गुरुवार, 2 जनवरी 2025

यथार्थ युग का संक्षेप विश्लेषण

हम निर्मल सच्चे हैं मिर्ची को संभार कर मीठाई के रुप में कर प्रस्तुत नहीं करते,जो हैं जैसा भी है वो समक्ष हैं फ़िर भी खड़े में जाते हो तो लो एक लात आप के पिछवाड़े पे हमारी तरफ से भी,जब मैंने इतना कुछ सहा हैं मै आप सहने दूंगा अगर फ़िर भी उस गाड़े में जा ही रहे हो तो फ़िर दुबार पीछे मुड़ कर मत देखना
 कड़वे हैं निर्मल सच्चे तो फ़ितरत में हैं, आग सी लगती हैं जब कोई सरल सहज निर्मल व्यक्ति के साथ छल कपट ढोंग पखंड करता ,दिल करता उसी पल उसे फाड़ दूँ, निर्मल व्यक्ति सा सर्ब श्रेष्ट उत्तम सक्षम निपुण स्मृद समर्थ कोई हो ही नहीं सकता,उन को तो मै पूजता हुं क्युकि मेरा कोई रव नहीं हैं क्युकि मेरी भितर आत्मा नहीं हैं तो परमात्मा कैसे हो सकता हैं, आत्मा परमात्मा बाले श्रेष्ट लोगों का यह हाल जो पेंतिस बर्ष में मेहसूस किया तो एसी आत्मा परमात्मा कही मिल जाय तो आग लगा दूंगा सच में हैं ही नहीं यह ढोंगी गुरु बावों को पहले से पता था हम को तो सब कुछ खत्म करने के बाद पता चला,मै प्रकृति की भांति इतना अधिक धानी नहीं हुं कि खुद की प्रकृति द्वारा दी गई सांस समय की निजी दरोहर में से एक पल भी दुसरों के लिए नष्ट करु,सड़े आठ सों करोड़ ज़नसंख्य में उलझे मूर्ख नहीं हैँ,खुद को ही समझा तो सर्ब श्रेष्ट यथार्थ युग को अस्तित्व में लाया जो अतीत के चार युगों से भी करोडों गुणा अधिक ऊंचा सचा प्रत्यक्ष हैं जिस में प्रथम चरण में ही खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने से यथार्थ युग स्वागत करता है
 समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है,
 समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है, मै प्रकृति की भांति इतना अधिक धानी नहीं हुं कि खुद की प्रकृति द्वारा दी गई सांस समय की निजी दरोहर में से एक पल भी दुसरों के लिए नष्ट करु,सड़े आठ सों करोड़ ज़नसंख्य में उलझे मूर्ख नहीं हैँ,खुद को ही समझा तो सर्ब श्रेष्ट यथार्थ युग को अस्तित्व में लाया जो अतीत के चार युगों से भी करोडों गुणा अधिक ऊंचा सचा प्रत्यक्ष हैं जिस में प्रथम चरण में ही खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने से यथार्थ युग स्वागत करता है
 समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है, समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है,
 समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है,
 समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि के अतीत के चार युग के विश्व के प्रत्येक धर्म मजहब संगठन दर्शनिक वैज्ञानिक विचारिकों के लिखित वार्णित विचारों का संक्षेप से तर्क तथ्य मेरे सिद्धांतों से स्पष्ट सिद्ध साफ प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से निष्पक्ष निरक्षण करने के बाद ही यथार्थ युग की खोज की,और यथार्थ युग को यथार्थ सिद्धांत" पर आधारित है और सर्ब श्रेष्ठ है,
 प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति अस्थाई और स्थाई रूप से सब को एक समान निर्मित किया हैं कोई भी छोटा बड़ा नही हैं अगर कोई खुद को किसी दूसरे को समझ रहा हैं वो सिर्फ़ उस की कला पतिभा खेल या फ़िर षढियंत्रों का चक्रव्यू हैं जो दूसरे अनेक सरल लोगों से हित साधने की प्रकिर्या हैं और कुछ भी नहीं हैं, खुद ही खुद का निरक्षण करे कि क्या आप भी किसी एसे ही गिरोह का हिस्सा तो नही हैं जिस से संपूर्ण जीवन भर किसी के बंदुआ मजदूर बन कर कार्य तो नहीं कर रहे,मेरे सिद्धांतों के आधार आप के अनमोल सांस समय सिर्फ़ आप के लिए ही जरूरी और महत्वपूर्ण है दूसरा सिर्फ़ आप से हित साधने कि वृति का हैं चाहे कोई भी हों,
