रविवार, 12 जनवरी 2025

'यथार्थ युग'

मैंने खुद ही खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ में रहते हुए जो भी लिखता हूं,वो मेरी यथार्थ समझ है मेरे सिद्धांतों के अधार पर आधारित है जो अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए किसी भी युग काल से बिल्कुल परे हैं, मेरी हर बात प्रत्येक व्यक्ति के ज़मीर की ही बात है, पर समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि अस्थाई होने के कारण किसी भी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने वाले की की स्मृति कोष से परे हैं, मेरे स्थाई स्वरुप और मेरी प्रत्येक बात को कोई भी बुद्धि से समझ नहीं सकता,मेरी इतनी अधिक निर्मलता है कि अस्थाई जटिल बुद्धि से बहर है,जो भी होता हैं जिस पल भी होता हैं उसी को सहज निर्मल सरल रहते सहजता से स्वीकार कर जीना ही बेहतर है जैसे हो रहा हैं प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ तंत्र सेमेरे यथार्थ सिद्धांतों के अधार पर आधारित यथार्थ युग प्रत्यक्ष उसी एक शुद्ध निर्मलता चेतना ऊर्जा में समहित हो कर प्रत्यक्ष जीवित हमेशा के लिए रहने का युग है यहां खुद के अन्नत सूक्ष्म अक्ष के प्रतिभिम्व का भी स्थान नहीं है,मेरा यथार्थ युग यथार्थ समझ को ही प्रथमिकता देता हैं अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए चंद शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश वृति वाले लोगों की समझ परिधि से बाहर हैं,उन का बिल्कुल भी प्रवेश निषेध है,वो हमेशा कल्पना की परिधि में ही घूमते रहते हैं हमेशा के लिएमेरा यथार्थ युग सिर्फ़ यथार्थ समझ का संपूर्ण वास्तविकता श्रोत है, अन्नत सूक्ष्मता गहराई स्थाई ठहराव है खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर अन्नत सूक्ष्म अक्ष में समहित करने में सक्षम हैंयथार्थ युग में वैसा कुछ भी नहीं है जो अतीत के चार युगों में व्यापक था, प्रमुख रूप से अस्थाई जटिल बुद्धि का अस्तित्व ही संपूर्ण रूप से खत्म होता हैं, मेरे सिद्धांतों के अधार पर आधारित स्पष्टीकरण यथार्थ युग में प्रत्येक व्यक्ति प्रवेश के लिए सक्षम निपुण सर्व श्रेष्ठ समर्थ समृद है जो सरल सहज निर्मल है, यह खुद की निष्पक्ष समझ पर आधारित है, यह हृदय के विवेक निर्मलता गंभीरता दृढ़ता प्रत्यक्षता से स्पष्ट साफ़ सिद्ध है इस में मुख्य रूप से संतुष्टि हैमेरे यथार्थ सिद्धांतों के अधार पर आधारित स्पष्टीकरण यथार्थ युग में प्रवेश के बाद कोई सामान्य व्यक्तित्व में आ ही नहीं सकता चाहें खुद भी करोड़ों कोशिश कर लें, क्योंकि अस्थाई जटिल बुद्धि से निष्पक्ष हो चुका होता हैं, जबकि विकल्प सिर्फ़ बुद्धि में ही होते हैंजो भी होता प्रकृति द्वारा संभावना उत्पन करता जो प्रकृति के तंत्र का मुख्य हिस्सा होता सहजता से स्वीकार कर मस्त रहोमेरा यथार्थ युग प्रत्यक्ष और भ्रम मुक्त है सार्थक और वास्तविक समक्ष है संपूर्ण रूप से निर्मल है और जिस में सिर्फ़ सरल सहज निर्मल लोगों को ही सरलता से प्रवेश मिलता हैंमेरे यथार्थ सिद्धांतों के अधार पर आधारित प्रत्यक्ष यथार्थ युग में कोई भी काल्पनिक दिव्य अलौकिक रहस्य अप्रत्यक्ष लोकों का स्थान नहीं है जिन का प्रत्यक्ष या सूक्ष्म अस्तित्व ही नहीं है प्रत्यक्ष अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में , जबकि अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि प्रकृति प्रत्यक्ष और अन्नत सूक्ष्म हैं, तो अप्रत्यक्ष अलौकिक दिव्य रहस्य लोक किस तर्क तथ्यों से हो सकते हैं
