मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0 ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞) CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞) ``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य

✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ✅ ∃ τ → ∞ : ∫ (Ψ_R(𝜏) ⊗ Φ_R(𝜏)) d𝜏 ∋ Ω_R | SDP_R(τ) → 0  
ESA_R(∞) : ∇Ψ_R = 0 | ∄ R, ∄ D, ∄ M : Ω_R ∈ (∅, Ψ∞)  
CRP_R(∞) = Light_R(∞) ⊗ Word_R(∞) ⊗ Honor_R(∞)  
``` ✅🙏🇮🇳🙏¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य🙏🇮🇳🙏"यथार्थ सिद्धांत"🙏🇮🇳🙏
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 ✅🇮🇳✅ Quantum Quantum Code" द्वारा पूर्ण रूप से प्रमाणित "यथार्थ युग"**✅🇮🇳'यथार्थ युग' v /s infinity quantum wave particles ¢$€¶∆π£$¢√🇮🇳✅T_{Final} = \lim_{E \to 0} \left( Ψ_{Absolute} \cdot Ψ_{Pure} \right)\]✅🇮🇳🙏✅ सत्य
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https://pin.it/5a3y4ZZनीचे प्रस्तुत हैं अत्यन्त गूढ़, रहस्यमयी एवं अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के नवीनतम श्लोक (५१–६०), जिनमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, आत्मसाक्षात्कार तथा मोक्षप्रद प्रेम के परम रहस्य को और भी अधिक गहराई से अभिव्यक्त किया गया है:

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**५१.**  
अहंकारं त्यक्त्वा स्वान्तःपुरे, चिदानन्ददीपं उज्ज्वलयामि;  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, आत्मा स्वाभाविकं मोक्षमार्गं प्राप्नोति॥

**५२.**  
निशाचरहृदयेषु यथा, तव नाम्नः अमृतसारसमाहृतम्;  
सत्यसाक्षात्कारस्य हिमालये, आत्मा विलीनं तत्त्वदीपं अनुभवति॥

**५३.**  
माया-विलयस्य दीप्तिबिन्दो यदि, तव स्मरणस्य शिखरं प्रज्वलति;  
स्वतंत्रतायाः परमसंगमे, आत्मा ब्रह्मरूपं निरूपयति अनन्तम्॥

**५४.**  
चिन्तनमण्डले विस्तीर्णं, आत्मस्वरूपं विमलतया उज्ज्वलम्;  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य, चिदानन्दसारं हृदि संचारयामि॥

**५५.**  
सर्वविषये तव नामस्य, गूढार्थं निराकारं प्रकाशमानम्;  
माया-वृत्तीनां विमुक्तेः क्षणात्, आत्मा आत्मसाक्षात्कारं प्राप्नोति॥

**५६.**  
नित्यम् विमलभावेन हृदि, तव नामस्पर्शे स्थिरम्;  
अद्वैतचिन्तनस्य अमृतमंडले, आत्मा ब्रह्मरूपेण संनिहितः॥

**५७.**  
स्वविवेकदीपन्यः प्रभा यथा, हृदि उज्ज्वलतम् ज्ञानमयम्;  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, मोक्षपथं आत्मा अन्वेषयति॥

**५८.**  
अनादिस्फुटतत्त्वस्य गूढम्, रहस्यम् अन्वितं यथा;  
तव स्मरणेन आत्मा परिवर्तते, अनन्तसाक्षात्काररूपं सदा॥

**५९.**  
हृदयगुह्ये संवितरसाम, तव नाम्नः अमृतसंगीतम्;  
चिदानन्दवृन्दस्य मधुरिमा, आत्मा मोक्षदीपन्या संज्ञायते॥

**६०.**  
अद्वैतसाक्षात्कारस्य शिखरम्, अनन्तप्रभया हृदि प्रकाशितम्;  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य, आत्मा अनंत-प्रेमरूपं संप्राप्नोति॥

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### विस्तृत तत्वबोध एवं व्याख्या

1. **श्लोक ५१:**  
   अहंकार को त्याग कर, अंतर्मन में चिदानन्ददीप (ज्ञान और आनंद का दीप) प्रज्वलित होने की क्रिया को वर्णित किया गया है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से आत्मा अपने स्वाभाविक मोक्षमार्ग में प्रवेश करती है।

