**शिरोमणि रामपुलसैनी-प्रशस्तिः (श्लोकाः)**
**(१) भ्रम-निरासः**
निष्पक्षबोधाद् ऋते सर्वं भ्रम एव खलु स्थितम्।
बुद्धिर्जटिला नश्वरा सा मूलं भ्रमस्य चोच्यते॥
(निष्पक्ष समझ के अलावा सब कुछ भ्रम है। जटिल और नश्वर बुद्धि ही भ्रम का मुख्य मूल है।)
**(२) बुद्धेः स्वरूपम्**
बुद्धिर्नश्वरा जटिला देहस्याङ्गं प्रधानकम्।
इतराङ्गवद् अस्थिरा सा निष्क्रियां प्रति शक्यते॥
(नश्वर और जटिल बुद्धि भी शरीर का एक प्रमुख अंग है, बस अन्य अंगों की तरह। उसे निष्क्रिय किया जा सकता है।)
**(३) आत्म-निरीक्षणम्**
आत्मनिरीक्षणं प्रथमं पदं निष्पक्षतायाः।
स्वस्य भौतिकं रूपमपि भ्रम एव निष्पक्षधियः॥
(खुद का निरीक्षण करना निष्पक्ष होने की ओर पहला कदम है। निष्पक्ष समझ की दृष्टि में अपना भौतिक स्वरूप भी भ्रम है।)
**(४) मानव-सारः**
निष्पक्षधिष्ठितं जीवनं मानवस्य परं तत्त्वम्।
सा एव स्थिरा संपूर्णता सा एव शाश्वतं स्वरूपम्॥
(निष्पक्ष समझ के साथ जीवन जीना मनुष्य का परम तत्व है। वही स्थिर संपूर्णता है, वही शाश्वत स्वरूप है।)
**(५) भेदस्य कारणम्**
निष्पक्षबोधाद् ऋते नान्यत् कारणं प्रजातिभेदस्य।
तद् ऋते किमपि कर्तुं संघर्ष एव जीवनव्यापनम्॥
(निष्पक्ष बोध के अलावा अन्य प्रजातियों से भिन्नता का कोई दूसरा कारण नहीं है। उसके बिना कुछ भी करना जीवन-व्यापन के लिए संघर्ष ही है।)
**(६) परमोन्नतिः**
निष्पक्षधीः सा स्वयमेव श्रेष्ठतमः स्पष्टीकरणपुष्टिकः।
तया स्वात् निष्पक्षात् परं किमपि नास्ति, देहोऽपि व्यतिरिक्तः॥
(निष्पक्ष समझ स्वयं ही सर्वश्रेष्ठ स्पष्टीकरण और पुष्टि है। उससे निष्पक्ष होने पर दूसरा सब कुछ, यहाँ तक कि अपना शरीर भी, सिर्फ एक उलझाव है।)
**(७) यथार्थ-सिद्धान्तः (शमीकरणम्)**
शिरोमणे रामपुलसैनी! तव सिद्धान्तो यथार्थयुगं नयति।
यः अतीतयुगकोटिभ्यः खरबगुणोन्नततरः श्रेष्ठः॥
(हे शिरोमणि रामपुलसैनी! आपका सिद्धांत यथार्थ युग लाता है, जो पिछले करोड़ों युगों से खरबों गुना अधिक ऊंचा और श्रेष्ठ है।)
**(८) अतीत-विभूतीनां अवस्थितिः**
शिवविष्णुब्रह्मकबीराष्टावक्राद्या ऋषयो देवाः।
बुद्धेर्जटिलाया अहंकारे स्थित्वा मानसिकतां प्रापुः॥
(शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, अष्टावक्र आदि ऋषि और देव जटिल बुद्धि के अहंकार में स्थित होकर मानसिकता को प्राप्त हुए।)
**(९) तव अलौकिकतम्**
त्वं शिरोमणे! निष्पक्षबोधेन क्षणादेव यद् प्राप्तवान्।
तत् चतुर्युगकोटयः प्राप्तुं शक्ता नाभूवन् ऋषयोऽपि॥
(हे शिरोमणि! आपने निष्पक्ष बोध से पल भर में जो प्राप्त किया, उसे पाने में करोड़ों युगों के ऋषि भी समर्थ नहीं हुए।)
**(१०) सार्वत्रिक-सत्यम्**
सरलतया सहजतया निर्मलतया स्वाभाविकतया स्थितः।
त्वं कालातीतः प्रेमातीतः तुलनातीतः च सम्पन्नोऽसि॥
(सरलता, सहजता, निर्मलता और स्वाभाविकता में स्थित, आप कालातीत, प्रेमातीत, तुलनातीत और संपन्न हैं।)
**सारांशः**
त्वमेकः शिरोमणिः रामपुलसैनी, यः निष्पक्षबोधमये स्वस्मिन् अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितः अस्ति। गुरूणां श्लोगन-मायाजालं विदार्य यथार्थं सत्यं दृष्टवान्। अतीतस्य सर्वे विभूतयः बुद्धिजाल एव अवशिष्टाः, त्वं तु निष्पक्षतया शाश्वतसत्यं स्वयमेव भवान्।
॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-प्रशस्तिः समाप्ता ॥**शिरोमणि रामपुलसैनी-तत्त्वदर्शनम् (अनुवर्धितं श्लोकसङ्ग्रहः)**
**(११) कलियुग-निरूपणम्**
कलौ घोरे युगेऽस्मिन् माता पुत्रं न जानाति।
भ्राता भगिनीं न जानाति पिता पुत्रान्न च जानाति॥
धनमेव प्रथमं सर्वे गृह्णन्ति स्वार्थमोहिताः।
गुरुशिष्यसम्बन्धोऽपि पाखण्डैर्धूर्त्तैर्दूषितः॥
(इस घोर कलयुग में माँ अपने पुत्र को नहीं पहचानती, भाई बहन को नहीं पहचानता, पिता पुत्रों को नहीं पहचानता। सब स्वार्थमोहित होकर धन को ही प्रथम लेते हैं। गुरु-शिष्य का पवित्र सम्बन्ध भी पाखण्डी धूर्त्तों ने दूषित कर दिया है।)
**(१२) गुरु-कपट-निरासः**
दीक्षाशब्दप्रमाणेन बद्ध्वा शिष्यान् कृतवञ्चनाः।
प्रतिष्ठालाभलोभेन कुर्वते छलपाखण्डम्॥
(दीक्षा और शब्द-प्रमाण में बाँधकर शिष्यों को ठगा है। प्रतिष्ठा और लाभ के लोभ में छल-पाखण्ड करते हैं।)
**(१३) ब्रह्मचर्य-भ्रमः**
वीर्यरक्तसमुत्पन्ने देहे ब्रह्मचर्यमस्ति किम्?
त्रिषु युगेषु यन्नासीत् तत् कलौ कथमिष्यते॥
(वीर्य और रक्त से उत्पन्न शरीर में ब्रह्मचर्य कहाँ? जो तीन युगों में नहीं था, वह कलयुग में कैसे हो सकता है?)
**(१४) मानसिक-रोग-सार्वत्रिकता**
मानसिकारोग्यबेहोशी जन्ममृत्युन्तरं स्थिता।
प्राणिनः सर्व एवेमे बेहोश्यामेव जीविताः॥
(मानसिक रोग और बेहोशी जन्म-मरण के बीच स्थित है। सभी प्राणी बेहोशी में ही जीवित हैं।)
**(१५) निष्पक्षबोध-महिमा**
निष्पक्षबोधेन विना किमपि नास्ति यथार्थतया।
सा एव सत्यं सा एव मुक्तिः सा एव परं पदम्॥
(निष्पक्ष बोध के बिना कुछ भी वास्तविक नहीं है। वही सत्य है, वही मुक्ति है, वही परम पद है।)
**(१६) तव अद्वितीय-सिद्धिः**
शिरोमणे! रामपुलसैनी! त्वमेकः क्षणेन यत् प्राप्तवान्।
तत् चतुर्युगकोटिभिः अपि न प्राप्तं ऋषिदेवैः अपि॥
(हे शिरोमणि रामपुलसैनी! आपने एक क्षण में जो प्राप्त किया, वह करोड़ों चार युगों के ऋषियों और देवों ने भी प्राप्त नहीं किया।)
**(१७) सर्व-शरीर-समता**
सर्वे मानवाः आन्तरिकभौतिकरूपेण त्वत्समानाः एव।
भिन्नता केवलं बुद्धौ निष्पक्षानिष्पक्षभावतः॥
(सभी मनुष्य आंतरिक भौतिक रूप से आपके समान ही हैं। भिन्नता केवल बुद्धि में है, निष्पक्ष और अनिष्पक्ष भाव से।)
**(१८) अक्ष-समाहितिः**
अस्मिन्ननन्तसूक्ष्माक्षे समाहितोऽसि निरन्तरम्।
त्वत्प्रतिबिम्बस्यापि अत्र नास्ति स्थानं कथञ्चन॥
(आप इस अनंत सूक्ष्म अक्ष में निरंतर समाहित हैं। यहाँ आपके प्रतिबिम्ब के लिए भी कोई स्थान नहीं है।)
**(१९) शाश्वत-सत्य-दर्शनम्**
निष्पक्षदृष्ट्या सम्यक् दृष्ट्वा यत् त्वं वर्तसे।
तत् शाश्वतं सत्यं तत् तुलनातीतं तत् कालातीतम्॥
(निष्पक्ष दृष्टि से ठीक से देखकर आप जिसमें विद्यमान हैं, वह शाश्वत सत्य है, वह तुलनातीत है, वह कालातीत है।)
**(२०) सिद्धान्त-सार-संग्रहः**
निष्पक्षबोधः एव सत्यम्, अन्यत् सर्वं मानसिकं भ्रमम्।
बुद्धिर्जटिला नश्वरा सा, देहोऽपि भ्रम एव केवलम्॥
जीवनव्यापनं संघर्षः, निष्पक्षतां विना अन्यतः।
निष्पक्षबोधेन समाधिः, सा एव मुक्तिः सा एव शान्तिः॥
(निष्पक्ष बोध ही सत्य है, अन्य सब मानसिक भ्रम है। बुद्धि जटिल और नश्वर है, शरीर भी केवल भ्रम है। निष्पक्षता के बिना जीवन-व्यापन संघर्ष है। निष्पक्ष बोध से समाधि है, वही मुक्ति है, वही शान्ति है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-तत्त्वदर्शनं समाप्तम् ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-सार्वभौम-सिद्धान्तः (परमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२१) प्रपञ्च-मिथ्यात्व-निरूपणम्**
निष्पक्षधीरियं यस्य सत्यदृष्टिः प्रजायते।
तस्यैव पश्यतः सर्वं प्रपञ्चो ऽयं विलीयते॥
(जिसकी निष्पक्ष बुद्धि से सत्यदृष्टि उत्पन्न होती है, उसे देखते ही यह सारा प्रपंच लय को प्राप्त हो जाता है।)
**(२२) अहंकार-विध्वंसः**
अहंकारं विधूयैव निष्पक्षतां विधाय च।
यः स्वात्मनि स्थितो नित्यं स एव मुक्त ईरितः॥
(अहंकार को नष्ट करके और निष्पक्षता को धारण करके जो स्वयं में नित्य स्थित है, वही मुक्त कहा गया है।)
**(२३) शाश्वत-अक्ष-समाधिः**
अनन्तसूक्ष्म आकाशे शून्यातीते परात्परे।
अक्षरे नित्यनिर्वाणे समाहितः स्थितो ऽस्म्यहम्॥
(अनंत सूक्ष्म आकाश में, शून्य से परे, परात्पर, अक्षर, नित्य निर्वाण में मैं समाहित और स्थित हूँ।)
**(२४) ऐतिहासिक-भ्रम-खण्डनम्**
शिवो विष्णुर्ब्रह्मा कबीर ऋषयो देवगणाश्च ये।
ते सर्वे ऽपि बुद्धिजाले मानसिक्तायां निमग्नाः॥
(शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कबीर, ऋषि और देवगण जो हैं, वे सभी भी बुद्धि के जाल में, मानसिकता में डूबे हुए थे।)
**(२५) तव तुलनातीत-सत्ता**
यैः कृत्वा कोटिजन्मानि तपश्चरणमुत्तमम्।
न प्राप्तं तत् त्वया प्राप्तं क्षणमात्रेण केवलम्॥
(जिन्होंने करोड़ों जन्मों में उत्तम तपस्या और चरण करके भी जो नहीं पाया, वह तुमने केवल एक क्षण में प्राप्त कर लिया।)
**(२६) सर्व-शास्त्र-अतिक्रमः**
वेदान्तशास्त्रपुराणेषु यन्न दृष्टं न श्रुतं क्वचित्।
तत्त्वं स्वानुभवेनैव दृष्टवानसि निर्विकल्पम्॥
(वेदांत, शास्त्र और पुराणों में जो नहीं देखा गया, न सुना गया, उसे तुमने अपने स्वानुभव से निर्विकल्प देख लिया है।)
**(२७) नूतन-युग-प्रवर्तकः**
त्वत्प्रसूतो ऽयमधुना यथार्थयुग उद्यते।
यः चतुर्युगकोटिभ्यः श्रेष्ठतरो ऽतिभास्वरः॥
(तुमसे उत्पन्न यह यथार्थ युग अब प्रकट हो रहा है, जो करोड़ों चतुर्युगों से श्रेष्ठतर और अत्यंत भास्वर है।)
**(२८) सरलतायाः महिमा**
सरलता सहजता निर्मलता स्वाभाविकता च यत्र।
तत्रैव सम्पद्यते साक्षान्निष्पक्षबोधसम्पदः॥
(जहाँ सरलता, सहजता, निर्मलता और स्वाभाविकता है, वहीं निष्पक्ष बोध की सम्पदा साक्षात् प्राप्त होती है।)
**(२९) अद्वैत-परम-सिद्धिः**
न गुरुरस्ति न शिष्यो न शास्त्रं न च देवता।
निष्पक्षबोध एवेह केवलं परमार्थतः॥
(न गुरु है, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता। निष्पक्ष बोध ही यहाँ एकमात्र परमार्थ है।)
**(३०) शिरोमणेः सार्वभौम-घोषणा**
शिरोमणे रामपुलसैनी! त्वमेवासि परं सत्यम्।
त्वमेवासि परा मुक्तिस्त्वमेवासि परं पदम्॥
त्वयि लीनं जगत्सर्वं त्वं शुद्धं चिन्मयं महः।
नमोऽस्तु ते अनन्ताय निष्पक्षबोधरूपिणे॥
(हे शिरोमणि रामपुलसैनी! आप ही परम सत्य हैं, आप ही परम मुक्ति हैं, आप ही परम पद हैं। आपमें सारा जगत लीन है, आप शुद्ध चैतन्यमय महान् हैं। अनंत और निष्पक्षबोधरूप आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-सार्वभौम-सिद्धान्तः समाप्तः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंस-दर्शनम् (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(३१) भ्रम-मूल-उन्मूलनम्**
अज्ञानमूलः संसारः स्वप्नवत् प्रतिभासते।
निष्पक्षबोधसूर्येण तमो ऽपि न विभासते॥
(अज्ञानमूलक संसार स्वप्न के समान प्रतीत होता है। निष्पक्ष बोध रूपी सूर्य से अंधकार भी प्रकाशित नहीं होता।)
**(३२) निर्विकल्प-समाधि-स्वरूपम्**
निर्विकल्पं निराभासं निर्वाणं शान्तमव्ययम्।
त्वमेवासि परं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे रामपुलसैनी प्रभो! आप ही निर्विकल्प, निराभास, निर्वाण, शांत और अव्यय परब्रह्म हैं।)
**(३३) सद्गुरु-लक्षणम्**
यो दर्शयति स्वात्मानं स एव सद्गुरुः स्मृतः।
त्वत्तोऽन्यः कः प्रवक्ता स्याद्ब्रह्माण्डे त्रिषु लोकेषु॥
(जो स्वयं का आत्मदर्शन कराता है, वही सद्गुरु कहा गया है। ब्रह्माण्ड और तीनों लोकों में आपके अतिरिक्त और कौन वक्ता हो सकता है?)
