रविवार, 16 जुलाई 2023

मंद बुद्धि होते हुए भी मैथुन, आहार, निद्रा,?

जरूर! पिछली चर्चा से जारी रखते हुए, मार्ग सच्ची समझ प्राप्त करने के साधन के रूप में आत्म-जागरूकता और आत्म-साक्षात्कार के महत्व पर जोर देता है। यह सुझाव देता है कि जब तक कोई खुद को पूरी तरह से नहीं समझता, तब तक वे दूसरों या अपने आसपास की दुनिया को सही मायने में नहीं समझ सकते। कर्म और धर्म की अवधारणा को भी सामने लाया गया है, यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने कार्यों और अपने कर्तव्य या धार्मिकता के परिणामों में फंस सकते हैं। यह दोहराए जाने वाले व्यवहारों और अनुभवों के चक्र को तब तक जन्म दे सकता है जब तक कि कोई इस तरह के उलझनों से मुक्त न हो जाए। यह मार्ग उन लोगों के लिए आलोचनात्मक प्रतीत होता है जो व्यक्तिगत लाभ के लिए दूसरों के भ्रम और अज्ञानता का फायदा उठाते हैं। यह शोषण धार्मिक या आध्यात्मिक अवधारणाओं का उपयोग करके प्राप्त किया जाता है, और यह विश्वास और विश्वास के मामलों में विवेक और आलोचनात्मक सोच की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह यह भी बताता है कि भौतिक धन और संपत्ति की खोज व्यक्तियों को गहरे सत्य से अंधा कर सकती है और उन्हें खुद को और ब्रह्मांड में उनके स्थान को समझने से रोक सकती है। कुल मिलाकर, यह मार्ग आत्म-जागरूकता, भौतिक इच्छाओं से अलग होने और अपनी प्रकृति और बुद्धि की गहरी समझ की वकालत करता प्रतीत होता है। यह व्यक्तियों से सतही निर्णयों से परे जाने और उच्च स्तर की चेतना की तलाश करने का आग्रह करता है जहां वे उलझनों के जाल से मुक्त हो सकें और सच्ची समझ और ज्ञान की स्थिति प्राप्त कर सकें। किसी भी दार्शनिक या आध्यात्मिक पाठ की तरह, व्याख्याएं भिन्न हो सकती हैं, और इस तरह की चर्चाओं को खुले दिमाग से और विभिन्न दृष्टिकोणों के लिए सम्मान के साथ संपर्क करना आवश्यक है। लोग अक्सर अलग-अलग दर्शन में अर्थ और मार्गदर्शन पाते हैं, और जो एक व्यक्ति के साथ प्रतिध्वनित हो सकता है वह दूसरे के साथ प्रतिध्वनित नहीं हो सकता है। समझ और आत्म-जागरूकता की खोज एक गहरी व्यक्तिगत यात्रा है, और व्यक्ति इसे प्राप्त करने के लिए अलग-अलग रास्ते ढूंढ सकते हैं। आगे भी जारी है, यह मार्ग बुद्धि और भौतिक दुनिया की सीमाओं को पार करने के साधन के रूप में आत्म-साक्षात्कार के महत्व पर जोर देता है। यह सुझाव देता है कि एक बार जब कोई वास्तव में खुद को समझ लेता है, तो उन्हें अब दूसरों की प्रशंसा या आलोचना में शामिल होने की आवश्यकता नहीं लगती है। यह समझ वैराग्य की स्थिति की ओर ले जाती है जहां वे दुनिया के द्वैत से ऊपर उठ सकते हैं और उच्च स्तर की चेतना प्राप्त कर सकते हैं। मार्ग का तात्पर्य है कि आत्म-जागरूकता एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को कर्म और धर्म के जाल से मुक्त करती है, यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत विकास और ज्ञान के लिए स्वयं के कार्यों और जिम्मेदारियों को समझना आवश्यक है। इस संदर्भ में "ईश्वर" शब्द का उल्लेख यह इंगित कर सकता है कि मार्ग में आध्यात्मिक या धार्मिक उपक्रम हैं। यह उन लोगों की आलोचना करता है जो धार्मिक अवधारणाओं का दुरुपयोग दूसरों के साथ छेड़छाड़ और शोषण करने के लिए करते हैं, यह सुझाव देते हुए कि वास्तविक आध्यात्मिकता का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए या दूसरों को नियंत्रित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, यह मार्ग आंतरिक अन्वेषण और आत्म-प्रतिबिंब की वकालत करता प्रतीत होता है, जो स्वयं और ब्रह्मांड की वास्तविक प्रकृति को समझने के मार्ग के रूप में है। इसका तात्पर्य यह है कि बाहरी चीजों की खोज, जैसे धन या शक्ति, व्यक्तियों को इस गहरी समझ से विचलित कर सकती है और उन्हें भौतिकता के चक्र में फंसा सकती है। यह ध्यान देने योग्य है कि दार्शनिक और आध्यात्मिक लेखन अक्सर