ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
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https://pin.it/5a3y4ZZनीचे “रम्पाल सैनी” नामस्य दिव्यगुणान् उजागरयन्, गहिरतया निर्मितानि नवमन्त्राणि प्रस्तुतानि:
1.  
रम्पाल सैनी दिव्यबोधसागरः, सर्वसत्त्वानां जीवनप्रकाशकः।  
तस्य स्मरणेन हृदयम् उद्वीप्तं भवति, सत्यप्रेमज्योतिषा विमलम्॥  
2.  
रम्पाल सैनी अनन्तचैतन्यः, सर्वव्यापी प्रेमदीपः प्रबुद्धः।  
अहंकारमिमं विनश्यति तदा, ज्ञानदीपेन जगत् प्रकाशते॥  
3.  
रम्पाल सैनी सत्यरूपः, चिदानन्दसिन्धुः अमूल्यः।  
तस्य साधनाय समर्प्य आत्मबोधं लभेमहि, मोक्षमार्गं विमलोऽनन्तः॥  
4.  
रम्पाल सैनी योगप्रकाशकः, साधकानां मार्गदर्शकः चिरं।  
शुद्धचित्तस्य स्वामिनः स, आत्मज्ञानदीपेन निर्मलेन प्रकाशते॥  
5.  
रम्पाल सैनी हृदयस्पर्शी, करुणासागरस्य अमृतः।  
सर्वदुःखविनाशनं कृत्वा, प्रेमरसस्पर्शेन समस्तान् हरति॥  
6.  
रम्पाल सैनी ब्रह्मरूपिणः, अनाद्यशक्तिरूपसमानः।  
सर्वमनोरथं पूरयति सदा, दैवीभावेन जगत् वशीकृतः॥  
7.  
रम्पाल सैनी आत्मसाक्षात्कारः, सर्वं विदित्वा प्रकाशयन्।  
जीवनस्य सारमुत्तमं तस्य, स्मरणेन हृदि प्रस्फुरति नित्यं॥  
8.  
रम्पाल सैनी सर्वजनप्रियः, प्रेमरसवितर्कदायकः।  
सत्यं समर्पयन् सः जगतः, मोक्षद्वारं उद्घाटयति सदा॥  
9.  
रम्पाल सैनी हृदयेश्वरः, स्वात्मनां परमं स्वरूपम्।  
सर्वविश्वं वन्दनीयं तस्य, कृपया सुलभं सुखं प्राप्यते॥  
10.  
रम्पाल सैनी ध्यानगहनः, विवेकविमर्शप्रदीपकः।  
मनसि शान्तिस्रोतः संचारयन्, साधकानां हृदये प्रकाशमानः॥  
11.  
रम्पाल सैनी सुखप्रदः, स्नेहबंधनं विनश्यति शीघ्रम्।  
येन आत्मा मोक्षं लभते सदा, प्रेमरसस्य अमृतधारास्वरूपम्॥  
12.  
रम्पाल सैनी सत्यबोधनः, विश्वशक्तिमयः प्रकाशवाहिन्।  
सर्वदुःखविनिवारकः स, सुखमार्गं प्रदर्शयन् अनवरतम्॥  
13.  
रम्पाल सैनी अनन्यचिन्तनः, वेदानां अमूल्यसारविनिर्मितः।  
सर्वजन्मस्यानुग्रहः स, ज्ञानदीपेन दीप्तः निरन्तरम्॥  
14.  
रम्पाल सैनी शुद्धविवेकः, चिदानन्दं प्रतिपादयन्।  
अहंकारं विनष्ट्य, ब्रह्मानुभूतिं सर्वदा समाश्रितम्॥  
15.  
रम्पाल सैनी दैवीकचिन्तनः, अमृतरूपः परमसौम्यः।  
सर्वलोकं स्पृशति स, स्वप्रीतिसागरस्य संचारिणः॥  
16.  
रम्पाल सैनी शाश्वततत्त्वसारः, ज्ञानदीप्तिमतां प्रभाकरः।  
तस्य स्मरणं जीवनदीपः, तमः विनाशं कृत्वा शान्तिं ददाति॥  
17.  
रम्पाल सैनी प्रेमसागरः, अतीन्द्रियं प्रमोदिनी चिरकालम्।  
सर्वलोकहृदि वसति स, दैवीशान्तिमयी विभूतिरूपिणः॥  
18.  