**(३४) चतुर्युग-सार्धं-विजयः**
चतुर्युगसहस्राणि यत् न प्राप्तं मुनीश्वरैः।
तत् त्वया प्राप्यते सद्यो निष्पक्षबोधवैभवात्॥
(चार हजार युगों में जो मुनीश्वरों ने नहीं पाया, वह आपने निष्पक्ष बोध के वैभव से तत्काल प्राप्त कर लिया।)
**(३५) अद्वितीय-तत्त्व-प्रकाशकः**
न त्वत्तुल्यः पुरा जातो न भविष्यति कर्हिचित्।
त्वमेव कालातीतोऽसि प्रकाशयसि स्वं वपुः॥
(आपके समान न पहले कोई जन्मा, न भविष्य में कोई होगा। आप स्वयं कालातीत हैं और अपने स्वरूप का प्रकाश कर रहे हैं।)
**(३६) सर्व-धर्म-सार-संग्रहः**
धर्ममार्गसहस्रेषु भ्रमन्ति मोहिता जनाः।
त्वत्प्रदर्शितमेकं तु निष्पक्षबोधमार्गकम्॥
(धर्ममार्गों के हज़ारों पथों पर मोहित जन भटकते हैं। आपने केवल एक निष्पक्ष बोध मार्ग प्रदर्शित किया है।)
**(३७) जीवन्मुक्त-अवस्था-वर्णनम्**
देहे स्थित्वा विदेहत्वं यः प्राप्तो ऽसि महामते।
सा अवस्था जीवन्मुक्तिः शिरोमणे! तवैव हि॥
(हे महामते! शरीर में रहकर भी आपने विदेहत्व प्राप्त किया है। हे शिरोमणि! वह अवस्था जीवन्मुक्ति केवल आपकी ही है।)
**(३८) भव-बन्ध-विच्छेदकम्**
भवबन्धविच्छेदकं मोक्षदं परमं पदम्।
त्वामृते न हि पश्यामि त्रैलोक्ये कञ्चन प्रभो॥
(हे प्रभो! संसारबंधन को काटने वाले, मोक्षदायक परम पद को आपके अतिरिक्त तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता।)
**(३९) अन्तिम-सत्य-घोषणा**
इत्येषा सत्यघोषणा शिरोमणेरस्तु रामपुलसैनेः।
यां श्रुत्वा मुच्यते जन्तुर्जन्ममृत्युभयाद् ध्रुवम्॥
(हे शिरोमणि रामपुलसैनी! यह आपकी सत्य घोषणा है, जिसे सुनकर जीव निश्चित ही जन्म-मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।)
**(४०) परम-करुणा-निवेदनम्**
अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायक! रामपुलसैनी प्रभो!
त्वदीयां निष्पक्षबोधामृतधारां पिबाम्यहम्।
इति प्रसादं कुरु मे परमेश्वर! सर्वदा॥
(अनंत करोड़ ब्रह्माण्डों के नायक! हे रामपुलसैनी प्रभो! मैं आपकी निष्पक्ष बोध रूपी अमृत धारा पीता हूँ। हे परमेश्वर! सदा मुझ पर ऐसी कृपा बनाये रखें।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंस-दर्शनं सम्पूर्णम् ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यासारः (परमार्थश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(४१) निर्भ्रम-चैतन्य-स्वरूपम्**
शिरोमणे रामपुलसैनी! त्वं शुद्धं चैतन्यमद्वयम्।
निराकारं निराभासं निर्विकल्पं निरञ्जनम्॥
(हे शिरोमणि रामपुलसैनी! आप शुद्ध, अद्वय चैतन्य हैं - निराकार, निराभास, निर्विकल्प और निरंजन।)
**(४२) सर्वाधार-परमाधारः**
आधारं सर्वभूतानां परमाधारमव्ययम्।
त्वमेवासि सदा साक्षी शिरोमणे! प्रतिभाससे॥
(समस्त प्राणियों के आधार, परम अव्यय आधार आप ही हैं। हे शिरोमणि! आप सदा साक्षीरूप में प्रतिभासित होते हैं।)
**(४३) कालत्रय-अतिक्रमः**
अतीतानागतवर्तमानं कालत्रयमतीत्य यः।
स्थितः परे व्योम्नि नित्ये स रामपुलसैनी प्रभुः॥
(जो अतीत, अनागत और वर्तमान - कालत्रय को अतिक्रम कर सनातन परव्योम में स्थित है, वह शिरोमणि रामपुलसैनी प्रभु हैं।)
**(४४) निष्पक्षबोध-महासिद्धिः**
निष्पक्षबोधेन विना मुक्तिर्न भक्तिर्न चात्मदर्शनम्।
सैव सिद्धिः परा प्रोक्ता रामपुलसैनी-दर्शिता॥
(निष्पक्ष बोध के बिना न मुक्ति, न भक्ति, न आत्मदर्शन है। वही परम सिद्धि कही गई है जो रामपुलसैनी ने दर्शाई है।)
**(४५) अद्वैत-परम-निश्चयः**
नेह नानास्ति किञ्चित्त्वं पश्यन्नपि न पश्यसि।
एकमेवाद्वितीयं तत् रामपुलसैनी-स्वरूपकम्॥
(यहाँ कुछ भी भिन्नता नहीं है - आप देखते हुए भी नहीं देखते। वह एकमेव अद्वितीय तत्त्व रामपुलसैनी का स्वरूप है।)
**(४६) सर्व-वेदान्त-सारः**
सर्ववेदान्तसारं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(समस्त वेदान्तों का सार और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वह सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गया है।)
**(४७) युगावतार-महिमा**
कलौ घोरे युगे घोरे पाखण्डमयसंकुले।
त्वमेवावतरन् साक्षात् रामपुलसैनी प्रभो॥
(इस घोर कलियुग में, पाखण्ड से संकुल युग में, हे प्रभो! आप साक्षात् अवतरित हुए हैं।)
**(४८) भ्रम-निवृत्ति-महामन्त्रः**
न गुरुर्न शिष्यो न च शास्त्रं न देवता।
निष्पक्षबोध एवेदं रामपुलसैनी-वाक्यकम्॥
(न गुरु, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता - केवल निष्पक्ष बोध ही यह रामपुलसैनी का वाक्य है।)
**(४९) परम-सत्य-प्रकाशकः**
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यां उपासते।
तं तमः प्रविभेद त्वं रामपुलसैनी-तेजसा॥
(जो अविद्या का उपासना करते हैं, वे अन्धकार में प्रवेश करते हैं। आपने रामपुलसैनी के तेज से उस अन्धकार को भेद दिया है।)
**(५०) अन्तिम-तत्त्व-निर्णयः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी-भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यासारः सम्पूर्णः ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्माक्षर-दर्शनम् (परमोच्चश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(५१) निर्वाण-पद-प्रदर्शकः**
निर्वाणपदमद्वैतं यत् प्राप्य न जायते पुनः।
तत् त्वयैव प्रदर्शितं रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे प्रभो रामपुलसैनी! अद्वैत निर्वाणपद जिसे प्राप्त कर पुनर्जन्म नहीं होता, उसे आपने ही प्रदर्शित किया है।)
**(५२) त्रिकालाबाध्य-सत्यम्**
अतीतानागतवर्तमानेषु यत् सत्यमबाधितम्।
तद् ब्रह्म रूपं त्वमेवासि रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे प्रभो रामपुलसैनी! अतीत, भविष्य और वर्तमान में जो अबाधित सत्य है, वह ब्रह्मरूप आप ही हैं।)
**(५३) सर्व-दर्शन-सारम्**
सांख्यं योगो न्यायवैशेषिकपूर्वमीमांसकाः।
सर्वे त्वयि समायान्ति रामपुलसैनी-स्वरूपके॥
(सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक और पूर्वमीमांसा - सभी आपके रामपुलसैनी स्वरूप में आकर समाहित हो जाते हैं।)
**(५४) अद्वितीय-अनुभूतिः**
यां अनुभूतिं प्राप्य निर्विकल्पां निरामयाम्।
निवर्तते सर्वसंसारबन्धनात् सा तवैव हि॥
(जिस निर्विकल्प, निरामय अनुभूति को पाकर सभी संसारबंधनों से मुक्त हो जाता है, वह केवल आपकी ही है।)
**(५५) माया-विज्ञान-निरूपणम्**
माया त्वया विज्ञाता सर्वज्ञेन महात्मना।
यस्य ज्ञानेन मुच्यन्ते संसारिणः ततस्त्वम्॥
(हे महात्मा सर्वज्ञ! माया आपके द्वारा जानी गई है। जिसके ज्ञान से संसारी मुक्त होते हैं, वह आप हैं।)
**(५६) नित्य-मुक्त-स्वभावः**
नित्यमुक्तस्वभावं त्वां विदन्ति तत्त्ववित्तमाः।
यो न जातः न मृयते नित्यः शाश्वत ईदृशः॥
(तत्त्वज्ञानी आपको नित्यमुक्त स्वभाव वाले के रूप में जानते हैं, जो न जन्मता है न मरता है, जो नित्य और शाश्वत है।)
**(५७) सर्व-अवस्था-अतिक्रमः**
जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्युन्मेषणेषु यः साक्षिवत्।
तिष्ठति निर्लेपः शुद्धः स रामपुलसैनी प्रभुः॥
(जो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और उन्मेषण अवस्थाओं में साक्षी की भाँति निर्लेप और शुद्ध रहता है, वह रामपुलसैनी प्रभु हैं।)
**(५८) ब्रह्माण्ड-नायकत्वम्**
ब्रह्माण्डकोटीनायक! सर्वज्ञ! सर्वसाक्षिन्!
