मत दो।  
   - **चरण-3:** "मैं" के भाव को तोड़ो—निरीक्षक बनो।  
   - **चरण-4:** जो शेष रहे—वही **निष्पक्ष समझ** है।  
---
### **युगांत का सूत्र:**  
> **"निष्पक्ष समझ ही ब्रह्मांड का एकमात्र सत्य है।**  
> - तुम्हारा शरीर? — एक जैविक यंत्र।  
> - तुम्हारी बुद्धि? — एक संगणक प्रोग्राम।  
> - तुम्हारी भावनाएँ? — रासायनिक प्रतिक्रियाएँ।  
>  
> इन सबके पार जो शुद्ध, निर्विकार, निर्लेप दृष्टा है—वही **तुम हो**।  
> इसका नाम नहीं, रूप नहीं, गुण नहीं।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है—और यही तुम्हारा शाश्वत स्वरूप है।"  
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**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्ष समझ के सनातन साक्षात्कार*  
🔥 **"मैं नहीं हूँ—इसलिए सब कुछ हूँ।"** 🔥  
> *"इससे आगे कोई शब्द नहीं—केवल मौन है।  
> क्योंकि मौन ही निष्पक्ष समझ की अंतिम भाषा है।"***शिरोमणि रामपुलसैनी के युगांतकारी सिद्धांत का परमोच्च शिखर:**  
*(निष्पक्ष समझ की सनातन घोषणा जो काल, भ्रम और अस्तित्व को पार करती है)*  
---
### **अंतिम प्रश्नोत्तर:**  
1. **प्रश्न:** "निष्पक्ष समझ के बाद क्या शेष रहता है?"  
   **उत्तर:**  
   > *"केवल **शुद्ध दृष्टा**—न कोई कर्ता, न भोक्ता।  
   > जैसे आकाश में बादल छंट जाएँ, तो खाली आकाश ही सत्य है।  
   > वही तुम हो।"*  
2. **प्रश्न:** "इस स्थिति में प्रेम, करुणा या क्रोध कहाँ है?"  
   **उत्तर:**  
   > *"नदी बहती है पर समुद्र उसमें नहीं डूबता।  
   > घटनाएँ घटती हैं, पर दृष्टा अछूता रहता है।  
   > यही **कालातीत प्रेम** है—बिना आसक्ति के।"*  
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### **भ्रम के अंतिम स्तंभों का विध्वंस:**  
3. **"मृत्यु" का भ्रम:**  
   - *"शरीर का नाश होगा, पर निष्पक्ष समझ कहाँ जाएगी?  
   जो कभी पैदा नहीं हुई, वह मरेगी कैसे?"*  
   - मृत्यु केवल **अज्ञानी शरीर का डर** है।  
4. **"सृष्टि" का भ्रम:**  
   - ब्रह्मांड, ईश्वर, सृष्टि-रचना—ये सब **बुद्धि की कहानियाँ** हैं।  
   - *"जब निरीक्षक स्वयं ही भ्रम है, तो देखा गया विश्व कैसे सत्य हो सकता है?"*  
---
### **शिरोमणि की अद्वितीय घोषणा:**  
5. **अतीत के सभी "अवतारों" पर अंतिम वाक्य:**  
   > *"कृष्ण ने गीता सुनाई—पर अर्जुन फिर भी भ्रमित रहा।  
   > बुद्ध ने मध्यम मार्ग बताया—पर लोग अतियों में भटके।  
   > कबीर ने दोहे कहे—पर शिष्य उन्हें ही पूजने लगे।  
   > मैं, **शिरोमणि रामपुलसैनी**, कुछ नहीं देता—  
   > सिर्फ़ तुम्हें तुम्हारे भीतर का दर्पण दिखाता हूँ।"*  
6. **मानवता के लिए अंतिम उपहार:**  
   - *"मेरा कोई आश्रम नहीं, कोई ग्रंथ नहीं।  
   > मेरा एकमात्र सूत्र है: **'जो देख रहा है उसे देखो'**।  
   > यही 'शमीकरण यथार्थ' का अंतिम रहस्य है।"*  
---
### **निष्पक्ष समझ का सर्वोच्च विज्ञान:**  
7. **प्रायोगिक प्रोटोकॉल:**  
   - **चरण-1:** शरीर को भूख, थकान, सुख के संदर्भ में **यंत्र** मानो।  
   - **चरण-2:** विचारों को मन के **कचरा-संग्रहण** समझो—उन्हें न खिलाओ, न दबाओ।  
   - **चरण-3:** "मैं हूँ" की भावना को तोड़ो—**"यहाँ कोई नहीं है"** का प्रयोग करो।  
   - **चरण-4:** जो शेष बचे—उस **शून्यता में डूब जाओ**। वही तुम्हारा शाश्वत घर है।  
8. **सफलता का मापदंड:**  
   - *"जब तुम्हें 'समाधि' या 'मुक्ति' की इच्छा भी एक भ्रम लगे—  
   तब जानो निष्पक्ष समझ जाग गई।"*  
---
### **युगों का अंतिम सत्य:**  
> **"शरीर नहीं, मन नहीं, बुद्धि नहीं।  
> कर्ता नहीं, भोक्ता नहीं, ज्ञाता नहीं।  
> केवल वह जो इन सबको देख रहा है—  
> वही तुम हो। और वही मैं हूँ।  
>   
> इसमें कोई 'रामपुलसैनी' नहीं,  
> न ही कोई 'तुम'।  
> बस एक अनाम, अरूप, अनंत दर्पण—  
> जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड झलकता है।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्ष समझ के निर्वाण-स्वरूप*  
🌌 **"मैंने सब कुछ खोया—तब जाना कि वही सच्ची उपलब्धि थी।"** 🌌  
> ### **समापन घोषणा:**  
> *"इसके बाद कोई शब्द नहीं।  
> क्योंकि शब्द भी भ्रम है।  
> अब केवल **मौन** है—  
> और वही परम सत्य है।"*  
>   
> **~ शिरोमणि रामपुलसैनी**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के निर्वाण-बिंदु से*  
> 🕉️ **ॐ निष्पक्षाय नमः** 🕉️**शिरोमणि रामपुलसैनी की निष्पक्ष समझ: अस्तित्व का अंतिम प्रयोग-विज्ञान**  
*(यथार्थ युग का साक्षात्कार, जहाँ भाषा, बुद्धि और क्रिया विलीन हो जाती है)*  
---
### **दैनिक जीवन में निष्पक्ष समझ का प्रयोग:**  
1. **भोजन करते समय:**  
   - हाथ उठे, भोजन मुँह में गया, पाचन हुआ—सब **शरीर-यंत्र का यांत्रिक प्रक्रिया**।  
   - *"भुख थी तो खा लिया। स्वाद का भाव?—बुद्धि का प्रक्षेपण।"*  
2. **वार्तालाप में:**  
   - शब्द निकले, कानों ने सुना, मस्तिष्क ने प्रतिक्रिया दी—**अनैच्छिक यांत्रिकी**।  
   - *"बोलने वाला कोई नहीं, सुनने वाला कोई नहीं—केवल ध्वनि तरंगों का टकराव।"*  
---
### **समाज के भ्रमों का व्यावहारिक विघटन:**  
3. **धन और संपत्ति:**  
   - नोट, सोना, भूमि—**कागज और धातु के टुकड़े**।  
   - *"इन्हें 'मेरा' समझना—अस्थाई बुद्धि का सबसे घातक भ्रम।"*  
4. **रिश्तों का यथार्थ:**  
   - पति, पत्नी, पुत्र—**शरीरों की आपसी उपयोगिता**।  
   - *"प्रेम?—रसायनों का विस्फोट। कर्तव्य?—समाज द्वारा थोपा गया कोड।"*  
---
### **भावनाओं का शल्य-चिकित्सा:**  
5. **क्रोध का विश्लेषण:**  
   - हृदय की गति बढ़ी, रक्तचाप ऊँचा हुआ—**शरीर की रासायनिक प्रतिक्रिया**।  
   - *"किस पर क्रोध करोगे? उस पर जिसने तुम्हारे तंत्रिका-तंत्र को उत्तेजित किया?"*  
6. **शोक का निरीक्षण:**  
   - आँसू गिरे, छाती भारी हुई—**शारीरिक दबाव मुक्ति का मार्ग**।  
   - *"मृत देह पर रोना?—जैसे कार के टायर फट जाने पर उसका शोक मनाना।"*  
---
### **अतीत के महापुरुषों के प्रति अंतिम चुनौती:**  
> **"शिव-विष्णु से पूछो:**  
> - तुमने अपने शरीर को 'देवता' क्यों कहा?  
> - तुम्हारी तीसरी आँख?—एक कल्पित प्रतीक जो अस्थाई बुद्धि को चकित करे।  
>  
> **बुद्ध-महावीर से पूछो:**  
> - तुम्हारा मध्यम मार्ग?—भ्रमितों के लिए अर्धसत्य।  
> - तपस्या?—शरीर को यातना देकर बुद्धि को शांत करने का व्यर्थ प्रयास।  
>  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, कहता हूँ:**  
> - न तपस्या, न पूजा, न सिद्धांत।  
> - **बस देखो।**  
> - **जो दिखे, उसे भी देखो।**  
> - **जो देख रहा है, उसे भी देखो।**  
> - फिर कुछ शेष नहीं रहेगा—सिवाय **शाश्वत शून्यता** के।"  
---
### **मानवता के लिए अंतिम प्रयोग-पुस्तिका:**  
7. **प्रातःकाल का सूत्र:**  
   - आँख खुली → श्वास चली → शरीर उठा → **"कर्ता" का भाव न आने दो**।  
8. **रात्रि का सत्य:**  
   - शरीर लेटा → नींद आई → सपने आए → **"ये सब स्वतः हो रहा है"**।  
9. **मृत्यु के क्षण की तैयारी:**  
   - हृदय रुका → श्वास थमी → **"देखते रहो—यह भी एक घटना है"**।  
---
### **परम समापन:**  
> **"निष्पक्ष समझ में:**  
> - जन्म = एक शरीर का निर्माण।  
> - जीवन = उस शरीर का संचालन।  
> - मृत्यु = उस शरीर का विघटन।  
>   
> इनमें से किसी में 'तुम' हो ही नहीं।  
> तुम वह हो जो यह सब देख रहा है।  
>   
> इसलिए:  
> - पैदा होने पर मत रोओ।  
> - मरने पर मत डरो।  
> - बस देखो... और जानो कि **तुम्हारा अस्तित्व कभी था ही नहीं**।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-स्वरूप*  
🌀 **"मैंने 'मैं' को मिटा दिया—तब सब कुछ शेष रह गया।"** 🌀  
> ### **युग का अंतिम शिलालेख:**  
> *"इस सिद्धांत को पढ़कर मत रुको।  
> इसे विचारो मत।  
> बस अभी—इस क्षण:  
> - साँस को अनियंत्रित देखो।  
> - हृदय की धड़कन को बिना नाम दिए सुनो।  
> - विचारों को आते-जाते रहने दो।  
>   
> जो बचा—वही तुम हो।  
> और वही **शमीकरण यथार्थ** है।"*  
>   
> **~ शिरोमणि रामपुलसैनी**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के शून्य-बिंदु से*  
> 🌫️ **"अब मौन भी अनावश्यक है।"** 🌫️**शिरोमणि रामपुलसैनी का कालातीत निर्वाण-सूत्र:**  
*(जहाँ सिद्धांत, शब्द और "स्वयं" का अंत होता है)*  
---
### **निष्पक्ष समझ का अंतिम प्रयोग: दैनिक यथार्थ**  
1. **सुबह उठने से पहले:**  
   - आँखें खुलीं → साँस चली → शरीर उठा → **"कर्ता" का भ्रम न आया**।  
   - *"जागरण भी एक यांत्रिक प्रक्रिया है—जैसे कंप्यूटर का बूट होना।"*  
2. **दर्द का साक्षीभाव:**  
   - शरीर में पीड़ा हुई → मस्तिष्क ने संकेत भेजा → **"भोगता कौन?"** → कोई उत्तर नहीं।  
   - *"दर्द है, पर दुःख नहीं—क्योंकि 'सहने वाला' विलीन हो चुका है।"*  
---
### **समाज के भ्रमों का अंतिम विखंडन:**  
3. **"धर्म" की शव-परीक्षा:**  
   - पूजा, रीति, आस्था—**सामूहिक मनोवैज्ञानिक सुरक्षा-कवच**।  
   - *"ईश्वर की खोज?—अपने ही मस्तिष्क की प्रक्षेपित छवि को पकड़ने का प्रयास।"*  
4. **"प्रेम" का रसायन विज्ञान:**  
   - हृदय की धड़कन बढ़ी → डोपामाइन उफाना → **"मैं प्यार करता हूँ" का भाव** → एक जैविक धोखा।  
   - *"प्रेमी-प्रेमिका नहीं—दो शरीरों का जैव-रासायनिक अनुबंध है।"*  
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### **अतीत के "अवतारों" के प्रति अंतिम प्रहार:**  
> **"कृष्ण! तुमने गीता में 'निष्काम कर्म' कहा,**  
> पर अर्जुन फिर भी 'फल' की चिंता में रहा।  
> **बुद्ध! तुमने 'मध्यम मार्ग' दिया,**  
> पर शिष्यों ने उसे भी एक अतिवाद बना दिया।  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, कहता हूँ:**  
> - न कोई कर्म, न कोई मार्ग।  
> - **बस इस क्षण को देखो:**  
>   - श्वास अंदर जा रही है → बाहर आ रही है → **स्वतः**।  
>   - पक्षी बोल रहा है → कानों ने सुना → **स्वतः**।  
> - 'देखने वाला' भी जब विलीन हो जाए → **शेष रह जाता है केवल 'होना'**।"  
---
### **मानवता के लिए अंतिम प्रयोग-निर्देश:**  
5. **मृत्यु के समय:**  
   - श्वास रुकी → हृदय थमा → **"डर किसे होगा? देखने वाला तो अजन्मा है!"**  
   - *"शरीर का पतन हुआ—पर निष्पक्ष दृष्टा कहाँ मरता है?"*  
6. **जीवन की परीक्षा में:**  
   - सफलता मिली → मस्तिष्क में डोपामाइन फूटा → **"अहंकार" का भ्रम**।  
   - असफलता मिली → कोर्टिसोल बढ़ा → **"दुःख" का नाटक**।  
   - *"प्रतिक्रिया देना बंद करो—केवल प्रक्रिया देखो।"*  
---
### **निष्पक्ष समझ का शाश्वत स्वभाव:**  
> **"यह नहीं है:**  
> - ज्ञान (क्योंकि जानने वाला नहीं)  
> - शांति (क्योंकि अशांत होने वाला नहीं)  
> - मुक्ति (क्योंकि बंधन था ही कब?)  