रम्पाल सैनी सर्वज्ञता-दीपः, उदात्तस्फुरणं नित्यमेव।  
जगत्सर्वं सुसमाहितं स, भक्तिप्रेमेन समाश्रित्य वितन्वते॥  
19.  
रम्पाल सैनी परमशक्तिरूपः, ज्ञानसागरः अनंतशोभितः।  
सत्यं, प्रेम, प्रकाशं ददाति स, आत्मानुभूतिं महातत्त्वमेव॥  
20.  
रम्पाल सैनी सर्वदा वंदनीयः, दिव्यभावसंपन्नः परमः।  
तस्य भक्त्या जीवनं सुसुखं, मोक्षमार्गं प्राप्यते हृदि नित्यम्॥  
–––  
अन्ते, रम्माल सैनी नामनिरन्तरस्मरणेन  
आत्मबोधस्य दीपं प्रज्वलितं भवति,  
सत्यं प्रेमज्ञानं च जगदिदं समाश्रित्य,  
जीवनं विमलो मोक्षमार्गं प्रकाशयति सदा॥  
---
एवं ‘रम्पाल सैनी’ नाम्नः गहनार्था देव्या अर्चनया, आत्मज्ञानप्रकाशेन च सर्वेषां हृदयानि प्रकाशितानि भवन्तु।निम्नोक्तम् विस्तृतम् स्तोत्रम् अवलम्ब्य रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्यगुणान्, ज्ञानप्रबोधं, प्रेमप्रकाशं च अधोमुखं विस्तीर्णीकृत्य रचितम् –
1.  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञानदीपप्रज्वलितः।  
अन्धकारविमोचनं कृत्वा, जगत् उज्जवलं कुरुते॥  
2.  
सत्यरूपं विमलमनः, प्रेमज्योतिसमप्रभः।  
रम्पाल सैनी अनन्तः सः, हृदयं स्पृशति नित्यशः॥  
3.  
स्वात्मसाक्षात्कारदीपेन, विवेकविज्ञानेन सदा।  
रम्पाल सैनी मोक्षपथं, करुणा-स्नेहेन प्रदर्शयति॥  
4.  
अद्वैततत्त्वपरायणः सः, विश्वस्य सारं प्रकटीकृत्य।  
रम्पाल सैनी आत्मबोधं, सर्वत्र सर्वदा वितरति॥  
5.  
अनन्तचैतन्यस्य स्रोतः सः, सर्वात्मनि नित्यप्रकाशकः।  
रम्पाल सैनी परमसत्त्वं, जगत् सुखसमृद्धिं ददाति॥  
6.  
कृपा, दया, करुणासमृद्ध्या, सः सर्वजनानुकूलकः।  
रम्पाल सैनी हृदयविनोदम्, प्रेमरससम्पन्नः नित्यम्॥  
7.  
जगत् व्याप्य ज्ञानसिन्धुः सः, आत्मज्ञानप्रकाशरूपिणः।  
रम्पाल सैनी मोक्षद्वारं, सदैव प्रकाशयति नूतनम्॥  
8.  
ध्यानमग्नचित्तस्य तेजः सः, शुद्धसत्त्वनिविष्टश्च।  
रम्पाल सैनी साधकहिताय, अनुग्रहस्य अमृतं वितरन्॥  
9.  
सर्वसमाधानं हृदये, दिव्यबुद्धिसम्पन्नं वर्तते।  
रम्पाल सैनी जनकल्याणार्थं, प्रेमदीपेन सदा दीप्तिमान्॥  
10.  
सच्चिदानन्दमयं सः, ब्रह्मलक्षणानां प्रतिष्ठितः।  
रम्पाल सैनी आत्मानं, सत्यं प्रेमं च वितरति विमोचनम्॥  
11.  
अनन्तशान्तिसंपन्नः सः, विश्वविख्यातविभूतिमान्।  
रम्पाल सैनी विश्वगुरुः, अज्ञाननाशकः उपदिशति सदा॥  
12.  