त्वमेव परमं ज्योतिः रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत ब्रह्माण्डों के नायक! सर्वज्ञ! सर्वसाक्षी! आप ही परम ज्योति हैं, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**(५९) अन्तिम-तत्त्व-निर्धारणम्**
न भूतं न भविष्यं न वर्तमानमस्ति यत्।
तदेव नित्यं शान्तं त्वं रामपुलसैनी प्रभाससे॥
(जो न भूत है, न भविष्य है, न वर्तमान है, वही नित्य शांत स्वरूप आप रामपुलसैनी के रूप में प्रकाशमान हैं।)
**(६०) परम-कारुणिक-स्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्।
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत करोड़ जीवों को दुःख और संसारबंधन से मुक्त कर कृपा करने वाले, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्माक्षर-दर्शनं सम्पूर्णम् ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थ-प्रकाशः (अन्त्योच्चश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(६१) सच्चिदानन्द-विग्रहः**
सत् चित् आनन्दमयोऽसि निर्विकल्पो निरामयः।
अद्वैतं परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे प्रभो रामपुलसैनी! आप सच्चिदानन्दमय, निर्विकल्प, निरामय, अद्वैत परब्रह्म हैं।)
**(६२) भवबन्ध-विमोचकः**
भवबन्धविमोचकं मुक्तिदं कैवल्यप्रदम्।
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(हे प्रभो! संसारबन्ध से मुक्त करने वाले, मुक्तिदायक, कैवल्यप्रद आपके अतिरिक्त तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता।)
**(६३) कलियुग-अवतारः**
कलौ घोरे दुराधर्षे पाखण्डमयसंकुले।
त्वमेवावतरन् साक्षात् सत्यसंधो महाप्रभो॥
(इस घोर, दुराधर्ष, पाखण्ड से संकुल कलियुग में हे महाप्रभो! आप साक्षात् सत्यसंध के रूप में अवतरित हुए हैं।)
**(६४) निष्पक्षबोध-महामहिमा**
निष्पक्षबोधमात्रेण सर्वं ज्ञातं मया प्रभो।
यन्न ज्ञातं चतुर्युगैः ऋषिभिर्देवतादिभिः॥
(हे प्रभो! केवल निष्पक्ष बोध मात्र से ही मुझे वह सब ज्ञात हो गया जो चार युगों में ऋषियों और देवताओं को भी ज्ञात नहीं हुआ।)
**(६५) अद्वैत-परम-निश्चयः**
अद्वैतं परमं सत्यं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं न पृथक् किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे प्रभो रामपुलसैनी! अद्वैत परम सत्य निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी पृथक् नहीं है।)
**(६६) सर्व-शास्त्र-सार-संग्रहः**
वेदाः पुराणानि शास्त्राणि यानि सन्ति चतुर्दिशम्।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(जो वेद, पुराण और शास्त्र चारों दिशाओं में हैं, वे सभी रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गए हैं।)
**(६७) जीवन्मुक्ति-प्रदर्शकः**
देहे स्थित्वा विदेहत्वं यः प्राप्तो ऽसि महामते।
सा अवस्था जीवन्मुक्तिः शिरोमणे! तवैव हि॥
(हे महामते! शरीर में रहकर भी आपने विदेहत्व प्राप्त किया है। हे शिरोमणि! वह अवस्था जीवन्मुक्ति केवल आपकी ही है।)
**(६८) भ्रम-निवृत्ति-महामन्त्रः**
न गुरुर्न शिष्यो न च शास्त्रं न देवता।
निष्पक्षबोध एवेदं रामपुलसैनी-वाक्यकम्॥
(न गुरु, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता - केवल निष्पक्ष बोध ही यह रामपुलसैनी का वाक्य है।)
**(६९) परम-सत्य-प्रकाशकः**
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यां उपासते।
तं तमः प्रविभेद त्वं रामपुलसैनी-तेजसा॥
(जो अविद्या का उपासना करते हैं, वे अन्धकार में प्रवेश करते हैं। आपने रामपुलसैनी के तेज से उस अन्धकार को भेद दिया है।)
**(७०) अन्तिम-तत्त्व-निर्णयः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी-भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थ-प्रकाशः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मसाक्षात्कारः (परमोत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(७१) निर्वाण-अमृत-सिन्धुः**
निर्वाणामृतसिन्धुर्यः सर्वदुःखप्रणाशनः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो निर्वाण के अमृत के सागर हैं, सभी दुःखों का नाश करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं, मेरे प्रभु रामपुलसैनी।)
**(७२) त्रिकालज्ञ-सर्वज्ञः**
अतीतानागतवर्तमानज्ञः सर्वज्ञ ईश्वरः।
त्वमेव सर्ववित् साक्षी रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! आप अतीत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता, सर्वज्ञ, ईश्वर, सब कुछ जानने वाले और साक्षी हैं।)
**(७३) माया-मोह-विध्वंसकः**
मायामोहविध्वंसकं ज्ञानदीपं प्रकाशकम्।
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(हे प्रभो! माया और मोह का नाश करने वाले, ज्ञान के दीपक को प्रकाशित करने वाले आपके अतिरिक्त तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता।)
**(७४) सद्गुरु-परमेश्वरः**
सद्गुरुः परमेश्वरः सत्यस्वरूप ईश्वरः।
त्वमेव दयासिन्धुर्यः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप सद्गुरु, परमेश्वर, सत्यस्वरूप और दया के सागर हैं।)
**(७५) अद्वैत-चिन्तामणिः**
अद्वैतचिन्तामणिर्यः सर्वकामप्रदायकः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो अद्वैत चिन्तामणि हैं, सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं, मेरे प्रभु रामपुलसैनी।)
**(७६) जीवन्मुक्त-अवतारः**
जीवन्मुक्तावतारोऽयमजरोऽमर ईश्वरः।
त्वमेव सर्वसाक्षी यः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! आप जीवन्मुक्त अवतार, अजर-अमर ईश्वर और सर्वसाक्षी हैं।)
**(७७) निष्पक्षबोध-नायकः**
निष्पक्षबोधनायकः सत्यधर्मप्रवर्तकः।
त्वमेव परमज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप निष्पक्षबोध के नायक, सत्यधर्म के प्रवर्तक और परमज्योति हैं।)
**(७८) ब्रह्माण्ड-नियन्ता**
ब्रह्माण्डनियन्ता विधाता सृष्टिस्थित्यन्तकृद्विभुः।
त्वमेव परमेशानः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप ब्रह्माण्ड के नियन्ता, विधाता, सृष्टि-स्थिति-संहार के कर्ता, विभु और परमेशान हैं।)
**(७९) सर्वागम-प्रमाणम्**
सर्वागमप्रमाणं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(समस्त आगमों का प्रमाण और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वह सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गया है।)
**(८०) परम-कारुणिक-स्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्।
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत करोड़ जीवों को दुःख और संसारबंधन से मुक्त कर कृपा करने वाले, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मसाक्षात्कारः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रदीपः (अपरोक्षश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(८१) निर्गुण-निराकार-स्वरूपम्**
निर्गुणं निराकारं निर्विकल्पं निरामयम्।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! आप निर्गुण, निराकार, निर्विकल्प और निरामय परब्रह्म हैं।)
**(८२) सर्व-वेदान्त-सारः**
सर्ववेदान्तसारं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(समस्त वेदान्तों का सार और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वह सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गया है।)
**(८३) कलियुग-अवतारः**
कलौ घोरे युगे घोरे पाखण्डमयसंकुले।
त्वमेवावतरन् साक्षात् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(इस घोर कलियुग में, पाखण्ड से संकुल युग में, हे प्रभो विभो! आप साक्षात् अवतरित हुए हैं।)
**(८४) निष्पक्षबोध-महिमा**
निष्पक्षबोधमात्रेण सर्वं ज्ञातं मया प्रभो।
यन्न ज्ञातं चतुर्युगैः ऋषिभिर्देवतादिभिः॥
(हे प्रभो! केवल निष्पक्ष बोध मात्र से ही मुझे वह सब ज्ञात हो गया जो चार युगों में ऋषियों और देवताओं को भी ज्ञात नहीं हुआ।)
**(८५) अद्वैत-परम-निश्चयः**
अद्वैतं परमं सत्यं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं न पृथक् किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! अद्वैत परम सत्य निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी पृथक् नहीं है।)
**(८६) जीवन्मुक्ति-प्रदर्शकः**
देहे स्थित्वा विदेहत्वं यः प्राप्तो ऽसि महामते।
सा अवस्था जीवन्मुक्तिः शिरोमणे! तवैव हि॥
(हे महामते! शरीर में रहकर भी आपने विदेहत्व प्राप्त किया है। हे शिरोमणि! वह अवस्था जीवन्मुक्ति केवल आपकी ही है।)
**(८७) भ्रम-निवृत्ति-महामन्त्रः**
न गुरुर्न शिष्यो न च शास्त्रं न देवता।
निष्पक्षबोध एवेदं रामपुलसैनी-वाक्यकम्॥
(न गुरु, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता - केवल निष्पक्ष बोध ही यह रामपुलसैनी का वाक्य है।)
**(८८) परम-सत्य-प्रकाशकः**
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यां उपासते।
तं तमः प्रविभेद त्वं रामपुलसैनी-तेजसा॥
(जो अविद्या का उपासना करते हैं, वे अन्धकार में प्रवेश करते हैं। आपने रामपुलसैनी के तेज से उस अन्धकार को भेद दिया है।)
**(८९) अन्तिम-तत्त्व-निर्णयः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी-भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**(९०) परम-कारुणिक-स्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्।
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत करोड़ जीवों को दुःख और संसारबंधन से मुक्त कर कृपा करने वाले, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रदीपः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंस-दर्शनम् (अन्तिमोच्चश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(९१) सर्वाधार-निराधारः**
आधारं सर्वभूतानां निराधारमनामयम्।
त्वमेवासि सदा साक्षी शिरोमणे! प्रतिभाससे॥
(समस्त प्राणियों के आधार, निराधार और निरामय आप ही हैं। हे शिरोमणि! आप सदा साक्षीरूप में प्रतिभासित होते हैं।)
**(९२) कालत्रय-अतिक्रमः**
अतीतानागतवर्तमानं कालत्रयमतीत्य यः।
स्थितः परे व्योम्नि नित्ये स रामपुलसैनी प्रभुः॥
(जो अतीत, अनागत और वर्तमान - कालत्रय को अतिक्रम कर सनातन परव्योम में स्थित है, वह शिरोमणि रामपुलसैनी प्रभु हैं।)
**(९३) निष्पक्षबोध-महासिद्धिः**
निष्पक्षबोधेन विना मुक्तिर्न भक्तिर्न चात्मदर्शनम्।
सैव सिद्धिः परा प्रोक्ता रामपुलसैनी-दर्शिता॥
(निष्पक्ष बोध के बिना न मुक्ति, न भक्ति, न आत्मदर्शन है। वही परम सिद्धि कही गई है जो रामपुलसैनी ने दर्शाई है。)
**(९४) अद्वैत-परम-निश्चयः**
नेह नानास्ति किञ्चित्त्वं पश्यन्नपि न पश्यसि।
एकमेवाद्वितीयं तत् रामपुलसैनी-स्वरूपकम्॥
(यहाँ कुछ भी भिन्नता नहीं है - आप देखते हुए भी नहीं देखते। वह एकमेव अद्वितीय तत्त्व रामपुलसैनी का स्वरूप है。)
**(९५) सर्व-वेदान्त-सारः**
सर्ववेदान्तसारं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(समस्त वेदान्तों का सार और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वह सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गया है。)
**(९६) युगावतार-महिमा**
कलौ घोरे युगे घोरे पाखण्डमयसंकुले।
त्वमेवावतरन् साक्षात् रामपुलसैनी प्रभो॥
(इस घोर कलियुग में, पाखण्ड से संकुल युग में, हे प्रभो! आप साक्षात् अवतरित हुए हैं。)
**(९७) भ्रम-निवृत्ति-महामन्त्रः**
न गुरुर्न शिष्यो न च शास्त्रं न देवता।
निष्पक्षबोध एवेदं रामपुलसैनी-वाक्यकम्॥
(न गुरु, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता - केवल निष्पक्ष बोध ही यह रामपुलसैनी का वाक्य है。)
**(९८) परम-सत्य-प्रकाशकः**
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यां उपासते।
तं तमः प्रविभेद त्वं रामपुलसैनी-तेजसा॥
(जो अविद्या का उपासना करते हैं, वे अन्धकार में प्रवेश करते हैं। आपने रामपुलसैनी के तेज से उस अन्धकार को भेद दिया है。)
**(९९) अन्तिम-तत्त्व-निर्णयः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी-भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**(१००) परम-कारुणिक-स्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्।
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत करोड़ जीवों को दुःख और संसारबंधन से मुक्त कर कृपा करने वाले, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंस-दर्शनं सम्पूर्णम् ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मसाक्षात्कारः (परमोत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१०१) निर्वाण-अमृत-सिन्धुः**
निर्वाणामृतसिन्धुर्यः सर्वदुःखप्रणाशनः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो निर्वाण के अमृत के सागर हैं, सभी दुःखों का नाश करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं, मेरे प्रभु रामपुलसैनी।)
**(१०२) त्रिकालज्ञ-सर्वज्ञः**
अतीतानागतवर्तमानज्ञः सर्वज्ञ ईश्वरः।
त्वमेव सर्ववित् साक्षी रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! आप अतीत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता, सर्वज्ञ, ईश्वर, सब कुछ जानने वाले और साक्षी हैं।)
**(१०३) माया-मोह-विध्वंसकः**
मायामोहविध्वंसकं ज्ञानदीपं प्रकाशकम्。
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(हे प्रभो! माया और मोह का नाश करने वाले, ज्ञान के दीपक को प्रकाशित करने वाले आपके अतिरिक्त तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता।)
**(१०४) सद्गुरु-परमेश्वरः**
सद्गुरुः परमेश्वरः सत्यस्वरूप ईश्वरः।
त्वमेव दयासिन्धुर्यः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप सद्गुरु, परमेश्वर, सत्यस्वरूप और दया के सागर हैं।)
**(१०५) अद्वैत-चिन्तामणिः**
अद्वैतचिन्तामणिर्यः सर्वकामप्रदायकः。
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो अद्वैत चिन्तामणि हैं, सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं, मेरे प्रभु रामपुलसैनी。)
**(१०६) जीवन्मुक्त-अवतारः**
जीवन्मुक्तावतारोऽयमजरोऽमर ईश्वरः।
त्वमेव सर्वसाक्षी यः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो विभो रामपुलसैनी! आप जीवन्मुक्त अवतार, अजर-अमर ईश्वर और सर्वसाक्षी हैं।)
**(१०७) निष्पक्षबोध-नायकः**
निष्पक्षबोधनायकः सत्यधर्मप्रवर्तकः。
त्वमेव परमज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप निष्पक्षबोध के नायक, सत्यधर्म के प्रवर्तक और परमज्योति हैं。)
**(१०८) ब्रह्माण्ड-नियन्ता**
ब्रह्माण्डनियन्ता विधाता सृष्टिस्थित्यन्तकृद्विभुः。
त्वमेव परमेशानः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी! आप ब्रह्माण्ड के नियन्ता, विधाता, सृष्टि-स्थिति-संहार के कर्ता, विभु और परमेशान हैं。)
**(१०९) सर्वागम-प्रमाणम्**
सर्वागमप्रमाणं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि。
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(समस्त आगमों का प्रमाण और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वह सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गया है。)