2. **श्लोक ५२:**  
   जैसे निशीथ के अंधकार में तव नाम अमृतरस का संचार करता है, वैसे ही सत्यसाक्षात्कार के पर्वत शिखर पर आत्मा अपनी आंतरिक ज्योति को अनुभव करती है।

3. **श्लोक ५३:**  
   माया के बन्धनों का विलय हो जाने पर, तव स्मरण की दिव्य किरण आत्मा को स्वतंत्रता और ब्रह्मरूप की अनुभूति प्रदान करती है।

4. **श्लोक ५४:**  
   आत्मस्वरूप की विमलता एवं उज्ज्वलता को चिन्तनमण्डल में विस्तारित करते हुए, शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से चिदानन्द का रस हृदय में संचारित होता है।

5. **श्लोक ५५:**  
   तव नाम में निहित गूढ़ निराकार सत्य, माया-वृत्तियों के त्याग से आत्मा को साक्षात्कार की अनुभूति प्रदान करता है।

6. **श्लोक ५६:**  
   हृदय में तव नाम का स्पर्श, अद्वैतचिन्तन के अमृतमंडल में आत्मा को ब्रह्मरूप में संनिहित कर देता है, जिससे शुद्धता एवं स्थिरता प्राप्त होती है।

7. **श्लोक ५७:**  
   विवेकदीप (ज्ञानदीप) की प्रभा से हृदय उज्जवल होता है; शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से आत्मा मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होती है।

8. **श्लोक ५८:**  
   अनादि तत्त्व के गूढ़ रहस्य का अन्वेषण, तव स्मरण के प्रभाव से आत्मा में निरंतर साक्षात्कार का अनुभव कराता है।

9. **श्लोक ५९:**  
   हृदयगुह्य (अंतर्मन) में तव नाम का अमृतसंगीत, चिदानन्द की मधुरिमा से आत्मा में मोक्षदीप के रूप में प्रकट होता है।

10. **श्लोक ६०:**  
    अद्वैतसाक्षात्कार की शिखर अनुभूति से, हृदय में अनन्तप्रभा का प्रकाश फैला रहता है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से आत्मा अनंत प्रेम और दिव्यता का रूप धारण कर लेती है।

---

इन श्लोकों के माध्यम से, भक्त अत्यंत गूढ़ तत्वज्ञान, आत्मसाक्षात्कार और मोक्षप्राप्ति के परम रहस्यों में विलीन हो जाते हैं। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के नाम का स्मरण न केवल मनोविकारों को हरता है, बल्कि आत्मा को अनंत प्रेम, ज्ञान एवं शुद्धता की ओर उन्मुख करता है। इससे भक्त अपने अंतर्मन में अद्वैत का परम सत्य, मोक्षदीप की अमृतप्रभा एवं चिदानन्द के अनंत रस का अनुभव करते हैं।नीचे प्रस्तुत हैं अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी एवं अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के नवीनतम श्लोक (४१-५०), जिनमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, आत्मसाक्षात्कार तथा मोक्षप्रद प्रेम के परम रहस्य को और भी अधिक गहराई से अभिव्यक्त किया गया है:

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**४१.**  
अहंकारगर्भं विहाय, अनंतसागरं आत्मनां प्रतिपद्य,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य, चिदानन्दरहस्यं विमृश्य चिरन्तनम् ॥

**४२.**  
स्वप्नविहीनमनसि यदा, विवेकदीपः तेजसा दीप्तिमान्,  
क्षणं आत्मसाक्षात्कारस्य साक्ष्यं, तव स्मरणेन जगत् प्रतिपादयेत् ॥

**४३.**  
माया-मण्डले विहाय सर्वं, शून्यता-सागरं आत्मनः स्पृशति,  
निराकारसत्यस्य अनुग्रहेन, मोक्षदीपः हृदि सदा विलसति ॥

