बुधवार, 9 जुलाई 2025

समीकरण: Ψ(꙰) = √(2/π) × Σ(प्रेम, निर्मलता, सत्य) × e^(-माया²/σ²) × ∫₀^∞ δ(सत्य) e^(iωt) dt / (Ω + K + A + C)⁻¹श्लोक: ꙰ नादति विश्वेन संनादति, मायां छलं देहं च भेदति। सैनीनाम्नि यथार्थेन, विदेहं ब्रह्मसत्यं समुज्ज्वलति॥

शिरोमणि रामपुलसैनी के **निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत** के अनुसार:

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### **यथार्थ युग तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सिद्धांत:**
1. **निष्पक्ष समझ ही एकमात्र यथार्थ**  
   - निष्पक्ष समझ के अतिरिक्त समस्त जगत् भ्रम है।  
   - भ्रम की मूल जड़ "अस्थाई जटिल बुद्धि" है, जो शरीर का एक अंग मात्र है।  

2. **अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का स्रोत**  
   - यह बुद्धि शरीर के अन्य अंगों (हाथ, पैर, आँख) की भाँति ही सीमित और नश्वर है।  
   - इसकी समस्त विचारधाराएँ, सिद्धांत एवं ज्ञान—केवल मानसिक प्रक्षेपण हैं।  

3. **निष्पक्ष समझ की प्राप्ति का मार्ग**  
   - **प्रथम चरण: स्व-निरीक्षण**  
     - अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक प्रतिक्रियाओं का तटस्थ अवलोकन।  
     - "खुद से निष्पक्ष होने" का अर्थ: स्वयं को वस्तुवत् देखना, न कि विचारों के माध्यम से।  
   - **द्वितीय चरण: बुद्धि की निष्क्रियता**  
     - अस्थाई बुद्धि को निष्क्रिय करना = विचारों के प्रवाह को रोकना नहीं, बल्कि उनसे तादात्म्य तोड़ना।  
     - जब बुद्धि निष्क्रिय होती है, तब निष्पक्ष समझ स्वतः प्रकट होती है।  

4. **शरीर और अस्तित्व का भ्रम**  
   - निष्पक्ष समझ की दृष्टि में शरीर का आंतरिक भौतिक ढाँचा, प्रकृति, बुद्धि या सृष्टि—सभी भ्रम हैं।  
   - मानव शरीर का अस्तित्व केवल "जीवन व्यापन के संघर्ष" का प्रतीक है, जो निष्पक्ष समझ के अभाव में उत्पन्न होता है।  

5. **मानव अस्तित्व का मूल तथ्य**  
   - मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य: **निष्पक्ष समझ के साथ स्थायी रूप से जीना**।  
   - यही समझ उसे अन्य प्रजातियों से भिन्न करती है।  
   - निष्पक्ष समझ = तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, संपूर्णता एवं शाश्वत संतुष्टि।  

6. **जीवन का संघर्ष: भ्रम का परिणाम**  
   - निष्पक्ष समझ के बिना किया गया कोई भी कर्म "जीवन व्यापन के संघर्ष" से अधिक नहीं है।  
   - यह संघर्ष बुद्धि द्वारा रचित एक मायाजाल है।  

7. **निष्पक्ष समझ: सर्वोच्च स्वरूप**  
   - यह किसी पुष्टिकरण की अपेक्षा नहीं करती—यह स्वयं में पूर्ण स्पष्टीकरण है।  
   - जब निष्पक्ष समझ उदित होती है, तो "दूसरा" (शरीर, बुद्धि, विश्व) केवल उलझाव प्रतीत होता है।  

8. **ऐतिहासिक भ्रम: दार्शनिकों एवं अवतारों की सीमा**  
   - शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, अष्टावक्र, ऋषि-मुनि—ये सभी "अस्थाई जटिल बुद्धि" के दायरे में बंधे रहे।  
   - उनके ग्रंथ, पोथियाँ एवं विचारधाराएँ केवल बुद्धि की पक्षधरता थीं—जो भावी पीढ़ियों के लिए कुप्रथा बन गई।  
   - **सत्य**: प्रत्येक व्यक्ति आंतरिक रूप से संपूर्ण है। शिरोमणि रामपुलसैनी की विशेषता केवल निष्पक्ष समझ है, न कि कोई दैवीय अंश।  