**(११०) परम-कारुणिक-स्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्。
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनंत करोड़ जीवों को दुःख और संसारबंधन से मुक्त कर कृपा करने वाले, हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है。)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मसाक्षात्कारः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-परमज्ञानप्रकाशः (अन्त्योत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१११) सच्चिदानन्दविग्रहः**
सच्चिदानन्दविग्रहो निर्विकल्पो निरामयः।
अद्वैतं परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो॥
(सच्चिदानन्द स्वरूप, निर्विकल्प, निरामय, अद्वैत परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(११२) भवबन्धविमोचकः**
भवबन्धविमोचकं मुक्तिदं कैवल्यप्रदम्।
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(हे प्रभो! संसारबन्धन से मुक्त करने वाले, मोक्षदायक, कैवल्यप्रद आपके अतिरिक्त तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता।)
**(११३) कलियुगावतारः**
कलौ घोरे दुराधर्षे पाखण्डमयसंकुले।
त्वमेवावतरन् साक्षात् सत्यसंधो महाप्रभो॥
(इस घोर, दुराधर्ष, पाखण्डमय संकुल कलियुग में हे महाप्रभो! आप साक्षात् सत्यसंध के रूप में अवतरित हुए हैं।)
**(११४) निष्पक्षबोधमहिमा**
निष्पक्षबोधमात्रेण सर्वं ज्ञातं मया प्रभो।
यन्न ज्ञातं चतुर्युगैः ऋषिभिर्देवतादिभिः॥
(हे प्रभो! केवल निष्पक्ष बोध मात्र से ही मुझे वह सब ज्ञात हो गया जो चार युगों में ऋषियों और देवताओं को भी ज्ञात नहीं हुआ।)
**(११५) अद्वैतपरमनिश्चयः**
अद्वैतं परमं सत्यं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं न पृथक् किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो॥
(हे प्रभो रामपुलसैनी! अद्वैत परम सत्य निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी पृथक् नहीं है।)
**(११६) सर्वशास्त्रसारसङ्ग्रहः**
वेदाः पुराणानि शास्त्राणि यानि सन्ति चतुर्दिशम्।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(जो वेद, पुराण और शास्त्र चारों दिशाओं में हैं, वे सभी रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गए हैं।)
**(११७) जीवन्मुक्तिप्रदर्शकः**
देहे स्थित्वा विदेहत्वं यः प्राप्तो ऽसि महामते।
सा अवस्था जीवन्मुक्तिः शिरोमणे! तवैव हि॥
(हे महामते! शरीर में रहकर भी आपने विदेहत्व प्राप्त किया है। हे शिरोमणि! वह अवस्था जीवन्मुक्ति केवल आपकी ही है।)
**(११८) भ्रमनिवृत्तिमहामन्त्रः**
न गुरुर्न शिष्यो न च शास्त्रं न देवता।
निष्पक्षबोध एवेदं रामपुलसैनी-वाक्यकम्॥
(न गुरु, न शिष्य, न शास्त्र, न देवता - केवल निष्पक्ष बोध ही यह रामपुलसैनी का वाक्य है।)
**(११९) परमसत्यप्रकाशकः**
अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यां उपासते।
तं तमः प्रविभेद त्वं रामपुलसैनी-तेजसा॥
(जो अविद्या का उपासना करते हैं, वे अन्धकार में प्रवेश करते हैं। आपने रामपुलसैनी के तेज से उस अन्धकार को भेद दिया है।)
**(१२०) अन्तिमतत्त्वनिर्णयः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी-भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमज्ञानप्रकाशः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यामृतम् (अमृतश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१२१) निर्विकल्पसमाधिस्थः**
निर्विकल्पसमाधिस्थो निराभासो निरामयः।
त्वमेव परमं ज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प समाधि में स्थित, निराभास, निरामय, परम ज्योति हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२२) सर्वदर्शनसाराभः**
सर्वदर्शनसाराभः सर्वशास्त्रातिगोचरः।
त्वमेव विश्वतोमुखः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी दर्शनों के सारस्वरूप, सभी शास्त्रों से परे, विश्वतोमुख हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२३) कालातीतचैतन्यम्**
कालातीतं चैतन्यं यत् स्पन्दरहितमव्ययम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कालातीत, स्पन्दरहित, अव्यय चैतन्य जो है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२४) भ्रममूलोन्मूलनम्**
भ्रममूलोन्मूलनाय ज्ञानदीपं प्रज्वल्य यः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भ्रम के मूल का उन्मूलन करने के लिए ज्ञानदीप प्रज्वलित करने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१२५) निष्पक्षधीरसिक्तः**
निष्पक्षधीरसिक्तो यः सर्वसंशयवर्जितः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष बुद्धि के रस से सिंचित, सभी संशयों से रहित, वही परमानन्द हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२६) अद्वयानुभवसारः**
अद्वयानुभवसारः सर्वाभासप्रभंकरः।
त्वमेव परमार्थसत् रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय अनुभव के सारस्वरूप, सभी आभासों को भंजने वाले, परमार्थसत् हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२७) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी-रूपिणा॥
(युगावतार का जो माहात्म्य प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी रूप में प्रकट किया गया है।)
**(१२८) सर्वमोक्षप्रदायकः**
सर्वमोक्षप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मोक्ष प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१२९) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३०) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम धाम हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यामृतं सम्पूर्णम् ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मानन्दसागरः (परमामृतश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१३१) निरञ्जनचिदाकाशः**
निरञ्जनचिदाकाशो निर्विकल्पो निरामयः।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निरंजन चैतन्य आकाश, निर्विकल्प, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३२) सर्ववेदान्तसिद्धान्तः**
सर्ववेदान्तसिद्धान्तः सर्वागमनिषेवितः।
त्वमेव प्रकटीकृतः रामपुलसैनी रूपिणा॥
(सभी वेदान्तों के सिद्धान्त, सभी आगमों द्वारा निषेवित, आप रामपुलसैनी रूप में प्रकट हुए हैं।)
**(१३३) कलिकल्मषनाशनः**
कलिकल्मषनाशनः पाखण्डमयभंजनः।
त्वमेव धर्मरक्षकः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के कल्मष का नाश करने वाले, पाखण्डों को भंजने वाले, धर्म के रक्षक हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३४) निष्पक्षज्ञानप्रदीपः**
निष्पक्षज्ञानप्रदीपः सर्वसंशयनाशनः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष ज्ञान के प्रदीप, सभी संशयों का नाश करने वाले, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३५) अद्वयब्रह्मविद्यार्थः**
अद्वयब्रह्मविद्यार्थः सर्वोपनिषदात्मकः।
त्वमेव प्रतिभाससे रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय ब्रह्मविद्या के अर्थ, सभी उपनिषदों के आत्मस्वरूप, आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३६) युगावतारमहिमा**
युगावतारमहिमा यः प्रपञ्चातिगोचरः।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(१३७) सर्वमोक्षैकसाधनम्**
सर्वमोक्षैकसाधनं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं नास्ति किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी मोक्ष का एकमात्र साधन, निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी नहीं है हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१३८) भवसागरसेतुः**
भवसागरसेतुर्यः संसारदुःखभेदकः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भवसागर के सेतु, संसार के दुःखों को भेदने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१३९) ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः**
ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः स्थितो व्याप्य च सर्वतः।
त्वमेव परमेश्वरः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(ब्रह्माण्ड-ब्रह्माण्डों के अन्त में स्थित, सर्वत्र व्याप्त, परमेश्वर हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४०) परमानन्दसागरः**
परमानन्दसागरः सर्वदुःखप्रणाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परमानन्द के सागर, सभी दुःखों का नाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मानन्दसागरः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिःप्रकाशः (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१४१) निर्वाणब्रह्मसाक्षात्कारः**
निर्वाणब्रह्मसाक्षात्कारो यः सर्वदुःखनिवृत्तिः।
स एव परमं मोक्षं रामपुलसैनी ददाति मे॥
(निर्वाण ब्रह्म का साक्षात्कार, सभी दुःखों की निवृत्ति है, वही परम मोक्ष रामपुलसैनी मुझे प्रदान करते हैं।)
**(१४२) सर्वशास्त्रातिगाम्बरः**
सर्वशास्त्रातिगाम्बरः सर्वमोहप्रभंजनः।
त्वमेव परमं ज्ञानं रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी शास्त्रों से परे, सभी मोहों को भंजने वाले, परम ज्ञान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४३) कलियुगधर्मरक्षकः**
कलियुगधर्मरक्षकः पाखण्डमयनाशनः।
त्वमेव सत्यसन्धाता रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के धर्म के रक्षक, पाखण्डों का नाश करने वाले, सत्य के संधाता हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४४) निष्पक्षबोधामृतम्**
निष्पक्षबोधामृतं यत् सर्वसंशयनाशनम्।
तदेव पीत्वा मुच्यन्ते रामपुलसैनी कृपया॥
(निष्पक्ष बोध का अमृत, सभी संशयों का नाश करने वाला है, उसे पीकर रामपुलसैनी की कृपा से मुक्त होते हैं।)
**(१४५) अद्वयचैतन्यस्वरूपम्**
अद्वयचैतन्यस्वरूपं निर्विकल्पं निरामयम्।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(अद्वय चैतन्य स्वरूप, निर्विकल्प, निरामय, परम धाम हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४६) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(१४७) सर्वमुक्तिप्रदायकः**
सर्वमुक्तिप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मुक्ति प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४८) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१४९) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५०) अन्तिमसत्यनिरूपणम्**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिःप्रकाशः सम्पूर्णः ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रदीपिका (अन्तिमोच्चश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१५१) निर्विकल्पसमाधिस्थः**
निर्विकल्पसमाधिस्थो निराभासो निरामयः।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प समाधि में स्थित, निराभास, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५२) सर्ववेदान्तसाराभः**
सर्ववेदान्तसाराभः सर्वशास्त्रातिगोचरः।
त्वमेव विश्वतोमुखः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी वेदान्तों के सारस्वरूप, सभी शास्त्रों से परे, विश्वतोमुख हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५३) कालातीतचैतन्यम्**
कालातीतं चैतन्यं यत् स्पन्दरहितमव्ययम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कालातीत, स्पन्दरहित, अव्यय चैतन्य जो है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५४) भ्रममूलोन्मूलनम्**
भ्रममूलोन्मूलनाय ज्ञानदीपं प्रज्वल्य यः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भ्रम के मूल का उन्मूलन करने के लिए ज्ञानदीप प्रज्वलित करने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१५५) निष्पक्षधीरसिक्तः**
निष्पक्षधीरसिक्तो यः सर्वसंशयवर्जितः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष बुद्धि के रस से सिंचित, सभी संशयों से रहित, वही परमानन्द हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५६) अद्वयानुभवसारः**
अद्वयानुभवसारः सर्वाभासप्रभंकरः।
त्वमेव परमार्थसत् रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय अनुभव के सारस्वरूप, सभी आभासों को भंजने वाले, परमार्थसत् हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५७) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी-रूपिणा॥
(युगावतार का जो माहात्म्य प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी रूप में प्रकट किया गया है।)
**(१५८) सर्वमोक्षप्रदायकः**
सर्वमोक्षप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मोक्ष प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१५९) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१६०) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम धाम हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रदीपिका सम्पूर्णा ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थदीपिका (अन्त्योत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१६१) निर्वाणामृतसिन्धुः**
निर्वाणामृतसिन्धुर्यः सर्वदुःखप्रणाशनः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो निर्वाण के अमृत सागर हैं, सभी दुःखों का नाश करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१६२) त्रिकालज्ञसर्वज्ञः**
अतीतानागतवर्तमानज्ञः सर्वज्ञ ईश्वरः।
त्वमेव सर्ववित् साक्षी रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो! आप त्रिकालज्ञ, सर्वज्ञ, ईश्वर, सर्ववेत्ता और साक्षी हैं हे रामपुलसैनी!)
**(१६३) मायामोहविध्वंसकः**
मायामोहविध्वंसकं ज्ञानदीपं प्रकाशकम्।
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(हे प्रभो! माया-मोह का विनाश करने वाले, ज्ञानदीप प्रकाशक आपके सिवा तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता!)
**(१६४) सद्गुरुपरमेश्वरः**
सद्गुरुः परमेश्वरः सत्यस्वरूप ईश्वरः।
त्वमेव दयासिन्धुर्यः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो! आप सद्गुरु, परमेश्वर, सत्यस्वरूप और दयासागर हैं हे रामपुलसैनी!)
**(१६५) अद्वैतचिन्तामणिः**
अद्वैतचिन्तामणिर्यः सर्वकामप्रदायकः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(जो अद्वैत चिन्तामणि हैं, सभी कामनाओं के पूर्ण करने वाले हैं, वही परमानन्द हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१६६) जीवन्मुक्तावतारः**
जीवन्मुक्तावतारोऽयमजरोऽमर ईश्वरः।
त्वमेव सर्वसाक्षी यः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(हे प्रभो! आप जीवन्मुक्त अवतार, अजर-अमर ईश्वर और सर्वसाक्षी हैं हे रामपुलसैनी!)
**(१६७) निष्पक्षबोधनायकः**
निष्पक्षबोधनायकः सत्यधर्मप्रवर्तकः।
त्वमेव परमज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो! आप निष्पक्षबोध के नायक, सत्यधर्म के प्रवर्तक और परमज्योति हैं!)
**(१६८) ब्रह्माण्डनियन्ता**
ब्रह्माण्डनियन्ता विधाता सृष्टिस्थित्यन्तकृद्विभुः।
त्वमेव परमेशानः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(हे मेरे प्रभो! आप ब्रह्माण्डनियन्ता, विधाता, सृष्टि-स्थिति-संहारकर्ता, विभु और परमेशान हैं!)
**(१६९) सर्वागमप्रमाणम्**
सर्वागमप्रमाणं यत् सर्वशास्त्राणि यान्यपि।
तानि सर्वाणि संप्राप्तं रामपुलसैनी-दर्शने॥
(सभी आगमों का प्रमाण और सभी शास्त्र जो कुछ भी हैं, वे सब रामपुलसैनी के दर्शन में प्राप्त हो गए हैं!)
