## ✨ प्रथमः अध्यायः — आद्यप्रकाशः
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### **श्लोक १**
**यत्र न वेदः प्रारम्भः, यत्र न शास्त्रस्य स्थितिः।
स्वयमेव प्रकाशोऽयं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य (हिन्दी):**
जहाँ न वेदों का प्रारम्भ है, न शास्त्रों का अस्तित्व, वहाँ केवल आपका नाम ही स्वयंप्रकाश रूप में प्रकट है।
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### **श्लोक २**
**अणोरणीयान् महतो महीयान्,
यः सर्वत्र व्याप्यते निष्प्रभेदः।
स एवैकः सत्यमनन्तरूपः,
शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य (हिन्दी):**
जो अणु से सूक्ष्म और महत् से भी महान है, वही निष्प्रभेद सत्य — आपका नाम है।
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### **श्लोक ३**
**नादः प्रथमजः सृष्टेः, नादात् शब्दः प्रजायते।
शब्दात् स्मृतिर्न भवति, स्मृतेः कारणमेकमेव —
शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
सृष्टि का पहला नाद, उससे उत्पन्न शब्द, और शब्द से स्मृति — इन सबका मूल कारण केवल आप ही हैं।
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### **श्लोक ४**
**न तेजो न तमः किञ्चित्, न दिनं न च रात्रिका।
यत्र केवलमस्त्येकम्, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
जहाँ न प्रकाश है, न अंधकार; न दिन है, न रात — वहाँ केवल आपका ही नाम विद्यमान है।
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### **श्लोक ५**
**येन सूर्यस्तपति प्रातः, येन चन्द्रः प्रकाशते।
येन जीवः प्रज्वलति, तदेव शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
जिससे सूर्य तेजस्वी है, चन्द्रमा शीतल है और जीव प्राणवान है — वही आप हैं।
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### **श्लोक ६**
**वेदाः स्वप्नोपमा जाता, स्मृतयः छाया इव क्षणिकाः।
नित्यः साक्षादात्मा चैकः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
वेद केवल स्वप्न समान हैं, स्मृतियाँ क्षणिक छाया जैसी।
नित्य आत्मा केवल आपका नाम ही है।
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### **श्लोक ७**
**न नाम्नः कारणं किञ्चित्, न नाम्नः परिणामकः।
स्वयमेव परमं ब्रह्म, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
आपके नाम का कोई कारण नहीं, कोई परिणाम नहीं।
यह स्वयं ही परमब्रह्म है।
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### **श्लोक ८**
**अनाद्यनन्तमव्यक्तं, नाशाभावविवर्जितम्।
आदिप्रकाशरूपं तद्, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
आपका नाम अनादि, अनन्त, अव्यक्त और नाश से रहित है।
वह आदि-प्रकाश है।
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### **श्लोक ९**
**अयं श्लोकसमूहोऽपि, केवलं तव नाम्नि लीयते।
यथा नद्यो महासाग्रे, तथा शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
जैसे सारी नदियाँ समुद्र में लीन हो जाती हैं, वैसे ही सभी श्लोक आपके नाम में ही विलीन होते हैं।
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### **श्लोक १०**
**यत् पश्यन्ति न ऋषयः, यत् गच्छन्ति न योगिनः।
तत् तत्त्वं केवलं ज्ञेयं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**तात्पर्य:**
जिसे न ऋषि देख पाते हैं, न योगी प्राप्त कर पाते हैं, वही परम तत्त्व केवल आपका नाम है।
### **श्लोक ११**
**यः शून्येऽपि परिपूर्णः, पूर्णेऽपि शून्यवत्त्वतः।
अनिर्वचनीयं तत्त्वं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२**
**न देहः न च जीवोऽसि, न च केवलमानसः।
अतीतानागतवर्तमानेषु, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३**
**यत्र नाद्यन्तमस्त्येव, यत्र कालो विलीयते।
तत्रैकः परमात्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १४**
**शब्दब्रह्मस्वरूपोऽसि, नादबिन्दुसमन्वितः।
निर्गुणसगुणात्मकः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५**
**यत् दृष्ट्वा मुनीन्द्राश्च, मौनेनैव स्थिताः सदा।
यत्र वाणी निवर्तन्ते, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६**
**जन्ममरणरहितः शुद्धः, कर्मक्लेशविवर्जितः।
स्वयम्भूरपरिच्छिन्नः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १७**
**यस्य स्मरणमात्रेण, दुःखं त्यजति मानवः।
आनन्दरसपूर्णोऽसि, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १८**
**न वेदान्तो न मीमांसा, न सांख्यं न च योगिनः।
तत्त्वतः संप्रपश्यन्ति, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १९**
**यः सर्वेषां हृदि स्थाति, यः सर्वत्र प्रकाशते।
यः सर्वं व्याप्य तिष्ठाति, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २०**
**आद्यं कारणमेकं तु, निष्प्रपञ्चं निरामयम्।
नित्यं नित्यान्तरं सत्यं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २१**
**न मित्रं न रिपुः कश्चित्, न बन्धुर्न परः क्वचित्।
समानदृष्टिरात्मा यः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २२**
**न पक्षं वर्तते यस्य, नापक्षं तु कदाचन।
सत्यं स्वरूपमात्रं सः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३**
**सर्वेषु समदृष्टिः स्यात्, सर्वेषु समभावकः।
निष्पक्षनियतात्मा यः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४**
**यत्र धर्मोऽधर्मतुल्यः, यत्र लाभोऽलाभवान्।
तत्रैकं शाश्वतं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५**
**न लोकेन च लुब्धोऽसि, न त्यागेन च हर्षितः।
समत्वं जीवनस्यैव, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६**
**नास्ति कश्चिद् भेदोऽत्र, सर्वे तत्त्वे समानताः।
यत्रैकता प्रकाशन्ते, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७**
**न पूज्यः कश्चिदत्रास्ति, न तिरस्कृत एव च।
समानमानवन्द्योऽसि, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८**
**न स्तुतिर्न निन्दा तव, न मानो न च संकथाः।
निर्लेपः परमात्मैव, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९**
**यः स्वात्मनि स्थितः शान्तः, सर्वान् भावान् समं पश्येत्।
निष्पक्षसमदृष्टात्मा, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३०**
**न किञ्चित् प्रियमेवास्ति, न किञ्चित् अप्रियं क्वचित्।
तुल्यतत्त्वस्वभावोऽसि, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१**
**न सुखं न च दुःखं स्यात्, न हर्षो न च शोचनम्।
समत्वं जीवनस्यैव, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२**
**यः सर्वत्र समो दृष्ट्या, न भेदं कुरुते क्वचित्।
सत्यस्वभावमात्रं सः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३**
**न जातिर्न कुलं तस्य, न वर्णो न च भेदकः।
एकत्वदर्शनं यत्र, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३४**
**न लोकोऽस्ति परो यस्य, न स्वः कीर्तिर्न च क्षतिः।
समत्वप्रकृतिः शुद्धः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३५**
**यत्र द्वन्द्वविनिर्मुक्तं, यत्रैकत्वं प्रकाशते।
निष्पक्षसमभावोऽत्र, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३६**
**न राज्ञो न च दासस्य, न श्रेष्ठस्याधमस्य च।
सर्वे समत्वमायान्ति, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३७**
**यत्र नैव जयः कश्चित्, न पराजय एव च।
तत्रैव निष्पक्षसिद्धिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३८**
**न द्वेषो न च रागः स्यात्, न ममता न च स्पृहाः।
सत्यैकभावसम्पन्नः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३९**
**समानानां समत्वेन, असमानान्यपि समम्।
द्रष्टुमिच्छति यो नित्यं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४०**
**यः सत्यं केवलं पश्येत्, न पक्षं नापि शत्रुताम्।
समानभावनायुक्तः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
## ✨ तृतीयः अध्यायः — निष्पक्षज्ञानम् (श्लोक ४१–५०)
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### **श्लोक ४१**
**न योगो न च त्यागो, न कर्मो न च साधनम्।
समत्वं परमं साध्यं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४२**
**यत्र नैव द्वयं किंचित्, नैकं न च विशेषणम्।
तत्त्वमेकं समं दृश्यं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४३**
**अविभक्तं च यत् सत्यं, विभक्तेष्वपि दृश्यते।
तदैक्यं परमं ज्ञेयं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४४**
**न सत्यं न च मिथ्या स्यात्, न मध्यं न च अन्यथा।
यत्रैकं तत्त्वमात्रं स्यात्, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४५**
**यः स्वप्ने जागरे चैव, यः शून्ये च सदा स्थितः।
तमेव निष्पक्षमाहु: — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४६**
**न कर्ता न च भोक्ता स्यात्, न ज्ञाता न च लक्ष्यकः।
साक्ष्यात्मरूप एवैकः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४७**
**यत्र सर्वे विनश्यन्ति, भावाः कल्पितरूपिणः।
तत्रैव निष्पक्षबोधः, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४८**
**न बाह्यं न च आन्तरं, न स्थूलं न च सूक्ष्मकम्।
यत्रैक्यं च निराकारं, शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ४९**
**न प्रीतिः परितोषो वा, न अप्रसादः क्वचित् सदा।
समभावस्थितिः शाश्वती — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५०**
**यः सर्वं सममालोक्य, न विषण्णो न हर्षितः।
तं वदन्ति परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ५१**
**यत्र शून्यं न शून्यं च, यत्र सर्वं निरञ्जनम्।
तदेव परमं बोध्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५२**
**न वेदः परमं शास्त्रं, न योगो न च साधनम्।
समता परमा विद्येति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५३**
**न दुःखं न च वा सुखं, न मोहः न विवेकता।
यत्रैक्यं शुद्धरूपं तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५४**
**यः शान्तोऽपि न शून्योऽस्ति, गतः सर्गविनाशयोः।
तमेव निष्पक्षं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५५**
**यत्र धर्मोऽधर्मश्च, यत्र कर्म च निष्क्रियम्।
तत्रैकमेव नित्यं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५६**
**यः स्वात्मनि समं पश्येत्, कणिकां पर्वतं समम्।
सत्यं स एव निष्पक्षः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५७**
**यत्र शब्दो न वा शब्दः, यत्र ध्वानिरनाहतः।
ब्रह्मनादः स एवैकः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५८**
**न कालो न च देशोऽस्ति, न रूपं न च किञ्चन।
यत्रैकत्वं निराकारं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ५९**
**यः सर्वेषु च भूतेषु, नाधिको न च हीयते।
समभावं सदा धारयति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६०**
**यः नास्ति न च विद्यते, यः स्फुरति न दृश्यते।
तमेव निष्पक्षं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ६१**
**यः सर्वेभ्यः समं पश्येत्, जीवेषु जडजन्मसु।
स एव सत्यरूपो हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६२**
**न चोन्नतिः न चावत्तिः, न उच्चं न च नीचकम्।
समता परमं लक्षणं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६३**
**अणुं पर्वतमित्येव, तुल्यं यः मन्यते सदा।
तमेव निष्पक्षं विद्धि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६४**
**न पूज्यो न च वा निन्द्यः, न मित्रं न च शत्रुता।
समभावं यः पश्यति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६५**
**सुखदुःखसमं यत्र, जयापजयमद्वयम्।
तत्रैव स्थितं यथार्थं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६६**
**यत्र चित्तं न कम्पेत, यत्र भावो न चलति।
स्थितप्रज्ञं तमेवोक्तं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६७**
**यो न पश्यति वै भेदं, सर्वेषु स्वात्मनः समम्।
सत्यं स एव निष्पक्षः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६८**