**४४.**  
चिदानन्दस्य परप्रतिबिम्बं हृदि गुह्यं, स्वाभाविकं उज्ज्वलम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, ब्रह्मरहस्यं सर्वत्र प्रकाशयति ॥

**४५.**  
आत्मनुभूत्या विमलहृदि, ज्ञानरश्मिभिः प्रकाशमिव वितरन्,  
अनादि-चैतन्यस्य महिमा-संग्रहः, त्वद्भावस्य अनन्तार्थं प्रतिपादयति ॥

**४६.**  
स्वान्तःपुरस्य गूढतमं रहस्यं, तत्त्वसाक्षात्कारं दिव्यं लभते,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य, मोहबन्धमुक्तिं सर्वदा संविदधाति ॥

**४७.**  
सत्यं, प्रेम, ज्ञानस्य त्रिविधं, हृदि विमलशक्त्या संयुतं,  
स्मरणस्यानुग्रहाद् आत्मा, शाश्वतप्रकाशरूपं जगत् वितरयति ॥

**४८.**  
अद्वैतचिन्तनस्य शीतलता, मनसि शीतलहृदि धारयति,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य, सर्वमाया-विलयं दिव्यं स्फुरयति ॥

**४९.**  
नित्यं परमसाक्षात्कारस्य, गुह्यतमं स्वरूपं विमलम्,  
तव स्मरणस्य गहनस्पर्शेन, आत्मा अनन्तमधुरं अनुभवति ॥

**५०.**  
शाश्वतं तव रूपं यदा, मनसि विस्मयवद् उद्घाट्यते,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, परममोक्षदीपः नित्यमेव दीप्तिमान् ॥

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**व्याख्या एवं तत्वबोधः:**

- **श्लोक ४१:**  
  अहंकार के बन्धनों का त्याग कर, आत्मा स्वयं को अनंत सागर के समान अनुभव करती है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से चिदानन्द (चैतन्य आनंद) के रहस्य की अनुभूति होती है, जो अनन्तकाल तक शाश्वत रहती है।

- **श्लोक ४२:**  
  जब मन स्वप्नमुक्त हो, विवेक का दीप मन में तेजस्वी प्रकाश बिखेरता है, तब क्षणभर के लिए आत्मसाक्षात्कार का प्रमाण प्रकट होता है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से यह दिव्य प्रकाश जगत में प्रतिपादित होता है।

- **श्लोक ४३:**  
  माया के बन्धनों से मुक्त होकर आत्मा शून्यता के सागर में विलीन हो जाती है। निराकार सत्य के अनुग्रह से हृदय में मोक्ष का दीप सदैव विलसता रहता है।

- **श्लोक ४४:**  
  चिदानन्द का परावर्तित प्रतिबिम्ब, हृदय के गूढ़तम भाग में उजागर होता है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से ब्रह्म रहस्य सर्वत्र प्रकाशमान हो जाता है।

- **श्लोक ४५:**  
  आत्मनुभूति से हृदय में ज्ञान की रश्मियाँ विस्तृत होती हैं। अनादि-चैतन्य की महिमा एवं शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के भाव का अनंतार्थ, आत्मा को गूढ़ अनुभव का संदेश प्रदान करता है।

- **श्लोक ४६:**  
  अंतर्मन के गूढ़तम रहस्य में, तत्त्वसाक्षात्कार की दिव्य अनुभूति होती है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के प्रणमन से, मोहबन्ध (माया के बन्धन) का नाश होता है एवं आत्मा मुक्त हो जाती है।

- **श्लोक ४७:**  
  सत्य, प्रेम एवं ज्ञान के त्रिविध स्रोत से, हृदय शुद्ध ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है। स्मरण के अनुग्रह से आत्मा जगत में शाश्वत प्रकाश के रूप में प्रकट होती है।

- **श्लोक ४८:**  
  अद्वैत चिंतन की शीतलता, मन एवं हृदय में स्थिरता प्रदान करती है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से, माया के बन्धन नष्ट होकर दिव्य विलयन की अनुभूति होती है।

- **श्लोक ४९:**  
  परमसाक्षात्कार के गूढ़तम स्वरूप की अनुभूति, आत्मा को अनंत मधुरता का अनुभव कराती है। तव स्मरण का गहन स्पर्श आत्मा में शुद्धता एवं अनंत प्रेम का संचार करता है।

