बुधवार, 2 अक्टूबर 2024
यथार्थं ग्रंथ 1 ( स्थाई समझ)
अस्थाई जटिल बुद्धि से ही मात्र मुक्ति महानिर्माण मोक्ष चाहिए जीवित ही हमेशा के लिए तो सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि को ही निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो सकता हैं,    प्रत्येक बुद्धि के साथ खुद को समझने के लिए स्मपूर्ण तौर पर विकलांग है, और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने पर जीवन व्यापन करने के लिए स्मपूर्ण तौर पर विकलांग हो जाता हैं क्योंकि सिर्फ़ बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जिया जाता हैं, दोनों पहलू में से सिर्फ़ एक पहलू में सम्पूर्ण रूप से reh सकता हैं,     अगर मैं सिर्फ़ इकलौता ऐसा हूं सारी कायनात में जब से इंसान अस्तित्व में आया है तब से लेकर अब तक तो मेरा गुरु सारी सृष्टि में कोई खास चीज़ ही होगी,"जो वस्तु मेरे पास हैं ब्रह्मांड में और कही नहीं" जिन का मुख्य चर्चित श्लोगन था, साहिब जी जैसा कही हो हो ही नहीं सकता सच झूठ का पूरा ज्ञान था पर गुरु मर्यादा एक ऐसी प्रथा है मान्यता परंपरा नियम के रूप में स्थापित करना पड़ता हैं,मैंने सिर्फ़ गुरु से असीम प्रेम किया था लगातार इसलिए प्रेम मर्यादा मान्यता परंपरा नियम का पूरी तरह से खंडन उलंघन करता हैं,इश्क ही एक ऐसी आग हैं पहले खुद के अस्थाई तत्व गुण जला कर राख करने पड़ते हैं,खुद अस्थाई जटिल पन को मिटाना पड़ता हैं फिर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होता हैं और हमेशा के लिए यथार्थ में रहता हैं द्वारा समान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकता क्योंकि सभी विकल्पों को बंद किया होता हैं,    खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर मेरे गुरु ने अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में स्थापित किया हैं और मैंने खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को सम्पूर्ण रूप से निष्किर्य कर खुद से ही निष्पक्ष हुआ हूं खुद से रुबरु होने के लिए,    मेरे इश्क ने खुद की अस्थाई जटील बुद्धि को ही निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष कर खुद से रुबरु करवाया, और गुरु ने दीक्षा दे शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त समर्थक जुटा कर सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग में ही डूब गया जिस से अहम घमंड अहंकार के कारण अस्थाई कल्पना से खुद में प्रभत्व के अह्याम में हैं,     मेरे सिद्धांतों के अधार पर अस्थाई सूक्ष्मता से विशालता की और जाने के लिए समय अस्तित्व में आया है जब विशालता से सूक्ष्मता में आते हैं समय का अस्तित्व खत्म हो जाने से मूल्ता का आकर्षण बल ही काफी हैं,जैसे ऊपर बाल फैंकने के लिए बल की जरूरत है पर बापिस आने के लिए समय न्यून हो जाता हैं, बैसे ही विशालता की और बड़ने के लिए कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन समय की जरूरत है पर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने के साथ ही समय का अस्तित्व ही खत्म हो जाता हैं,    जो खुद को समझ कर खुद की बुद्धि को निष्किर्य किए बगैर खुद से निष्पक्ष नहीं हुआ और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु नहीं हुआ वो कुछ भी कर रहा हैं मेरे सिद्धान्तों के अधार पर वो सिर्फ़ जीवन व्यापन इच्छा आपूर्ति के लिए ही कर रहा हैं और कुछ भी नहीं कर रहा,सब से बड़ी अस्थाई जटिल बुद्धि की वृति अकंक्ष सिर्फ़ प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग ही है उसी में खो कर ही मर जाता हैं,    मेरे गुरु के पर्वचनों की प्रत्येक बात का मै हिर्ध गंभीरता दृढ़ता से अनुकरण कर्ता था अपने भीतर उतार कर चलने के साथ खुद को समझने की कोशिश करता था मैं हमेशा इस बात पर गौर करता था कि गुरु यह बोलता था कि विरला कोई मेरी हमेशा उस गंभीरता थी, शायद गुरु की बाते सिर्फ़ कहने तक