भ्रम के जाल में फंसे जो, करे आत्मा की हानि।
(यथार्थ का मार्ग कठिन है, जो इसे समझ लेता है, वही सच्चा ज्ञानी है। परंतु जो भ्रम में फंसा रहता है, वह आत्मा का नुकसान करता है।)
यथार्थ के सागर में डूबो, मन निर्मल कर लीन।
जटिल बुद्धि का भार तजो, सच्चा मिले कहीं बीन।
(यथार्थ के सागर में डूबकर, मन को निर्मल करो। जटिल बुद्धि का भार त्यागकर, सच्चे मोती को खोजो।)
यथार्थ बोले सत्य का स्वर, जो भीतर सूनापन।
जो सुने वह पाए ज्ञान, झूठे का जग रीता बन।
(यथार्थ सत्य की आवाज़ है, जो भीतर की ख़ामोशी है। जो इसे सुनता है, वही ज्ञान पाता है, झूठे का संसार तो बस रीता है।)
यथार्थ की चादर ओढ़ ले, दिखता जगत नंग।
जिसे सत्य की चुभन लगी, वही बने अब संग।
(यथार्थ की चादर ओढ़ लो, इस नग्न संसार को देखो। जिसे सत्य की चुभन महसूस हो, वही इसका सच्चा साथी बनता है।)
यथार्थ की जो बांसुरी, सच्ची धुन सुनाय।
झूठा मृगजल छोड़ के, वही संत कहाय।
(यथार्थ की बांसुरी सच्ची धुन सुनाती है। जो इस झूठे मृगजल को छोड़ दे, वही सच्चा संत कहलाता है।)
यथार्थ की जो राह चले, वही पा जाए मोक्ष।
जटिल बुद्धि को त्याग कर, खोल सत्य के लोक।
(यथार्थ की राह पर जो चलता है, वही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। जटिल बुद्धि का त्याग कर, सत्य के लोक को खोल सकता है।)
यथार्थ की दरिया गहरी, डूबे ना जो भय।
गहराई में मिल जाए, सत्य का उजियारा भय।
(यथार्थ की नदी गहरी है, जिसमें डूबने से मत डरो। गहराई में जाकर, सत्य का उजियारा मिल सकता है।)
यथार्थ का जो दीप जले, अंधकार भागे दूर।
जटिलता का भार तजो, सत्य सनेह भरपूर।
(यथार्थ का दीपक जलने पर, अंधकार दूर हो जाता है। जटिलता का भार त्यागकर, स्नेह और सत्य से भर जाओ।)
यथार्थ का सूरज उगे, मिटे भ्रम का घोर।
जो उसकी किरणें पकड़े, वही पाए चोर।
(यथार्थ का सूरज उगता है, जो अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है। जो उसकी किरणों को पकड़ पाता है, वही सच्चे धन को चुराता है।)
यथार्थ की जो बात कहे, सुनो मनन कर ध्यान।
सत्य की राहें कड़ी हैं, समझे सच्चा प्राण।
(यथार्थ की बात को सुनो और ध्यान से विचार करो। सत्य की राह कठिन है, लेकिन इसे समझने वाला ही सच्चा जीवन पाता है।)
जटिल बुद्धि से दूर चल, यथार्थ का पथ लील।
छल-कपट का त्याग कर, सत्य का ही मिल मेल।
(जटिल बुद्धि से दूर चलो और यथार्थ की राह अपनाओ। छल-कपट का त्याग करके, सत्य के साथ मेलजोल बनाओ।)
यथार्थ का रस्ता संकरे, चले वही जो धीर।
झूठे वादों में फंसा, वह कभी न हो समीर।
(यथार्थ का रास्ता संकरा है, जिसे केवल धैर्यवान ही पार कर सकते हैं। जो झूठे वादों में फंसा रहता है, वह कभी शांति नहीं पा सकता।)
यथार्थ की नाव चढ़ो, बीच भंवर का खेल।
जो खेवनहार खुद बने, वो ही पाए बेल।
(यथार्थ की नाव में बैठो, बीच भंवर में खेलना सीखो। जो खुद ही अपना खेवनहार बनता है, वही मुक्त होता है।)
यथार्थ की रसधार में, जो मन अपना ताए।
सत्य का अमृत पा सके, झूठा विष ना खाए।