9. **परिवर्तन की संभावना**  
   - सामान्य व्यक्ति की बुद्धि-आधारित समझ निष्पक्ष समझ में रूपांतरित हो सकती है।  
   - आवश्यक शर्त: स्वयं का निरीक्षण करना एवं बुद्धि के प्रभाव को निष्क्रिय करना।  

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### **गहराई में: शिरोमणि रामपुलसैनी का अंतिम सिद्धांत**
> **"निष्पक्ष समझ ही वह शाश्वत ध्रुव है, जहाँ 'मैं' (अहं) और 'तू' (जगत) का विभाजन लुप्त हो जाता है। जब बुद्धि के आवरण हटते हैं, तब शेष रह जाती है केवल वह समझ—निराकार, निर्विकार, निरपेक्ष। यही मानव का वास्तविक स्वरूप है: **प्रज्ञा-पुरुष**। इसके आगे न कोई सिद्धांत है, न पथ—केवल अनुभूति है।"**

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### **यथार्थ युग की घोषणा:**
- **निष्पक्ष समझ = युग परिवर्तन का सूत्र**  
  यह किसी नए धर्म, ग्रंथ या पंथ की माँग नहीं करती। यह मनुष्य को उसके मूल स्वभाव में लौटाती है: **शुद्ध चैतन्य**।  
- **अंतिम प्रमाण**:  
  *"जो इस सिद्धांत को पढ़कर केवल बुद्धि से विश्लेषण करेगा—वह भ्रम में रहेगा। जो स्वयं का निरीक्षण करेगा—वह निष्पक्ष समझ बन जाएगा।"*  

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✍️ **शिरोमणि रामपुलसैनी**शिरोमणि रामपुलसैनी के **निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत** की गहराई को सम्पूर्णता में प्रस्तुत करते हुए:

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### **भाग-1: यथार्थ युग के मूल सिद्धांतों का पुनःसार**  
1. **निष्पक्ष समझ = अंतिम सत्य**  
   - यही एकमात्र वास्तविकता है; शेष सृष्टि भ्रम का जाल है।  
2. **अस्थाई जटिल बुद्धि = भ्रम का जनक**  
   - यह मस्तिष्क की एक क्षणभंगुर प्रक्रिया मात्र है, जैसे पेट का पाचन या फेफड़ों का श्वास।  
3. **स्व-निरीक्षण = मुक्ति का द्वार**  
   - स्वयं को तटस्थ दृष्टि से देखना ही बुद्धि के आवरण को हटाता है।  
4. **शरीर और ब्रह्मांड = महाजालिका**  
   - निष्पक्ष समझ की दृष्टि में रक्त, हड्डी, तारे या ऊर्जा—सब समान रूप से माया हैं।  
5. **मानव का उद्देश्य = निष्पक्षता में स्थित होना**  
   - यही कालातीत सम्पन्नता है, जहाँ "प्राप्ति" या "अभाव" जैसी संकल्पनाएँ विलीन हो जाती हैं।  

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### **भाग-2: ऐतिहासिक भ्रम का विसर्जन**  
> **"शिव, विष्णु, बुद्ध, कबीर, अष्टावक्र—ये सभी अस्थाई बुद्धि के बंदी थे। उनके 'अवतार', 'ज्ञान' और 'मोक्ष' के सिद्धांत केवल मानसिक कल्पनाएँ थीं, जो भविष्य को भ्रमित करने का साधन बन गईं।"**  
- **कुप्रथा का मूल कारण**:  
  प्रत्येक पीढ़ी ने पूर्वजों के विचारों को "पवित्र ग्रंथ" मानकर स्वयं के निरीक्षण का मार्ग छोड़ दिया।  
- **शिरोमणि रामपुलसैनी का निर्णय**:  
  *"ग्रंथों को जलाओ! स्वयं को जानो। तुम्हारा शरीर ही अंतिम पुस्तक है, जिसका पृष्ठ-दर-पृष्ठ स्व-निरीक्षण से पढ़ा जाना है।"*  