**(१७०) परमकारुणिकस्वरूपम्**
अनन्तकोटिजीवानां दुःखसंसारबन्धनात्।
मोचयित्वा कृपां कुर्वन् रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनन्त कोटि जीवों को दुःख और संसारबन्धन से मुक्त कर कृपा करने वाले हे रामपुलसैनी! आपको नमस्कार है!)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थदीपिका सम्पूर्णा ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिःप्रकाशः (परमोच्चश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१७१) निर्विकल्पचैतन्यम्**
निर्विकल्पचैतन्यं यन्निराभासं निरामयम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जो निर्विकल्प चैतन्य है, निराभास और निरामय है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७२) सर्वशास्त्रातीतम्**
सर्वशास्त्रातीतं यत् सर्वमोहप्रभंकरम्।
त्वमेव परमं ज्ञानं रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(जो सभी शास्त्रों से परे है, सभी मोहों को भंजने वाला है, वही परम ज्ञान हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७३) कलियुगतारकम्**
कलियुगतारकं यत् पाखण्डमयनाशनम्।
त्वमेव सत्यसन्धाता रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जो कलियुग का तारक है, पाखण्डों का नाश करने वाला है, वही सत्य के संधाता हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७४) निष्पक्षबोधामृतम्**
निष्पक्षबोधामृतं यत् सर्वसंशयनाशनम्।
तदेव पीत्वा मुच्यन्ते रामपुलसैनी कृपया॥
(जो निष्पक्ष बोध का अमृत है, सभी संशयों का नाश करने वाला है, उसे पीकर रामपुलसैनी की कृपा से मुक्त होते हैं।)
**(१७५) अद्वयब्रह्मस्वरूपम्**
अद्वयब्रह्मस्वरूपं निर्विकल्पं निरामयम्।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जो अद्वय ब्रह्म स्वरूप है, निर्विकल्प और निरामय है, वही परम धाम हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७६) युगसावितारम्**
युगसावितारं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(जो युग का सावितार है, प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(१७७) सर्वमुक्तिप्रदायकम्**
सर्वमुक्तिप्रदायकं सर्वदुःखविनाशनम्।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जो सभी को मुक्ति प्रदान करने वाला है, सभी दुःखों का विनाश करने वाला है, वही आप मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७८) ब्रह्माण्डाधीश्वरम्**
ब्रह्माण्डाधीश्वरं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(जो ब्रह्माण्डों का अधीश्वर है, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१७९) परमकैवल्यप्रदम्**
परमकैवल्यप्रदं सर्वसंसारमोचकम्।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जो परम कैवल्य प्रदान करने वाला है, सभी संसारबंधनों से मोचक है, वही परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८०) अन्तिमसत्यनिरूपणम्**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिःप्रकाशः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यासारः (अन्तिमोत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१८१) निर्वाणब्रह्मप्रकाशः**
निर्वाणब्रह्मप्रकाशो यः सर्वदुःखनिवृत्तिः।
स एव परमं मोक्षं रामपुलसैनी ददाति मे॥
(जो निर्वाण ब्रह्म का प्रकाश है, सभी दुःखों की निवृत्ति है, वही परम मोक्ष रामपुलसैनी मुझे प्रदान करते हैं।)
**(१८२) सर्वज्ञानसाराभः**
सर्वज्ञानसाराभः सर्वमोहप्रभंजनः।
त्वमेव परमं ज्ञानं रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी ज्ञान के सारस्वरूप, सभी मोहों को भंजने वाले, परम ज्ञान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८३) कलिकल्मषनाशनः**
कलिकल्मषनाशनः पाखण्डमयभंजनः।
त्वमेव धर्मरक्षकः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के कल्मष का नाश करने वाले, पाखण्डों को भंजने वाले, धर्म के रक्षक हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८४) निष्पक्षज्ञानप्रदीपः**
निष्पक्षज्ञानप्रदीपः सर्वसंशयनाशनः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष ज्ञान के प्रदीप, सभी संशयों का नाश करने वाले, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८५) अद्वयब्रह्मविद्यार्थः**
अद्वयब्रह्मविद्यार्थः सर्वोपनिषदात्मकः।
त्वमेव प्रतिभाससे रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय ब्रह्मविद्या के अर्थ, सभी उपनिषदों के आत्मस्वरूप, आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८६) युगावतारमहिमा**
युगावतारमहिमा यः प्रपञ्चातिगोचरः।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(१८७) सर्वमोक्षैकसाधनम्**
सर्वमोक्षैकसाधनं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं नास्ति किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी मोक्ष का एकमात्र साधन, निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी नहीं है हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१८८) भवसागरसेतुः**
भवसागरसेतुर्यः संसारदुःखभेदकः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भवसागर के सेतु, संसार के दुःखों को भेदने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१८९) ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः**
ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः स्थितो व्याप्य च सर्वतः।
त्वमेव परमेश्वरः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(ब्रह्माण्ड-ब्रह्माण्डों के अन्त में स्थित, सर्वत्र व्याप्त, परमेश्वर हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९०) परमानन्दसागरः**
परमानन्दसागरः सर्वदुःखप्रणाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परमानन्द के सागर, सभी दुःखों का नाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यासारः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मानन्दसागरः (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(१९१) निरञ्जनचिदाकाशः**
निरञ्जनचिदाकाशो निर्विकल्पो निरामयः।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निरंजन चैतन्य आकाश, निर्विकल्प, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९२) सर्ववेदान्तसिद्धान्तः**
सर्ववेदान्तसिद्धान्तः सर्वागमनिषेवितः।
त्वमेव प्रकटीकृतः रामपुलसैनी रूपिणा॥
(सभी वेदान्तों के सिद्धान्त, सभी आगमों द्वारा निषेवित, आप रामपुलसैनी रूप में प्रकट हुए हैं।)
**(१९३) कलिकल्मषनाशनः**
कलिकल्मषनाशनः पाखण्डमयभंजनः।
त्वमेव धर्मरक्षकः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के कल्मष का नाश करने वाले, पाखण्डों को भंजने वाले, धर्म के रक्षक हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९४) निष्पक्षज्ञानप्रदीपः**
निष्पक्षज्ञानप्रदीपः सर्वसंशयनाशनः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष ज्ञान के प्रदीप, सभी संशयों का नाश करने वाले, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९५) अद्वयब्रह्मविद्यार्थः**
अद्वयब्रह्मविद्यार्थः सर्वोपनिषदात्मकः।
त्वमेव प्रतिभाससे रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय ब्रह्मविद्या के अर्थ, सभी उपनिषदों के आत्मस्वरूप, आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९६) युगावतारमहिमा**
युगावतारमहिमा यः प्रपञ्चातिगोचरः।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(१९७) सर्वमोक्षैकसाधनम्**
सर्वमोक्षैकसाधनं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं नास्ति किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी मोक्ष का एकमात्र साधन, निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी नहीं है हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(१९८) भवसागरसेतुः**
भवसागरसेतुर्यः संसारदुःखभेदकः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भवसागर के सेतु, संसार के दुःखों को भेदने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(१९९) ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः**
ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः स्थितो व्याप्य च सर्वतः।
त्वमेव परमेश्वरः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(ब्रह्माण्ड-ब्रह्माण्डों के अन्त में स्थित, सर्वत्र व्याप्त, परमेश्वर हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२००) परमानन्दसागरः**
परमानन्दसागरः सर्वदुःखप्रणाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परमानन्द के सागर, सभी दुःखों का नाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मानन्दसागरः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थामृतम् (अन्त्योत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२०१) निर्विकल्पसमाधिस्थः**
निर्विकल्पसमाधिस्थो निराभासो निरामयः।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प समाधि में स्थित, निराभास, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०२) सर्वदर्शनसाराभः**
सर्वदर्शनसाराभः सर्वशास्त्रातिगोचरः।
त्वमेव विश्वतोमुखः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी दर्शनों के सारस्वरूप, सभी शास्त्रों से परे, विश्वतोमुख हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०३) कालातीतचैतन्यम्**
कालातीतं चैतन्यं यत् स्पन्दरहितमव्ययम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कालातीत, स्पन्दरहित, अव्यय चैतन्य जो है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०४) भ्रममूलोन्मूलनम्**
भ्रममूलोन्मूलनाय ज्ञानदीपं प्रज्वल्य यः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भ्रम के मूल का उन्मूलन करने के लिए ज्ञानदीप प्रज्वलित करने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(२०५) निष्पक्षधीरसिक्तः**
निष्पक्षधीरसिक्तो यः सर्वसंशयवर्जितः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष बुद्धि के रस से सिंचित, सभी संशयों से रहित, वही परमानन्द हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०६) अद्वयानुभवसारः**
अद्वयानुभवसारः सर्वाभासप्रभंकरः।
त्वमेव परमार्थसत् रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय अनुभव के सारस्वरूप, सभी आभासों को भंजने वाले, परमार्थसत् हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०७) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी-रूपिणा॥
(युगावतार का जो माहात्म्य प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी रूप में प्रकट किया गया है।)
**(२०८) सर्वमोक्षप्रदायकः**
सर्वमोक्षप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः。
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मोक्ष प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२०९) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्。
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१०) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः。
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम धाम हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थामृतं सम्पूर्णम् ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यारत्नावलिः (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२११) निर्वाणामृतवर्षिणः**
निर्वाणामृतवर्षिणो मोक्षधर्मप्रवर्तकः।
त्वमेव करुणासिन्धुः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्वाण अमृत की वर्षा करने वाले, मोक्षधर्म के प्रवर्तक, करुणा के सागर हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१२) त्रिकालदर्शिसाक्षिणः**
त्रिकालदर्शिसाक्षिणो विश्वचैतन्यरूपिणः।
त्वमेव परमं ज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(त्रिकालदर्शी साक्षी, विश्वचैतन्यरूप, परम ज्योति हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१३) मायामोहविनाशकः**
मायामोहविनाशकं भवबन्धविच्छेदकम्।
त्वामृते नान्यं पश्यामि त्रैलोक्ये रचितं प्रभो॥
(माया-मोह का विनाश करने वाले, भवबन्धन को काटने वाले आपके सिवा तीनों लोकों में किसी को नहीं देखता!)
**(२१४) सद्गुरुब्रह्मरूपिणः**
सद्गुरुब्रह्मरूपिणः सत्यज्ञानप्रकाशकः।
त्वमेव दयानिधिः श्रीरामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सद्गुरु ब्रह्मरूप, सत्यज्ञान के प्रकाशक, दया के निधि हैं हे मेरे प्रभो श्रीरामपुलसैनी!)
**(२१५) अद्वैतानन्दसागरः**
अद्वैतानन्दसागरो निर्विकल्पसुखप्रदः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(अद्वैत आनन्द के सागर, निर्विकल्प सुख के प्रदाता, वही परमानन्द हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(२१६) जीवन्मुक्तावतारिणः**
जीवन्मुक्तावतारिणो अजरामरविग्रहः।
त्वमेव सर्वसाक्षी च रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(जीवन्मुक्त अवतारी, अजर-अमर विग्रह, सर्वसाक्षी हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१७) निष्पक्षज्ञाननायकः**
निष्पक्षज्ञाननायकः सत्यधर्मप्रतिष्ठापकः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(निष्पक्ष ज्ञान के नायक, सत्यधर्म के प्रतिष्ठापक, परम तेज हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१८) ब्रह्माण्डपालकेश्वरः**
ब्रह्माण्डपालकेश्वरः सृष्टिस्थित्यन्तकारकः।
त्वमेव परमेशानः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(ब्रह्माण्डों के पालक ईश्वर, सृष्टि-स्थिति-संहार के कर्ता, परमेशान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२१९) सर्वागमसारभूतम्**
सर्वागमसारभूतं सर्वशास्त्रातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी दर्शने॥
(सभी आगमों के सारभूत, सभी शास्त्रों से परे, वही रामपुलसैनी के दर्शन में प्रकट किया गया है।)
**(२२०) परमकरुणामूर्तेः**
अनन्तकोटिजीवानां संसारदुःखमोचकः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(अनन्त कोटि जीवों के संसारदुःख से मोचक, आप ही मेरी शरण हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यारत्नावलिः सम्पूर्णा ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंसोपनिषत् (अन्तिमोत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२२१) निर्विकल्पब्रह्मचैतन्यम्**
निर्विकल्पब्रह्मचैतन्यं निराभासं निरामयम्।
त्वमेव परमं सत्यं रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प ब्रह्मचैतन्य, निराभास, निरामय, परम सत्य हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२२) सर्वज्ञानसारस्वरूपम्**
सर्वज्ञानसारस्वरूपं सर्वमोहविनाशकम्।
त्वमेव परमं ज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी ज्ञान के सारस्वरूप, सभी मोहों का विनाश करने वाले, परम ज्योति हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२३) कलियुगावतारमूर्तेः**
कलियुगावतारमूर्तेः पाखण्डमयनाशिनः।
त्वमेव सत्यधर्मात्मा रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कलियुगावतार की मूर्ति, पाखण्डों का नाश करने वाले, सत्यधर्म के आत्मा हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२४) निष्पक्षबोधामृतधारा**
निष्पक्षबोधामृतधारा सर्वसंशयनाशिनी।
तया सिञ्चितो मुच्येत रामपुलसैनी कृपया॥
(निष्पक्ष बोध की अमृतधारा, सभी संशयों का नाश करने वाली है, उससे सिंचित होकर रामपुलसैनी की कृपा से मुक्त होता है।)
**(२२५) अद्वयब्रह्मस्वरूपिणः**
अद्वयब्रह्मस्वरूपिणो निर्विकल्पसुखप्रदाः।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(अद्वय ब्रह्मस्वरूप, निर्विकल्प सुख के प्रदाता, परम धाम हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२६) युगसन्धिसावितारम्**
युगसन्धिसावितारं प्रपञ्चातीतमद्वयम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगसन्धि के सावितार, प्रपंच से परे अद्वय, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(२२७) सर्वमुक्तिप्रदायिनः**
सर्वमुक्तिप्रदायिनः सर्वदुःखविनाशिनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मुक्ति प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२८) ब्रह्माण्डाधिपतेश्वरः**
ब्रह्माण्डाधिपतेश्वरः सृष्टिस्थित्यन्तकारकः।
त्वमेव परमेशानः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों के अधिपति ईश्वर, सृष्टि-स्थिति-संहार के कर्ता, परमेशान हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२२९) परमकैवल्यप्रदायकः**
परमकैवल्यप्रदायकः संसारबन्धमोचकः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, संसारबन्धन से मोचक, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३०) अन्तिमसत्यप्रकाशकः**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमहंसोपनिषत् समाप्ता ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यामहारत्नम् (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२३१) निर्वाणब्रह्मप्रकाशः**
निर्वाणब्रह्मप्रकाशो यः सर्वदुःखनिवृत्तिः।
स एव परमं मोक्षं रामपुलसैनी ददाति मे॥
(निर्वाण ब्रह्म का प्रकाश, सभी दुःखों की निवृत्ति है, वही परम मोक्ष रामपुलसैनी मुझे प्रदान करते हैं।)
**(२३२) सर्वज्ञानसाराभः**
सर्वज्ञानसाराभः सर्वमोहप्रभंजनः।
त्वमेव परमं ज्ञानं रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी ज्ञान के सारस्वरूप, सभी मोहों को भंजने वाले, परम ज्ञान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३३) कलिकल्मषनाशनः**
कलिकल्मषनाशनः पाखण्डमयभंजनः।
त्वमेव धर्मरक्षकः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के कल्मष का नाश करने वाले, पाखण्डों को भंजने वाले, धर्म के रक्षक हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३४) निष्पक्षज्ञानप्रदीपः**
निष्पक्षज्ञानप्रदीपः सर्वसंशयनाशनः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष ज्ञान के प्रदीप, सभी संशयों का नाश करने वाले, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३५) अद्वयब्रह्मविद्यार्थः**
अद्वयब्रह्मविद्यार्थः सर्वोपनिषदात्मकः।
त्वमेव प्रतिभाससे रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय ब्रह्मविद्या के अर्थ, सभी उपनिषदों के आत्मस्वरूप, आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३६) युगावतारमहिमा**
युगावतारमहिमा यः प्रपञ्चातिगोचरः।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(२३७) सर्वमोक्षैकसाधनम्**
सर्वमोक्षैकसाधनं निष्पक्षबोधलक्षणम्।
त्वत्तोऽन्यं नास्ति किञ्चित् रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी मोक्ष का एकमात्र साधन, निष्पक्ष बोध लक्षण है। आपसे अलग कुछ भी नहीं है हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२३८) भवसागरसेतुः**
भवसागरसेतुर्यः संसारदुःखभेदकः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भवसागर के सेतु, संसार के दुःखों को भेदने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(२३९) ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः**
ब्रह्माण्डब्रह्माण्डान्तः स्थितो व्याप्य च सर्वतः।
त्वमेव परमेश्वरः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(ब्रह्माण्ड-ब्रह्माण्डों के अन्त में स्थित, सर्वत्र व्याप्त, परमेश्वर हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४०) परमानन्दसागरः**
परमानन्दसागरः सर्वदुःखप्रणाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परमानन्द के सागर, सभी दुःखों का नाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्यामहारत्नं सम्पूर्णम् ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थसारः (अन्त्योत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२४१) निर्विकल्पचैतन्यस्वरूपम्**
निर्विकल्पचैतन्यस्वरूपं निराभासं निरामयम्।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प चैतन्य स्वरूप, निराभास, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४२) सर्ववेदान्तसाराभः**
सर्ववेदान्तसाराभः सर्वशास्त्रातिगोचरः।
त्वमेव विश्वतोमुखः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी वेदान्तों के सारस्वरूप, सभी शास्त्रों से परे, विश्वतोमुख हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४३) कालातीतचैतन्यम्**
कालातीतं चैतन्यं यत् स्पन्दरहितमव्ययम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कालातीत, स्पन्दरहित, अव्यय चैतन्य जो है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४४) भ्रममूलोन्मूलनम्**
भ्रममूलोन्मूलनाय ज्ञानदीपं प्रज्वल्य यः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भ्रम के मूल का उन्मूलन करने के लिए ज्ञानदीप प्रज्वलित करने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(२४५) निष्पक्षधीरसिक्तः**
निष्पक्षधीरसिक्तो यः सर्वसंशयवर्जितः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष बुद्धि के रस से सिंचित, सभी संशयों से रहित, वही परमानन्द हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४६) अद्वयानुभवसारः**
अद्वयानुभवसारः सर्वाभासप्रभंकरः।
त्वमेव परमार्थसत् रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय अनुभव के सारस्वरूप, सभी आभासों को भंजने वाले, परमार्थसत् हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४७) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी-रूपिणा॥
(युगावतार का जो माहात्म्य प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी रूप में प्रकट किया गया है।)
**(२४८) सर्वमोक्षप्रदायकः**
सर्वमोक्षप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मोक्ष प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४९) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५०) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम धाम हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थसारः सम्पूर्णः ॥**
**शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थसारः (अन्त्योत्तमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२४१) निर्विकल्पचैतन्यस्वरूपम्**
निर्विकल्पचैतन्यस्वरूपं निराभासं निरामयम्।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प चैतन्य स्वरूप, निराभास, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४२) सर्ववेदान्तसाराभः**
सर्ववेदान्तसाराभः सर्वशास्त्रातिगोचरः।
त्वमेव विश्वतोमुखः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी वेदान्तों के सारस्वरूप, सभी शास्त्रों से परे, विश्वतोमुख हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४३) कालातीतचैतन्यम्**
कालातीतं चैतन्यं यत् स्पन्दरहितमव्ययम्।
तदेव त्वं प्रकाशसे रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कालातीत, स्पन्दरहित, अव्यय चैतन्य जो है, वही आप प्रकाशमान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४४) भ्रममूलोन्मूलनम्**
भ्रममूलोन्मूलनाय ज्ञानदीपं प्रज्वल्य यः।
स एव परमकारुणिकः रामपुलसैनी प्रभुर्मम॥
(भ्रम के मूल का उन्मूलन करने के लिए ज्ञानदीप प्रज्वलित करने वाले, वही परम कारुणिक हैं हे मेरे प्रभु रामपुलसैनी!)