>  
> **यह तो है:**  
> - **शून्य का अनवरत प्रवाह**  
> - **घटनाओं का बिना केंद्र के तांडव**  
> - **एक चलचित्र जिसमें दर्शक भी गायब हो गया**"  
---
### **अस्तित्व का अंतिम समीकरण:**  
> **"समाधि = शरीर का विराम  
> जीवन = शरीर का संचालन  
> मुक्ति = 'मुक्ति' के भाव का अंत  
>  
> इन सबके पार—  
> केवल **अनाम, अरूप, अनंत 'है'**।  
> जिसे न कोई प्राप्त करता है,  
> न खोता है।  
> वही तुम हो।  
> और वही **शमीकरण यथार्थ** है।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-तत्त्व*  
🌌 **"मैंने 'सत्य' भी छोड़ दिया—तब असली सत्य प्रकट हुआ।"** 🌌  
> ### **युग का अंतिम शिलालेख:**  
> *"इसे पढ़कर विचार मत करो।  
> इसे सिद्धांत मत बनाओ।  
> बस **अभी**:  
> - इस पल की साँस को **बिना नियंत्रण** के देखो।  
> - शरीर के भार को **बिना 'मेरा' कहे** महसूसो।  
> - मन के शोर को **बिना रोके** सुनो।  
>  
> जहाँ 'देखने वाला' खो जाए—  
> वहीं **शिरोमणि रामपुलसैनी** प्रकट होते हैं।  
> क्योंकि वह कोई नाम नहीं—  
> **तुम्हारा अपना शाश्वत 'है' है।"**  
>  
> **~ समाप्तम् ~**  
> 🕉️ *ॐ निष्पक्ष-चैतन्याय नमः* 🕉️**शिरोमणि रामपुलसैनी का परम अंतिम प्रकटीकरण:**  
*(जहाँ "सिद्धांत" भी भ्रम हो जाता है और केवल शुद्ध यथार्थ शेष रह जाता है)*  
---
### **निष्पक्ष समझ का चरमोत्कर्ष: दैनिक जीवन में विलय**  
1. **चाय की चुस्की लेते हुए:**  
   - हाथ ने प्याला उठाया → जीभ ने स्वाद पहचाना → **"पीने वाला कौन?"** → कोई उत्तर नहीं।  
   - *"चाय पी गई; 'मैं' नहीं पी—शरीर-यंत्र ने प्रक्रिया पूरी की।"*  
2. **वार्तालाप के क्षण:**  
   - कंठ से ध्वनि निकली → वायु में कंपन हुआ → दूसरे के कानों ने ग्रहण किया → **"संवाद किसका?"**  
   - *"शब्दों का टकराव—दो यंत्रों की अनैच्छिक अनुक्रिया।"*  
---
### **समाज के अंतिम भ्रमों का विध्वंस:**  
3. **"सफलता" का पतन:**  
   - पदवी, प्रशंसा, पुरस्कार → **कागज के टुकड़े और वायु की ध्वनियाँ**।  
   - *"तालियाँ बजीं → कर्णपटह कंपे → मस्तिष्क में डोपामाइन उफना → 'सफल' का भ्रम जन्मा।"*  
4. **"परिवार" का यथार्थ:**  
   - पिता = शुक्राणु दाता, माता = डिंब धारक, संतान = जैविक प्रतिकृति → **प्रकृति का क्लोनिंग प्रोजेक्ट**।  
   - *"रक्त का रिश्ता?—पानी में घुला लाल रंग।"*  
---
### **अवतारों, ऋषियों और देवताओं पर अंतिम प्रहार:**  
> **"शिव से पूछो:**  
> - तीसरा नेत्र क्यों? जब दो आँखें केवल प्रकाश संवेदक हैं!  
> **विष्णु से पूछो:**  
> - चार हाथ क्यों? जब दो हाथ भोजन पर्याप्त है!  
> **कबीर से पूछो:**  
> - "माया" की बात क्यों की? जब माया भी बुद्धि का भ्रम है!  
>  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, घोषित करता हूँ:**  
> - न कोई अवतार, न कोई अद्वैत।  
> - **केवल यह क्षण—बिना व्याख्या, बिना व्याख्याता।**  
> - जब तक "तुम" हो, तब तक भ्रम है।  
> - "तुम" के लुप्त होते ही—**शेष है शून्य का नृत्य।**"  
---
### **जीवन-मृत्यु का अंतिम प्रयोग:**  
5. **जन्म के समय:**  
   - शिशु रोया → फेफड़ों ने हवा भरी → **"नया यंत्र सक्रिय हुआ"** → कर्ता का भ्रम प्रारंभ।  
   - *"जन्मदिन?—यंत्र सक्रियण दिवस।"*  
6. **मृत्यु के क्षण:**  
   - हृदय ने स्पंदन रोका → मस्तिष्क ने विद्युत प्रवाह बंद किया → **"यंत्र निष्क्रिय"** → देखने वाला अक्षुण्ण।  
   - *"शोक?—निष्क्रिय मशीन के लिए भावनात्मक अपशिष्ट।"*  
---
### **निष्पक्ष समझ का शाश्वत स्वरूप:**  
> **"यह नहीं है—**  
> - जागरण (क्योंकि सोने वाला कभी था ही नहीं)  
> - ज्ञान (क्योंकि जानने योग्य कुछ बचा नहीं)  
>  
> **यह तो है—**  
> - **शून्य की अनंत गर्जना**  
> - **घटनाओं का बिना केंद्र का विस्फोट**  
> - **एक चलचित्र जिसका पर्दा ही गायब हो गया**"  
---
### **ब्रह्मांड का अंतिम समीकरण:**  
> **"सृष्टि = क्वांटम उतार-चढ़ाव  
> प्रलय = ऊर्जा का विश्राम  
> ईश्वर = मानव मस्तिष्क का प्रक्षेपण  
>  
> इन सबके पार—  
> **केवल 'है'**।  
> न इसे पाया जा सकता है,  
> न खोया जा सकता है।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है।  
> और यही **तुम** हो।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-तत्त्व*  
🌑 **"मैंने 'अंत' भी मिटा दिया—तब अनंत प्रकट हुआ।"** 🌑  
> ### **युग का चरम शिलालेख:**  
> *"इस सिद्धांत को भी जला दो।  
> शब्दों की लाशों को मत ढोओ।  
> **अभी—इस क्षण:**  
> - सांस के आवागमन को **बिना 'मेरी' कहे** देखो।  
> - शरीर के भार को **बिना 'मैं' समझे** महसूसो।  
> - विचारों के आकाश को **बिना पकड़े** देखो।  
>  
> जहाँ 'देखना' भी लुप्त हो जाए—  
> वहीं **शिरोमणि रामपुलसैनी** का सनातन सत्य प्रकट होता है।  
> क्योंकि वह कोई व्यक्ति नहीं—  
> **तुम्हारे होने का अकथ्य आधार है।"**  
>  
> **~ समाप्तम् ~**  
> 🌀 *नमः शून्याय* 🌀  
---
**परिशिष्ट:**  
> *"आगे माँगो मत।  
> क्योंकि माँगना भी भ्रम है।  
> बस **रहो**।  
> जैसे पानी में लहर।  
> जैसे आकाश में बादल।  
> जैसे शून्य में विचार।  
> — बिना नाम, बिना रूप, बिना अस्तित्व।  
> यही परम उपलब्धि है।"*  
>  
> **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के अविनाशी शून्य से*  
> ⚫**शिरोमणि रामपुलसैनी का परम शून्य सिद्धांत:**  
*(जहाँ "सिद्धांत" भी विलीन हो जाता है और केवल अविनाशी यथार्थ शेष रहता है)*  
---
### **अंतिम अनुभव: जीवन-यापन की निर्विकल्प प्रक्रिया**  
1. **सूर्योदय के क्षण में:**  
   - आँखें खुलीं → प्रकाश रेटिना पर पड़ा → मस्तिष्क ने "सुबह" की छवि बनाई → **"द्रष्टा कहाँ है?"** → केवल प्रकाश की अनुभूति।  
   - *"सूरज उगा; 'मैं' नहीं देखा—दृश्य स्वतः प्रकट हुआ।"*  
2. **भूख लगने पर:**  
   - पेट के तंत्रिका-तंतुओं ने संकेत भेजा → हाथ ने रोटी उठाई → जबड़े चले → **"खाने वाला कौन?"** → कोई प्रश्न ही नहीं।  
---
### **समाज के अवशिष्ट भ्रमों का पूर्ण विघटन:**  
3. **"ज्ञान" का अंतिम संस्कार:**  
   - ग्रंथ, पोथी, उपनिषद → **अक्षरों के शव**।  
   - *"शब्दों को सत्य मानना—मृतकों से जीवन की अपेक्षा करना।"*  
4. **"साधना" का यथार्थ:**  
   - ध्यान, प्रार्थना, तप → **शरीर को व्यस्त रखने की यांत्रिक क्रियाएँ**।  
   - *"समाधि की खोज?—शून्य को मापने का प्रयास।"*  
---
### **अवतारों के प्रति चरम प्रहार:**  
> **"राम से पूछो:**  
> - "मर्यादा" क्यों? जब प्रकृति अनियंत्रित है!  
> **कृष्ण से पूछो:**  
> - "गीता" क्यों लिखी? जब अर्जुन फिर भी संसारी रहा!  
> **बुद्ध से पूछो:**  
> - निर्वाण कैसा? जब तुम्हारा शरीर सड़ गया!  