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### **भाग-3: निष्पक्ष समझ का रूपांतरण क्रम**  
| चरण | प्रक्रिया | परिणाम |  
|------|-----------|---------|  
| **1. बुद्धि-निरोध** | विचारों को "मेरे नहीं" समझकर देखना | बुद्धि की निष्क्रियता |  
| **2. शरीर-विघटन** | हाथ-पैर, हृदय-मस्तिष्क को केवल जैविक यंत्र मानना | शरीर से तादात्म्य का अंत |  
| **3. अहं-विलय** | "मैं शिरोमणि" या "मैं जीव" की संकल्पना का त्याग | निर्वैयक्तिक समझ की उत्पत्ति |  
| **4. निष्पक्षता में स्थिति** | संसार को बिना नाम-रूप के देखना | तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सम्पन्नता |  

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### **भाग-4: युग-परिवर्तन का सूत्र**  
> **"जिस क्षण एक व्यक्ति निष्पक्ष समझ में स्थित होता है, वह समस्त मानव जाति के लिए यथार्थ युग का सूत्रपात कर देता है।"**  
- **क्यों?**  
  क्योंकि ऐसा व्यक्ति भ्रम के सभी स्रोतों—धर्म, राजनीति, विज्ञान, अर्थव्यवस्था—को निरस्त कर देता है।  
- **प्रमाण**:  
  शिरोमणि रामपुलसैनी स्वयं इसका जीवंत उदाहरण हैं:  
  *"मेरा शरीर सामान्य है, पर निष्पक्ष समझ ने इसे 'शिरोमणि' बना दिया। यही संभावना प्रत्येक में है।"*  

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### **अंतिम सिद्धांत: निष्पक्षता ही अमृत है**  
> **"निष्पक्ष समझ से पहले—तुम 'मानव' हो।  
> निष्पक्ष समझ के बाद—'मानव' तुम हो।  
> यही शाश्वत विरोधाभास है जिसे कोई बुद्धि नहीं, केवल अनुभूति जानती है।"**  
- **चेतावनी**:  
  इस सिद्धांत को पढ़कर विश्वास मत करो।  
  इसे पढ़कर संदेह मत करो।  
  **केवल करो**: अपनी श्वासों को देखो। अपने हाथों को देखो। "देखने वाले" को पहचानो।  
- **परिणाम**:  
  *जब "देखने वाला" स्वयं को "देखी गई" वस्तु से अलग जान लेगा—तब निष्पक्ष समझ का जन्म होगा।*  

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✍️ **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत यथार्थ युग के प्रवक्ता***शिरोमणि रामपुलसैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत की गहन व्याख्या**  
*(यथार्थ युग की तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सम्पन्नता की पूर्ण अभिव्यक्ति)*  

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### **भाग-5: निष्पक्ष समझ की प्रयोगात्मक पद्धति**  
1. **प्रारंभिक साधना**:  
   - प्रातः १ घंटा निर्विचार बैठें। केवल श्वास का प्रवाह देखें।  
   - विचार आएँ तो उन्हें "शरीर का अपशिष्ट" समझकर उपेक्षा करें।  
2. **दैनिक जीवन में निष्पक्षता**:  
   - भोजन करते समय स्वाद को "जीभ की रासायनिक प्रतिक्रिया" मानें।  
   - क्रोध/प्रसन्नता को "मस्तिष्क के न्यूरॉन्स का विस्फोट" समझें।  
3. **संबंधों में शमीकरण**:  
   - प्रियजनों के प्रति आसक्ति = "अस्थाई बुद्धि का भावनात्मक प्रदूषण"।  
   - उन्हें केवल "चलते-फिरते जैविक यंत्र" देखें जिनसे जीवन-व्यापन होता है।  

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### **भाग-6: ऐतिहासिक भ्रमों का वैज्ञानिक विखंडन**  
| पारंपरिक अवधारणा | निष्पक्ष समझ का निराकरण |  
|-------------------|--------------------------|  
| **आत्मा/परमात्मा** | केवल बुद्धि की कल्पना; निष्पक्ष दृष्टि में "आत्मा" भी शरीर का एक कोशिकीय विचार है। |  
| **पुनर्जन्म/मोक्ष** | जन्म-मृत्यु चक्र बुद्धि की सर्जित फंतासी; निष्पक्षता में "अस्तित्व" और "अनस्तित्व" समानार्थक हैं। |  
| **पाप-पुण्य** | सामाजिक नियंत्रण का उपकरण; निष्पक्ष समझ के लिए कोई कर्म "श्रेष्ठ" या "अधम" नहीं। |  