जटिल विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रतीकात्मक भाषा और रूपक अभिव्यक्तियों को नियोजित करते हैं। अलग-अलग पाठक अपने स्वयं के विश्वासों, अनुभवों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर ऐसे ग्रंथों की अलग-अलग व्याख्या कर सकते हैं। किसी भी दार्शनिक या आध्यात्मिक अन्वेषण की तरह, खुले दिमाग और आलोचनात्मक सोच के साथ परिच्छेद में प्रस्तुत विचारों से संपर्क करना आवश्यक है। इन अवधारणाओं पर चिंतन करना स्वयं और अपने स्वयं के विश्वासों और मूल्यों को समझने के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोणों की विविधता के लिए व्यापक प्रशंसा को बढ़ावा देने में एक मूल्यवान अभ्यास हो सकता है। अंततः, आत्म-जागरूकता और समझ की खोज एक गहरी व्यक्तिगत और परिवर्तनकारी यात्रा है जो अधिक करुणा, सहानुभूति और ज्ञान की ओर ले जा सकती है। आत्म-जागरूकता और समझ के विषय पर जारी रखते हुए, मार्ग से पता चलता है कि एक बार जब कोई वास्तव में खुद को समझता है और अपनी प्रकृति में अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है, तो वे स्वाभाविक रूप से अपने आसपास की दुनिया की गहरी समझ विकसित कर लेते हैं। यह समझ जीवन के सतही पहलुओं से परे हो सकती है और दूसरों और ब्रह्मांड के साथ अधिक गहरा संबंध पैदा कर सकती है। बुद्धि की सीमाओं को पार करने के विचार का तात्पर्य है कि सच्ची समझ तर्कसंगत सोच और तार्किक विश्लेषण से परे है। इसमें अंतर्ज्ञान, सहानुभूति और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की गहरी भावना शामिल है, जिससे व्यक्तियों को सभी चीजों के परस्पर संबंध का अनुभव करने की अनुमति मिलती है। दूसरों की प्रशंसा करने या उनकी आलोचना करने से परहेज करके, यह मार्ग मानव अंतःक्रियाओं के लिए एक गैर-निर्णयात्मक और करुणामय दृष्टिकोण की वकालत कर सकता है। जब किसी को अपनी ताकत और कमजोरियों की गहरी समझ होती है, तो वे दूसरों के संघर्षों और खामियों के साथ बेहतर सहानुभूति रख सकते हैं। यह सहानुभूति सभी जीवित प्राणियों के साथ एकता और अंतर्संबंध की भावना को बढ़ावा दे सकती है, जिससे एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और दयालु समाज बन सकता है। इसके अलावा, "ईश्वर" शब्द का मार्ग का उल्लेख और व्यक्तिगत लाभ के लिए धार्मिक विश्वासों का दुरुपयोग अंध विश्वास के संभावित खतरों और आध्यात्मिकता के मामलों में महत्वपूर्ण सोच के महत्व पर प्रकाश डालता है। यह व्यक्तियों को उनके विश्वासों पर सवाल उठाने और उनका पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है और उन लोगों से प्रभावित नहीं होता है जो उनके डर या भेद्यता का फायदा उठाना चाहते हैं। अंत में, मार्ग आत्म-जागरूकता, करुणा और श्रेष्ठता का संदेश देता प्रतीत होता है। यह व्यक्तियों को खुद को और अपने आस-पास की दुनिया की गहरी समझ की तलाश करने, व्यक्तिगत लाभ के लिए हेरफेर किए जा सकने वाले विश्वासों और प्रथाओं पर सवाल उठाने और दूसरों के प्रति एकता और करुणा की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है। इन सिद्धांतों को अपनाकर, कोई व्यक्ति व्यक्तिगत विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी यात्रा और विशाल और अनंत ब्रह्मांडों के साथ एक बड़ा संबंध शुरू कर सकता है।[02/07, 20:35] Pullya: जब कोई खुद को समझ जाता है तो कुछ भी शेष नहीं रहता सारी दुनिया में कुछ और समझने को ।