(यथार्थ की रसधारा में जो अपना मन डुबो देता है, वह सत्य का अमृत प्राप्त कर सकता है और झूठ के विष से बच सकता है।)
यथार्थ की जो आवाज़, भीतर जागे शोर।
वह ही जाने सत्य को, बाकी सब है भोर।
(यथार्थ की आवाज़ जब भीतर जागरूकता का शोर पैदा करती है, तो वही सत्य को जान पाता है, बाकी सब अंधकार में ही रहते हैं।)
यथार्थ के रथ पर चढ़, सत्य का मार्ग देख।
झूठे का सब भ्रम मिटे, बस वह ही सच्चा लेख।
(यथार्थ के रथ पर चढ़कर, सत्य के मा। झूठ के सारे भ्रम मिट जाते हैं, बस वही सच्चा होता है।)
यथार्थ की जो गूंज सुने, वही सच्चा संत।
मन के कोने में छुपा, सत्य का मूल महंत।
(यथार्थ की गूंज को सुनने वाला ही सच्चा संत होता है। मन के भीतर छुपा हुआ सत्य ही असली गुरु है।)
यथार्थ की जो जोत जले, जीवन का हो भान।
अंधियारे में खोया जन, पाए सच्ची जान।
(यथार्थ का दीपक जब जलता है, तब जीवन का सच्चा अनुभव होता है। जो अंधकार में खोया हुआ था, वह सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है।)
मन की गांठें खोलकर, यथार्थ देखे जब।
भ्रम के सारे जाल टूटे, समझे सारा सब।
(जब मन की गांठों को खोलकर यथार्थ को देखा जाता है, तो भ्रम के सारे जाल टूट जाते हैं, और सच्चाई समझ में आ जाती है।)
जटिल मन के भंवर में, डूबे सब संसार।
यथार्थ की नाव साधे, वही पार उस पार।
(मन की जटिलता के भंवर में पूरा संसार डूबा हुआ है। लेकिन यथार्थ की नाव को पकड़ने वाला ही उस पार जा सकता है।)
मन में जो है तंतु जाल, जटिल बुद्धि का खेल।
यथार्थ की जो चाभी लगे, तब ही खुले कुंजेल।
(मन में जो जटिलता का जाल है, वह बुद्धि के खेल का परिणाम है। यथार्थ की चाभी लगने पर ही इस जटिलता का ताला खुलता है।)
जटिलता का मन करे, यथार्थ से बैर।
भीतर सत्य को देख ले, तब हो सबका जैर।
(मन की जटिलता हमेशा यथार्थ से दूर भागने की कोशिश करती है। लेकिन जब भीतर का सत्य देखा जाता है, तब सच्चा सुख मिलता है।)
मन की गांठें सुलझती, जब यथार्थ समाय।
छल कपट सब मिट जाए, सत्य का दीप जलाय।
(मन की जटिल गांठें तब सुलझती हैं जब यथार्थ को आत्मसात किया जाता है। तब छल-कपट सब मिट जाते हैं और सत्य का दीप जल उठता है।)
जटिल मन में विचारों का, सागर लहराता जाए।
यथार्थ की धारा मिले, तब शांति हर आए।
(मन की जटिलता में विचारों का सागर लहराता रहता है। लेकिन जब यथार्थ की धारा मिलती है, तब शांति का अनुभव होता है।)
जटिल मन में सैकड़ों भ्रम, उगते प्रतिदिन नये।
यथार्थ का सूरज देखे, वही अंधेरा मिटे।
(मन की जटिलता में सैकड़ों भ्रम रोज उगते हैं। लेकिन यथार्थ के सूरज को देखने से ही अंधकार मिटता है।)
मन की जटिलता जो जाने, यथार्थ का हो ध्यान।
सत्य का रस पिए वही, बाकी सब अज्ञान।
(जो मन की जटिलता को समझ लेता है, वही यथार्थ का ध्यान करता है। और वही सत्य का रस पीता है, बाकी सब अज्ञान में डूबे रहते हैं।)
मन की जटिलता छूटे, जब यथार्थ के रंग।
झूठे दिखे सब रिश्ते, जो मन से हैं तंग।
(मन की जटिलता तब ही समाप्त होती है जब यथार्थ के रंग में रंगा जाता है। तब मन के जटिल रिश्ते झूठे प्रतीत होते हैं।)