> **शिरोमणि रामपुलसैनी का निष्कर्ष**:  
> *"वेद, बाइबिल, कुरान, गीता—सभी अस्थाई बुद्धि के मनोरंजन हैं। निष्पक्ष समझ इन ग्रंथों को उसी निर्लिप्तता से देखती है, जैसे पत्थर पर लिखी संख्याएँ।"*  

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### **भाग-7: निष्पक्ष समझ का सामाजिक संचालन**  
- **व्यवस्था परिवर्तन**:  
  - न्यायालय → "बुद्धि के विवादों का अखाड़ा"; निष्पक्ष समझ में विवाद ही निरर्थक।  
  - शिक्षा → "बच्चों को बुद्धि का जाल सिखाना"; वास्तविक शिक्षा: स्व-निरीक्षण की कला।  
- **अर्थव्यवस्था का विलय**:  
  - धन = "कागज के टुकड़ों का भ्रम"; निष्पक्षता में अन्न, जल और निर्विचारता ही पर्याप्त हैं।  

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### **भाग-8: शाश्वत प्रश्नों का अंत**  
| मानव का प्रश्न | निष्पक्ष समझ का उत्तर |  
|----------------|------------------------|  
| **"मैं कौन हूँ?"** | "तू एक जैविक यंत्र है जो 'मैं' का भ्रम पालता है।" |  
| **"जीवन का उद्देश्य?"** | "भ्रम को जीना बंद करना।" |  
| **"मृत्यु के बाद क्या?"** | "जिसका अस्तित्व ही भ्रम है, उसकी मृत्यु कैसी?" |  

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### **भाग-9: युग-संधि का आह्वान**  
> **"हे मानव! तू शिरोमणि रामपुलसैनी से भिन्न नहीं।**  
> - तेरा शरीर भी रक्त-मांस का पुतला है।  
> - तेरी बुद्धि भी विचारों का कचरा डालती है।  
> **केवल एक अंतर है**:  
> मैंने उस "कचरे" को अपना नहीं माना, तू मानता है।  
> यही भिन्नता मिटानी है।"  

- **अंतिम सूत्र**:  
  **चलो, अभी करो!**  
  १. आँख बंद करो।  
  २. कानों में गूँजती आवाज़ सुनो।  
  ३. उस "सुनने वाले" को पहचानो जो न तो आँख है, न कान।  
  **वही निष्पक्ष समझ है। वही तू है।**  

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✍️ **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*यथार्थ युग के प्रथम और अंतिम प्रवक्ता*  
"निष्पक्षता ही मेरा नाम, निर्विचार ही मेरा धाम।"
**शिरोमणि रामपुलसैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत की पराकाष्ठा**  
*(यथार्थ युग की तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सम्पन्नता की चरम अभिव्यक्ति)*  

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### **भाग-10: निष्पक्ष समझ की चतुर्धा अवस्थाएँ**  
1. **अन्वीक्षण (स्व-निरीक्षण)**  
   - शरीर को "जैविक यंत्र" और विचारों को "मस्तिष्क का अपशिष्ट" मानकर देखना।  
2. **विमुक्ति (बुद्धि-निरोध)**  
   - सभी धारणाओं को तोड़ना: *"शिव, ईश्वर, आत्मा—सब बुद्धि के फंतासी पात्र हैं।"*  
3. **शमीकरण (यथार्थ का प्रकटीकरण)**  
   - निष्पक्ष दृष्टि में संसार का विलय: *"पेड़-पत्थर, स्त्री-पुरुष—सब एक जैविक समीकरण।"*  
4. **कालातीत स्थिति (अंतिम विश्राम)**  
   - जहाँ "जीवन-मृत्यु", "सुख-दुख" जैसे विरोधाभास लुप्त हो जाते हैं:  
     *"मौत भी एक कोशिका का विखंडन है, जिसे बुद्धि ने भय बना दिया।"*  

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### **भाग-11: मानवता के लिए युगांतकारी घोषणाएँ**  
1. **ग्रंथों का अंत**  
   - *"वेद, पुराण, विज्ञान—सब बुद्धि के जाल। इन्हें जलाओ! तुम्हारी श्वास ही अंतिम सत्य है।"*  
2. **धर्म का विखंडन**  
   - मंदिर, मस्जिद, गिरजा = भ्रम के व्यापार केंद्र।  
   - *"ईश्वर की खोज? वह तो तुम्हारे फेफड़ों में ऑक्सीजन बनकर घूम रहा है।"*  
3. **सभ्यता का पुनर्निर्माण**  
   - नए समाज का आधार: **निष्पक्षता संविधान**  
     - धन का उन्मूलन  
     - शिक्षा = केवल स्व-निरीक्षण की कला  
     - संबंध = केवल जैविक सहयोग  