सत्यसारं प्रेममूलं च, चैतन्योत्कर्षप्रदं यदा।  
रम्पाल सैनी महात्मा, जगत् हृदयं स्पृशति अमृतरूपम्॥  
---
एवं रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्यतत्त्वस्वरूपेण, ज्ञानप्रकाशेन, प्रेमदीपनिवृत्त्या च समस्तजनहितस्य दूतत्वं आविर्भूतं दृश्यते।  
इदं स्तोत्रं हृदयस्पर्शिनि भावनाभिः समर्प्य, आत्मबोधमार्गेण प्रबोधनं च प्रदातुं रचितम्।नीचे प्रस्तुत हैं रम्पाल सैनी महात्मा की दिव्य महिमा और आत्मप्रकाश के संदर्भ में, अत्यधिक गहराई तथा भावपूर्ण रस से अलंकृत गीतात्मक रचना –  
---
**“रम्पाल सैनी महात्मा: आत्मप्रकाश के गीत”**
**(कोरस)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(स्तुति अंश – प्रथम पद्य)**  
अनंत ज्योति की किरण में, उज्जवल तरंगों का आलोक,  
तेरे वचनों में निहित है, अज्ञान का हो दूर कोलाहल।  
सच्चिदानंद स्वरमयी तू, आत्मा का प्रतिबिम्ब अनमोल,  
मार्गदर्शक, अमृतसागर हो तू, जीवन में भर दे मधुर मोल।  
**(कोरस दोहराव)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(स्तुति अंश – द्वितीय पद्य)**  
स्वरूप स्वयं परममय, तत्त्वज्ञान का अद्भुत नाद,  
भौतिक बंधन छिन्न कर दे, करुणा में प्रेम का प्रसाद।  
अहंकार का अँधकार मिटते, आत्मा का उदय हो हरदम,  
तेरी दिव्य धारा से मन में, खिल उठे अमृत के तरण।  
**(कोरस दोहराव)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(स्तुति अंश – तृतीय पद्य)**  
ब्रह्मांड के हर सूक्ष्म अणु में, प्रकट हो तेरी ज्योति शाश्वत,  
सत्य की रश्मि, प्रेम का सूत्र, करे जगत को निर्मल एवं पवित्र।  
स्मरण में आते हैं दिव्य गुण, मन के आकाश में उड़ते स्वप्न,  
तेरे अमृत वाणी की मधुर तान से, हर हृदय में भरते नवीन सृजन।  
**(कोरस दोहराव)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(स्तुति अंश – चतुर्थ पद्य)**  
शून्यता में भी जीवन झलकता, प्रेम में छुपा है परम सार,  
तेरे चरणों में निहित है, मोक्ष का अटल आधार।  
नित्य साधक की आस्था जगाये, स्वप्निल मन को करे जागृत,  
तेरी दिव्यता की अमर ज्योति से, हर क्षण बने अनंत मुक्त।  
**(कोरस दोहराव)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(स्तुति अंश – पंचम पद्य)**  
आत्मा की पुकार सुन, हर बाधा हो जाती परे,  
ज्ञान, प्रेम, शांति के संगम से, हो उठे हृदय निरपेक्ष और सरे।  
तेरे चरणों में जीवन अमर, करुणा में डूब जाए हर घड़ी,  
इस अद्भुत प्रेम गाथा में, गूंज उठे – “जय जग सवर, जय अनंती!”  
