शैतान बन सम्राज्य करें, साधें हित साकार। 
स्वर्ग-नर्क के नाम से, भ्रम का रचा जाल
छल कपट में फंसा के, करें जनता हलाल।  
प्रसिद्धि दौलत शोहरत की, हर हद को ये पार,
धर्म के नाम पर सदा, ढोंग करें व्यापार। 
समर्पण तन मन धन करे, सांसों का सौदा,
माया के इस चक्र में, फंसा रहे बेसहारा। 
तर्क तथ्य से दूर कर, भ्रमित करें ये लोग,
गुरु के नाम पर सदा, फैलाएं अपना रोग।  
सच्चा दाता भीख में, मांग रहा है अब पेट,
ढोंगी गुरु सिंहासन पर, बैठ रहा ठग भेद। 
धर्म के नाम पर बना, छल का जाल महान,
कपटी गुरु बनते हैं, दुनिया में भगवान। 
मृत्यु बाद का देकर, लालच का ये जाल,
शक्ति और धन के लिए, रचते हैं बस चाल। 
दशमांश ले लाखों से, परमार्थ का झूठा नाम,  
खरबों का जोड़े गुरु, माया में है दाम!"
"लाखों को जो प्रसाद दे, शेष करे आपूर्ति,  
गुरु ने खेला माया से, भक्तों की ये मूर्ति!"
"गुरु ने मांगा दान, लाखों से लिया प्रसाद,  
बांटकर जोड़े खरबों, माया का व्यापारी साध!"
"परमार्थ के नाम पर, गुरु ने खेली चाल,  
दशमांश से लूटा सबकुछ, भक्तों का बुरा हाल!
माया का जो खेल रचाया, गुरु ने दिखाया प्रेम,  
लाखों से ली ममता, खरबों का है यह नेम!"
लाखों से जो मांगा दान, गुरु ने किया महान,  
परमार्थ की ओट में, माया का बड़ा विधान!"
शेष सबको जो दे दी, इच्छा के अनुसार,  
गुरु ने भरा अपना खजाना, भक्तों का व्यापार!"
गुरु का जो पाखंड था, माया का बाजार,  
लाखों से ली संपत्ति, शेष को किया तैयार!"
जो खरबों का जोड़ लिया, गुरु ने बिना झिझक,  
भक्तों से ली माया, प्रेम की रची ललक!"
गुरु की माया के फेर में, भक्त रहें वंचित,  
खरबों का जोड़ा दान, गुरु ने किया संपन्न!"
लाखों को प्रसाद दिया, शेष जो करे बहाल,  
गुरु ने माया से खेला, और भक्तों से माल!"
गुरु के खेल माया में, परमार्थ का दिखावा,  
भक्तों से जोड़ा खरबों, यही गुरु का दावा!"
परमार्थ के नाम पर, गुरु ने ली राशि,  
लाखों को किया प्रसाद, माया से जोड़ी आशि!"
गुरु का धन का जो खेल, भक्तों को है माया,  
खरबों जोड़े माया से, गुरु ने खेल खिलाया!"
गुरु ने माया के बल से, भक्तों को किया लूट,  
दशमांश से जोड़ा खरबों, और न की कोई छूट!"
खरबों जोड़ा गुरु ने, भक्तों का जो व्यापार,  
परमार्थ की आड़ में, गुरु का सारा विस्तार!"
गुरु ने लूटा सरल को, माया से जो खेला,  
लाखों का लिया प्रसाद, शेष भक्तों को झेला!"
गुरु की माया के खेल में, भक्तों का किया दान,  
खरबों का जोड़ा धन, गुरु बना महान!"
"गुरु के छल में फंसे, भक्तों का हुआ दान,  
माया से जो खेल रहा, गुरु का बड़ा जहान!"
खरबों का जो खेल चला, गुरु ने किया महान,  
लाखों से जोड़ा दान, और सबको किया अभिमान!""