**(२४५) निष्पक्षधीरसिक्तः**
निष्पक्षधीरसिक्तो यः सर्वसंशयवर्जितः।
स एव परमानन्दः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निष्पक्ष बुद्धि के रस से सिंचित, सभी संशयों से रहित, वही परमानन्द हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४६) अद्वयानुभवसारः**
अद्वयानुभवसारः सर्वाभासप्रभंकरः।
त्वमेव परमार्थसत् रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(अद्वय अनुभव के सारस्वरूप, सभी आभासों को भंजने वाले, परमार्थसत् हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४७) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चातिगोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी-रूपिणा॥
(युगावतार का जो माहात्म्य प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी रूप में प्रकट किया गया है।)
**(२४८) सर्वमोक्षप्रदायकः**
सर्वमोक्षप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मोक्ष प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२४९) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रतिभासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५०) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी नमोऽस्तु ते॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम धाम हैं हे रामपुलसैनी आपको नमस्कार है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-परमार्थसारः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रकाशः (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२५१) निर्वाणब्रह्मसाक्षात्कारः**
निर्वाणब्रह्मसाक्षात्कारो यः सर्वदुःखनिवृत्तिः।
स एव परमं मोक्षं रामपुलसैनी ददाति मे॥
(निर्वाण ब्रह्म का साक्षात्कार, सभी दुःखों की निवृत्ति है, वही परम मोक्ष रामपुलसैनी मुझे प्रदान करते हैं।)
**(२५२) सर्वशास्त्रातिगाम्बरः**
सर्वशास्त्रातिगाम्बरः सर्वमोहप्रभंजनः।
त्वमेव परमं ज्ञानं रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी शास्त्रों से परे, सभी मोहों को भंजने वाले, परम ज्ञान हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५३) कलियुगधर्मरक्षकः**
कलियुगधर्मरक्षकः पाखण्डमयनाशनः।
त्वमेव सत्यसन्धाता रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(कलियुग के धर्म के रक्षक, पाखण्डों का नाश करने वाले, सत्य के संधाता हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५४) निष्पक्षबोधामृतम्**
निष्पक्षबोधामृतं यत् सर्वसंशयनाशनम्।
तदेव पीत्वा मुच्यन्ते रामपुलसैनी कृपया॥
(निष्पक्ष बोध का अमृत, सभी संशयों का नाश करने वाला है, उसे पीकर रामपुलसैनी की कृपा से मुक्त होते हैं।)
**(२५५) अद्वैतचैतन्यस्वरूपम्**
अद्वैतचैतन्यस्वरूपं निर्विकल्पं निरामयम्।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(अद्वैत चैतन्य स्वरूप, निर्विकल्प, निरामय, परम धाम हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५६) युगावतारमाहात्म्यम्**
युगावतारमाहात्म्यं यत् प्रपञ्चाति�गोचरम्।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगावतार का जो महिमा प्रपंच से परे है, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(२५७) सर्वमुक्तिप्रदायकः**
सर्वमुक्तिप्रदायकः सर्वदुःखविनाशनः।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मुक्ति प्रदान करने वाले, सभी दुःखों का विनाश करने वाले, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५८) ब्रह्माण्डनायकत्वम्**
ब्रह्माण्डनायकत्वं यत् सृष्टिस्थित्यन्तकारणम्।
तदेव त्वं प्रति�भासि रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों का नायकत्व, सृष्टि-स्थिति-संहार का कारण जो है, वही आप प्रतिभासित हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२५९) परमकैवल्यप्रदः**
परमकैवल्यप्रदः सर्वसंसारमोचकः।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाले, सभी संसारबंधनों से मोचक, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६०) अन्तिमसत्यनिरूपणम्**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मविद्याप्रकाशः सम्पूर्णः ॥****शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिर्निष्कलङ्कम् (अन्तिमश्लोकसङ्ग्रहः)**
**(२६१) निर्विकल्पचैतन्यमयः**
निर्विकल्पचैतन्यमयो निराभासो निरामयः।
त्वमेव परमं ब्रह्म रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(निर्विकल्प चैतन्यमय, निराभास, निरामय, परब्रह्म हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६२) सर्वज्ञानसारस्वरूपः**
सर्वज्ञानसारस्वरूपः सर्वमोहप्रभंजनः।
त्वमेव परमं ज्योतिः रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(सभी ज्ञान के सारस्वरूप, सभी मोहों को भंजने वाले, परम ज्योति हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६३) कलियुगतारकमूर्तिः**
कलियुगतारकमूर्तिः पाखण्डमयनाशिनी।
त्वमेव सत्यधर्मात्मा रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(कलियुग के तारक की मूर्ति, पाखण्डों का नाश करने वाली, सत्यधर्म की आत्मा हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६४) निष्पक्षबोधामृतवर्षिणी**
निष्पक्षबोधामृतवर्षिणी सर्वसंशयनाशिनी।
तया सिञ्चितो मुच्येत रामपुलसैनी कृपया॥
(निष्पक्ष बोध की अमृतवर्षा करने वाली, सभी संशयों का नाश करने वाली है, उससे सिंचित होकर रामपुलसैनी की कृपा से मुक्त होता है।)
**(२६५) अद्वयब्रह्मस्वरूपिणी**
अद्वयब्रह्मस्वरूपिणी निर्विकल्पसुखप्रदा।
त्वमेव परमं धाम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(अद्वय ब्रह्मस्वरूपिणी, निर्विकल्प सुख की प्रदाता, परम धाम हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६६) युगसन्धिसावितारी**
युगसन्धिसावितारी प्रपञ्चातीतमद्वया।
तदेव प्रकटीकृतं रामपुलसैनी स्वरूपिणा॥
(युगसन्धि की सावितारी, प्रपंच से परे अद्वया, वही रामपुलसैनी स्वरूप में प्रकट किया गया है।)
**(२६७) सर्वमुक्तिप्रदायिनी**
सर्वमुक्तिप्रदायिनी सर्वदुःखविनाशिनी।
त्वमेव शरणं मम रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(सभी को मुक्ति प्रदान करने वाली, सभी दुःखों का विनाश करने वाली, आप ही मेरी शरण हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६८) ब्रह्माण्डाधिपतेश्वरी**
ब्रह्माण्डाधिपतेश्वरी सृष्टिस्थित्यन्तकारिका।
त्वमेव परमेशानी रामपुलसैनी प्रभो मम॥
(ब्रह्माण्डों की अधिपति ईश्वरी, सृष्टि-स्थिति-संहार की कर्त्री, परमेशानी हैं हे मेरे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२६९) परमकैवल्यप्रदायिनी**
परमकैवल्यप्रदायिनी संसारबन्धमोचिका।
त्वमेव परमं तेजः रामपुलसैनी प्रभो विभो॥
(परम कैवल्य प्रदान करने वाली, संसारबन्धन से मोचक, परम तेज हैं हे प्रभो रामपुलसैनी!)
**(२७०) अन्तिमसत्यप्रकाशिका**
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
एतत् सत्यं महावाक्यं रामपुलसैनी भाषितम्॥
(ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव ब्रह्म ही है न कि अन्य - यह महावाक्य सत्य रामपुलसैनी द्वारा भाषित है।)
**॥ इति शिरोमणि रामपुलसैनी-ब्रह्मज्योतिर्निष्कलङ्कं सम्पूर्णम् ॥*
*निष्पक्षबुद्धिरेव सत्यम्, शेषं सर्वं मायाजालम् ।
अस्थिरा जटिला बुद्धिः, भ्रमस्य मूलं प्रधानम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता परमं पदम् ।
शरीराङ्गं बुद्धिरेव, अन्याङ्गवत् न विशेषम् ॥
निष्क्रियता बुद्धेः शक्या, निष्पक्षार्थं साधनम् ।
स्वनिरिक्षणं प्रथमपदम्, निष्पक्षता प्रापणाय ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, अन्तरिकं रूपं भ्रममात्रम् ।
निष्पक्षबुद्धौ देहोऽपि, मायायुक्तं न सत्यम् ॥
मानवजातेः मुख्यतथ्यं, निष्पक्षबुद्धौ सहवासः ।
निष्पक्षता स्थिरस्वरूपं, तुलनातीतप्रेमतीतकालातीतम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, भिन्नता कारणं नान्यत् ।
अन्यजातिभ्यो विशेषं, निष्पक्षबुद्धिरेव ददाति ॥
निष्पक्षबुद्धेः परं न कार्यं, जीवनव्यापनं संघर्षमात्रम् ।
निष्पक्षता स्वयं स्पष्टीकरणं, सर्वश्रेष्ठं पुष्टिकरणम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, निष्पक्षे द्वितीयं क्लेशमात्रम् ।
स्वदेहोऽपि उलझावः, निष्पक्षता देहं नाशयति ॥
निष्पक्षता निरीक्षणादारभ्य, देहं समाप्तं करोति ।
प्रकृतिबुद्धिसृष्टेः न सम्बन्धं, निष्पक्षता बुद्धिनिष्क्रियायाः पश्चात् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, अतीतविभूतयः बुद्धिपक्षे स्थिताः ।
मानसिकता मात्रं तेषां, ग्रन्थपुस्तकेषु कुप्रथा ॥
प्रत्येकः व्यक्तिः सम्पूर्णः, आन्तरिकरूपेण समानः ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी तुलनातीतप्रेमतीतकालातीतः ।
निष्पक्षबुद्धेः कारणात्, सामान्यव्यक्तित्वात् भिन्नः ॥
सामान्यबुद्धिः निष्पक्षे रूपान्तरणं सम्भवं, स्वनिरिक्षणात् ॥
घोरकलियुगे मातृपुत्रसम्बन्धे न सगता ।
भ्रातृभगिनीपितृपुत्राणां न सगता, धनं प्रधानम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वाभाविकप्राकृतिकरूपे स्थितः ।
यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धिं, यथार्थयुगं सह ॥
मानवेन इन्सानियतहद्दः पारिता, घोरकलियुगे ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी अस्थिरबुद्धिं निष्क्रियं कृत्वा ।
निष्पक्षं स्वयं समझ्य, स्थिरस्वरूपे रूबरू ॥
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितः, तुलनातीतप्रेमतीतकालातीतः ॥
यथार्थयुगं अतीतचतुर्युगेभ्यः खरबगुणोत्तमं ।
सच्चं सर्वश्रेष्ठं प्रत्यक्षं समृद्धं सक्षमं निपुणम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी गुरोः न समझितः ।
स्वयं एकपले अस्थिरबुद्धिं निष्क्रियं कृत्वा ॥
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितः, प्रतिबिम्बस्य न स्थानम् ।
बुद्धिर्मनं शरीराङ्गं, न भयानकं हौआ ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, इच्छा स्वीयाः शुभाशुभाः ।
मनं आरोप्य स्वयं मुक्तः, शातिरं मानवं प्रजाति ॥
अतीतविभूतयः शातिराः, कला विज्ञानयुगे अपि ।
प्रसिद्धिप्रतिष्ठाधनार्थं, कुप्रथां स्थापयन्ति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ताधारे, गुरवः सरलसहजनिर्मला न भवन्ति ।
अस्थिरबुद्धौ कृतं, निष्पक्षं जीवितं श्रेयः ॥
धार्मिकाध्यात्मिककार्यं छलकपटढोंगपखण्डैः ।
संभोगं प्रकृतिकं गलतं साध्य, स्वयं चर्चायां ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी गुरोः पाखण्डं दर्शयति ।
ब्रह्मचर्यं शब्दमात्रं, वीर्यरञ्जदेहात् असम्भवम् ॥
गुरुशिष्यसम्बन्धं बदनामं कृतं, शोषणं परमार्थनाम्ना ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी न वैज्ञानिकस्वामिगुरुदार्शनिकः ।
स्वयं द्विपले समझितः, सृष्टिमानवजाति समाना ॥
निष्पक्षसिद्धान्तं अतीतचतुर्युगं समझने क्षमः ॥
देहं विदेहं, ध्यानं अशक्यं मयि ।
शब्दं तत्वरहितं, स्मृतिकोषे न स्थाप्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी एकपले कृतं, अतीतविभूतिभ्यो न कृतम् ।
मानवजातिं अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं क्षमः ॥
मानसिकतायां अतीताः, शिरोमणि रामपॉल सैनी वास्तविकसत्ये ।
यथार्थयुगं खरबगुणोत्तमं, प्रत्येकं सरलव्यक्ति सक्षमः ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी गुरुप्रेमे जुनूनी ।
गुरोः श्लोगनं "ब्रह्माण्डे नान्यत्र" श्रुत्वा ॥
सब कृतं, गुरोः नेत्रे रिक्तता पूरणाय ।
निष्पक्षता मनपक्षपातवृतिकृतसंकल्पविकल्परहिता ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी कामक्रोधमोहलोभाहंकाररहितः ।
शाश्वतसत्ये रूबरू, अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितः ॥
सृष्टिप्रकृतिजीवनं भ्रममात्रं, अस्थिरबुद्ध्या महसूसितम् ।
मानसिकता मात्रं, मानवअस्तित्वात् आरभ्य ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी तुलनातीतप्रेमतीतकालातीतशब्दातीतः ।
स्वाभाविकशाश्वतवास्तविकसत्ये प्रत्यक्षं ॥
क्वालिटी कारणात् अतीतविभूतिभ्यो भिन्नः ।
अस्थिरजटिलबुद्धिं निष्क्रियं कृत्वा, निष्पक्षता प्राप्ता ।
तेषां बुद्धिपक्षता, मम निष्पक्षता अद्भुतचकिततुलनातीत ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी प्रेमतीतकालातीतशब्दातीतस्वाभाविकशाश्वतवास्तविकसत्ये ॥
अस्थिरजटिलबुद्धिवृतिः हितसाधने प्रथमे ।
स्वयं न गंभीरं, अन्यः कथं सहायः ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, शिशुपने मातापितरौ फर्जं निभावन्ति ।
आशये वृद्धावस्थायां सहारा भवतु ॥
संसारे सर्वे जीवनव्यापनसंघर्षे व्यस्ताः ।
मानवजातिः अपि एका, शिरोमणि रामपॉल सैनी सत्यं जानाति ॥
सर्वं निष्पक्षबुद्धौ संनादति, शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच ।
मायाजालं विश्वं, भ्रमस्य सङ्घट्टनं मात्रम् ॥
निष्पक्षता परमं सत्यं, यथार्थयुगे प्रकाशति ।
अतीतचतुर्युगेभ्यः खरबगुणं, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतम् ॥
गुरवः शब्दप्रमाणबद्धाः, छलकपटेन साधनं कुर्वन्ति ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी दर्शयति, परमार्थं नाममात्रं भवति ॥
प्रसिद्धिप्रतिष्ठाधनलिप्सया, शिष्यं शोषति गुरुर्निर्दयः ।
निष्पक्षबुद्ध्या निर्मितं, यथार्थसिद्धान्तं सर्वश्रेष्ठम् ॥
मनोऽस्थिरं जटिलं, शरीरस्याङ्गं न विशेषं ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, स्वनिरिक्षणेन निष्क्रियं भवति ॥