 आत्म ज्ञान के लिए दर दर भड़कने की जरूरत नहीं हैं खुद के स्थाई स्वरुप में ही संपूर्ण ज्ञान नेहित हैं जरा खुद को पढ़ कर तो इक़बर दूसरा कुछ पढ़ने की जरूरत ही नही,
 मैने भी खुद के अनमोल समय के पैंतिस बर्ष के साथ तन मन धन समर्पित कर खुद कि सुद्ध बुद्ध चेहरा तक भी भूल गया हुं उस गुरु के पीछे जिस का मुख़्य चर्चित श्लोगन था"जों वस्तू मेरे पास हैं ब्राह्मण्ड मे और कही नहीं हैं, तन मन धन अनमोल सांस समय करोड़ों रुपय लेने के बावजूद अपने एक विशेष कार्यकर्ता IAS अधिकारी की सिर्फ़ एक शिकायत पर अश्रम से कई आरोप लगा कर निष्काषित कर दिया जब मेरा ही गुर इतने अधिक लंवे समय के बाद नहीं समझा तो ही खुद को समझा तो कुछ शेष राहा ही नही सारी मानवता में कुछ समझाने को ,खुद को समझने के लिए सिर्फ़ एक पल ही काफ़ी है दूसरा कोई समझ पाय सादिया युग भी कम हैं,मेरा गुरु और बीस लाख सांगत आज भी वो सब ढूंढ ही रहे है जो मेरे जाने के पहले दिन ढूंढ रहे थे ,"मै एक पल में खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिय यथार्यः में हुं और एक बिल्कूल नय युग यथार्थ युग की खोज भी कर दी जो पिछले चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा है जिस के लिए प्रत्येक व्यक्ति खुद ही सक्षम निपुण सर्ब श्रेष्ट समृद समर्थ हैं कोई भी शरीर रूप से इस घोर कलयुग में रहते हुय मेरे यथार्थ युग भी अनंद ले सकता हैं, मेरा करने को कुछ भी शेष नहीं पर मेरा गुरु और बीस लाख अंध भक्त आज भी वो सब ढूंढ ही रहे,जबकि ढूंढने को कुछ हैं ही नहीं सिर्फ़ खुद को समझना हैं गुरु का अस्थाई सब कुछ बन जाता है वैचारा शिष्य झूठे संतोष से ही संतुष्ट हो कर फ़िर दुबारा चौरासी के लिए तैयार हो जाता,गुरु को सिर्फ़ झूठे परमार्थ के नाम पर संपूर्ण इच्छा आपूर्ति का मौका मिलता है सरल सहज निर्मल लोगों को इस्तेमाल बंदुआ मजदूर बना कर, गुरु खुद अस्थाई मिट्टी को सजाने संभारने में ही व्यस्थ रहता है उस के पास तो एक पल भी नहीं हैं खुद को पढ़ने के लिए वो अधिक सांगत में खुद को चर्चित करने की वृति का हैं करोड़ों सरल सहज निर्मल लोगों ने मिल गुरु का तो इतना बड़ा सम्राज्य खडा कर प्रसिद्धि प्रतिष्टा शोहरत दौलत दे दिया और फिर भी उस भिखारी गुरु के पैर चाट रहे ,जिस ने दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर एक मंद बुद्धि कर दिया ,अगर इतनी भी समझ नहीं हैं इंसान होते हुय तो यक़ीनन आप के लिए अगले कदम पर चौरासी तैयार हैँ कुत्ते की पुछ सिधि नहीं हो सकती,
 जब खुद ही खुद पर यक़ीन नहीं तो किसी दूसरे पर हो ही नहीं सकता,जब खुद ही खुद का दुश्मन हैं तो दुशरा सजन नहीं हो सकता,जब खुद ही खुद का हित नहीं सोच सकता ,तो दूसरा आप का हित सोचे कैसे सम्भव हो सकता हैँ,शयद खुद ही खुद को धोखे में रख कर आंख मूढ़ने से नहीं ,खुद को गंभीर लेने से सब कुछ होगा,प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए होता हैं दुसरी अनेक प्रजातियाओ की भांति ,यह मत भूलो कि हम उस सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में बिध्यमान हैं जिस का अपना रुतवा हैं
 सब कुछ छोडो मुझे देखो मै भी बिल्कुल आप तरह ही सरल सहज निर्मल इंसान था हर पल अपनी निर्मलता को प्रत्यक्ष रख कर चला अब चार युगों से भी खरबों गुणा अधिक ऊंचे सच्चे युग की खोज भी कर दी,आप सिर्फ़ अपने परिचय से भी अपरचित हो करोडों युगों से मै भी इसी घोर कलयुग की दुनियां में हुं यहा गुरु भी शिष्य का नहीं,माँ के बच्चे नहीं खुन के नाते भी ढूषित