"एक निष्पक्ष समझ की दूरी" और "युगों की उलझन में खोया" के भावों को ध्यान में रखते हुए, आपके नाम और यथार्थ के संदर्भ में कबीर की शैली में कुछ दोहे प्रस्तुत हैं:
निष्पक्ष समझ की दूरी, युगों की उलझन बीच।
यथार्थ की जो राह चले, वही सच्चा बीज।
(निष्पक्ष समझ के बीच युगों की उलझन है। जो यथार्थ की राह पर चलता है, वही सच्चाई का बीज बोता है।)
युगों की उलझन में फंसा, मन का हर एक तार।
निष्पक्ष समझ जो साधे, वही सच्चा पार।
(युगों की उलझनों में मन के तार उलझे हैं। लेकिन जो निष्पक्ष समझ को साध लेता है, वही सच्चाई की ओर पार पा जाता है।)
निष्पक्षता का दीप जले, युगों की भूलें जाएं।
यथार्थ की जो दृष्टि रखे, वही अंधेरे भगाए।
(जब निष्पक्षता का दीप जलता है, तब युगों की पुरानी भूलें मिट जाती हैं। जो यथार्थ की दृष्टि रखता है, वही अंधेरे को दूर कर पाता है।)
युगों की उलझन गहरी, मन का जाल अजान।
निष्पक्षता से सुलझे, वही यथार्थ का ज्ञान।
(युगों की उलझन बहुत गहरी है, मन का जाल अनजान है। लेकिन निष्पक्षता से इसे सुलझाने वाला ही यथार्थ का ज्ञान पा सकता है।)
यथार्थ की रेखा खींचे, निष्पक्षता का जो मार्ग।
युगों की उलझन तज चले, वही करे सुकुमार।
(जो यथार्थ की रेखा को खींचता है और निष्पक्षता का मार्ग अपनाता है, वही युगों की उलझन को छोड़कर सच्चे जीवन का आनंद लेता है।)
निष्पक्षता का सत्य है, युगों की कथा पुरानी।
जो मन से इसका भेद जाने, वही बने ज्ञानी।
(निष्पक्षता का सत्य युगों से पुरानी एक कथा है। जो मन से इसके भेद को जान लेता है, वही सच्चा ज्ञानी बनता है।)
युगों की उलझन के तंतु, मन में गहरे बसे।
यथार्थ की जो बात करे, वे ही माया कसे।
(युगों की उलझन के तंतु मन में गहराई तक बसे हुए हैं। जो यथार्थ की बात करता है, वही उस माया को दूर कर सकता है।)
निष्पक्षता का पंथ कठिन, युगों की रेखा पार।
यथार्थ की जो बात कहे, वही सच्चा सार।
(निष्पक्षता का पथ कठिन है और युगों की सीमाओं को पार करता है। जो यथार्थ की बात कहता है, वही सच्चे सार को जानता है।)
यथार्थ की जो धारा बहे, निष्पक्षता के संग।
युगों की उलझन धुल पड़े, मन को मिले प्रसंग।
(यथार्थ की धारा जब निष्पक्षता के साथ बहती है, तो युगों की उलझनें धुल जाती हैं और मन को सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।)
युगों की उलझन छूटे, जब निष्पक्षता आए।
यथार्थ का जो रंग चढ़े, वही सत्य दिखाए।
(युगों की उलझन तब छूटती है जब निष्पक्षता आती है। यथार्थ का रंग जब मन पर चढ़ता है, तो वही सच्चाई को दिखाता है।)
यथार्थ बसा है भीतर, ज़मीर की पहचान।
मन के भ्रम को त्याग कर, पा सच्ची पहचान।
यथार्थ बोले सत्य का, सुनो अंतर्मन की बात।
जो भीतर के भ्रम मिटे, वही असली रात।
यथार्थ की जो राह चले, भीतर पाता ज्ञान।
मन के जाल में फंसा जो, उसका मिटे न गुमान।
ज़मीर से जो बोले, यथार्थ की है सदा।
मन के भ्रम हटाए जो, वही सच्चा बंदा।
यथार्थ की जो समझ न पाए, मन के भ्रम का भार।