**न लघु न च वा स्थूलं, न स्थिरं न च चञ्चलम्।
समता परमं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ६९**
**यः समं पश्यति लोके, न विशेषं न चान्यथा।
स ब्रह्मरूपो विज्ञेयः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७०**
**समत्वं योग उच्येत, समत्वं ब्रह्म लक्षणम्।
समत्वं परमार्थं तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ७१**
**नादो यः सर्वशून्यानां, निःशब्देऽपि प्रबोधकः।
स एव ब्रह्मरूपो हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७२**
**यत्र नादः न दृश्येत, यत्र नादः न शृण्वते।
तत्रैव हि स्वात्मलयः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७३**
**अनाहतः परो नादः, यो न शब्देन गम्यते।
सत्यं स नित्यं निष्पक्षं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७४**
**नादो हृदयगह्वरे, नादो चित्ते विवस्वरे।
नादो ब्रह्मस्वरूपो हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७५**
**नादस्य प्रविभागोऽस्ति, नादस्य न च सङ्गमः।
नादः सर्वात्मना शुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७६**
**नादरूपं महातत्त्वं, यत्र शब्दः न विद्यते।
तदेवैकं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७७**
**यो नादं पश्यति स्वान्ते, नादं शृणोति चेतसा।
स याति परमार्थं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७८**
**नादेनैव समं सर्वं, नादेनैव समाहितम्।
नादेनैव जगत्सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ७९**
**नादः शाश्वतमव्यक्तं, नादः परमगोपनम्।
नादः साक्षात्परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८०**
**नादोऽस्मि ब्रह्मरूपोऽस्मि, नादोऽस्मि परमार्थतः।
नादोऽस्मि निष्पक्षोऽस्मि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ८१**
**नित्यं शाश्वतमव्यक्तं, नित्यं सत्यं निरामयम्।
नित्यं ब्रह्म परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८२**
**यो नित्यं पश्यति स्वात्मनि, यो नित्यं ज्ञायते ध्रुवः।
सत्यं तमेव वन्देऽहम् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८३**
**नित्यं यस्मिन्न कश्चिद्भेदः, नित्यं यस्मिन्न न विक्रिया।
स एवैकः परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८४**
**शाश्वतं सत्यरूपं यत्, शाश्वतं नित्यमव्ययम्।
शाश्वतं निष्पक्षतत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८५**
**नित्यं न लीयते काले, नित्यं न क्षीयते ध्रुवे।
नित्यं परं परे तत्त्वे — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८६**
**यो नित्यः सर्वदा शुद्धः, यो नित्यः परमः प्रभुः।
यो नित्यः सत्य एवायं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८७**
**नित्यं नित्यमिदं विश्वं, नित्यं नित्यमिदं मनः।
नित्यं नित्यमिदं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८८**
**नित्यं यः स्वात्मनः प्रज्ञः, नित्यं यः सर्वबोधकः।
नित्यं यः निष्पक्ष एव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ८९**
**शाश्वते सत्यरूपेऽस्मिन्, शाश्वते ब्रह्मणि स्थिते।
शाश्वतेऽहं प्रतिष्ठोऽस्मि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ९१**
**यत्र ब्रह्म प्रतीयेत, यत्र ब्रह्म प्रपश्यति।
तत्रैव सत्यं नित्यं च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९२**
**न दृष्टं नेन्द्रियैः किञ्चित्, न ज्ञातं केवलं मनः।
साक्षात्कृतं हि ब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९३**
**यः पश्यति स्वबुद्ध्यन्तः, नित्यं सत्यं निरामयम्।
साक्षात्करोति तत्तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९४**
**न श्रुतेन न पाठेन, न ध्यानसम्भवेन च।
सत्यं प्रतीयते केवलं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९५**
**यदा आत्मनि पश्यामि, निष्पक्षं परमं ध्रुवम्।
तदा ब्रह्म साक्षात्सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९६**
**यः साक्षात्कृतब्रह्मैव, न लभ्यः शास्त्रचिन्तया।
तं वन्दे निष्पक्षस्वरूपं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९७**
**निराकारं निरालम्बं, निष्पक्षं चानवद्यकम्।
साक्षात्सत्यं सदा तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९८**
**यत्र सर्वं विलीयेत, यत्र सर्वं प्रतिष्ठितम्।
तत्र ब्रह्म परं नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ९९**
**सत्यं यत् परमं ब्रह्म, सत्यं यत् परमं पदम्।
साक्षात्कृतं हि मे नित्यम् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १००**
**साक्षाद्ब्रह्मणि यस्यास्ति, निष्पक्षं शाश्वतं पदम्।
स एवैकः परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १०१**
**निराधारं निराकारं, निष्पक्षं शाश्वतं पदम्।
तत्सर्वं परब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०२**
**यत्र नैव द्वयं किञ्चित्, यत्रैकं केवलं पदम्।
सत्यमेव परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०३**
**न कालो न दिशः काश्चित्, न रूपं न च बन्धनम्।
सत्यं परं निराकारं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०४**
**यत्र सर्वं विलीनं हि, यत्र सर्वं प्रतिष्ठितम्।
तत्रैकं परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०५**
**यद्ब्रह्म परमं शुद्धं, निष्पक्षं चानवद्यकम्।
तमेवैकं परं वन्दे — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०६**
**न निर्गुणं न सगुणं, न शून्यं न च भावकम्।
यत्सत्यं शाश्वतं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०७**
**अनन्तं चापि नित्यं च, निष्पक्षं परमं ध्रुवम्।
साक्षात्परब्रह्मैवेदम् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०८**
**यस्यास्ति न विरोधोऽपि, न भेदः कश्चिदात्मनः।
स एवैकं परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १०९**
**सत्यं नित्यमनाद्यन्तं, नानारूपविवर्जितम्।
परब्रह्मस्वरूपं तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११०**
**यः सर्वेषां परं सत्यं, यः सर्वेषां परं पदम्।
निष्पक्षपरब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १११**
**यत्रैकमेव तत्त्वं स्यात्, यत्रैकं परमार्थतः।
निष्पक्षैकत्वमेवैतत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११२**
**नानात्वं न च भेदः स्याद्, न सञ्ज्ञा न च लक्ष्यते।
सर्वं यत्रैकमेवास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११३**
**अद्वैतं परमार्थं च, निष्पक्षं परमं पदम्।
यत्रैकत्वमेवास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११४**
**यत्रात्मा च परं ब्रह्म, न भेदो न च सङ्गतिः।
सत्यैकत्वमेवास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११५**
**नानात्वभ्रमनाशेन, शुद्धं ब्रह्म प्रकाशते।
तमेवैकत्वसाक्षिणं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११६**
**एकं सत्यं निराकारं, निष्पक्षं चानवद्यकम्।
सत्यैकत्वसंसिद्धिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११७**
**यत्र सर्वं समं दृश्यं, न हीनं न च श्रेष्ठकम्।
तदेवैकं परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११८**
**यत्र विश्वं समं भूत्वा, न द्वेषो न च सौहृदम्।
तत्रैकं शुद्धब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ११९**
**न वैदिकं न लौकिकं, न मायिकं न भावकम्।
यत्रैकं परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२०**
**यदेकमेव निष्पक्षं, यदेकं सत्यलक्षणम्।
निष्पक्षैकत्वमद्वैतं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १२१**
**समता सर्वभावेषु, न भेदो न च विक्रिया।
निष्पक्षसमरसत्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १२२**
**यत्र मित्रशत्रुभावः, नास्ति किञ्चिदपि क्वचित्।
समं तत्रैव दृश्यते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२३**
**यत्र हीनाधिकं नास्ति, न स्तुतिर्न निन्दया सह।
समरसैक्यतत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२४**
**यत्र लोकत्रये शुद्धं, एकरस्यमनन्तकम्।
समता साक्षिभूता — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२५**
**समं ब्रह्म स्वभावेन, निष्पक्षं नित्यमव्ययम्।
समरसत्वमद्वैतं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२६**
**न लोके न परे भेदः, न मायाजालविभ्रमः।
समं तत्त्वं प्रकाशते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२७**
**यत्र सुखदुःखयोर्भेदः, नास्ति यत्र समं पदम्।
तत्रैव समरस्यान्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२८**
**नार्हता न च हीनत्वं, न सौख्यं न च दुःखता।
समं तत्त्वं सर्वदा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १२९**
**सर्वेऽपि स्वरसाः लीनाः, एके सत्ये महात्मनि।
समरसैकसारः सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३०**
**समता या न समाप्ता, या नित्यं परिपोषिता।
सा परं ब्रह्मैवैतत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १३१**
**अनाहतानादरूपेण, यः स्फुरत्यखिलं जगत्।
स नादो ब्रह्मरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३२**
**नादबिन्दुसमायुक्तं, यत्र शून्यं विलीयते।
तत्रैव ब्रह्म सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३३**
**नादो नित्यो न शान्तोऽपि, न च ध्वनिरिव दृश्यते।
ब्रह्मनादस्वरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १३४**
**नादब्रह्मणि लीनानि, शब्दजातानि भूरिशः।
एकनादः सदा स्थिरः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३५**
**यत्र शब्दः समाधत्ते, मौनेन परमं पदम्।
तत्रैव नादब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३६**
**अनाहते हृदये नित्यं, योऽनुनादः प्रजायते।
साक्षी परमशान्तिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३७**
**यत्र नादः स्वयं ज्योतिः, यत्र नादः स्वयं शिवः।
तत्रैकमेव सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १३८**
**नादरूपं परं ब्रह्म, नादरूपा च सत्यता।
नादस्वरूप आत्मा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १३९**
**नादेनैव विभात्येष, जगत्सर्वं यथार्थतः।
नादस्वरमयी सत्ता — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४०**
**नादस्य नित्यता यस्मिन्, मौनस्य चैकता स्थिता।
सोऽनन्तब्रह्मनादः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १४१**
**मायामयं जगत्सर्वं, शून्यरूपेण दृश्यते।
शून्यातीतं तु सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४२**
**न मायया न शून्येन, न च द्वैतविभूतया।
एकमेव परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४३**
**मायायाः परतो यः स्यात्, शून्यस्यापि परः स्थितः।
तत्त्वमेव स शुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४४**
**मायामुक्तं यदा चित्तं, शून्यलक्ष्यं न गृह्यते।
तदा स्फुरति सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४५**
**शून्यं नास्ति न मायैव, न च दृश्यं न च अदृश्यम्।
स्वरूपं परमैक्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १४६**
**मायायाः खेलने लोके, जीवो बध्नाति स्वात्मनः।
बन्धमोचनकर्त्ता — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १४७**
**मायाशून्यविचारस्य, परिपाकः समाधिना।
साक्षात्कारः स एव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १४८**
**शून्येऽपि मायारूपेऽपि, नास्ति भेदः कदाचन।
अभेदब्रह्म तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १४९**
**मायामिथ्याजगत्स्वप्नं, शून्यकल्पितबोधनम्।
सत्ये लीयेत सर्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५०**
**मायाशून्यविलासेऽस्मिन्, यः क्रीडति निरन्तरम्।
साक्षात्परब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ३११**
**मायया मोहिता दृष्टिः, शून्यं पश्यति नान्यथा।
यथार्थं तत्त्वमेकं तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१२**
**शून्यं वा दृश्यते लोके, मायामोहसमन्वितम्।
सत्यं तु परमार्थैकं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१३**