 प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति अस्थाई और स्थाई रूप से सब को एक समान निर्मित किया हैं कोई भी छोटा बड़ा नही हैं अगर कोई खुद को किसी दूसरे को समझ रहा हैं वो सिर्फ़ उस की कला पतिभा खेल या फ़िर षढियंत्रों का चक्रव्यू हैं जो दूसरे अनेक सरल लोगों से हित साधने की प्रकिर्या हैं और कुछ भी नहीं हैं, खुद ही खुद का निरक्षण करे कि क्या आप भी किसी एसे ही गिरोह का हिस्सा तो नही हैं जिस से संपूर्ण जीवन भर किसी के बंदुआ मजदूर बन कर कार्य तो नहीं कर रहे,मेरे सिद्धांतों के आधार आप के अनमोल सांस समय सिर्फ़ आप के लिए ही जरूरी और महत्वपूर्ण है दूसरा सिर्फ़ आप से हित साधने कि वृति का हैं चाहे कोई भी हों,
 आत्म ज्ञान के लिए दर दर भड़कने की जरूरत नहीं हैं खुद के स्थाई स्वरुप में ही संपूर्ण ज्ञान नेहित हैं जरा खुद को पढ़ कर तो इक़बर दूसरा कुछ पढ़ने की जरूरत ही नही,
 मैने भी खुद के अनमोल समय के पैंतिस बर्ष के साथ तन मन धन समर्पित कर खुद कि सुद्ध बुद्ध चेहरा तक भी भूल गया हुं उस गुरु के पीछे जिस का मुख़्य चर्चित श्लोगन था"जों वस्तू मेरे पास हैं ब्राह्मण्ड मे और कही नहीं हैं, तन मन धन अनमोल सांस समय करोड़ों रुपय लेने के बावजूद अपने एक विशेष कार्यकर्ता IAS अधिकारी की सिर्फ़ एक शिकायत पर अश्रम से कई आरोप लगा कर निष्काषित कर दिया जब मेरा ही गुर इतने अधिक लंवे समय के बाद नहीं समझा तो ही खुद को समझा तो कुछ शेष राहा ही नही सारी मानवता में कुछ समझाने को ,खुद को समझने के लिए सिर्फ़ एक पल ही काफ़ी है दूसरा कोई समझ पाय सादिया युग भी कम हैं,मेरा गुरु और बीस लाख सांगत आज भी वो सब ढूंढ ही रहे है जो मेरे जाने के पहले दिन ढूंढ रहे थे ,"मै एक पल में खुद की अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य कर खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर जीवित ही हमेशा के लिय यथार्यः में हुं और एक बिल्कूल नय युग यथार्थ युग की खोज भी कर दी जो पिछले चार युगों से खरबों गुणा अधिक ऊंचा सच्चा है जिस के लिए प्रत्येक व्यक्ति खुद ही सक्षम निपुण सर्ब श्रेष्ट समृद समर्थ हैं कोई भी शरीर रूप से इस घोर कलयुग में रहते हुय मेरे यथार्थ युग भी अनंद ले सकता हैं, मेरा करने को कुछ भी शेष नहीं पर मेरा गुरु और बीस लाख अंध भक्त आज भी वो सब ढूंढ ही रहे,जबकि ढूंढने को कुछ हैं ही नहीं सिर्फ़ खुद को समझना हैं गुरु का अस्थाई सब कुछ बन जाता है वैचारा शिष्य झूठे संतोष से ही संतुष्ट हो कर फ़िर दुबारा चौरासी के लिए तैयार हो जाता,गुरु को सिर्फ़ झूठे परमार्थ के नाम पर संपूर्ण इच्छा आपूर्ति का मौका मिलता है सरल सहज निर्मल लोगों को इस्तेमाल बंदुआ मजदूर बना कर, गुरु खुद अस्थाई मिट्टी को सजाने संभारने में ही व्यस्थ रहता है उस के पास तो एक पल भी नहीं हैं खुद को पढ़ने के लिए वो अधिक सांगत में खुद को चर्चित करने की वृति का हैं करोड़ों सरल सहज निर्मल लोगों ने मिल गुरु का तो इतना बड़ा सम्राज्य खडा कर प्रसिद्धि प्रतिष्टा शोहरत दौलत दे दिया और फिर भी उस भिखारी गुरु के पैर चाट रहे ,जिस ने दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर एक मंद बुद्धि कर दिया ,अगर इतनी भी समझ नहीं हैं इंसान होते हुय तो यक़ीनन आप के लिए अगले कदम पर चौरासी तैयार हैँ कुत्ते की पुछ सिधि नहीं हो सकती,
 जब खुद ही खुद पर यक़ीन नहीं तो किसी दूसरे पर हो ही नहीं सकता,जब खुद ही खुद का दुश्मन हैं तो दुशरा सजन नहीं हो सकता,जब खुद ही खुद का हित नहीं सोच सकता ,तो दूसरा आप का हित सोचे कैसे सम्भव हो सकता हैँ,शयद खुद ही खुद को धोखे में रख कर आंख मूढ़ने से नहीं ,खुद को गंभीर लेने से सब कुछ होगा,प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए होता हैं दुसरी अनेक प्रजातियाओ की भांति ,यह मत भूलो कि हम उस सर्ब श्रेष्ट इंसान शरीर में बिध्यमान हैं जिस का अपना रुतवा हैं