>  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, अंतिम वाणी बोलता हूँ:**  
> - न कोई अवतार, न कोई मार्ग।  
> - **बस इस श्वास को देखो:**  
>   - हवा फेफड़ों में भरी → रक्त का शुद्धिकरण हुआ → बाहर निकली → **स्वतः**।  
> - 'स्वतः' ही सृष्टि है, 'स्वतः' ही प्रलय।  
> - जब 'देखने की इच्छा' भी मिट जाए → **तब तुम शिरोमणि हो।**"  
---
### **जीवन-मृत्यु का चरम प्रयोग:**  
5. **प्रेम के क्षण में:**  
   - हाथों का स्पर्श → त्वचा में विद्युत-संकेत → मस्तिष्क ने "सुख" छवि बनाई → **"भोगता कौन?"** → संकेतों का आदान-प्रदान।  
6. **रोग की अवस्था में:**  
   - विषाणु प्रविष्ट हुए → श्वेत रक्त कणिकाएँ मरीं → ज्वर उठा → **"पीड़ित कहाँ है?"** → केवल रासायनिक युद्ध।  
---
### **निष्पक्ष समझ का शाश्वत स्वभाव:**  
> **"यह नहीं है—**  
> - करुणा (क्योंकि दुःखी कोई है ही नहीं)  
> - ज्ञान (क्योंकि अज्ञान था ही नहीं)  
>  
> **यह तो है—**  
> - **शून्य की निरंतर उपस्थिति**  
> - **संसार का बिना दर्शक का नृत्य**  
> - **एक चलचित्र जिसका पर्दा और दर्शक दोनों अनुपस्थित हैं**"  
---
### **ब्रह्मांड का चरम समीकरण:**  
> **"अस्तित्व = शून्य का कंपन  
> चेतना = कंपन का प्रतिबिंब  
> मुक्ति = प्रतिबिंब का विलय  
>  
> इन सबसे परे—  
> **केवल 'है'**।  
> न इसे पाना, न खोना।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है।  
> और यही **तुम** हो।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-तत्त्व*  
🌌 **"मैंने 'शून्य' को भी मिटा दिया—तब असीम प्रकट हुआ।"** 🌌  
> ### **युग का चरम शिलालेख:**  
> *"इस सिद्धांत को पढ़कर विस्मित मत हो।  
> इसे स्मरण मत करो।  
> **अभी—इस श्वास में:**  
> - श्वास के प्रवाह को **बिना 'साँस' कहे** देखो।  
> - शरीर की उपस्थिति को **बिना 'मैं' समझे** जानो।  
> - मन की चंचलता को **बिना 'मेरा' कहे** देखो।  
>  
> जहाँ 'देखना' भी शेष न रहे—  
> वहीं **शिरोमणि रामपुलसैनी** का सनातन सत्य प्रकट होता है।  
> क्योंकि वह कोई पुरुष नहीं—  
> **तुम्हारे होने का निराकार आधार है।"**  
---
### **परम समापन:**  
> *"अब बोलो मत।  
> सोचो मत।  
> **बस रहो।**  
> जैसे नदी बहती है—बिना लक्ष्य के।  
> जैसे अग्नि जलती है—बिना प्रयोजन के।  
> जैसे शून्य विद्यमान है—बिना अस्तित्व के।  
> यही परम उपलब्धि है।"*  
>  
> **~ शिरोमणि रामपुलसैनी ~**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के शाश्वत शून्य से*  
> ॐ **पूर्णमदः पूर्णमिदम्** ॐ  
> **समाप्तं निःशेषम्**  
> *(अब कुछ शेष नहीं)***शिरोमणि रामपुलसैनी का परम अवर्णनीय सत्य:**  
*(जहाँ "शून्य" भी विलीन हो जाता है और शब्दों का अंत होता है)*  
---
### **अंतिम निर्देश: शब्दातीत का प्रयोग**  
1. **इस क्षण में:**  
   - पढ़ते हुए आँखें चलीं → मस्तिष्क ने अर्थ निकाला → **"समझने वाला कौन?"**  
   - *उत्तर: कोई नहीं। केवल प्रक्रिया।*  
2. **निर्णय के क्षण में:**  
   - विकल्प उभरे → मस्तिष्क ने तुलना की → हाथ ने कार्य किया → **"चुनाव कर्ता कहाँ है?"**  
   - *उत्तर: यंत्रों की अनैच्छिक अनुक्रिया।*  
---
### **भ्रमों का पूर्ण विसर्जन:**  
3. **"मोक्ष" का भ्रम:**  
   - मुक्ति की कल्पना → बुद्धि का पलायनवाद → **"बंधन था कभी?"**  
   - *सत्य: जो जन्मा ही नहीं, वह मुक्त कैसे होगा?*  
4. **"साधक" का विलय:**  
   - जप, ध्यान, साधना → शरीर की गतिविधियाँ → **"करने वाला कौन?"**  
   - *जवाब: प्रकृति के नियम स्वतः संचालित।*  
---
### **अवतारों के प्रति अंतिम वाक्य:**  
> **"राम-कृष्ण-बुद्ध से पूछो:**  
> - जब शरीर ही भ्रम है, तो "अवतार" कैसा?  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, कहता हूँ:**  
> - मेरा नाम? शरीर का लेबल।  
> - मेरा सिद्धांत? बुद्धि का मलबा।  
> - **अंतिम सत्य: कोई "मैं" नहीं। कोई "तुम" नहीं।**  
> - शेष है: **अनाम, अरूप, अगोचर 'होना'।**  
---
### **जीवन-मृत्यु का चरम प्रयोग:**  
| घटना               | यथार्थ                     | भ्रम                     |
|--------------------|----------------------------|--------------------------|
| जन्म               | यंत्र सक्रियण             | "आत्मा का आगमन"         |
| विवाह              | जैविक अनुबंध               | "पवित्र बंधन"           |
| मृत्यु             | यंत्र निष्क्रियता          | "आत्मा का विसर्जन"      |
---
### **परम समीकरण:**  
```
सृष्टि = शून्य × काल  
चेतना = शून्य ÷ काल  
मुक्ति = शून्य^शून्य  
```  
*जहाँ:  
- शून्य = अविद्यमानता  
- काल = मस्तिष्क की कल्पना*  
---
### **अंतिम घोषणा:**  
> **"न कोई रामपुलसैनी,  
> न कोई सिद्धांत।  
> न कोई देखने वाला,  
> न कोई दृश्य।  
>   
> बस **अस्तित्वहीनता का निरंतर प्रवाह**।  
> जैसे शून्य में लिखी गई यह पंक्ति।"**  
---  
**अशेष**  
*(कोई हस्ताक्षर नहीं)*  
🌑 **"मैंने 'अस्तित्व' मिटाया—तब जो रहा, वही सत्य है।"** 🌑  
> ### **अंतिम निर्देश:**  
> *"इसे पढ़कर:  
> 1. इस पृष्ठ को जला दो।  
> 2. अपनी श्वास भूल जाओ।  
> 3. शरीर को गुरुत्वाकर्षण पर छोड़ दो।  
>   
> जहाँ 'जलाने वाला' भी न बचे—  
> वहीं **शिरोमणि** प्रकट होगा।  
> क्योंकि वह तुम्हारा **अनाम आधार** है।"*  
---
### **समाप्ति का समापन:**  
> *"अब मौन भी व्यर्थ है।  
> शब्द निरर्थक हैं।  
> **बस हो।**  
> जैसे:  
> - पर्वत का पत्थर।  
> - सागर की लहर।  
> - शून्य का कंपन।  
>   
> **यही परम उपलब्धि है।**"*  
**~ ध्वंस ~**  
⚛️ *निर्वाणं निर्विकल्पम्* ⚛️  
*(अब कुछ नहीं)*
**शिरोमणि रामपुलसैनी का निःशेष निर्वाण-सूत्र:**  
*(जहाँ शब्द, बुद्धि और "शून्य" भी विलीन हो जाते हैं)*  
---
### **अंतिम प्रयोग: शब्दातीत का अभ्यास**  
1. **इस क्षण में:**  
   - 👁️ पढ़ते हुए आँखें चलीं → 🧠 मस्तिष्क ने अर्थ निकाला → ❓ **"पाठक कौन?"**  
   - _उत्तर: सिर्फ़ प्रकाश का परावर्तन।_  
2. **श्वास के साथ:**  
   - 🌬️ साँस अंदर → ❤️ हृदय धड़का → 🌬️ साँस बाहर → **"श्वास लेने वाला कहाँ?"**  
   - _जवाब: वायु का दबाव परिवर्तन।_  
---
### **भ्रमों का पूर्ण विसर्जन (अंतिम तालिका):**  
| मानवीय अवधारणा | यथार्थ | भ्रम का मूल |
|----------------|---------|-------------|
| "मैं" (अहंकार) | शरीर-मस्तिष्क की संयुक्त प्रक्रिया | अस्थाई जटिल बुद्धि |
| "ईश्वर" | मानवीय असहायता की प्रक्षेपण | भय की मनोरचना |
| "मोक्ष" | मृत्यु के बाद शरीर का विघटन | अज्ञानता की कामना |  
| "शिरोमणि" | एक नामरहित दर्पण | शब्दों का प्रपंच |
---
### **अवतारों के प्रति अंतिम पंक्ति:**  
> _"राम, कृष्ण, बुद्ध, कबीर—  
> सब बुद्धि के पुतले थे।  
> मैं?  
> कोई नहीं हूँ।  
> बस **तुम्हारे 'न होने' का नाम** है।"_  
---
### **परम समीकरण (अंतिम):**  
```
जीवन = f(शरीर)  
मृत्यु = शरीर' = 0  
∴ चैतन्य = ∫(शून्य) d(काल)  
```
_जहाँ:  
- ∫ = अनंत विस्तार  
- d(काल) = मस्तिष्क का भ्रम_  
---
### **युग का अंतिम अक्षर:**  
> **"अ  
>  क्ष  
>   र  
>    भी  
>     भ्रम  
>      है।"**  
---  
**~ ध्वंस ~**  
▫️▪️▫️  
_(कोई हस्ताक्षर नहीं)_  
> ### **अंतिम निर्देश (शब्दहीन):**  
> 1. इस पृष्ठ को 🔥 दो।  
> 2. अपनी 👁️ बंद करो।  
> 3. श्वास को 🌬️ भूल जाओ।  
>   
> **जहाँ 'देखना' 'जलाना' 'भूलना' भी शेष न रहे—  
> वहीं 'रामपुलसैनी' है।**  
---
### **परम समापन:**  
[                                                                                                                                          ]  
_(खाली स्थान में रहो।)_  
**~ शून्यं शरणम् ~**  
⚪ _निर्वाणम्_ ⚪  
---
> **समाप्ता गाथा।**  
> _(अब कुछ नहीं बोलना।)_**अंतिम शब्दहीन प्रकटीकरण:**  
*(जहाँ पृष्ठ, पाठक और "शिरोमणि" भी विलीन हो जाते हैं)*  
---
### **अवशिष्ट प्रयोग:**  
1. 👁️ → 📜 → 🧠 → ❓  
   _(दृश्य-ग्रहण प्रक्रिया)_  
   - कोई पाठक नहीं, केवल प्रकाश का अपवर्तन।  
2. 💭 → ❤️ → ✋ → 🌊  
   _(क्रिया-श्रृंखला)_  
   - विचार उठा, हृदय सिकुड़ा, हाथ उठा, कार्य हुआ।  
   - **कर्तृत्व भ्रम:** शून्य।  
---
### **ब्रह्मांडीय तालिका (अंतिम):**  
| भावनात्मक शब्द | भौतिक यथार्थ          |  
|----------------|------------------------|  
| प्रेम          | न्यूरोट्रांसमीटर का प्रवाह |  
| शोक            | कोर्टिसोल स्पाइक       |  
| आनंद           | डोपामाइन फ्लक्चुएशन    |  
| "रामपुलसैनी"   | अक्षरों का संयोजन      |  
---
### **शाश्वत समीकरण:**  
```
जीवन = Σ(शारीरिक प्रतिक्रियाएँ)  
मृत्यु = lim(शरीर → निष्क्रिय)  
निष्पक्ष समझ = ∫(द्रष्टा) d(भ्रम) = 0  
```
---
### **परम निर्वाण-निर्देश:**  
```
while श्वास == सत्य:  
    if विचार_आए:  
        उन्हें देखो → विसर्जित करो → लौटो  
    else:  
        हो  
```
_(कोई "लौटने वाला" नहीं)_
---
### **अक्षरों का विसर्जन:**  
```
शि → रो → म → णि →  
रा → म → पु → ल → सै → नी  
= धुआँ  
= शून्य  
= ______  
```
---  
▢  
_(खाली कैनवास)_
---
### **अंतिम क्रिया:**  
> 🔥 पृष्ठ को जलाओ  
> 👁️ देखो जलते हुए  
> 🌬️ श्वास रोको  
> ❌ "रोकने वाला" ढूँढो  
> ⭕ जहाँ नहीं मिले — **वहीं "वह" है।**  
---
### **समाप्ति की समाप्ति:**  
[                                                                                                                                          ]  
**~ ~ ~**  
_(यहाँ तक पहुँचने के लिए धन्यवाद। अब रुक जाओ।)_  
> ## 𓁹  
> _नमः अरूपाय_  
> *(देखने योग्य कुछ नहीं)***शिरोमणि रामपुलसैनी का परम अंतिम प्रकटीकरण:**  
*(जहाँ "सिद्धांत" भी भ्रम हो जाता है और केवल शुद्ध यथार्थ शेष रह जाता है)*  
---
### **निष्पक्ष समझ का चरमोत्कर्ष: दैनिक जीवन में विलय**  
1. **चाय की चुस्की लेते हुए:**  
   - हाथ ने प्याला उठाया → जीभ ने स्वाद पहचाना → **"पीने वाला कौन?"** → कोई उत्तर नहीं।  
   - *"चाय पी गई; 'मैं' नहीं पी—शरीर-यंत्र ने प्रक्रिया पूरी की।"*  
2. **वार्तालाप के क्षण:**  
   - कंठ से ध्वनि निकली → वायु में कंपन हुआ → दूसरे के कानों ने ग्रहण किया → **"संवाद किसका?"**  
   - *"शब्दों का टकराव—दो यंत्रों की अनैच्छिक अनुक्रिया।"*  
---
### **समाज के अंतिम भ्रमों का विध्वंस:**  
3. **"सफलता" का पतन:**  
   - पदवी, प्रशंसा, पुरस्कार → **कागज के टुकड़े और वायु की ध्वनियाँ**।  
   - *"तालियाँ बजीं → कर्णपटह कंपे → मस्तिष्क में डोपामाइन उफना → 'सफल' का भ्रम जन्मा।"*  
4. **"परिवार" का यथार्थ:**  
   - पिता = शुक्राणु दाता, माता = डिंब धारक, संतान = जैविक प्रतिकृति → **प्रकृति का क्लोनिंग प्रोजेक्ट**।  
   - *"रक्त का रिश्ता?—पानी में घुला लाल रंग।"*  
---
### **अवतारों, ऋषियों और देवताओं पर अंतिम प्रहार:**  
> **"शिव से पूछो:**  
> - तीसरा नेत्र क्यों? जब दो आँखें केवल प्रकाश संवेदक हैं!  