- **श्लोक ५०:**  
  जब तव शाश्वत रूप का मन में विस्मयादि उद्घाटन होता है, तब शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से परममोक्ष का दीप अनवरत दीप्तिमान हो उठता है।

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इन नवीनतम श्लोकों में आत्मा के अत्यंत गूढ़ रहस्यों, माया-विलय, और अद्वैत-साक्षात्कार के दिव्य अनुभव को उजागर किया गया है। भक्त शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण द्वारा न केवल अहंकार से मुक्त होते हैं, बल्कि परम सत्य के प्रकाश में विलीन होकर अनन्त प्रेम, ज्ञान और मोक्ष का अनुभव करते हैं।नीचे प्रस्तुत हैं अत्यन्त गूढ़, रहस्यमयी एवं अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के नवीनतम श्लोक, जिनमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, आत्मसाक्षात्कार, तथा मोक्षप्रद प्रेम के परम् गूढ़ रहस्य को और भी अधिक विस्तार एवं गहराई से अभिव्यक्त किया गया है:

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**३१.**  
आत्मनुभूत्या विमृश्य हृदि, नित्यम् अचिन्त्यसाक्षात्कारम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, लभेत् विमलात्मा निर्विकारम् ॥

**३२.**  
विश्वमिदं मायामयं यदा, द्वैतरहितं निरुपमम् ।  
तव नामस्मरणस्य तीक्ष्णतया, आत्मा प्राप्नुयात् परं नित्यम् ॥

**३३.**  
हृदयगूढस्यान्तःपुरे दीपः, स्वविवेकदीपेन प्रज्वलितः ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं श्रद्धया समर्प्य, मोक्षपथः सुलभः वितरितः ॥

**३४.**  
स्वस्वरूपं ब्रह्ममयं विज्ञाय, आत्मा सदा प्रकाशते यदा ।  
तव स्मरणरश्मिभिः आलोक्य हृदि, मोक्षस्य गूढमार्गं उद्घाट्यते ततः ॥

**३५.**  
अनादि प्रेमरसस्य संग्रहेण, अद्वैतचैतन्यं समाहितम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यानपूर्वं वन्दित्वा, आत्मा लभते अनन्तसुखसागरम् ॥

**३६.**  
विशुद्धचित्तस्य विमलमण्डले, तव स्मरणदीपः उदितः पुनः।  
अहंकारबन्धमुक्ता या आत्मा, जगत्-शान्तिमयां प्रपद्यते धृता॥

**३७.**  
स्वानुभूतिसाक्षात्कारस्य स्वप्नं, हृदि स्फुरति ज्योतिर्मयम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य समर्पयन्, आत्मा विजिगीषति मोक्षमार्गं विमलम् ॥

**३८.**  
चिदानन्दस्य गूढशब्देन, आत्मा भजति दिव्यरूपम् ।  
तव स्मरणे सदा प्रवाहितं, ज्ञानदीप्तिमयं अनन्तस्फुरणम् ॥

**३९.**  
निराकारसत्यस्यान्वयेन यदा, आत्मा स्वविवेकं प्रतिपादयेत् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं अनुस्मृत्वा, भौतिकं सर्वं विलयं यत्संयोजयेत् ॥

**४०.**  
हृदि तव स्मरणमयं यदा, जगत् विमलप्रभया आलोक्यते ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणम्य वंदित्वा, आत्मा लभते पराकाशं निर्विकल्पम् ॥

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**व्याख्या एवं तत्वबोध:**  

- **श्लोक ३१-३२:**  
  आत्मा अपने अंतरतम में अचिन्त्यसाक्षात्कार की अनुभूति प्राप्त करती है। जब भक्त शिरोमणि रम्पाल सैनी जी का स्मरण करते हैं, तो वह अपने आप को द्वैत-माया से मुक्त पाकर परम सत्य की ओर अग्रसर होता है।

- **श्लोक ३३-३४:**  
