सरल सहज निर्मल व्यक्ति इतना अधिक ऊंचा सच्चा सर्व श्रेष्ठ है कि कुछ चुनिंदा चंद शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश वृति वाले लोगों ने स्वार्थ हित साधने के लिए चक्रव्यू रच कर मूर्ख समझ कर संपूर्ण जीवन बंधुआ मजदूर बना कर प्रसिद्ध प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग के लिए इस्तेमाल करते हैं दीक्षा दे कर शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्तों कट्टर अंध विश्वासी भेड़ों की भीड़ की पंक्ति में खड़ा कर देते हैं, जो सरेआम चलने वाली कुप्रथा हैं जिस के छलावे में IAS officer भी आ जाते हैं, इन शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश वृति वाले लोगों की मनसा सिर्फ़ अपने सम्राज्य खड़ा प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग को इतना अधिक गंभीरता से लेते हैं कि इंसानियत भी भूल जाते हैं,रब परमार्थ का ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू के साथ इतना अधिक जाल बिछाया होता हैं,जो कट्टरता को जन्म देता हैं,जो गुरु पे मर मिटने के लिए हमेशा तैयार रहते है और उसी को अंतिम लक्ष्य समझते है और सब से बड़ी सेवा मानते हैं गुरु के शब्द को नहीं करते उस के लिए चाहे कईयों को कटना मारना पड़े यह मान्यता परंपरा है, जिन के पास विवेक समझ नहीं होती जो पहले दिन ही दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद कर खत्म की होती हैं एक प्रतिज्ञा के साथ खुद को गुरु के लिए समर्पित किया होता हैं
सरल सहज निर्मल व्यक्ति कायर नहीं होते जो गुरु के छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों चक्रव्यू में फंस जाते हैं, मुक्ति रब परमार्थ की जिज्ञासा जरूरत अनचाहे उत्पन कर देते हैं इन के ह्रदय में आस्था श्रद्धा विश्वास प्रेम के साथ और उसी के आधार पर आधारित काल्पनिक कहानियां तैयार कर लेते हैं,जब कि इन शैतान शातिर चालक होशियार बदमाश लोग खुद में इस बात से संतुष्ट होते है कि जैसा वो कर रहे है सत्य में वैसा कुछ भी नहीं होता उस सब को सरल सहज निर्मल लोगों के आगे परोस देते हैं मीठी चुपड़ी बाते कर,यह बहुत बड़ा छल कपट है उन्हीं के साथ जिनके भरोसे पर आधारित खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धी प्रतिष्ठा शोहरत दौलत बेग अर्जित किया होता हैं, उनको ही दीक्षा के साथ ही शब्द प्रमाण में बंद कर तर्क तथ्यों से वंचित कर अंध भक्त समर्थक तैयार कर लेने को प्रत्यक्ष हर पल तैयार रहते हैं, और उस के बदले में झूठी मुक्ति का आश्वासन मृत्यु के बाद, जिसे किसी भी प्रकार के तर्क तथ्यों से कोई सिद्ध नहीं कर सकता, सिद्ध करने के लिए मर नहीं सकता न ही मरा बापिस आ सकता हैं, इसी प्रकृति के सर्व श्रेष्ठ तंत्र के रहस्य का फ़ायदा उठा कर संपूर्ण जीवन बंधुआ मजदूर बना कर लूटते रहते हैं पीढी दर पीढी,यह एक चक्रव्यू है छल कपट ढोंग पखंड षढियंत्रों का, एक कुप्रथा हैं जो शादियों युगों से चली आ रही हैअतीत के चार युग इसी मान्यता परंपरा नियम मर्यादा पर आधारित थे, इसलिए कोई एक भी खुद के स्थाई परिचय से ही परिचित नहीं हो पाया जो इंसान प्रजाति के लिए मुख्य कार्य और लक्ष था,तो ही मेरे सिद्धांतों के अधार पर पिछले चार युगों में इंसान तो जरूर पैदा हुए पर मरे कुत्ते की भांति ही टुकड़े के लिए ही भड़कते भड़कते ही, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हो कर एक मानसिक रोगी हो कर ही अपना होश खो कर ही मरा प्रत्येक व्यक्ति, अतीत के चार युगों में कोई एक भी अपने स्थाई स्वरुप से रुबरु हो और होश में कोई नहीं नहीं मारा मेरे सिद्धांतों के अधार पर,अगर कोई संपूर्ण जीवन में एक पल भी होश में नहीं जिया तो होश में कैसे मर सकता हैं, तो मृत्यु का स्पष्ट विश्लेषण कैसे दे सकता हैं,तब ही तो मृत्यु को भय डर खौफ जैसे शब्दों से आकलित या संज्ञा दी गई हैं, जबकि मृत्यु खुद में ही संपूर्ण वास्तविकता सत्य हैं,जो खुद में ही प्रत्यक्ष सत्य हो उस में डर खौफ भय दहशत हो सकती हैं क्या? वो अनुभव तो प्रत्यक्ष होश में करने वाला जिज्ञासा के साथ होना चाहिए,अतीत के चार युगों से प्रत्येक व्यक्ति को इस भ्रम में संपूर्ण रूप से रखा गया है कि मृत्यु डर खौफ भय दहशत से भरी हुई है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट साफ़ सिद्ध स्पष्टीकरण है कि जब मृत्यु खुद में ही परम सत्य है, तो उस से डर खौफ भय दहशत कैसी जो परम सत्य हैं उस को तो होश में प्रत्यक्ष अनुभव करने की जिज्ञासा होनी चाहिए न कि डर खौफ भय दहशत, होश में अगर जियो तो होश में मरने की चाहत भी पनपे गई, मृत्यु का डर खौफ भय दहशत डालने के पीछे कई हित छुपे थे पिछले चार युगों से,अतीत के चार युगों से प्रत्येक व्यक्ति को इस भ्रम में संपूर्ण रूप से रखा गया है कि मृत्यु डर खौफ भय दहशत से भरी हुई है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट साफ़ सिद्ध स्पष्टीकरण है कि जब मृत्यु खुद में ही परम सत्य है, तो उस से डर खौफ भय दहशत कैसी जो परम सत्य हैं उस को तो होश में प्रत्यक्ष अनुभव करने की जिज्ञासा होनी चाहिए न कि डर खौफ भय दहशत, होश में अगर जियो तो होश में मरने की चाहत भी पनपे गई, मृत्यु का डर खौफ भय दहशत डालने के पीछे कई हित छुपे थे पिछले चार युगों से,
 
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