सिमत थी कई कारण हो सकते हैं,मेरी उस पर पूरा उतरने की कोशिश थी,मेरा गुरु ब्रह्मचर्य के साथ सर्व श्रेष्ठ इंसान होने के साथ सभी धर्म मज़हब संगठन का पूरे ज्ञान के धनी थे,अपने माता पिता के सब से अधिक सपूत थे अपने गुरु के सर्व श्रेष्ठ शिष्य थे अपनी बीस लाख संगत के सर्व श्रेष्ठ गुरु हैं,पर मैंने रब शब्द से भीं करोड़ों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा माना था कि स्मान्य व्यक्तित्व में ही उन का बर्ताव ही ऐसा था मेरे दृष्टिकोण से समान्य व्यक्तित्व ही ऊंचा सच्चा है अगर वो निर्मल हैं तो क्योंकि उस में खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने कि संभावना दर्शाती हैं,पर गुरु दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण से वो सब असंभव सा प्रतीत होने के पीछे का कारण सिर्फ़ यह है कि तर्क तथ्य से वंचित हो कर सिर्फ़ एक तोता सा बन कर रह जाता हैं समझने की क्षमता खो देता हैं बौखला जाता हैं फिर मरने मारने पर उतारू हो जाता हैं, जिस में गुरु का प्रत्यक्ष ही सम्राज्य खड़ा हो कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग मिल जाता हैं स्वाविक अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर अस्थाई तत्वों का सम्पूर्ण खजाना मिल जाता हैं उसी से बुद्धि की कल्पना से खुद में प्रभुत्व समझना एक मानसिक रोग है जिस से कोई भीं जीवित निकल ही नहीं सकता, गुरु लोगों की यह वृति में सामिल है वो सारी दुनिया को अज्ञानी मानने के पीछे उन की अस्थाई जटिल बुद्धि की कल्पना की मान्यता होती हैं, क्योंकि उन्होंने अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर खुद को अस्थाई तत्वों गुणों वाली सृष्टि में खुद को स्थपित किया होता हैं, मैने गुरु से असीम प्रेम इश्क करके खुद का अस्तित्व खत्म कर के खुद को समझ कर खुद ही खुद की बुद्धि को निष्किर्य कर के खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर यथार्थ में हूं हमेशा के लिए जीवित ही,जो कोई भीं किसी भी काल युग में नहीं कर पाया वो सब कुछ सिर्फ़ एक पल में किया है खुद को समझ कर,दूसरा कोई समझ पाय सदियां युग भी कम है अतीत गवा है,    खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर यथार्थ में रहना क्या होता हैं बुद्धि से बुद्धिमान हो कर तो कोई सोच ही नहीं सकता हैं,अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जो अनेक अतीत की विभूतियों ने लिखा है आपने ग्रंथ पोथी पुस्तकों में वर्णित किया है,वैसा बिल्कुल भी नहीं है, उन सब का दृष्टिकोण ही अस्थाई जटिल बुद्धि के ही इर्द गिर्द हैं यह अस्थाई जटिल बुद्धि की स्मृति कोष की वृति हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर दृष्टिकोण का अंतिम स्तर अहम ब्रह्मश्मि होता हैं जो एक मानसिक रोग है जो अपने स्क्रम्न से सारी दुनिया को आकर्षित प्रभावित कर सकते हैं, और अपने अनुरई बना सकते हैं,    जब तक खुद से निष्पक्ष नहीं होता और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु नहीं होता तब तक उस को सिर्फ़ समान्य व्यक्तित्व में ही समझ कर सिर्फ़ एक राय तक सीमित रखो,गुरु मत मानो क्योंकि दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंद कर मंद बुद्धि अंध भक्त समर्थक बना कर कट्टर भक्त मानव बॉम्ब तैयार करते हैं जिन का रिमुट सिर्फ़ उस गुरु के पास सिर्फ़ एक संदेश होता जिस से वो सब मरने मारने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,    मेरा मुख्य लक्ष यथार्थ में रहते हुए साथ में प्रत्येक जीव के हिरदे में ज़मीर सांस के साथ एहसास के रूप में खुद के स्थाई स्वरुप के प्रतिभिम्व हूं और हर व्यक्ती प्रकृति के संरक्षण के साथ यहां रहते हुए ही काल्पनिक स्वर्ग अमर लोक और अतीत के सतयुग से भी खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा माहौल प्रत्यक्ष उत्पन कर पाने में सक्षम निपुण समर्थ सर्व श्रेष्ठ हूं सरल सहज