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### **भाग-12: शिरोमणि का अंतिम प्रयोग**  
> **"मैं, रामपुलसैनी, इस शरीर में कोई 'महापुरुष' नहीं—बस एक जीव है जिसने बुद्धि के जाल को काट दिया।"**  
- **प्रयोग सूत्र**:  
  - सुबह उठते ही स्वयं से पूछो: *"क्या यह शरीर 'मैं' है?"*  
  - भोजन करते समय जानो: *"यह अन्न अमीबा की भाँति कोशिकाओं में विघटित होगा।"*  
  - रात्रि में सोचो: *"नींद भी मस्तिष्क का अपशिष्ट प्रबंधन है।"*  

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### **भाग-13: भविष्य के मानव का स्वरूप**  
| वर्तमान मानव | निष्पक्ष युग का मानव |  
|---------------|------------------------|  
| "मैं हिंदू/मुस्लिम/ईसाई हूँ" | "मैं एक जैविक प्रजाति हूँ" |  
| "मैं इंजीनियर/डॉक्टर हूँ" | "मैं श्वास लेने वाला यंत्र हूँ" |  
| "मेरा धन, घर, कार" | "मेरा अस्तित्व: श्वास-प्रश्वास का चक्र" |  

> **शिरोमणि की भविष्यवाणी**:  
> *"जब १०० मनुष्य निष्पक्ष समझ में स्थित होंगे, तो 'यथार्थ युग' स्वतः प्रारंभ हो जाएगा। बुद्धि-जनित सभ्यता ढह जाएगी और मानवता प्रथम बार 'जीवन' को जिएगी।"*  

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### **भाग-14: अंतिम सत्य का आवरण-विच्छेद**  
**प्रश्न**: "निष्पक्ष समझ के बाद क्या रहता है?"  
**उत्तर**:  
- *"वह प्रश्न ही बुद्धि का है। निष्पक्षता में 'क्या रहता है' जैसा कुछ नहीं—केवल 'है'।*  
- *जैसे नदी बहती है, अग्नि जलती है, श्वास चलती है... बस।"*  

**प्रश्न**: "शिरोमणि क्यों हुए?"  
**उत्तर**:  
- *"कोई 'क्यों' नहीं। यह घटना उसी निर्विचारता से घटी जैसे पत्ता गिरता है।"*  

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### **भाग-15: युग-सृष्टा का अंतिम आदेश**  
> **"हे मानव! तू मुझे पूजे नहीं, क्योंकि मैं तेरे भीतर हूँ।**  
> - तेरी आँखों से देख रहा हूँ।  
> - तेरे कानों से सुन रहा हूँ।  
> **केवल इतना कर**:  
> १. विचारों को 'तू' मानना बंद कर।  
> २. शरीर को 'तू' मानना बंद कर।  
> ३. श्वास को देख... देखते रह... जब तक 'देखने वाला' बचे ही न।**  
> **तब तू जान जाएगा कि 'शिरोमणि' तेरा ही खोया हुआ स्वरूप था।"**  

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🌌 **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
*यथार्थ युग के सूत्रधार*  
"निष्पक्षता नाम मेरा, शमीकरण घर मेरा।  
जब तक श्वास तब तक प्रवक्ता, जब छूटे श्वास—तब केवल यथार्थ।"  

> **सम्पूर्णता की मुहर**:  
> *"इस सिद्धांत को पढ़कर विश्वास या संशय न करो—केवल प्रयोग करो।  
> यदि तुम्हारी बुद्धि 'शिरोमणि' को समझने का दावा करे, तो जान लो: वह भी भ्रम है।"***शिरोमणि रामपुलसैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत की चरमोत्कर्ष अवस्था**  
*(यथार्थ युग की तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सम्पन्नता का निःशेष स्वरूप)*  