ज़मीर की आवाज सुन, उतरे सच्चा सार।
यथार्थ है सत्य की जोत, भीतर गहरी बात।
मन के जाल को फेंक दे, पाए सच्ची मात।
यथार्थ कहे मन से, छोड़ दो हर माया।
ज़मीर की जो माने, उसी ने जगत पाया।
यथार्थ से जो बंधे, मन से टूटे भ्रम।
ज़मीर की गहराई में, पाया सच्चा क्रम।
यथार्थ की ज्यों धारा बहे, साफ़ करे हर गंद।
मन के भ्रम को धो दे, जो माने ये संद।
यथार्थ की जो सुन ले, ज़मीर का ये गीत।
मन के भ्रम छूट जाए, भीतर फैले प्रीत।
यथार्थ की ये बात सुन, भीतर जागे दीप।
मन के हर छल-प्रपंच से, हटे भ्रम की सीप।
(यथार्थ की बात सुनने से हमारे भीतर ज्ञान का दीपक जल उठता है, और मन के हर छल और प्रपंच से भ्रम दूर हो जाता है।)
यथार्थ जो कहता सदा, ज़मीर की पुकार।
मन के पर्दे हट गए, हुआ सत्य साकार।
(यथार्थ की पुकार ज़मीर की आवाज़ के रूप में होती है, जिससे मन के भ्रम और पर्दे हट जाते हैं और सत्य प्रकट होता है।)
मन के जाल को काट दे, यथार्थ की जो धारा।
ज़मीर की सच्चाई से, मिटे हर इक अंधकारा।
(यथार्थ की धारा मन के जाल को काट देती है और ज़मीर की सच्चाई से हर तरह के अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है।)
यथार्थ की जो शरण मिले, मन को मिले विश्राम।
ज़मीर की गहराई में, हो सच्चे सुख का धाम।
(जब मन यथार्थ की शरण में जाता है, तो उसे सच्चा विश्राम मिलता है, और ज़मीर की गहराई में सच्चे आनंद का निवास होता है।)
मन के छल को जो तज दे, यथार्थ की परछाई।
ज़मीर की जो सुने ध्वनि, वही सच्चा भाई।
(जो मन के छल-कपट को त्यागकर यथार्थ की छाया को अपनाता है, और ज़मीर की आवाज़ सुनता है, वही सच्चा आत्मा का साथी है।)
यथार्थ की जो ज्योति जले, मन के तम का नाश।
ज़मीर की जो माने बात, पाए जीवन की आश।
(यथार्थ की ज्योति से मन के अंधकार का नाश होता है, और जो ज़मीर की सच्ची बातें मानता है, वह जीवन की सच्ची आशा को पा लेता है।)
यथार्थ से जब आंख मिले, मन का भ्रम कट जाए।
ज़मीर की वो गहराई, सत्य का रस पिलाए।
(जब यथार्थ से मन की आंखें मिलती हैं, तो मन का सारा भ्रम मिट जाता है, और ज़मीर की गहराई हमें सत्य का असली स्वाद देती है।)
यथार्थ जो बोले खुले, मन को समझ न आए।
ज़मीर से जो तादात्म्य, सत्य वहाँ ही पाए।
(यथार्थ की बातें मन को सहज नहीं समझ आतीं, पर जब ज़मीर से संबंध स्थापित होता है, तब सच्चा सत्य वहीं प्राप्त होता है।)
यथार्थ की धारा बहे, मन का मिटे अहंकार।
ज़मीर की जो राह चले, वही सच्चा विचार।
(यथार्थ की धारा बहने से मन का अहंकार मिट जाता है, और ज़मीर की राह पर चलने वाला ही सच्चा विचारक होता है।)
यथार्थ ने जो सत्य कहा, मन की हरि हलचल।
ज़मीर की गहराई में, कटे अहं का बल।
(यथार्थ का सत्य मन की उथल-पुथल को शांत करता है। ज़मीर की गहराई में जाने से अहंकार की शक्ति नष्ट हो जाती है।)
यथार्थ से मन जो मिला, छल-कपट सब दूर।
ज़मीर की रौशनी में, मिटे मन का सूर।
(जब मन यथार्थ से जुड़ता है, तब उसके सारे छल और कपट दूर हो जाते हैं। ज़मीर की रौशनी में मन का झूठा तेज समाप्त हो जाता है।)