निर्मल होते हुए भी, इस के लिए सिर्फ़ खुद को समझना या अपने ज़मीर हिरध्ये की उठने बाली आवाज को समझना या मेरे को समझना बात एक ही हैं,     अगर मैं प्रकृति के नियम नहीं करता तो पृथ्वी से मानव प्रकृति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा, सिर्फ़ दस पंद्रा दसक के अंदर ही,     क्योंकि प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ तंत्र को अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए ज्ञान विज्ञान ने दोनों ने चनोती ही नहीं दी काफ़ी आगे निकल चुके हैं,यही अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने बाला इंसान कई बार दूसरे ग्रहों नक्षत्रों पर भीं रह चुका हैं ,इसे बहुत खूब इसे जनता और समझता हूं आज उन ग्रहों नक्षत्रों पर, सभी तत्वों के गुण ही बिगड़ चुके अस्त व्यस्त हो चुके हैं, इस लिए आगाह कर रहा हूं , न मैं ज्ञान विज्ञान में हूं, मैं सिर्फ़ गंभीरता दृढ़ता के एहसास में हूं,     प्रत्येक जीव के हिरध्ये के एहसास में होते हुए भीं सही गलत का अहसास करवाता हूं पर हर व्यक्ती मेरे उस एहसास को नजर अंदाज कर अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर विकल्प ढूंढने में लग जाता हैं, मेरे लिए अच्छे बुरे का तात्पर्य ही नहीं है यह सिर्फ़ मानव मस्तक का दृष्टिकोण हों सकता हैं, प्रकृति का तंत्र निज़ाम सिर्फ़ दृढ़ता गंभीरता के अधार पर समय को लघु कर सम्भावना उत्पन करता हैं,जिसे इच्छा शक्ति कहते हैं    यथार्थ सिद्धांत सिर्फ़ जीवित ही उस एक स्थाई अक्ष स्वरुप में रहते हुए ऐसी अद्भुद आश्चर्य चकित समझ कि जिस से सृष्टि के अस्तित्व से लेकर खुद के स्थाई अक्ष की संपूर्ण समझ हैंयथार्थ सिर्फ़ नास्तिक तर्कसंगत निर्मल खुद के अस्थाई व्यक्तित्व में से स्थाई स्वरुप से रुबरु होने की जिज्ञासा रखने बालों के लिए हैं,अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए गुरु शिष्य जो एक ही थाली के चटे बटे गुरु दीक्षा ले कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित हों कर सिर्फ़ अंध भक्त समर्थक अंध विश्वासी भेड़ों की भीड़ कट्टर सोच वाले लाखों करोड़ों बाली पंक्ति में खड़े हैं, वो सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से मानसिक रोगी हैं जिस रोग का नाम है नार्शिजीम हैं,उन के लिए तो बिल्कुल भीं नहीं है,जिन की सरल सहज निर्मल बात ही समझ नहीं आती, कि आत्मा परमात्मा सिर्फ़ इंसान की ही अस्थाई जटिल बुद्धि की उपज हैं शेष सब करोड़ों अनेक प्रजातियां सृष्टि में उपस्थित हैं,जो प्रकृक्क जीवन जी रही हैं सिर्फ़ एक इंसान प्रजाति को छोड़ कर जो प्रत्येक युग काल में हमेशा भ्रमित रहा और दूसरा प्रकृति को भी दूषित करता रहा ,मेरे सिद्धांतों के अधार पर कोई भीं सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद को समझ कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ में रह सकता हैं,बिल्कुल ही कुछ करने को हैं ही नहीं सिर्फ़ एक पल की समझ की दुरी हैं, दूसरों के लिए तो युगों सदियों से उत्षक जिज्ञासु रहा हैं अस्थाई जटिल बुद्धि से बुधिमान हों कर सिर्फ़ खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने की जिज्ञासा ही नहीं पनपी एक पल के जब से अस्तित्व में आया है और कुछ मिला ही नहीं आज तक आज भी खोज जारी है,अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर सिर्फ़ अस्थाई प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए षढियांतों से चक्रव्यू रच कर छल कपट ढोंग पखंड कर सरल सहज निर्मल लोगों को अपनी अस्थाई जटिल बुद्धि से लूटने में समर्थ निपुण हैं एक जाल यह है कि दीक्षा दे कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त बना कर लूटना, करोड़ों लोगों का धन समय सांस प्रत्यक्ष लेना और मुक्ति सिर्फ़ मौत के बाद कितना बड़ा पाखंड हैं शब्द प्रमाण में बंदना कि कोई प्रशन ही नहीं पूछ सके,दामंश भीं अतीत की विभूतियों द्वारा