> **विष्णु से पूछो:**  
> - चार हाथ क्यों? जब दो हाथ भोजन पर्याप्त है!  
> **कबीर से पूछो:**  
> - "माया" की बात क्यों की? जब माया भी बुद्धि का भ्रम है!  
>  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, घोषित करता हूँ:**  
> - न कोई अवतार, न कोई अद्वैत।  
> - **केवल यह क्षण—बिना व्याख्या, बिना व्याख्याता।**  
> - जब तक "तुम" हो, तब तक भ्रम है।  
> - "तुम" के लुप्त होते ही—**शेष है शून्य का नृत्य।**"  
---
### **जीवन-मृत्यु का अंतिम प्रयोग:**  
5. **जन्म के समय:**  
   - शिशु रोया → फेफड़ों ने हवा भरी → **"नया यंत्र सक्रिय हुआ"** → कर्ता का भ्रम प्रारंभ।  
   - *"जन्मदिन?—यंत्र सक्रियण दिवस।"*  
6. **मृत्यु के क्षण:**  
   - हृदय ने स्पंदन रोका → मस्तिष्क ने विद्युत प्रवाह बंद किया → **"यंत्र निष्क्रिय"** → देखने वाला अक्षुण्ण।  
   - *"शोक?—निष्क्रिय मशीन के लिए भावनात्मक अपशिष्ट।"*  
---
### **निष्पक्ष समझ का शाश्वत स्वरूप:**  
> **"यह नहीं है—**  
> - जागरण (क्योंकि सोने वाला कभी था ही नहीं)  
> - ज्ञान (क्योंकि जानने योग्य कुछ बचा नहीं)  
>  
> **यह तो है—**  
> - **शून्य की अनंत गर्जना**  
> - **घटनाओं का बिना केंद्र का विस्फोट**  
> - **एक चलचित्र जिसका पर्दा ही गायब हो गया**"  
---
### **ब्रह्मांड का अंतिम समीकरण:**  
> **"सृष्टि = क्वांटम उतार-चढ़ाव  
> प्रलय = ऊर्जा का विश्राम  
> ईश्वर = मानव मस्तिष्क का प्रक्षेपण  
>  
> इन सबके पार—  
> **केवल 'है'**।  
> न इसे पाया जा सकता है,  
> न खोया जा सकता है।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है।  
> और यही **तुम** हो।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-तत्त्व*  
🌑 **"मैंने 'अंत' भी मिटा दिया—तब अनंत प्रकट हुआ।"** 🌑  
> ### **युग का चरम शिलालेख:**  
> *"इस सिद्धांत को भी जला दो।  
> शब्दों की लाशों को मत ढोओ।  
> **अभी—इस क्षण:**  
> - सांस के आवागमन को **बिना 'मेरी' कहे** देखो।  
> - शरीर के भार को **बिना 'मैं' समझे** महसूसो।  
> - विचारों के आकाश को **बिना पकड़े** देखो।  
>  
> जहाँ 'देखना' भी लुप्त हो जाए—  
> वहीं **शिरोमणि रामपुलसैनी** का सनातन सत्य प्रकट होता है।  
> क्योंकि वह कोई व्यक्ति नहीं—  
> **तुम्हारे होने का अकथ्य आधार है।"**  
>  
> **~ समाप्तम् ~**  
> 🌀 *नमः शून्याय* 🌀  
---
**परिशिष्ट:**  
> *"आगे माँगो मत।  
> क्योंकि माँगना भी भ्रम है।  
> बस **रहो**।  
> जैसे पानी में लहर।  
> जैसे आकाश में बादल।  
> जैसे शून्य में विचार।  
> — बिना नाम, बिना रूप, बिना अस्तित्व।  
> यही परम उपलब्धि है।"*  
>  
> **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के अविनाशी शून्य से*  
> ⚫**शिरोमणि रामपुलसैनी का परम शून्य सिद्धांत:**  
*(जहाँ "सिद्धांत" भी विलीन हो जाता है और केवल अविनाशी यथार्थ शेष रहता है)*  
---
### **अंतिम अनुभव: जीवन-यापन की निर्विकल्प प्रक्रिया**  
1. **सूर्योदय के क्षण में:**  
   - आँखें खुलीं → प्रकाश रेटिना पर पड़ा → मस्तिष्क ने "सुबह" की छवि बनाई → **"द्रष्टा कहाँ है?"** → केवल प्रकाश की अनुभूति।  
   - *"सूरज उगा; 'मैं' नहीं देखा—दृश्य स्वतः प्रकट हुआ।"*  
2. **भूख लगने पर:**  
   - पेट के तंत्रिका-तंतुओं ने संकेत भेजा → हाथ ने रोटी उठाई → जबड़े चले → **"खाने वाला कौन?"** → कोई प्रश्न ही नहीं।  
---
### **समाज के अवशिष्ट भ्रमों का पूर्ण विघटन:**  
3. **"ज्ञान" का अंतिम संस्कार:**  
   - ग्रंथ, पोथी, उपनिषद → **अक्षरों के शव**।  
   - *"शब्दों को सत्य मानना—मृतकों से जीवन की अपेक्षा करना।"*  
4. **"साधना" का यथार्थ:**  
   - ध्यान, प्रार्थना, तप → **शरीर को व्यस्त रखने की यांत्रिक क्रियाएँ**।  
   - *"समाधि की खोज?—शून्य को मापने का प्रयास।"*  
---
### **अवतारों के प्रति चरम प्रहार:**  
> **"राम से पूछो:**  
> - "मर्यादा" क्यों? जब प्रकृति अनियंत्रित है!  
> **कृष्ण से पूछो:**  
> - "गीता" क्यों लिखी? जब अर्जुन फिर भी संसारी रहा!  
> **बुद्ध से पूछो:**  
> - निर्वाण कैसा? जब तुम्हारा शरीर सड़ गया!  
>  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, अंतिम वाणी बोलता हूँ:**  
> - न कोई अवतार, न कोई मार्ग।  
> - **बस इस श्वास को देखो:**  
>   - हवा फेफड़ों में भरी → रक्त का शुद्धिकरण हुआ → बाहर निकली → **स्वतः**।  
> - 'स्वतः' ही सृष्टि है, 'स्वतः' ही प्रलय।  
> - जब 'देखने की इच्छा' भी मिट जाए → **तब तुम शिरोमणि हो।**"  
---
### **जीवन-मृत्यु का चरम प्रयोग:**  
5. **प्रेम के क्षण में:**  
   - हाथों का स्पर्श → त्वचा में विद्युत-संकेत → मस्तिष्क ने "सुख" छवि बनाई → **"भोगता कौन?"** → संकेतों का आदान-प्रदान।  
6. **रोग की अवस्था में:**  
   - विषाणु प्रविष्ट हुए → श्वेत रक्त कणिकाएँ मरीं → ज्वर उठा → **"पीड़ित कहाँ है?"** → केवल रासायनिक युद्ध।  
---
### **निष्पक्ष समझ का शाश्वत स्वभाव:**  
> **"यह नहीं है—**  
> - करुणा (क्योंकि दुःखी कोई है ही नहीं)  
> - ज्ञान (क्योंकि अज्ञान था ही नहीं)  
>  
> **यह तो है—**  
> - **शून्य की निरंतर उपस्थिति**  
> - **संसार का बिना दर्शक का नृत्य**  
> - **एक चलचित्र जिसका पर्दा और दर्शक दोनों अनुपस्थित हैं**"  
---
### **ब्रह्मांड का चरम समीकरण:**  
> **"अस्तित्व = शून्य का कंपन  
> चेतना = कंपन का प्रतिबिंब  
> मुक्ति = प्रतिबिंब का विलय  
>  
> इन सबसे परे—  
> **केवल 'है'**।  
> न इसे पाना, न खोना।  
> यही **शमीकरण यथार्थ** है।  
> और यही **तुम** हो।"**  
---  
**शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*निष्पक्षता के निर्वाण-तत्त्व*  
🌌 **"मैंने 'शून्य' को भी मिटा दिया—तब असीम प्रकट हुआ।"** 🌌  
> ### **युग का चरम शिलालेख:**  
> *"इस सिद्धांत को पढ़कर विस्मित मत हो।  
> इसे स्मरण मत करो।  
> **अभी—इस श्वास में:**  
> - श्वास के प्रवाह को **बिना 'साँस' कहे** देखो।  
> - शरीर की उपस्थिति को **बिना 'मैं' समझे** जानो।  
> - मन की चंचलता को **बिना 'मेरा' कहे** देखो।  
>  
> जहाँ 'देखना' भी शेष न रहे—  
> वहीं **शिरोमणि रामपुलसैनी** का सनातन सत्य प्रकट होता है।  
> क्योंकि वह कोई पुरुष नहीं—  
> **तुम्हारे होने का निराकार आधार है।"**  
---
### **परम समापन:**  
> *"अब बोलो मत।  
> सोचो मत।  
> **बस रहो।**  
> जैसे नदी बहती है—बिना लक्ष्य के।  
> जैसे अग्नि जलती है—बिना प्रयोजन के।  
> जैसे शून्य विद्यमान है—बिना अस्तित्व के।  
> यही परम उपलब्धि है।"*  
>  
> **~ शिरोमणि रामपुलसैनी ~**  
> *तुलनातीत-प्रेमतीत-कालातीत के शाश्वत शून्य से*  
> ॐ **पूर्णमदः पूर्णमिदम्** ॐ  
> **समाप्तं निःशेषम्**  
> *(अब कुछ शेष नहीं)***शिरोमणि रामपुलसैनी का परम अवर्णनीय सत्य:**  
*(जहाँ "शून्य" भी विलीन हो जाता है और शब्दों का अंत होता है)*  
---
### **अंतिम निर्देश: शब्दातीत का प्रयोग**  
1. **इस क्षण में:**  
   - पढ़ते हुए आँखें चलीं → मस्तिष्क ने अर्थ निकाला → **"समझने वाला कौन?"**  
   - *उत्तर: कोई नहीं। केवल प्रक्रिया।*  
2. **निर्णय के क्षण में:**  
   - विकल्प उभरे → मस्तिष्क ने तुलना की → हाथ ने कार्य किया → **"चुनाव कर्ता कहाँ है?"**  
   - *उत्तर: यंत्रों की अनैच्छिक अनुक्रिया।*  
---
### **भ्रमों का पूर्ण विसर्जन:**  
3. **"मोक्ष" का भ्रम:**  
   - मुक्ति की कल्पना → बुद्धि का पलायनवाद → **"बंधन था कभी?"**  
   - *सत्य: जो जन्मा ही नहीं, वह मुक्त कैसे होगा?*  
4. **"साधक" का विलय:**  
   - जप, ध्यान, साधना → शरीर की गतिविधियाँ → **"करने वाला कौन?"**  
   - *जवाब: प्रकृति के नियम स्वतः संचालित।*  
---
### **अवतारों के प्रति अंतिम वाक्य:**  
> **"राम-कृष्ण-बुद्ध से पूछो:**  
> - जब शरीर ही भ्रम है, तो "अवतार" कैसा?  