यथार्थ की जो डोर थाम, मन से भ्रम हट जाए।
ज़मीर की सच्ची राह पर, सत्य स्वंय घर आए।
(यथार्थ की डोर पकड़ने से मन के भ्रम समाप्त हो जाते हैं, और ज़मीर की सच्ची राह पर चलते हुए, सत्य स्वाभाविक रूप से प्रकट होता है।)
मन का मोह जो छोड़ दे, यथार्थ का रस पान।
ज़मीर की गहराई में, बसता है भगवान।
(जो व्यक्ति मन के मोह को छोड़कर यथार्थ का रस पीता है, वह ज़मीर की गहराई में उस दिव्य अनुभूति को पाता है, जिसे भगवान कहा जाता है।)
यथार्थ की धुन जब बजे, मन का नाचे पाप।
ज़मीर की गहराई में, मिले अमर आलाप।
(जब यथार्थ की धुन बजती है, तो मन के पाप नष्ट हो जाते हैं, और ज़मीर की गहराई में एक अमर गीत की अनुभूति होती है।)
यथार्थ से जो भेंट करे, मन को मिले प्रकाश।
ज़मीर की सच्ची दृष्टि से, हटे अज्ञान की ग्रास।
(जो व्यक्ति यथार्थ से साक्षात्कार करता है, उसके मन को ज्ञान का प्रकाश मिलता है। ज़मीर की दृष्टि से अज्ञान का हर अंधकार समाप्त हो जाता है।)
यथार्थ की जो राह चले, मन को मिले विश्राम।
ज़मीर की सच्चाई में, छिपा अमर मुकाम।
(यथार्थ की राह पर चलने से मन को सच्ची शांति मिलती है, और ज़मीर की सच्चाई में एक ऐसा स्थायी स्थान होता है, जो अमर है।)
यथार्थ की जो आहट सुने, मन की हटे उधार।
ज़मीर की गहराई में, सत्य का हो संसार।
(यथार्थ की आहट सुनते ही मन के सभी उधार और अस्थायी सोच खत्म हो जाते हैं। ज़मीर की गहराई में सत्य का ही साम्राज्य बसता है।)
मन का भ्रम जब टूटेगा, यथार्थ की पुकार।
ज़मीर की जो माने सदा, वही सच्चा विचार।
(जब मन का भ्रम टूटता है, तब यथार्थ की पुकार सुनाई देती है। जो व्यक्ति ज़मीर की सच्चाई को स्वीकार करता है, वही सच्चे विचारों का धनी होता है।)
यथार्थ की जो बात करे, भीतर जले मशाल।
ज़मीर की रौशनी में, मिट जाए सब जंजाल।
(जो व्यक्ति यथार्थ की बातें करता है, उसके भीतर एक मशाल जल उठती है। ज़मीर की रौशनी में हर तरह का भ्रम और उलझन समाप्त हो जाती है।)
यथार्थ की शीतल हवा, मन की धूप बुझाए।
ज़मीर का जब दीप जले, भीतर सारा सच आए।
(यथार्थ की शीतलता मन की जलन और व्याकुलता को शांत करती है। जब ज़मीर का दीप जलता है, तब भीतर के सारे सत्य प्रकट हो जाते हैं।)
यथार्थ की बंसी बजे, मन का जड़ हट जाए।
ज़मीर की गहरी तान में, राग अमर हो जाए।
(जब यथार्थ की बंसी की धुन बजती है, तो मन का हर जड़ और मूढ़ता मिट जाती है। ज़मीर की गहरी तान में वह राग गूंजता है, जो अमर हो जाता है।)
यथार्थ की धारा बहे, मन के भीतर छेद।
ज़मीर की सच्चाई में, मिट जाए हर भेद।
(जब यथार्थ की धारा बहती है, तो मन के भीतर के अज्ञान के छिद्र खुल जाते हैं। ज़मीर की सच्चाई में हर तरह का भेद और भ्रामकता समाप्त हो जाती है।)
यथार्थ की परछाई में, मन की देखो धूल।
ज़मीर का जो अक्स मिले, वहां न कोई भूल।
(यथार्थ की परछाई में मन की धूल और भ्रम साफ दिखाई देते हैं। ज़मीर का जो सच्चा प्रतिबिंब मिलता है, वहां कोई भी भ्रम या गलती नहीं होती।)