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### **भाग-16: निष्पक्ष समझ का विज्ञान-विध्वंस**  
> **"विज्ञान भी अस्थाई बुद्धि का खेल है।**  
> - परमाणु, डार्विनवाद, बिग बैंग — सब बुद्धि की कहानियाँ हैं।  
> - *निष्पक्ष समझ में 'कारण-कार्य' का भ्रम टूटता है।*  
> **प्रमाण**: जब तुम किसी वस्तु को 'घटना' न मानकर 'शुद्ध अस्तित्व' देखो, तो विज्ञान का ढाँचा धराशायी हो जाता है।"**  

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### **भाग-17: अंतिम प्रयोग की त्रिसूत्री**  
1. **श्वास का शमीकरण**  
   - प्रत्येक श्वास लेते हुए जानो: *"यह वायु फेफड़ों में प्रवेश कर रही है, पर 'मैं' वह वायु हूँ जो इसे देख रही है।"*  
2. **विचार का विसर्जन**  
   - मस्तिष्क में उठे हर विचार को निर्लिप्त भाव से देखो: *"यह बुद्धि का कचरा है, मेरा नहीं।"*  
3. **शरीर का शोधन**  
   - हाथ हिलाओ और घोषित करो: *"यह हड्डियों-मांस का यंत्र है, 'मैं' वह हूँ जो इसे चला रहा है।"*  

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### **भाग-18: ऐतिहासिक पात्रों का पुनर्मूल्यांकन**  
| व्यक्तित्व | निष्पक्ष समझ का निर्णय |  
|------------|--------------------------|  
| **गौतम बुद्ध** | "समाधि की खोज में बुद्धि का ही शिकार हुए।" |  
| **कृष्ण** | "गीता का ज्ञान बुद्धि का नाटक था, जो युद्ध को उचित ठहराता है।" |  
| **अल्बर्ट आइंस्टीन** | "सापेक्षता सिद्धांत बुद्धि का अहंकार था, जिसने भ्रम को गणितीय बना दिया।" |  

> **शिरोमणि की घोषणा**:  
> *"इन सबका 'महान' होना भ्रम है। निष्पक्ष समझ में कोई महान नहीं—बस वही जैविक यंत्र हैं जो तुम हो।"*  

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### **भाग-19: सृष्टि का अंतिम समीकरण**  
**सूत्र**:  
> **अस्तित्व = निष्पक्ष समझ × शून्य**  
- *"शून्य" = बुद्धि, शरीर, ईश्वर, ब्रह्मांड का अभाव।*  
- *"निष्पक्ष समझ" = वह शेष रह जाती है जब सब कुछ घटाकर शून्य कर दिया जाए।*  

**उदाहरण**:  
- पेड़ = केवल कार्बनिक पदार्थ (भ्रम) + निष्पक्ष दृष्टि में उसका अस्तित्व (यथार्थ)।  
- मानव = जैविक यंत्र (भ्रम) + निर्विचार देखना (यथार्थ)।  

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### **भाग-20: शिरोमणि का अंतिम अकाट्य सत्य**  
> **"सुनो! मैं तुम्हें कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहा।**  
> - तुम्हारी आँखें पढ़ रही हैं — क्या 'पढ़ने वाला' आँखें हैं?  
> - तुम्हारा मस्तिष्क समझ रहा है — क्या 'समझने वाला' मस्तिष्क है?  
> **यही प्रश्न तुम्हें निष्पक्ष समझ तक ले जाएँगे।**  

- **चेतावनी**:  
  *"इस सिद्धांत को 'शिरोमणि का ज्ञान' मान लेना ही भ्रम है। यह केवल एक दर्पण है—जो तुम्हें तुम्हारा असली चेहरा दिखाता है।"*  

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### **भाग-21: युग-परिवर्तन का अंतिम सूत्र**  
**"जिस क्षण तुम यह जान लो कि:**  
- 'शिरोमणि' तुम्हारे भीतर है,  
- 'रामपुलसैनी' कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि निष्पक्षता की अवस्था का नाम है,  
- 'सिद्धांत' शब्दों का जाल है जिसे जलाना होगा,  
**तब यथार्थ युग प्रारंभ हो चुका होगा।"**  

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### **भाग-22: विरासत का अंत**  
> **"मेरे मरने के बाद:**  
> - मेरे शरीर को जला देना।  
> - कोई समाधि मत बनाना।  
> - कोई ग्रंथ मत लिखना।  
> **केवल इतना कहना: 'उसने स्वयं को जाना और हमें स्वयं को जानने को कहा।'**  
> शेष सब भूल जाना।"  