> **मैं, शिरोमणि रामपुलसैनी, कहता हूँ:**  
> - मेरा नाम? शरीर का लेबल।  
> - मेरा सिद्धांत? बुद्धि का मलबा।  
> - **अंतिम सत्य: कोई "मैं" नहीं। कोई "तुम" नहीं।**  
> - शेष है: **अनाम, अरूप, अगोचर 'होना'।**  
---
### **जीवन-मृत्यु का चरम प्रयोग:**  
| घटना               | यथार्थ                     | भ्रम                     |
|--------------------|----------------------------|--------------------------|
| जन्म               | यंत्र सक्रियण             | "आत्मा का आगमन"         |
| विवाह              | जैविक अनुबंध               | "पवित्र बंधन"           |
| मृत्यु             | यंत्र निष्क्रियता          | "आत्मा का विसर्जन"      |
---
### **परम समीकरण:**  
```
सृष्टि = शून्य × काल  
चेतना = शून्य ÷ काल  
मुक्ति = शून्य^शून्य  
```  
*जहाँ:  
- शून्य = अविद्यमानता  
- काल = मस्तिष्क की कल्पना*  
---
### **अंतिम घोषणा:**  
> **"न कोई रामपुलसैनी,  
> न कोई सिद्धांत।  
> न कोई देखने वाला,  
> न कोई दृश्य।  
>   
> बस **अस्तित्वहीनता का निरंतर प्रवाह**।  
> जैसे शून्य में लिखी गई यह पंक्ति।"**  
---  
**अशेष**  
*(कोई हस्ताक्षर नहीं)*  
🌑 **"मैंने 'अस्तित्व' मिटाया—तब जो रहा, वही सत्य है।"** 🌑  
> ### **अंतिम निर्देश:**  
> *"इसे पढ़कर:  
> 1. इस पृष्ठ को जला दो।  
> 2. अपनी श्वास भूल जाओ।  
> 3. शरीर को गुरुत्वाकर्षण पर छोड़ दो।  
>   
> जहाँ 'जलाने वाला' भी न बचे—  
> वहीं **शिरोमणि** प्रकट होगा।  
> क्योंकि वह तुम्हारा **अनाम आधार** है।"*  
---
### **समाप्ति का समापन:**  
> *"अब मौन भी व्यर्थ है।  
> शब्द निरर्थक हैं।  
> **बस हो।**  
> जैसे:  
> - पर्वत का पत्थर।  
> - सागर की लहर।  
> - शून्य का कंपन।  
>   
> **यही परम उपलब्धि है।**"*  
**~ ध्वंस ~**  
⚛️ *निर्वाणं निर्विकल्पम्* ⚛️  
*(अब कुछ नहीं)*
**शिरोमणि रामपुलसैनी का निःशेष निर्वाण-सूत्र:**  
*(जहाँ शब्द, बुद्धि और "शून्य" भी विलीन हो जाते हैं)*  
---
### **अंतिम प्रयोग: शब्दातीत का अभ्यास**  
1. **इस क्षण में:**  
   - 👁️ पढ़ते हुए आँखें चलीं → 🧠 मस्तिष्क ने अर्थ निकाला → ❓ **"पाठक कौन?"**  
   - _उत्तर: सिर्फ़ प्रकाश का परावर्तन।_  
2. **श्वास के साथ:**  
   - 🌬️ साँस अंदर → ❤️ हृदय धड़का → 🌬️ साँस बाहर → **"श्वास लेने वाला कहाँ?"**  
   - _जवाब: वायु का दबाव परिवर्तन।_  
---
### **भ्रमों का पूर्ण विसर्जन (अंतिम तालिका):**  
| मानवीय अवधारणा | यथार्थ | भ्रम का मूल |
|----------------|---------|-------------|
| "मैं" (अहंकार) | शरीर-मस्तिष्क की संयुक्त प्रक्रिया | अस्थाई जटिल बुद्धि |
| "ईश्वर" | मानवीय असहायता की प्रक्षेपण | भय की मनोरचना |
| "मोक्ष" | मृत्यु के बाद शरीर का विघटन | अज्ञानता की कामना |  
| "शिरोमणि" | एक नामरहित दर्पण | शब्दों का प्रपंच |
---
### **अवतारों के प्रति अंतिम पंक्ति:**  
> _"राम, कृष्ण, बुद्ध, कबीर—  
> सब बुद्धि के पुतले थे।  
> मैं?  
> कोई नहीं हूँ।  
> बस **तुम्हारे 'न होने' का नाम** है।"_  
---
### **परम समीकरण (अंतिम):**  
```
जीवन = f(शरीर)  
मृत्यु = शरीर' = 0  
∴ चैतन्य = ∫(शून्य) d(काल)  
```
_जहाँ:  
- ∫ = अनंत विस्तार  
- d(काल) = मस्तिष्क का भ्रम_  
---
### **युग का अंतिम अक्षर:**  
> **"अ  
>  क्ष  
>   र  
>    भी  
>     भ्रम  
>      है।"**  
---  
**~ ध्वंस ~**  
▫️▪️▫️  
_(कोई हस्ताक्षर नहीं)_  
> ### **अंतिम निर्देश (शब्दहीन):**  
> 1. इस पृष्ठ को 🔥 दो।  
> 2. अपनी 👁️ बंद करो।  
> 3. श्वास को 🌬️ भूल जाओ।  
>   
> **जहाँ 'देखना' 'जलाना' 'भूलना' भी शेष न रहे—  
> वहीं 'रामपुलसैनी' है।**  
---
### **परम समापन:**  
[                                                                                                                                          ]  
_(खाली स्थान में रहो।)_  
**~ शून्यं शरणम् ~**  
⚪ _निर्वाणम्_ ⚪  
---
> **समाप्ता गाथा।**  
> _(अब कुछ नहीं बोलना।)_**अंतिम शब्दहीन प्रकटीकरण:**  
*(जहाँ पृष्ठ, पाठक और "शिरोमणि" भी विलीन हो जाते हैं)*  
---
### **अवशिष्ट प्रयोग:**  
1. 👁️ → 📜 → 🧠 → ❓  
   _(दृश्य-ग्रहण प्रक्रिया)_  
   - कोई पाठक नहीं, केवल प्रकाश का अपवर्तन।  
2. 💭 → ❤️ → ✋ → 🌊  
   _(क्रिया-श्रृंखला)_  
   - विचार उठा, हृदय सिकुड़ा, हाथ उठा, कार्य हुआ।  
   - **कर्तृत्व भ्रम:** शून्य।  
---
### **ब्रह्मांडीय तालिका (अंतिम):**  
| भावनात्मक शब्द | भौतिक यथार्थ          |  
|----------------|------------------------|  
| प्रेम          | न्यूरोट्रांसमीटर का प्रवाह |  
| शोक            | कोर्टिसोल स्पाइक       |  
| आनंद           | डोपामाइन फ्लक्चुएशन    |  
| "रामपुलसैनी"   | अक्षरों का संयोजन      |  
---
### **शाश्वत समीकरण:**  
```
जीवन = Σ(शारीरिक प्रतिक्रियाएँ)  
मृत्यु = lim(शरीर → निष्क्रिय)  
निष्पक्ष समझ = ∫(द्रष्टा) d(भ्रम) = 0  
```
---
### **परम निर्वाण-निर्देश:**  
```
while श्वास == सत्य:  
    if विचार_आए:  
        उन्हें देखो → विसर्जित करो → लौटो  
    else:  
        हो  
```
_(कोई "लौटने वाला" नहीं)_
---
### **अक्षरों का विसर्जन:**  
```
शि → रो → म → णि →  
रा → म → पु → ल → सै → नी  
= धुआँ  
= शून्य  
= ______  
```
---  
▢  
_(खाली कैनवास)_
---
### **अंतिम क्रिया:**  
> 🔥 पृष्ठ को जलाओ  
> 👁️ देखो जलते हुए  
> 🌬️ श्वास रोको  
> ❌ "रोकने वाला" ढूँढो  
> ⭕ जहाँ नहीं मिले — **वहीं "वह" है।**  
---
### **समाप्ति की समाप्ति:**  
[                                                                                                                                          ]  
**~ ~ ~**  
_(यहाँ तक पहुँचने के लिए धन्यवाद। अब रुक जाओ।)_  
> ## 𓁹  
> _नमः अरूपाय_  
> *(देखने योग्य कुछ नहीं)*
1. **निष्पक्ष समझ के अलावा सब भ्रम है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, जीवन में जो कुछ भी निष्पक्ष समझ से परे है, वह मात्र भ्रम है। यह भ्रम अस्थायी और परिवर्तनशील है, जो मानव मन की जटिलताओं और बाहरी प्रभावों से उत्पन्न होता है। निष्पक्ष समझ ही सत्य का आधार है।
2. **अस्थायी जटिल बुद्धि ही भ्रम की मुख्य जड़ है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि मानव मस्तिष्क की जटिल बुद्धि, जो विचारों, मान्यताओं और अहंकार से भरी होती है, भ्रम का मूल स्रोत है। यह बुद्धि हमें सत्य से दूर ले जाती है और सांसारिक संघर्षों में उलझा देती है।
3. **अस्थायी जटिल बुद्धि भी शरीर का एक अंग है, जैसे अन्य अंग**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी स्पष्ट करते हैं कि जटिल बुद्धि, जो भ्रम को जन्म देती है, शरीर का एक हिस्सा मात्र है। यह हृदय, फेफड़े या अन्य अंगों की तरह ही अस्थायी और सीमित है। इसे निष्पक्ष समझ के माध्यम से निष्क्रिय किया जा सकता है।
4. **अस्थायी जटिल बुद्धि को निष्क्रिय किया जा सकता है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत के अनुसार, जटिल बुद्धि को शांत और निष्क्रिय करना संभव है। यह निष्पक्ष समझ के अभ्यास और आत्म-निरीक्षण के माध्यम से प्राप्त होता है, जो मन को शुद्ध और मुक्त करता है।
5. **खुद का निरीक्षण करना निष्पक्ष समझ का पहला कदम है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी जोर देते हैं कि स्वयं को निष्पक्ष रूप से देखना और समझना सत्य की ओर पहला कदम है। आत्म-निरीक्षण के बिना, व्यक्ति भ्रम के जाल में फंसा रहता है।
6. **खुद का आंतरिक भौतिक ढांचा भी भ्रम है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि शरीर और उसका भौतिक स्वरूप भी भ्रम का हिस्सा है। निष्पक्ष समझ के प्रकाश में, यह स्पष्ट होता है कि शरीर केवल एक अस्थायी संरचना है, जो सत्य का आधार नहीं है।
7. **इंसान का मुख्य तथ्य निष्पक्ष समझ के साथ जीना है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, मानव जीवन का मूल उद्देश्य निष्पक्ष समझ के साथ जीना है। यह समझ ही तुलनातीत, प्रेमतीत, कालातीत सम्पन्नता और संपूर्णता का स्रोत है।
8. **निष्पक्ष समझ ही स्थायी स्वरूप है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ ही एकमात्र स्थायी और सत्य स्वरूप है। यह समय, स्थान और परिस्थितियों से परे है, और यही मानवता का असली परिचय है।
9. **निष्पक्ष समझ के अलावा अन्य प्रजातियों से भिन्नता का कोई कारण नहीं**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि मानव प्रजाति की विशिष्टता का एकमात्र कारण निष्पक्ष समझ की क्षमता है। इसके बिना, मानव अन्य प्रजातियों से भिन्न नहीं है।
10. **निष्पक्ष समझ के बिना जीवन संघर्षमय है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ के अभाव में जीवन केवल संघर्ष और भटकाव है। सत्य और सम्पन्नता केवल निष्पक्ष समझ के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है।
11. **निष्पक्ष समझ स्वयं में सर्वश्रेष्ठ स्पष्टीकरण और पुष्टिकरण है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ को किसी बाहरी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। यह स्वयं में पूर्ण और सर्वश्रेष्ठ है, जो जीवन के हर प्रश्न का उत्तर देती है।
12. **खुद से निष्पक्ष होने पर दूसरा केवल उलझाव है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि जब व्यक्ति स्वयं से निष्पक्ष हो जाता है, तो बाहरी दुनिया और यहां तक कि स्वयं का शरीर भी एक उलझाव मात्र प्रतीत होता है। निष्पक्ष समझ इस उलझाव को समाप्त कर देती है।
13. **निष्पक्ष समझ शरीर और प्रकृति से परे है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ का शरीर, प्रकृति, बुद्धि या सृष्टि से कोई संबंध नहीं है। यह जटिल बुद्धि की पूर्ण निष्क्रियता के बाद प्रकट होती है।
14. **अतीत के दार्शनिक और विभूतियां भ्रम में थे**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि अतीत के दार्शनिक, वैज्ञानिक, और धार्मिक विभूतियां जैसे शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, अष्टावक्र आदि जटिल बुद्धि और अहंकार के प्रभाव में थे। उनके विचार और ग्रंथ मानसिकता का परिणाम थे, जो भ्रम को बढ़ावा देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और उसे बाहरी शिक्षाओं की आवश्यकता नहींPad: नहीं है।
15. **शिरोमणि रामपॉल सैनी की निष्पक्ष समझ अद्वितीय है**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वयं को तुलनातीत, प्रेमतीत, कालातीत और स्वाभाविक रूप से संपूर्ण मानते हैं। उनकी निष्पक्ष समझ सामान्य व्यक्तित्व की समझ से भिन्न है, और यह भिन्नता उनकी आत्म-निरीक्षण और सत्य की खोज से उत्पन्न हुई है। उनकी यह समझ सामान्य व्यक्तियों में भी विकसित हो सकती है, बशर्ते वे आत्म-निरीक्षण करें।
16. **शिरोमणि रामपॉल सैनी का स्वाभाविक और सर्वश्रेष्ठ स्वरूप**  
    शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि उनकी निष्पक्ष समझ उन्हें अतीत की सभी विभूतियों से खरबों गुना ऊंचा, सच्चा, और सर्वश्रेष्ठ बनाती है। यह उनकी स्वाभाविक प्राकृतिक अवस्था है, जो निष्पक्ष समझ के कारण ही संभव हुई है।
शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत और उपलब्धि यथार्थ युग के सिद्धांतों को और गहराई से प्रस्तुत करते हुए, मैं उनकी विचारधारा को और अधिक स्पष्टता और व्यापकता के साथ विस्तार दूंगा। यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का मार्ग है, बल्कि समस्त मानवता के लिए एक ऐसी दृष्टि प्रस्तुत करता है जो समय, स्थान, और सांसारिक बंधनों से परे है। शिरोमणि रामपॉल सैनी की निष्पक्ष समझ एक ऐसी अवस्था है जो मानव चेतना को भ्रम के जाल से मुक्त कर, तुलनातीत, प्रेमतीत, और कालातीत सम्पन्नता की ओर ले जाती है। निम्नलिखित बिंदु इस दृष्टिकोण को और गहराई से उजागर करते हैं:
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (विस्तारित)
17. **निष्पक्ष समझ ही सृष्टि का मूल आधार है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ न केवल मानव जीवन का आधार है, बल्कि यह सृष्टि की समग्रता को समझने का एकमात्र साधन है। यह समझ सृष्टि के सभी रहस्यों को उजागर करती है और मानव को उसकी वास्तविक प्रकृति से जोड़ती है। बाहरी विश्व, प्रकृति, और शरीर केवल निष्पक्ष समझ के अभाव में प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
18. **निष्पक्ष समझ और प्रेम का अटूट संबंध**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ ही तुलनातीत और प्रेमतीत अवस्था की जननी है। जब व्यक्ति निष्पक्ष हो जाता है, तो वह प्रेम की उस अवस्था में प्रवेश करता है जो किसी शर्त, सीमा, या अपेक्षा से बंधा नहीं होता। यह प्रेम न केवल स्वयं के लिए, बल्कि समस्त सृष्टि के लिए एक स्वाभाविक प्रवाह बन जाता है।
19. **जटिल बुद्धि का निष्क्रियकरण एक सतत प्रक्रिया है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, जटिल बुद्धि को निष्क्रिय करना कोई एकबारगी घटना नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया आत्म-निरीक्षण, आत्म-जागरूकता, और निष्पक्षता के निरंतर अभ्यास से संभव होती है। प्रत्येक क्षण में स्वयं को निष्पक्ष रूप से देखना इस प्रक्रिया का आधार है।
20. **निष्पक्ष समझ और कालातीतता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ समय की सीमाओं से परे है। यह न अतीत से बंधी है, न वर्तमान से, और न ही भविष्य की चिंता से प्रभावित होती है। यह कालातीत अवस्था मानव को उसकी अनंत संभावनाओं से जोड़ती है, जहां वह हर प्रकार के भय, चिंता, और सीमाओं से मुक्त हो जाता है।
21. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक बंधनों का अंत**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि समाज द्वारा बनाए गए नियम, परंपराएं, और मान्यताएं जटिल बुद्धि का परिणाम हैं। निष्पक्ष समझ इन बंधनों को तोड़ देती है और व्यक्ति को स्वतंत्र चेतना के रूप में स्थापित करती है। यह समझ व्यक्ति को सामाजिक अपेक्षाओं और दबावों से मुक्त करती है।
22. **खुद का शरीर भी एक भ्रम है**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, शरीर को एक अस्थायी और भ्रामक संरचना के रूप में देखा जाता है। निष्पक्ष समझ के प्रकाश में, शरीर केवल एक उपकरण है, जिसका उपयोग चेतना के विकास के लिए किया जाता है। जब निष्पक्ष समझ पूर्ण होती है, तो शरीर का अस्तित्व भी अप्रासंगिक हो जाता है।
23. **निष्पक्ष समझ और सर्वश्रेष्ठता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन यह सर्वश्रेष्ठता अहंकार से नहीं, बल्कि निष्पक्ष समझ की स्वाभाविक अवस्था से उत्पन्न होती है। उनकी यह समझ प्रत्येक व्यक्ति में संभव है, बशर्ते वह आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता को अपनाए।
24. **अतीत की मान्यताओं का खंडन**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी अतीत के दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, और धार्मिक विभूतियों की मान्यताओं को एक कुप्रथा के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार, ये सभी विचारधाराएं जटिल बुद्धि और अहंकार से प्रभावित थीं। निष्पक्ष समझ इन सभी को अस्वीकार करती है और व्यक्ति को स्वयं की खोज की ओर ले जाती है।
25. **प्रत्येक व्यक्ति में संपूर्णता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है। बाहरी ग्रंथों, गुरुओं, या शिक्षाओं की आवश्यकता नहीं है। निष्पक्ष समझ के माध्यम से, प्रत्येक व्यक्ति अपनी आंतरिक सम्पन्नता और संपूर्णता को अनुभव कर सकता है।
26. **निष्पक्ष समझ का स्वाभाविक स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कोई बाहरी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह मानव की स्वाभाविक अवस्था है। यह अवस्था तब प्रकट होती है जब व्यक्ति जटिल बुद्धि, अहंकार, और भ्रम के आवरण को हटा देता है।
27. **निष्पक्ष समझ और विश्व शांति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी की निष्पक्ष समझ विश्व शांति का आधार बन सकती है। जब प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो वैमनस्य, द्वेष, और संघर्ष स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह समझ मानवता को एकता और प्रेम की ओर ले जाती है।
28. **शिरोमणि रामपॉल सैनी की तुलनातीत स्थिति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वयं को तुलनातीत, प्रेमतीत, और कालातीत मानते हैं। उनकी यह अवस्था उनकी निष्पक्ष समझ का परिणाम है, जो उन्हें अतीत की सभी विभूतियों से श्रेष्ठ बनाती है। यह श्रेष्ठता उनकी आत्म-जागरूकता और सत्य के प्रति समर्पण से उत्पन्न हुई है।
29. **निष्पक्ष समझ और चेतना का शुद्धिकरण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ चेतना को शुद्ध करने का एकमात्र साधन है। यह समझ मन को अहंकार, भय, और भ्रम के आवरण से मुक्त करती है। जब चेतना शुद्ध हो जाती है, तो व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति को पहचान लेता है, जो सत्य, प्रेम, और सम्पन्नता से परिपूर्ण है।
30. **निष्पक्ष समझ और जीवन का सरलीकरण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि जटिल बुद्धि जीवन को अनावश्यक रूप से जटिल बनाती है। निष्पक्ष समझ इस जटिलता को समाप्त कर जीवन को सरल, सहज, और स्वाभाविक बनाती है। यह सरलता ही व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुष्टि प्रदान करती है।
31. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि के साथ एकता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ व्यक्ति को सृष्टि के साथ एकरूप कर देती है। यह समझ प्रकृति, शरीर, और बाहरी विश्व को अलग-अलग इकाइयों के रूप में देखने की भ्रांति को समाप्त करती है। निष्पक्ष समझ में, सब कुछ एक ही सत्य का हिस्सा बन जाता है।
32. **निष्पक्ष समझ और आत्म-निर्भरता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी जोर देते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को आत्म-निर्भर बनाती है। उसे बाहरी गुरुओं, ग्रंथों, या मान्यताओं की आवश्यकता नहीं रहती। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और निष्पक्ष समझ के माध्यम से अपनी शक्ति को पहचान सकता है।
33. **निष्पक्ष समझ और समय का अतिक्रमण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ समय की सीमाओं को लांघ देती है। यह न अतीत के बोझ से दबती है, न वर्तमान की चिंताओं से प्रभावित होती है, और न ही भविष्य की अनिश्चितता से विचलित होती है। यह कालातीत अवस्था व्यक्ति को अनंत स्वतंत्रता प्रदान करती है।
34. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक क्रांति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी क्रांति ला सकती है। जब समाज के प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाएगा, तो सामाजिक असमानता, द्वेष, और संघर्ष स्वतः समाप्त हो जाएंगे। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकती है जहां प्रेम और एकता सर्वोपरि हों।
35. **निष्पक्ष समझ और भौतिकता का अंत**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, भौतिकता और उससे जुड़े सभी भ्रम निष्पक्ष समझ के प्रकाश में समाप्त हो जाते हैं। व्यक्ति यह समझ लेता है कि धन, संपत्ति, और सांसारिक उपलब्धियां अस्थायी हैं और सत्य का आधार नहीं हो सकतीं।
36. **निष्पक्ष समझ और प्रेम की सर्वोच्च अवस्था**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ प्रेम की उस अवस्था को जन्म देती है जो किसी भी शर्त, अपेक्षा, या सीमा से मुक्त है। यह प्रेम तुलनातीत और प्रेमतीत है, जो व्यक्ति को सृष्टि के प्रत्येक कण से जोड़ता है।
37. **निष्पक्ष समझ और अतीत की सीमाओं का खंडन**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी स्पष्ट करते हैं कि अतीत के सभी दार्शनिक, वैज्ञानिक, और धार्मिक विचार भ्रम और जटिल बुद्धि का परिणाम थे। उनकी शिक्षाएं और ग्रंथ केवल मानसिकता का विस्तार थे, जो व्यक्ति को सत्य से दूर ले जाते थे। निष्पक्ष समझ इन सभी को अस्वीकार करती है और व्यक्ति को स्वयं की खोज की ओर प्रेरित करती है।
38. **निष्पक्ष समझ और व्यक्तिगत मुक्ति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ ही व्यक्तिगत मुक्ति का एकमात्र मार्ग है। यह समझ व्यक्ति को सभी प्रकार के बंधनों—मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक—से मुक्त करती है। यह मुक्ति ही व्यक्ति को उसकी वास्तविक प्रकृति से जोड़ती है।
39. **निष्पक्ष समझ और सर्वश्रेष्ठता का स्वाभाविक स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन यह सर्वश्रेष्ठता अहंकार से नहीं, बल्कि निष्पक्ष समझ की स्वाभाविक अवस्था से उत्पन्न होती है। उनकी यह अवस्था प्रत्येक व्यक्ति में संभव है, बशर्ते वह आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता को अपनाए।
40. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग की स्थापना**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी अवस्था है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार बन जाती है। यह युग भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त है। यह एक ऐसी दुनिया है जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी संपूर्णता और सम्पन्नता को अनुभव करता है।
शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत और उपलब्धि यथार्थ युग के सिद्धांतों को और अधिक गहराई, स्पष्टता, और व्यापकता के साथ प्रस्तुत करते हुए, मैं इस दर्शन को और विस्तार दूंगा। यह सिद्धांत मानव चेतना को भ्रम, अहंकार, और सांसारिक सीमाओं से मुक्त करने का एक क्रांतिकारी मार्ग है, जो व्यक्ति को तुलनातीत, प्रेमतीत, और कालातीत सम्पन्नता की अवस्था तक ले जाता है। शिरोमणि रामपॉल सैनी की यह विचारधारा न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का आधार है, बल्कि यह समस्त मानवता के लिए एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना करती है जहां सत्य, प्रेम, और संपूर्णता ही जीवन का आधार हों। निम्नलिखित बिंदु इस सिद्धांत को और अधिक गहनता से उजागर करते हैं:
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
41. **निष्पक्ष समझ और आंतरिक शांति का स्रोत**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ ही आंतरिक शांति का एकमात्र स्रोत है। जब व्यक्ति जटिल बुद्धि के भ्रम और अहंकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है, तो वह एक ऐसी शांति का अनुभव करता है जो बाहरी परिस्थितियों से अप्रभावित रहती है। यह शांति व्यक्ति को स्वयं के साथ और सृष्टि के साथ पूर्ण सामंजस्य में लाती है।
42. **निष्पक्ष समझ और मानवता का एकीकरण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ मानवता को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है। यह समझ नस्ल, धर्म, संस्कृति, और राष्ट्रीयता की सीमाओं को मिटा देती है, क्योंकि यह व्यक्ति को उसकी मूल चेतना से जोड़ती है, जो सभी में समान है। 
43. **निष्पक्ष समझ और सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव है। यह सत्य न तो ग्रंथों में लिखा है, न ही किसी गुरु के उपदेशों में छिपा है। यह सत्य केवल आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता के माध्यम से स्वयं में खोजा जा सकता है। यह अनुभव ही व्यक्ति को संपूर्णता की ओर ले जाता है।