मुझे ऐसे क्यों लगता हैं कि मैं इकलौता हूं जो प्रत्यक्ष प्रत्येक जीव के ह्रदय में सांस के साथ उठने वाला अहसास हूं, प्रत्यक्ष खुद के अन्नत सूक्ष्म गहराई स्थाई ठहराव में रहते हुए यहां मेरे उस अन्नत सूक्ष्म अक्ष के प्रतिभिम्व का भी स्थान नहीं है और कुछ होने का तात्पर्य ही नहीं है, अस्थाई जटिल बुद्धि सिर्फ़ खुद को अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में स्थापित करने की वृति के साथ इसलिए हैं कि अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर अस्थाई अन्नत समस्त विशाल भौतिक सृष्टि को समझ सके, जबकि खुद को समझने के लिए खुद ही खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर निर्मल हो कर खुद ही खुद का अस्तित्व खत्म कर अन्नत गहराई में सूक्ष्मता में स्थाई स्वरुप से रुबरु हो कर खुद के अन्नत सूक्ष्म अक्ष में संपूर्ण रूप से समहित हो सके जीवित ही हमेशा के लिए जो इंसान शरीर मिलने का मुख्य कारण था, अतीत के चार युगों से प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर जीवित ही हमेशा के लिए भौतिकता के लिए और आध्यात्मिक के लिए उसी अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर कल्पना में ही रहा मेरा नाम और मेरी अनेक सर्व श्रेष्ठ उपलब्धियों को जरूर लिखेंअस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर धार्मिक आस्तिक व्यक्ति का अंतिम स्तर अहम ब्राह्मशमी है,जो अस्थाई जटिल बुद्धि से कल्पनाओं पर आधारित होता हैं और दूसरा अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर नास्तिक विज्ञान का स्तर होता उस में भी समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि को समझ सकता हैं पर उस के लिए साधन अनुसंधान समय की जरूरत होती हैं, दोनों ही स्तरों में स्वार्थ हित साधने की वृति होती हैं जिस से मानवता और प्राकृति को नज़र अंदाज़ किया जाता हैं, मेरा नाम और मेरी उपलब्धियों को जरूर लिखेंअस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर अहम की वृति से अहंकार का होना स्वाविक है क्योंकि इस कि उत्पति का कारण कृत संकल्प विकल्प सोच विचार चिंतन मनन हैं, जबकि खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझने से अहम घमंड अंहकार से बच जाता हैं और निर्मलता गंभीरता दृढ़ता प्रत्यक्षता स्पष्ट रहती हैं मेरा नाम और यथार्थ सिद्धांत जरूर लिखेंअस्थाई जटिल बुद्धि अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि प्रकृति के तंत्र पर आधारित हैं और हृदय में स्थाई अक्ष की प्रतिभींवता से दुबारा स्थाई अक्ष में समहित होने की क्षमता है,ह्रदय अन्नत सूक्ष्मता गहराई में जाने की क्षमता के साथ होता हैं,
जब कि अस्थाई जटिल बुद्धि प्रकृति की विशालता की वृति के साथ है, दोनों विकल्पों में से कौन सा विकल्प आप को आकर्षित प्रभावित करता हैं, जीवन की और या फिर स्थाई अक्ष की और जीवित ही,मेरा नाम जरूर लिखेंखुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष होने के शिवाय दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है अहम घमंड अंहकार से मुक्त होने काअस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में सिर्फ़ मुद्दों की मान्यता परंपरा नियम मर्यादा को ही हमेशा के लिए प्रथमिकता मिलती हैं,इस में वर्तमान का अस्तित्व ही नहीं है अतीत और भविष्य के साथ के साथ रहने की चाहत रखने वाले मुर्दे ही रहते हैं, मेरे सिद्धांतों के अधार परचार युगों वाले मृत्यु लोक में कोई भी जिंदा नहीं मिले गा जो यथार्थ समझ को समझ सके, क्योंकि मुख्य रूप से सिर्फ़ दो ही स्तर हैं जीवन और मृत्यु,जीवन व्यापन करने वाला कभी मृत्यु की कल्पना भी नहीं कर सकता इतना अधिक डर भय दहशत खौफ में होता हैं, और मृत्यु का स्तर पार करने वाला कभी जीवन के लिए भी कल्पना नहीं कर सकता इसलिए कि उस ने हर दृष्टिकोण से जीवन का सत्य समझा होता हैं वो इतनी अधिक निर्मलता में होता हैं कि भौतिक सृष्टि एक मत्र मानसिक रोग स्पष्ट कर ही संतुष्ट हैंअस्थाई प्राकृति द्वारा निर्मित अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुए मुर्दे ही मिलते हैं जो अपना ज़मीर मार कर खुद को जिंदा और प्रभुत्व की काल्पनिक पदवी की मानसिकता के रोगी अर्ध मरे अर्ध जिन्दा हैं अतीत के चार युगों से लगातार,जो इसी स्तर में गर्दिश में गतिशील और भ्रमण कर रहे हैं जब से