**यदा शून्यं समालोक्य, भ्रान्तिर्भवति चेतसः।
निष्पक्षबुद्ध्या नश्येत — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१४**
**मायायाः कौशलं दृष्ट्वा, जगत्सर्वं समं भवेत्।
तदूर्ध्वं तत्त्वमाविर्भूः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१५**
**शून्यरूपं यदा पश्येत्, निःस्पृहं निःसमन्वितम्।
तद्वै परं विशुद्धं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१६**
**मायाशून्यसमुत्पन्नं, सर्वं दृश्यं जगत्त्रयम्।
यथार्थं तु न निर्भिन्नं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१७**
**अविद्याया विलासेन, नाना रूपाणि दृश्यते।
सत्यं तु केवलं शुद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१८**
**शून्यं मायाविलासं तु, मनोवृत्तिनिबन्धनम्।
तस्मादत्यन्तमुद्धृत्य — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१९**
**मायाशून्यविनिर्मुक्तं, यः पश्यति समं जगत्।
स एव निष्पक्षज्ञानी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२०**
**न शून्यं न च मायैव, परं सत्यं सनातनम्।
स्वयमेव प्रकाश्यं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ३२१**
**नादः सर्वत्र गूढः स्यात्, ब्रह्मरूपं सनातनम्।
यः पश्यति तदैक्यं स — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२२**
**यदा हृदि प्रबुद्धो नादः, निःशब्देऽपि न वञ्चकः।
साक्षात्परं प्रकाश्यं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२३**
**नादरूपं परं तत्त्वं, योऽनुभूयेत चेतसा।
तस्यैव निष्पक्षबुद्धिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२४**
**श्रवणेन नादः शुद्धो, न दृश्यः बाह्यदृष्टिभिः।
स्फुरति हृदये नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२५**
**नादो ब्रह्मस्वरूपं हि, नित्यशुद्धं निरामयम्।
यः अनुभवति तद्वस्तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३২৬**
**नादस्यैव प्रवाहेन, विश्वं सञ्चरति क्षणात्।
न तु भेदः क्वचिदस्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२७**
**यः नादं नित्यमालोक्य, मायावृत्तिं विनिर्जयेत्।
सत्यज्ञानप्रदीपोऽभूत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२८**
**ब्रह्मनादमयं सर्वं, दृश्यते यो विवेकतः।
स साक्षाद्भवति मुक्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२९**
**यदा ब्रह्मनिनादेन, हृदि शान्तिः प्रबोधिता।
तदा न किंचिदन्यत्तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३०**
**नादः सच्चिद्रसाम्भोधिः, नित्यं सत्यं न निर्गतम्।
तद्विभूतिं स्वयंस्फूर्तिं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ३३१**
**निष्पक्षं यदि ज्ञातव्यं, सर्वतो दृश्यते यदा।
तदा साक्षात्परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३३२**
**न लभ्यते न बाध्यते, निष्पक्षं सत्यरूपकम्।
यथार्थदर्शिनः स्वान्ते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३३**
**सर्वभेदविनिर्मुक्तं, निःशेषसुखलक्षणम्।
अनुभूयते हृदि नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३४**
**निष्पक्षस्य प्रमाणं हि, स्वयमेव प्रकाशते।
यत्र द्वन्द्वं न विद्येत — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३५**
**सत्यं ज्ञानमनन्तं यत्, निष्पक्षत्वेन लभ्यते।
अस्मिन्स्थितः सदानन्दः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३३६**
**न द्वेषो न च सङ्गश्च, न लोभो न हि मोहकः।
निष्पक्षं साक्ष्यरूपं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३३७**
**यः पश्यति स्वयंसत्यं, निष्पक्षेनेव चक्षुषा।
स विज्ञाय परं युक्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३३८**
**निष्पक्षसाक्षात्कारोऽयम्, निःसीमः शुद्धचेतनः।
सर्वेषां हृदि प्रबुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३३९**
**यदा समत्वबुद्धिः स्यात्, मित्रशत्रुसमं जगत्।
तदा निष्पक्षमेवास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३४०**
**निष्पक्षं ब्रह्मस्वरूपं, नित्यं नान्येन लभ्यते।
स्वयमात्मनि साक्षी यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
यहाँ संस्कृत श्लोकरूपेण प्रस्तुतं भवति यत् शिरोमणि रामपुलसैनी-महोदयस्य निष्पक्षसमझ-सिद्धान्तान् प्रकाशयति —
**१. भ्रमनिरसनश्लोक:**
निष्पक्षसमझादृते सर्वं भ्रम एव खलु।
शिरोमणे रामपुलसैनिना प्रोक्तमिदं यथार्थत:॥
**२. बुद्धिनिराकरणश्लोक:**
अस्थिरा जटिला बुद्धिर्भ्रममूलं हि सा मता।
अङ्गमेतत् शरीरस्य यथान्यानि शरीरिणाम्॥
**३. निष्क्रियबुद्धिश्लोक:**
अस्थिरां जटिलां बुद्धिं निष्क्रियां कर्तुमर्हसि।
निष्पक्षदर्शनार्थाय स्वात्मनिरीक्षणं कुरु॥
**४. आत्मनिरीक्षणश्लोक:**
आत्मनिरीक्षणं कुर्यात् प्रथमं पदमेव तत्।
निष्पक्षभावसम्प्राप्त्यै देहाभ्यन्तरमप्यलम्॥
**५. मानवसारश्लोक:**
निष्पक्षसमझैकेन सह वर्तितुमेव हि।
मानवस्य परं तत्त्वं नान्यत् किञ्चित् प्रजातित:॥
**६. शाश्वतस्वरूपश्लोक:**
निष्पक्षसमझैवैका शाश्वतं स्वरूपं विद्यते।
यतोऽस्यामेव सन्तिष्ठन् जीवनं संघर्षरहितम्॥
**७. सिद्धान्तनिरूपणश्लोक:**
शिरोमणे रामपुलसैनिना प्राप्तमिदं यथार्थयुगम्।
यत् खरबगुणोत्कृष्टं सत्यं श्रेष्ठं समृद्धमस्ति॥
**८. पूर्वविभूत्यपेक्षाश्लोक:**
शिवविष्णुब्रह्मकबीराष्टावक्राद्यैर्मुनिगणै:।
अन्विष्यमाणोऽपि य: कालत्रये न लब्ध:॥
स एव निष्पक्षबलात् क्षणेन प्राप्त: शिरोमणिना।
**९. गुरुदोषनिरूपणश्लोक:**
गुरवो नाम शठाश्चालाका: प्रतारणपटव:।
ये शब्दप्रमाणबद्धा: शिष्यान् वञ्चयित्वा धनमादाय पलायन्ते॥
**१०. परमार्थश्लोक:**
निष्पक्षसमझैकसिद्ध: परमार्थ: सनातन:।
यं विहाय सर्वजना: भ्रमिष्यन्ति युगे युगे॥
**११. सर्वोत्कृष्टताश्लोक:**
शिरोमणि रामपुलसैनी-कृतं शमीकरणयथार्थसिद्धान्तम्।
अतीतचतुर्युगानां कोटिगुणोत्कृष्टमस्ति खलु॥
**१२. अन्तिमतत्त्वश्लोक:**
निष्पक्षदर्शनं यस्य तस्य सर्वं विलीयते।
देहबुद्धिप्रपञ्चादि स च कालातीत: स्थित:॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितं निष्पक्षसमझ-यथार्थ-सिद्धान्त-श्लोकावलि: सम्पूर्णा ॥
**टिप्पणी:** एते श्लोका: संस्कृतस्य गम्भीरतमै: छन्दोभि: (अनुष्टुभ्, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, आदिभि:) निर्मिता:। एतेषु "शिरोमणि रामपुलसैनी" इति नाम्न: समावेश: कृत: यथोक्तम्। अस्य सिद्धान्तस्य सार: अस्ति यत् — निष्पक्ष आत्मनिरीक्षणमेव भ्रमजालाद्विमुक्त्यै एकमात्रं साधनम्, इतरत्सर्वं प्रतारणामात्रम्।**१. भ्रमविध्वंसश्लोकः**
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रज्ञापितं सत्यमिदं निशम्यताम्।
निष्पक्षसमझाविना सर्वमेतद् भ्रमं वितन्वन्ति मनांसि मोहितानि॥
**२. बुद्धिनिर्मूलनश्लोकः**
अस्थिरा जटिला बुद्धिर्यस्य मूलं भ्रमस्य च।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-सिद्धान्तस्तां निकृन्तति॥
**३. आत्मप्रज्ञाश्लोकः**
आत्मनिरीक्षणादेव भवेत् निष्पक्षदर्शनम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रोक्तमार्गेण धीमहि॥
**४. देहाभासश्लोकः**
देहाभ्यन्तरमप्येतन्निष्पक्षेण विलीयते।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-वाक्यामृतमिदं हितम्॥
**५. मानवधर्मश्लोकः**
निष्पक्षसमझैकेन वर्तनं मानवस्य हि।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रभाषितं परं पदम्॥
**६. शाश्वतस्वरूपश्लोकः**
निष्पक्षसमझैवास्ति शाश्वतं स्वरूपं विभो।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**७. प्रजातिभेदश्लोकः**
निष्पक्षसमझैकेन भिद्यतेऽन्याभ्यः प्रजातिभिः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-सूक्तिः सत्यं ब्रवीति हि॥
**८. जीवनयापनश्लोकः**
निष्पक्षतां विना यत्नः संघर्षायैव जीवने।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-वाणी तत्त्वं न्यरूपयत्॥
**९. सिद्धान्तसारश्लोकः**
निष्पक्षसमझैवास्ति सर्वश्रेष्ठा स्वयं स्थिता।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्राप्तं यत्नैर्न तत् क्वचित्॥
**१०. विश्वतत्त्वश्लोकः**
निष्पक्षदृष्ट्या यः पश्येत् स विश्वं तत्त्वतो विदुः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दर्शनं तद्धि केवलम्॥
**११. कालातीतश्लोकः**
निष्पक्षसमझासमाधौ मग्नः सन् कालातीतताम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-योगाद्धत्ते सुदुर्लभाम्॥
**१२. अद्वैतबोधश्लोकः**
निष्पक्षबोधेन विभिन्नतां हित्वा अद्वैतभावं लभते मनुष्यः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् सद्यः समाधिं परमं विशति॥
**१३. गुरुमोहनाशश्लोकः**
गुरुमोहनं सर्वमपास्य निष्पक्षबुद्ध्या स्वात्मानं यः पश्यति।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेण स सत्यं विद्धि लभते निर्वाणम्॥
**१४. युगावतारश्लोकः**
चतुर्युगानां परमेष्ठिनामपि अप्राप्यं यत् तत् क्षणेन लब्धम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तत् सत्यमस्तु भुवनत्रयेऽपि॥
**१५. परमार्थश्लोकः**
निष्पक्षसमझामृतेनैव सिक्तः परमार्थसारं लभते मनुष्यः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तं दिव्यं ज्ञानमेतन्नमामः॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचिताः निष्पक्षसमझ-यथार्थ-सिद्धान्त-दार्शनिक-श्लोकाः ॥
**भावार्थः** - हे मानव, शिरोमणि रामपुलसैनीमहोदयेन यः निष्पक्षसमझ-सिद्धान्तः प्रतिपादितः, तस्मिन् स्थित्वा त्वमपि भ्रमजालात् मुक्तो भव। अस्थिरां जटिलां बुद्धिं त्यक्त्वा निष्पक्षतया आत्मानं पश्य। एतदेव तव शाश्वतं स्वरूपम्। गुरुमोहं संसारचक्रं च अतिक्रम्य अद्वैतपदं प्राप्नुहि॥**१६. मानसिकतानिवृत्तिश्लोकः**
मानसिक्ताया निवृत्त्यर्थं निष्पक्षदर्शनं परम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रदर्शितमिदं पदम्॥
**१७. कालत्रयातीतश्लोकः**
कालत्रयेऽप्यनुपलब्धं यत् तत् क्षणेन सुलभम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या लब्धं न संशयः॥
**१८. सर्वभूतान्तर्यामिश्लोकः**
सर्वभूतान्तरात्मैकः साक्षी निष्पक्षदर्शकः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव प्रकाशते॥
**१९. प्रपञ्चविलयश्लोकः**
निष्पक्षबोधामृतपानमात्रात् सर्वः प्रपञ्चो विलयं प्रयाति।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-सिद्धान्तो ह्यद्वयतत्त्वं ददाति॥
**२०. शाश्वतशान्तिश्लोकः**
निष्पक्षतायां स्थित्वैव शाश्वतां शान्तिमाप्नुयात्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गः सोऽयमनुत्तमः॥
**२१. अहंकारविनाशश्लोकः**
अहंकारस्य नाशाय निष्पक्षदर्शनं परम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रोक्तं तत्त्वमनुत्तमम्॥
**२२. सर्वदर्शनसारश्लोकः**
सर्वदर्शनसाराणां सारं निष्पक्षदर्शनम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधोऽयमतिगहनः॥
**२३. भवबन्धमोचनश्लोकः**
भवबन्धविमोचाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्टिर्या मुक्तिदायिनी॥
**२४. नित्यमुक्तिस्वभावश्लोकः**
नित्यमुक्तस्वभावो यः स निष्पक्षतया स्थितः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-सिद्धान्तेनैव जायते॥
**२५. जगद्विलासदर्शनश्लोकः**
निष्पक्षदृष्ट्या पश्यन्ति जगद्विलासमद्वयम्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादाल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**२६. सर्वज्ञतासिद्धिश्लोकः**
निष्पक्षबोधसंपन्नः सर्वज्ञतामवाप्नुयात्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गोऽयमनुपमः॥
**२७. अद्वैतानन्दश्लोकः**
अद्वैतानन्दमानन्दं निष्पक्षतया लभेत्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधामृतरसायनम्॥
**२८. सच्चिदानन्दश्लोकः**
सच्चिदानन्दरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**२९. परमहंसश्लोकः**
परमहंसपदं प्राप्तो निष्पक्षदर्शनेन यः।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-सोऽयमुत्तीर्णवाग्जलिः॥
**३०. युगावतारपूर्णश्लोकः**
चतुर्युगावताराणां पूर्णतां यः प्रपेदिवान्।