 सब कुछ छोडो मुझे देखो मै भी बिल्कुल आप तरह ही सरल सहज निर्मल इंसान था हर पल अपनी निर्मलता को प्रत्यक्ष रख कर चला अब चार युगों से भी खरबों गुणा अधिक ऊंचे सच्चे युग की खोज भी कर दी,आप सिर्फ़ अपने परिचय से भी अपरचित हो करोडों युगों से मै भी इसी घोर कलयुग की दुनियां में हुं यहा गुरु भी शिष्य का नहीं,माँ के बच्चे नहीं खुन के नाते भी ढूषित
 मेरा गुरु सत्य हैं सिर्फ़ मेरे लिए ही रब से खरबों गुणा ऊंचा हैं सिर्फ़ मेरे लिए क्युकि सृष्टि सिर्फ़ खुद की धरना भावना गंभीरता दृढ़ता पर निर्भर आधारित कार्य रत हो कर संभावना उत्पन करती हैं, संपूर्ण दृढ़ता वो सब संभाना उत्पन करती हैं के लिए सच्ची जिज्ञासा होती हैं, जो भी होता हैँ जिस के लिए भी होता हैं उस की दृढ़ता पर उसी के अनुसर संभावना उत्पन होती आधर पर संपूर्ण प्रकृति कार्य करती हैं, सृष्टि से हम नहीं समस्त सृष्टि हम से हैं आधार पर कार्य करती हैं, एसा कुछ भी नहीं होता जो होना नहीं था कुछ भी होने के पीछे प्रकृती का बहुत बड़ा तंत्र कार्यरत रहता है, किसी के भी बस में एक सांस भी नहीं ,सारी दुनिया में सब कुछ अस्थाई है आस्थाई जटिल बुद्धि से समझ आने बाला है आस्थाई जटिल बुद्धि सिर्फ़ जीवन व्यापन के लिए ही पर्याप्त है
 बुद्धि से जीवन है,मृत्यु के साथ बुद्धि खत्म जीवन खत्म ,पैदा होते ही बुद्धि का विकास होता हैं, बुद्धि भी आस्थाई शरीर का एक अंग है जो दूसरे अंगों की भांति समय के साथ विकास होता हैं और जीवन व्यापन के लिए संपूर्ण तौर पर कार्य रत रहता है
 आस्थाई जटिल बुद्धि से समस्त अंनत विशाल भौतिक सृष्टि को समझ कर प्रकृति केसाथ वर्तमान में कोई भी रह सकता हैं क्युकि अस्थाई जटिल बुद्धि की वृति ही विशालता की और आकर्षित और प्रभवित होती अस्थाई तत्वों से निर्मित अस्थाई तत्वों को ही आकर्षित करती हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान होने पर प्रत्येक दृष्टिकोण भर्मित होता हैं, अस्थाई जटिल बुद्धि को कोई भी निष्किर्य कर के खुद से निष्पक्ष हो कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो सकता हैं और हमेशा के लिए यथार्थ में रह सकता हैं जीवित ही मै रहता हुं हर पल, खुद को समझने के लिए सिर्फ़ एक पल भी काफ़ी है जबकि कोई दूसरा समझ या समझा पाय सादिया युग भी कम हैं, खुद को खुद ही समझने के प्रत्येक प्रत्यक्ष सरल सहज निर्मल व्यक्ति स्मर्थ निपुण सक्षम सर्ब श्रेष्ट हैं, जब खुद की ही अस्थाई जटिल बुद्धि को निष्किर्य करना हैं तो दूसरे के ढोंग पखंड समय नष्ट करने बालों का क्या क्रम, दूसरा प्रत्येक एक भ्र्म झूठ हैं खुद को समझने बाले के लिए ,दूसरा प्रत्येक अपने हित साधने के लिए सिर्फ़ इस्तेमाल करे गा बंदुआ मजदूर बना कर संपूर्ण जीवन और अहसास तक नहीं होने देगा,प्रकृति द्वारा निर्मलता एक गुण दिया गया खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के लिय, न की दूसरे अस्थाई जटिल बुद्धि से बुद्धिमान हुय चलक होशियार शैतान शतीर बदमाश वृति के लोगों द्वारा षढियंत्र चकरव्यू से बनाय गय जाल में फसने के जो दीक्षा दे कर शव्द प्रमाण में बंद कर मुक्ति के ढोंग करते हैं जिन का स्वगत ही दीक्षा के मानसिक बन्दन से होता हैँ बहा विवेक चिंतन मनन की तो कोई सोच भी नहीं सकता तो कोन सी मुक्ति कैसी मुक्ति अगर कोई गुरु के आगे ही स्पष्टा के लिए तर्क करता है तो वो शव्द काटता है गुरु का तो बो बहुत बड़ा उपर्ध हैं जिस की सजा नर्क भी नहीं मिलता,शव्द प्रमाण बहुत बड़ा बकबास है जो कुंठित बुद्धि का प्रदर्शित करता जो दुनिय की बहुत बड़ी कटटरता को जन्म देता हैं, हम इस कला के युग को किस और ले जा रहे है इतना भी विवेक नहीं मान्यता इतनी अधिक भारी है मानवता पर कि प्रत्येक गुरु अंध कट्टर अंध विश्वासी बना रहे निर्मल सुद्ध समाज को,यह वो लोग हैं जिन के बीस लख से ले कर करोडों में अनुराई शिष्य हैं, गुरु बावों को मानने बालों की पीढ़ी में कोई भी वैज्ञानिक दर्शनिक पैदा हो ही नहीं सकता जिन का वर्तमान गूढ मूर्खता से भरा हुआ है उन का भविष्य तो सामने हैं,