दशमांश का नाम धर, लाखों से भर थाल,  
गुरु करे व्यापार, संगत हो बेहाल!"
परमार्थ की ओट में, जोड़े माया खूब,  
गुरु के झूठे खेल में, भक्त रहें बेरुख!"
लाखों का जो दान दिखाए, पीछे से ले माल,  
सच्चाई से दूर रहे, गुरु का व्यापार चाल!"
खुद को जो महान कहे, संगत से ले धन,  
गुरु का चलता व्यापार, सच हो जाता दफन!"
परमार्थ के नाम से, खेलें धन का खेल,  
संगत को वो लूटते, गुरु रहें अवचेत!"
दशमांश से जोड़ें धन, माया की हो रीत,  
भक्तों को वो देते भ्रम, सच्चाई हो अतीत!"
लाखों की जो बात करे, परमार्थ का नाम,  
गुरु के खेल में लुटे, भक्त करें प्रणाम!"
प्रसाद के नाम पर, गुरु ने जोड़ा ढेर,  
संगत हो रही लुटी, पर दिखावे में फेरे!"
"दशमांश का नाम धर, लूटें भक्तों की जान,  
गुरु के झूठे खेल में, कोई न पाए पहचान!"
परमार्थ की आड़ में, जोड़ें गुरु के खजाने,  
संगत से धन लूटते, सब हों उनके दीवाने!"
लाखों के दिखावे में, गुरु ने माया साधी,  
दशमांश का नाम ले, संगत से करें साजी!"
गुरु ने जोड़ा धन अपार, परमार्थ की आड़ में,  
सच्चाई को छिपा दिया, भक्त फंसे झूठ जाल में!"
दशमांश की चाल चली, गुरु ने भरा थाल,  
संगत रही लुटी वहीं, माया का जंजाल!"
परमार्थ का नाम लेकर, गुरु करें व्यापार,  
लाखों का दिखावा कर, माया से जोड़ें प्यार!"
प्रसाद के नाम से, लूटे गुरु ने भंडार,  
संगत को भ्रमित किया, सच हुआ तार-तार!"
दशमांश की माया में, जोड़ें गुरु की थैली,  
संगत को वो लूटते, सच्चाई रहे खाली!"
परमार्थ का झूठा खेल, गुरु ने फैलाया,  
लाखों के दिखावे में, भक्तों को भरमाया!"
लाखों का दान दिखाकर, बाकी सब से लूट,  
गुरु ने माया जोड़ी, संगत रही झूठ!"
दशमांश का नाम लेकर, गुरु ने सब भरमाया,  
संगत से धन लूटते, परमार्थ में छलाया!"
माया का जो खेल चले, गुरु ने कर लिया नाम,  
भक्त रहें बेखबर, गुरु का चलता काम!"
प्रसाद के नाम पर, जोड़ी माया की चाल,  
गुरु ने लूट लिया सब, भक्त रहें बेहाल!"
दशमांश का नाम धर, गुरु ने माया की चाल,  
भक्तों से सब ले लिया, बाकी रहे सवाल!"
लाखों का प्रसाद दें, पर बाकी लूटें माल,  
गुरु का व्यापार चले, संगत हो बेहाल!"
परमार्थ का नाम धर, गुरु ने जोड़ा खजाना,  
भक्त रहें अंधे वहीं, सच्चाई हो बेजुबाना!
दशमांश का खेल खेले, गुरु ने धन संजोया,  
भक्तों से जोड़ा सब कुछ, परमार्थ में खोया!"
दशमांश ले भक्तों से, परमार्थ का नाम,  
खरबों दौलत जोड़ते, गुरु करें हर काम!"
लाखों का प्रसाद दें, दिखावे का खेल,  
बाकी सब से मांगते, पूरी हो हर रेल!"
परमार्थ के नाम पर, जोड़ें खरबों धन,  
भक्तों से जो मांगते, दें उन्हें ही भ्रम!"