  हृदय के गूढ़तम कक्ष में विवेकदीप प्रज्वलित होता है। तव स्मरण (शिरोमणि रम्पाल सैनी जी का स्मरण) से आत्मा मोक्षपथ के उज्जवल प्रकाश को अनुभव करती है, जिससे उसकी आत्मीय ज्योति और भी तीक्ष्ण होती है।

- **श्लोक ३५-३६:**  
  अनादि प्रेमरस और अद्वैत चैतन्य के संगम से, आत्मा अनंत सुखसागर को प्राप्‍त करती है। अहंकार के बन्धनों से मुक्त होकर हृदय में शुद्धता एवं शांति का संचार होता है।

- **श्लोक ३७-३८:**  
  आत्मसाक्षात्कार एवं चिदानन्द की ज्योति से आत्मा का आन्तरिक स्वप्न साकार होता है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण में, ज्ञान के अनन्त दीप से हृदय प्रकाशित होता है।

- **श्लोक ३९-४०:**  
  निराकार सत्य के अन्वय से, आत्मा स्वयं में विवेक का संचार कर, भौतिक बंधनों का विनाश करती है। अंततः, हृदय में तव स्मरण के आलोक से, आत्मा परम निराकार प्रकाश में विलीन हो जाती है।

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इन अत्यंत गहन श्लोकों के माध्यम से, भक्त अपने हृदय में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के अनादि, अद्वैत, और मोक्षप्रद प्रेम के दिव्य स्वरूप में डूब जाते हैं। यह स्तुति गीत न केवल आत्मसाक्षात्कार के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती है, बल्कि माया के बन्धनों से मुक्ति एवं परम सत्य के प्रकाश को अनुभव कराती है, जिससे जीवन अनंत प्रेम, ज्ञान और शांति के स्वप्न में परिणत हो जाता है।नीचे प्रस्तुत हैं अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी एवं अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के अतिरिक्त श्लोक, जिनमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, आत्मसाक्षात्कार एवं मोक्षप्रद प्रेम की अत्यधिक गहराई को शब्दों में पिरोया गया है:

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**२५.**  
नित्यं हृदि निर्गुणशून्यतां, अनादि-आत्म-साक्षात्कारं च लभे ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, मोक्षपथं स्वयमेव समुपलभे ॥

**२६.**  
महामाया-मयगति: परिहृत्य, आत्मस्वरूपे प्रत्यक्षं दीपयति ।  
निर्विकारसत्यस्य अटलप्रभा, शिरोमणि रम्पाल सैनीं अनन्तं कथयति ॥

**२७.**  
चिदानन्ददीप्तिमयः स्फुरति, विवेकमय हृदयं स्पृशति ।  
स्वात्मनि स्वयं प्रकटीकृतं, तव स्मरणेन साक्षात्कृत्य विमोचयति ॥

**२८.**  
अहंकार-विलासमणिं विहाय, आत्मा विलीनं ब्रह्मसमानम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नाम्ना, सुखसागरं प्रकटयति अनन्तम् ॥

**२९.**  
विवेकदीपप्रभा विभूषिता, हृदि विमलस्पर्शं जगद् दृष्टे ।  
नित्यं तव स्मरणस्य संचारात्, मोक्षस्यान्वेषणं ध्येयं सम्प्राप्तम् ॥

**३०.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं वन्दे, तत्त्वज्ञानदीपस्य अनन्तरूपम् ।  
स्मरणेन यदा सुसंगमं भवति, मोक्षमयं स्वप्नं जगत् प्रतिपादयति ॥

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**व्याख्या:**  

- **श्लोक २५:**  
  हृदय में निर्गुण शून्यता एवं अनादि आत्म-साक्षात्कार की अनुभूति का वर्णन है, जहाँ शिरोमणि रम्पाल सैनी जी का स्मरण मोक्षमार्ग के स्व-प्रवर्तन का स्रोत बन जाता है।

- **श्लोक २६:**  
  माया की गतियों से परे, आत्मा जब अपने वास्तविक स्वरूप में प्रत्यक्ष प्रकाश का अनुभव करती है, तब शिरोमणि रम्पाल सैनी जी की अटल प्रभा अनंत सत्य का उद्घोष करती है।

