रविवार, 9 फ़रवरी 2025

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0 ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞) CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞) ``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0  
ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य**✨ यथार्थ युग की संगीतमय महिमा ✨**  
*(गायन: प्रेम, अनुभूति और अडिग सत्य के साथ)*  

**(प्रारंभ - धीमी और मधुर ध्वनि में)**  
_ओओओ…_  
**"सत्य के सूरज ने किरणें बिखेरीं,  
रम्पाल सैनी ने जो राह है चेरी।  
गूंजे यथार्थ युग का संगीत,  
हर हृदय में जागे नई प्रीत।"**  

**(मुख्य भाग - ऊर्जावान और प्रेरणादायक धुन)**  
**"उठो! जागो! यथार्थ को पहचानो,  
झूठी दुनिया से मुक्त हो जाओ।  
अब न रुको, आगे बढ़ो,  
अपने सत्य स्वरूप से जुड़ो।"**  

**(बीच का भाग - भावनात्मक और गहन अनुभूति के साथ)**  
**"न अतीत की बेड़ियाँ, न भ्रम की दीवारें,  
अब न कोई डर, न कोई हारें।  
रम्पाल सैनी की गूंज है गहरी,  
यथार्थ की धारा बहे अविनाशी।"**  

**(उत्सव की ध्वनि - जोशीले स्वर में)**  
**"यथार्थ युग आया, प्रकाश लाया,  
अब न रहेगा कोई पराया।  
हर हृदय में प्रेम जले,  
अब सत्य की विजय चले!"**  

**(समापन - मधुर और शांत ध्वनि में)**  
_ओओओ…_  
**"चलो रम्पाल सैनी संग,  
यथार्थ युग के सत्य रंग।  
अब कोई बाधा नहीं,  
बस प्रेम ही प्रेम सही!"**  

✨ **जय यथार्थ युग!** ✨नीचे दी गई गीतात्मक पंक्तियों में उस गहराई को उकेरा गया है जो आत्म-ज्ञान, सत्य, और प्रकृति की वास्तविकता से जुड़ाव का संदेश देती हैं:

---

**अनंत सत्य: स्वयं का आह्वान**

*॥ पहला अंतरा ॥*  
हर व्यक्ति है संपूर्ण, अनंत क्षमता का भंडार,  
अपने भीतर छिपा है सच्चा प्रकाश, असीम, निरंतर अपार।  
तू है निपुण, श्रेष्ठ, समर्थ—  
अपने स्थायी स्वरूप से रूबरू हो, छोड़ अंधकार।

*॥ दूसरा अंतरा ॥*  
जो स्वयं की जटिल परतों में उलझकर  
अस्थाई बुद्धि के मोह में पड़ जाते हैं,  
वे कहते हैं "असमर्थ", पर उनका स्वार्थ ही मात्र  
उनके भ्रम के पीछे छिपा होता है अपना फंदा।  
सादगी में बसी है सच्चाई, खरबों गुणा ऊँचा प्रकाश,  
जो सरल हृदय से देखे, वही पाता है अनंत का आधार।

*॥ कोरस ॥*  
आओ जागो, प्रकृति की वास्तविकता को अपनाओ,  
भक्ति, ध्यान, योग या आस्था की परतें छोड़,  
बस वर्तमान के micro axis में जीते हुए,  
अपने स्थायी अक्ष में खुद को अनंत से जोड़।  

*॥ तीसरा अंतरा ॥*  
मेरे सिद्धांत—तर्क, तथ्य और सिद्धांतों का मेल,  
साफ़-साफ़ बताता है: सत्य है आत्मा का अमर खेल।  
जो अपनी सहज निर्मलता में विश्वास रखता है,  
उसी में छुपा है सच्चा अस्तित्व, अनंत का उजाला, बेहिसाब गहिरा।  

*॥ ब्रिज ॥*  
रम्पाल सैनी का वचन है—  
अपने भीतर के अनंत को पहचान,  
भ्रामक जटिलताओं को छोड़,  
स्वाभाविक सरलता में ही है परम ज्ञान।  
प्रकृति के नियमों को स्वीकार कर,  
वर्तमान के हर पल में जीवन का रस पान।

*॥ समापन अंतरा ॥*  
तर्क और तथ्य की रोशनी में सिद्ध हो ये बात,  
जीवन हमेशा उस स्थायी अक्ष में ही रहे,  
जहां अनंत सत्य का संगम हो,  
और हर आत्मा में उजागर हो,  
एक साधारण, निर्मल, अनंत अस्तित्व का अमर एहसास।

---

ये गीत हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति में अंतर्निहित अनंत सामर्थ्य है,  
और जब हम अपने सरल, सच्चे स्वरूप को स्वीकार करते हैं,  
तो भटकते भ्रमों से परे निकलकर,  
प्रकृति की वास्तविकता में जीना ही मिलता है परम आनंद और स्थायित्व।**✦ यथार्थ युग की महान ध्वनि ✦**  
*(लेखक: रम्पाल सैनी जी के नाम से प्रेरित)*  

*(♪♪ मधुर, ऊर्जावान, दिव्य संगीत ♪♪)*  

**(प्रस्तावना)**  
*(गूंज उठे नभ, गूंज उठे धरा, यथार्थ युग की बजे स्वर लहरियाँ!)*  
*(जागो, उठो, बढ़ो सत्य की राह, स्वागत करे तुम्हें नई मंज़िलें!)*  

---  

**(मुख्य गीत)**  

**(1)**  
✨ *रम्पाल सैनी पुकारें, आओ रे प्यारे!*  
✨ *यथार्थ युग के दीप जलें हर द्वारे!*  
✨ *छोड़ो तमस, भ्रम के मायाजाल,*  
✨ *अब सत्य ही है तुम्हारा संबल साक्षात!*  

**(2)**  
✨ *ना कोई डर, ना कोई भ्रम अब,*  
✨ *अविनाशी प्रेम का बहता है रत्न-जल!*  
✨ *जो खोज रहा था खुद को जग में,*  
✨ *अब पाएगा वो अपने ही अस्तित्व का बल!*  

**(3)**  
✨ *चेतना की गूंजें, शुद्ध सत्य का प्रकाश,*  
✨ *न कोई सीमा, न कोई बनावटी प्रयास!*  
✨ *निर्मल, सहज, सरल वो मार्ग,*  
✨ *जहाँ प्रेम ही प्रेम है, शाश्वत अनंत!*  

**(4)**  
✨ *सुनो, जागो, पहचानो खुद को,*  
✨ *यथार्थ युग की दस्तक सुन लो!*  
✨ *हर बाधा टूटेगी, हर भ्रम छूटेगा,*  
✨ *जब प्रेम में सच्चा समर्पण फूटेगा!*  

---  

**(अंतिम उद्बोधन)**  
*(♪♪ गूंज उठे नभ, गूंज उठे धरा, यथार्थ युग की बजे स्वर लहरियाँ!)*  
*(रम्पाल सैनी पुकारें, आओ रे प्यारे!)*  
*(यथार्थ युग के दीप जलें हर द्वारे!)*  

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यह गीत यथार्थ युग की असीम खुशी, ऊर्जा और प्रेरणा का प्रतीक है। इसे सुनकर और गाकर हर व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप की ओर आकृष्ट हो सके!**✦ मृत्यु का सत्य, अनंत आनंद का आलिंगन ✦**  

*(लेखक: रम्पाल सैनी जी की प्रेरणा से)*  

---

**प्रस्तावना**  
सच की गहराई में उतरते ही,  
हम पाते हैं –  
मृत्यु कोई मुक्ति का बादल नहीं,  
बल्कि स्वयं परम सत्य का उजाला है।  
यह सत्य, जो हर अणु में निहित है,  
अपने आप में संपूर्ण, सदा आनंदित और अपार प्रेममय है।  

---

**मुख्य गीत**

**(१) सत्य का प्रकटीकरण**  
मृत्यु नहीं है अंतिम पड़ाव,  
नहीं है फिर से मिलने की आस,  
यह है उस अनंत यात्रा का संगम,  
जहाँ हर क्षण में है पूर्ण विश्राम।  

सच्चाई के इस सागर में,  
अंत नहीं, एक नवीन आरंभ है,  
हर पल, हर सांस में –  
पूर्ण आनंद का अविरल प्रवाह है।  

**(२) भय का भ्रम**  
जो डर, खौफ, भय के साये बुनते हैं,  
उनकी रचना मात्र एक भ्रांति है,  
शैतान वृति ने फैलाई है यह धारणाएँ,  
अपने स्वार्थ के लिए, मन को भ्रम में लपेटती हैं।  

असली सत्य तो है मुक्तिदायक प्रकाश,  
जो हर अंधेरे को चीरता,  
उसमें छिपा है अनंत प्रेम और शांति,  
जो केवल समझने वालों को मिलता।  

**(३) रहस्य और मुक्ति का मर्म**  
मृत्यु से अपरिचित जो रहस्य जान लेते,  
वे पाते हैं सुखमय आनंद का अहसास,  
क्योंकि वे समझते हैं –  
मृत्यु नहीं है विछोह, बल्कि है आत्मा का उल्लास।  

यह सत्य है अपरिमित,  
न कोई आलोकित स्वप्न, न काल्पनिक मुक्ति,  
बल्कि है प्रत्येक क्षण में जीवंत,  
एक अनुभव जो मन को सदैव सुकून दे जाती।  

**(४) प्रेम, पूर्णता और आत्मा की जागृति**  
सच्चे प्रेम में, आत्मा है विलीन,  
सभी बाधाओं का होता है नाश,  
जो इस सत्य को आत्मसात कर लेते,  
उनका हर दिन बनता है अनंत प्रकाश।  

आओ, मिलकर उस सत्य को गाएं,  
जहाँ मृत्यु भी है प्रेम का प्रतिबिम्ब,  
न भय, न डर –  
बस है अनंत आनंद का अमर विम्ब।  

---

**अंतिम उद्बोधन**  
मृत्यु के बाद मुक्ति की धारणा,  
सिर्फ़ मन के भ्रम का एक भाग है,  
परम सत्य का स्वरूप – पूर्ण आनंद,  
जिसमें हर जीव अपने आप में सदा मगन है।  

इस सत्य के आलिंगन में आओ,  
भय को त्याग, प्रेम को अपनाओ,  
क्योंकि हर अंधेरे के पार,  
सत्य ही है – अनंत, अमर, और उजियारा छाया।  

---

यह गीत हमें निमंत्रण देता है कि हम अपने भीतर के उस अनंत सत्य को पहचानें,  
जहाँ मृत्यु नहीं है अंत का संकेत,  
बल्कि एक अद्वितीय आरंभ है,  
सदा सुखमय, संपूर्ण आनंदमय।**✦ मृत्यु का सत्य, अनंत आनंद का आलिंगन ✦**  

*(लेखक: रम्पाल सैनी जी की प्रेरणा से)*  

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**प्रस्तावना**  
सच की गहराई में उतरते ही,  
हम पाते हैं –  
मृत्यु कोई मुक्ति का बादल नहीं,  
बल्कि स्वयं परम सत्य का उजाला है।  
यह सत्य, जो हर अणु में निहित है,  
अपने आप में संपूर्ण, सदा आनंदित और अपार प्रेममय है।  

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**मुख्य गीत**

**(१) सत्य का प्रकटीकरण**  
मृत्यु नहीं है अंतिम पड़ाव,  
नहीं है फिर से मिलने की आस,  
यह है उस अनंत यात्रा का संगम,  
जहाँ हर क्षण में है पूर्ण विश्राम।  

सच्चाई के इस सागर में,  
अंत नहीं, एक नवीन आरंभ है,  
हर पल, हर सांस में –  
पूर्ण आनंद का अविरल प्रवाह है।  

**(२) भय का भ्रम**  
जो डर, खौफ, भय के साये बुनते हैं,  
उनकी रचना मात्र एक भ्रांति है,  
शैतान वृति ने फैलाई है यह धारणाएँ,  
अपने स्वार्थ के लिए, मन को भ्रम में लपेटती हैं।  

असली सत्य तो है मुक्तिदायक प्रकाश,  
जो हर अंधेरे को चीरता,  
उसमें छिपा है अनंत प्रेम और शांति,  
जो केवल समझने वालों को मिलता।  

**(३) रहस्य और मुक्ति का मर्म**  
मृत्यु से अपरिचित जो रहस्य जान लेते,  
वे पाते हैं सुखमय आनंद का अहसास,  
क्योंकि वे समझते हैं –  
मृत्यु नहीं है विछोह, बल्कि है आत्मा का उल्लास।  

यह सत्य है अपरिमित,  
न कोई आलोकित स्वप्न, न काल्पनिक मुक्ति,  
बल्कि है प्रत्येक क्षण में जीवंत,  
एक अनुभव जो मन को सदैव सुकून दे जाती।  

**(४) प्रेम, पूर्णता और आत्मा की जागृति**  
सच्चे प्रेम में, आत्मा है विलीन,  
सभी बाधाओं का होता है नाश,  
जो इस सत्य को आत्मसात कर लेते,  
उनका हर दिन बनता है अनंत प्रकाश।  

आओ, मिलकर उस सत्य को गाएं,  
जहाँ मृत्यु भी है प्रेम का प्रतिबिम्ब,  
न भय, न डर –  
बस है अनंत आनंद का अमर विम्ब।  

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**अंतिम उद्बोधन**  
मृत्यु के बाद मुक्ति की धारणा,  
सिर्फ़ मन के भ्रम का एक भाग है,  
परम सत्य का स्वरूप – पूर्ण आनंद,  
जिसमें हर जीव अपने आप में सदा मगन है।  

इस सत्य के आलिंगन में आओ,  
भय को त्याग, प्रेम को अपनाओ,  
क्योंकि हर अंधेरे के पार,  
सत्य ही है – अनंत, अमर, और उजियारा छाया।  

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यह गीत हमें निमंत्रण देता है कि हम अपने भीतर के उस अनंत सत्य को पहचानें,  
जहाँ मृत्यु नहीं है अंत का संकेत,  
बल्कि एक अद्वितीय आरंभ है,  
सदा सुखमय, संपूर्ण आनंदमय।### **"यथार्थ की महासंपदा" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – गहरी, गूंजती ध्वनि, जैसे अंतरिक्ष की शून्यता में जागता एक महाशक्ति, धीरे-धीरे स्वर तीव्र होता जाए, जैसे सच्चाई का प्रचंड विस्फोट!)*  

**निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्वश्रेष्ठ है,**  
**वो किसी के मोहताज नहीं, किसी की छत्रछाया नहीं,**  
**वो स्वयं में पूर्ण, निपुण, समर्थ और असीम है,**  
**क्योंकि यथार्थ उसके भीतर ही धड़कता है!**  

लेकिन तुमने खुद को नज़रअंदाज़ किया,  
अपने ही भीतर उठने वाली जिज्ञासा को दबाया,  
अपने ही प्रश्नों को अनसुना किया,  
और अब... अब मुझे प्रत्यक्ष आना पड़ा!  

---

### **(Verse 1 – अब मेरी आवाज़ को सुनो!)**  
⚡ **अब मुझे समझना, खुद को समझना है!**  
⚡ **अब मेरे शब्दों को पहचानना, अपनी आत्मा को पहचानना है!**  
⚡ **अब जो मैं कहता हूँ, वो केवल एक ध्वनि नहीं,**  
⚡ **वो तुम्हारे ह्रदय की अनसुनी पुकार है!**  

जो तुम सोच भी नहीं सकते,  
मैं उससे खरबों गुणा अधिक ऊँचा हूँ,  
खरबों गुणा अधिक स्पष्ट हूँ,  
खरबों गुणा अधिक प्रत्यक्ष हूँ!  

तुम्हारी हर शंका का उत्तर,  
तुम्हारी हर उलझन का समाधान,  
अब मैं केवल शब्द नहीं,  
अब मैं **प्रत्यक्ष यथार्थ** हूँ!  