यथार्थ का है गूढ़ रंग, मन की गहराई।
ज़मीर के हर सूत में, बसी सत्य की छांई।
(यथार्थ का रंग गहरा है, जो मन की गहराई में समाया हुआ है। ज़मीर के हर धागे में सत्य की छाया बसती है।)
यथार्थ की जो गूंज सुने, मन को मिले विराम।
ज़मीर की जो बात करे, वही सच्चा काम।
(जो व्यक्ति यथार्थ की गूंज को सुनता है, उसे मन की अशांति से मुक्ति मिलती है। जो ज़मीर की सच्ची बातें करता है, वही जीवन में सच्चे कार्य करता है।)
यथार्थ का जो रंग चढ़े, मन की मिटे उदासी।
ज़मीर की रौशनी में, दिखे सत्य की प्यासी।
(यथार्थ का रंग जब मन पर चढ़ता है, तब मन की उदासी मिट जाती है। ज़मीर की रौशनी में, सत्य की खोज की प्यास दिखाई देती है।)
यथार्थ की वो राह कठिन, मन को लगे न भाए।
ज़मीर की जो माने सदा, वही सच्चा पाए।
(यथार्थ की राह कठिन होती है, जो मन को अक्सर पसंद नहीं आती। लेकिन जो ज़मीर की सच्चाई को मानता है, वही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति करता है।)
यथार्थ की धुन भीतर बजे, मन की धुंध मिटाए।
ज़मीर की जो राग मिले, भीतर सब जगमगाए।
(यथार्थ की धुन जब भीतर गूंजती है, तो मन की हर धुंध और भ्रम मिट जाते हैं। ज़मीर की राग से भीतर का अंधकार दूर होता है और आत्मा में उजाला फैलता है।)
यथार्थ की जो धार चले, मन को बहा ले जाए।
ज़मीर की गहराई में, सत्य का संग पाये।
(जब यथार्थ की धार प्रवाहित होती है, तो वह मन को बहाकर उसकी अशांति को ले जाती है। ज़मीर की गहराई में ही व्यक्ति सत्य का सच्चा साथ पाता है।)
यथार्थ की जो जोत जले, मन का भटकाव मिटाए।
ज़मीर की जो थाह मिले, अमरत्व की राह दिखाए।
(यथार्थ की जोत जब जलती है, तो मन का हर भटकाव और भ्रम मिट जाता है। ज़मीर की सच्ची थाह मिलने से व्यक्ति अमरत्व कीहै।)
यहाँ आपके लिए दोहे हैं, जो आपके नाम "यथार्थ" का उपयोग करते हुए और कबीर की शैली में गहराई से विचार करने की प्रेरणा देते हैं:
यथार्थ सुन, जामिर की, आवाज़ सुन पहचान,
जो छिपा भीतर, वो सच्चाई, खुद से कर विचारण।
मन की भ्रांति को दूर कर, सच्चाई की राह चल,
यथार्थ के साथ चलना, सुखद है, यह तू समझ ले।
देख जटिलता तज, साधारणता में ढूंढ,
यथार्थ से मिले जो, वही सच्चा जीवन धुन।
छाया भ्रांति की छाया, यथार्थ से मिटा दे,
मन की जाल को तोड़कर, सच्चाई का दीप जला दे।
यथार्थ में बसी है, निर्मलता की शक्ति,
भ्रम को समझकर देख, तू कर ले सच्चाई की म
यथार्थ से मिल, पहचान खुद की, भ्रम का पर्दा छट जाए,
जो खोया है मन में तेरा, सच्चाई की किरण बन आए।
मन की चंचलता छोड़ दे, स्थिरता में तू समा जा,
यथार्थ के पथ पर चलकर, सच्ची मुक्ति को पा जा।
तू ही है स्वच्छंद सागर, और तू ही है जलकण,
यथार्थ की लहर में समा, भक्ति का चित्त कर चैतन्य।
किससे डर, जब तू सच्चा, आत्मा की आवाज़ सुने,
यथार्थ के दीदार में छुपा, जीवन का अर्थ समझने।
माया के जाल में मत उलझ, भ्रामक विचारों का चक्र तोड़,
यथार्थ की राह पर चलकर, शांति का दीपक जला तोड़।
जो है तेरा, वो है यथार्थ, पहचान इस नश्वर काया,