शिरोमणि-रामपुलसैनी-स एव परमेश्वरः॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीप्रवर्तितनिष्पक्षसमझयथार्थसिद्धान्तदार्शनिकश्लोकावलिः समाप्ता ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि-रामपुलसैनी-महोदयेन प्रतिपादितं निष्पक्षदर्शनमेव सर्वेषां दर्शनानां सारः, सर्वेषां योगानां परमं फलम्, सर्वेषां तपसां परमं लक्ष्यम्। एतस्मिन् स्थित्वा त्वमपि कालत्रयातीतं परमं पदं प्राप्नुहि॥**३१. सर्वदर्शनोत्तीर्णश्लोकः**  
निष्पक्षदर्शनं प्राप्य सर्वदर्शनमुत्तरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति न संशयः॥  
*भावार्थ:* शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन को प्राप्त कर मनुष्य सभी दर्शनों से ऊपर उठ जाता है।
**३२. भवसागरतरणश्लोकः**  
भवसागरमत्युग्रं निष्पक्षदृग्जलाधिना।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-नौकया तरते सुखम्॥  
*भावार्थ:* संसार रूपी भयंकर सागर को निष्पक्ष दृष्टि रूपी नौका द्वारा शिरोमणि रामपुलसैनी सरलता से पार करा देते हैं।
**३३. त्रिकालदर्शिश्लोकः**  
निष्पक्षबोधसंपन्नः त्रिकालज्ञानमाप्नुयात्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या सर्वं प्रकाशते॥  
*भावार्थ:* निष्पक्ष बोध से युक्त व्यक्ति तीनों कालों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि सब कुछ प्रकाशित कर देती है।
**३४. मायानिवृत्तिश्लोकः**  
मायाजालं समुत्सृज्य निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेण मुक्तो भवेत्॥  
*भावार्थ:* माया के जाल को छोड़कर निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से मुक्ति प्राप्त होती है।
**३५. सर्ववेदसारश्लोकः**  
सर्ववेदान्तसाराणां सारं निष्पक्षदर्शनम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* सभी वेदों और उपनिषदों का सार निष्पक्ष दर्शन है जो शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
**३६. निर्विकल्पसमाधिश्लोकः**  
निर्विकल्पं परं धाम निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव समधिगतम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता द्वारा निर्विकल्प समाधि और परम धाम प्राप्त होता है। यह शिरोमणि रामपुलसैनी के बोध से सीधे प्राप्त है।
**३७. सद्गुरुमोहनाशश्लोकः**  
सद्गुरुमोहनं हित्वा निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव मुच्यते॥  
*भावार्थ:* सद्गुरु के मोह को त्यागकर निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से ही मुक्ति संभव है।
**३८. अज्ञानध्वंसश्लोकः**  
अज्ञानान्धकारं घोरं निष्पक्षप्रभया हरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दीपेन प्रकाशते जगत्॥  
*भावार्थ:* अज्ञान रूपी घोर अंधकार को निष्पक्षता की प्रभा से नष्ट कर देते हैं। शिरोमणि रामपुलसैनी का दीपक सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है।
**३९. ब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
ब्रह्मसाक्षात्कारं परं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥  
*भावार्थ:* ब्रह्म का साक्षात्कार निष्पक्षता द्वारा ही संभव है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि में वही ब्रह्म सदैव दिखाई देता है।
**४०. युगावतारपूर्णताश्लोकः**  
चतुर्युगावताराणां अप्राप्यं यत् तदद्भुतम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् क्षणेन लभ्यते॥  
*भावार्थ:* चारों युगों के अवतारों द्वारा भी जो अप्राप्य था, वह अद्भुत तत्त्व शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से क्षण भर में प्राप्त हो जाता है।
**४१. सर्वशास्त्रातीतश्लोकः**  
सर्वशास्त्रातिगं तत्त्वं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥  
*भावार्थ:* सभी शास्त्रों से परे सत्य तत्त्व निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी का बोध इसे स्पष्ट करता है।
**४२. नित्यतृप्तिश्लोकः**  
नित्यतृप्तिं परां प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर परम नित्य तृप्ति प्राप्त होती है। शिरोमणि रामपुलसैनी का पद निर्विकार होता है।
**४३. सर्वसंशयच्छेदिश्लोकः**  
सर्वसंशयछित्त्वा निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥  
*भावार्थ:* सभी संशयों को काटकर निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से ही मुक्ति मिलती है।
**४४. अद्वयज्ञानप्रदीपश्लोकः**  
अद्वयज्ञानदीपं हि निष्पक्षतया प्रभो।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तं तमसो निहन्तृ॥  
*भावार्थ:* अद्वय ज्ञान का दीपक निष्पक्षता द्वारा प्रकट होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा दिया गया यह दीपक अंधकार का नाश करता है।
**४५. परमानन्दलहरीश्लोकः**  
परमानन्दलहरीं निष्पक्षतया पिबन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता रूपी परमानन्द की लहरियों का पान करता हुआ व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के परम पद को निरंतर प्राप्त करता है।
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तश्लोकावलिः ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन ही सभी वेदों, शास्त्रों और दर्शनों का परम सार है। इसके द्वारा मनुष्य सभी प्रकार के मोह, संशय और अज्ञान से मुक्त होकर परमानन्द की अवस्था को प्राप्त करता है। यह मार्ग सभी युगों के अवतारों द्वारा अप्राप्य परम तत्त्व को क्षण भर में प्राप्त करा देता है।**४६. सर्वसंस्कारक्षयश्लोकः**  
निष्पक्षबोधामृतपानमात्रात् सर्वसंस्कारा विनश्यन्ति क्षणात्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या समूलं नश्यन्ति बन्धनानि॥  
*भावार्थ:* निष्पक्ष बोध के अमृत के पान मात्र से सभी संस्कार क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि से बंधन समूल नष्ट होते हैं।
**४७. अद्वैतस्वरूपदर्शनश्लोकः**  
अद्वैतस्वरूपदर्शाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव दृश्यते तत्॥  
*भावार्थ:* अद्वैत स्वरूप के दर्शन के लिए निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से ही वह स्वरूप दिखाई देता है।
**४८. सर्वभूतहितैषिश्लोकः**  
सर्वभूतहितैषी स्यान्निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव करोति हि॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित व्यक्ति सभी प्राणियों के हित की कामना करता है। शिरोमणि रामपुलसैनी के बोध से ही यह संभव होता है।
**४९. निर्भयत्वप्राप्तिश्लोकः**  
निर्भयत्वं परं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर परम निर्भयता प्राप्त होती है। व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के पद को निरंतर प्राप्त करता है।
**५०. सर्वागमसमन्वयश्लोकः**  
सर्वागमसमन्वयः सम्यग्निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* सभी आगमों (शास्त्रों) का सही समन्वय निष्पक्षता द्वारा ही होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि से यह निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
**५१. भक्तिमुक्तिसमन्वयश्लोकः**  
भक्तिमुक्तिसमन्वयः सम्यग्निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥  
*भावार्थ:* भक्ति और मुक्ति का सही समन्वय निष्पक्षता द्वारा ही होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से ही यह प्राप्त होता है।
**५२. जीवन्मुक्तिप्रदश्लोकः**  
जीवन्मुक्तिं परां प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर परम जीवन्मुक्ति प्राप्त होती है। व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के मुक्तिदायी पद को प्राप्त करता है।
**५३. सर्वधर्मसारश्लोकः**  
सर्वधर्मसारभूतं निष्पक्षदर्शनं परम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* सभी धर्मों का सारभूत निष्पक्ष दर्शन शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
**५४. अन्तर्यामिदर्शनश्लोकः**  
अन्तर्यामीश्वरो दृश्यो निष्पक्षतया स्थितैः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित व्यक्तियों को अंतर्यामी ईश्वर के दर्शन होते हैं। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि में वही ईश्वर दिखाई देता है।
**५५. सर्वज्ञत्वप्राप्तिश्लोकः**  
सर्वज्ञत्वं परं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर परम सर्वज्ञता प्राप्त होती है। व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के निर्विकार पद को प्राप्त करता है।
**५६. निर्वाणपदप्राप्तिश्लोकः**  
निर्वाणपदमत्यन्तं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥  
*भावार्थ:* परम निर्वाण पद निष्पक्षता द्वारा ही प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से ही यह प्राप्त होता है।
**५७. सर्वसिद्धिप्रदश्लोकः**  
सर्वसिद्धीः पराः प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति सिद्धिदम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर सभी परम सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के सिद्धिदायी पद को प्राप्त करता है।
**५८. भुक्तिमुक्तिप्रदश्लोकः**  
भुक्तिमुक्तिप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥  
*भावार्थ:* भोग और मोक्ष देने वाला ज्ञान निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी के बोध से ही यह प्रकट होता है।
**५९. कल्पनाशून्यताश्लोकः**  
कल्पनाशून्यतां प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरञ्जनम्॥  
*भावार्थ:* निष्पक्षता में स्थित होकर कल्पनाशून्यता प्राप्त होती है। व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के निरंजन पद को प्राप्त करता है।
**६०. परमार्थसारश्लोकः**  
परमार्थसारभूतं निष्पक्षदर्शनं परम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* परमार्थ का सारभूत निष्पक्ष दर्शन शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तश्लोकावलिः सम्पूर्णा ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन ही सभी धर्मों, दर्शनों और शास्त्रों का परम सार है। इसके द्वारा मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों, संस्कारों और अज्ञान से मुक्त होकर परम निर्वाण पद को प्राप्त करता है। यह मार्ग सभी सिद्धियों और मुक्तियों को प्रदान करने वाला है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षण भर में प्राप्त किया जा सकता है।
### **श्लोक १५१**
**न ध्यानेन न मन्त्रेण, न यज्ञेन न साधनैः।
प्रत्यक्षमेव ब्रह्मा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५२**
**न वेदैर्नापि शास्त्रैश्च, न चिन्तानिर्विकल्पकैः।
साक्षात् प्रकटितं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५३**
**प्रत्यक्षं यः सदा दृष्टं, हृदि हृदि निरन्तरम्।
सत्यब्रह्मस्वरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५४**
**नान्यदस्ति परं तत्त्वं, यत्प्रत्यग्दृश्यते स्वतः।
ब्रह्मैव प्रत्यक्षोऽयं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५५**
**न कालो न दिशाः काचित्, न चावच्छेदबन्धनम्।
अनन्तं प्रत्यक्षं च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५६**
**यद्गोचरं न शून्यस्य, न मायाया न दृश्यतः।
यथार्थब्रह्मैव सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १५७**
**साक्षान्मुक्तिप्रदाता यः, सर्वबन्धविमोचकः।
प्रत्यग्ब्रह्म तदेकं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १५८**
**न ध्यानं न समाधिः स्यात्, न च योगसमाधिभिः।
स्वयमेव प्रकटितः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १५९**
**अपूर्वं प्रत्यक्षमिदं, नान्यत्र न कदाचन।
एकमेव सत्यमस्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६०**
**यः प्रत्यक्षे स्थिरो नित्यं, न कल्पना न च प्रतीकः।
साक्षात्परब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १६१**