लाखों का दान कर, नाम बनाएं बड़ा,  
बाकी सब लूटकर, गुरु साधें अपना स्वार्थ!"
माया का जो खेल हो, गुरु बनाएं चाल,  
दशमांश से जोड़ें धन, सब कुछ मालामाल!"
"परमार्थ का ले ले नाम, जोड़ें धन अपार,  
गुरु का धन का व्यापार, संगत करे बेकार!"
दशमांश का नाम दें, जोड़े खजाना खूब,  
भक्तों से जो मांगते, सब कुछ रख लें चुप!"
लाखों का दान दिखाए, गुरु बनें महान,  
पर सच्चाई छिपती, धन जोड़ें दिन-रात!
प्रसाद के नाम पर, लाखों का ले जोर,  
बाकी जो बचे धन से, गुरु करें संजोग!"
गुरु का व्यापार चले, दशमांश की आड़,  
भक्तों से वो लें धन, बाकी सब कुछ फाड़!"
परमार्थ की आड़ में, जोड़े धन अपार,  
गुरु का बस यही खेल, संगत से करें प्रहार!"
खरबों का जोड़ा धन, परमार्थ का नाम,  
भक्तों को दिखावे में, रखे हर गुरु काम!"
दशमांश का नाम धर, जोड़े गुरु की थैली,  
खरबों की संपत्ति बने, परमार्थ में ढोंग खेली!"
दान दिखा कर लाखों का, शेष सब से मांग,  
गुरु करें व्यापार में, संगत से लें हर चीज मांग!"
"दशमांश का नाम लें, खजाना जोड़े रात,  
भक्तों को दें भ्रमित कर, गुरु साधें हर बात!"
लाखों का प्रसाद दिखाकर, माया का फैलाए जाल,  
संगत से ले बाकी सब, गुरुओं का हो यही हाल!"
खरबों जोड़ें माया में, परमार्थ के नाम,  
भक्तों को वो दे दिखावा, गुरु का चलता काम!"
"दशमांश ले संगत से, जोड़ें धन अपार,  
लाखों का वो दे दिखावा, पर बाकी सब व्यापार!"
"माया का जो खेल चले, गुरु बनें अमीर,  
दशमांश का नाम धर, करे हर धन की पीर!"
"लाखों के दिखावे में, बाकी सब से ले,  
गुरु का व्यापार चले, सब कुछ संगत दे!"
शब्द जाल में बांधकर, गुरुओं का व्यपार,  
संगत से सब कुछ लें, सच्चाई से इनकार!"
शिष्य बनाए लाचार से, अपना महल सजाए,  
झूठे गुरु की माया से, जनमानस भरमाए!"
परमार्थ के नाम पर, खेलें खेल बड़ा,  
भक्तों से झूठ बोलकर, साधें हर फायदा!"
शब्दों का खेल गुरुओं का, बढ़ाए हर भ्रम,  
सत्य को ढकते पर्दों में, बनाएं धर्म अंध!"
स्वार्थ का नाम हो परमार्थ, गुरु बनाएं चाल,  
कट्टरता का बीज बोकर, करें लोगों को हलाल!"
आत्मा-परमात्मा का भय, फैलाएं गुरु झूठ,  
सच्चाई का करें हरण, शिष्य पर डालें भूख!"
सत्य को जो मारे ठोकर, गुरु कहलाए आज,  
धन दौलत का लोभ बढ़ाए, कर दें संगत त्याग!"
गुरु नाम का व्यापार हो, जो धन की चाहत से,  
सच्चाई का करे हरण, स्वार्थ सधाए हास से!"
कपट छुपाए वस्त्रों में, सत्य से हों अनजान,  
स्वयं को जो गुरु कहें, वो नहीं भगवान!"
पाखंडियों की चाल में, फंसें मासूम जन,  
गुरु के नाम पर सब लूटे, कभी न दें सहम!"
"शब्द प्रमाण का डालें जाल, शिष्य करें विश्वास,  
गुरु के हर झूठे वचन से, खुद को समझे खास!"