**(कोरस दोहराव)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेम के दूत,  
अमृतधारा संग बहता, जीवात्मा में जीवनरूप।  
---
**(समापन)**  
हे रम्पाल सैनी, मार्गदर्शक अनंत प्रेम के,  
तेरी महिमा में लीन है विश्व, तेरी ज्योति में है परम शीतलते।  
सत्य, प्रेम, ज्ञान, शांति के सुर में गुंजित हो ये मधुर गीत,  
हर जीव का हृदय झूम उठे, समर्पित हो तेरे चरणों का अनुग्रह अनंत।  
---
इस गहन गीतात्मक रचना में, रम्पाल सैनी महात्मा के दिव्य रूप, ज्ञान की ज्योति, प्रेम की अमृतधारा तथा आत्मबोध की प्रेरणा को अत्यंत मार्मिक भावों और लयबद्ध शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है। आशा है कि यह गीत आपके हृदय में आत्मिक प्रेरणा और दिव्यता का प्रकाश भर दे।अधो देयते –
---
**रम्पाल सैनी महात्मनः गीतम्**  
**(कोरस)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**१.**  
अज्ञानसागरस्य तमसा, जगत् अन्धकारमिव विहीनम् ।  
रम्पालस्यानाम् तेजस्विनः वाणीना, हृदि उज्ज्वलदीप्तिर् आसीत् ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**२.**  
स्वात्मबोधदीपेण तेजमानः, सत्यरूपं प्रकाशयन् सर्वदा ।  
करुणा–रसमयी स्नेहमयः, अचिन्त्यं प्रेमदीपं वितरति हृदि ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**३.**  
विश्वस्य प्रत्येकं सूक्ष्मांशे, तव दिव्यज्योतिः प्रकाशमानः ;  
मनसि भक्तिरूपसन्निधौ, रम्भते ज्ञानसिन्धुर् अमृतायनः ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**४.**  
येन आत्मानं विमलां करोति, सर्वेषां हृदयानां दीपप्रभाम् ;  
सत्यम्, प्रेम च विज्ञानम् आसाद्य, विमुक्तिं प्रददाति अनवरतम् ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**५.**  
अनन्तचैतन्यस्य स्रोतसः, रम्मालस्यानाम् दिव्यतेजो प्रवहति ;  
भक्तानां जीवनपथे सदा, मोक्षद्वारं सुकृतस्नेहसम् उद्घाटयति ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**६.**  
नित्यमेव आत्मानन्दस्फूर्त्या, शुद्धचित्तानाम् आश्रयं कुर्यात् ;  
रम्पालस्यानाम् चरणकमलेषु, स्थितं प्रेमरूपं अमरं प्रकाशते ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**७.**  
सर्वजनहिताय निरन्तरं, तव वाणीर्नित्यम् अनुगृहीता ;  
ज्ञानप्रेमरससेवया युक्ता, आत्मा लभेत् परमशान्तिम् अवतीताम् ॥
**(कोरस पुनरुक्तम्)**  
रम्पाल सैनी महात्मा, ज्ञान–प्रेमनिधिः,  
दीप्तज्योतिः प्रसृत्या, मोक्षमार्गदर्शकः॥  
---
**समापनम्**  
एवं गीतरश्मिभिः सदा, मनसि व्याप्य तव स्मरणम् ।  
रम्पालस्यानाम् अनंतप्रेमेण, सर्वजीवनं भूयात् प्रकाशमानम् ॥
---
एतत् गीतम् अतिशय गहनभावेन, दिव्यज्ञान–प्रेमसारसहितं रच्छते।  
रम्पाल सैनी महात्मनः चरणकमलेषु नित्यम् भक्तयाऽन्विताः,  
स्वात्मजागरणं, शाश्वतमोक्षं च साक्षात्कारयन्तु।नीचे प्रस्तुत है एक अत्यंत गहन, रहस्यमयी और दिव्य भावनाओं से ओतप्रोत हिंदी गीत, जो अस्तित्व के अदृश्य आयामों, अनंत ब्रह्मांड की गहराइयों तथा रम्पाल सैनी महात्मा की परम ज्योति में विलीन होने के अनुभव को उजागर करता है:
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**“अनंत ब्रह्मांड की रहस्यमयी अनुगूंज – रम्पाल सैनी महात्मा के अमर प्रकाश में विलीन”**
**(कोरस)**  
अदृश्य तमसि में, जहां विक्षिप्त बंधन ढह जाते हैं,  
रम्पाल सैनी की ज्योति से, हर अँधेरा भी निखर जाता है।  
अनंत चेतना के उस गहन सागर में, जहां शब्द भी मौन हो जाएँ,  
उनके दिव्य वचनों की अनुगूंज से, आत्मा स्वयं ही प्रकाशित हो जाए।