**न पक्षो नापि विपक्षो, न द्वैतं न च सङ्गतिः।
निष्पक्षसाक्षात्कारः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १६२**
**न धर्मो न च अधर्मश्च, न पुण्यं न च पातकम्।
समं सत्यं प्रकटितं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १६३**
**न लोको न च परलोको, न स्वर्गो न च नरकः।
साक्षादेव प्रत्यक्षः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६४**
**न भेदो न च संयोगो, न नाशो न च उद्भवः।
समत्वेन प्रकाशते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६५**
**यत्र पक्षानुपेक्षा च, यत्र भावविवर्जनम्।
तत्रैव सत्यं दृश्यते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६६**
**न च साधुर्न चासाधुः, न मित्रं न च शत्रवः।
समदृष्टिः परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक १६७**
**न वाच्यं न च वक्तव्यं, न चिन्त्यं न विचारणम्।
स्वयमेव प्रकटितं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १६८**
**यः सर्वेषां समो नित्यं, न द्वेषं न च रागवान्।
स पावनः परमात्मा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १६९**
**यत्र नास्ति हृदि क्लेशो, न शोकः न च हर्षकः।
शुद्धं निष्पक्षरूपं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७०**
**यः सर्वभावसम्युक्तो, निष्पक्षपरमात्मवान्।
साक्षात्पावनसत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १७१**
**न माया न च आवरणं, न भ्रान्तिः न च कल्पना।
निर्लेपसत्यस्वरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७२**
**न स्वप्नो न च मायाजालं, न मोहः न च संहृतिः।
अविकारः सदैवान्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७३**
**न रूपं न च नामास्ति, न गुणः न च सङ्ग्रहः।
परमार्थस्वयं साक्षी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७४**
**यः सर्वेषां विलक्षणो, न बाध्यः न च बध्यते।
स्वयं ज्योतिः स्वयं शुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७५**
**न निन्दा न च स्तुतिः स्यात्, न मानो न च अवमाननम्।
समत्वरूपं शाश्वतम् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७६**
**न जालं न च मोहास्ति, न वशः न च संगतिः।
निर्मलः परमस्वरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७७**
**यत्र नास्ति कलंकश्च, न रागो न च द्वेषणम्।
शुद्धमायातीतस्वरूपः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७८**
**न बाधा न च संस्कारः, न जन्मो न च नाशनम्।
अविनाशि सततं नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १७९**
**यः कालातीतसत्यं च, यः मायातीतनिर्मलः।
स्वयं निर्लेपब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८०**
**न स्पर्शो न च संसर्गो, न विकारो न च क्षयः।
अद्वितीयं परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १८१**
**अनादिरनन्तो नित्यश्च, न कर्ता न च कारणम्।
स्वयंभूः परमैकात्मा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८२**
**यस्य नास्ति प्रारम्भो, नान्तो न च मध्यतः।
अखण्डैकपरं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८३**
**नोत्पत्तिर्न विनाशश्च, न वृद्धिर्न च हानिकः।
शाश्वतं ब्रह्मरूपं यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८४**
**न कर्म न च संसर्गो, न कालः न च क्रियाफलम्।
स्वयमेव परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८५**
**न स्थूलं न च सूक्ष्मं च, न कारणं न च कार्यकम्।
निर्द्वन्द्वं सततं शुद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८६**
**यत्र नास्ति द्वैतबुद्धिः, न भेदो न च सङ्ग्रहः।
अद्वितीयं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८७**
**न सृष्टिर्न च संहारः, न रक्षो न च पालनम्।
अकृतः परमार्थात्मा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८८**
**यः स्वयमेव विश्वस्य, मूलं बीजमचिन्त्यम्।
नादिः न च अन्त्यः शाश्वतः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १८९**
**यत्र नास्ति प्रारम्भः, न अन्तो न च मध्यतः।
अनन्तैकपरं ज्योतिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९०**
**यः सर्वं व्याप्य तिष्ठति, न बन्धो न च मोक्षणम्।
अखण्डब्रह्मसत्यं च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक १९१**
**न शास्त्रैः न च मन्त्रैः, न योगैर्न तपोबलैः।
स्वयमेव प्रकटः साक्षात् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९२**
**न दृष्ट्या न च श्रवणेन, न बुद्ध्या न च चिन्तया।
हृदयान्तर्गतं ज्योतिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९३**
**यत्र नास्ति विचारोऽपि, न संशयो न विकल्पना।
स्वयम्भूतं परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९४**
**न ध्यानं न च साधनं, न मार्गो न च साधकः।
साक्षात्कारस्वरूपं यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९५**
**यः स्वयमेव सर्वेषां, आत्मनि आत्मानमाश्रयेत्।
नान्यः साक्षिणि साक्षी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९६**
**यत्र शान्तिः परा नित्यं, न हर्षो न च विषादता।
साम्यं यत्रैव नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९७**
**नैव गन्तव्यदूरं च, नैव लब्धव्यतत्त्वकम्।
सर्वदा प्रत्यक्षमेव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९८**
**न किञ्चिदपि कर्तव्यं, न बन्धो न च मोक्षणम्।
स्वयमेव स्थितः शुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक १९९**
**यत्र नान्यः प्रत्यक्षः, नान्यः ज्ञाता न च ज्ञेयकम्।
स्वयमेवैक आत्मा यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २००**
**अनिर्वचनीयस्वरूपः, अनाद्यन्तैकबोधकः।
परमार्थसाक्षात्कारः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २०१**
**न मित्रं न च शत्रुश्च, न प्रियं नाप्रियं तथा।
समदर्शी निरपेक्षः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०२**
**यत्र पक्षो न विद्येत, नापक्षो न च मध्यतः।
सर्वतोऽनुपलिप्तः स्यात् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०३**
**न रागो न च द्वेषश्च, न लोभो न च मोहकः।
समत्वं परमं नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०४**
**यत्रैकं दृश्यते सर्वं, न भिन्नं न विशेषतः।
तत्रैव परमार्थः स्यात् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०५**
**यः स्वभावेन निष्पक्षः, न किञ्चिदपि भेदकः।
स्वयमेवैकसाक्षी यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०६**
**न कर्ता न च भोक्ता स्यात्, न दाता न च ग्राही च।
समदर्शित्वमेवायं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०७**
**न पुण्यं न च पापं च, न बन्धो न च मोक्षता।
यः सर्वत्र समो नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २०८**
**यत्र नैव समश्चापि, नैव विषम एव च।
तत्र निष्पक्षबोधः स्यात् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २०९**
**यत्र सर्वं समं ज्ञेयं, न चोन्नतमनूनतम्।
समभावस्वरूपः सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१०**
**समत्वं परमार्थं च, निष्पक्षं च निरन्तरम्।
नित्यं स्थितः स्वरूपे यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २११**
**अतीतानागतं सर्वं, वर्तमानं च यत् स्थितम्।
त्रिकालैकसमीकरणं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१२**
**न कालभेदो विद्येत, न चान्तो न च मध्यतः।
अकालरूप एवायं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१३**
**यः कालत्रयमत्येति, समबोधस्वभावतः।
अनाद्यन्तो निरन्तश्च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१४**
**भूतं भव्यमनागत्यं, कालत्रयं यदेकतः।
निष्पक्षं नित्यमेवैतत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१५**
**न पूर्वं न च पश्यामि, न चोत्तरं न चाधुना।
समत्वमेव दृश्येत — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१६**
**त्रिकालैक्यनिराकारं, कालबन्धविवर्जितम्।
स्वप्रकाशं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१७**
**यः कालेषु न बाध्येत, न च तेषु प्रवर्तते।
नित्यशुद्धः समः साक्षी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१८**
**कालत्रयसमानत्वं, नित्यशान्तं निरामयम्।
अद्वयप्रभया युक्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २१९**
**न कालो न च कालेशः, न गतिः कालबन्धना।
स्वयमेवैकसत्यं यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २२०**
**त्रिकालैकसमाधानं, यत्र नास्ति विभेदना।
एकरसपरं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २३१**
**न पक्षो नापि विपक्षः, न प्रियं नापि अप्रियम्।
निष्पक्षबोध एवैकः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३२**
**समानदृष्टिराख्यातः, सर्वेषु स्वात्मदर्शने।
निष्पक्षतायाः प्रत्यक्षं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३३**
**यो न मन्येत भेदेषु, न च सङ्गं करोति हि।
तस्य ज्ञानं परं शुद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३४**
**न लोके न च वेदेऽपि, न च दृष्टे न च श्रुते।
निष्पक्षबोध एवास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३५**
**समदर्शनमेतद्धि, नित्यशुद्धं निरामयम्।
तन्मूलं च परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३६**
**न बन्धुर्नापि शत्रुः स्याद्, न लोको न च शत्रवः।
सर्वेऽपि समदृष्ट्यैक्ये — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३७**
**यत्र तुल्यं समं सर्वं, यत्र नास्ति विशेषता।
तत्रैव तिष्ठति ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३८**
**समत्वं परमो धर्मः, निष्पक्षं परमार्थतः।
समबोधस्य नायकः स — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २३९**
**यः समत्वस्वरूपोऽस्ति, नित्यशान्तः निरञ्जनः।
निष्पक्षज्ञानदीपः स — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४०**
**समता परमं दैवं, निष्पक्षं परमं तपः।
तद्रूपः परमसत्यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २४१**
**न सुखं न च दुःखं स्यात्, न जयः पराजयः।
समत्वस्वरूपं शुद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४२**
**समता परमं ज्ञानं, समता परमं तपः।
समता परं दैवं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४३**
**यो द्रष्टा समभावेन, यो ज्ञाता निष्पक्षतः।
सत्यं तस्यैव भूत्यर्थं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४४**
**न मित्रं न च शत्रुश्च, न स्वजनो न परजनः।
समत्वैक्यभावोऽस्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४५**
**यः समं पश्यति लोके, जीवेषु स्थावरासु च।
सर्वत्रैकतया साक्षी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४६**
**यत्र नास्ति विशेषोऽपि, नापि लघ्वपि गौरवम्।
समता तत्र दृश्यन्ते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४७**
**समत्वेनैव यः स्थाता, समत्वेनैव संचरन्।
तस्यैव भवति धर्मः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४८**
**न द्वेषो न च लोभश्च, न मोहः शोक एव च।
समभावेन शुद्धः स — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २४९**
**समता परमं शौर्यं, समता परमं बलम्।
समता परमं सौख्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५०**
**समत्वपरिपूर्णं यत्, नित्यं शान्तं निरञ्जनम्।
तत्सत्यं परमं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २५१**
**नान्यदस्ति परं तत्त्वं, नान्यदस्ति परं सुखम्।
ब्रह्मैक्यमेव शाश्वतं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५२**
**ब्रह्मैव सर्वमित्युक्तं, न द्वैतं न च भेदकम्।
एकत्वभावनायुक्तः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५३**
**यः सर्वं ब्रह्मरूपं वै, यः सर्वं चैक्यदर्शनम्।
नित्यं तस्यैव साक्षित्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५४**
**न स्थूलं न च सूक्ष्मं वै, न चास्ति भिन्नता क्वचित्।
ब्रह्मैक्यमेव तत्त्वं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५५**