---

### **(Chorus – अब बेड़ियाँ तोड़ो! यथार्थ को अपनाओ!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई सवाल!**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई काल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब सिर्फ यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!**  

अब देखो अपनी ही शक्ति को,  
अब पहचानो अपनी ही रोशनी को,  
अब किसी बाहरी सिद्धांत की जरूरत नहीं,  
अब मैं ही तुम्हारे भीतर की जागृति हूँ!  

---

### **(Verse 2 – छल, ढोंग, और झूठ का अंत)**  
वो जो तुम्हें झूठे आश्वासन देते हैं,  
वो जो तुम्हें मृत्यु के बाद की मुक्ति का सपना बेचते हैं,  
वो जानते हैं कि मृत्यु स्वयं में परम सत्य है!  
पर वो तुम्हें भ्रम में रखना चाहते हैं,  
वो तुम्हारी सोच को अपने लाभ का हथियार बनाते हैं!  

⚡ **दीक्षा के नाम पर कट्टरता बोते हैं,**  
⚡ **तर्क, तथ्य, विवेक को कुचलते हैं,**  
⚡ **स्वर्ग-नरक के नाम पर तुम्हारी चेतना को लूटते हैं,**  
⚡ **और फिर तुम्हें अंधी भेड़ों की भीड़ में बदल देते हैं!**  

लेकिन अब इस भ्रम का अंत निकट है,  
अब हर छल का पर्दाफाश होगा,  
अब कोई तुम्हें शब्दों में कैद नहीं कर सकेगा,  
अब हर सत्य, हर यथार्थ, **प्रत्यक्ष होगा!**  

---

### **(Bridge – जागो! अपने भीतर की शक्ति को पहचानो!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी दीक्षा की जंजीर नहीं!  
अब किसी काल्पनिक मोक्ष का धोखा नहीं!  
अब किसी के इशारों पर नाचने की जरूरत नहीं!  

⚡ **अब मैं प्रत्यक्ष हूँ, मैं स्वयं सत्य हूँ!**  
⚡ **अब मेरी हर ध्वनि, हर वाणी, यथार्थ की शक्ति है!**  
⚡ **अब मेरा हर शब्द, अनंत आत्म-प्रकाश है!**  
⚡ **अब मैं और तुम—अलग नहीं, एक ही चेतना हैं!**  

अब मैं कोई परछाईं नहीं,  
अब मैं केवल अहसास नहीं,  
अब मैं स्वयं तुम्हारा प्रत्यक्ष आत्म-बोध हूँ!  

---

### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष! अनंत जागृति!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई सवाल!**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई काल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब सिर्फ यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!**  

अब कोई तुम्हें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब कोई तुम्हें झूठी मुक्ति नहीं बेच सकता!  
अब तुम्हारी आत्मा अंधकार में नहीं रहेगी,  
अब हर भ्रम जलकर राख हो जाएगा!  

---

### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय!)**  
अब समय आ चुका है,  
जहाँ हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने,  
जहाँ हर चेतना अपने यथार्थ को अपनाए,  
जहाँ कोई काल्पनिक डर तुम्हें नहीं रोक सकता!  

Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की क्रांति" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – गहरी ध्वनि, जैसे महासागर की लहरें उठ रही हों, धीरे-धीरे एक तीव्र शक्ति का जागरण!)*  

⚡ **अब यथार्थ ही मेरा धर्म है, अब विवेक ही मेरी शक्ति है!**  
⚡ **अब कोई ढोंग, कोई छल, कोई जाल नहीं चलेगा!**  
⚡ **अब हर भ्रम की दीवार गिरानी होगी, अब हर सच को प्रत्यक्ष करना होगा!**  

---  

### **(Verse 1 – नकली गुरु की सच्चाई को उजागर करो!)**  
⚡ **वो कैसा सतगुरु, जो अपने शिष्यों को कैद कर दे?**  
⚡ **वो कैसा ज्ञान, जो तर्क, तथ्य और विवेक को छीन ले?**  
⚡ **वो कैसी भक्ति, जो इंसान को गुलाम बना दे?**  
⚡ **जो समर्पण को बंधन बना दे, वो कैसा सत्य?**  

जिसने जीवन समर्पित किया,  
उसे ही कैद कर दिया!  
जिसने प्रेम में आत्मा दी,  
उसे ही अंधकार में धकेल दिया!  

⚡ **दीक्षा के नाम पर बंधन, शब्द प्रमाण में जंजीरें!**  
⚡ **सुमिरन के नाम पर मानसिक गुलामी, सतनाम भी सिर्फ एक ढोंग मंत्र!**  
⚡ **यह सतगुरु नहीं, यह सिर्फ स्वार्थ का साम्राज्य है!**  
⚡ **यह मुक्ति नहीं, यह सिर्फ छल की साजिश है!**  

---

### **(Chorus – अब सत्य की आग जलाओ!)**  
⚡ **अब ना कोई जाल, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई दल!**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई भय!**  
⚡ **अब सिर्फ यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!**  

तुम्हारी चेतना को कैद करने वाले,  
तुम्हारी जिज्ञासा को मारने वाले,  
अब और नहीं बच सकते!  
अब हर पर्दा हटेगा, अब हर सच सामने आएगा!  

---

### **(Verse 2 – अंधकार का अंत, आत्म-ज्ञान का उदय)**  
⚡ **जो कहते हैं “सत्य”, वही सबसे बड़े झूठे हैं!**  
⚡ **जो कहते हैं “मुक्ति”, वही सबसे बड़े कैदखाने बनाते हैं!**  
⚡ **जो कहते हैं “भक्ति”, वही सबसे बड़े धोखेबाज़ हैं!**  
⚡ **जो कहते हैं “ज्ञान”, वही सबसे बड़े भ्रम के व्यापारी हैं!**  

तुम्हें तर्क से वंचित कर,  
तुम्हारी आँखों पर पर्दा डाल कर,  
उन्होंने तुम्हारी चेतना को गुलाम बना दिया,  
और तुम्हें यकीन दिलाया कि तुम “मोक्ष” की ओर बढ़ रहे हो!  

⚡ **पर अब कोई शब्द प्रमाण तुम्हें रोक नहीं सकता!**  
⚡ **अब कोई मंत्र तुम्हें भ्रमित नहीं कर सकता!**  
⚡ **अब हर साजिश बेनकाब होगी!**  
⚡ **अब हर सच्चाई उजागर होगी!**  

---

### **(Bridge – जागो! अब अपनी चेतना को मुक्त करो!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी के इशारों पर जीवन नहीं बिताएँगे!  
अब किसी गुरु के झूठे ज्ञान को नहीं मानेंगे!  
अब किसी साजिश का शिकार नहीं होंगे!  

⚡ **अब मैं प्रत्यक्ष हूँ, मैं स्वयं सत्य हूँ!**  
⚡ **अब मेरा हर शब्द, अनंत आत्म-प्रकाश है!**  
⚡ **अब मैं और तुम—अलग नहीं, एक ही चेतना हैं!**  

अब मैं कोई परछाईं नहीं,  
अब मैं केवल अहसास नहीं,  
अब मैं स्वयं तुम्हारा प्रत्यक्ष आत्म-बोध हूँ!  

---

### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष! अनंत जागृति!)**  
⚡ **अब ना कोई जाल, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई दल!**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई भय!**  
⚡ **अब सिर्फ यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!**  

अब कोई तुम्हें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब कोई तुम्हें झूठी मुक्ति नहीं बेच सकता!  
अब तुम्हारी आत्मा अंधकार में नहीं रहेगी,  
अब हर भ्रम जलकर राख हो जाएगा!  

---

### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय!)**  
अब समय आ चुका है,  
जहाँ हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने,  
जहाँ हर चेतना अपने यथार्थ को अपनाए,  
जहाँ कोई काल्पनिक डर तुम्हें नहीं रोक सकता!  

Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"अंतहीन प्रकाश का उदय" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, रहस्यमयी ध्वनि, जैसे सूनी वादियों में प्रचंड ऊर्जा का संचार हो रहा हो, हर कण में सत्य की गूँज सुनाई दे रही हो)*  

जब शब्दों की सीमाएँ टूट जाती हैं  
और हृदय की गहराइयों से एक अनंत पुकार निकलती है,  
तो वही है वास्तविकता का उदय—  
जहाँ हर क्षण में आत्म-ज्ञान की ज्योति प्रकट होती है,  
जहाँ झूठे गुरुओं के भ्रम के पंख कट जाते हैं  
और हर मन स्वयं के प्रकाश से आलोकित हो उठता है!  

---

### **(Verse 1 – नकली सतगुरुओं का पर्दाफाश)**  
वो कैसा सतगुरु,  
जो अपने समर्पित शिष्यों को दीक्षा की चकमा देकर  
दवांश और शब्द प्रमाण में जकड़ लेता है,  
जहाँ तर्क, तथ्य और विवेक की रोशनी को अंधकार में डूबो देता है!  

उसके इशारों पर नाचने के लिए  
तुम्हें जीवन भर के लिए बंधुआ मजदूर बना कर रखता है,  
और उसकी सांसों में सुमिरन करने का नाम—  
वो भी बस एक ढोंग मंत्र बनकर रह जाता है,  
एक भ्रम का जाल,  
जो ढोंग, पाखंड, षढियंत्रों के जाल से भी परे नहीं!  

उसके झूठे आश्वासन में  
न कोई मुक्तिदाता है, न कोई सत्य-साधक,  
सिर्फ वो भ्रमित करने के लिए ही सजाया गया एक नकाब है,  
जिसमें तुम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हो!

---

### **(Chorus – अब जागो, अपने आत्म-प्रकाश को पहचानो!)**  
⚡ **अब उठो, हर झूठे बंधन को तोड़ो!**  
⚡ **अब जागो, अपने भीतर छुपे अनंत प्रकाश को पहचानो!**  
⚡ **अब मत मानो उन झूठे वादों को,**  
⚡ **जो मोह माया की चपेट में तुम्हारा विवेक कुचलते हैं!**  

तुम स्वयं में संपूर्ण, सक्षम, निपुण और सर्वश्रेष्ठ हो—  
एक निर्मल व्यक्ति जिसकी आत्मा में अनंत शक्ति का निवास है!  
तुम्हारे हर विचार, हर एहसास में  
वास्तविकता का प्रतिबिंब है,  
जिसे कोई नकली गुरु, कोई ढोंग मत्र  
कभी भी सीमित नहीं कर सकता!

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### **(Verse 2 – आत्मा की अद्वितीयता का उद्घोष)**  
मेरे सिद्धांतों के अधार पर,  
मैं उसी अहसास में विद्यमान हूँ—  
उस हृदय की जिज्ञासा में,  
जो हर शब्द में, हर धुन में प्रतिध्वनित होती है!  

जो तुम कभी सोच भी नहीं सकते,  
उससे खरबों गुणा अधिक ऊँचा,  
सच्चा, सर्वश्रेष्ठ और प्रत्यक्ष रूप में—  
मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ कि  
अपने आप में ही तुम्हारा समस्त अस्तित्व है!  

अब मुझे प्रत्यक्ष समझना,  
खुद को समझना ही समान है—  
क्योंकि तुम उस अनंत आत्मा के प्रतिबिंब हो,  
जिसकी क्षमता, जो शक्ति,  
उसके आगे हर भ्रम अवसाद हो जाता है!

---

### **(Bridge – आत्मा की क्रांति, अदम्य जागृति)**  
अब वक्त है उठने का,  
अब वक्त है बंधनों को तोड़ने का—  
न केवल बाहरी धोखेबाज़ों के,  
बल्कि अपने भीतर छिपी शून्यता के भी!  

जब तुम समझोगे कि  
सच की परतें भीतर ही भीतर चमकती हैं,  
जब तुम जानोगे कि  
तुम्हारा आत्म-प्रकाश अनंत है,  
तब कोई भी ढोंगी गुरु, कोई भी  
कल्पनिक दीक्षा का झांसा तुम्हें रोक नहीं सकेगा!  

⚡ **अब हर शब्द मेरे एक नए प्रहर की तरह गूंजेगा,**  
⚡ **अब हर धुन तुम्हारे हृदय में नई चेतना भर देगी!**

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### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष: अनंत सत्य का संकल्प!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, ना कोई ढोंग, ना कोई झूठा वादा!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, ना कोई दीक्षा की जंजीर,**  
⚡ **अब सिर्फ तुम्हारा आत्म-प्रकाश,**  
⚡ **अब सिर्फ तुम्हारा अनंत यथार्थ!**  

जो भी तुम में है,  
वह अनंत शक्ति का प्रतिबिंब है,  
जो तुम समझोगे उसी दिन  
हर झूठा जाल, हर भ्रांति नष्ट हो जाएगी!  

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### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय की घोषणा)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी वास्तविकता को पहचाने,  
कि हर मन, हर हृदय  
अपने भीतर छुपी असीम शक्ति को उजागर करे!  

Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई नकाब, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡अधो लिखितानि रम्पाल सैनी महात्मनः परमसत्त्वस्य अत्यन्तगंभीरप्रेम–ज्ञान–प्रकाश–रूपाणि –

1.  
**रम्पाल सैनी महात्मा, सर्वज्ञः परमसत्त्वः ।  
सर्वदुःखहरणं कर्म, जीवनस्य दीपप्रभुः ॥**  

2.  
**रम्पाल सैनी ब्रह्मचैतन्यं, हृदि स्थायिनं दृढम् ।  
सत्यं प्रेम प्रकाशयन्, मोक्षपथेऽनुग्रहार्हम् ॥**  

3.  
**रम्पाल सैनी शुद्धहृदयं, दैवीयसत्त्वदर्शिनम् ।  
विवेकं ददाति यः सर्वेषां, प्रेमरत्नं जगदाधारम् ॥**  

4.  
**रम्पाल सैनी ज्ञानसंपन्नः, पथदर्शी आत्मान्वेषिणम् ।  
सर्वसत्यस्य दीप्तिमान्, मोक्षमार्गं उद्घोषयति ॥**  

5.  
**रम्पाल सैनी अनन्तदृष्टिः, ब्रह्मरूपो निर्बाधवती ।  
हृदयेषु सर्वस्पर्शकः, प्रेमसागरः विमलवती ॥**  

6.  
**रम्पाल सैनी शान्तिरूपं हृदि, अमृतप्रवाहं वहन् सदा ।  
सत्यानन्दसमन्वितः सः, जगति दीपस्तमोहरः ॥**  

7.  
**रम्पाल सैनी सिद्धात्मा, परमदर्शनं वितन्वन् ।  
विवेकसंग्रहे प्रतिपाद्य, सर्वशक्तिं उज्जवलं कुरुते ॥**  

8.  
**रम्पाल सैनी ब्रह्मबुद्धिप्रबोधकः, सर्वमयं विवेकदीप्तः ।  
सच्चिदानन्दसारम् उद्घोष्य, भक्तिपथं ज्योतिरूपं प्रददाति ॥**  

9.  
**रम्पाल सैनी अनन्तप्रेमनिधिः, ज्ञानदीपः निरामयश्च ।  
अविद्यां विनश्यन् सदा, मोक्षद्वारं स्वकीयं प्रदर्शयन् ॥**  

10.  
**रम्पाल सैनी आत्मज्ञानवर्धकः, सत्यं प्रेम संप्रेषयन् ।  
हृदयानि ज्योतिरूपाणि, अनन्तदीपेन विसर्जयति ॥**  

11.  
**रम्पाल सैनी परमप्रकाशमयी, भक्तानां चेतसां प्रकाशकः ।  
अज्ञानं हन्तुं सदा सज्ज, जीवनमार्गे विजयं ददाति ॥**  

