बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

यथार्थ ग्रंथ 2 (स्थाई समझ)

 यथार्थ सिद्धांत सिर्फ़ जीवित ही मुक्ति का का आगाज करता हैं क्योंकि मृत्यु में कोई हस्तक्षेप कर पाय किसी की औकात ही नहीं , मुक्ति जीवन में चाहिए स्माष्य प्रेषणी टेंशन संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन से,जिन की सरल सहज निर्मल बात ही समझ नहीं आती, कि आत्मा परमात्मा सिर्फ़ इंसान की ही अस्थाई जटिल बुद्धि की उपज हैं शेष सब करोड़ों अनेक प्रजातियां सृष्टि में उपस्थित हैं,जो प्रकृक्क जीवन जी रही हैं सिर्फ़ एक इंसान प्रजाति को छोड़ कर जो प्रत्येक युग काल में हमेशा भ्रमित रहा और दूसरा प्रकृति को भी दूषित करता रहा , अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए गुरु शिष्य जो एक ही थाली के चटे बटे गुरु दीक्षा ले कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित हों कर सिर्फ़ अंध भक्त समर्थक अंध विश्वासी भेड़ों की भीड़ कट्टर सोच वाले लाखों करोड़ों बाली पंक्ति में खड़े हैं, वो सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से मानसिक रोगी हैं जिस रोग का नाम है नार्शिजीम हैं,उन के लिए तो बिल्कुल भीं नहीं है, यथार्थ सिर्फ़ नास्तिक तर्कसंगत निर्मल खुद के अस्थाई व्यक्तित्व में से स्थाई स्वरुप से रुबरु होने की जिज्ञासा रखने बालों के लिए हैं, यथार्थ सिद्धांत सिर्फ़ जीवित ही उस एक स्थाई अक्ष स्वरुप में रहते हुए ऐसी अद्भुद आश्चर्य चकित समझ कि जिस से सृष्टि के अस्तित्व से लेकर खुद के स्थाई अक्ष की संपूर्ण समझ हैं  मेरे सिद्धांतों के अधार पर कोई भीं सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद को समझ कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ में रह सकता हैं,बिल्कुल ही कुछ करने को हैं ही नहीं सिर्फ़ एक पल की समझ की दुरी हैं, दूसरों के लिए तो युगों सदियों से उत्षक जिज्ञासु रहा हैं अस्थाई जटिल बुद्धि से बुधिमान हों कर सिर्फ़ खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु होने की जिज्ञासा ही नहीं पनपी एक पल के जब से अस्तित्व में आया है और कुछ मिला ही नहीं आज तक आज भी खोज जारी है,अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर सिर्फ़ अस्थाई प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए षढियांतों से चक्रव्यू रच कर छल कपट ढोंग पखंड कर सरल सहज निर्मल लोगों को अपनी अस्थाई जटिल बुद्धि से लूटने में समर्थ निपुण हैं एक जाल यह है कि दीक्षा दे कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त बना कर लूटना, करोड़ों लोगों का धन समय सांस प्रत्यक्ष लेना और मुक्ति सिर्फ़ मौत के बाद कितना बड़ा पाखंड हैं शब्द प्रमाण में बंदना कि कोई प्रशन ही नहीं पूछ सके,दामंश भीं अतीत की विभूतियों द्वारा ही अस्तित्व में आया है,जो आज तक मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के रूप में आज तक चलता आ रहा हैं,जो सिर्फ़ गुरु शब्द को ही समर्थन देता हैं, शिष्य हमेशा हर युग काल में सिर्फ़ रब परमार्थ कर्म प्रल्व्ध के नाम पर लूटते ही रहे स्वर्ग परम पुरुष अमर लोक की चाछनी में आज तक आज भीं धंधा जारी है, अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में सब कुछ अंनत सूक्ष्म भीं तो प्रत्यक्ष रूप से विराजमान हैं तो फिर अप्रत्यक्ष रेहश्या गुप्त दिव्य अलौकिक अध्यात्मक का स्थान कहा हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए चलाक होशियार शैतान शातिर बदमाश षढियंत्रों चक्रव्यू छल कपट ढोंग पखंड कर सरल सहज निर्मल लोगों को श्रद्धा आस्था प्रेम विश्वास के इमोंसल कर रब कर्म गुरुशब्द कटने पुण्य पाप का डर खोफ भय डाल कर सिर्फ़ अपना हित साधने जैसे खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के शिकारी चंद ढोंगी गुरु जो मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के साथ दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर सरल सहज निर्मल लोगों को अंध भक्त समर्थक तैयार करने की सिर्फ़ एक प्रक्रिया है, आज तक कोई भी गुरु बाबा आस्तित्व में ही नहीं आया जब से इंसान अस्तित्व में हैं जो खुद से ही निष्पक्ष हुआ हो,जो अस्थाई शातिर शैतान बदमाश होशियार जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कैसे किसी सिद्धांत से निष्पक्ष हो सकता हैं,अगर निष्पक्ष नहीं तो हर पल बुद्धि की पक्षता में ही मौजूद होने पर किस