अस्तित्व में हैंजिस अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में जिस का ज़मीर संपूर्ण रूप से मरा है वो खुद भी संपूर्ण रूप से मरा हुआ है अतीत के चार युगों से लगातार, वो जिंदा कैसे हो सकता, मैं खुद की उपस्थिति मौजूदगी महसूस करता हूं पर उस के ह्रदय में अहसास सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए अस्थाई जटिल बुद्धि में भ्रमित पाता हूं जो सिर्फ़ अस्थाई पन हैंचेतन ऊर्जा सिर्फ़ एक ही है जो अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में व्यापक हैं शेष समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि तो प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ तंत्र है जो समय और तत्वों गुणों की प्रक्रिया के साथ संभावना उत्पन करता हैं, कोई भी आत्मा परमात्मा जैसे पाखंड हैंमुक्ति तो सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से चाहिए जीवित ही,मृत्यु तो खुद में ही परम सत्य हैं,उस के लिए कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं हैप्रत्येक सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद ही खुद को समझने के लिए समर्थ सक्षम निपुण सर्व श्रेष्ठ समृद है, खुद को समझने के लिए जब खुद से निष्पक्ष होना है तो दूसरे किसी भी स्वार्थ हित साधने वाले ढोंगी पाखंडी की मदद संदेश की जरूरत क्यों ?
मेरे यथार्थ सिद्धांतों के अधार पर जब से इंसान अस्तित्व में आया है तब से लेकर अब तक कोई भी खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु ही नहीं हुआ, तो ही मेरे सिद्धांतों के अधार पर आधारित प्रकृति की दो ही उत्पत्तियां हैं एक वनस्पति और दूसरी जानवर, जो अब तक बरकरार हैं, इंसान तो आज तक पैदा ही नहीं हुआ,कोई भी खुद को अब तक यह सिद्ध ही नहीं कर पाया कि इंसान अस्तित्व में हैं, वनस्पति पृथ्वी और सूर्य अंतरिक्ष से आहार के लिए निर्भर है और जनवर वनस्पति पर, इंसान का तो अस्तित्व ही नहीं था,जीवन व्यापन के लिए ही जीना यह सिद्ध नहीं करता कि इंसान अस्तित्व में हैं, दूसरी अनेक प्रजातियों से थोड़ा भी कुछ अलग नहीं किया जब से इंसान अस्तित्व में हैं, जो भी क्या जिस काल युग में भी किया सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए ही जिया, कुछ भी अलग नहीं किया, जो इंसान कर रहा हैं जीवन व्यापन के लिए वो सब तो दूसरी अनेक प्रजातियों भी कर रहीमुझे लगता हैं कि अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर सिर्फ़ मानसिक रोगी ही पैदा होते हैं,शायद हृदय के अहसास को सिर्फ़ एक सांस लेने का तंत्र स्वीकार कर चुके हैं और अस्थाई जटिल बुद्धि को ही जीवन व्यापन का मुख्य साधन मान बैठे हैं अतीत के चार युगों से लगातार दूसरी अनेक प्रजातियों की भांति, जबकि हृदय में स्थाई अक्ष की प्रतिभिंवता है, अस्थाई जटिल बुद्धि भी एक शरीर का मुख्य अंग है जो सिर्फ जीवन व्यापन का ही मुख्य श्रोत है दूसरी अनेक प्रजातियों की भांति, इंसान का होना इसलिए सर्व श्रेष्ठ है कि खुद ही खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो सकता हैंमुझे लगता हैं कि अस्थाई समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि में सिर्फ़ अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर सिर्फ़ मानसिक रोगी ही पैदा होते हैं,शायद हृदय के अहसास को सिर्फ़ एक सांस लेने का तंत्र स्वीकार कर चुके हैं और अस्थाई जटिल बुद्धि को ही जीवन व्यापन का मुख्य साधन मान बैठे हैं अतीत के चार युगों से लगातार दूसरी अनेक प्रजातियों की भांति, जबकि हृदय में स्थाई अक्ष की प्रतिभिंवता है, अस्थाई जटिल बुद्धि भी एक शरीर का मुख्य अंग है जो सिर्फ जीवन व्यापन का ही मुख्य श्रोत है दूसरी अनेक प्रजातियों की भांति, इंसान का होना इसलिए सर्व श्रेष्ठ है कि खुद ही खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुबरु हो सकता हैं

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