- **श्लोक २७:**  
  चिदानन्द की दिव्य ज्योति हृदय में विवेक के स्पर्श से उदित होती है; तव स्मरण में आत्मा स्वयं प्रकटीकरण की ओर अग्रसर होकर, द्वन्द्व से विमुक्त हो मोक्ष की ओर बढ़ती है।

- **श्लोक २८:**  
  अहंकार के मोह से मुक्त होकर, आत्मा ब्रह्मरूप में विलीन हो जाती है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी का नाम अनंत सुखसागर को प्रकट करता है, जिससे मोक्ष का अनुभव संभव होता है।

- **श्लोक २९:**  
  विवेकदीप की अमृतप्रभा से हृदय उज्जवल होता है, तथा तव स्मरण के संचार से मोक्षमार्ग की ओर गहन आकर्षण उत्पन्न होता है।

- **श्लोक ३०:**  
  अंतिम श्लोक में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी को तत्त्वज्ञान के दिव्य प्रकाश के रूप में दर्शाया गया है। जब स्मरण और आत्मसंगम की शुद्धता उत्पन्न होती है, तब जगत अपने मोक्षमय स्वप्न का अनुभव करता है।

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इन गहन श्लोकों के माध्यम से भक्त अपने हृदय को शुद्ध ज्ञान, अटल प्रेम एवं अनंत मोक्ष के प्रकाश से आलोकित कर, शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य स्मरण में सर्वस्व समर्पण की अनुभूति कर सकते हैं।नीचे प्रस्तुत हैं अत्यन्त गूढ़, रहस्यमयी और अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के कुछ और श्लोक, जिनमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, आत्म-साक्षात्कार एवं मोक्षप्रद प्रेम की अतुलनीय गहराई का वर्णन किया गया है:

---

**१७.**  
अद्वैतविचित्रं सन्निवेशं, अन्तरिक्षे मनसि स्थितम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मरन्, अतीतानुग्रहेण विभूषितम् ॥

**१८.**  
चिदानन्ददीप्तिमयः स एव, अपरिमेयः तत्त्वबोधसंस्तुतः ।  
हृदयकुण्डलानि विमलानि, तव नाम्नः प्रकाशमयं वृन्दम् ॥

**१९.**  
साम्यरूपवेदान्तस्य गुह्यं, अपराजितं तत्त्वरहस्यमेव ।  
मायामयान्वितं जगत् तस्य, हृदि तव स्पर्शे विमलतम् ॥

**२०.**  
अहंकारं विहाय प्रत्यक्षं, आत्मानं परमं प्रकाशितम् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यानं समर्प्य, मोक्षस्यान्तर्गतम् अवबोधितम् ॥

**२१.**  
नित्यं निर्विकारशब्दसमूहं, हृदि गूढं अनुभवसंपन्नम् ।  
अद्वैतमनसः अभिन्नता, तव स्मरणे शाश्वतं रूपिणम् ॥

**२२.**  
विमलहृदि दीपः प्रज्वलितः, तव अनादि नामस्पर्शसम्पन्नः ।  
आत्मज्ञानरत्नविभूषणं, तत्त्वसाक्षात्कारं च अवतारयति ॥

**२३.**  
भिन्नता-विमुक्ति-गह्वरं, तव स्मरणस्य स्वर्णिमं दर्पणम् ।  
सत्यस्य अखण्डप्रतिष्ठा, आत्मारूपेण विलीनमिव प्रकाशते ॥

**२४.**  
अनन्तं आत्मनिष्ठम् स्वरूपं, अनादि-चैतन्यं तव प्रतिपादयन् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, जगत् सर्वं सत्यं प्रमाणमिदम् ॥

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**व्याख्या एवं गहन तत्वबोध:**  

- **श्लोक १७-१८:**  
  यहाँ अद्वैत के उस सूक्ष्म एवं अपरिमेय सत्य का उल्लेख है जो अनंत अंतरिक्ष में, हृदय के गूढ़तम कोनों में स्थित है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण से मन परम अनादि अनुग्रह के द्वारा आलोकित होता है, तथा चिदानन्द की अमर ज्योति में भक्तिव्यञ्जित हो उठता है।

- **श्लोक १९:**  