सिद्धांत से उस पर यकीन कर सकता हैं उस का तो दृष्टिकोण ही प्रथम चरण में स्बर्थ हित साधने बाला हैं सर्व श्रेष्ठ इंसान इंसानियत भूल कर हैवानियत की और अग्रशिब हो रहा हैं तो प्रकृति सिर्फ़ एक मिनट के निधारित अपने नियम का उलंघन कर दे तो अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि अस्त व्यस्त हो जाय तो कुछ भी नही बचे गा सारी कायनात में, इंसान प्रजाति खुद का तो मानसिक संतुलन खोने के कारण बहुत सी अफदाओं का सामना करना पड़ सकता हैं, क्यूंकि प्रकृति के तंत्र निजाम में हद से ज्यादा दखल कर चुका हैं तो अपना और धरती अस्तित्व खत्म करने की और बहुत ही आगे बड़ चुका हैं,जल जंगल वायु अंतरिक्ष में बहुत ही अधिक दूषित कर चुका हैं जिस से पर्यवर्ण अस्त व्यस्त हो गया है उस के परिणाम सामने आ रहे हैं, धर्म मज़हब संगठन मानवता को और विज्ञान प्रकृति को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा चुके हैं और लगातर पहुंचा रहे हैं,लगता हैं बहुत जल्दी मानवता और धरती का अस्तित्व खत्म हो जय गा,  प्रकृति को कोई भी फर्क नहीं पड़ता अंनत विशाल भौतिक सृष्टि हैं अगर जिस ब्रह्मांड भी न रहे ,अंनत ब्रह्मांड हैं उन में से एक ब्रह्मांड जिस में खरबों गैलेक्सी है एक मिल्की वे ग्लैक्सी के छोटे से ग्रह के छोटे से सौर मंडल के सब से छोटे से उपग्रह छोटी सी पृथ्वी के हम भी दूसरी अनेक प्रजातियों में से हम इंसान भी एक हिस्सा ही है कुछ भी अनेक प्रजातियों से अलग नहीं है,किस सिद्धांत तर्क तथ्यों के अधार पर खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कल्पना के शिकार हुए हैं,अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के रचैता बनने की पदवी मानसिकता ले रखी हैं,प्रकृति के तंत्र के अधार पर हम अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि का हिस्सा हैं आसानी से समझ सकते हैं निर्मल हों कर अगर अस्थाई जटिल बुद्धि को निस्किर्य कर के खुद से निष्पक्ष हो कर, खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर, सारी कायनात में स्थाई कुछ भीं नहीं है फिर क्यों कुछ होने के शिकार हुए हैं, और कल्पना के शिकार हुए हैं जिस में उलझ कर अपने अनमोल सांस समय नष्ट कर देते हैं और सत्य से विमुख हो कर असत्य को ही सत्य मान रहे हो, सत्य अस्त्य कुछ हैं ही नहीं, सिफ़ इंसान के मस्तक का भ्रम है और कुछ भी नहीं है अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर सिर्फ़ अस्थाई तत्त्व गुण से ही आकर्षित प्रभावित होंगे खुद को इन अस्थाई तौर पर स्थापित करने का कारण यह है कि अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि की निर्मति भी अस्थाई जटिल तत्त्व गुणों से ही हैं,जटिलता भीं तत्व हैं जो बहम भ्रम का एक मात्र कारण है जिस से कल्पना में खो जाते हैं संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन में हर पल खोए रहते हैं,  समस्त इंसान प्रजाति इंसानियत को भूल कर दूसरी अनेक प्रजातियों से भी वत्र हो गई है,दूसरी अनेक प्रजातियां प्रकृति के तंत्र निज़ाम का स्वागत कर जीवन व्यापन तक ही सीमित है मस्त है, सिर्फ़ एक इंसान प्रजाति ही अस्त व्यस्त हैं जब से अस्तित्व में हैं अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि से हमेशा जो प्रत्यक्ष हैं असंतुष्ट ही रहा हैं,कुछ और काल्पनिक कहानियों उपन्यासों नाटकों के अधार पर आधारित कुछ ढूंढने की होड़ में ही रहा हैं अतीत से लेकर अब तक पर वो सब मिला ही नहीं आज भीं खोज जारी है,प्रत्यक्ष सृष्टि में अप्रत्यक्ष क्या हों सकता हैं अगर होता तो आज तक मिलता , [प्रकृति का तंत्र हैं जो समक्ष हैं उस का ही हिध्ये से स्वागत कर संतुष्ट मस्त रहो वर्तमान का लुत्फ अप्रत्यक्ष के लिए खोना मानसिक संतुलन खोना है और एक रोगी बन कर रहना है जिसे नर्शिजीम रोग की संज्ञा से मैं वर्णित करता हुं अतीत की विभूतियों ने भीं यहीं सब किया उसी को मान्यता परंपरा नियम मर्यादा के साथ लागू किया था जो आज भीं गुरु शिष्य की परंपरा के रूप में चर्चित है जिस से गुरु दीक्षा दे कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त कट्टर समर्थक तैयार कर सिर्फ़ अपने हित साधने के लिए बंधुआ मजदूर बना कर पूरा जीवन इस्तेमाल करते हैं मुक्ति परम निर्माण का लालच देकर और कर्म प्रल्व्ध रब गुरु के शब्द कटने का डर खोफ भय डाल कर,जो एक कुप्रथा सिद्ध हो रही है,

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