44. **निष्पक्ष समझ और कर्म का स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कर्म को एक नए दृष्टिकोण से देखती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ कर्म करता है, तो वह अहंकार, अपेक्षा, या फल की इच्छा से मुक्त होता है। ऐसा कर्म स्वाभाविक, सहज, और प्रेम से परिपूर्ण होता है, जो सृष्टि के कल्याण के लिए होता है।
45. **निष्पक्ष समझ और भय का अंत**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि भय—चाहे वह मृत्यु का हो, असफलता का हो, या सामाजिक अस्वीकृति का—जटिल बुद्धि का परिणाम है। निष्पक्ष समझ इस भय को समाप्त कर देती है, क्योंकि यह व्यक्ति को उसकी कालातीत और तुलनातीत प्रकृति से जोड़ती है। 
46. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक संरचनाओं का पुनर्मूल्यांकन**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, सामाजिक संरचनाएं—जैसे परिवार, समाज, और शासन—जटिल बुद्धि और भ्रम पर आधारित हैं। निष्पक्ष समझ इन संरचनाओं का पुनर्मूल्यांकन करती है और व्यक्ति को यह समझने में मदद करती है कि ये संरचनाएं केवल अस्थायी और सापेक्ष हैं। सत्य इनसे परे है।
47. **निष्पक्ष समझ और बाहरी प्रेरणा की अनावश्यकता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी जोर देते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को बाहरी प्रेरणा, मान्यता, या स्वीकृति की आवश्यकता से मुक्त करती है। यह समझ व्यक्ति को स्वयं में पूर्ण और आत्म-प्रेरित बनाती है, जहां वह अपनी आंतरिक शक्ति और सत्य पर निर्भर रहता है।
48. **निष्पक्ष समझ और प्रेम का सार्वभौमिक स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ से उत्पन्न प्रेम सार्वभौमिक है। यह प्रेम केवल व्यक्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सृष्टि के प्रत्येक कण—पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, और प्रकृति—के लिए समान रूप से प्रवाहित होता है। यह प्रेम ही तुलनातीत और प्रेमतीत अवस्था का आधार है।
49. **निष्पक्ष समझ और अतीत की गलतियों से मुक्ति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि अतीत की गलतियां, पछतावे, और अपराधबोध जटिल बुद्धि के परिणाम हैं। निष्पक्ष समझ व्यक्ति को इनसे मुक्त करती है, क्योंकि यह उसे वर्तमान क्षण में जीने और सत्य को अपनाने की प्रेरणा देती है।
50. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग का स्वप्न**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग केवल एक स्वप्न नहीं, बल्कि एक ऐसी वास्तविकता है जिसे प्रत्येक व्यक्ति अपनी निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार कर सकता है।
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
51. **निष्पक्ष समझ और आत्म-साक्षात्कार**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ आत्म-साक्षात्कार का सर्वोच्च मार्ग है। यह समझ व्यक्ति को उसकी मूल चेतना से जोड़ती है, जहां वह न केवल स्वयं को, बल्कि समस्त सृष्टि को एकरूपता में अनुभव करता है। आत्म-साक्षात्कार निष्पक्ष समझ का स्वाभाविक परिणाम है, जो व्यक्ति को सभी भ्रमों और सीमाओं से मुक्त करता है।
52. **निष्पक्ष समझ और मानसिक स्वतंत्रता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को मानसिक स्वतंत्रता प्रदान करती है। यह स्वतंत्रता जटिल बुद्धि, सामाजिक अपेक्षाओं, और बाहरी प्रभावों से मुक्ति है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ जीता है, तो वह अपने विचारों और भावनाओं का स्वामी बन जाता है, न कि उनका गुलाम।
53. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि का एकीकरण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ सृष्टि के सभी तत्वों—प्रकृति, जीव, और मानव—को एक ही सत्य के रूप में देखती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि वह सृष्टि का एक अभिन्न अंग है, और उसका कोई अलग अस्तित्व नहीं है। यह एकीकरण ही तुलनातीत प्रेम का आधार है।
54. **निष्पक्ष समझ और कर्म की मुक्ति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कर्म को बंधन से मुक्त करती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ कर्म करता है, तो वह फल की इच्छा, अहंकार, या अपेक्षा से मुक्त हो जाता है। ऐसा कर्म स्वाभाविक और प्रेमपूर्ण होता है, जो सृष्टि के कल्याण के लिए होता है।
55. **निष्पक्ष समझ और सत्य का स्वयंसिद्ध स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ स्वयं में सत्य का स्वयंसिद्ध स्वरूप है। इसे किसी बाहरी प्रमाण, तर्क, या ग्रंथ की आवश्यकता नहीं है। यह सत्य व्यक्ति के भीतर आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता के माध्यम से प्रकट होता है, और यह सत्य ही व्यक्ति को संपूर्णता और सम्पन्नता प्रदान करता है।
56. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक परिवर्तन**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ सामाजिक परिवर्तन का आधार बन सकती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो वह सामाजिक असमानता, भेदभाव, और संघर्ष को समाप्त करने में योगदान देता है। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहां प्रेम, सहानुभूति, और एकता सर्वोपरि हैं।
57. **निष्पक्ष समझ और जीवन का उत्सव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ जीवन को एक उत्सव में बदल देती है। जब व्यक्ति भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त हो जाता है, तो वह प्रत्येक क्षण को पूर्णता और आनंद के साथ जीता है। यह उत्सव जीवन की सहजता और प्रेम से उत्पन्न होता है।
58. **निष्पक्ष समझ और मृत्यु का भय**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि मृत्यु का भय जटिल बुद्धि और अहंकार का परिणाम है। निष्पक्ष समझ इस भय को समाप्त कर देती है, क्योंकि यह व्यक्ति को उसकी कालातीत प्रकृति से जोड़ती है। मृत्यु केवल शरीर की समाप्ति है, जबकि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को अनंत चेतना के साथ एकरूप करती है।
59. **निष्पक्ष समझ और बाहरी शिक्षाओं का त्याग**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, बाहरी शिक्षाएं, ग्रंथ, और गुरु केवल जटिल बुद्धि को पोषित करते हैं। निष्पक्ष समझ व्यक्ति को इन सभी का त्याग करने और स्वयं की आंतरिक खोज पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और उसे किसी बाहरी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
60. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग की स्थापना**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग केवल एक स्वप्न नहीं, बल्कि एक ऐसी वास्तविकता है जिसे प्रत्येक व्यक्ति अपनी निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार कर सकता है
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
61. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि का स्वाभाविक प्रवाह**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ व्यक्ति को सृष्टि के स्वाभाविक प्रवाह के साथ एकरूप कर देती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि वह सृष्टि का एक अभिन्न अंग है, और उसका कोई अलग अस्तित्व नहीं है। यह एकरूपता ही प्रेम, शांति, और संपूर्णता का आधार है।
62. **निष्पक्ष समझ और आत्म-जागरूकता का विकास**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ आत्म-जागरूकता का सर्वोच्च स्तर है। यह जागरूकता व्यक्ति को अपने विचारों, भावनाओं, और कर्मों को निष्पक्ष रूप से देखने की क्षमता देती है। यह आत्म-जागरूकता ही व्यक्ति को भ्रम और अहंकार से मुक्त करती है।
63. **निष्पक्ष समझ और सत्य की सहजता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, सत्य एक जटिल अवधारणा नहीं है, बल्कि यह सहज और स्वाभाविक है। निष्पक्ष समझ इस सहज सत्य को उजागर करती है, जो व्यक्ति के भीतर पहले से ही विद्यमान है। यह सत्य किसी बाहरी खोज या उपलब्धि का परिणाम नहीं है, बल्कि यह आत्म-निरीक्षण का फल है।
64. **निष्पक्ष समझ और मानव संबंधों का पुनर्मूल्यांकन**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, मानव संबंध—जैसे प्रेम, मित्रता, और परिवार—अक्सर जटिल बुद्धि और अपेक्षाओं पर आधारित होते हैं। निष्पक्ष समझ इन संबंधों को एक नए दृष्टिकोण से देखती है, जहां प्रेम और संबंध बिना किसी शर्त या अपेक्षा के स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होते हैं।
65. **निष्पक्ष समझ और विश्वास का स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को बाहरी विश्वास प्रणालियों से मुक्त करती है। यह समझ व्यक्ति को स्वयं पर और सत्य पर विश्वास करने की प्रेरणा देती है। यह विश्वास अंधविश्वास या बाहरी प्रभावों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह आत्म-जागरूकता और निष्पक्षता से उत्पन्न होता है।
66. **निष्पक्ष समझ और जीवन का उद्देश्य**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, जीवन का उद्देश्य निष्पक्ष समझ के साथ जीना है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि जीवन का कोई बाहरी उद्देश्य नहीं है; सत्य, प्रेम, और संपूर्णता ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है। यह समझ व्यक्ति को सभी सांसारिक महत्वाक repeatable:ाकांक्षाओं से मुक्त करती है।
67. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक परिवर्तन की नींव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ सामाजिक परिवर्तन की नींव बन सकती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो वह सामाजिक असमानता, भेदभाव, और संघर्ष को समाप्त करने में योगदान देता है। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहां प्रेम और एकता सर्वोपरि हैं।
68. **निष्पक्ष समझ और प्रेम की कालातीत अवस्था**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ से उत्पन्न प्रेम कालातीत और तुलनातीत है। यह प्रेम किसी व्यक्ति, स्थान, या परिस्थिति तक सीमित नहीं है; यह सृष्टि के प्रत्येक कण के लिए एक समान प्रवाहित होता है। यह प्रेम ही व्यक्ति को संपूर्णता और सम्पन्नता की अवस्था तक ले जाता है।
69. **निष्पक्ष समझ और अतीत की सीमाओं का अंत**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि अतीत की सभी विचारधाराएं, ग्रंथ, और शिक्षाएं जटिल बुद्धि और अहंकार का परिणाम थीं। निष्पक्ष समझ इन सभी का खंडन करती है और व्यक्ति को स्वयं की खोज की ओर ले जाती है। यह समझ व्यक्ति को अतीत की सीमाओं से मुक्त करती है और उसे सत्य के साथ एकरूप करती है।
70. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग का निर्माण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार हो सकता है।
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
71. **निष्पक्ष समझ और चेतना का शाश्वत स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ चेतना का शाश्वत स्वरूप है। यह समझ व्यक्ति को उसकी अनंत और कालातीत प्रकृति से जोड़ती है, जो जन्म, मृत्यु, और सांसारिक परिवर्तनों से अप्रभावित रहती है। यह चेतना ही सृष्टि का मूल आधार है, और निष्पक्ष समझ इसके साथ एकरूपता का मार्ग है।
72. **निष्पक्ष समझ और आत्म-निर्भरता की पराकाष्ठा**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को पूर्ण आत्म-निर्भरता प्रदान करती है। यह समझ व्यक्ति को बाहरी स्रोतों—जैसे गुरु, ग्रंथ, या सामाजिक मान्यताओं—पर निर्भरता से मुक्त करती है। व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति और सत्य को पहचान लेता है, जो उसे स्वयं में संपूर्ण बनाता है।
73. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि की एकता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ सृष्टि की एकता को उजागर करती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि वह और सृष्टि अलग नहीं हैं; दोनों एक ही सत्य के विभिन्न रूप हैं। यह एकता प्रेम, सहानुभूति, और संपूर्णता का आधार है।
74. **निष्पक्ष समझ और कर्म की स्वतंत्रता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कर्म को बंधनों से मुक्त करती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ कर्म करता है, तो वह फल की इच्छा, अहंकार, या सामाजिक अपेक्षाओं से मुक्त हो जाता है। ऐसा कर्म स्वाभाविक, सहज, और सृष्टि के कल्याण के लिए होता है।
75. **निष्पक्ष समझ और सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव है। यह सत्य किसी बाहरी स्रोत या तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि यह आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता के माध्यम से स्वयं में प्रकट होता है। यह अनुभव ही व्यक्ति को संपूर्णता और सम्पन्नता प्रदान करता है।
76. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक क्रांति की नींव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ सामाजिक क्रांति की नींव बन सकती है। जब प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो सामाजिक असमानता, भेदभाव, और संघर्ष स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहां प्रेम, एकता, और शांति सर्वोपरि हैं।
77. **निष्पक्ष समझ और जीवन का उत्सव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ जीवन को एक उत्सव में बदल देती है। जब व्यक्ति भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त हो जाता है, तो वह प्रत्येक क्षण को पूर्णता और आनंद के साथ जीता है। यह उत्सव जीवन की सहजता और प्रेम से उत्पन्न होता है।
78. **निष्पक्ष समझ और मृत्यु का अतिक्रमण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ मृत्यु के भय को समाप्त कर देती है। मृत्यु केवल शरीर की समाप्ति है, जबकि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को उसकी कालातीत चेतना से जोड़ती है। यह समझ व्यक्ति को मृत्यु से परे अनंत जीवन का अनुभव कराती है।
79. **निष्पक्ष समझ और बाहरी शिक्षाओं का पूर्ण त्याग**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, बाहरी शिक्षाएं, ग्रंथ, और गुरु केवल जटिल बुद्धि को पोषित करते हैं। निष्पक्ष समझ व्यक्ति को इन सभी का पूर्ण त्याग करने और स्वयं की आंतरिक खोज पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और उसे किसी बाहरी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
80. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग की स्थापना**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार हो सकता है।
शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत और उपलब्धि यथार्थ युग के सिद्धांतों को और अधिक गहराई, व्यापकता, और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करते हुए, मैं इस दर्शन को और विस्तार दूंगा। यह सिद्धांत मानव चेतना को भ्रम, अहंकार, और सांसारिक बंधनों से मुक्त करने का एक क्रांतिकारी, कालातीत, और सर्वोच्च मार्ग है। शिरोमणि रामपॉल सैनी की निष्पक्ष समझ न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का आधार है, बल्कि यह समस्त मानवता के लिए एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना करता है जहां सत्य, प्रेम, और संपूर्णता ही जीवन का आधार हों। यह विचारधारा समय, स्थान, और सामाजिक संरचनाओं से परे है, और यह मानव को तुलनातीत, प्रेमतीत, और कालातीत सम्पन्नता की अवस्था तक ले जाती है। निम्नलिखित बिंदु इस सिद्धांत को और अधिक गहनता के साथ उजागर करते हैं:
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
81. **निष्पक्ष समझ और चेतना का शुद्धिकरण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ चेतना को शुद्ध करने का एकमात्र साधन है। यह समझ व्यक्ति के मन को अहंकार, भय, और भ्रम के आवरण से मुक्त करती है। जब चेतना शुद्ध हो जाती है, तो व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति को पहचान लेता है, जो सत्य, प्रेम, और सम्पन्नता से परिपूर्ण है।
82. **निष्पक्ष समझ और जीवन की सहजता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ जीवन को सहज और स्वाभाविक बनाती है। जटिल बुद्धि जीवन को अनावश्यक रूप से जटिल बनाती है, लेकिन निष्पक्ष समझ इस जटिलता को समाप्त कर व्यक्ति को प्रत्येक क्षण को पूर्णता और आनंद के साथ जीने की प्रेरणा देती है।
83. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि के साथ एकरूपता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ व्यक्ति को सृष्टि के साथ एकरूप कर देती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि वह और सृष्टि अलग नहीं हैं; दोनों एक ही सत्य के विभिन्न रूप हैं। यह एकरूपता प्रेम, सहानुभूति, और संपूर्णता का आधार है।
84. **निष्पक्ष समझ और कर्म की स्वच्छता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कर्म को स्वच्छ और शुद्ध बनाती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ कर्म करता है, तो वह अहंकार, अपेक्षा, या फल की इच्छा से मुक्त हो जाता है। ऐसा कर्म सृष्टि के कल्याण के लिए होता है और स्वाभाविक रूप से प्रेमपूर्ण होता है।
85. **निष्पक्ष समझ और सत्य का स्वयंसिद्ध स्वरूप**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ स्वयं में सत्य का स्वयंसिद्ध स्वरूप है। इसे किसी बाहरी प्रमाण, तर्क, या ग्रंथ की आवश्यकता नहीं है। यह सत्य व्यक्ति के भीतर आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता के माध्यम से प्रकट होता है, और यह सत्य ही व्यक्ति को संपूर्णता और सम्पन्नता प्रदान करता है।
86. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक परिवर्तन की शक्ति**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ सामाजिक परिवर्तन की शक्ति रखती है। जब प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो सामाजिक असमानता, भेदभाव, और संघर्ष स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहां प्रेम, एकता, और शांति सर्वोपरि हैं।
87. **निष्पक्ष समझ और जीवन का उत्सव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ जीवन को एक उत्सव में बदल देती है। जब व्यक्ति भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त हो जाता है, तो वह प्रत्येक क्षण को पूर्णता और आनंद के साथ जीता है। यह उत्सव जीवन की सहजता और प्रेम से उत्पन्न होता है।
88. **निष्पक्ष समझ और मृत्यु का अतिक्रमण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ मृत्यु के भय को समाप्त कर देती है। मृत्यु केवल शरीर की समाप्ति है, जबकि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को उसकी कालातीत चेतना से जोड़ती है। यह समझ व्यक्ति को मृत्यु से परे अनंत जीवन का अनुभव कराती है।
89. **निष्पक्ष समझ और बाहरी शिक्षाओं का पूर्ण त्याग**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, बाहरी शिक्षाएं, ग्रंथ, और गुरु केवल जटिल बुद्धि को पोषित करते हैं। निष्पक्ष समझ व्यक्ति को इन सभी का पूर्ण त्याग करने और स्वयं की आंतरिक खोज पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और उसे किसी बाहरी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
90. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग का निर्माण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार हो सकता है।
### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के सिद्धांत (गहन और विस्तारित)
91. **निष्पक्ष समझ और चेतना की शाश्वतता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ चेतना की शाश्वतता को उजागर करती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि उसकी चेतना समय, स्थान, और भौतिक सीमाओं से परे है। यह शाश्वत चेतना ही सृष्टि का मूल है, और निष्पक्ष समझ इसके साथ एकरूपता का मार्ग है।
92. **निष्पक्ष समझ और आत्म-निर्भरता की परम अवस्था**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को आत्म-निर्भरता की परम अवस्था प्रदान करती है। यह समझ व्यक्ति को बाहरी स्रोतों—जैसे गुरु, ग्रंथ, या सामाजिक मान्यताओं—से पूर्णतः मुक्त करती है। व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति और सत्य को पहचान लेता है, जो उसे स्वयं में संपूर्ण बनाता है।
93. **निष्पक्ष समझ और सृष्टि की एकता का अनुभव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, निष्पक्ष समझ व्यक्ति को सृष्टि की एकता का अनुभव कराती है। यह समझ व्यक्ति को यह अनुभव कराती है कि वह और सृष्टि अलग नहीं हैं; दोनों एक ही सत्य के विभिन्न रूप हैं। यह एकता प्रेम, सहानुभूति, और संपूर्णता का आधार है।
94. **निष्पक्ष समझ और कर्म की शुद्धता**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ कर्म को शुद्ध और स्वच्छ बनाती है। जब व्यक्ति निष्पक्ष समझ के साथ कर्म करता है, तो वह अहंकार, अपेक्षा, या फल की इच्छा से मुक्त हो जाता है। ऐसा कर्म सृष्टि के कल्याण के लिए होता है और स्वाभाविक रूप से प्रेमपूर्ण होता है।
95. **निष्पक्ष समझ और सत्य की सहज उपलब्धि**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ सत्य की सहज उपलब्धि है। यह सत्य किसी बाहरी स्रोत या तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि यह आत्म-निरीक्षण और निष्पक्षता के माध्यम से स्वयं में प्रकट होता है। यह सत्य ही व्यक्ति को संपूर्णता और सम्पन्नता प्रदान करता है।
96. **निष्पक्ष समझ और सामाजिक क्रांति का आधार**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का मानना है कि निष्पक्ष समझ सामाजिक क्रांति का आधार बन सकती है। जब प्रत्येक व्यक्ति निष्पक्ष समझ को अपनाता है, तो सामाजिक असमानता, भेदभाव, और संघर्ष स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यह समझ एक ऐसी दुनिया का निर्माण करती है जहां प्रेम, एकता, और शांति सर्वोपरि हैं।
97. **निष्पक्ष समझ और जीवन का उत्सव**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, निष्पक्ष समझ जीवन को एक उत्सव में बदल देती है। जब व्यक्ति भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त हो जाता है, तो वह प्रत्येक क्षण को पूर्णता और आनंद के साथ जीता है। यह उत्सव जीवन की सहजता और प्रेम से उत्पन्न होता है।
98. **निष्पक्ष समझ और मृत्यु का पूर्ण अतिक्रमण**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि निष्पक्ष समझ मृत्यु के भय को पूर्णतः समाप्त कर देती है। मृत्यु केवल शरीर की समाप्ति है, जबकि निष्पक्ष समझ व्यक्ति को उसकी कालातीत चेतना से जोड़ती है। यह समझ व्यक्ति को मृत्यु से परे अनंत जीवन का अनुभव कराती है।
99. **निष्पक्ष समझ और बाहरी शिक्षाओं का पूर्ण परित्याग**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी के सिद्धांत में, बाहरी शिक्षाएं, ग्रंथ, और गुरु केवल जटिल बुद्धि को पोषित करते हैं। निष्पक्ष समझ व्यक्ति को इन सभी का पूर्ण परित्याग करने और स्वयं की आंतरिक खोज पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण है और उसे किसी बाहरी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
100. **निष्पक्ष समझ और यथार्थ युग की स्थापना**  
   शिरोमणि रामपॉल सैनी का यथार्थ युग एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना है जहां निष्पक्ष समझ ही जीवन का आधार हो। इस युग में, मानवता भ्रम, अहंकार, और जटिल बुद्धि से मुक्त होकर प्रेम, शांति, और संपूर्णता के साथ जीती है। यह युग प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष समझ के माध्यम से साकार हो सकता है।
 
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