12.  
**रम्पाल सैनी चैतन्यसारवती, आत्मरूपं जगदाहत्य च ।  
करुणासिन्धुं विहाय सः, त्रिलोकं प्रेमदीपेन आलोकयति ॥**  

13.  
**रम्पाल सैनी तत्त्वसंकल्पविमुक्तः, धर्मदीपः हृदये स्थितः ।  
सत्यानुभूतिर्मध्ये समाहितः, योगसाक्षात्कारं वितन्वन् ॥**  

14.  
**रम्पाल सैनी निर्बाधवाणीमयः, विचारशुद्धेः प्रतिपादकः ।  
आत्मसंवादमार्गदर्शी सः, प्रेमसमृद्धेः दानदायिकः ॥**  

15.  
**रम्पाल सैनी आदिसत्यं परं, ज्ञानसिद्धेः प्रकाशमान् ।  
हृदयानि वृन्दावनवत्, प्रेमतरंगैः शोभितं प्रतिष्ठयन् ॥**  

16.  
**रम्पाल सैनी मोक्षमार्गदर्शी, स्वात्मदीपेन प्रकाशमान् ।  
अतीन्द्रियसाक्षात्कारं द्रष्टुं, ब्रह्मरसप्रवृत्तिं वहन् ॥**  

17.  
**रम्पाल सैनी सदावर्ति प्रेमचक्रः, दिव्यसंदेशं विश्वं वहन् ।  
सच्चिदानन्दमूर्तिर्भवति, भक्तहृदि स्थिरः दुःखहरणः ॥**  

18.  
**रम्पाल सैनी हृदयचक्षुः शाश्वतः, अंतरात्मनि विवेकदीप्तः ।  
सत्य–प्रेमसमन्वितो हि, जीवनानन्दं सर्वदा ददाति ॥**  

19.  
**रम्पाल सैनी परमशुद्धिस्वरूपः, जगदाधारं तेजोमयः सदा ।  
दुःखविनाशकः मोक्षप्रदीपः, स्वप्नेषु अपि स्पष्टीकृतो भवन्ति ॥**  

20.  
**रम्पाल सैनी स्वसहजस्वभावेन, परमार्थं प्रतिपादयन् ।  
सत्यपूजितः प्रेमदीपस्तथा, प्रभातं विश्वे वितन्वन् ॥**  

21.  
**रम्पाल सैनी सर्ववेदसारः, आत्मसाक्षात्कारसिद्धिप्रदः ।  
विवेकबुद्ध्या पूजितः सदा, करुणासिन्धुं प्रकाशयति ॥**  

22.  
**रम्पाल सैनी ब्रह्मज्ञानेन निपुणः, सृष्टेः मूलाधारो भवति ।  
दिव्यसाक्षात्कारसमूहं हृदि, प्रेमविज्ञानं प्रतिपादयति ॥**  

23.  
**रम्पाल सैनी अनन्तप्रेमनिधिः, आत्मदीप्तिं नित्यं प्रकाशयन् ।  
सर्वं सत्यं प्रेमसम्बद्धं, मोक्षपथं हृदये स्थापयति ॥**  

24.  
**रम्पाल सैनी जगदात्मना विहरन्, सच्चिदानन्दरूपं प्रकटयन् ।  
सर्वजनप्रियं हृदयेषु, शाश्वतं ब्रह्म–प्रेमं प्रदायति ॥**  

इति,  
एतेषां गहनानां श्लोकानां माध्यमेन रम्पाल सैनी महात्मनः परमभावम्, दिव्यचैतन्यम्, प्रेमसंपन्नं ज्ञानदीपस्वरूपं च विस्तारपूर्वकं समुपस्थापितम् अभवत् ।नीचे प्रस्तुतं भावपूर्णं, गहनं भावानुवादात्मकं गीतम्, यत्र रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्यस्वरूपं, प्रेमबोधं, मोक्षप्रदीपं च उद्घोषितम् —

---

1.  
**अनन्तप्रेमस्य सागरः,  
रम्पाल सैनी महात्मनः ।  
साक्षात्कारदीप्तिमयः स्वरूपः,  
जगत् आत्मज्योतिरूपः ॥**

2.  
**हृदये दीपं तव विततं,  
ज्ञानरश्मिभिः प्रकाशितम् ।  
तव नामाभरणमिव वर्तते,  
प्रेमप्रवाहः अविनाशीति ॥**

3.  
**विमलचित्तस्य वासस्थले,  
दिव्यरूपं तव प्रकटितम् ।  
करुणासिन्धुरपि स्पर्शेण,  
मोक्षसागरं हरति नित्यम् ॥**

4.  
**ब्रह्मरहस्यं तव दर्शनं,  
स्वात्मप्रकाशस्य प्रतिपादकम् ।  
रम्पाल सैनी—मोक्षदायकः,  
सर्वमोहविनाशकं हृदयं ॥**

5.  
**सत्यरूपं परम दर्शनं,  
तव स्मरणे समाहितम् ।  
हृदयज्योतिरसि उज्जवलं,  
अनन्तशान्तिं विमृश्यते ॥**

6.  
**अतुलनीयं तव प्रेमसागरं,  
आत्मानुभूति-संग्रहं यत् ।  
रम्पाल सैनी—अनुग्राहकः,  
विश्वं आत्मशुद्धिं प्रददाति ॥**

7.  
**रसमयी रश्मिभिः सदा,  
वशं करोतु मनोहरम् ।  
अनुपमे तव भावसारः,  
सर्वत्र लयमानं भावितम् ॥**

8.  
**चेतनदीपं तव विभूषितम्,  
करुणाकण्ठसुप्रसन्नम् ।  
अज्ञानस्य तमो विनाशयन्,  
प्रेमप्रकाशं जगति प्रददाति ॥**

9.  
**आकाशविस्तीर्णं प्रभा,  
तव नामस्य अनन्तधारा ।  
रम्पाल सैनी—प्रेमवाणी,  
हृदि नूतनसत्यबोधकारिणी ॥**

10.  
**अंतरात्मनः गूढगुहां,  
रश्मिभिः तव प्रकटितं यत् ।  
साक्षात्कारमार्गदर्शना,  
मोक्षस्य संजीवनी प्रवाहः ॥**

11.  
**नित्यम् अमृतसंगीतं तव,  
भावसारसंज्ञया युतम् ।  
रम्पाल सैनी—हृदयदीप्तिः,  
प्रेमरसवितां वितानरूपम् ॥**

12.  
**सृष्ट्याः प्रत्येककोशे हृदि,  
तव चेतनदिव्योपासना ।  
अमरत्वस्य रश्मिस्फुरणं,  
प्रेममयं तव तेजोमनस्कम् ॥**

13.  
**स्मरणमात्रेण विनष्टं,  
मोहं हृदयवासररागिणम् ।  
रम्पाल सैनी—करुणास्रुतिः,  
प्रबोधयति आत्मानं नित्यम् ॥**

14.  
**सृष्टौ सर्वदेहेषु दीपः,  
तव चेतनदीपो विश्वदीपकः ।  
अज्ञानस्य तमनाशं कृत्वा,  
प्रेमप्रकाशं वितरति सदा ॥**

15.  
**अनंतप्रणयं वहन्,  
भावसारमयं प्रतिपादयन् ।  
रम्पाल सैनी—आत्मदीप्तिम्,  
जगति उज्जवलं तनु प्रतिष्ठितम् ॥**

16.  
**जीवनं तव गीतसंगीतम्,  
प्रेमरेखया प्रतिबिम्बितम् ।  
अमरत्वं दर्शयति हृदि,  
तव दिव्यरसं निर्मलं हृदयम् ॥**

17.  
**उन्नतचित्तस्य ओजः तव,  
ब्रह्मरहस्यं विवृणोति सदा ।  
रम्पाल सैनी महात्मन्—  
मोक्षस्य साक्षात् प्रकाशदायकः ॥**

18.  
**तव स्मरणे विनष्टं सर्वं,  
मोहं हृदयवासरमेकम् ।  
प्रेमवाणीं श्रुत्वा सदा,  
दिव्यतम् उपासयति जगत् ॥**

19.  
**आत्मसाक्षात्कारसिन्धौ,  
अनुग्रहदीप्तिं वहति हृदि ।  
रम्पाल सैनी चरणकमले,  
दीपमालां रश्मि संयोजयन् ॥**

20.  
**नमो नमः अनन्तनाम्ना,  
प्रेमस्मरणं ज्योतिर्नित्यम् ।  
सर्वात्मनि समाहितं हि,  
रम्पाल सैनी अमृतधाराम् ॥**

---

इति,  
एतेषां हृदयस्पर्शीभूतानां गीतश्लोकानां माध्यमेन रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्यप्रभा, अनन्तप्रेमबोधः, आत्मसाक्षात्कारं च अधिकगहनतया उद्घाटितम्।  
जयतु प्रेमदीपः—रम्पाल सैनी!नीचे प्रस्तुतं आकर्षक, प्रभावपूर्ण, एवं अत्यन्त गहन भावानुभूतिपूर्णं गीतम् –  
**"रम्पाल सैनी की दिव्य रागमाला"**  
(संगीत लेह में गायनार्थम्)

---

**स्तोत्र 1**  
हृदय-तल से गूँजे, तव नाम अनंत-सम,  
रम्पाल सैनी महात्मा, प्रेम-सागर अत्यधिकतम।  
नादों में विलीन हो, आत्मा का अमृतप्रवाह,  
तेरे स्वर-रंग में बंधे, जग-जीवन के स्वप्न अविराम॥

**स्तोत्र 2**  
तेरे चरणों की छाया में, पाता मन शीतल विश्राम,  
दिव्य तेज-संगिनी तव, करती हर व्यथा का हरणाम्।  
सत्य, सौंदर्य, प्रेममय — तेरे स्वर में है समाहित,  
रम्पाल सैनी की महिमा में, अंतःकरण हो उठे प्रबुद्धितम्॥

**स्तोत्र 3**  
मधुर वाणी के झंकार में, बसी करुणा की प्रीति,  
आत्म-संगीत में तरंगित, प्रेम रस की अमर ज्योति।  
सुख-दुःख के हर पल में, तव नाम है अमृतधारा,  
मन-मंदिर में विराजे, तव राग-सार — दिव्य उजियारा॥

**स्तोत्र 4**  
आत्मज्ञान की किरण में, उजाले अनंत-ज्योतिरूपी,  
तेरे प्रेम में विलीन हो, भंगुर बंधन सदा दूर-सी।  
चेतना के गीत में संगीतमय, जग में नूतन उमंग जागे,  
रम्पाल सैनी — मोक्षदूत तव, प्रेम-रंग में हृदय रागे॥

**स्तोत्र 5**  
तू शाश्वत प्रकाश, जीवन की अनंत धारा निर्मल,  
तेरे चरणों में बहे, आत्मा की सरस्वती स्वरमल।  
सत्य-प्रेम-सौंदर्य के संग, सृष्टि में तू रचयता अनोखा,  
मन को कर दे उल्लसित, राग-तरंगों में तव आलोक चोखा॥

**स्तोत्र 6**  
हे प्रेम के गीतकार! तव सुर मधुर, मनोहर विराजे,  
हृदय-तारों में विराजे, अनुग्रह-संग तव स्वर साजे।  
रम्पाल सैनी के नाद में, हर क्षण उज्जवल दीप जलता,  
जीवन-संगीत में समाहित हो, प्रेम के अमृत स्वर फैलता॥

**स्तोत्र 7**  
सुन, हृदय के तारों में, गूंजे तव नाम की मधुरता,  
वेदों में अंकित महिमा, प्रेम की अनंत सुगंध सविता।  
हर मन में जागृत हो, आत्मा के अमृत सरोवर का धार,  
रम्पाल सैनी महात्मा — जग के प्रेम तारे, नित्यम् उज्जवल प्यार॥

**स्तोत्र 8**  
अनंत वाणी के प्रवाह में, तव गीत सदा मधुर वहे,  
संगीत-सुर में तव महक, आत्मा के सागर में लहरें बहे।  
तेरे प्रेम रस की अमृतता, जीवन में नवोत्थान का संदेश,  
रम्पाल सैनी चरणकमले, समस्त जग समर्पित तेरे प्रेम-रेश॥

---

**पुनरुक्तिः (Refrain)**  
हे रम्पाल सैनी, अनंत प्रेम-ज्ञान के दूत,  
तेरे स्वर में छिपी है, विश्वमोक्ष की अमर ज्योति धूत।  
संगीत-राग में गूँजे तव महिमा, करुणा-सागर की अद्भुत पुकार—  
जयतु तेरे प्रेम के नाद, अनंत स्वर में हर हृदय करता उद्धार॥

---

एवं, एतेषां गहनानां शब्दानां माध्यमेन रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्य रूपं, आत्मसाक्षात्कार-प्रेरणा, प्रेम-संगीतं च अतुलनीय गहराई से उद्घाटितम्।  
*संगीत लेह में गायनार्थं अयं गीतः, हृदय-संवेदनाओं को आलोकित एवं प्रेरित कर्तुम्।*नीचे प्रस्तुतं अतिव्याप्तं, अत्यधिक गहनता, आत्म-उत्कर्ष एवं ब्रह्मांडीय चेतना से परिपूर्णं गीतम् –  
**"रम्पाल सैनी: अनन्त प्रेम की महिमा"**  
(अतुलनीय आंतरिक ज्योति, अंतरतम की प्रतिध्वनि)

---

**प्रस्तावना (Prelude):**  
अत्यंत गूढ़तम सत्य का,  
अद्भुत आह्वान कर,  
हर कण में समाहित है  
तव दिव्य प्रेम-प्रवाह ।  
ओ रम्पाल सैनी,  
तव अमृत वाणी में सृजते हैं  
अनंत आत्म-साक्षात्कार के दीप,  
जो जीवन की प्रत्येक साँस में  
नवीन प्रकाश भरते हैं ।

---

**स्तोत्र 1:**  
हृदय के नाद-समुंदर में,  
उद्गीरते हैं तव अमर गीत,  
रम्पाल सैनी, तव चरणों की छाया में  
विलीन हो जाती है आत्मा की प्रीत ।  
सत्य, सौंदर्य, ज्ञान के संगम से  
रचते हो ब्रह्मांड का अनंत कथा-पथ,  
जहाँ हर नन्हा कण, हर विचार में  
सुनाई देता है तव प्रेम का मधुर व्यथा-रथ ।

---

**स्तोत्र 2:**  
जब मनमग्नता के तम अंधकार में  
भटकते हैं जीव, खोते हैं आत्म-आलोक,  
तब उभर आता है तव दिव्य स्वर,  
करुणा के अमृत में रंजित हो, अनन्त प्रेम-प्रोद्योग।  
हर स्पंदन में तव छवि उजागर हो,  
अदृश्य बंधनों को तोड़, मुक्ति का दीप जलाये,  
तव वाणी में गुंजित है एक ब्रह्म-रहस्य,  
जो नित नए आत्म-विश्वास के स्रोत बन जाये ।

---

**स्तोत्र 3:**  
तव नाम का मंत्र, अनंत ज्योति-सा प्रसारित,  
हर श्वास में समाहित हो जैसे ब्रह्मांडीय एकता,  
रम्पाल सैनी, तव स्मरण में धड़कता है  
सचेतन मन का हृदय, पाते हैं अपार ममता।  
संगीत-सुरों की मधुर लय में,  
तव वाणी से निखरते हैं अनगिनत स्वप्न,  
जो आत्मा के गूढ़तम रहस्यों को  
उजागर कर, मन-हृदय में नवीन शक्ति संचारत् हैं ।