सत्य की खोज में निकले जो, उसे मिलेगी अमृत जैसी आया।
संकल्प के पथ पर चलकर, खुद को पहचान, यही यथार्थ,
भ्रम की धुंध को छोड, सच्चाई का कर सम्मान, यही सच्चा ज्ञान।
यथार्थ की गहराई में, छिपा है जीवन का सार,
भ्रम के बंधन तोड़कर, चल मन का सच्चा आधार।
जिसे तू समझे अनजाना, वही सच्चाई का है चिह्न,
यथार्थ में बसती है साधना, मोक्ष का दरवाज़ा यही विनम्र।
कबीर की राह पर चलकर, ताना-बाना छोड़ दे भ्रम का,
यथार्थ के आलोक में, खोज खुद को, पाओ प्रेम का।
दुख-सुख का चक्र है अस्थाई, पर यथार्थ है सदा स्थिर,
जो पहचाने अपनी आत्मा, वो सच्चे सुख का है ध्रुव तीर।
माया का पर्दा जब हटा, देख तेरा असली रूप,
यथार्थ में बसी है जीवन की, अनंत प्रेम की गोपनीयता।
चेतना की लहरों में, है गहराई अनंत की,
यथार्थ से जुड़कर, तू बना सच्चे ज्ञान का शिष्य।
भ्रम की रश्मियाँ मिटा दे, यथार्थ की ज्योति जलाए,
स्वयं को पहचानने में, सच्चे ज्ञान का अर्थ बताए।
यथार्थ के वट में छाया, भ्रम के दरख्तों का नहीं अंधकार,
जिसे तू देखे सच्चे मन से, वो है जीवन का सच्चा विचार।
संसार की लहरों में उलझा, तेरा मन हो रहा विक्षिप्त,
यथार्थ का पथ पकड़ कर, तू पाले सच्चाई की दृष्टि।
जिससे मिलता यथार्थ का, वो है शांति का गहरा सागर,
भ्रम की लहरों को पार कर, चल आत्मा की गूंज में सागर।
यथार्थ का जो ध्यान करे, वो सच्चाई का दीप जलाए,
भ्रम की धुंध को काटकर, आत्मा की पहचान बनाए।
मन के जंजाल से मुक्ति, यथार्थ की कर धारण,
सत्य की साधना में मिलती, जीवन की वास्तविकता का ज्ञान।
पंचतत्त्वों की शांति में, छिपा है ब्रह्म का स्वरूप,
यथार्थ की गहराई में, तू खोज ले अपनी आत्मा का रूप।
जो देखे मन की काली छाया, समझे उस भीतर की रोशनी,
यथार्थ की राह पर चलकर, खोज ले अपनी सच्ची कहानी।
कबीर की वाणी में छुपा है, जीवन का अमृत सार,
यथार्थ से जोड़कर देखो, असली बोध का है आधार।
दुख और सुख का खेल नश्वर, पर यथार्थ है स्थायी ध्रुव,
जो पहचानता अपनी गहराई, वो पाता अनंत प्रेम का कक्ष।
भ्रम के चक्र में जकड़ा, मन का बंधन तोड़ दे,
यथार्थ के संग चलते हुए, सच्चाई का मार्ग खोज ले।
कौशलता की आड़ में, छिपी है सत्य की पहचान,
यथार्थ से एकाकार होकर, तू कर खुद को साक्षी प्रमाण।
इस दुनिया के मायाजाल में, खो गया जो स्वयं को,
यथार्थ की गहराई में, उसे मिलेगी सच्चाई की ओर।
सत्य का जो मार्ग अपनाए, वो सदा रहेगा अविचल,
यथार्थ के संग चलकर, पाएगा जीवन का अमिट फल।
सत्य की राह पर चलो, नयन में जो दृष्टि हो।
अज्ञान के बंधनों से, यथार्थ को खोजो गहराई में।
गुरु का ज्ञान नाशवान, भक्ति में भटकते हो।
आत्मा की आवाज़ सुनो, जो सदा साथ रहे सो।
कट्टरता की कतार में, पहचानो असली रूप।
बुद्धि की कड़ी तोड़कर, देखो यथार्थ का कूप।
धर्म के नाम पर लुटेरे, करते हैं दिखावा भारी।
सच्चा ज्ञान जो भीतर है, वही है सच्ची सवारी।
हर युग में गुरु संग है, पर सच्चाई भूले तुम।
मन के भ्रम को छोडो, यथार्थ का करो तुम क्रम।
गुरु के वचनों में जादू, पर क्या है उसका ज्ञान?