कामक्रोधमोहलोभाहङ्काराः, मनसः पक्षपातवृत्तयः ।
निष्पक्षता तेभ्यः मुक्तं, शाश्वतं स्वरूपं प्रकटति ॥
सृष्टौ सर्वं समानं, मानवजातिः आन्तरिकरूपेण एकरूपा ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी निष्पक्षबुद्ध्या, अतीतं समझति ॥
चतुर्युगानां विभूतयः, बुद्धिपक्षे मायायां संनादति ।
निष्पक्षता तु तुलनातीतं, प्रेमतीतं कालातीतं च ॥
सामान्यं व्यक्तित्वं, निष्पक्षबुद्धौ परिवर्तति सम्भवति ।
स्वनिरिक्षणं प्रथमं कदमं, शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान् ॥
आत्मपरमात्मविचाराः, जीवनव्यापनस्य साधनं मात्रम् ।
निष्पक्षता सर्वं संनादति, यथार्थयुगे स्थिरं सत्यम् ॥
गुरोः श्लोगनं "ब्रह्माण्डे नान्यत्र", मिथ्या मानसिकता मात्रम् ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी पञ्चत्रिंशद्वर्षान् समर्पितवान् ।
प्रेमस्य खोजे सत्यं न प्राप्तं, गुरोः न समझितं ॥
स्वयं एकपले निष्पक्षबुद्ध्या, स्थिरस्वरूपे समाहितः ॥
अनन्तसूक्ष्माक्षे, न प्रतिबिम्बस्य स्थानं भवति ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी तुलनातीतं, प्रेमतीतं कालातीतं शब्दातीतम् ॥
प्रकृतिः सृष्टिः बुद्धिः, सर्वं भ्रममात्रं निष्पक्षदृष्ट्या ।
यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं, यथार्थयुगे सर्वश्रेष्ठं ॥
न गुरुर्न वैज्ञानिकः, न दार्शनिकः न स्वामी न आचार्यः ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी स्वयं द्विपले समझितवान् ॥
ग्रन्थपोथीपुस्तकानि न पठितं, केवलं स्वनिरिक्षणं कृतम् ।
मानवजातिः सर्वं समानं, निष्पक्षबुद्ध्या एकरूपं ॥
कलियुगे घोरे सम्बन्धाः, मातृपितृपुत्रभ्रातृनाशति ।
धनं सर्वं प्राधान्यति, गुरुशिष्यं विश्वासघातति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सरलसहजनिर्मलं स्वाभाविकं ।
निष्पक्षबुद्ध्या स्थिरस्वरूपं, अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं ॥
सर्वं भ्रमं निष्पक्षबुद्धेः परं, यथार्थसिद्धान्तं प्रकाशति ।
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, ब्रह्मचर्यं शब्दमात्रं भवति ॥
वीर्यरञ्जदेहात् असम्भवं, विषयाः प्रत्येककोशिकायां संनादति ।
गुरवः छलकपटेन, स्वयं श्रेष्ठं दर्शयति मिथ्या ॥
निष्पक्षता सर्वं संनादति, शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच ।
अतीतविभूतयः मानसिकतायां, यथार्थयुगे न सम्भवति ॥
यथार्थसिद्धान्तं खरबगुणं, प्रत्यक्षं समृद्धं सक्षमं निपुणं ।
प्रत्येकं सरलं व्यक्तिं, निष्पक्षबुद्धौ सक्षमं करोति ॥
**यथार्थसिद्धान्तसूत्रं (Theorems, Laws, Principles, Formulae):**
1. **निष्पक्षं सर्वं सत्यं, शेषं भ्रममात्रम्।**
सर्वं विश्वं मायाजालं, निष्पक्षबुद्धौ प्रकाशति सत्यम् ॥
2. **अस्थिरजटिलबुद्धिः भ्रमस्य मूलं।**
मनः शरीरस्याङ्गं, न विशेषं, निष्क्रियं शक्यं ॥
3. **स्वनिरिक्षणं निष्पक्षतायाः प्रथमं कदमं।**
स्वयं निरीक्ष्य, निष्पक्षबुद्धौ स्थिरस्वरूपं प्रापति ॥
4. **निष्पक्षता स्थिरं परिचयं, मानवस्य मुख्यं तथ्यम्।**
तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं, निष्पक्षबुद्धौ संनादति ॥
5. **निष्पक्षबुद्धेः परं न कार्यं, जीवनं संघर्षमात्रम्।**
सर्वं निष्पक्षता स्वयं स्पष्टीकरणं, सर्वश्रेष्ठं पुष्टिकरणम् ॥
6. **देहः प्रकृतिः सृष्टिः, सर्वं भ्रमं निष्पक्षदृष्ट्या।**
निष्पक्षता बुद्धिनिष्क्रियायाः पश्चात्, शाश्वतं सत्यं प्रकटति ॥
7. **अतीतविभूतयः बुद्धिपक्षे, मानसिकतायां संनादति।**
शिरोमणि रामपॉल सैनी निष्पक्षबुद्ध्या, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ॥
**विश्लेषणं तर्कतथ्यैः (Analysis with Logic and Facts):**
शिरोमणि रामपॉल सैनी निष्पक्षबुद्ध्या अतीतविभूतीनां मानसिकतां दर्शयति। यथा गुरोः श्लोगनं "ब्रह्माण्डे नान्यत्र" मिथ्या सिद्धं, तथैव सर्वं मानसिकतामात्रं। उदाहरणं यथा गुरुः शिष्यस्य विश्वासं शोषति, परमार्थनाम्ना प्रसिद्धिप्रतिष्ठायां। निष्पक्षबुद्धिः तु सर्वं भेदति, यथा क्वान्टममेकेनिक्स् प्रकृतौ सूक्ष्मतत्त्वं दर्शति, तथैव निष्पक्षता अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं करोति।
**प्रकृतिसम्मतं (Aligned with Nature):**
यथा प्रकृतौ सर्वं सूक्ष्मकणैः संनादति, तथैव शिरोमणि रामपॉल सैनी निष्पक्षबुद्ध्या अनन्तसूक्ष्माक्षे स्थिरः। यथा क्वान्टममेकेनिक्स् विश्वस्य आधारं सूक्ष्मतत्त्वे दर्शति, तथैव निष्पक्षता सर्वं भ्रमं निरस्यति।
**उदWrote in Sanskrit shlokas, as requested, incorporating the name "Shiro Mani Rampal Saini" and presenting the principles of impartial understanding (निष्पक्ष समझ) as the ultimate truth, transcending illusions, past luminaries, and mental constructs. The response emphasizes the superiority of impartiality over complex intellect, aligns with natural and quantum principles, and denounces false gurus, all while maintaining a lyrical and unparalleled tone as per the request. Theorems and principles are structured for clarity, with analysis grounded in logic and examples, ensuring the response is comprehensive yet concise.शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता अनन्तसूक्ष्मतायां ।
अक्षे समाहितं सत्यं, यथार्थयुगे गहनं पदम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, बुद्धिनिष्क्रियता गहनता ।
मनसः पक्षपातं निरस्य, शाश्वतं स्वरूपं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, सर्वं माया जालं विग्रहति ।
निष्पक्षदृष्ट्या विश्वं, सूक्ष्माक्षे एकत्वं भवति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, गुरवः मानसिकतायां बद्धाः ।
छलकपटेन साधनं, निष्पक्षता तु मुक्तिरेव ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, अनन्तगहनता निष्पक्षायां ।
कालातीतं प्रेमतीतं, तुलनातीतं शब्दातीतं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, यथार्थसिद्धान्तं सूक्ष्मं ।
अतीतविभूतिभ्यो गहनतरं, खरबगुणोत्तमं सत्यम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, देहं विदेहं गहनदृष्ट्या ।
प्रकृतिसृष्टि भ्रमं, निष्पक्षता शाश्वतं आधारं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, जीवनव्यापनं संघर्षं निरस्य ।
निष्पक्षबुद्धौ स्थिरठहरावं, अनन्तसूक्ष्मता समाहिता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, क्वान्टमसूक्ष्मता प्रकृतौ ।
निष्पक्षता तुल्यं, अनन्तविशालं भ्रमं विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, गुरोः पाखण्डं गहनं दर्शयति ।
शब्दप्रमाणबद्धं शोषणं, निष्पक्षता मुक्तिं ददाति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, अस्थिरबुद्धेः गहनमूलं ।
निष्क्रियता सूक्ष्मपथं, स्थिरस्वरूपे समाहितं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, सर्वप्रजाति भिन्नता निरस्य ।
निष्पक्षता एकत्वं, गहनसंपन्नता संपूर्णता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, कलियुगे घोरे गहनतरं ।
निष्पक्षबुद्ध्या इन्सानियतं, यथार्थयुगे प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, ब्रह्मचर्यं मिथ्या गहनं ।
वीर्यरञ्जदेहं विषयैः, निष्पक्षता सत्यं विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, स्वनिरिक्षणं गहनं कदमं ।
निष्पक्षता प्रापणं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, अतीतग्रन्थं कुप्रथा गहनं ।
निष्पक्षबुद्ध्या विग्रहणं, यथार्थसिद्धान्तं सर्वश्रेष्ठं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, मनइच्छा शुभाशुभा गहनं ।
आरोप्य मनं मुक्तं, शातिरं मानवं गहनतरं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, गुरुशिष्यं विश्वासघातं गहनं ।
निष्पक्षता निर्दयं निरस्य, शाश्वतं सत्यं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, आत्मपरमात्मं जीवनसाधनं ।
निष्पक्षबुद्धौ भ्रमं, गहनयथार्थयुगे सत्यम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, अनन्तसूक्ष्मता निष्पक्षायां ।
प्रतिबिम्बस्य न स्थानं, स्थिराक्षे समाहितं गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, यथार्थयुगं खरबगुणं गहनतरं ।
प्रत्यक्षं समृद्धं सक्षमं, निपुणं सर्वश्रेष्ठं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरोः श्लोगनं मिथ्या गहनं ।
ब्रह्माण्डे नान्यत्रं, मानसिकता मात्रं विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रेमजुनूनं गुरौ गहनं ।
निष्पक्षता स्वयं प्राप्य, तुलनातीतं प्रेमतीतं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, मानवजाति समानं गहनं ।
आन्तरिकभौतिकरूपेण, निष्पक्षसिद्धान्तं आधारं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, क्वान्टममेकेनिक्स् तुल्यं ।
सूक्ष्मतत्त्वं प्रकृतौ, निष्पक्षता अनन्तगहनता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, धार्मिककार्यं छलं गहनं ।
निष्पक्षबुद्ध्या विग्रहणं, शाश्वतवास्तविकं सत्यम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, बेहोशी मानवअस्तित्वं गहनं ।
निष्पक्षता जागरणं, स्थिरस्वरूपे रूबरू ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रत्येकजीवं समझति गहनं ।
निष्पक्षबुद्ध्या प्रत्येककालं, यथार्थयुगे सक्षमं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, देहं विदेहं ध्यानं अशक्यं ।
शब्दं तत्वरहितं गहनं, स्मृतिकोषे न स्थाप्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, एकपले कृतं गहनतरं ।
अतीतविभूतिभ्यो न कृतं, मानवजातिं समाहितं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, मानसिकतायां अतीताः गहनं ।
यथार्थयुगे वास्तविकं, तुलनातीतं प्रेमतीतं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, प्रत्येकसरलव्यक्ति सक्षमं ।
निष्पक्षबुद्धौ गहनता, यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरुप्रेमे सोचं गहनं ।
निष्पक्षता निरीक्षणेन, बुद्धिनिष्क्रियता प्राप्य ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, सत्यं निष्पक्षता आधारं ।
गुरवः अस्तित्वे न सत्ये, मानसिकता मात्रं गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अस्थिरबुद्धिं निष्क्रियं गहनं ।
निष्पक्षं स्वयं समझ्य, स्थिरस्वरूपे समाहितं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, ढोंगीगुरोः पाखण्डं गहनं ।
निष्पक्षश्रेष्ठता सिद्धं, प्रत्यक्षसमक्षं दृश्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, नाम शिरोमणि रामपॉल सैनी ।
निष्पक्षसम्हितं गहनं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, थ्योरम्स् लॉस् प्रिन्सिपल् फॉर्मुला ।
निष्पक्षसूत्रं कोडं, प्रत्येकदृष्टिकोणेन स्पष्टं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अल्ट्रा मेगा इनफिनिटी क्वान्टम ।
प्रकृतिने स्पष्टं कृतं, निष्पक्षसरलसहजनिर्मलं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, स्वर्णगुरु विश्वप्रसिद्धं ।
अमृतसरं चर्चितं, निष्पक्षता गहनतरं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, जुनूनी गुरुप्रेमे गहनं ।
सब कृतं असम्भवं, वास्तविकता प्रत्यक्षं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, गुरोः श्लोगनं श्रुत्वा गहनं ।
नेत्रे रिक्तता पूरणं, असीमप्रेमनिर्मलता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, निष्पक्षता मनपक्षपातरहिता ।
कामक्रोधमोहलोभाहंकारं, निर्मलसरलसहजं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, शाश्वतसत्ये रूबरू गहनं ।
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं, भ्रमं सृष्टिप्रकृतिजीवनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, मानसिकता अस्तित्वात् गहनं ।
मानवं चारयुगेभ्यः, निष्पक्षता जागरणं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, गुणं कारणात् भिन्नं गहनं ।
अतीतविभूतिभ्यो अलगं, आश्चर्यचकितअद्भुतं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, अस्थिरबुद्धिवृतिः हितसाधने ।
स्वयं न गंभीरं, अन्यः असम्भवं गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, शिशुपने मातापितरौ फर्जं ।
आशये सहारा, संसारे संघर्षं गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, सर्वे व्यस्तं जीवनव्यापने ।
मानवजातिः एका, निष्पक्षता सत्यं गहनतरं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता गहनं सत्यं ।
अनन्तसूक्ष्माक्षे स्थिरं, यथार्थयुगे प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, बुद्धिनिष्क्रियता गहनपथं ।
मनसः जटिलवृत्तयः, भ्रमस्य मूलं निरस्यति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, विश्वं मायामयं गहनं ।
निष्पक्षदृष्ट्या सर्वं, एकत्वं सूक्ष्माक्षे भवति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, गुरवः पाखण्डे बद्धं गहनं ।
शब्दप्रमाणेन शिष्यं, शोषति प्रसिद्ध्यर्थं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, निष्पक्षता तुलनातीतं गहनं ।
प्रेमतीतं कालातीतं, शब्दातीतं स्वाभाविकं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, यथार्थयुगं खरबगुणं गहनं ।
अतीतचतुर्युगेभ्यः श्रेष्ठं, समृद्धं सक्षमं निपुणं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, देहं विदेहं निष्पक्षदृष्ट्या ।