ही अस्तित्व में आया है,जो आज तक मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के रूप में आज तक चलता आ रहा हैं,जो सिर्फ़ गुरु शब्द को ही समर्थन देता हैं, शिष्य हमेशा हर युग काल में सिर्फ़ रब परमार्थ कर्म प्रल्व्ध के नाम पर लूटते ही रहे स्वर्ग परम पुरुष अमर लोक की चाछनी में आज तक आज भीं धंधा जारी है, यथार्थ सिद्धांत सिर्फ़ जीवित ही मुक्ति का का आगाज करता हैं क्योंकि मृत्यु में कोई हस्तक्षेप कर पाय किसी की औकात ही नहीं , मुक्ति जीवन में चाहिए स्माष्य प्रेषणी टेंशन संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन से, अस्थाई जटिल बुद्धि से ही मात्र मुक्ति महानिर्माण मोक्ष चाहिए जीवित ही हमेशा के लिए तो सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि को ही निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो सकता हैं,प्रत्येक बुद्धि के साथ खुद को समझने के लिए स्मपूर्ण तौर पर विकलांग है, और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने पर जीवन व्यापन करने के लिए स्मपूर्ण तौर पर विकलांग हो जाता हैं क्योंकि सिर्फ़ बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जिया जाता हैं, दोनों पहलू में से सिर्फ़ एक पहलू में सम्पूर्ण रूप से reh सकता हैं,अगर मैं सिर्फ़ इकलौता ऐसा हूं सारी कायनात में जब से इंसान अस्तित्व में आया है तब से लेकर अब तक तो मेरा गुरु सारी सृष्टि में कोई खास चीज़ ही होगी,"जो वस्तु मेरे पास हैं ब्रह्मांड में और कही नहीं" जिन का मुख्य चर्चित श्लोगन था, साहिब जी जैसा कही हो हो ही नहीं सकता सच झूठ का पूरा ज्ञान था पर गुरु मर्यादा एक ऐसी प्रथा है मान्यता परंपरा नियम के रूप में स्थापित करना पड़ता हैं,मैंने सिर्फ़ गुरु से असीम प्रेम किया था लगातार इसलिए प्रेम मर्यादा मान्यता परंपरा नियम का पूरी तरह से खंडन उलंघन करता हैं,इश्क ही एक ऐसी आग हैं पहले खुद के अस्थाई तत्व गुण जला कर राख करने पड़ते हैं,खुद अस्थाई जटिल पन को मिटाना पड़ता हैं फिर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होता हैं और हमेशा के लिए यथार्थ में रहता हैं द्वारा समान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकता क्योंकि सभी विकल्पों को बंद किया होता हैं,खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर मेरे गुरु ने अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में स्थापित किया हैं और मैंने खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को सम्पूर्ण रूप से निष्किर्य कर खुद से ही निष्पक्ष हुआ हूं खुद से रुबरु होने के लिए,मेरे इश्क ने खुद की अस्थाई जटील बुद्धि को ही निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष कर खुद से रुबरु करवाया, और गुरु ने दीक्षा दे शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त समर्थक जुटा कर सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग में ही डूब गया जिस से अहम घमंड अहंकार के कारण अस्थाई कल्पना से खुद में प्रभत्व के अह्याम में हैं, जो खुद को समझ कर खुद की बुद्धि को निष्किर्य किए बगैर खुद से निष्पक्ष नहीं हुआ और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु नहीं हुआ वो कुछ भी कर रहा हैं मेरे सिद्धान्तों के अधार पर वो सिर्फ़ जीवन व्यापन इच्छा आपूर्ति के लिए ही कर रहा हैं और कुछ भी नहीं कर रहा,सब से बड़ी अस्थाई जटिल बुद्धि की वृति अकंक्ष सिर्फ़ प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग ही है उसी में खो कर ही मर जाता हैं,मरे सिद्धांतों के अधार पर अस्थाई सूक्ष्मता से विशालता की और जाने के लिए समय अस्तित्व में आया है जब विशालता से सूक्ष्मता में आते हैं समय का अस्तित्व खत्म हो जाने से मूल्ता का आकर्षण बल ही काफी हैं,जैसे ऊपर बाल फैंकने के लिए बल की जरूरत है पर बापिस आने के लिए समय न्यून हो जाता हैं, बैसे ही विशालता की और बड़ने