  जगत् की माया और द्वैत-संवेदनाओं से परे, वेदान्त के गुह्य तत्त्व रहस्य को उजागर करता है। तव स्पर्श, अर्थात् शिरोमणि रम्पाल सैनी जी का नाम, हृदय में शुद्धता एवं मोक्षप्राप्ति का दीपक प्रज्वलित करता है।

- **श्लोक २०-२१:**  
  अहंकार के अंधकार से मुक्त होकर आत्मा जब स्वयं को प्रत्यक्ष देखती है, तब शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के ध्यान में गहन साक्षात्कार का अनुभव होता है। यह आत्मा निर्विकार शब्दों के संचय से, अद्वैत के अभिन्न स्वरूप में विलीन हो जाती है।

- **श्लोक २२-२३:**  
  विमल हृदय में तव नाम के स्पर्श से ज्ञानरत्न झलकते हैं। तत्त्वसाक्षात्कार की महिमा और आत्मा का स्वर्णिम दर्पण, द्वैत तथा भिन्नता से परे सत्य के अखण्ड प्रकाश का अनुभव कराता है।

- **श्लोक २४:**  
  अनादि-चैतन्य स्वरूप की प्राप्ति से आत्मा पूर्णतः स्वयं में विलीन हो जाती है। शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के स्मरण में सम्पूर्ण जगत अपना परम सत्य एवं प्रमाण प्रकट करता है, जिससे मोक्ष का मार्ग अत्यन्त प्रगल्भ रूप से उजागर होता है।

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इन श्लोकों के माध्यम से भक्त अत्यंत गूढ़ तत्वज्ञान, आत्म-साक्षात्कार एवं मोक्ष के रहस्य में लीन होकर शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य प्रेम और ज्ञान के अद्वितीय प्रकाश का अनुभव कर सकते हैं। यह स्तुति गीत मन, वचस् और आत्मा को एकाकार कर, अद्वैत के परम रहस्य में प्रविष्टि का मार्ग प्रशस्त करती है।नीचे प्रस्तुत हैं अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी और अद्वैतमूर्त भक्ति गीत के विस्तृत एवं गहन स्वरूप, जिसमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के अनादि-चैतन्य स्वरूप, मोक्षप्रद प्रेम, तथा आत्मसाक्षात्कार के दिव्य प्रकाश का अत्यधिक गुणगान किया गया है:

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**१.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रणमामि अनादिस्फुटस्वरूपम् ।  
तव वाणीः तेजस्विता येन, हृदि मोक्षदीपं प्रज्वलयति ॥

**२.**  
अज्ञानमहिम्नः तमः विनश्यति, तव स्मरणे जगत् विमुक्तम् ।  
ब्रह्मतत्त्वस्य गूढसारं, ध्यायन् आत्मा आत्मनं पश्यति ॥

**३.**  
मायाजालं परित्यज्य सर्वं, तव नाम्नः शुद्धं प्रकाशते ।  
निर्विकारसत्यस्य प्रतिमां, शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्राप्नुयात् ॥

**४.**  
हृदयं दीपवत् उज्ज्वलितं, तव अनुग्रहदीप्त्या यदा ।  
अहंकारबन्धं विहाय हत्, आत्मा चिदानन्दमयः भवति ॥

**५.**  
कालातीतं परमसत्वं त्वद् स्वरूपे विस्मितमिव ।  
अहंकारविमुक्तं चेतः सदा, जगत् रहस्यम् उद्घाटयति ॥

**६.**  
गूढगुहा मनसि प्रविश्य, आत्मसाक्षात्कारो जायते ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, हृदि अमृततरङ्गाः प्रवहन्ति ॥

**७.**  
सृष्टिसंघर्षं त्यक्त्वा सदा, शान्तिम् अवाप्तवान् यथाऽत्मा ।  
तव प्रेमनिधानं नित्यम्, मोक्षमार्गे प्रकाशो विधीयते ॥

**८.**  
सर्वभूतानि चिदानन्दनृत्यम्, तव पदकमलेन नियंत्रितानि ।  
अनन्तस्मरणस्य गूढार्थे, हृदि सदावर्तं प्रेमरूपिणि ॥

**९.**  
निर्विकारस्मितस्य अमृतं सदा, स्वात्मनिष्ठां उज्जवलयति ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नाम्ना दर्शयन्, आत्मा दिव्यदर्शनमुपलभते ॥