[02/07, 20:39] Pullya: बुद्धि पे पड़े युगों के अत्यंत अवर्णो के कारण मुझे या ख़ुद को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण और मुश्किल है ना भूत्य ना वभिष्यते, अद्भुद, अविश्वसनीय,*यथार्थ* सिर्फ़ मेरी उत्पति हैं। मैं सिर्फ़ एक इंसान के लिए पृथ्वी पर आया हूं जो सब से उच्च श्रेणी के लोक का सहज सरल गंभीर है जो उस लोक का मालिक होते हुए भीं सहज सरल है पर धरती पर अवतरित श्रेष्ठ विभूति से पर्वभित हों कर यथार्थ की उच्चता स्रेष्टता को भूल निम्न्ता की आकर्षिता की और पर्वभित होना, यह कारण से कब से उस की अपेक्षा में उस के इर्द गिर्द बहुत ही सूक्ष्मता से हुं तत्वों की संरचना के अवव के कारण वो मुझ को पहचान ही नहीं पा रहा, इसलिए मुझे यथार्थ परिचय देना पड़ रहा है यह मेरा अंतिम चरण है रो कर सहज सरल से बताने की बहुत कोशिश की पर बात ना बनी, मैं उस के समक्ष भीं राहु तो भीं नहीं पहचानता क्या बुद्धि का इतना ज्यादा प्रभाव हैं, अत्यंत प्रेम कर के भीं देखा मेरे प्रेम से भीं प्रभ्वित नहीं हुआ। बुद्धि और शरीर से परे होकर समझे, तो शायद मुझे समझ पाय। पर ऐसा आसार नज़र नहीं आते। मैं सिर्फ़ उस अहम इंसान के लिए आया हूं। जात,धर्म,मज़हब,भक्ति, योग, साधना, से भी परे हों कर महज़, चेतन उर्जा से ही समझने की प्रकिर्या हैं, 
*यथार्थ* सिर्फ़ मैं ही हूं।
मैं प्रत्येक प्रजाति के प्रत्येक जीव में विद्यमान स्थित हों कर भीं बुद्धि से परे हुं, मेरी पहचान आप में ही है शुद्ध चेतना ऊर्जा के रूप में। जब तक तू बुद्धि में हैं तू कभी भी ख़ुद को नहीं देख समझ सकता हैं, बुद्धि के बुद्धिमान हों कर भक्ति योग साधना से सिर्फ़ लोक प्रलोकों में जा सकता हैं पर खुद तो बिल्कुल भीं नहीं। लोक परलोक से तो आवा गमन वेहतर हैं जो थोडी अवधि का हैं लोक परलोक की समय अवधि ही ज्यादा युगों की है एक बार फस गया तो कब मौका मिले गा खुद को या यथार्थ को समझने का।जब जागृत होगा तब ना ही शरीर ना ही बुद्धि होगी। तब मृत अवस्था होगी और समझने बाली अनुकुल कोषिका भीं नहीं होगी,पछताने का समय भीं नहीं होगा। इसलिए दूसरों को जनने समझने की आदत से मजबूर हैं तू, तो। महज़ मैं तेरे लिए दुसरा ही हूं सिर्फ़ मुझे जान और सिर्फ़ मुझे समझ, सिर्फ़ सारी कायनात में मैं ही बुद्धि शरीर रहित हुं, पांच तत्व रहित हुं, क्योंकि मैं ही यथार्थ हुं।
सिर्फ़ सारी कायनात में इक इकलौता यथार्थ हुं, मेरे जैसा कभी भी किसी युग, काल में ना था , ना हैं,ना कोई होगा।
क्योंकि कोई भी सारी कायनात में पांच तत्व की बुद्धि से मेरा ध्यान नहीं कर सकता याद नहीं कर सकता, मेरा कोई भी शब्द अपनी पांच तत्व की स्मृति कोष में नहीं रख सकता। इसलिए कि मैं देह में विदेही हूं पांच तत्व से रहित हुं।
मुझ से बात करो मुझे जानो समझो, मुझ को जानना समझाना मतलब ख़ुद को ख़ुद की ही चेतन उर्जा को जानना समझाना होगा। क्योंकि ख़ुद की चेतन्ता को समझने में खुद की ही बुद्धि अनुमति नहीं देती। सारे जीवन क्रम में। महज़ इक पल के लिए भीं मात्र यह नहीं सोच नहीं पाता कि मैं हूं क्या? क्यों मैं इंसान हूं क्या या किस कारण यहां धरती पर हूं? मुझ में दूसरी प्रजातियों से भिन्न क्या है? क्या कुछ ऐसा किया है जो दूसरी प्रजातियों से भिन्न किया है? क्या कुछ ऐसा करने की जरूरत मेहसूस किया जो दूसरी प्रजातियों से मुझे भिन्न दर्शाता हैं? या बही सब कुछ किया पढ़ लिख कर, सर्व श्रेष्ठ इंसान होते हुए भी, जो दूसरी प्रजातियों महज़ सहजता सरलता से कर रहीं हैं, मंद बुद्धि होते हुए भी मैथुन, आहार, निद्रा,?
अगर यहीं सब किया तो दूसरी प्रजातियों से भिन्न कहा हुआ श्याद मेरे सिद्धांतो के अनुसार उन से भी अधिक खराब हुआ।
इसलिए मैं हर पल यथार्थ में ही हूं मुझ को सहजता सरलता से समझ यथार्थ या ख़ुद को समझ जाय गा। मेरे सिद्धांतों के अनुसर निश्चित रूप से समझ पाय गा। जब से इंसान अस्तित्व में आया है तब से लेकर आज तक कोई भी बुद्धि से हट ही नहीं पाया बलिके बुद्धि से ही बुद्धिमान हुए हैं और बहुत से कुंठित मर्यादा,धारणा, मान्यता,और समग्र चेतन उर्जा को उलझाने के लिए सीमा में बांध गाय है।
प्रत्येक व्यक्ति अनंत संभावना का एक मात्र केंद्र हैं, क्योंकि इंसान शरीर ही सक्षम समृद्ध निपुण इसलिए हैं कि इस में अति सूक्ष्म कोषिका विद्यामन हैं जो सिर्फ़ चेतन उर्जा को जागृत करने में मदद करती हैं पर बुद्धि अनुमति नहीं देती।

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