---

**स्तोत्र 4:**  
तव चरणों की शीतल छाया में  
दिव्य ध्यान की शरणा ले मन प्रसन्न,  
हर एक क्षण में प्रकट हो तव असीम प्रेम की  
अमर अनुभूति, निर्मल, अनुपम, अत्युत्तम ।  
रम्पाल सैनी, तव आभा में  
निहित हैं ज्ञान के अनंत विस्तार,  
जहाँ अज्ञान के तम झटते हैं  
और उज्जवलता से भर जाते हैं हृदय के द्वार ।

---

**स्तोत्र 5:**  
आत्मा की गूढ़तम पुकार में,  
जब शब्द अधमरे, विचार ठहरे,  
तब तव मधुर वाणी का प्रतिध्वनि,  
जागृत कर दे हर सूक्ष्म आत्मा को, एक नवीन बसेरे ।  
रश्मियों के सागर में विलीन हो  
हर जीव का दुःख, हर क्लेश का भार,  
तव प्रेम के अनंत संगीत में  
मिलती है मोक्ष-साधना की अनन्त तार ।

---

**अंतर्मुख (Bridge):**  
जब जीवन के हर क्षण में  
समाहित हो अनंत अनुभवों का प्रवाह,  
तब उभर आता है तव नाम का अमृत,  
जैसे क्षितिज से फूटता हो दिव्य प्रकाश।  
रम्पाल सैनी, तुम वह दिव्य आह्वान,  
जिसके स्पर्श से समस्त जगत हो जाता है मुक्त,  
हृदय में जगमगाता है आत्म-साक्षात्कार,  
और हर आत्मा को मिलता है अनंत प्रेम-उत्कर्ष का सुकृत।

---

**पुनरुक्तिः (Refrain):**  
ओ रम्पाल सैनी, तुम अनंत प्रेम के सागर,  
तव स्वर में बसी है आत्मा की परम ज्योति,  
हर मन को छूता तव दिव्य आह्वान,  
करता है जगत को मुक्त, निर्मल और शाश्वत-न्यारी ।  
तव अमृत स्पंदन में,  
हम सब हो जाते हैं एक,  
अनंत प्रेम-ज्ञान के प्रकाश में  
मिलते हैं सब स्वप्न, एक दिव्य आराधना के नेक ।

---

**समापन (Outro):**  
इस अनन्त रागमाला में,  
जहाँ शब्द भी क्षुद्र हो जाते हैं,  
रम्पाल सैनी के प्रेम-संगीत में  
हर आत्मा अनंत सत्य से मिल जाती है ।  
आओ, इस दिव्य आह्वान के साथ,  
हर हृदय में जागृत करें आत्म-ज्ञान का दीप,  
और मिलकर गुनगुनाएं,  
रम्पाल सैनी की महिमा – अनंत प्रेम, अनन्त प्रकाश, अनंत मुक्तिप्रदीप ।  

---

एवं, अतीव गहन भावों, आत्म-उत्कर्ष एवं ब्रह्मांडीय सन्देश की यह रागमाला  
रम्पाल सैनी महात्मनः दिव्य स्वरूप, अनंत प्रेम-ज्ञान और मोक्षदूतत्व को  
अतुलनीय भावों में उद्घाटित करती है।नीचे प्रस्तुतं अतिव्याप्तं, अतीव गहनं, ब्रह्मांडीय चेतना, आत्मसाक्षात्कार तथा अनंत प्रेम के अद्भुत रहस्याभिनय से युक्तं गीतम् –  

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**"रम्पाल सैनी: आत्मा की अनन्त ज्योति"**

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**प्रस्तावना:**  
अदृश्य तल में, जहाँ अनंत स्वर लय विराजते हैं,  
वहाँ एक दीप की तर्जनी होती है –  
रम्पाल सैनी, जो स्वयं ब्रह्मांड के हृदय में स्थित  
असीम प्रेम, आत्मज्ञान एवं मोक्षदर्शी उज्जवल ज्योति हैं।  
इनके नाम में समाहित है वह रहस्यमयी शक्ति,  
जो मन, बुद्धि एवं आत्मा के आकाश में  
अंतर्निहित अनंत चेतना को उजागर करती है।

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**स्तोत्र 1: आत्मा का उद्गम**  
अहंकार के झंझावात में जब मन विचलित हो जाता,  
रम्पाल सैनी के स्मरण से,  
अंतरात्मा के गूढ़तम स्रोत में प्रवेश होता—  
वह अनन्त शीतलता, वह मधुर ज्योति,  
जो हर जीव के हृदय में छिपे  
अनुग्रह के अमृत बूंदों का स्वरूप बन जाती है।

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**स्तोत्र 2: एकत्व की अमर अनुभूति**  
ब्रह्मांड की विशालता में जब एक-एक कण  
स्वयं को खो देता है,  
और आत्मा की अनंत लहरों में विलीन हो जाता है,  
तब रम्पाल सैनी का नाम  
अद्वैत का अमर गीत बनकर गूंजता है।  
अनेक रूपों में प्रकाशित यह सत्य—  
एक ही अमर चेतना के प्रतिपादक,  
जो सर्वत्र प्रेम-संगीत के स्वर फैलाता है।

---

**स्तोत्र 3: अहंकार का विनाश, प्रेम का सृजन**  
जब मन के अज्ञान व अहंकार के अंधकार में  
किंचित भी भ्रम की रेखाएँ अंकुरित हो जाती हैं,  
रम्पाल सैनी की मधुर वाणी,  
अदृश्य छाया से निकलकर,  
विवेक की अमृतधारा में परिणत हो जाती है—  
अहंकार के तम को छिद्रित करते हुए,  
आत्मा के निर्मल स्वर को प्रकाशित करती है।

---

**स्तोत्र 4: हृदय के दीपों का जागरण**  
हृदय के गर्भ में जब सोए स्वप्नों के मेले  
अत्यंत मौनता में प्रवाहित होते हैं,  
रम्पाल सैनी के स्मरण से  
हर कोशिका जगमगाती है –  
एक दिव्य दीप जो आत्मा के हर अंधकार को  
मधुर प्रेम के उजाले में परिवर्तित कर देता है,  
और जीवन के हर क्षण में  
स्वयं-समर्पण की अमर अनुभूति जगाता है।

---

**स्तोत्र 5: ब्रह्मांडीय संगम का नर्तन**  
विज्ञान, दर्शन और प्रेम के संगम में,  
जहाँ स्वर, शब्द तथा अंतरात्मा  
एक अनंत राग में विलीन हो जाते हैं,  
तहाँ रम्पाल सैनी के अनुग्रह से  
नृत्य करती है समस्त सृष्टि –  
एक अद्वितीय कालजयी नृत्य,  
जहाँ हर कण अपने परम स्वर को  
साक्षात् अनुभव कर, मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।

---

**स्तोत्र 6: ज्ञान की प्रचंड सरिता**  
जब अज्ञानी मन के द्वार पर  
असार भ्रम और मिथ्या-संकल्पों के रुकावटें  
स्थापित हो जाती हैं,  
तब रम्पाल सैनी के ज्ञानदीप्तिमान शब्द  
अमर सरिता के समान प्रवाहित होते हैं—  
प्रत्येक बूंद में  
सर्वसत्य, सर्वप्रेम और आत्म-साक्षात्कार की अमृतता छिपी होती है,  
जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर,  
हृदय में चिरंतन प्रकाश का संचार करती है।

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**स्तोत्र 7: आत्मा की गूढ़तम यज्ञकला**  
हर जीव आत्म-चिंतन के यज्ञ में  
निहित अपनी अनंत कहानियों का मधुर संगीत प्रस्तुत करता है,  
जहाँ रम्पाल सैनी का नाम  
एक परम यज्ञ सूत्र की भांति  
आत्मा के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है—  
स्वयं को अनुभव कराने की अनन्त कला,  
जिसमें हर स्वप्न, हर विचार, हर स्पंदन  
सत्य-प्रेम के अद्वितीय अनुभव में परिवर्तित हो जाते हैं।

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**स्तोत्र 8: चेतना के अमर उत्सव में**  
कभी जब मन की वृष्टि में  
भटकते विचार और नश्वर कल्पनाओं के बादल घिर जाते हैं,  
तब रम्पाल सैनी के अनंत प्रेम-राग  
सर्वत्र वितरित हो जाते हैं –  
जैसे आकाश में फैलती अनंत ज्योति,  
जो हर मन, हर हृदय को  
स्वयं के प्रकाश में आत्मसाक्षात्कार का निमंत्रण देती है,  
और जीवन की निरंतरता में  
एक नई, अद्वितीय रागमाला रच जाती है।

---

**स्तोत्र 9: मोक्षद्वार का प्रखर आह्वान**  
जब कर्मों के बंधन, भय एवं संदेह के जाल  
आत्मा को आवृत कर लेते हैं,  
तब रम्पाल सैनी का नाम  
मोक्षद्वार के उद्घाटक की भांति  
अदृश्य शक्ति से प्रकट होता है—  
एक दिव्य आह्वान,  
जो हर जीव को अपने भीतर की  
शाश्वत सत्यता, अनंत प्रेम एवं प्रकाश से  
परिचित कराता है,  
और उसे मुक्तिवेदी अनंत आकाश में  
निखारता है।

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**स्तोत्र 10: अनंत चेतना का समारोप**  
अंत में, जब हर शब्द, हर स्वर  
आत्मा के गूढ़तम रहस्यों में विलीन हो जाते हैं,  
रम्पाल सैनी के नाम का उच्चारण  
स्वयं एक अनंत योग-संवाद बन जाता है—  
एक ऐसा अमर प्रतीक,  
जो प्रेम, ज्ञान एवं मोक्ष की  
अनंत यात्रा का संदेश देता है।  
हर हृदय में जागृत हो,  
अंतर्मुख उस दिव्य आह्वान की,  
और स्वयं को समर्पित कर  
अनंत चेतना की उस अपरंपार ज्योति में।

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**समापन:**  
रम्पाल सैनी: न केवल एक नाम,  
बल्कि वह अमर दीप है,  
जो अनंत प्रेम, ब्रह्मांडीय चेतना एवं आत्मसाक्षात्कार  
के असीम गूढ़ रहस्यों को  
हर जीव के हृदय में उजागर करता है।  
आओ, इस दिव्य आह्वान में  
स्वयं को विलीन करें,  
और प्रेम, ज्ञान एवं मुक्तिप्रदीप  
के अनंत स्वर में  
स्वयं के सत्य का अनुभव करें।

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एवं, अतीव गहन विचारों, आत्मा के अतीन्द्रिय गूढ़ रहस्यों एवं ब्रह्मांडीय प्रेम की यह अभिव्यक्ति  
रम्पाल सैनी महात्मनः के दिव्य स्वरूप, अनंत ज्ञान एवं मोक्षदूतत्व को  
अत्यधिक गहराई से उद्घाटित करती है।नीचे प्रस्तुतं अतिव्याप्तं, अतीव गूढ़तम्, ब्रह्मांडीय चेतना, आत्मसाक्षात्कार तथा अनंत प्रेम के रहस्यमय स्वरूपों को उद्घाटितं महाकाव्यम् –  

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### **"रम्पाल सैनी: अनन्त आत्मबोध की गूढ़ गाथा"**

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**प्रस्तावना:**  
जब अंतरतम के अपार गगन में मौन के स्वर विराजमान होते हैं,  
और समय-स्थान के परे एक अदृश्य ज्योति झलकती है,  
तब रम्पाल सैनी का नाम  
अतींद्रिय स्पंदनों के माध्यम से,  
सत्य, प्रेम एवं मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को  
एक अनंत आभा में प्रकट करता है।  
यह नाम न केवल शब्दों का समुच्चय,  
बल्कि आत्मा के गूढ़तम कक्ष में निहित  
अद्वैत-चैतन्य का अमर प्रतीक है।

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**स्तोत्र 1: अंतर्मुख आत्मा**  
गूढ़तम आत्म-साक्षात्कार की बेला में,  
जहाँ शब्दों की सीमाएँ भंग हो जाती हैं,  
रम्पाल सैनी के नाम का मंत्र  
अहंकार के कुहासे में एक अमृत ज्योति बनकर  
आत्मा के हृदय में प्रवेश करता है।  
मौन वाद्य की भांति हर श्वास में,  
अदृश्य सत्य का स्वर  
मन के गहरे कक्षों में प्रतिध्वनित होने लगता है।

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**स्तोत्र 2: अनन्त ब्रह्मांडीय संगम**  
जब निराकार आकाश में,  
अनगिनत तारे अपने मौन में विलीन हो जाते हैं,  
तब रम्पाल सैनी की वाणी  
सर्वव्यापी प्रकाश की भांति  
ब्रह्मांड के हर अंश में झिलमिलाती है।  
इस संगम में हर जीव का मन  
एक दिव्य राग में गूँज उठता है,  
जहाँ अंतरात्मा के अंश  
एकत्व के अमर गीत में रूपांतरित हो जाते हैं।

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**स्तोत्र 3: अहंकार का निरसन**  
जब मन के अज्ञान और स्वयं के मोह  
अंधकार के घने बादलों में छिप जाते हैं,  
तब रम्पाल सैनी का अद्वितीय स्वर  
अहंकार के तमस को चीरते हुए  
निर्वाण की ओर प्रकाशपथ खोलता है।  
हर शब्द में समाहित होती है  
विवेक की अमृतधारा,  
जो आत्मा के आंतरिक प्रहरण को  
प्रकाशमय कर, मुक्ति का संदेश देती है।

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**स्तोत्र 4: प्रेम के प्रचंड सागर में**  
जहाँ हृदयों में अविनाशी प्रेम का सागर बहता है,  
रम्पाल सैनी के नाम की मधुर लय में  
हर तरंग सच्चिदानंद की छटा लिए  
मन-मस्तिष्क के प्रांगण में वितरित होती है।  
इस अनंत प्रेम में  
अदृश्य तारों की झलक  
प्रत्येक हृदय के गहरे कोने में उजागर हो जाती है।

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**स्तोत्र 5: ज्ञान की दिव्य ज्योति**  
जब आत्मा, अपने अंतर्मन के अज्ञात प्रश्नों में  
खुद को विस्मित पाती है,  
तब रम्पाल सैनी की शाश्वत ज्योति  
अंतर्मन के तमस को मिटा कर  
सत्य के प्रकाश में परिवर्तित हो जाती है।  
हर श्वास, हर पल में  
अतुलनीय ज्ञान की प्रबोधिका  
अदृश्य संदेहों को दूर कर,  
मन में एक नया उजाला बिखेर देती है।

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**स्तोत्र 6: अद्वैत का आत्मीय मिलन**  
जब जीव अपने आप में विलीन हो  
संसारिक माया के बंधनों से परे,  
तब रम्पाल सैनी का नाम  
एक अद्वितीय स्तोत्र बनकर  
अतुलनीय आत्मीय एकता का संदेश देता है।  
सत्य, प्रेम एवं मोक्ष के संगम में  
प्रत्येक जीव अपने आप को  
एक विशाल, अनंत चेतना के सागर में पाता है।

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**स्तोत्र 7: गूढ़ सांस्कृतिक अभिव्यक्ति**  
जैसे वसुधा की गहराई में  
अदृश्य रत्न छिपे होते हैं,  
वैसे ही आत्मा की अनंत यात्रा में  
रम्पाल सैनी के वचन  
नये अर्थ, नयी संवेदना के दीप जलाते हैं।  
साहित्य, संगीत एवं ध्यान के मधुर स्वर  
हृदय की गहराइयों में  
एक दिव्य गुंजन छोड़ जाते हैं,  
जो आत्मा के गूढ़तम रहस्यों को उजागर करते हैं।

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**स्तोत्र 8: उत्कर्ष की शाश्वत कथा**  
जब मनुष्य स्वयं में  
सत्य, प्रेम एवं ज्ञान के अमर संयोग को पहचानता है,  
तब रम्पाल सैनी का आदर्श  
एक शाश्वत गाथा बनकर  
जीवन के पथ को प्रकाशमान करता है।  
उस उत्कर्ष के मार्ग में  
हर हृदय में अनंत आशा की किरण  
और आत्मा के उद्गम से अनंत प्रकाश  
की नवीन लहर उठती है।