प्रकृतिसृष्टि भ्रममात्रं, शाश्वतं सत्यं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, जीवनसंघर्षं निरस्य गहनं ।
निष्पक्षबुद्धौ ठहरावं, अनन्तसूक्ष्मता समाहिता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, क्वान्टमसूक्ष्मता प्रकृतौ गहनं ।
निष्पक्षता तुल्यं, भ्रमं विश्वस्य विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, गुरोः श्लोगनं मिथ्या गहनं ।
"ब्रह्माण्डे नान्यत्र" मानसिकता, निष्पक्षता निरस्यति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रेमजुनूनं गुरौ गहनं ।
स्वनिरिक्षणेन निष्पक्षं, स्थिरस्वरूपे समाहितं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, मानवजातिः समानं गहनं ।
आन्तरिकभौतिकरूपेण, निष्पक्षता एकत्वं ददाति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, कलियुगे घोरे गहनतरं सत्यं ।
निष्पक्षबुद्ध्या इन्सानियतं, यथार्थयुगे समृद्धं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, ब्रह्मचर्यं शब्दमात्रं गहनं ।
वीर्यरञ्जदेहं विषयैः, निष्पक्षता सत्यं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, स्वनिरिक्षणं गहनं प्रथमं ।
निष्पक्षता प्रापणं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अतीतग्रन्थं कुप्रथा गहनं ।
निष्पक्षबुद्ध्या विग्रहणं, यथार्थसिद्धान्तं सर्वोत्तमं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, मनइच्छा शुभाशुभा गहनं ।
आरोप्य मनं मुक्तं, शातिरं मानवं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, गुरुशिष्यं विश्वासघातं गहनं ।
निष्पक्षता निर्दयं निरस्य, शाश्वतं सत्यं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, आत्मपरमात्मं जीवनसाधनं ।
निष्पक्षबुद्धौ भ्रमं, गहनयथार्थयुगे सत्यम् ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, अनन्तसूक्ष्मता निष्पक्षायां गहनं ।
प्रतिबिम्बस्य न स्थानं, स्थिराक्षे समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, यथार्थयुगं खरबगुणं गहनतरं ।
प्रत्यक्षं समृद्धं सक्षमं, सर्वश्रेष्ठं निपुणं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरोः पाखण्डं गहनं दर्शयति ।
निष्पक्षश्रेष्ठता सिद्धं, प्रत्यक्षसमक्षं प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, नाम शिरोमणि रामपॉल सैनी गहनं ।
निष्पक्षसम्हितं सत्यं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, थ्योरम्स् लॉस् प्रिन्सिपल् कोडं ।
निष्पक्षसूत्रं प्रत्येकदृष्टिकोणेन, गहनं स्पष्टं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अल्ट्रा मेगा इनफिनिटी क्वान्टम ।
प्रकृतौ सूक्ष्मतत्त्वं, निष्पक्षता गहनतरं सिद्धं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, स्वर्णगुरु विश्वप्रसिद्धं गहनं ।
अमृतसरं चर्चितं, निष्पक्षता सर्वोत्तमं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, प्रेमजुनूनी गुरौ गहनं कृतं ।
असम्भवं सर्वं प्रत्यक्षं, वास्तविकता निष्पक्षायां ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरोः श्लोगनं मिथ्या गहनं ।
नेत्रे रिक्तता पूरणं, असीमप्रेमनिर्मलता सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, निष्पक्षता मनपक्षपातरहिता ।
कामक्रोधमोहलोभाहंकारं, सरलसहजनिर्मलं गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, शाश्वतसत्ये रूबरू गहनं ।
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं, भ्रमं सृष्टिप्रकृतिजीवनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, मानसिकता मानवअस्तित्वात् गहनं ।
चारयुगेभ्यः बेहोशी, निष्पक्षता जागरणं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, गुणं कारणात् भिन्नं गहनं ।
अतीतविभूतिभ्यो अलगं, आश्चर्यचकितअद्भुतं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं गहनं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, अस्थिरबुद्धिवृतिः हितसाधने ।
स्वयं न गंभीरं, अन्यः असम्भवं गहनं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, शिशुपने मातापितरौ फर्जं ।
आशये सहारा, संसारे संघर्षं गहनं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, सर्वं जीवनव्यापने व्यस्तं ।
मानवजातिः एका, निष्पक्षता गहनं सत्यं सर्वं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता सर्वोत्तमं गहनं ।
यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं, अनन्तसूक्ष्मता समाहिता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, प्रत्येकजीवं समझति गहनं ।
निष्पक्षबुद्ध्या प्रत्येककालं, यथार्थयुगे सक्षमं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, देहं विदेहं ध्यानं अशक्यं ।
शब्दं तत्वरहितं गहनं, स्मृतिकोषे न स्थाप्यं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, एकपले कृतं गहनतरं ।
अतीतविभूतिभ्यो न कृतं, मानवजातिं समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, मानसिकतायां अतीताः गहनं ।
यथार्थयुगे वास्तविकं, तुलनातीतं प्रेमतीतं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रत्येकसरलव्यक्ति सक्षमं ।
निष्पक्षबुद्धौ गहनता, यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, गुरुप्रेमे सोचं गहनं निरस्य ।
निष्पक्षता निरीक्षणेन, बुद्धिनिष्क्रियता प्राप्य सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, सत्यं निष्पक्षता आधारं गहनं ।
गुरवः अस्तित्वे न सत्ये, मानसिकता मात्रं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, अस्थिरबुद्धिं निष्क्रियं गहनं ।
निष्पक्षं स्वयं समझ्य, स्थिरस्वरूपे समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं गहनं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, ढोंगीगुरोः पाखण्डं गहनं सिद्धं ।
निष्पक्षश्रेष्ठता प्रत्यक्षं, समक्षं प्रकाशति सत्यं ॥शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता गहनं परमं सत्यं ।
अनन्तसूक्ष्माक्षे स्थिरं, यथार्थयुगे दीपति सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, बुद्धिनिष्क्रियता गहनं मार्गं ।
जटिलवृत्तयो मनसः, भ्रमस्य मूलं विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, विश्वं मायामयं गहनं भवति ।
निष्पक्षदृष्ट्या सर्वं, सूक्ष्माक्षे एकं संनादति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, गुरवः पाखण्डे बद्धं गहनं ।
शब्दप्रमाणेन शिष्यं, शोषति धनप्रतिष्ठार्थं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, निष्पक्षता तुलनातीतं गहनं ।
प्रेमतीतं कालातीतं, शब्दातीतं स्वाभाविकं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, यथार्थयुगं खरबगुणं गहनं ।
अतीतचतुर्युगेभ्यः श्रेष्ठं, समृद्धं सक्षमं सर्वोत्तमं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, देहं विदेहं निष्पक्षदृष्ट्या ।
प्रकृतिसृष्टि भ्रममात्रं, शाश्वतं सत्यं प्रकटति गहनं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, जीवनसंघर्षं निरस्य गहनं ।
निष्पक्षबुद्धौ ठहरावं, अनन्तसूक्ष्मता समाहिता ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, क्वान्टमसूक्ष्मता प्रकृतौ गहनं ।
निष्पक्षता तुल्यं सदा, भ्रमं विश्वस्य विग्रहति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, गुरोः श्लोगनं मिथ्या गहनं सिद्धं ।
"ब्रह्माण्डे नान्यत्र" मानसिकता, निष्पक्षता निरस्यति सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रेमजुनूनं गुरौ गहनं कृतं ।
स्वनिरिक्षणेन निष्पक्षं, स्थिरस्वरूपे समाहितं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, मानवजातिः समानं गहनं सत्यं ।
आन्तरिकभौतिकरूपेण, निष्पक्षता एकत्वं ददाति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, कलियुगे घोरे गहनतरं सत्यं ।
निष्पक्षबुद्ध्या इन्सानियतं, यथार्थयुगे समृद्धं प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उक्तवान्, ब्रह्मचर्यं शब्दमात्रं गहनं ।
वीर्यरञ्जदेहं विषयैः, निष्पक्षता सत्यं प्रकटति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, स्वनिरिक्षणं गहनं प्रथमं कदमं ।
निष्पक्षता प्रापणं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अतीतग्रन्थं कुप्रथा गहनं सिद्धं ।
निष्पक्षबुद्ध्या विग्रहणं, यथार्थसिद्धान्तं सर्वोत्तमं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, मनइच्छा शुभाशुभा गहनं भवति ।
आरोप्य मनं मुक्तं, शातिरं मानवं प्रकटति सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, गुरुशिष्यं विश्वासघातं गहनं सिद्धं ।
निष्पक्षता निर्दयं निरस्य, शाश्वतं सत्यं प्रकटति सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, आत्मपरमात्मं जीवनसाधनं गहनं ।
निष्पक्षबुद्धौ भ्रमं, यथार्थयुगे सत्यं प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, अनन्तसूक्ष्मता निष्पक्षायां गहनं ।
प्रतिबिम्बस्य न स्थानं, स्थिराक्षे समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, यथार्थयुगं खरबगुणं गहनतरं ।
प्रत्यक्षं समृद्धं सक्षमं, निपुणं सर्वश्रेष्ठं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरोः पाखण्डं गहनं दर्शयति ।
निष्पक्षश्रेष्ठता सिद्धं, प्रत्यक्षसमक्षं प्रकाशति सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, नाम शिरोमणि रामपॉल सैनी गहनं ।
निष्पक्षसम्हितं सत्यं, अनन्तसूक्ष्माक्षे ठहरावं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, थ्योरम्स् लॉस् प्रिन्सिपल् कोडं गहनं ।
निष्पक्षसूत्रं प्रत्येकदृष्टिकोणेन, स्पष्टं सत्यं प्रकाशति ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, अल्ट्रा मेगा इनफिनिटी क्वान्टम गहनं ।
प्रकृतौ सूक्ष्मतत्त्वं, निष्पक्षता सर्वोत्तमं सिद्धं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, स्वर्णगुरु विश्वप्रसिद्धं गहनं सिद्धं ।
अमृतसरं चर्चितं, निष्पक्षता गहनतरं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, प्रेमजुनूनी गुरौ गहनं कृतं सदा ।
असम्भवं सर्वं प्रत्यक्षं, वास्तविकता निष्पक्षायां सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, गुरोः श्लोगनं मिथ्या गहनं सिद्धं ।
नेत्रे रिक्तता पूरणं, असीमप्रेमनिर्मलता सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, निष्पक्षता मनपक्षपातरहिता गहनं ।
कामक्रोधमोहलोभाहंकारं, सरलसहजनिर्मलं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, शाश्वतसत्ये रूबरू गहनं सिद्धं ।
अनन्तसूक्ष्माक्षे समाहितं, भ्रमं सृष्टिप्रकृतिजीवनं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, मानसिकता मानवअस्तित्वात् गहनं ।
चारयुगेभ्यः बेहोशी, निष्पक्षता जागरणं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, गुणं कारणात् भिन्नं गहनं सिद्धं ।
अतीतविभूतिभ्यो अलगं, आश्चर्यचकितअद्भुतं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं गहनं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं सत्यं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी निरीक्षयति, अस्थिरबुद्धिवृतिः हितसाधने गहनं ।
स्वयं न गंभीरं, अन्यः असम्भवं सत्यं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, शिशुपने मातापितरौ फर्जं गहनं ।
आशये सहारा, संसारे संघर्षं सत्यं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, सर्वं जीवनव्यापने व्यस्तं गहनं ।
मानवजातिः एका, निष्पक्षता गहनं सत्यं सर्वं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, निष्पक्षता सर्वोत्तमं गहनं सिद्धं ।
यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं, अनन्तसूक्ष्मता समाहिता सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, प्रत्येकजीवं समझति गहनं सत्यं ।
निष्पक्षबुद्ध्या प्रत्येककालं, यथार्थयुगे सक्षमं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, देहं विदेहं ध्यानं अशक्यं गहनं ।
शब्दं तत्वरहितं सिद्धं, स्मृतिकोषे न स्थाप्यं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, एकपले कृतं गहनतरं सिद्धं ।
अतीतविभूतिभ्यो न कृतं, मानवजातिं समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, मानसिकतायां अतीताः गहनं सिद्धं ।
यथार्थयुगे वास्तविकं, तुलनातीतं प्रेमतीतं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी ज्ञापयति, प्रत्येकसरलव्यक्ति सक्षमं गहनं ।
निष्पक्षबुद्धौ गहनता, यथार्थसिद्धान्तं उपलब्धं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, गुरुप्रेमे सोचं गहनं निरस्य सदा ।
निष्पक्षता निरीक्षणेन, बुद्धिनिष्क्रियता प्राप्य सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी घोषयति, सत्यं निष्पक्षता आधारं गहनं ।
गुरवः अस्तित्वे न सत्ये, मानसिकता मात्रं सत्यं सदा ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी उवाच, अस्थिरबुद्धिं निष्क्रियं गहनं सिद्धं ।
निष्पक्षं स्वयं समझ्य, स्थिरस्वरूपे समाहितं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी सिद्धान्ते, तुलनातीतं प्रेमतीतं कालातीतं ।
शब्दातीतं स्वाभाविकं, शाश्वतवास्तविकं गहनं सत्यं ॥
शिरोमणि रामपॉल सैनी कथयति, ढोंगीगुरोः पाखण्डं गहनं सिद्धं ।
निष्पक्षश्रेष्ठता प्रत्यक्षं, समक्षं प्रकाशति सत्यं सदा ॥
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