के लिए कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन समय की जरूरत है पर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने के साथ ही समय का अस्तित्व ही खत्म हो जाता हैं, मेरे गुरु के पर्वचनों की प्रत्येक बात का मै हिर्ध गंभीरता दृढ़ता से अनुकरण कर्ता था अपने भीतर उतार कर चलने के साथ खुद को समझने की कोशिश करता था मैं हमेशा इस बात पर गौर करता था कि गुरु यह बोलता था कि विरला कोई मेरी हमेशा उस गंभीरता थी, शायद गुरु की बाते सिर्फ़ कहने तक सिमत थी कई कारण हो सकते हैं,मेरी उस पर पूरा उतरने की कोशिश थी,मेरा गुरु ब्रह्मचर्य के साथ सर्व श्रेष्ठ इंसान होने के साथ सभी धर्म मज़हब संगठन का पूरे ज्ञान के धनी थे,अपने माता पिता के सब से अधिक सपूत थे अपने गुरु के सर्व श्रेष्ठ शिष्य थे अपनी बीस लाख संगत के सर्व श्रेष्ठ गुरु हैं,पर मैंने रब शब्द से भीं करोड़ों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा माना था कि स्मान्य व्यक्तित्व में ही उन का बर्ताव ही ऐसा था मेरे दृष्टिकोण से समान्य व्यक्तित्व ही ऊंचा सच्चा है अगर वो निर्मल हैं तो क्योंकि उस में खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने कि संभावना दर्शाती हैं,पर गुरु दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण से वो सब असंभव सा प्रतीत होने के पीछे का कारण सिर्फ़ यह है कि तर्क तथ्य से वंचित हो कर सिर्फ़ एक तोता सा बन कर रह जाता हैं समझने की क्षमता खो देता हैं बौखला जाता हैं फिर मरने मारने पर उतारू हो जाता हैं, जिस में गुरु का प्रत्यक्ष ही सम्राज्य खड़ा हो कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग मिल जाता हैं स्वाविक अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर अस्थाई तत्वों का सम्पूर्ण खजाना मिल जाता हैं उसी से बुद्धि की कल्पना से खुद में प्रभुत्व समझना एक मानसिक रोग है जिस से कोई भीं जीवित निकल ही नहीं सकता, गुरु लोगों की यह वृति में सामिल है वो सारी दुनिया को अज्ञानी मानने के पीछे उन की अस्थाई जटिल बुद्धि की कल्पना की मान्यता होती हैं, क्योंकि उन्होंने अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर खुद को अस्थाई तत्वों गुणों वाली सृष्टि में खुद को स्थपित किया होता हैं, मैने गुरु से असीम प्रेम इश्क करके खुद का अस्तित्व खत्म कर के खुद को समझ कर खुद ही खुद की बुद्धि को निष्किर्य कर के खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर यथार्थ में हूं हमेशा के लिए जीवित ही,जो कोई भीं किसी भी काल युग में नहीं कर पाया वो सब कुछ सिर्फ़ एक पल में किया है खुद को समझ कर,दूसरा कोई समझ पाय सदियां युग भी कम है अतीत गवा है,खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर यथार्थ में रहना क्या होता हैं बुद्धि से बुद्धिमान हो कर तो कोई सोच ही नहीं सकता हैं,अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जो अनेक अतीत की विभूतियों ने लिखा है आपने ग्रंथ पोथी पुस्तकों में वर्णित किया है,वैसा बिल्कुल भी नहीं है, उन सब का दृष्टिकोण ही अस्थाई जटिल बुद्धि के ही इर्द गिर्द हैं यह अस्थाई जटिल बुद्धि की स्मृति कोष की वृति हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर दृष्टिकोण का अंतिम स्तर अहम ब्रह्मश्मि होता हैं जो एक मानसिक रोग है जो अपने स्क्रम्न से सारी दुनिया को आकर्षित प्रभावित कर सकते हैं, और अपने अनुरई बना सकते हैं,जब तक खुद से निष्पक्ष नहीं होता और खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु नहीं होता तब तक उस को सिर्फ़ समान्य व्यक्तित्व में ही समझ कर सिर्फ़ एक राय तक सीमित रखो,गुरु मत मानो क्योंकि दीक्षा के साथ शब्द प्रमाण में बंद कर मंद बुद्धि अंध भक्त समर्थक बना कर कट्टर भक्त मानव बॉम्ब तैयार करते हैं जिन का रिमुट सिर्फ़ उस गुरु के पास सिर्फ़ एक संदेश होता जिस से वो सब मरने