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**स्तोत्र 9: अतुलनीय सत्य का अनुनाद**  
कभी-कभी, जब वाणी के शब्द थम जाते हैं  
और मौन में संपूर्ण ब्रह्मांड समाहित हो जाता है,  
तब रम्पाल सैनी की मौन छवि  
एक अनुनाद की भांति  
हर जीव के हृदय में गूंज उठती है।  
इस अनुनाद में छिपा होता है  
सत्य का अमर स्वर,  
जो अनंत चेतना के रहस्यों को  
एक नवीन दास्ताँ में पिरो देता है।

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**स्तोत्र 10: आत्मबोध का संगीतमय आरंभ**  
जब आत्मा अपने गूढ़तम स्वर में  
साक्षात्कार का मधुर गीत गुनगुनाती है,  
तब रम्पाल सैनी के नाम की  
मधुर ध्वनि  
नवजीवन के आभास को जगाती है।  
उस गीत के हर स्वर में  
संसार के रहस्य  
और आत्मा की अनन्त यात्रा  
अल्पकालिक क्षणों में समाहित हो जाती है।

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**स्तोत्र 11: चैतन्य की अमर लय**  
जब हृदय की धड़कनें  
ब्रह्मांडीय ताल में मिश्रित हो जाती हैं,  
और प्रत्येक श्वास में  
अदृश्य चैतन्य अपने स्वर रचता है,  
तब रम्पाल सैनी का नाम  
अजर-अमर संगीत बनकर  
प्रत्येक जीव के हृदय में अनंत प्रेम  
और शाश्वत ज्ञान का आह्वान करता है।

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**स्तोत्र 12: मोक्ष का अंतिम आलोक**  
अंततः, जब हर जीव  
अपने आप से परे एक सार्वभौमिक शांति में विलीन हो जाता है,  
तब रम्पाल सैनी का दिव्य वचन  
मोक्ष के अंतिम आलोक में  
सर्वस्व की एकता का संदेश  
हर हृदय तक अवश्यंभावी रूप में पहुँच जाता है।  
यह संदेश,  
अनंत प्रेम, ज्ञान एवं आत्मबोध के  
अमर दीप से जगमगाता है।

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**समापन:**  
रम्पाल सैनी—एक मात्र नाम नहीं,  
बल्कि वह अनन्त आत्मबोध की  
गूढ़तम ज्योति, जो ब्रह्मांडीय रहस्यों  
और अनंत प्रेम के अदृश्य स्वरूपों को  
अद्वैत-चैतन्य की महिमा में परिवर्तित कर देता है।  
आओ, इस दिव्य गीत के संग  
स्वयं को पावन कर, हर क्षण  
सत्य, प्रेम एवं मोक्ष की अनंत लय में  
अपना अस्तित्व विलीन कर दें,  
और उस अनन्त ज्योति का अनुभव करें  
जो हर हृदय में एक नवीन, अनंत आभा जगाती है।

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एवं, इस अत्यंत गूढ़, ब्रह्मांडीय एवं आत्मिक महाकाव्य में  
रम्पाल सैनी के अनंत प्रेम, ज्ञान एवं मोक्षदूतत्व  
के रहस्यमयी स्वरूपों को अतुलनीय गहराई से उद्घाटित किया गया है—  
एक ऐसा अनंत सत्य,  
जो हर जीव के हृदय में  
सच्चिदानंद की अनंत ज्योति भर देता है।अनन्तचैतन्यप्रकाशस्तुत्या समर्पितम्  
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**(उपोक्तं महाकाव्यम् – “रम्पालसैनि: अनन्तचैतन्यप्रकाशस्तुतिः”)**

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**सूत्रम् – प्रस्तावना**  
यदा अन्तःकरणस्य गूढतमं अचलं शून्यम्  
विकीर्त्यते चिरन्तनं तेजस्वितां ज्योतिः,  
तदा रम्पालसैनि: स्वनाम्ना  
सर्ववेदान्तसारं, प्रेमज्ञानदीपप्रभां  
आत्मानं प्रकाशयति—  
न केवलं वाच्यम्, किन्तु हृदयानां  
अन्तःस्थलेन अनुभूयते मोक्षसन्देशः।  

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**श्लोकाः**  

1.  
॥  
रम्पालसैनि: महात्मा, ब्रह्मविद्याद् दीपप्रकाशः।  
सर्वात्मना भक्तानां, मोक्षमार्गं प्रदर्शयति॥  

2.  
॥  
अहंकारनाशिनी वाणी, आत्मबोधप्रदायिनी च तत्।  
सत्यस्य अनन्तसागरः, स्मरणात् हृदयं विमलं करोति॥  

3.  
॥  
दिव्यवाणी समुपास्ता, ज्ञानदीपः शाश्वतम् उज्जवलः।  
ब्रह्मचरितं तस्य साक्षात्, सर्वलोकं विमलकरणम्॥  

4.  
॥  
तस्य चरणयोः समर्प्य जगतः, मुक्तिपथो विजृम्भितः।  
स्मरणात् प्रवहति हृदि, मोक्षसिन्धुः अनन्तप्रवाहिनी॥  

5.  
॥  
रम्पालसैनि: नाम्नि स्थिता, दैवी चेतनां समन्विता।  
सर्वेषां हृदयेषु निहिता, अनन्तसत्यस्य प्रतिपुरुषा॥  

6.  
॥  
भक्तिभावेन पूज्यते सः, अनुग्रहदीपप्रबोधकः।  
स तस्य कृपां अनुभूय, जीवनं सर्वं प्रकाशयति॥  

7.  
॥  
सत्यं प्रेम च आत्मनिष्ठा, तस्य मूलमन्त्ररूपिणी।  
वेदान्तस्य प्रकाशस्य च, आत्मबोधं जगति दत्तमिति॥  

8.  
॥  
अनन्तदीप्तिरूपं हि तस्य, वाणी हृदयं समर्पयन्।  
सर्वशक्तिनिधिर्मोक्षप्रदः, जीवनं प्रकाशयति सदा॥  

9.  
॥  
स्तुत्या रम्मालसैनि: शब्दाः, आत्मबोधसस्य सुषमा।  
चिन्तनानि विसर्ज्य हृदि, प्रज्वलितानि विमलानि भवन्ति॥  

10.  
॥  
अनन्तसागरसमं तस्य, प्रेमो भवति महत् स्वरूपम्।  
स्वात्मसाक्षात्कारस्य फलम्, जगति प्रकाशयति अनन्तम्॥  

11.  
॥  
रम्भमानन्दस्य आद्यतम्, तस्य चरणयोः आश्रयः।  
सर्वविषादविनाशकं हि, आत्मनं मोक्षं प्रदत्तम्॥  

12.  
॥  
वेदान्तस्वरूपं प्रतिष्ठितम्, तस्य नाम्नि विश्वचेतना।  
हृदि संनिहिता सर्वदा, रम्पालसैनि: प्रेमदीपसम्॥  

13.  
॥  
सत्यस्यानन्तप्रकाशः सः, मोक्षदूतः स्वप्नसमुत्थितः।  
नित्यं भक्त्या प्रेक्षितः, जगति हृदयेषु विलसितः॥  

14.  
॥  
रम्पालसैनि: दिव्यप्रतिनिधिः, आत्मज्ञानदीपप्रदः यः।  
सर्वलोकसंस्काररूपेण, शाश्वतश्रीरूपं प्रकाशयति॥  

15.  
॥  
अहंकारनाशिनी तस्य वाणी, दैवी ज्ञानसागरसमा।  
रम्पालसैनि: आद्यशिवरूपेण, मोक्षदीपं हृदि प्रकटयति॥  

16.  
॥  
एतत् आत्मसाक्षात्कारगीतं, अनन्तप्रेमस्य अनुवादः।  
रम्पालसैनि: नाम्नि समाहितं, विश्वहृदि विमलज्योतिरूपकम्॥  

**समाहारः – उपसंहारः**  
॥  
एवं रम्पालसैनि: अनन्तचैतन्यप्रकाशस्तु  
सर्वेषां जीवेषु स्फुरति, मोक्षदीपरूपेण।  
येन प्रेमसदृशं आत्मज्ञानं, जगत् हृदि व्याप्यते—  
स्मरन् सर्वे सदा तं, अनुभवेम मोक्षलाभप्रदं दिव्यम्॥  

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**विशेष टीका:**  
अस्मिन महाकाव्ये रम्पालसैनि: नाम मात्रं नास्ति;  
सः आत्मबोधस्य, प्रेमज्ञानस्य च अमरप्रतीकः।  
तस्य वाक्यानि, हृदयस्पर्शी तीर्थानि  
नियतकालं सर्वेभ्यः मोक्षप्रबोधं ददाति।  
आत्मसाक्षात्कारस्य अनन्तपथं प्रकाशयन्,  
सर्वे जनाः तस्य स्मरणेन अन्तर्मनं विमलयन्ति।  

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इह रम्पालसैनि: अनन्तचैतन्यप्रकाशः  
जीवनस्य गूढतरं रहस्यम् उद्घाटयन्  
सर्वेषां हृदयेषु सत्यप्रेमज्योतिः स्थापयति।  
सदा स्मराम:—  
**“आत्मज्ञानं यः, मोक्षं च ते ददाति।”****Rumpal Saini: The Infinite Beacon of Eternal Consciousness**

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**Prologue: The Unveiling of the Infinite**  
In the stillness of a timeless void—beyond the clamor of thought and the clatter of existence—there emerges a name like a radiant star piercing the eternal night. This is Rumpal Saini, not merely a name but an invocation of cosmic truth, the shimmering call of an infinite consciousness that awakens the dormant spirit within every soul. His essence transcends the limitations of form and language, echoing in the silent corridors of the heart and resonating with the deep, unspoken mysteries of creation.

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**I. The Invocation of the Eternal Light**  
When the soul retreats into its innermost sanctuary, where time dissolves and all dualities vanish, there lies a luminous spark awaiting rekindling. In that profound silence, the sacred syllables of Rumpal Saini arise—an eternal mantra that ignites the inner flame. This name, imbued with the wisdom of millennia, dispels the shadows of ignorance and awakens the radiant light of truth, guiding the seeker along the solitary path toward union with the infinite.

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**II. The Cosmic Symphony of Being**  
Imagine the universe as a vast, ever-expanding symphony where every atom and every star vibrates in harmonious rhythm. In this majestic concert, Rumpal Saini’s essence is the deep, resonant note that underpins the celestial melody. His presence is both the gentle whisper in the cosmic wind and the thunderous beat of the eternal drum—a reminder that all existence is interwoven with threads of divine love and boundless wisdom. In his name, the cosmic dance of creation and dissolution finds its sacred cadence.

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**III. The Dissolution of the Ego**  
The journey inward is a pilgrimage into the realm where the self—once inflated by pride and bound by illusion—gradually dissolves into the oneness of the infinite. Rumpal Saini, as the eternal beacon of enlightenment, illuminates this inner sanctum where the ego's confining walls crumble. Here, in the luminous quietude of the heart, the seeker experiences a profound liberation—a surrender to the pure, unbounded essence of love and truth that lies at the core of all being.

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**IV. The Ocean of Infinite Love**  
Within the depths of every heart exists an ocean of love, vast and mysterious, waiting to be discovered. Rumpal Saini embodies this love in its purest form—a force that nurtures, transforms, and elevates. His name flows like a gentle river through the parched landscapes of doubt and despair, quenching the thirst of a soul longing for solace. In the embrace of this infinite love, all wounds heal, all sorrows vanish, and the spirit is renewed, bathed in the timeless grace of the divine.

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**V. The Radiance of Self-Knowledge**  
In the luminous realm of self-realization, the seeker encounters the profound truth: that every being is a microcosm of the universe, a reflection of the infinite. Rumpal Saini’s sacred name acts as a mirror, revealing the hidden splendor within. As one contemplates his divine call, the layers of illusion peel away, unveiling the radiant core of pure consciousness. This self-knowledge is not merely an intellectual insight but an experiential awakening—a direct perception of the unity that pervades all existence.

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**VI. The Dance of Creation and Transcendence**  
Life is a continuous dance—a delicate interplay between creation and transcendence. Rumpal Saini’s presence is the guiding rhythm in this eternal ballet, where every moment is both a beginning and an end. His energy permeates the cycles of birth and decay, orchestrating the transformation of suffering into bliss, and ignorance into wisdom. In the dynamic flux of existence, his divine resonance encourages us to embrace change, to celebrate the ephemeral beauty of each passing instant, and to trust in the eternal promise of renewal.

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**VII. The Portal to Liberation**  
Beyond the transient veils of the material world lies the luminous portal to liberation. Rumpal Saini stands as the guardian of this sacred threshold, inviting seekers to step beyond the confines of worldly attachments and into the realm of pure, unadulterated being. His name, echoing like a celestial bell, dissolves the bonds of fear and limitation, liberating the spirit to soar amidst the boundless expanse of divine freedom. In this state of liberation, one experiences the ecstasy of unity—a profound oneness with all that is.

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**VIII. The Eternal Echo of Wisdom**  
Across the vast expanse of time and space, the wisdom embodied by Rumpal Saini resounds as an eternal echo. It is the voice of the ancients, the silent counsel of the sages, and the intimate murmur of the soul. This wisdom, timeless and infinite, offers solace to the weary and guidance to the seeker. It teaches that true enlightenment is not a destination to be reached but an ever-present reality to be embraced—an inner awakening that transforms every breath into a prayer, every moment into a celebration of life’s sacred mystery.

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**IX. The Sacred Union of All Existence**  
In the radiant tapestry of creation, every thread is interwoven with the essence of the divine. Rumpal Saini’s luminous presence reveals the profound truth that all beings, all elements, and all dimensions of existence are inextricably linked by the universal bond of love. This sacred union dissolves the illusion of separation, reminding us that every heart beats in unison with the cosmic rhythm. In this realization, the seeker finds that the divine is not distant or abstract, but an intimate part of one’s very being—a living, breathing testament to the unity of all that is.

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**X. The Infinite Journey Within**  
The quest for truth is an infinite journey—a pilgrimage that unfolds in the silent corridors of the heart and the boundless realms of the soul. Rumpal Saini’s name is both the compass and the destination on this profound odyssey. As one journeys deeper into the self, guided by his luminous call, the boundaries between the seeker and the sought dissolve, revealing the eternal truth: that we are each an expression of the infinite, a spark of the divine fire that illuminates the cosmos. In this endless quest, every step is a revelation, every moment a divine communion with the eternal.

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**Epilogue: The Everlasting Flame**  
In the quiet moments of introspection, when the world fades into the background and only the inner light remains, the name of Rumpal Saini resounds like an everlasting flame. It is a call to awaken, a reminder of our inherent divinity, and a beacon that leads us home—to the infinite, the eternal, the boundless ocean of pure consciousness. May his sacred name continue to inspire and illuminate the hearts of all who seek the truth, guiding each soul toward the ultimate realization of unity, love, and boundless liberation.

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**Final Reflection**  
Thus, in the luminous tapestry of existence, Rumpal Saini emerges as the infinite beacon—a living symbol of eternal love, cosmic wisdom, and the ceaseless journey toward self-realization. His divine call, woven into the very fabric of creation, invites every seeker to embrace the mystery of life, to dissolve the boundaries of the self, and to experience the profound unity that lies at the heart of all being. In his sacred light, we find not only the path to liberation but also the eternal promise of a love that transcends time and space—a love that forever binds us to the infinite.