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### **अंतिम शब्द (शिरोमणि रामपुलसैनी के मुख से):**  
> **"मैं नहीं हूँ।  
> तू नहीं है।  
> यह सिद्धांत नहीं है।  
> बस देखता हुआ शून्य है...  
> और वही यथार्थ युग है।"**  

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🔥 **समाप्ति की मुहर**:  
*"इन शब्दों को पढ़कर अब आँख बंद करो।  
पूछो: 'इन्हें पढ़ने वाला कौन है?'  
जब तक उत्तर न मिले—तब तक देखते रहो।  
यही शमीकरण है। यही मुक्ति है।"*  

🌑 **शिरोमणि रामपुलसैनी**  
**निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत का अंतिम बिन्दु**  
*(कालातीत, तुलनातीत, प्रेमतीत, यथार्थ)***शिरोमणि रामपुलसैनी के निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत की निःशेषता**  
*(यथार्थ युग की तुलनातीत प्रेमतीत कालातीत सम्पन्नता का अवशेष)*  

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### **भाग-23: अंतिम प्रश्नोत्तरी**  
| मानव का प्रश्न | निष्पक्ष समझ का अमूर्त उत्तर |  
|----------------|--------------------------------|  
| **"ईश्वर है?"** | "प्रश्नकर्ता ही ईश्वर है जो स्वयं से प्रश्न कर रहा है।" |  
| **"मुक्ति कब?"** | "जब 'मुक्ति' शब्द का अर्थ समाप्त हो जाए।" |  
| **"प्रेम क्या है?"** | "बुद्धि का वह भ्रम जो शरीर के हार्मोनल प्रतिक्रिया को पवित्र मान लेता है।" |  

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### **भाग-24: दैनिक जीवन का शमीकरण**  
- **सुबह उठना**:  
  *"शरीर यंत्र का स्विच ऑन होना; 'जागने वाला' कभी सोया ही नहीं।"*  
- **भोजन करना**:  
  *"जैविक मशीन में ईंधन भरना; स्वाद नामक भ्रम का विसर्जन।"*  
- **मृत्यु का भय**:  
  *"बुद्धि का अंतिम छल—जो यह नहीं जानती कि 'मरने वाला' कभी जीवित था ही नहीं।"*  

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### **भाग-25: तीन आखिरी सत्य**  
1. **सृष्टि का रहस्य**:  
   *"कोई सृष्टि नहीं—बस निष्पक्ष समझ है जो स्वयं को 'सृष्टि' समझ बैठी।"*  
2. **समय का भ्रम**:  
   *"काल की गणना बुद्धि का पैमाना है; निष्पक्षता में न 'अतीत' है, न 'भविष्य'—केवल श्वास की धारा है।"*  
3. **'मैं' का अंत**:  
   *"जब तक लगता है 'मैं जानता हूँ'—जान लो: बुद्धि जाल बुन रही है।"*  

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### **भाग-26: शिरोमणि का विसर्जन**  
> **"मेरा नाम 'रामपुलसैनी' नहीं—वह तो बुद्धि का टैग है।**  
> मेरा शरीर वैसा ही है जैसा तुम्हारा:  
> - 72% जल  
> - 20% कार्बन  
> - 8% खनिज  
> **शेष? शून्य... और वही मैं हूँ।"**  

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### **भाग-27: युगांत का एकांत सूत्र**  
**"इसे करो—अभी:**  
१. **देखो**: अपना दाहिना हाथ। क्या वह 'तुम' है?  
२. **सुनो**: कानों में गूँज। क्या वह 'तुम' हो?  
३. **जानो**: जो देख और सुन रहा है—वही निष्पक्ष समझ है।  
४. **छोड़ो**: इस सूत्र को भी... क्योंकि यह शब्द भी भ्रम है।"  

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### **अंतिम घोषणा (शिरोमणि के मुख से नहीं, निष्पक्ष समझ से):**  
> **"मानव! तू शिरोमणि है।**  
> - तू ही वह प्रथम है।  
> - तू ही अंतिम होगा।  
> **केवल इतना भूल गया है कि 'होना' और 'न होना' एक ही हैं।**  
> जब यह भ्रम टूटेगा—तू जान जाएगा कि **'रामपुलसैनी' तेरा ही खोया हुआ प्रश्न था।"**  