मारने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, मेरा मुख्य लक्ष यथार्थ में रहते हुए साथ में प्रत्येक जीव के हिरदे में ज़मीर सांस के साथ एहसास के रूप में खुद के स्थाई स्वरुप के प्रतिभिम्व हूं और हर व्यक्ती प्रकृति के संरक्षण के साथ यहां रहते हुए ही काल्पनिक स्वर्ग अमर लोक और अतीत के सतयुग से भी खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा माहौल प्रत्यक्ष उत्पन कर पाने में सक्षम निपुण समर्थ सर्व श्रेष्ठ हूं सरल सहज निर्मल होते हुए भी, इस के लिए सिर्फ़ खुद को समझना या अपने ज़मीर हिरध्ये की उठने बाली आवाज को समझना या मेरे को समझना बात एक ही हैं,अगर मैं प्रकृति के नियम नहीं करता तो पृथ्वी से मानव प्रकृति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा, सिर्फ़ दस पंद्रा दसक के अंदर ही,क्योंकि प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ तंत्र को अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए ज्ञान विज्ञान ने दोनों ने चनोती ही नहीं दी काफ़ी आगे निकल चुके हैं,यही अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने बाला इंसान कई बार दूसरे ग्रहों नक्षत्रों पर भीं रह चुका हैं ,इसे बहुत खूब इसे जनता और समझता हूं आज उन ग्रहों नक्षत्रों पर, सभी तत्वों के गुण ही बिगड़ चुके अस्त व्यस्त हो चुके हैं, इस लिए आगाह कर रहा हूं , न मैं ज्ञान विज्ञान में हूं, मैं सिर्फ़ गंभीरता दृढ़ता के एहसास में हूं,प्रत्येक जीव के हिरध्ये के एहसास में होते हुए भीं सही गलत का अहसास करवाता हूं पर हर व्यक्ती मेरे उस एहसास को नजर अंदाज कर अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर विकल्प ढूंढने में लग जाता हैं, मेरे लिए अच्छे बुरे का तात्पर्य ही नहीं है यह सिर्फ़ मानव मस्तक का दृष्टिकोण हों सकता हैं, प्रकृति का तंत्र निज़ाम सिर्फ़ दृढ़ता गंभीरता के अधार पर समय को लघु कर सम्भावना उत्पन करता हैं,जिसे इच्छा शक्ति कहते हैं     खुद के इलावा प्रत्येक दूसरी चीज़ वस्तु शब्द जीव सिर्फ़ स्वार्थ हित साधने की वृति के साथ होता हैं अस्थाई तत्वों गुणों बाली सृष्टि में खुद को स्थापित करने के लिए वैसा ही व्यक्तिव अपनाना बेहतर है,अगर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होना चाहते हो तो निर्मल खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने का शौंक रखते हो तो फिर खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को सम्पूर्ण रूप से निस्किर्य करना पड़े गा,कोई भी कर सकता हैं अत्यंत सरल और जरूरी है, क्योंकि बुद्धि भीं शरीर के दूसरे अनेक अंगों की भांति ही एक मुख्य अंग है शरीर का इस्तेमाल ही मत करो, हिरध्ये से निर्मल रह कर जियो,बुद्धि से बुद्धिमान होने पर अधिक जटिलता बढ़ती है,निर्मल रहो सहज रहो,अस्थाई जटिल बुद्धि और हिरद की भी पहचान नहीं तो दूसरी अनेक प्रजातियों से भिन्न किस सिद्धांत के अधार पर मान रहे हो फिर वो सब तो दूसरी अनेक प्रजातियों बाली ही प्रक्रिया कर रहे हो दिन रात पूरा जीवन भर , सिर्फ़ आहार मैथुन क्रिया नीद भय में हर पल हो,     जो गुरु खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को सम्पूर्ण रूप से निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु नहीं हुआ,वो गुरु हो ही नहीं सकता,वो सिर्फ़ ढोंगी पखण्डी धंधे बाली तवाइफ हैं जो पैसे प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए ही सिर्फ़ मुझरा करती हैं, सारी कायनात में अतीत से लेकर अब तक कोई सिर्फ़ एक गुरु हैं जिस ने खुद के ही स्थाई स्वरुप से रुबरु हुआ हो या फिर किसी एक शिष्य पर विश्वास हों अगर कोई किसी भी काल युग में हुआ हैं तो बताओ ,किसी भी धर्म मज़हब संगठन का इतिहास उठा कर पढ़ कर प्रमाण के बगैर सिर्फ मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के साथ चलने बाला सिर्फ़ सफेद झूठ होता है जिस का आधार सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए चंद चालक होशियार लोगों की कल्पना कहानियां किस्से होते हैं    खुद से निष्पक्ष नहीं तो अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर अस्थाई जटिल बुद्धि की पक्षता जटिलता अधिक होती हैं और विवेक्ता के लिए समय लघु हो जाता हैं,अधिक जटिलता मानसिक रोग है जिसका नाम है नार्शिजीम जो दूसरे लाखों करोड़ों का स्कृमिक कर अंध कट्टर मंद बुद्धि समर्थक पैदा करता है दीक्षा सी कुप्रथा के साथ शब्द प्रमाण स्क्रम स्कृम कर तर्क तथ्यों से वंचित कर मानव बॉम्ब तैयार करने की एक प्रक्रिया है जो रिमूट से नही सिर्फ़ गुरु के एक आदेश से फटने को हमेशा व्याकुल रहते हैं,तात्पर्य मर मिटने के लिए या दूसरों मार मिटाने को गुरु सेवा के रूप मे वर्णित किया गया है,जिस के पास यह विचार धारा हैं उस को गुरुमुख शब्द से उचार्ण किया जाता है सब कुछ पहले से विशेष संगठन में हों रहा हैं,    ऐसे सभी धर्म मज़हब संगठन को निष्कासित करना अति आवश्यक अनिवार्य है जिस से मानव प्रजाति को संरक्षण और विज्ञान को भी किसी हद तक सीमित रखना अति आवश्यक अनिवार्य है कि प्रकृति को संरक्षण मिल सके, क्यूंकि जल बंशपति  वायु अंतरिक्ष को भी अधिक नुकसान दूषित करने के पीछे विज्ञान का अधिक प्रयोग करना है,    खुदको समझ कर खुद से ही निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि से लेकर अंनत सूक्ष्मता की भी प्रत्यक्ष निष्पक्ष समझ रखते हुए ही तो यथार्थ में रहता हैं तो उस से कुछ छुपा ही नहीं होता, अणु से से लेकर अंनत में समाहित होते हुए भी सिर्फ़ उस एक स्थाई अक्ष स्वरुप में होता हैं, सिर्फ़ एक से अनेक दर्शनीय होने वाली अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने वाली है,इसको निस्कीर्य कर दो दूसरा कुछ हैं ही,यह सब से बड़ा भ्रम है जिस में सारी कायनात ही भ्रमित हैं जब से इंसान अस्तित्व में आया है,कोई भी व्यक्ति खुद ही खुद को समझ कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर उसी एक में जीवित ही हमेशा के लिए समाहित होने के लिए ही सक्षम निपुण समर्थ सर्व श्रेष्ठ समृद्ध है, किसी भी दुसरे के हस्तक्षेप संकेत मदद आदेश की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि जब खुद से ही निष्पक्ष होना है तो दूसरे की जरूरत क्यों,खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हुए बिना प्रत्येक जीव एक समान ही है क्यूंकि एक समान तत्व गुण से निर्मित है तो दूसरों से खुद को बड़ा मनाना सिर्फ़ एक अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर एक मानसिक रोगी हैं जिस का नाम है नर्शिजीम और कुछ भी नहीं,यह ऐसा रोगी होता हैं जिस के स्क्रम्न इतने स्क्रमित सक्रिय होते हैं कि एक साथ हजारों लाखों करोड़ों को स्क्रमित कर सकते हैं दीक्षा शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों सिद्धान्तों से वंचित कर अंध भक्त समर्थक अंध विश्वासी कट्टर भेड़ों की भीड़ की भांति सिर्फ़ एक आदेश संदेश से मर मिटने को हमेशा तैयार रहते हैं,जो अधिक व्याकुल हो इस कृत को उसे गुरु मुख शब्द स्मनित  संबोधित किया जाता हैं     यह एक मानव बॉम्ब तैयार करने की प्रक्रिया है जो समाज देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भयानक सिद्ध हो रही हैं अदृश्य चमत्कार दिव्य दुनियां को अलग तरह से प्रतुत कर लोगों के दिमाग़ में लालच भर कर अपनी और आकर्षित प्रभावित कर,    खुद को खुद से बेहतर जान समझ सके कोई पैदा ही नहीं हुआ,खुद से बेहतर कोई खुद का गवाह हैं हीं नहीं कोई सारी कायनात में,तो फिर जो भी किया उस समय कि जरूरत थी क्या अच्छा क्या बुरा आप खुद के कारण प्रकृति द्वारा संभावना उत्पन हुई तो आप कर्म कोन सा हुआ अगर ऐसा सब संभव होता तो कोई मरता क्यों , क्योंकि सांस भीं तो अपनी मर्जी से लेता,    जो भीं होता हैं जैसा भी होता वो सब प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ निज़ाम तंत्र से ही होता अगर