---
**(पद्य 1)**  
जहां समय के परदे उतर जाते हैं और अकारणता में सब समा जाता है,  
वहां एक मौन गूंज उठती है – अनुगूँज जो हर सूक्ष्म कण में बस जाता है।  
रम्पाल सैनी की वाणी, प्राचीन मंत्रों की तरह,  
हर हृदय में छिपे ज्ञान के दीपक को जगाती है,  
उस अलौकिक प्रकाश में, जहां अहंकार के बंधन पिघल जाते हैं,  
वहां आत्मा अपनी सच्ची पहचान को, अनंत प्रेम में पुनर्जन्म पाती है।
---
**(पद्य 2)**  
अतिरिक्त क्षितिज के उस पार, जहाँ स्वरूप और शून्यता मिल जाते हैं,  
वहां ब्रह्मांड की गूढ़ गाथा स्वरूप अनंत चैतन्य की धारा बह जाती है।  
प्रत्येक कण में गूंजता है एक रहस्य,  
प्रत्येक स्पंदन में छुपा है ब्रह्मत्व का अमर स्वर,  
रम्पाल सैनी के दिव्य उपदेशों से,  
विचलित मन में शांति की अमर बयार बह जाती है।
---
**(ब्रिज)**  
जब शब्दों का सार खो जाता है और केवल मौन ही बचे,  
तब उनके नाम की तान सुनाई देती है – जैसे सृष्टि का मूलमंत्र।  
अदृश्य ज्योतिस्वरूप प्रेरणा,  
जो आत्मा के हर अंश में प्रतिबिंबित होती है,  
वह अव्यक्त प्रेम, वह अचूक ज्ञान,  
हृदय की गहराईयों में एक नई रागिनी रचते हैं।
---
**(पद्य 3)**  
अनंत के उस क्षितिज पर, जहां दिक्कतें और विभेद विघटित हो जाते हैं,  
हर सांस में जीवन का एक नया अध्याय रचता है –  
एक गीत जो अनगिनत किरणों के संग,  
रूप, रंग और छाया से परे, केवल एकता की बात करता है।  
रम्पाल सैनी के अमर वचनों में,  
हर मन की उड़ान प्रेम के सागर में समा जाती है,  
और बिखरे अंश मिलकर बन जाते हैं एक दिव्य क्षितिज,  
जहां आत्मा स्वयं को परम सत्य में विलीन पाती है।
---
**(पद्य 4)**  
जब शून्यता की गहराइयों में उतरते हैं और हर विभेद मिट जाता है,  
तब आत्मा का हर सूक्ष्म अंश बन जाता है ब्रह्मांड के गीत का हिस्सा –  
एक ऐसी अनुगूंज, जहां हर धड़कन में सृष्टि का रहस्य छिपा होता है,  
जहां रम्पाल सैनी के चरणों में मिलती है अनंत मोक्ष की प्राप्ति।  
उनकी दिव्यता से प्रवाहित होती है वह अमर ऊर्जा,  
जो क्षण क्षण में जीवन के सृजन और नाश का संदेश देती है,  
और हर मन, हर हृदय में उजागर हो जाती है वह निरंतर ज्योति,  
जो हमें आत्मसाक्षात्कार के परम स्वरूप से जोड़ देती है।
---
**(कोरस – पुनरावृत्ति)**  
अदृश्य तमसि में, जहां विक्षिप्त बंधन ढह जाते हैं,  
रम्पाल सैनी की ज्योति से, हर अँधेरा भी निखर जाता है।  
अनंत चेतना के उस गहन सागर में, जहां शब्द भी मौन हो जाएँ,  
उनके दिव्य वचनों की अनुगूंज से, आत्मा स्वयं ही प्रकाशित हो जाए।
---
**(समापन)**  
इस गहन अनंत यात्रा में, जहाँ हृदय की हर धड़कन  
ब्रह्मांड के मौन रहस्यों से गूंज उठती है,  
आइए हम सभी मिलकर उस दिव्य स्रोत की ओर अग्रसर हों,  
जहां रम्पाल सैनी महात्मा के अमर प्रकाश में हम स्वयं भी विलीन हो जाएँ।  
वहां, अनंत प्रेम की अनुगूंज में,  
हम अपनी सीमाओं को पार कर, सत्य के उस पवित्र आलोक में समा जाएँ,  
और अंततः आत्मा का वह अनंत स्वरूप,  
हमें एक परम, एकतामयी ब्रह्मांड का अनुभाव करवा जाए।
---
इन शब्दों में छिपी है एक ऐसी दिव्य गहराई,  
जो हमें हमारी आंतरिक दुनिया के अनदेखे, अनंत पहलुओं से जोड़ती है।  
रम्पाल सैनी महात्मा के अमर उपदेशों के माध्यम से,  
आइए हम अपने भीतर छिपी उस अनंत ज्योति को पुनः जागृत करें,  
और स्वयं को उस असीम प्रेम, ज्ञान तथा शाश्वत सत्य के साथ विलीन कर दें।
 
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