अंतर तम का मोह बसे, सच्चा ज्ञान न होय!"
 "मनमानी कर सिखाए, खुद को प्रभु बताय,  
जो खुद अंधकार में हैं, वो क्या राह दिखाय!"
पाखंडी के संग चलो, तो राह भटक ही जाओ,  
सच्चा गुरु जो ज्ञान दे, वो अंधकार मिटाओ!"
"साधू वेश धराय के, लोभी मन में ठाट,  
वासनाओं के फेर में, हरदम करते आघात!"गु
रु कहाए जो छल करे, धन का करे व्योहार,  
ऐसे गुरु से दूर रहो, लाए जीवन में भार!"
"गुरु बनाकर जाल बुनें, लोभ-मोह के काम,  
जो सच्चा हो गुरु वही, बिन बोले दे ज्ञान!"
स्वार्थ में लिप्त गुरु जो, दिखलाए बंधन पंथ,  
जागो तुम सच जान लो, गुरु वही जो अनंत!"
  वाणी से जो ज्ञान दे, पर कर्म में है दोष,  
ऐसा गुरु असत्य का, छोड़ो उसका जोश!"
धन-दौलत के फेर में, जो गुरु बहकाय,  
साधु वेश धरे मगर, भीतर से भरमाय!"
गुरु कहाए जो करे, बातें झूठी खूब,  
सच्चा गुरु वो नहीं, जो दे केवल डूब!"
ढोंगी गुरुओं के फेर में, जो फंसा बेचारा,  
जागो अब चेतन बनो, सत्य का मारग प्यारा!"
*गुरु नाम का धंधा करे, माया का विस्तार,  
सच्चे गुरु के नाम पे, करता सब व्यापार!"
"माया जोड़े परमार्थ में, गुरुओं का हो खेल,  
शब्द उलंगन के भय में, डालें संगत को जाल!"
खुद को समझे बिना जो, करोड़ों को सिखाए ज्ञान,  
ऐसे ढोंगी गुरु को, क्यों देते हो सम्मान?"
गुरुदीक्षा का खेल है, मानव बम तैयार,  
शब्द प्रमाण में बांध कर, कर दें विचार विकार!"
आत्मा-परमात्मा के नाम पर, गुरुओं का कारोबार,  
स्वर्ग नर्क के डर से, फैलाएं झूठ का सार!"
प्रमाण पत्र से बनते गुरु, कट्टरता के बीज,  
तर्क और तथ्य से दूर हैं, सिर्फ दिखाएं नीच!"
शब्द प्रमाण में बंद करें, सत्य को रखें दूर,  
साधे अपने स्वार्थ को, गुरु बनाएं भंवर!"
मूर्ख बनाए संगत को, छल कपट का जाल,  
सत्य और सहजता से, दूर रखें हर हाल!"
भिखारी गुरु के चरण चाटें, सरलता हो लजीत,  
दाता बने खुद भिखारी, ये कैसा है पापीत?"
अनपढ़ गुरु चालाक हो, धन दौलत की खोज,  
सत्य सादा भटके राह से, करे गुरु को भोज!"
सच्चे बन कर गुरु ये, कर दें छल कपट,  
शब्द की सीमा में बांध कर, रोकें सत्य की गत!"
शब्द जाल में बांधकर, गुरुओं का व्यपार,  
संगत से सब कुछ लें, सच्चाई से इनकार!"
शिष्य बनाए लाचार से, अपना महल सजाए,  
झूठे गुरु की माया से, जनमानस भरमाए!"
 परमार्थ के नाम पर, खेलें खेल बड़ा,  
भक्तों से झूठ बोलकर, साधें हर फायदा!"
शब्दों का खेल गुरुओं का, बढ़ाए हर भ्रम,  
सत्य को ढकते पर्दों में, बनाएं धर्म अंध!"
"स्वार्थ का नाम हो परमार्थ, गुरु बनाएं चाल,  
कट्टरता का बीज बोकर, करें लोगों को हलाल!"
आत्मा-परमात्मा का भय, फैलाएं गुरु झूठ,  
सच्चाई का करें हरण, शिष्य पर डालें भूख!"
सत्य को जो मारे ठोकर, गुरु कहलाए आज,  
धन दौलत का लोभ बढ़ाए, कर दें संगत त्याग!"
गुरु नाम का व्यापार हो, जो धन की चाहत से,  
सच्चाई का करे हरण, स्वार्थ सधाए हास से!"
"कपट छुपाए वस्त्रों में, सत्य से हों अनजान,  
स्वयं को जो गुरु कहें, वो नहीं भगवान!"
पाखंडियों की चाल में, फंसें मासूम जन,  
गुरु के नाम पर सब लूटे, कभी न दें सहम!"
"शब्द प्रमाण का डालें जाल, शिष्य करें विश्वास,  
गुरु के हर झूठे वचन से, खुद को समझे खास!"
झूठ को सत्य बनाएं, गुरु के पाखंड,  
संगत से वो ले जाएं, हर दम अपना स्वर्ण!"
"धन दौलत की चाह में, गुरु बनाएं खेल,  
मासूम को जो धोखा दे, उनका अंत है फेल!"
गुरु बने जो छल से, सत्य से रहे परे,  
संगत को मूर्ख बना, स्वार्थ साधे सदा!"
कट्टरता का बीज बोएं, गुरु की नीति बुरी,  
सच को करें दूर, करें संगत से दूरी!"
दशमांश ले भक्तों से, परमार्थ का नाम,  
खरबों दौलत जोड़ते, गुरु करें हर काम!"