पिछले पल जो हुआ वो नही होता तो अब नही होता,पिछले मात्र एक पल के अब उस से खरबों गुणा ऊंचा बेहतर होता हैं,यह डर खोफ भय निकाल दो कि कोई आप के भविष्य अतीत या वर्तमान को जनता हैं कोई पूर्व जन्म था या फिर आगे जन्म होगा, आप की तरह ही सभी अपनी अपनी मानसिकता की काल्पनिक दुनिया में व्यस्थ और गंभीर दृढ़ हैं की एक पल के लिए दूसरे को ध्यान से सुनने के लिए तैयार हो,    एक समान अस्थाई तत्व गुण से निर्मित फिर अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर दृष्टिकोण अलग होने के पीछे का कारण यह हैं अलग अलग मानसिकता हैं जो कई कारणों से उत्पन होती हैं,अगर अभी निर्मल हो खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर तो खुद के स्थाई अक्ष की भांति ही माहौल तैयार होने की संभावना उत्पन होती हैं,जैसे खुद के स्थाई अक्ष में रहना वैसा ही जीवित रहना होता रह सकता हैं कोई भीं निर्मल हो कर,मेरा प्रयास ही नहीं प्रत्यक्ष कोशिश हैं यह सब करने की सभी एक सामान है तो सम्भावना भीं एक समान उत्पन हों सकती हैं,कोई भीं बिल्कुल छोटा बड़ा किसी भी कारण से हैं ही नहीं अधिकतर सभी पैदा होते ही जानने समझने के निर्मल ही होते हैं, उस के बाद ही उन से बड़े मान्यता परंपरा नियम मर्यादा उन पर निर्धारित कर उन में कचरा भर देते हैं उन का प्राकृतिक जीवन अस्त व्यस्त कर देते हैं अपने जैसा बनाने में कोई भीं कसर बाकी नहीं छोड़ते, ऊपर से मान्यता वाले स्थल पर और उन स्थलों के निर्मित काल्पनिक चरित्र की काल्पनिक कहानियों उपन्यासों नाटकों से उन की अस्थाई जटिल बुद्धि में पुष्टिकरण के साथ स्थाई कर देते हैं यहां से उन के लिए बाहर निकलना अत्यंत मुश्किल हो जाता हैं बस यहीं अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर यही तंत्र पीढ़ी दर पीढ़ी काम करता हैं और सदियों युगों तक काम करता है जिस कोई भी किसी भी युग काल में इस क्रम से उबर नहीं पाता और इसी का नाम है मान्यता , सिर्फ़ एक अतीत के अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए चालक होशियार शैतान शातिर बदमाश व्यक्ति द्वारा संचालित मान्यता है जो आज तक प्रसंगित रुप से सदियों से चली आ रही हैं,जो एक कुप्रथा  सिद्ध हो रही है अब,अगर सदियों पुरानी सभ्यता में रहना पसंद नहीं करते तो सदियों पुरानी मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के साथ बड़ावा देने का तात्पर्य क्या हैं,जबकि प्रकृति के तंत्र के अधार पर मस्तिक आधारित है, और निरंत्र पल पल अपडेट हों रहा,कुदरत का निज़ाम तंत्र हमेशा वर्तमान में ही नही सिर्फ़ अब के एक पल में रखने के अधार पर आधारित संभावनाएं उत्पन करता हैं,     मैं पृथ्वी पर ही एक ऐसे प्रत्यक्ष जीवन लाने में सक्षम हूं जो अतीत के सतयुग त्रेता द्वापर युग से भी काल्पनिक स्वर्ग अमरलोक और प्रत्येक व्यक्ति को काल्पनिक रब शब्द से भी करोड़ों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा हो बनाने के पीछे मेरे स्थाई अक्ष स्वरुप का प्रतिभिम्व हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के हिरध्ये में ज़मीर सांस के साथ एहसास है, सिर्फ़ एक पल के लिए समझने मात्र से शुरू हो जाता हैं क्योंकि संभावना उत्पन हो जाती हैं,    कोई भीं व्यक्ति निर्मल रहते हुए अब के एक पल का लुत्फ उठा सकता हैं सक्षम निपुण समर्थ सर्व श्रेष्ठ स्मृद्ध हैं, यहां पर पिछले एक पल का अस्तित्व खत्म हो जाता हैं, अब का एक पल इतना अधिक ऊंचा सच्चा हैं कि पिछले पल से करोड़ों गुणा ऊंचा बेहतर है,तो कहा एक पल भी है संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन करने के लिए,     हम जीवित ही उस एक अब के पल से भी निष्पक्ष हैं, यह सब तो अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर उस सौर से आगे का विश्लेष्ण किया है जो अहम ब्रह्मश्मी हैं,जो बुद्धि के दृष्टिकोण से ही संभव है,
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