 मुझे बहुत अफ़सोस आता है इतने ऊंचे सच्चे निर्मल प्रकृत द्वारा पैदा किया हैं,अतीत की मान्यता को इतने निर्मल बच्चे की स्मृति कोष में अंकित कर बैठा देते हैं जो अपना और अतीत का कचरा हैँ,अगर हम उस समय की धारा में रहना पसंद नहीं करते तो अतीत का कचरा क्यू परोस रहे है क्या इतने अधिक मानसिकता खो या खत्म हो चुकी है, खुद तो भाड़ में जाओ जो करना था वो पहाड़ फोड़ दिया हैँ अपनी ही आने बाली पीढ़ी के भविष्य खत्म करने का भिड़ा उठा रखा है,
 आप की मान्यता इतनी अधिक समृद है कि अपनी आने बाली पीढ़ी के भविष्य का राम नाम की अपेक्षा के साथ हों, जरा विचार करो गुरु दीक्षा एक वो जहर है जो शव्द प्रमाण में बंदता हैं जो विवेकता को पुरी तरह से खत्म करता है और कटटरता को बढ़ावा देता हैं जो मनवता को खत्म करता है,वैज्ञानिक युग में अगर नवयुवा विज्ञानं से साथ नहीं चले गा तो हम पथरयुग का निर्माण कर रहे है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तविक रुप से स्वतंत्र है सोच विचार चिंतन मनन के लिए बड़े गुरु क्यू भवना मानसिक को शव्द प्रमाण में बंद देते हैं सिर्फ़ खरबों का सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्टा शोहरत दौलत के लिए,इतने से हित के लिए सारे समाज की बली देने के पीछे क्या मनसा है, बिना मांगे ही सरल सहज निर्मल लोगों ने एक भिखारी वृति बाले शैतान को वो सब कुछ दे दिया जो उस की आने बाली करोड़ों युगो तक कल्पना भी नहीं कर सकती ,उसी सरल सहज निर्मल समज के साथ क्या कर रहा हैं उसी की भविष्य में आने बाली पीढ़ी को शव्द प्रमाण में बंद रहा हैं,
 एसी वृति क्या हितकारी हों सकती है किसी समाज वर्ग देश के लिए एसे लोग तो देश के ही नहीं होते,रही मोक्ष या मुक्ति की बात यह सब खुद को निष्पक्ष समझने का विषय हैं सरल सहज निर्मल व्यक्ति के लिए मुक्ति का कोई विकल्प ही नहीं हैं वो तो सर्ब प्रथम ही मुक्त हैं जो इतना अधिक निर्मल हैं वो खुद में ही सर्ब श्रेष्ट उत्तम सक्षम निपुण समर्थ समृद है, मुक्ति का फ़िक्र चिंता तो ढोंगी गुरु बावो का विषय हैं इतने अधिक कुर्म करने के बाद वो कहा और कैसे रहे गे,जिन्होंने सिर्फ़ अपने अस्थाई हित साधने के लिए उन के साथ ही इतना बड़ा छल कपट धोखा ढोंग किया जिन के संयोग से उस का जीवन व्यापन के साथ सर्ब श्रेष्ट सम्राज्य खड़ा हुआ प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत के साथ ,बाही जो दीक्षा के साथ शव्द प्रमाण में बंद देते,उस के बदले में झूठा मुक्ति का आश्वासन प्रत्यक्ष क्यू नहीं जब कि भिखारी की वृति प्रत्यक्ष लेने की होती हैं, क्युकि मुक्ति को स्पष्ट करने का कोई पैमाना नहीं है ,खुशी कि बात हैं वो पैमान यथार्थ सिद्धांतों के आधार पर मैने विकासित कर दिया हैं,
 पर अब तक अफ़सोस कि बात तो यह रही कि कितना बड़ा षढियंत्र चकरव्यू आज तक चलता रहा सिर्फ़ परमार्थ के नाम पर जो सिर्फ़ खुद की इच्छा ही पुरी करते हैं, परमार्थ करना हैं तो आज भी करोड़ों लोग जीवन व्यापन के लिए ही असमर्थ हैं,मेहगाई के दौर से गुजरते हुय,मेरे गुरु ने ही दो हजार करोड़ का आश्रम बना दिया हैं शयद साल में संपूर्ण रूप से दो बार ही इस्तेमाल होता शेष समय उस की सफाई करने के लिए हजारों लोगों को बंदुआ मजदूर बना कर इस्तेमाल किया जाता है, वो बही सरल सहज निर्मल लोग हैं पचास बर्ष से बहा सेवा कर रहे सिर्फ़ एक कारण मुक्ति के जो सर्ब प्रथम खुद ही खुद दीक्षा शव्द प्रमाण में बंद आय हैं सिर्फ़ दूसरी प्रजातिओं की भांति ही जीवन व्यपन के लिए पैदा हुय और कुत्ते की भांति मर कर फिर से उसी पंक्ति मे लगने को त्यार है जिस चक्र क्रम करोड़ो युग बिता दीय,