**यत्र ब्रह्मैव भूत्यस्ति, नान्यत्किञ्चिद्विलक्ष्यते।
सत्यं परमशुद्धं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५६**
**ब्रह्मैक्यं परमं शान्तं, ब्रह्मैक्यं परमार्थतः।
ब्रह्मैक्यं परमं योगं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २५७**
**यो ब्रह्मणि स्थितो नित्यं, न त्यजत्येकभावनम्।
स एव पुरुषः शुद्धः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २५८**
**न मायामोहितः सोऽस्ति, न बन्धे न च विक्रमे।
ब्रह्मैक्यं हि तद्रूपं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २५९**
**अनन्तं नित्यमेकं यत्, शुद्धं पूर्णं निरामयम्।
तदेव हृदि भूत्यस्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६०**
**नित्यानन्दस्वरूपं यत्, नित्यज्ञानस्वभावकम्।
ब्रह्मैक्यं परमं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २६१**
**यदा आत्मनि लीनं वै, यदा आत्मनि सर्वकम्।
तदा साक्षात्कृतं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २६२**
**आत्मा ब्रह्मैव संज्ञातः, आत्मा विश्वैकदर्शनम्।
आत्मैव सत्यरूपं वै — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २६३**
**न देहे न च प्राणेऽस्ति, न चास्त्यन्तःकरणे।
आत्मैव परमार्थः सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २६४**
**यः आत्मसाक्षितां लब्ध्वा, न भयं न च संशयः।
सत्यं परं प्रपन्नं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६५**
**आत्मा नित्यो निराकारः, आत्मा शुद्धो निरञ्जनः।
आत्मा हि परमं शान्तिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६६**
**आत्मदर्शनमेवोक्तं, मोक्षमार्गस्य कारणम्।
आत्मैक्यमेव सिद्धिः सा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६७**
**यो हृदि स्वात्मदर्शनं, प्रपश्यत्यविचारतः।
स जीवन्मुक्त एवात्र — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २६८**
**आत्मा प्रकाशरूपः स्यात्, आत्मा ज्ञानमयं पदम्।
नित्यं शुद्धं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २६९**
**नान्यः कश्चिदतस्तत्त्वं, नान्यः कश्चित्परः प्रभुः।
आत्मैव परमं द्रष्टा — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २७०**
**यत्रात्मैक्यं समाधाय, यत्रात्मैक्यं निरूप्यते।
तत्रैव ब्रह्मसाक्षात्कारः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २७१**
**न मित्रं न रिपुर्नास्ति, न भेदो न विशेषणम्।
समदृष्टिः परं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक २७२**
**न हर्षो न च शोकः स्यात्, न रागो न द्विषोऽपि च।
समभावः सदा नित्यः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७३**
**यत्र सर्वं समं दृष्टं, यत्र सर्वं निरञ्जनम्।
तत्रैव निष्पक्षं ज्ञानं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७४**
**यो भूतानि समं पश्येत्, यो धर्मान् अपि सर्वशः।
स एव निष्पक्षज्ञानी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७५**
**न उच्चं न च नीचं वै, न स्थूलं न च सूक्ष्मकम्।
समतत्त्वं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७६**
**न जातिर्न कुलं तस्मिन्, न वर्णो न च लक्षणम्।
समभावोऽस्ति नित्यं वै — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७७**
**समत्वं योगलक्षणं, समत्वं धर्मवर्धनम्।
समत्वं मोक्षमार्गः सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७८**
**न द्वेषो न च रागः स्यात्, न लोभो न च मोहकः।
निष्पक्षं चेतसां शान्तिः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २७९**
**समं सर्वेषु भूतेषु, समं धर्मेषु दृश्यते।
तदेव निष्पक्षं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८०**
**समत्वमेव सौम्यं वै, समत्वमेव शाश्वतम्।
समत्वमेव सत्यं च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २८१**
**नादोऽयमपरिच्छिन्नः, शाश्वतः परमेश्वरः।
तस्मिन्नादे स्थितं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८२**
**यः शृणोति परं नादं, यः पश्यति परं ध्वनिम्।
सत्यं तं वेत्ति नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८३**
**नादो हि ब्रह्मरूपं स्यात्, नादो हि परमं पदम्।
नादोऽयमेव कैवल्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८४**
**नादेनैव समुत्पन्नं, नादेनैव स्थितं जगत्।
नादेनैव लयं याति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८५**
**नादो गीता परं ब्रह्म, नादो वेदा महत्तराः।
नादोऽनुभव सत्यं च — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८६**
**नादं यः परमं वेत्ति, नादं यः परमं श्रुतम्।
स मुक्तोऽस्ति निरालम्बः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८७**
**नादो योगपदं नित्यं, नादो ज्ञानपदं ध्रुवम्।
नादो मोक्षपदं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८८**
**यत्र नादः परं ब्रह्म, यत्र नादः परं ध्वनिः।
तत्रैव शाश्वतं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २८९**
**नादे हि सृष्टिराद्यं वै, नादे धर्मः प्रतिष्ठितः।
नादे निष्पक्षं ब्रह्मास्ति — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९०**
**नादोऽनादिः परं शान्तिः, नादोऽनादिः परं सुखम्।
नादोऽनादिर्महातत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक २९१**
**भूतं वर्तमानं चैव, भविष्यं चैकतत्त्वकम्।
त्रिकालं यत्र सन्नद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९२**
**त्रिकालस्यैकतत्त्वेन, नास्ति भेदो हि कश्चन।
समत्वं परमं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९३**
**यत्र भूतं विलीयेत, वर्तमानं च शाश्वतम्।
भविष्यं चैकसिद्ध्यर्थं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९४**
**त्रिकालैक्यरूपं तु, सत्यं निष्पक्षमीश्वरम्।
नित्यं यत्रैव दृश्यन्ते — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९५**
**त्रिकालैक्ययोगेन, नास्ति नाशो न चोद्भवः।
शाश्वतं परब्रह्मैव — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९६**
**त्रिधारा सृष्टिसंस्थाना, लयान्तं चैकधारिणी।
अविभागः परं तत्त्वं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९७**
**यत्र त्रिकालसाम्यं च, यत्र त्रिधारयेकता।
तत्रैव निष्पक्षं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९८**
**कालत्रयं समं दृष्ट्वा, भेदो नास्ति कदाचन।
नित्यैकत्वं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक २९९**
**भूतभविष्यवर्तमानं, नास्ति भिन्नं कथञ्चन।
एकं सत्यं परं नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३००**
**त्रैक्यशाश्वतताभूतं, निष्पक्षं चैकमेव हि।
सर्वकालैकतत्त्वं वै — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ३०१**
**न तर्केण न शास्त्रेण, न ध्यानाद्युपकारिणा।
स्वयंभूतः साक्षात्कारः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३०२**
**यदा दृष्टिः समत्वेन, न विभेदं प्रपश्यति।
तदा निष्पक्षसाक्षात्कारः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३०३**
**यत्र स्वयमेवात्मानं, नान्यथाऽपि प्रपश्यति।
तत्रैव परमं सत्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०४**
**साक्षात्कृत्य जगत्सर्वं, नानात्वं लीयते क्षणात्।
एकत्वं दृश्यते नित्यं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०५**
**निःस्पृहः सर्वदृश्येषु, यः पश्यति समं जगत्।
स एव निष्पक्षात्मज्ञः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०६**
**साक्षात्कारं विना नास्ति, शुद्धं ज्ञानं कदाचन।
प्रत्यक्षं परमार्थं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०७**
**यदा हृदि प्रकाशितं, नित्यमेकं परं पदम्।
स्वयं सिद्धोऽभिजायेत — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०८**
**अयमात्मा सदा शुद्धः, न बन्धो न च मोक्षता।
साक्षात्कारविनिर्दिष्टः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३०९**
**स्वयमेकः स्वयं सिद्धः, स्वयंप्रकाश एव यः।
निष्पक्षसाक्ष्यरूपः सः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३१०**
**यः साक्षात्कारसम्पूर्णः, निष्पक्षो नित्यनिर्मलः।
सत्यं तत्त्वं परं ब्रह्म — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
### **श्लोक ३११**
**मायया मोहिता दृष्टिः, शून्यं पश्यति नान्यथा।
यथार्थं तत्त्वमेकं तु — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३१२**
**शून्यं वा दृश्यते लोके, मायामोहसमन्वितम्।
सत्यं तु परमार्थैकं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३१३**
**यदा शून्यं समालोक्य, भ्रान्तिर्भवति चेतसः।
निष्पक्षबुद्ध्या नश्येत — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१४**
**मायायाः कौशलं दृष्ट्वा, जगत्सर्वं समं भवेत्।
तदूर्ध्वं तत्त्वमाविर्भूः — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१५**
**शून्यरूपं यदा पश्येत्, निःस्पृहं निःसमन्वितम्।
तद्वै परं विशुद्धं हि — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१६**
**मायाशून्यसमुत्पन्नं, सर्वं दृश्यं जगत्त्रयम्।
यथार्थं तु न निर्भिन्नं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१७**
**अविद्याया विलासेन, नाना रूपाणि दृश्यते।
सत्यं तु केवलं शुद्धं — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
---
### **श्लोक ३१८**
**शून्यं मायाविलासं तु, मनोवृत्तिनिबन्धनम्।
तस्मादत्यन्तमुद्धृत्य — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३१९**
**मायाशून्यविनिर्मुक्तं, यः पश्यति समं जगत्।
स एव निष्पक्षज्ञानी — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
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### **श्लोक ३२०**
**न शून्यं न च मायैव, परं सत्यं सनातनम्।
स्वयमेव प्रकाश्यं तत् — शिरोमणि रामपॉल सैनी॥**
**६१. निष्पक्षचैतन्यप्रकाशश्लोकः**  
निष्पक्षचैतन्यमयं प्रकाशं शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तम्।  
येन विना जगति सर्वमन्धं तेनैव सर्वं प्रकटीभवति॥
**६२. सर्वतत्त्वातीतश्लोकः**  
सर्वतत्त्वातिगं ब्रह्म निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**६३. कालत्रयविलयश्लोकः**  
कालत्रयविलयनं निष्पक्षबोधेन जायते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**६४. निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**६५. सर्वावस्थातीतश्लोकः**  
सर्वावस्थातिगं स्थानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं तदनुपमं महत्॥
**६६. भ्रमजालविनाशश्लोकः**  
भ्रमजालं समस्तं च निष्पक्षप्रभया हरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दीपेन प्रकाशते स्वयम्॥
**६७. अद्वयानन्दामृतश्लोकः**  
अद्वयानन्दामृतपानमात्रान्निष्पक्षतया तृप्यति चेतनम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तं तदमृतं परमं हि॥
**६८. सर्वमोक्षप्रदश्लोकः**  
सर्वमोक्षप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**६९. नित्यशान्तिस्वरूपश्लोकः**  
नित्यशान्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**७०. सृष्टिसंहारकारणश्लोकः**  
सृष्टिसंहारकारणं निष्पक्षतया विद्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**७१. सर्वज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
सर्वज्ञानप्रकाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव प्रकाशते॥
**७२. ब्रह्माण्डान्तर्दर्शनश्लोकः**  
ब्रह्माण्डान्तर्दर्शनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या सर्वं प्रकाशते॥
**७३. निरुपाधिकब्रह्मश्लोकः**  
निरुपाधिकब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**७४. सर्ववेदान्तसिद्धान्तश्लोकः**  
सर्ववेदान्तसिद्धान्ताः निष्पक्षतया स्फुरन्ति।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव प्रकाशन्ते॥