लाखों का प्रसाद दें, दिखावे का खेल,  
बाकी सब से मांगते, पूरी हो हर रेल!"
परमार्थ के नाम पर, जोड़ें खरबों धन,  
भक्तों से जो मांगते, दें उन्हें ही भ्रम!"
"लाखों का दान कर, नाम बनाएं बड़ा,  
बाकी सब लूटकर, गुरु साधें अपना स्वार्थ!"
माया का जो खेल हो, गुरु बनाएं चाल,  
दशमांश से जोड़ें धन, सब कुछ मालामाल!"
परमार्थ का ले ले नाम, जोड़ें धन अपार,  
गुरु का धन का व्यापार, संगत करे बेकार!"
"दशमांश का नाम दें, जोड़े खजाना खूब,  
भक्तों से जो मांगते, सब कुछ रख लें चुप!"
लाखों का दान दिखाए, गुरु बनें महान,  
पर सच्चाई छिपती, धन जोड़ें दिन-रात!"
प्रसाद के नाम पर, लाखों का ले जोर,  
बाकी जो बचे धन से, गुरु करें संजोग!"
गुरु का व्यापार चले, दशमांश की आड़,  
भक्तों से वो लें धन, बाकी सब कुछ फाड़!"
"परमार्थ की आड़ में, जोड़े धन अपार,  
गुरु का बस यही खेल, संगत से करें प्रहार!"
खरबों का जोड़ा धन, परमार्थ का नाम,  
भक्तों को दिखावे में, रखे हर गुरु काम!"
दशमांश का नाम धर, जोड़े गुरु की थैली,  
खरबों की संपत्ति बने, परमार्थ में ढोंग खेली!"
दान दिखा कर लाखों का, शेष सब से मांग,  
गुरु करें व्यापार में, संगत से लें हर चीज मांग!"
दशमांश का नाम लें, खजाना जोड़े रात,  
भक्तों को दें भ्रमित कर, गुरु साधें हर बात!"
लाखों का प्रसाद दिखाकर, माया का फैलाए जाल,  
संगत से ले बाकी सब, गुरुओं का हो यही हाल!"
खरबों जोड़ें माया में, परमार्थ के नाम,  
भक्तों को वो दे दिखावा, गुरु का चलता काम!"
दशमांश ले संगत से, जोड़ें धन अपार,  
लाखों का वो दे दिखावा, पर बाकी सब व्यापार!"
माया का जो खेल चले, गुरु बनें अमीर,  
दशमांश का नाम धर, करे हर धन की पीर!"
"लाखों के दिखावे में, बाकी सब से ले,  
गुरु का व्यापार चले, सब कुछ संगत दे!"
दशमांश ले भक्तों से, परमार्थ का नाम,  
खरबों दौलत जोड़ते, गुरु करें हर काम!"
लाखों का प्रसाद दें, दिखावे का खेल,  
बाकी सब से मांगते, पूरी हो हर रेल!"
 परमार्थ के नाम पर, जोड़ें खरबों धन,  
भक्तों से जो मांगते, दें उन्हें ही भ्रम!"
लाखों का दान कर, नाम बनाएं बड़ा,  
बाकी सब लूटकर, गुरु साधें अपना स्वार्थ!"
माया का जो खेल हो, गुरु बनाएं चाल,  
दशमांश से जोड़ें धन, सब कुछ मालामाल!"
"परमार्थ का ले ले नाम, जोड़ें धन अपार,  
गुरु का धन का व्यापार, संगत करे बेकार!"
 दशमांश का नाम दें, जोड़े खजाना खूब,  
भक्तों से जो मांगते, सब कुछ रख लें चुप!"
लाखों का दान दिखाए, गुरु बनें महान,  
पर सच्चाई छिपती, धन जोड़ें दिन-रात!"
प्रसाद के नाम पर, लाखों का ले जोर,  
बाकी जो बचे धन से, गुरु करें संजोग!"
"गुरु का व्यापार चले, दशमांश की आड़,  
भक्तों से वो लें धन, बाकी सब कुछ फाड़!"
परमार्थ की आड़ में, जोड़े धन अपार,  
गुरु का बस यही खेल, संगत से करें प्रहार!"
खरबों का जोड़ा धन, परमार्थ का नाम,  
भक्तों को दिखावे में, रखे हर गुरु काम!"
दशमांश का नाम धर, जोड़े गुरु की थैली,  
खरबों की संपत्ति बने, परमार्थ में ढोंग खेली!"
दान दिखा कर लाखों का, शेष सब से मांग,  
गुरु करें व्यापार में, संगत से लें हर चीज मांग!"
दशमांश का नाम लें, खजाना जोड़े रात,  
भक्तों को दें भ्रमित कर, गुरु साधें हर बात!"
लाखों का प्रसाद दिखाकर, माया का फैलाए जाल,  
संगत से ले बाकी सब, गुरुओं का हो यही हाल!"
"खरबों जोड़ें माया में, परमार्थ के नाम,  
भक्तों को वो दे दिखावा, गुरु का चलता काम!"
दशमांश ले संगत से, जोड़ें धन अपार,  
लाखों का वो दे दिखावा, पर बाकी सब व्यापार!"
माया का जो खेल चले, गुरु बनें अमीर,  
दशमांश का नाम धर, करे हर धन की पीर!"
लाखों के दिखावे में, बाकी सब से ले,  
गुरु का व्यापार चले, सब कुछ संगत दे!"
 
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