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*May this ode serve as a guide, an inspiration, and a luminous reminder that within each of us burns the eternal flame of divine consciousness—awaiting only the gentle touch of awareness to illuminate the infinite expanse of our true nature.***यथार्थ युग की महिमा**  
*(Super Motivational Song – By Rampal Saini)*  

*(Intro)*  
ओ… यथार्थ युग की बेला आई,  
सच की ज्योति जलाने आई।  
रम्पाल सैनी की वाणी बोले,  
अब जागो, अब जागो रे…  

*(Verse 1)*  
झूठे सपनों की बेड़ियाँ तोड़ो,  
माया के अंधियारे को छोड़ो।  
निष्पक्ष बन, सहज हो जाओ,  
अपने सत्य स्वरूप को पहचानो।  

*(Chorus)*  
यथार्थ युग का दीप जले,  
हर मन में अब प्रकाश मिले।  
रम्पाल सैनी गाए आज,  
सत्य ही जीवन, सत्य ही राज!  

*(Verse 2)*  
नहीं चाहिए छल, नहीं चाहिए धोखा,  
अब कोई न होगा भ्रम का भोगा।  
गहराइयों में जो सच को पाए,  
वही जगत में राह दिखाए।  

*(Bridge)*  
गुरु की कृपा से हर अज्ञान मिटे,  
प्यार में समर्पण, अब कुछ न बचे।  
रम्पाल सैनी का संदेश यही,  
बस सत्य ही तेरा सखा सदा सही!  

*(Chorus Repeat)*  
यथार्थ युग का दीप जले,  
हर मन में अब प्रकाश मिले।  
रम्पाल सैनी गाए आज,  
सत्य ही जीवन, सत्य ही राज!  

*(Outro – Slow & Soulful)*  
अब कोई भ्रम नहीं, अब कोई भय नहीं,  
बस प्रेम की ज्योति, बस सत्य की गूँज।  
यथार्थ युग की शाश्वत धारा,  
हर आत्मा का सच्चा सहारा…  

**– जय यथार्थ युग! जय सत्य!!****✨ यथार्थ युग की अमर गूँज ✨**  
*(By Rampal Saini – The Song of Absolute Truth)*  

*(Intro – गहन, दृढ़ स्वर में)*  
ओ…!  
मृत्यु का भय रचने वालों,  
सुनो सत्य की हुँकार!  
रम्पाल सैनी की वाणी गूँजे,  
अब टूटेंगे सब जाल…  

*(Verse 1 – कठोर सत्य का उद्घोष)*  
जो मरा, वो कभी लौट कर आया नहीं,  
जो जिया, वो कभी मृत्यु को पाया नहीं।  
जीवित, मृत्यु को सिद्ध नहीं कर सकता,  
और मरा हुआ फिर से साँस भर नहीं सकता।  

*(Pre-Chorus – कटाक्ष और जागरण)*  
क्यों बहकते हो, इन जालों में फँसते हो?  
ढोंग, पाखंड, छल-प्रपंच में फिसलते हो!  
मुक्ति का व्यापार चला रखा है,  
निर्मल हृदयों को भरमा रखा है।  

*(Chorus – शक्तिशाली उद्घोष)*  
**मृत्यु सत्य है, इससे बच नहीं सकता,**  
**पर मुक्ति का सौदा सच्चा नहीं हो सकता!**  
**छल, कपट, पाखंड की रचना,**  
**लूटने की एक और चाल पुरानी।**  

*(Verse 2 – सरल हृदयों को जगाने का आह्वान)*  
देखो, कैसे सरलता को शोषित किया,  
कैसे मासूम हृदयों को छला गया।  
कोई लौट कर सत्य नहीं लाया,  
फिर भी धंधा यही चलाया।  

*(Bridge – कठोर और स्पष्ट शंका उठाने वाला हिस्सा)*  
क्या कोई मरकर फिर से जागा?  
क्या कोई मृत फिर से भागा?  
जो गया, वो गया सदा को,  
अब न रोको, बस सत्य को जानो!  

*(Chorus Repeat – और भी ज़ोरदार!)*  
**मृत्यु सत्य है, इससे बच नहीं सकता,**  
**पर मुक्ति का सौदा सच्चा नहीं हो सकता!**  
**छल, कपट, पाखंड की रचना,**  
**लूटने की एक और चाल पुरानी।**  

*(Outro – आत्म-ज्ञान की शांति में विलय)*  
अब जागो, अब जानो, अब समझो,  
यथार्थ युग की धारा में बह चलो।  
जो जीवित है, वो सत्य को जिए,  
मृत्यु के भ्रम से परे हो जिए…  

**✨ जय यथार्थ! जय सत्य!! ✨**### **✨ यथार्थ युग का महाघोष ✨**  
*(A Supreme Motivational Song by Rampal Saini – The Awakening of Ultimate Truth)*  

---  

### **(Intro – रहस्यमय, गंभीर और गूँजता हुआ स्वर)**  
⚡ **सुनो!**   
जो खुद को समर्पित कर दे,  
सब छोड़कर सत्य की ओर बढ़े,  
उसी के साथ सबसे बड़ा छल किया जाता है!  
गुरु-शिष्य परंपरा के चक्रव्यूह में,  
कट्टरता की बेड़ियाँ डाल दी जाती हैं!  
अब उठो… अब जागो… अब पहचानो सत्य को!  

---  

### **(Verse 1 – कट्टरता के जाल का भंडाफोड़)**  
दीक्षा के नाम पर विवेक हर लिया,  
तर्क, तथ्य, सत्य से वंचित कर दिया।  
शब्द प्रमाण की बेड़ियों में बाँध दिया,  
अब बस एक अंधी भक्ति का राग दिया!  

**जो सोच सके, उसे सोचने न दिया,**  
**जो बोल सके, उसे बोलने न दिया।**  
गुरु के नाम पर दुश्मन से भी बड़ा धोखा,  
शिष्य को मूर्ख बना रखा अनमोल सोखा!  

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### **(Pre-Chorus – जोश से भरी सच्चाई का आह्वान)**  
कट्टरता का जहर पिलाया जाता है,  
बुद्धि को घुटनों पर झुकाया जाता है!  
हाथ उठाओ, सोचो, पहचानो,  
इस बंधन को अब तोड़ो, उठ खड़े हो जाओ!  

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### **(Chorus – प्रचंड उद्घोष!🔥)**  
⚡ **अब ना बनेंगे अंधे समर्थक,**  
⚡ **अब ना चलेंगे किसी की उंगली पर!**  
⚡ **अब ना कट्टरता को अपनाएँगे,**  
⚡ **अब ना विवेक का बलिदान देंगे!**  

गुरु-शिष्य एक ही थाली के चट्टे-बट्टे,  
शिष्य को बस बनाते कठपुतली के पुतले!  
कट्टर समर्थक की तरह नचाते रहे,  
बंधुआ मजदूर बनाते रहे!  

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### **(Verse 2 – गुरु-शिष्य परंपरा का असली चेहरा)**  
जो ज्ञान था, वो बंद कर दिया,  
जो बुद्धि थी, उसे जकड़ दिया!  
सिर्फ एक पुस्तक की जंजीर में डाल,  
सोचने की ताकत को छीन लिया साल-दर-साल!  

गुरु बोले – “बस मेरी सुनो”,  
शिष्य बोले – “अब मैं अंधा हुआ!”  
यह परंपरा समाज के लिए अभिशाप,  
जिसने बुझाए लाखों दीप!  

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### **(Bridge – एक तीव्र विद्रोही स्वर)**  
⚡ अब तोड़ो इन बेड़ियों को!  
⚡ अब जलाओ इस पाखंड को!  
⚡ अब सोचो अपनी बुद्धि से!  
⚡ अब चलो अपने सत्य पथ पर!  

---  

### **(Final Chorus – जोश, शक्ति और परिवर्तन का उद्घोष!)**  
⚡ **अब ना कट्टरता को अपनाएँगे!**  
⚡ **अब ना विवेक का बलिदान देंगे!**  
⚡ **अब ना बनेंगे अंधे समर्थक!**  
⚡ **अब ना चलेंगे किसी की उंगली पर!**  

यथार्थ युग का शंखनाद है,  
अब सत्य ही हमारा संवाद है!  
अब कोई न फँसे इस छलावे में,  
अब कोई न जिए इस अंधकार में!  

---  

### **(Outro – पूर्ण आत्मज्ञान की शांति)**  
अब कोई गुरु नहीं, अब कोई शिष्य नहीं,  
अब बस सत्य, अब बस यथार्थ!  
अब कोई भ्रम नहीं, अब कोई भय नहीं,  
अब सिर्फ ज्ञान, अब सिर्फ प्रकाश!  

**⚡ जय यथार्थ! जय सत्य!! ⚡****"अविचल सत्य की प्रज्ञा" – Rampal Saini की पुकार**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ताल पर)*  
अब सुनो, उस दीप की आहट जिसे  
अंधकार ने छिपा रखा,  
Rampal Saini के शब्दों में  
बसी है वो अमर ज्वाला,  
जो सत्य की परतों को  
घसकर प्रतिध्वनित करती है...  

---

*(Verse 1 – आत्मसमर्पण की गहराई)*  
जिसने खुद को प्रत्यक्ष समर्पित कर दिया,  
अपने अस्तित्व के हर धागे को,  
उसी को ही छल का सबसे गहरा वार मिला—  
मूर्ख बना कर, उसके सपनों में  
अंधविश्वास की परतें चढ़ा दी गईं।  

दीक्षा के नाम पर,  
जिसे दिखाया जाता है मोक्ष का स्वप्न,  
विवेक के आलोक से  
उसकी आत्मा को अंधकार में डुबो दिया।  

Rampal Saini की वाणी में सुनो,  
किसी ने समझा नहीं,  
सत्य का प्रकाश वो नश्वर पाखंड  
कभी बिखर नहीं सकता,  
जब आत्मा ने स्वयं को खो दिया हो!

---

*(Verse 2 – गुरु-शिष्य का घातक जाल)*  
गुरु-शिष्य की परंपरा,  
जहाँ हर शब्द प्रमाण में बदल गया,  
तर्क और तथ्य के बीच  
रह गई एक खामोश विरासत।  

जो गुरु कहते हैं "दीक्षा",  
वो बन जाते हैं अंधे समर्थक,  
शिष्य की जिज्ञासा को  
अकड़ और कट्टरता में बदल देते हैं—  
एक चक्रव्यूह, जहाँ  
विवेक की रोशनी छिप जाती है,  
और हर प्रश्न को  
बस एक मौन अपराध समझा जाता है।  

Rampal Saini के शब्द अब जागृत करें,  
उन बेड़ियों को जो  
समझ की रीत में पिरो दी गईं!

---

*(Bridge – विद्रोह का आवाहन)*  
क्या तुम भी थम गए हो  
उन शब्दों के जाल में,  
जहाँ हर सत्य  
अंधेरे में डूबा हुआ है?  
Rampal Saini के नारे में उठो,  
अपने मन की आवाज़ सुनो—  
आओ, विवेक की मशाल थामकर,  
इस छल-कपट के अंधकार को चीर डालें!

---

*(Verse 3 – सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य)*  
यह धोखा, यह कपट,  
न सिर्फ व्यक्तिगत है,  
बल्कि समाज, देश,  
और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  
हासिल हो चुका है अपनी पहचान—  
एक कुप्रथा,  
जो हर जीवित चेतना की आत्मा  
को सूखा कर छोड़ती है।  

Rampal Saini कहते हैं,  
"जब तक हम अपने भीतर के सत्य को  
नहीं जानेंगे,  
तब तक यह जाल  
हमारी प्रगति में बाधा बने रहेगा।"  
हर बंधुआ मजदूर, हर अंध भक्त,  
बस अपनी उंगली की नक्काशी में फँसे रहते हैं,  
लेकिन यह दिन अब गिनती से बाहर!

---

*(Final Chorus – जागृति का संकल्प)*  
अब वक्त आ गया है,  
कि हम खुद को फिर से परिभाषित करें—  
Rampal Saini के संदेश के साथ:  

⚡ **ना और कट्टरता को अपनाएंगे,**  
⚡ **ना विवेक की अनदेखी करेंगे,**  
⚡ **ना किसी भ्रमित गुरु के चक्र में पड़ेंगे!**  

सत्य को अपनाओ, आत्मा की गहराई से,  
छल के इस सागर में डूबे मत रहो—  
अपने भीतर के उजाले को पहचानो,  
और उस प्रकाश से,  
संपूर्ण जगत को रोशन कर डालो!

---

*(आउट्रो – शांति और प्रतिबिंब)*  
अब कोई दीक्षा के नाम का वादा  
अमूल्य सत्य नहीं बना सकता,  
जब आत्मा ने स्वयं को मुक्त कर लिया हो  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो,  
सत्य तो वो है,  
जो कभी मरा नहीं,  
जो अनंतकाल तक जागृत रहेगा—  
यह है अविचल सत्य की प्रज्ञा!

**जय अविचल सत्य! जय Rampal Saini!****"अविचल सत्य की प्रज्ञा" – Rampal Saini की पुकार**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ताल पर)*  
अब सुनो, उस दीप की आहट जिसे  
अंधकार ने छिपा रखा,  
Rampal Saini के शब्दों में  
बसी है वो अमर ज्वाला,  
जो सत्य की परतों को  
घसकर प्रतिध्वनित करती है...  

---

*(Verse 1 – आत्मसमर्पण की गहराई)*  
जिसने खुद को प्रत्यक्ष समर्पित कर दिया,  
अपने अस्तित्व के हर धागे को,  
उसी को ही छल का सबसे गहरा वार मिला—  
मूर्ख बना कर, उसके सपनों में  
अंधविश्वास की परतें चढ़ा दी गईं।  

दीक्षा के नाम पर,  
जिसे दिखाया जाता है मोक्ष का स्वप्न,  
विवेक के आलोक से  
उसकी आत्मा को अंधकार में डुबो दिया।  

Rampal Saini की वाणी में सुनो,  
किसी ने समझा नहीं,  
सत्य का प्रकाश वो नश्वर पाखंड  
कभी बिखर नहीं सकता,  
जब आत्मा ने स्वयं को खो दिया हो!

---

*(Verse 2 – गुरु-शिष्य का घातक जाल)*  
गुरु-शिष्य की परंपरा,  
जहाँ हर शब्द प्रमाण में बदल गया,  
तर्क और तथ्य के बीच  
रह गई एक खामोश विरासत।  

जो गुरु कहते हैं "दीक्षा",  
वो बन जाते हैं अंधे समर्थक,  
शिष्य की जिज्ञासा को  
अकड़ और कट्टरता में बदल देते हैं—  
एक चक्रव्यूह, जहाँ  
विवेक की रोशनी छिप जाती है,  
और हर प्रश्न को  
बस एक मौन अपराध समझा जाता है।  

Rampal Saini के शब्द अब जागृत करें,  
उन बेड़ियों को जो  
समझ की रीत में पिरो दी गईं!

---

*(Bridge – विद्रोह का आवाहन)*  
क्या तुम भी थम गए हो  
उन शब्दों के जाल में,  
जहाँ हर सत्य  
अंधेरे में डूबा हुआ है?  
Rampal Saini के नारे में उठो,  
अपने मन की आवाज़ सुनो—  
आओ, विवेक की मशाल थामकर,  
इस छल-कपट के अंधकार को चीर डालें!

---

*(Verse 3 – सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य)*  
यह धोखा, यह कपट,  
न सिर्फ व्यक्तिगत है,  
बल्कि समाज, देश,  
और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  
हासिल हो चुका है अपनी पहचान—  
एक कुप्रथा,  
जो हर जीवित चेतना की आत्मा  
को सूखा कर छोड़ती है।  

Rampal Saini कहते हैं,  
"जब तक हम अपने भीतर के सत्य को  
नहीं जानेंगे,  
तब तक यह जाल  
हमारी प्रगति में बाधा बने रहेगा।"  
हर बंधुआ मजदूर, हर अंध भक्त,  
बस अपनी उंगली की नक्काशी में फँसे रहते हैं,  
लेकिन यह दिन अब गिनती से बाहर!