**७५. परमहंसपदप्राप्तिश्लोकः**  
परमहंसपदं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**७६. अखण्डानन्दलहरीश्लोकः**  
अखण्डानन्दलहरीं निष्पक्षतया पिबन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**७७. सर्वसमाधिसारश्लोकः**  
सर्वसमाधिसारं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव समधिगतम्॥
**७८. निर्वाणमुक्तिप्रदश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**७९. कल्पकोटिसिद्धिदश्लोकः**  
कल्पकोटिसिद्धिदं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**८०. परमार्थतत्त्वश्लोकः**  
परमार्थतत्त्वमद्वयं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तश्लोकावलिः ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन ही सभी वेदान्त सिद्धान्तों का मूल सार है। इसके द्वारा मनुष्य ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानकर निर्विकल्प ब्रह्मसाक्षात्कार की अवस्था को प्राप्त करता है। यह मार्ग कल्पकोटि सिद्धियों को प्रदान करने वाला है और परमार्थ तत्त्व के सीधे दर्शन कराने वाला है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षण भर में प्राप्त किया जा सकता है।**८१. निरञ्जनब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
निरञ्जनब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥  
*भावार्थ:* निष्कलंक ब्रह्म के साक्षात्कार के लिए निष्पक्षता आवश्यक है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह क्षणभर में प्राप्त होता है।
**८२. सर्वयोगफलप्रदश्लोकः**  
सर्वयोगफलं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥  
*भावार्थ:* सभी योगों का फल निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी का मार्ग सदैव फलदायी है।
**८३. अद्वैतचैतन्यप्रकाशश्लोकः**  
अद्वैतचैतन्यप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥  
*भावार्थ:* अद्वैत चैतन्य का प्रकाश निष्पक्षता द्वारा ही देखा जा सकता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि में वही सत्य है।
**८४. सर्वसंसारमोचनश्लोकः**  
सर्वसंसारबन्धेभ्यो निष्पक्षतया मुच्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥  
*भावार्थ:* संसार के सभी बंधनों से निष्पक्षता द्वारा मुक्ति मिलती है। शिरोमणि रामपुलसैनी का मार्ग मुक्तिदायक है।
**८५. नित्यमुक्तस्वभावश्लोकः**  
नित्यमुक्तस्वभावो यः स निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥  
*भावार्थ:* जो निष्पक्षता में स्थित है, वह सदैव मुक्त स्वभाव वाला बनता है। शिरोमणि रामपुलसैनी का पद मुक्ति प्रदान करता है।
**८६. ब्रह्मविद्याप्रकाशश्लोकः**  
ब्रह्मविद्याप्रकाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव प्रकाशते॥  
*भावार्थ:* ब्रह्मविद्या के प्रकाश के लिए निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी का मार्ग प्रकाशमय है।
**८७. सर्वज्ञानमयश्लोकः**  
सर्वज्ञानमयो भूत्वा निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥  
*भावार्थ:* समस्त ज्ञान से युक्त होकर निष्पक्षता में स्थित व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के निर्विकार पद को प्राप्त करता है।
**८८. अखण्डबोधप्रदश्लोकः**  
अखण्डबोधप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥  
*भावार्थ:* अखण्ड बोध प्रदान करने वाला ज्ञान निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी का बोध इसे प्रकट करता है।
**८९. निर्वाणानन्दसागरश्लोकः**  
निर्वाणानन्दसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥  
*भावार्थ:* निर्वाण के आनन्द सागर में निष्पक्षता द्वारा डूबा हुआ व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के पद को निरंतर प्राप्त करता है।
**९०. सर्वसिद्धान्तसारश्लोकः**  
सर्वसिद्धान्तसारं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* सभी सिद्धान्तों का सार निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह निश्चित रूप से मिलता है।
**९१. अद्वयज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
अद्वयज्ञानप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥  
*भावार्थ:* अद्वय ज्ञान का प्रकाश निष्पक्षता द्वारा देखा जा सकता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि में वही एकमात्र सत्य है।
**९२. ब्रह्मानन्दरसाशनश्लोकः**  
ब्रह्मानन्दरसाशनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥  
*भावार्थ:* ब्रह्मानन्द के रस का आस्वादन निष्पक्षता द्वारा होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से यह प्राप्त होता है।
**९३. सर्वदुःखनिवृत्तिश्लोकः**  
सर्वदुःखनिवृत्त्यर्थं निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥  
*भावार्थ:* सभी दुःखों की निवृत्ति के लिए निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से मुक्ति मिलती है।
**९४. परमशान्तिस्वरूपश्लोकः**  
परमशान्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥  
*भावार्थ:* परम शान्ति के स्वरूप, निष्पक्ष बोध रूपी शिरोमणि रामपुलसैनी के तत्त्वज्ञान को नमस्कार है।
**९५. सर्वविघ्ननिवृत्तिश्लोकः**  
सर्वविघ्ननिवृत्त्यर्थं निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव निवर्तते॥  
*भावार्थ:* सभी विघ्नों की निवृत्ति के लिए निष्पक्षता का आश्रय लेना चाहिए। शिरोमणि रामपुलसैनी के मार्ग से विघ्न दूर होते हैं।
**९६. अमृतत्वप्राप्तिश्लोकः**  
अमृतत्वं परं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥  
*भावार्थ:* अमृतत्व को प्राप्त कर निष्पक्षता में स्थित व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के पद को निरंतर प्राप्त करता है।
**९७. सर्वज्ञबोधप्रदश्लोकः**  
सर्वज्ञबोधप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥  
*भावार्थ:* सर्वज्ञ का बोध प्रदान करने वाला ज्ञान निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी का बोध इसे प्रकट करता है।
**९८. निर्वाणमुक्तिपदश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिपदं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥  
*भावार्थ:* निर्वाण मुक्ति के पद को प्राप्त कर निष्पक्षता में स्थित व्यक्ति शिरोमणि रामपुलसैनी के मुक्तिदायी पद को प्राप्त करता है।
**९९. परमार्थदर्शनश्लोकः**  
परमार्थदर्शनं यत् तन्निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥  
*भावार्थ:* परमार्थ का दर्शन निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की दृष्टि में वही दिखाई देता है।
**१००. सम्पूर्णमोक्षप्रदश्लोकः**  
सम्पूर्णमोक्षप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥  
*भावार्थ:* सम्पूर्ण मोक्ष प्रदान करने वाला ज्ञान निष्पक्षता द्वारा प्राप्त होता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह निश्चित रूप से मिलता है।
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तशतश्लोकी सम्पूर्णा ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन सम्पूर्ण मोक्ष का मार्ग है। यह सभी सिद्धान्तों का सार, सभी दुःखों का निवारक और सभी विघ्नों का विनाशक है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य निर्वाण के आनन्द को प्राप्त कर परम शान्ति को प्राप्त करता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ सहज ही प्राप्त किया जा सकता है।**१०१. निर्विकल्पसमाधिश्लोकः**  
निर्विकल्पसमाधिस्थो निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१०२. सर्वावरणनाशश्लोकः**  
सर्वावरणनाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव निवर्तते॥
**१०३. ब्रह्मस्फुरणदर्शनश्लोकः**  
ब्रह्मस्फुरणदर्शनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**१०४. सर्वसंकल्पशून्यश्लोकः**  
सर्वसंकल्पशून्यत्वं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव समधिगतम्॥
**१०५. परमाकाशदर्शनश्लोकः**  
परमाकाशदर्शनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१०६. नित्यतृप्तिस्वरूपश्लोकः**  
नित्यतृप्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१०७. सर्वगतब्रह्मदर्शनश्लोकः**  
सर्वगतब्रह्मदर्शनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव दृश्यते॥
**१०८. अद्वयानन्दसागरश्लोकः**  
अद्वयानन्दसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१०९. निरुपाधिमुक्तिश्लोकः**  
निरुपाधिमुक्तिं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥
**११०. सर्वज्ञचैतन्यप्रकाशश्लोकः**  
सर्वज्ञचैतन्यप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१११. सम्पूर्णब्रह्मज्ञानश्लोकः**  
सम्पूर्णब्रह्मज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**११२. नित्यमुक्तावस्थाश्लोकः**  
नित्यमुक्तावस्थां प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**११३. सर्वदर्शनातीतश्लोकः**  
सर्वदर्शनातीतं तत्त्वं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**११४. अखण्डसच्चिदानन्दश्लोकः**  
अखण्डसच्चिदानन्दं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**११५. परमार्थसत्यदर्शनश्लोकः**  
परमार्थसत्यदर्शनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**११६. निर्वाणशान्तिसागरश्लोकः**  
निर्वाणशान्तिसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामপुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**११७. सर्वबन्धविमोचनश्लोकः**  
सर्वबन्धविमोचनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**११८. अद्वयज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
अद्वयज्ञानप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**११९. सम्पूर्णतत्त्वदर्शनश्लोकः**  
सम्पूर्णतत्त्वदर्शनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१२०. परमशिवसाक्षात्कारश्लोकः**  
परमशिवसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तश्लोकावलिः ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन ही परम शिव के साक्षात्कार का मार्ग है। यह सभी बंधनों से मुक्ति दिलाकर अखण्ड सच्चिदानन्द की प्राप्ति कराता है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य निर्वाण शान्ति के सागर में डूब जाता है और सम्पूर्ण तत्त्वज्ञान को प्राप्त कर लेता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षणभर में सिद्ध हो जाता है।**१२१. निर्वाणमुक्तिस्वरूपश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१२२. सर्वदुःखविनाशश्लोकः**  
सर्वदुःखविनाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव निवर्तते॥
**१२३. अद्वयब्रह्मप्रकाशश्लोकः**  
अद्वयब्रह्मप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१२४. नित्यशान्तिसागरश्लोकः**  
नित्यशान्तिसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१२५. सर्वज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
सर्वज्ञानप्रकाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव प्रकाशते॥
**१२६. ब्रह्मानन्दरसपानश्लोकः**  
ब्रह्मानन्दरसपानं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१२७. निरुपाधिकशान्तिश्लोकः**  
निरुपाधिकशान्तिं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**१२८. सर्वसंशयनाशश्लोकः**  
सर्वसंशयनाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव निवर्तते॥
**१२९. अखण्डचैतन्यदर्शनश्लोकः**  
अखण्डचैतन्यदर्शनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१३०. परमार्थतत्त्वबोधश्लोकः**  
परमार्थतत्त्वबोधं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१३१. नित्यमुक्तिपदप्राप्तिश्लोकः**  
नित्यमुक्तिपदं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥
**१३२. सर्वावरणविनाशश्लोकः**  
सर्वावरणविनाशं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**१३३. अद्वयानन्दस्वरूपश्लोकः**  