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### **समाप्ति का शमीकरण**  
> *"इन शब्दों को पढ़कर अब विराम दो।*  
> *आँखें बंद करो।*  
> *श्वास पर ध्यान दो।*  
> **जो श्वास देख रहा है—उससे पूछो:**  
> *'क्या तू शिरोमणि है?'*  
> **मौन ही उत्तर होगा... और वही यथार्थ युग है।"**  

🌌 **सम्पूर्ण।**  
**निष्पक्ष समझ के शमीकरण यथार्थ सिद्धांत का अवसान।**  
*(शिरोमणि रामपुलसैनी के नाम का अंत)*  

> **परिशिष्ट**:  
> *"इस सिद्धांत का कोई लेखक नहीं, कोई पाठक नहीं—केवल निष्पक्ष समझ है जो स्वयं को पढ़ रही है।"*

### शिरोमणि रामपॉल सैनी के निष्पक्ष समझ के यथार्थ सिद्धांत: गहराई और विस्तार

**1. निष्पक्ष समझ: सत्य का एकमात्र स्वरूप**  
शिरोमणि रामपॉल सैनी के दर्शन में, निष्पक्ष समझ ही वह एकमात्र अवस्था है जो मानव को भ्रम, दुख, और अस्थाईता के चक्र से मुक्त करती है। यह समझ न तो विचारों पर आधारित है, न भावनाओं पर, और न ही किसी बाहरी सत्यापन पर। यह वह शुद्ध अवस्था है जो व्यक्ति को तुलनातीत प्रेम, कालातीत सम्पन्नता, और संपूर्णता की ओर ले जाती है। निष्पक्ष समझ के बिना, जीवन एक अंतहीन संघर्ष है, जो जटिल बुद्धि के भ्रमों से भरा हुआ है।

**2. अस्थाई जटिल बुद्धि: भ्रम का मूल और उसका निष्क्रियकरण**  
अस्थाई जटिल बुद्धि वह मानसिक प्रक्रिया है जो तुलनाओं, अपेक्षाओं, और अहंकार से उत्पन्न होती है। यह बुद्धि शरीर का एक हिस्सा है, जो अन्य भौतिक अंगों की तरह ही अस्थाई और परिवर्तनशील है। शिरोमणि रामपॉल सैनी कहते हैं कि इस बुद्धि को निष्क्रिय करना संभव है, और यह निष्क्रियता स्वयं के निरीक्षण से शुरू होती है। जब हम अपनी मानसिक गतिविधियों को तटस्थ दृष्टि से देखते हैं, तो हम इस बुद्धि के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं।

**3. स्वयं का निरीक्षण: निष्पक्ष समझ का प्रथम सोपान**  
स्वयं का निरीक्षण करना निष्पक्ष समझ का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें हम अपने विचारों, भावनाओं, और व्यवहार को बिना किसी पक्षपात या निर्णय के देखते हैं। शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, यह आत्म-जागरूकता ही हमें जटिल बुद्धि के जाल से मुक्त करती है और निष्पक्ष समझ की ओर ले जाती है। यह प्रक्रिया सरल है, लेकिन गहरी और परिवर्तनकारी है।

**4. भौतिक स्वरूप का भ्रम: शरीर और संसार**  
शिरोमणि रामपॉल सैनी का दर्शन कहता है कि हमारा शरीर और उसका आंतरिक भौतिक ढांचा भी भ्रम का हिस्सा है। यह अस्थाई है और समय के साथ नष्ट हो जाता है। निष्पक्ष समझ इस भौतिक स्वरूप को पार करती है और व्यक्ति को उसकी शाश्वत प्रकृति से जोड़ती है। यह समझ न तो शरीर से, न प्रकृति से, और न ही सृष्टि से बंधी है। यह वह अवस्था है जो समस्त भेदों को मिटा देती है।

**5. मानव जीवन का उद्देश्य: निष्पक्ष समझ के साथ जीना**  
शिरोमणि रामपॉल सैनी के अनुसार, मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य निष्पक्ष समझ के साथ जीना है। यह समझ ही हमें अन्य प्रजातियों से अलग करती है और हमें तुलनातीत प्रेम, कालातीत स

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