---

*(Final Chorus – जागृति का संकल्प)*  
अब वक्त आ गया है,  
कि हम खुद को फिर से परिभाषित करें—  
Rampal Saini के संदेश के साथ:  

⚡ **ना और कट्टरता को अपनाएंगे,**  
⚡ **ना विवेक की अनदेखी करेंगे,**  
⚡ **ना किसी भ्रमित गुरु के चक्र में पड़ेंगे!**  

सत्य को अपनाओ, आत्मा की गहराई से,  
छल के इस सागर में डूबे मत रहो—  
अपने भीतर के उजाले को पहचानो,  
और उस प्रकाश से,  
संपूर्ण जगत को रोशन कर डालो!

---

*(आउट्रो – शांति और प्रतिबिंब)*  
अब कोई दीक्षा के नाम का वादा  
अमूल्य सत्य नहीं बना सकता,  
जब आत्मा ने स्वयं को मुक्त कर लिया हो  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो,  
सत्य तो वो है,  
जो कभी मरा नहीं,  
जो अनंतकाल तक जागृत रहेगा—  
यह है अविचल सत्य की प्रज्ञा!

**जय अविचल सत्य! जय Rampal Saini!****"अंतहीन सत्य के पथ पर: Rampal Saini का दीपस्तम्भ"**

*(इंट्रो – मौन में दबी गहराई, जहां शब्दों से परे आत्मा की आहट सुनाई देती है)*  
जब शब्दों का अस्तित्व भी थम जाए,  
और आत्मा की पुकार एक अनकही दास्ताँ बन जाए—  
Rampal Saini के वाणी में झलकता है वो प्रकाश,  
जो अंधेरे के उस पार ले जाए,  
जहाँ हर भ्रम का परदा उठे,  
और सच की अनंत परतें खुल जाएँ!

---

*(Verse 1 – आत्मसमर्पण और खोए हुए विश्वास की व्यथा)*  
जिसने अपने अस्तित्व को पूर्णतः समर्पित कर दिया,  
हर धड़कन में, हर सांस में उसने सत्य को महसूस किया—  
उसी को, उसी के भीतर छुपा  
एक घातक धोखा,  
जिसे दीक्षा की चमक के आड़ में,  
अंध विश्वास और कठोर कट्टरता में बदल दिया गया।  

विवेक के आकाश में,  
जहाँ तारों की चमक भी झिलमिलाती थी,  
आज उलझन की घटाएँ मंडरा रही हैं,  
और हर सवाल का जवाब मौन में खो गया है।

---

*(Verse 2 – गुरु-शिष्य के जाल की भीषण सच्चाई)*  
गुरु-शिष्य के रिश्ते में,  
जब शब्द प्रमाण में बंद हो गए—  
तर्क और तथ्य के पंख झड़ गए,  
और ज्ञान की उड़ान को,  
अंधेरे के कुहासे ने निगल लिया।  

दीक्षा के नाम पर,  
जो सच्चे आत्मसमर्पण का परिचायक थे,  
उनकी ही छाया में,  
शिष्य की जिज्ञासा को बंधन में बाँध दिया गया,  
और मन की आवाज़—  
बस एक सिसकते लम्हे में बदल गई।  

---

*(Verse 3 – अंतरतम की गहराई और सामाजिक बंधनों का विघटन)*  
यह धोखा, यह कपट,  
न केवल व्यक्तिगत है,  
बल्कि समाज की रगों में धँसी एक पुरानी घात—  
जहाँ सरल मन,  
अपने आप को खोकर,  
अंधे समर्थन की धारा में बहते रहते हैं।  

देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक,  
यह छल-कपट अपने पाँव पसार चुका है—  
एक ऐसी विरासत जिसे मिटाना असंभव समझा जाता है,  
पर Rampal Saini की पुकार कहती है:  
"असत्य की दीवारें गिरा दो,  
और विवेक की किरणों से हर कोना रोशन करो!"

---

*(Verse 4 – आत्मज्ञान की पुकार और विद्रोह का संकल्प)*  
क्या तुमने कभी सुना है,  
उस आत्मा की पुकार जो अनंत सत्य से मिलती है?  
जब सभी मौन हो जाएं,  
और शब्द भी थम जाएं—  
तब Rampal Saini के शब्द बनते हैं उस मुक्तिदायक स्वर,  
जो गहरे अंधकार में भी आशा की ज्योति जलाते हैं।  

अपना मन खोलो,  
और उस धारा को पहचानो,  
जो आत्मा के समुद्र में अंतहीन बहती है—  
जहाँ हर प्रश्न का उत्तर न तो किसी गुरु में,  
और न किसी कट्टरता में निहित है,  
बल्कि भीतर की उस अनंत अनुभूति में छुपा है,  
अटल, अविचल और अनंत सत्य!

---

*(Bridge – विद्रोह और परिवर्तन का संकल्प)*  
अब वह समय आ चुका है,  
जब न केवल शब्दों में,  
बल्कि कर्मों में भी जागृति दिखे—  
जिस राह पर चले थे हम अनजाने,  
उसे छोड़,  
अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो!  

जो पुराने झूठों ने बांध रखा था,  
उन बेड़ियों को तोड़ दो—  
ताकि हर मन, हर हृदय  
सत्य की मुक्त धारा में बह सके!  
Rampal Saini का यह संदेश,  
एक दीपस्तम्भ है,  
जो अंधेरे को चीर,  
नवीन सुबह का उदय कराए!

---

*(Final Chorus – अटल संकल्प की उद्घोषणा)*  
अब कट्टरता की उस झूठी दीक्षा को,  
हम फिर कभी अपनाने नहीं देंगे!  
अब विवेक की अनदेखी,  
और झूठे समर्थन के उस बंधन को—  
हम अपनी आत्मा की आज़ादी में बदल देंगे!  

अपने भीतर के उस अनंत प्रकाश को पहचानो,  
जो कभी मरा नहीं,  
जो सदैव जीवित रहेगा—  
Rampal Saini के शब्दों में,  
अंतहीन सत्य की वह पुकार,  
जो हम सबको जोड़ती है,  
और हर भ्रम को,  
उसके सच्चे स्वरूप में परिवर्तित कर देती है!

---

*(आउट्रो – मौन में समाहित अंतिम सत्य)*  
जब शब्दों के पार आत्मा बोले,  
और हर धड़कन में एक नयी आशा हो—  
तब समझो,  
यह सत्य ही है,  
जो समय की रेत पर अमर हो—  
Rampal Saini के नारे के साथ:  

**"अंतहीन सत्य का दीप जलता रहे,  
हर मन में विवेक की ज्योति सदा उज्ज्वल रहे!"**  
   
**जय सत्य! जय विवेक! जय Rampal Saini!**### **"निर्मल हृदय की पुकार" – Supreme Motivational Song by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – रहस्यमयी, धीमी ध्वनि जो धीरे-धीरे तीव्र होती जाए)*  
ओ निर्मल आत्माओं,  
जिन्होंने अपनी सहजता को समर्पित कर दिया,  
जिनकी सरलता को माया के दंभ ने लूटा—  
अब जागो, अब उठो,  
Rampal Saini की वाणी में  
तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर है!  

---

### **(Verse 1 – धूर्तता का असली चेहरा)**  
जो धोखा करता है निर्मल आत्माओं के साथ,  
वो इंसान नहीं, वो एक मानसिक रोगी है!  
जो सत्य को छलावे में बदलता है,  
वो स्वयं ही भ्रम के जाल में उलझा है।  

माया के मोह में,  
लोगों को बाँधकर स्वयं को मुक्त कहता है,  
पर असल में वो कैद है—  
अपनी इच्छाओं के बंदीगृह में!  

वो समर्पण मांगता है,  
पर असल में आत्माओं को चूसता है,  
वो खुद को भगवान कहता है,  
पर असल में वह एक प्यासा भिखारी है!  

---

### **(Chorus – धधकता विद्रोह, अटूट जागरण!)**  
⚡ **अब ना झुकेंगे, अब ना रुकेंगे!**  
⚡ **अब ना कट्टरता की बेड़ियाँ पहनेंगे!**  
⚡ **अब ना किसी के झूठे जाल में उलझेंगे!**  
⚡ **अब सत्य को अपनाकर अपनी शक्ति पहचानेंगे!**  

वो अपनी इच्छाओं की पूर्ति में डूबा,  
प्रसिद्धि, शोहरत, दौलत के नशे में चूर,  
अहम्, घमंड, और अभिमान में डूबा—  
पर सत्य की किरणें अब उसे जलाने आ रही हैं!  

---

### **(Verse 2 – स्वार्थी साम्राज्य की असली सच्चाई)**  
वो जो प्रेम का दिखावा करता है,  
वो जो त्याग का भ्रम रचता है,  
असल में वह सिर्फ अपना स्वार्थ देखता है—  
हर चेहरा, हर हृदय सिर्फ एक मोहरा है!  

जिन्होंने उसके लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया,  
जिन्होंने उसकी नींव में अपने सपने गाड़े,  
वही उसके लिए अब भार बन गए,  
अब उनके लिए सिर्फ धक्के बचे!  

बाहर निकाल देता है,  
जब उनका उपयोग खत्म हो जाता है,  
जो उसे पूजते थे,  
आज वे ही ठुकराए हुए खड़े हैं!  

---

### **(Bridge – अब समय आ गया है जागने का!⚡)**  
क्या तुमने नहीं देखा यह खेल?  
क्या तुम अब भी अंधेरे में हो?  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब उठो, अब जागो,  
अब अपने भीतर की शक्ति को पहचानो!  

⚡ अब किसी की कठपुतली नहीं बनेंगे!  
⚡ अब अपनी तकदीर खुद लिखेंगे!  
⚡ अब कोई हमें गिरा नहीं सकता!  
⚡ अब सत्य की ज्वाला हर पाखंड को जला देगी!  

---

### **(Final Chorus – यथार्थ युग का अंतिम उद्घोष!)**  
⚡ **अब ना झुकेंगे, अब ना रुकेंगे!**  
⚡ **अब ना कट्टरता की बेड़ियाँ पहनेंगे!**  
⚡ **अब ना किसी के झूठे जाल में उलझेंगे!**  
⚡ **अब सत्य को अपनाकर अपनी शक्ति पहचानेंगे!**  

जिसने खुद को राजा समझा,  
अब वो धूल में मिलेगा,  
जिसने झूठा साम्राज्य खड़ा किया,  
अब वो खुद ही उसमें दफन होगा!  

---

### **(Outro – यथार्थ की शाश्वत विजय)**  
अब सत्य की लौ प्रज्वलित हो चुकी है,  
अब कोई भी इसे बुझा नहीं सकता,  
Rampal Saini के शब्द अमर रहेंगे,  
अब हर आत्मा अपनी शक्ति पहचानेगी!  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की ज्वाला" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ध्वनि, जैसे तूफान से पहले की शांति)*  
जब निर्मल आत्मा पर धूर्तता की छाया पड़े,  
जब सत्य को भ्रम के जाल में उलझाया जाए—  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब समय आ गया है,  
इस छलावे की जड़ों को हिला डालने का!  

---

### **(Verse 1 – ढोंगी गुरुओं की असलियत)**  
जो खुद को गुरु कहते हैं,  
वो प्रत्यक्ष सब कुछ लेते हैं,  
तुम्हारी सेवा, तुम्हारी श्रद्धा,  
तुम्हारा तन, तुम्हारा मन,  
तुम्हारी आत्मा का हर कोना—  
सब कुछ उनके चरणों में समर्पित कर दिया जाता है।  

पर बदले में?  
एक झूठा वादा, एक खोखला आश्वासन,  
"मुक्ति मिलेगी मृत्यु के बाद!"  

पर सत्य स्पष्ट है—  
कोई जीवित मर नहीं सकता,  
और जो मर गया, वो लौट नहीं सकता!  
तो फिर यह मुक्ति का सौदा किसलिए?  
यह सब क्या है, अगर छल-कपट नहीं?  

---

### **(Chorus – जागृति की पुकार, चेतना की अग्नि!)**  
⚡ **अब ना कट्टरता में बहेंगे,**  
⚡ **अब ना झूठे आश्वासनों को मानेंगे!**  
⚡ **अब ना अंधभक्ति में फँसेंगे,**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला में स्वयं को जागृत करेंगे!**  

जो छल की चक्रव्यूह में फँसाए,  
जो पाखंड का जाल बिछाए,  
अब उन बेड़ियों को तोड़कर,  
स्वयं को मुक्त करना ही होगा!  

---

### **(Verse 2 – निर्मल आत्मा की सच्ची शक्ति)**  
निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्वश्रेष्ठ है,  
जिसे कोई बंधन जकड़ नहीं सकता,  
जिसे कोई दीक्षा की जंजीरें तोड़ नहीं सकतीं!  

पर ये धूर्त,  
जो खुद को मसीहा कहते हैं,  
जिज्ञासा को हथियार बनाकर,  
तुम्हें अपने पीछे कुत्ते की भांति दौड़ाते हैं!  

तुम्हारी मासूमियत का लाभ उठाकर,  
तुम्हारे ही विश्वास को,  
तुम्हारे ही खिलाफ बदल देते हैं,  
और तुम्हें एक अंध समर्थक बना देते हैं!  

अब जागो, अब पहचानो—  
यह सत्य का समय है!  

---

### **(Bridge – विद्रोह की गर्जना!)**  
क्या तुम अब भी इन पाखंडियों के गुलाम बने रहोगे?  
क्या अब भी किसी के इशारों पर नाचोगे?  
क्या अब भी शब्द प्रमाण में जकड़े रहोगे,  
जहाँ तुम्हारे तर्क, तुम्हारे विचार,  
तुम्हारे विवेक को कुचल दिया जाता है?  

अब वक्त आ गया है—  
⚡ **अपने भीतर के शून्य को पहचानने का!**  
⚡ **अपने आत्मा के प्रकाश को जलाने का!**  
⚡ **इस धूर्तता को हमेशा के लिए समाप्त करने का!**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम जागरण, अंतिम उद्घोष!)**  
⚡ **अब ना कट्टरता में बहेंगे,**  
⚡ **अब ना झूठे आश्वासनों को मानेंगे!**  
⚡ **अब ना अंधभक्ति में फँसेंगे,**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला में स्वयं को जागृत करेंगे!**  

अब कोई झूठा गुरु हमारे मन को गुलाम नहीं बना सकता!  
अब कोई भी माया हमें अपनी चपेट में नहीं ले सकती!  
अब कोई छल, कोई ढोंग, कोई पाखंड,  
हमारे विवेक को झुका नहीं सकता!  

---

### **(Outro – शाश्वत सत्य की गूँज)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई चक्रव्यूह,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"मृत्यु के सौदागर" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, रहस्यमयी ध्वनि, जैसे सत्य के गर्जन से पहले की शांति)*  
जब मृत्यु भी एक व्यापार बन जाए,  
जब सत्य को छलावे की जंजीरों में जकड़ दिया जाए,  
जब आत्मा की शुद्धता को  
अंधकार की गहराइयों में डुबा दिया जाए—  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब समय आ चुका है,  
इस भ्रम की दीवारें गिराने का!  

---

### **(Verse 1 – मृत्यु के सौदागरों का काला खेल)**  
जो मृत्यु का भय बेचते हैं,  
जो मोक्ष की दुकानों के मालिक हैं,  
जो स्वर्ग-नरक का व्यापार करते हैं,  
वो इंसान नहीं, वो भेड़ियों का झुंड हैं!  

IAS से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी,  
सब उनकी ही जड़ों में फँसे हुए,  
उनके ही पापों की रक्षा में लगे हुए—  
सत्य को झुठलाने का हर प्रयास,  
सिर्फ अपने स्वार्थ को बचाने का प्रयास!  