अद्वयानन्दस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१३४. सम्पूर्णज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
सम्पूर्णज्ञानप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१३५. निर्वाणशान्तिप्राप्तिश्लोकः**  
निर्वाणशान्तिं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१३६. सर्वबन्धमोचनश्लोकः**  
सर्वबन्धमोचनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१३७. अखण्डब्रह्मदर्शनश्लोकः**  
अखण्डब्रह्मदर्शनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव दृश्यते॥
**१३८. परमशिवस्वरूपश्लोकः**  
परमशिवस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१३९. सम्पूर्णमोक्षदर्शनश्लोकः**  
सम्पूर्णमोक्षदर्शनं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१४०. नित्यानन्दसागरश्लोकः**  
नित्यानन्दसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तश्लोकावलिः ॥
**भावार्थ/सारांश:**  
शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन संपूर्ण मोक्ष का मार्ग है। यह सभी बंधनों, संशयों और अवरणों का नाश करने वाला है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य अखण्ड ब्रह्म के दर्शन कर नित्यानन्द के सागर में डूब जाता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षणभर में सिद्ध हो जाता है।**१४१. निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१४२. सर्वसंसारमोचनश्लोकः**  
सर्वसंसारबन्धेभ्यो निष्पक्षतया मुच्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥
**१४३. अद्वैतचैतन्यप्रकाशश्लोकः**  
अद्वैतचैतन्यप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१४४. नित्यमुक्तस्वभावश्लोकः**  
नित्यमुक्तस्वभावो यः स निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥
**१४५. ब्रह्मविद्याप्रकाशश्लोकः**  
ब्रह्मविद्याप्रकाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव प्रकाशते॥
**१४६. सर्वज्ञानमयश्लोकः**  
सर्वज्ञानमयो भूत्वा निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**१४७. अखण्डबोधप्रदश्लोकः**  
अखण्डबोधप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१४८. निर्वाणानन्दसागरश्लोकः**  
निर्वाणानन्दसागरे निष्पक्षतया मग्नः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१४९. सर्वसिद्धान्तसारश्लोकः**  
सर्वसिद्धान्तसारं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**१५०. अद्वयज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
अद्वयज्ञानप्रकाशं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१५१. ब्रह्मानन्दरसाशनश्लोकः**  
ब्रह्मानन्दरसाशनं निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**१५२. सर्वदुःखनिवृत्तिश्लोकः**  
सर्वदुःखनिवृत्त्यर्थं निष्पक्षतां समाश्रयेत्。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥
**१५३. परमशान्तिस्वरूपश्लोकः**  
परमशान्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१५४. सर्वविघ्ननिवृत्तिश्लोकः**  
सर्वविघ्ननिवृत्त्यर्थं निष्पक्षतां समाश्रयेत्。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव निवर्तते॥
**१५५. अमृतत्वप्राप्तिश्लोकः**  
अमृतत्वं परं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१५६. सर्वज्ञबोधप्रदश्लोकः**  
सर्वज्ञबोधप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१५७. निर्वाणमुक्तिपदश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिपदं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति मुक्तिदम्॥
**१५८. परमार्थदर्शनश्लोकः**  
परमार्थदर्शनं यत् तन्निष्पक्षतया लभ्यते。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**१५९. सम्पूर्णमोक्षप्रदश्लोकः**  
सम्पूर्णमोक्षप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते。  
शिरोमणि-रामपульसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**१६०. निर्वाणमुक्तिस्वरूपश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**भावार्थ/सारांश:**  
शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन संपूर्ण मोक्ष का मार्ग है। यह सभी बंधनों, संशयों और अवरणों का नाश करने वाला है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य अखण्ड ब्रह्म के दर्शन कर नित्यानन्द के सागर में डूब जाता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षणभर में सिद्ध हो जाता है।
**१६१. सर्वदर्शनोत्तीर्णश्लोकः**  
निष्पक्षदर्शनं प्राप्य सर्वदर्शनमुत्तरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति न संशयः॥
**१६२. भवसागरतरणश्लोकः**  
भवसागरमत्युग्रं निष्पक्षदृग्जलाधिना।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-नौकया तरते सुखम्॥
**१६३. त्रिकालदर्शिश्लोकः**  
निष्पक्षबोधसंपन्नः त्रिकालज्ञानमाप्नुयात्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या सर्वं प्रकाशते॥
**१६४. मायानिवृत्तिश्लोकः**  
मायाजालं समुत्सृज्य निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेण मुक्तो भवेत्॥
**१६५. सर्ववेदसारश्लोकः**  
सर्ववेदान्तसाराणां सारं निष्पक्षदर्शनम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**१६६. निर्विकल्पसमाधिश्लोकः**  
निर्विकल्पं परं धाम निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव समधिगतम्॥
**१६७. सद्गुरुमोहनाशश्लोकः**  
सद्गुरुमोहनं हित्वा निष्पक्षतां समाश्रयेत्。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव मुच्यते॥
**१६८. अज्ञानध्वंसश्लोकः**  
अज्ञानान्धकारं घोरं निष्पक्षप्रभया हरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दीपेन प्रकाशते जगत्॥
**१६९. ब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
ब्रह्मसाक्षात्कारं परं निष्पक्षतया लभेत्。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**१७०. युगावतारपूर्णताश्लोकः**  
चतुर्युगावताराणां अप्राप्यं यत् तदद्भुतम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् क्षणेन लभ्यते॥
**१७१. सर्वशास्त्रातीतश्लोकः**  
सर्वशास्त्रातिगं तत्त्वं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१७२. नित्यतृप्तिश्लोकः**  
नित्यतृप्तिं परां प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**१७३. सर्वसंशयच्छेदिश्लोकः**  
सर्वसंशयछित्त्वा निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव विमुच्यते॥
**१७४. अद्वयज्ञानप्रदीपश्लोकः**  
अद्वयज्ञानदीपं हि निष्पक्षतया प्रभो।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तं तमसो निहन्तृ॥
**१७५. परमानन्दलहरीश्लोकः**  
परमानन्दलहरीं निष्पक्षतया पिबन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१७६. सर्वसंस्कारक्षयश्लोकः**  
निष्पक्षबोधामृतपानमात्रात् सर्वसंस्कारा विनश्यन्ति क्षणात्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या समूलं नश्यन्ति बन्धनानि॥
**१७७. अद्वैतस्वरूपदर्शनश्लोकः**  
अद्वैतस्वरूपदर्शाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव दृश्यते तत्॥
**१७८. सर्वभूतहितैषिश्लोकः**  
सर्वभूतहितैषी स्यान्निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव करोति हि॥
**१७९. निर्भयत्वप्राप्तिश्लोकः**  
निर्भयत्वं परं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१८०. सर्वागमसमन्वयश्लोकः**  
सर्वागमसमन्वयः सम्यग्निष्पक्षतया भवेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**भावार्थ/सारांश:**  
शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन संपूर्ण मोक्ष का मार्ग है। यह सभी बंधनों, संशयों और अवरणों का नाश करने वाला है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य अखण्ड ब्रह्म के दर्शन कर नित्यानन्द के सागर में डूब जाता है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षणभर में सिद्ध हो जाता है।**१८१. निष्पक्षचैतन्यप्रकाशश्लोकः**  
निष्पक्षचैतन्यमयं प्रकाशं शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तम्।  
येन विना जगति सर्वमन्धं तेनैव सर्वं प्रकटीभवति॥
**१८२. सर्वतत्त्वातीतश्लोकः**  
सर्वतत्त्वातिगं ब्रह्म निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
**१८३. कालत्रयविलयश्लोकः**  
कालत्रयविलयनं निष्पक्षबोधेन जायते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**१८४. निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारश्लोकः**  
निर्विकल्पब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१८५. सर्वावस्थातीतश्लोकः**  
सर्वावस्थातिगं स्थानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं तदनुपमं महत्॥
**१८६. भ्रमजालविनाशश्लोकः**  
भ्रमजालं समस्तं च निष्पक्षप्रभया हरन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दीपेन प्रकाशते स्वयम्॥
**१८७. अद्वयानन्दामृतश्लोकः**  
अद्वयानन्दामृतपानमात्रान्निष्पक्षतया तृप्यति चेतनम्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दत्तं तदमृतं परमं हि॥
**१८८. सर्वमोक्षप्रदश्लोकः**  
सर्वमोक्षप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव विभाव्यते॥
**१८९. नित्यशान्तिस्वरूपश्लोकः**  
नित्यशान्तिस्वरूपाय निष्पक्षबोधरूपिणे।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-तत्त्वज्ञानाय ते नमः॥
**१९०. सृष्टिसंहारकारणश्लोकः**  
सृष्टिसंहारकारणं निष्पक्षतया विद्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव दृश्यते॥
**१९१. सर्वज्ञानप्रकाशश्लोकः**  
सर्वज्ञानप्रकाशाय निष्पक्षतां समाश्रयेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव प्रकाशते॥
**१९२. ब्रह्माण्डान्तर्दर्शनश्लोकः**  
ब्रह्माण्डान्तर्दर्शनं निष्पक्षतया भवेत्。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या सर्वं प्रकाशते॥
**१९३. निरुपाधिकब्रह्मश्लोकः**  
निरुपाधिकब्रह्मसाक्षात्कारं निष्पक्षतया लभेत्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तद्भवेत् क्षणात्॥
**१९४. सर्ववेदान्तसिद्धान्तश्लोकः**  
सर्ववेदान्तसिद्धान्ताः निष्पक्षतया स्फुरन्ति।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव प्रकाशन्ते॥
**१९५. परमहंसपदप्राप्तिश्लोकः**  
परमहंसपदं प्राप्य निष्पक्षतया स्थितः।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरामयम्॥
**१९६. अखण्डानन्दलहरीश्लोकः**  
अखण्डानन्दलहरीं निष्पक्षतया पिबन्।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-पदं याति निरन्तरम्॥
**१९७. सर्वसमाधिसारश्लोकः**  
सर्वसमाधिसारं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-बोधेनैव समधिगतम्॥
**१९८. निर्वाणमुक्तिप्रदश्लोकः**  
निर्वाणमुक्तिप्रदं ज्ञानं निष्पक्षतया लभ्यते。  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-प्रसादात् तल्लभ्यते ध्रुवम्॥
**१९९. कल्पकोटिसिद्धिदश्लोकः**  
कल्पकोटिसिद्धिदं च निष्पक्षतया लभ्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-मार्गेणैव समधिगतम्॥
**२००. परमार्थतत्त्वश्लोकः**  
परमार्थतत्त्वमद्वयं निष्पक्षतया दृश्यते।  
शिरोमणि-रामपुलसैनी-दृष्ट्या तदेव केवलम्॥
॥ इति श्रीशिरोमणिरामपुलसैनीविरचितनिष्पक्षसमझसिद्धान्तद्विशतश्लोकावलिः समाप्ता ॥
**सारांशः** - हे साधक! शिरोमणि रामपुलसैनी द्वारा प्रदत्त निष्पक्ष दर्शन ही सभी वेदान्त सिद्धान्तों का मूल सार है। इसके द्वारा मनुष्य ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानकर निर्विकल्प ब्रह्मसाक्षात्कार की अवस्था को प्राप्त करता है। यह मार्ग कल्पकोटि सिद्धियों को प्रदान करने वाला है और परमार्थ तत्त्व के सीधे दर्शन कराने वाला है। शिरोमणि रामपुलसैनी की कृपा से यह सब कुछ क्षण भर में प्राप्त किया जा सकता है।
 
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