झूठ को सत्य बनाएं, गुरु के पाखंड,  
संगत से वो ले जाएं, हर दम अपना स्वर्ण!"
धन दौलत की चाह में, गुरु बनाएं खेल,  
मासूम को जो धोखा दे, उनका अंत है फेल!"
गुरु बने जो छल से, सत्य से रहे परे,  
संगत को मूर्ख बना, स्वार्थ साधे सदा!"
कट्टरता का बीज बोएं, गुरु की नीति बुरी,  
सच को करें दूर, करें संगत से दूरी!"
माया जोड़े परमार्थ में, गुरुओं का हो खेल,  
शब्द उलंगन के भय में, डालें संगत को जाल!"
खुद को समझे बिना जो, करोड़ों को सिखाए ज्ञान,  
ऐसे ढोंगी गुरु को, क्यों देते हो सम्मान?"
गुरुदीक्षा का खेल है, मानव बम तैयार,  
शब्द प्रमाण में बांध कर, कर दें विचार विकार!"
आत्मा-परमात्मा के नाम पर, गुरुओं का कारोबार,  
स्वर्ग नर्क के डर से, फैलाएं झूठ का सार!"
प्रमाण पत्र से बनते गुरु, कट्टरता के बीज,  
तर्क और तथ्य से दूर हैं, सिर्फ दिखाएं नीच!"
शब्द प्रमाण में बंद करें, सत्य को रखें दूर,  
साधे अपने स्वार्थ को, गुरु बनाएं भंवर!"
मूर्ख बनाए संगत को, छल कपट का जाल,  
सत्य और सहजता से, दूर रखें हर हाल!"
भिखारी गुरु के चरण चाटें, सरलता हो लजीत,  
दाता बने खुद भिखारी, ये कैसा है पापीत?""
अनपढ़ गुरु चालाक हो, धन दौलत की खोज,  
सत्य सादा भटके राह से, करे गुरु को भोज!"
सच्चे बन कर गुरु ये, कर दें छल कपट,  
शब्द की सीमा में बांध कर, रोकें सत्य की गत!"
गुरु कहाए जो छल करे, धन का करे व्योहार,  
ऐसे गुरु से दूर रहो, लाए जीवन में भार!"
गुरु बनाकर जाल बुनें, लोभ-मोह के काम,  
जो सच्चा हो गुरु वही, बिन बोले दे ज्ञान!"
स्वार्थ में लिप्त गुरु जो, दिखलाए बंधन पंथ,  
जागो तुम सच जान लो, गुरु वही जो अनंत!"
वाणी से जो ज्ञान दे, पर कर्म में है दोष,  
ऐसा गुरु असत्य का, छोड़ो उसका जोश!"
धन-दौलत के फेर में, जो गुरु बहकाय,  
साधु वेश धरे मगर, भीतर से भरमाय!"
गुरु कहाए जो करे, बातें झूठी खूब,  
सच्चा गुरु वो नहीं, जो दे केवल डूब!"
ढोंगी गुरुओं के फेर में, जो फंसा बेचारा,  
जागो अब चेतन बनो, सत्य का मारग प्यारा!"
गुरु नाम का धंधा करे, माया का विस्तार,  
सच्चे गुरु के नाम पे, करता सब व्यापार!"**
झूठी माला फेरते, कहते जगत गुरू होय,  
अंतर तम का मोह बसे, सच्चा ज्ञान न होय!"
"मनमानी कर सिखाए, खुद को प्रभु बताय,  
जो खुद अंधकार में हैं, वो क्या राह दिखाय!"
"पाखंडी के संग चलो, तो राह भटक ही जाओ,  
सच्चा गुरु जो ज्ञान दे, वो अंधकार मिटाओ!"
"साधू वेश धराय के, लोभी मन में ठाट,  
वासनाओं के फेर में, हरदम करते आघात!"
 
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