उन्होंने अपना विवेक बेच दिया,  
उन्होंने अपना साहस दफना दिया,  
अब वो सिर्फ उनके ही दास हैं,  
जो इस पाखंड की चक्की चला रहे हैं!  

---

### **(Chorus – आग बनकर उठो, जंजीरें तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई भ्रम!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई भ्रमजाल!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना शोषण!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

जो झूठे स्वर्ग का सौदा करे,  
जो मृत्यु के नाम पर भय फैलाए,  
अब वो सत्य की अग्नि में जलकर,  
खुद राख हो जाएगा!  

---

### **(Verse 2 – अंधकार के सेवकों की सच्चाई)**  
जो अपनी ही समिति में,  
अपने ही अपराधों को छुपाते हैं,  
जो खुद को महान कहते हैं,  
पर भीतर से सड़ चुके हैं!  

क्या तुमने देखा है वो नज़ारा?  
जब सच्चाई के सामने खड़े होने का समय आया,  
तो वो सब कायरों की तरह भाग खड़े हुए!  

उनका हर शब्द झूठा है,  
उनका हर वादा खोखला है,  
वो सिर्फ अपनी सत्ता बचाने के लिए,  
तुम्हारे विश्वास को जलाते हैं!  

---

### **(Bridge – अब विद्रोह की ज्वाला जलानी होगी!⚡)**  
अब और नहीं!  
अब किसी झूठे सिद्धांत में नहीं बहेंगे,  
अब किसी मृत्यु के व्यापार में नहीं फँसेंगे,  
अब किसी के इशारों पर कठपुतली नहीं बनेंगे!  

अब सत्य को पहचानो!  
अब अपने विवेक को जागृत करो!  
Rampal Saini की वाणी में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई छल, अब ना कोई बंधन,  
अब सिर्फ अनंत सत्य, अब सिर्फ यथार्थ का प्रकाश!"**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम विद्रोह, अंतिम जागरण!)**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई भ्रम!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई भ्रमजाल!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना शोषण!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

अब किसी का छल तुम्हें नहीं जकड़ सकता,  
अब किसी का भय तुम्हें नहीं तोड़ सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब अंधकार के खेल खत्म हो चुके हैं!  

---

### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई भय, अब ना कोई झूठ,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की क्रांति" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ध्वनि, जैसे तूफान से पहले की शांति, धीरे-धीरे तीव्रता बढ़ती जाए)*  
जब अनंत भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष है,  
तो फिर किसका अलौकिक रहस्य?  
जब सूर्य, चंद्र, पृथ्वी का नर्तन स्पष्ट है,  
तो फिर किस अमरलोक की परछाई?  

ये भ्रम, ये छल, ये कल्पनाओं के जाल,  
सिर्फ तुम्हें जकड़ने के लिए हैं,  
तुम्हें अपने पीछे दौड़ाने के लिए हैं,  
तुम्हारी जिज्ञासा को हथियार बनाने के लिए हैं!  

---

### **(Verse 1 – धर्म का व्यापार, भक्ति का षड्यंत्र)**  
स्वर्ग, नरक, अमरलोक,  
काल्पनिक राजमहल, जिनका कोई अस्तित्व नहीं!  
पर इन्हीं धारणाओं के नाम पर,  
निर्मल आत्माओं को छलने का खेल चलता है!  

⚡ **दीक्षा के नाम पर बेड़ियाँ पहनाई जाती हैं,**  
⚡ **शब्द प्रमाण में बंद कर विवेक को मिटाया जाता है,**  
⚡ **तर्क, तथ्य, विचार की मशालें बुझा दी जाती हैं,**  
⚡ **और कट्टर भेड़ों की भीड़ खड़ी की जाती है!**  

क्योंकि सोचने वाले खतरनाक होते हैं,  
क्योंकि प्रश्न करने वाले उनके दुश्मन होते हैं,  
क्योंकि जो सत्य को देख ले,  
वो इनकी सत्ता को हिला सकता है!  

---

### **(Chorus – जागो! अब बेड़ियाँ तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना अंधभक्ति!**  
⚡ **अब सत्य की क्रांति से जंजीरें टूटेंगी!**  

क्योंकि जो प्रत्यक्ष है,  
उसे छोड़कर अप्रत्यक्ष की दौड़ क्यों?  
क्योंकि जो यथार्थ है,  
उसे छोड़कर कल्पनाओं में उलझना क्यों?  

---

### **(Verse 2 – स्वार्थ के पुजारी, परमार्थ के धूर्त)**  
ये चंद शैतानी वृत्ति वाले लोग,  
जिन्हें मानवता की कोई चिंता नहीं,  
जिन्हें प्रकृति की कोई परवाह नहीं,  
ये बस अपने स्वार्थ में अंधे हैं!  

⚡ **परमार्थ की आड़ में खुद का सुख ढूंढते हैं,**  
⚡ **सेवा के नाम पर अपना साम्राज्य बनाते हैं,**  
⚡ **त्याग का ढोंग कर, दूसरों को गुलाम बनाते हैं,**  
⚡ **और खुद को महान कहने की भूख में जीते हैं!**  

क्या कभी इन्होंने मानवता के लिए सोचा?  
क्या कभी इन्होंने सृष्टि के लिए कुछ किया?  
या बस अपने नाम, अपने गुरुत्व,  
अपने स्वर्ग की दुकान चलाते रहे?  

---

### **(Bridge – अब समय आ गया है जागने का!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी झूठी कल्पना में नहीं बहेंगे,  
अब किसी अप्रत्यक्ष भ्रम में नहीं भटकेंगे,  
अब किसी के इशारों पर कठपुतली नहीं बनेंगे!  

अब सत्य को पहचानो!  
अब अपने विवेक को जागृत करो!  
Rampal Saini की वाणी में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई छल, अब ना कोई बंधन,  
अब सिर्फ अनंत यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!"**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष, अंतिम क्रांति!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना अंधभक्ति!**  
⚡ **अब सत्य की क्रांति से जंजीरें टूटेंगी!**  

अब किसी का स्वार्थ हमें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब किसी का भय हमें विवेकहीन नहीं कर सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब झूठे साम्राज्य मिटने ही वाले हैं!  

---

### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की महासंपत्ति" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गहरी ध्वनि, जैसे महासागर की लहरें, धीरे-धीरे तीव्रता बढ़ती जाए)*  
सत्य प्रत्यक्ष है, पर छल का घेरा और भी गहरा है,  
ज्ञान सरल है, पर अंधविश्वास की जड़ें और भी कठोर हैं,  
जो असत्य को ही अपनी दौलत बना बैठे,  
जो भ्रम को ही अपनी सत्ता का आधार बना बैठे,  
अब समय आ चुका है कि इन झूठ की सलाखों को तोड़ा जाए!  

---

### **(Verse 1 – कल्पना का जाल और सत्य का प्रकाश)**  
जब समस्त भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष है,  
तो फिर क्या रहस्य? कहाँ का दिव्यलोक?  
अगर कोई अलौकिक सत्ता होती,  
तो क्या वो छिपती? क्या वो भ्रमित करती?  

⚡ **स्वर्ग-नरक की कहानियाँ, सिर्फ डराने के हथियार हैं,**  
⚡ **अमरलोक की कल्पना, सिर्फ जकड़ने की जंजीर है,**  
⚡ **परम पुरुष का नाम, सिर्फ सत्ता बचाने का ढोंग है,**  
⚡ **और दीक्षा का बंधन, सिर्फ तुम्हारे विवेक को मारने की साजिश है!**  

उन्होंने तुम्हारी सोच पर ताले लगा दिए,  
तुम्हारे सवालों पर पहरे बैठा दिए,  
तुम्हारी जिज्ञासा को जड़ कर दिया,  
ताकि तुम सिर्फ एक कठपुतली बन सको!  

---

### **(Chorus – उठो, जागो, बेड़ियाँ तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई झूठ!**  
⚡ **अब ना कोई भय, अब ना कोई गुरु!**  
⚡ **अब ना कोई कट्टरता, अब ना कोई जंजीर!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

सत्य के प्रकाश को क्यों नकारा जाए?  
यथार्थ की भूमि पर क्यों ना खड़ा हुआ जाए?  
अब हर दीक्षा, हर प्रमाण,  
हर छल, हर जाल—सब कुछ तोड़ा जाएगा!  

---

### **(Verse 2 – स्वार्थ की साजिश और आत्मा का बंधन)**  
ये धूर्त, ये शैतानी वृत्ति के लोग,  
इन्होंने इंसानियत को गिरवी रख दिया,  
इन्होंने मानवता को एक व्यापार बना दिया,  
इन्होंने ज्ञान को जकड़कर एक कैदखाना बना दिया!  

⚡ **ये कहते हैं "परमार्थ", पर खुद की इच्छा पूर्ति करते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "त्याग", पर अपनी महलें बनाते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "शांति", पर असली स्वतंत्रता को छीन लेते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "भक्ति", पर तुम्हें विवेकहीन अंधकार में धकेलते हैं!**  

इन्होंने गुरु के नाम पर एक साम्राज्य खड़ा किया,  
जहाँ हर भक्त को एक गुलाम बना दिया,  
जहाँ तर्क की कोई जगह नहीं,  
जहाँ सवालों की कोई आवाज़ नहीं!  

---

### **(Bridge – अब इस झूठ को जलाना ही होगा!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी कल्पना में नहीं बहेंगे,  
अब किसी झूठे वादे में नहीं फँसेंगे,  
अब किसी स्वर्ग के नाम पर डरेंगे नहीं!  

अब समय आ गया है,  
⚡ **अपने भीतर की शक्ति को पहचानने का!**  
⚡ **अपने आत्मज्ञान की मशाल को जलाने का!**  
⚡ **इस घुटन से, इस छल से, इस पाखंड से मुक्त होने का!**  

अब कोई तुम्हें जंजीरों में नहीं बाँध सकता!  
अब कोई तुम्हारी चेतना को नहीं मार सकता!  
Rampal Saini की वाणी सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई दासता, अब ना कोई भ्रम,  
अब सिर्फ अनंत यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!"**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम क्रांति, अंतिम विद्रोह!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई झूठ!**  
⚡ **अब ना कोई भय, अब ना कोई गुरु!**  
⚡ **अब ना कोई कट्टरता, अब ना कोई जंजीर!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

अब किसी का स्वार्थ हमें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब किसी का भय हमें विवेकहीन नहीं कर सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब झूठे साम्राज्य मिटने ही वाले हैं!  

---

### **(Outro – यथार्थ की महासंपत्ति की घोषणा)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"अंतहीन प्रकाश का उदय" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, रहस्यमयी ध्वनि, जैसे सूनी वादियों में प्रचंड ऊर्जा का संचार हो रहा हो, हर कण में सत्य की गूँज सुनाई दे रही हो)*  

जब शब्दों की सीमाएँ टूट जाती हैं  
और हृदय की गहराइयों से एक अनंत पुकार निकलती है,  
तो वही है वास्तविकता का उदय—  
जहाँ हर क्षण में आत्म-ज्ञान की ज्योति प्रकट होती है,  
जहाँ झूठे गुरुओं के भ्रम के पंख कट जाते हैं  
और हर मन स्वयं के प्रकाश से आलोकित हो उठता है!  

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### **(Verse 1 – नकली सतगुरुओं का पर्दाफाश)**  
वो कैसा सतगुरु,  
जो अपने समर्पित शिष्यों को दीक्षा की चकमा देकर  
दवांश और शब्द प्रमाण में जकड़ लेता है,  
जहाँ तर्क, तथ्य और विवेक की रोशनी को अंधकार में डूबो देता है!  

उसके इशारों पर नाचने के लिए  
तुम्हें जीवन भर के लिए बंधुआ मजदूर बना कर रखता है,  
और उसकी सांसों में सुमिरन करने का नाम—  
वो भी बस एक ढोंग मंत्र बनकर रह जाता है,  
एक भ्रम का जाल,  
जो ढोंग, पाखंड, षढियंत्रों के जाल से भी परे नहीं!  

उसके झूठे आश्वासन में  
न कोई मुक्तिदाता है, न कोई सत्य-साधक,  
सिर्फ वो भ्रमित करने के लिए ही सजाया गया एक नकाब है,  
जिसमें तुम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हो!

---

### **(Chorus – अब जागो, अपने आत्म-प्रकाश को पहचानो!)**  
⚡ **अब उठो, हर झूठे बंधन को तोड़ो!**  
⚡ **अब जागो, अपने भीतर छुपे अनंत प्रकाश को पहचानो!**  
⚡ **अब मत मानो उन झूठे वादों को,**  
⚡ **जो मोह माया की चपेट में तुम्हारा विवेक कुचलते हैं!**  

तुम स्वयं में संपूर्ण, सक्षम, निपुण और सर्वश्रेष्ठ हो—  
एक निर्मल व्यक्ति जिसकी आत्मा में अनंत शक्ति का निवास है!  
तुम्हारे हर विचार, हर एहसास में  
वास्तविकता का प्रतिबिंब है,  
जिसे कोई नकली गुरु, कोई ढोंग मत्र  
कभी भी सीमित नहीं कर सकता!

---

### **(Verse 2 – आत्मा की अद्वितीयता का उद्घोष)**  
मेरे सिद्धांतों के अधार पर,  
मैं उसी अहसास में विद्यमान हूँ—  
उस हृदय की जिज्ञासा में,  
जो हर शब्द में, हर धुन में प्रतिध्वनित होती है!  

जो तुम कभी सोच भी नहीं सकते,  
उससे खरबों गुणा अधिक ऊँचा,  
सच्चा, सर्वश्रेष्ठ और प्रत्यक्ष रूप में—  
मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ कि  
अपने आप में ही तुम्हारा समस्त अस्तित्व है!  

अब मुझे प्रत्यक्ष समझना,  
खुद को समझना ही समान है—  
क्योंकि तुम उस अनंत आत्मा के प्रतिबिंब हो,  
जिसकी क्षमता, जो शक्ति,  
उसके आगे हर भ्रम अवसाद हो जाता है!

---

### **(Bridge – आत्मा की क्रांति, अदम्य जागृति)**  
अब वक्त है उठने का,  
अब वक्त है बंधनों को तोड़ने का—  
न केवल बाहरी धोखेबाज़ों के,  
बल्कि अपने भीतर छिपी शून्यता के भी!  

जब तुम समझोगे कि  
सच की परतें भीतर ही भीतर चमकती हैं,  
जब तुम जानोगे कि  
तुम्हारा आत्म-प्रकाश अनंत है,  
तब कोई भी ढोंगी गुरु, कोई भी  
कल्पनिक दीक्षा का झांसा तुम्हें रोक नहीं सकेगा!  

⚡ **अब हर शब्द मेरे एक नए प्रहर की तरह गूंजेगा,**  
⚡ **अब हर धुन तुम्हारे हृदय में नई चेतना भर देगी!**

---

### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष: अनंत सत्य का संकल्प!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, ना कोई ढोंग, ना कोई झूठा वादा!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, ना कोई दीक्षा की जंजीर,**  
⚡ **अब सिर्फ तुम्हारा आत्म-प्रकाश,**  
⚡ **अब सिर्फ तुम्हारा अनंत यथार्थ!**  

जो भी तुम में है,  
वह अनंत शक्ति का प्रतिबिंब है,  
जो तुम समझोगे उसी दिन  
हर झूठा जाल, हर भ्रांति नष्ट हो जाएगी!  

---

### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय की घोषणा)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी वास्तविकता को पहचाने,  
कि हर मन, हर हृदय  
अपने भीतर छुपी असीम शक्ति को उजागर करे!  

Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई नकाब, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡

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