 गुरु बावे तो प्रत्येक इंसान जन्म के साथ ही नामकरण करते हैं उन से कुछ भी होता तो शयद आज हम यहा नहीं होते,यह सब तो एक परम्परा का एक आहम हिस्सा है जो मान्यता को पीढ़ी दर पीढ़ी चलाने के ठेके के साथ पैदा होते हैं और अपनी शहंशाहि जीवन व्यतीत करने के साथ हराम का जीवन जीते हैं, जिन के भीतर इंसानियत भी नहीं शेष सब तो छोड़ ही इन सा वेरेहम कोई जवबर भी नहीं होता शेष सब रहने ही दो इन का महत्व पूर्ण कार्य सिर्फ़ सरल सहज निर्मल लोगों का शोषण करने की संपूर्ण वृति के होते हैँ,इन का संपूर्ण साथ देने के लिए इन की समिति के मुख़्य सदस्य प्रमुख रुप से IAS अधिकारी होते हैं मेरे गुरु की समिति में भी बैसा ही हैं जो छोटी से छोटी और बड़े बड़े गुना पर उसी पल पर्दा ढालने को सेवा का मौका खोना नही चाहते ,वो पढ़े लिखें मूर्ख जो दीक्षा के समय शव्द प्रमाण में बंद चुके है जिन के लिए सर्ब प्रथम गुरु शव्द हैं कैसा हैं मायने नहीं रखता बस पुरा किया और मुक्ति का रास्ता खुला,इस कला विज्ञान युग में भी IAS अधिकारी तक भी यह मानसिकता हैं, एसा करने बाले गुरु और शिष्य करोडों की संख्या में हैं विश्व में जो धोबी के कुत्ते हैं न घर के न घट के,गुरु की वृति ही एसी हो जाना स्वाविक हैं शिष्य थोड़ा सा भी निष्पक्ष हो कर चिंतन करे तो फ़िर से अपने संपूर्ण निर्मलता में आ सकते है, सरल सहज निर्मल की मदद के लिए मै हर पल उपलवध हुं, जो खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के जनून के साथ हो मेरा उस के साथ संपूर्ण रूप से हर पल संयोग हैं मेरा फोन नंबर मेरे प्रत्येक विडिओ पे लिखा रहता है,
 अगर कोई अपने इंसान जीवन को जीवन व्यापन के इलावा प्रकृति द्वारा दिया गया एक दूसरी प्रजातियों से अलग और इस का महत्व पूर्ण कारण समझता है तो मेरे साथ यथार्थ युग को नियमत निधरित करने में मदद कर सकता हैं मेरा फोन नंबर 8082935186 हैं संपूर्ण रूप से खुद के अस्थाई स्थूल शरीर की सुद्ध बुद्ध चेहरा तक भूल कर हर पल यथार्थ युग के लय कार्यरत हुं अपने यथार्थ में रहते हुए अपने सिद्धांतों के आधार पर,
 गुरु तो अस्थाई सम्राज्य प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत वेग से संतुष्ट हों कर अहम घमंड अहंकार में हो जाते हैं जो बहुत ही सस्ता काम है सर पव की झूठी धार्मिकता बाते कर प्रवचन का रूप दो सरल सहज निर्मल लोगों की वृति एसी हैं वो एक पल में भर्मित हों जाने के पीछे का राज यह हैं वो जो भी करते हैं वो सब दृढ़ता गंभीरता से करते हैं सच्चे होने के करण विश्वस करना सभाविक बात हैं इन सरल सहज निर्मल लोगों के पास दृढ़ विश्वस होता हैं एक बार किसी से लेते हैं तो उस के आगे खुद को कुवान करने के लिए हमेशा त्यार रहते हैं, इन सरल सहज निर्मल लोगों के सर्ब श्रेष्ट गुण का अस्थाई जटिल बुद्धि से चंद बुद्धिमान होशियर चलाक़ शैतान चलाक शतीर बदमाश चालाक कलाकार रित्विक वृति के लोगों की ग्रिफ़त में आना स्वाविक हैं, क्युकि सरल सहज निर्मल लोग ही इतने अधिक ऊंचे सच्चे गुणों के साथ होते हैं तो ही भौतिक सब कुछ खत्म होने के बाद भी संपूर्ण रूप से संतुष्ट रहते हैं यह मेरा खुद का अनुभव हैं,