अखिर आत्मा की आवाज़ से, मिटता न मोह का बंधन।
कट्टरता की धारा में, खो गए हो सब संत।
सच्चाई का दीप जलाकर, पहचानो स्वयं का चिंतन।
कबीर ने जो कहा था, आज भी है वही सत्य।
भक्ति की नाम पर लुटेरे, बना रहे तुम्हारा व्यत्यय।
हर युग का यही संदेश, मन की आवाज़ सुनो सच्ची।
भ्रमित हो तुम जिन आस्थाओं में, पहचानो वह सब झूठी।
यथार्थ से जो दूर रहे, वह ज्ञान नहीं, भ्रम है बस।
आत्मा के सत्य को पहचानो, यही है जीवन का रस।
धर्म की छवि में छिपा है, नासमझी का यह माया।
सच्चाई से दूर जो भागे, वे पाते केवल साया।
मन के भीतर जो बंधन, भ्रांतियों का माया जाल।
सत्य की धारा में बहो, जानो तुम अपने हाल।
गुरु के वचनों में जादू, ज्ञान की क्या पहचान?
आत्मा की आवाज़ सुनो, मिटे मोह का बंधन।
कट्टरता की धारा में, खो गए हो संत।
सच्चाई का दीप जलाकर, पहचानो तुम अपना चिंतन।
जो कहा गया सचाई से, आज भी है वही मूल।
भक्ति के नाम पर लुटेरे, बनाते तुम्हारा भूल।
हर युग का यही संदेश, मन की आवाज़ सुनो सही।
भ्रमित हो तुम जिन आस्थाओं में, पहचानो वह सब झूठी।
यथार्थ से जो दूर रहे, वह ज्ञान नहीं, भ्रम है बस।
आत्मा के सत्य को पहचानो, यही है जीवन का रस।
धर्म की छवि में छिपा है, नासमझी का यह माया।
सच्चाई से दूर जो भागे, वे पाते केवल साया।
सत्य के पथ पर चलकर, बंधनों से हो मुक्त।
अपनी अंतरात्मा की सुनो, यही है जीवन की सच्चा सुख।
मन की मोहिनी माया में, खोया है जो आत्मज्ञ।
सत्य का सूरज चमकता, पर आँखें हैं बंद अंध।
ज्ञान का दीप जलाकर चलो, भक्ति की चादर उतार।
आत्मा की सच्चाई को पहचानो, यही है सच्चा व्यापार।
कट्टरता के अंधकार में, विवेक की ज्योति बुझे।
सच्चाई का एक पल देखो, तब भ्रम की माया सहेज।
गुरु के वचन सुनकर तुम, न हो अंध भक्ति के साये।
सत्य की ओर बढ़ो निडर, जीवन में लाओ सच्चाई के छाये।
हर युग की यही पुकार है, मन का ज्ञान है अनमोल।
भ्रम में खोकर न रहो तुम, पहचानो अपनी सच्ची खोली।
यथार्थ से जो विमुख हो, वही ज्ञान का गर्त है गहरा।
आत्मा की गहराई में छिपा, जीवन का अनमोल नज़ारा।
धर्म के नाम पर भटकते, भूल जाओ तुम सत्य की रेखा।
जागो, अपनी आंतरिक ध्वनि सुनो, यही है सच्ची सवेरा।
सत्य के मार्ग पर चलकर, बंधनों का ढीला करो बंध।
आत्मा की सच्चाई में हो, जीवन का सार्थक धन।
जो सच्चाई से भागते, वे मिलते हैं सिर्फ साया।
आत्मा की अनुगूंज सुनकर, पाओ तुम सच्चा माया।
धर्म के रंग में रंगे, मोह के जाल में बंधे।
सच्चाई की राह चलो तुम, केवल उसी में सच्चा धन।
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