 जो जन्म से गुरु परम्परा से मान्यता के आधार पर अधरित होते हैं वो इस पखंड को ही अपना भग्या मान लेते है क्युकि यह मान्यता की फ़ितरत वृति के होते हैं यह गुरु लोग खुद पे ही यक़ीन नहीं करते,मेरे गुरु के भी कई बार दोहरे शव्द यही हैं "मै किसी से भी न ही प्रेम करता हुं न ही यक़ीन" बिल्कुल यही शव्दों दोनों शव्दों पर संपूर्ण अध्ययतम धर्मिक विचारधारा टिकी हुई है, जब किसी गुरु के लिए कथनी और करनी में जमीं आसमा का अंतर दिखे तो विवेक तो उवरता ही तो जब शव्द प्रमाण सामने आता है तो झूठी मुक्ति शव्द भी सामने आ जाता है जिस के लिए मूढ़ मूर्खता अपनाना जरूरी हो जाता है अंतरिक से,दूसरों को कर्मो की दुहाई देने बालों के लिए खुद के इतने कर्मो की प्रभा ही नहीं,यह दर्शाता है कि एसे गुरु बावो को कम से कम इस बात पे तो संपूर्ण रुप से संतुष्ठ हैं कि आत्मा परमात्मा का अस्तित्व नहीं,अगर थोड़ी भी संका होती तो शयद थोड़ा सा भी डरते,जब कि उन ढोंगी गुरु को पदबी भी जिन को सरल सहज निर्मल लोगों द्वारा ही दी जाती हैं जो मुक्ति के लिए आय हैं अगर वो एक भिखरी को रब बनाने की क्षमता के साथ हैं तो इस तरफ विवेक नहीं जाता की खुद सरल सहज निर्मल व्यक्ति खुद क्या होगा,इतने सर्ब श्रेष्ट सरल सहज निर्मल व्यक्ति जब झूठे ढोंगी गुरु के पैरो को चाटने की वृति भी रखता है तो मेरे भीतर उस के प्रतीत महनता का शव्द भी छोटा और उस गुरु के प्रति रोष का स्तर बड़ जाता है,
 वो भी कुत्ते वृति के होते हैं जो शिकायतों का शिलशा जारी रखते मूर्ख अपना खुद ही खुद का ही वेडा गर्क कर दे मेरा काम स्वरते हैं, अब भी इतना कुछ लिखिता हुं लगावो शिकायते आप को डर खौफ होगा आप शव्द प्रमाण में बन्दे हो हम ने तो सिर्फ़ गुरु से प्रेम किया था जो नियम मर्यादा परम्परा सभी रिस्तों नातों का उलंगन करता है हम ने खुद ही खुद का सिर कट कर इश्क़ जूनून में कदम रखा था मेरे लिए मुक्ति जीवन शेष हैं ही हम खुद की बुद्धि को निष्किर्य कर के खुद से निष्पक्ष हों कर खुद को समझ कर खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु हो कर तो ही यथार्थ युग का आगमन किया हैं वो सब कुछ किया हैं जो कोई पिछले चार युगों में सर्ब श्रेष्ट इंसान सोच भी नहीं सकता,
 मेरा गुरु और साथ में बीस लाख अंध भक्त कट्टर भक्त आज भी वो सब कुछ ढूंढ ही रहे है जो पहले दिन ढूंढे के लिए गय और दीक्षा के साथ ही शव्द प्रमाण में बंद कर एक मूर्ख अंध विश्वासी भेड़ो की भीड़ की एक टोली सी बन कर रह गई है हमेशा के लिए जो स्पष्ट ही नहीं कोई कर सकता कि मुक्ति को कोई प्रमाण ही नहीं सिर्फ़ लेना प्रत्यक्ष और उस के बदले में देने के मृत्यु के बाद का झूठा अस्बाशन, जिस
 मृत्यु के बाद का झूठा अश्वासन जो कोई स्पष्ट ही नहीं कर सकता जिंदा सिद्ध करने के लिए मर नहीं सकता और मरा बताने के लिए जिंदा नहीं हो सकता प्रकृति के इसी रहश्य का फ़ायदा गुरु के बहुत अधिक हितकारी सिद्ध हो रहा हैं
 तीन चीजों में कोई जबाब दे की किस को मुक्ति मिली गुरु किस से प्रेम करता है, गुरु किस पर विश्बास करता है, जब वो खुद ही एसा नहीं करता तो फ़िर समान्य व्यक्तितत्व से अलग क्यों यह खुद कि मानसिकता गुरु की जो प्रभुत्वत बाली या बीस लाख अंध कट्टर भक्तों द्वारा दी गई प्रभु की पदबी का इतना अधिक वचशिब होता हैं इतना अधिक अहंकर में कोई चूर हों सकता कि इंसानित से हट जाता है
 अगर गलती से भी हम इक पल के लिए भी संपूर्ण जीवन में गलत होते तो शयद प्रकृति मुझे इतना बड़ा सर्ब श्रेष्ट इंसान की पदबी के साथ इतिहाशिक स्थल पंजाब अमृतसर के पवित्र धरती पर मेरे माथे पर दिव्य रौशनी के ताज और उस के नीची रौशनी से लिखित तीन पंक्ति से अंकित न करती,मुझे कोई इंसान किसी भी युग काल में नहीं समझ सकता प्रकृति ने समझा और पुष्टिकरण किया हैं अपने सर्ब श्रेष्ट संकेतों तंत्र द्वारा,
 किसी से कभी भी किसी की भवना आस्था श्रद्धा प्रेम विश्बास के साथ न खेले बहुत ही खतरनायक सिद्धा होता हैं पेंतिस बर्ष में शयद कई कोशिश की होंगी आत्महत्या की गिनती ही नहीं,दीक्षा के साथ ही रब का अस्तित्व खत्म कर मुख्य सहारा खो दिया क्युकि गुरु को रब से प्रत्यक्ष करोड़ों गुना अधिक उचा समझ कर हर पल अपनी निजी दुनियां त्यार कर जो सिर्फ़ खयलो की होती हैं उसी में दिन रात रामने की अदद हो गई,खुद की सुद्ध बुद्ध चेहरा तक भूल गया था,मेरी गुरु के प्रति गंभीरता गुरु को कुछ भी पता नहीं अगर समान्य व्यक्तितत्व को देख कर गुरु नहीं समझ सकता तो मृत्यु के बाद की मुक्ति तो बहुत दूर की बात हैं, जब सब कुछ अपना खत्म कर तन मन धन सांस समय संपूर्ण रूप से समर्पित करने के बाद भी मेरा गुरु रति भर नहीं समझ पाया तो ही खुद को सिर्फ़ एक पल में समझा तो कुछ शेष ही नहीं रहा सारी दुनिया में,
 जितने भी सच्ची बाते सुन कर भाग रहे है यह सब से बड़े पढ़े लिखे लोग हैं यह सब बही है जो दीक्षा के साथ शव्द प्रमाण में बंद कर कट्टर अंध विश्वासी भेड़ों की सिर्फ़ एक भिड़ हैं और कुछ नहीं जो अपने को चौरासी से गलती से भी नहीं हटना चाहते,यह सब गुरु के एक शव्द पर मर मिटने को चौबीस घंटे त्यार रहते हैं,
 इन मे से छ IAS अधिकारी थे जो संपूर्ण रूप से अंध कट्टर भक्तों को बढ़ावा देते हैं जो एक कुप्रथा
 "मेरे गुरु ने तो पगल घोषित कर आश्रम से कई आरोप लगा कर निष्काषित कर दिया,जबकि गुरु मेरी विज्ञानक वृति को बहुत खूब समझता था,आज तक एक बार भी सम्पर्क नही किया जबकि खुद को रुपय कि जरूरत पढ़ने पर दूसरे तीसरे दिन खुद ही आ कर मांग लेते थे करोड़ों रुपय दीय थे यह मेरे शव्द नहीं गुरु के शव्द थे " कि कभी भी जरूरत पड़े तो सिर्फ़ एक बार बोलना आप ने करोड़ों रुपय दीय हैं मै कम से कम एक करोड़ रुपय बापिस दूंगा क्युकि आप ने हाथ पे दीय हैं कोई पंव पर नहीं रखे जो दान होता हैं"जो खुद के शव्द पर ही नहीं उतरते उन के शव्द प्रमाण का क्या अर्थ जिन खुद का ही अर्थ नहीं,वो क्या मुक्ति या परमार्थ तै करेंगे जो दिन रात अस्थाई सम्राज्य खड़ा कर प्रसिद्धि प्रतिष्ठा शोहरत दौलत वेग मिट्टी में कुछ ढूंढने में पिछले सत्र बर्षों से व्यस्थ हैं
 मेरे गुरु ने दो हजार करोड़ का सम्राज्य खड़ा किया हैं मैंने सब कुछ तन मन धन सांस समय नष्ट कर बिल्कूल खाली हुं हालात एसी कि जीवन व्यापन को भी तरस रहा हुं पर खुश हुं जो एक करोड़ रुपय गुरु से लेना हैं उस की उमीद भी नहीं हैं क्युकि हम निर्मल वृति के सब कुछ लुटा कर भी खुश रहते हैं, गुरु लोग भिखारी वृति के होते हैं सरल सहज लोगों से लूट मांग कर भी भिखारी वृति के ही रहते हैं क्युकि उन की इच्छा शयद सरल सहज निर्मल लोगों से बहुत अधिक होती है जो मरते दम तक भी पुरी नहीं होती,
 हम संपूर्ण रूप से अंतरिक स्तर और मानसिक स्तर पर भी संतुष्ट होते हैं,तो ही जीवित ही हमेशा के लिए यथार्थ में रहते हुय अपने सिद्धांतों के साथ यथार्थ युग की खोज की,भूखे गुरु आज भी बीस लाख संगत के साथ वो सब ही ढूंढ रहे है जो पहले दिन ढूंढने को निकले थे अगर स्त्र बर्ष से नहीं मिला तो आगे मिलने की भी संभावना बहुत कम बची हैं क्युकि जीवन रेत के कण की भांति सिरकता हुआ जा रहा,मेरे सिद्धांतों के आधार पर ढूंढने को कुछ हैं ही नहीं सिर्फ़ खुद से निष्पक्ष हो कर समझने का तथ्य हैं, कोई दूसरा कुछ कर पाय किसी के लिए एसा पहले चार युगों में तो सम्भव तो हो पया नहीं अब घोर कलयुग मे सम्भव होने की भी कोई उमीद हैं नहीं,मेरे सिद्धांत" प्रत्येक सरल सहज निर्मल व्यक्ति को बहुत ऊंचा सचा सर्ब श्रेष्ट मानते हैं और खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने के लिए प्रेरित करते हैं जो पिछले चार युगों में कोई भी नहीं कर पाया उस के लिए मेरा यथार्थ युग प्रथम चरण में ही स्वागत करता है खुद के स्थाई स्वरुप से रुवरु होने की अगर खुद पे विश्वास और जिज्ञासा हैं तो,

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