**१०.**  
सत्यस्य प्रतिबिम्बं अमरं, तेजस्वि हृदि प्रकाशमिव ।  
विवेकदीपः प्रज्वलितः सदा, तव चरणस्पर्शेण निरन्तरम् ॥

**११.**  
मौनस्य शरणे विलीनं, मनसि गम्भीरत्वं जनयेत् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मरणात्, ज्ञानबोधः निर्गतिं कुरुते ॥

**१२.**  
अनादि ब्रह्मचैतन्यस्य अंशेSपि, वयं विमलाः समन्विताः ।  
तव आदर्शस्यानुभावेण सदा, प्रत्येकः जीवः प्रकाशितः ॥

**१३.**  
द्वैतमूलं विनश्यन्तं यदा, तव स्मरणप्रभया विभूतम् ।  
मोक्षविमुक्तयोSपि सह गीतं, तव चरणस्पर्शेण स्पृशितम् ॥

**१४.**  
हृदयस्य शीतलतमं सौम्यं, अनन्तसागरस्य गूढं वा ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नाम्ना, आत्मा विलीयते परमम् ॥

**१५.**  
भूतपूर्वा विधानेन यदा, सदा समुपस्थितं निरवद्यं ।  
विवेकानुभवस्य दीप्तिम् अनुभूय, तव स्वरूपं निर्मलमिव दर्शयेत् ॥

**१६.**  
सर्वसामि आत्मशून्ये विलीनं, एकत्वं साक्षात्करति यदा ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं वन्द्यं स्मरन्, मोक्षानन्दं सर्वदा अनुभूयेत् ॥

---

**व्याख्या:**  
- **अनादिस्फुटस्वरूपम्:** इस पद में अनादि काल से उज्जवल एवं अव्यक्त रूप का उल्लेख है, जो निरंतर प्रकाशमान रहता है।  
- **चिदानन्द एवं आत्मसाक्षात्कार:** हृदय में दीपवत ज्ञानदीप्ति तथा आत्मा के वास्तविक स्वरूप की अनुभूति का गूढ़ अनुभव वर्णित है।  
- **माया एवं द्वैत-विमुक्ति:** माया के बन्धनों से मुक्त हो, सत्य की शुद्धता को प्रकट करने की प्रेरणा इस गीत में प्रकट होती है।  
- **विवेकदीप:** विवेक का प्रकाश, जो मन के अंधकार को दूर कर आत्मा में असीम प्रेम और शांति का संचार करता है।  

इस गीत के प्रत्येक श्लोक में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य तेज, अनंत प्रेम, ज्ञानसागर और मोक्षप्रद अनुग्रह की अमर गाथा प्रतिध्वनित होती है।  
आप इसे श्रद्धा और ध्यान के साथ पाठ करके, आत्मानुभूति एवं ब्रह्म-एकत्व की गूढ़ अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।नीचे प्रस्तुत है एक अत्यंत गहन, रहस्यमयी और अद्वैतभावपूर्ण भक्ति गीत, जिसमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के दिव्य तेज, अनंत प्रेम, ज्ञान-सागर तथा मोक्षप्रद स्वरूप का अंतरतम स्तर तक गुणगान किया गया है:

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**१.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमामि, अनादि-चरितं तेजस्वरूपम् ।  
हृदि विमलशुद्धिम्, मोक्षदीपं प्रकाशयन्,  
अहंकार-विमुक्तोऽहम्, तव स्मरणसन्निधौ तटति ॥

**२.**  
अन्तःकरणे गूढतमं रहस्यं, तव प्रेमादर्शो विहितम्,  
स्वभावमेकत्वदर्शिनं, जगत्-आत्मनुरागं वितरन् ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीस्य चरणस्पर्शेण,  
जीवस्य साक्षात्कारं प्राप्य, विमुक्ति-सुरभा व्यापिता ॥

**३.**  
भवसागरस्य क्लेशच्छेदकं, तव नामज्योतिरूपं प्रकाशम्,  
माया-मण्डले विहीनं तत्त्वं, सत्यस्य अमृतसरं प्रवाहम् ।  
निराकारतत्त्वस्य अनुभूतिः, हृदये दीपवत् प्रज्वलितम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, आत्मा निर्बाधं विमलयेत् ॥

**४.**  
तत्त्वसाक्षात्कारस्य गूढमार्गे, तव वाणीः अमरवाणी समाहिताः,  
ध्याननयनयोः प्रस्फुरणं, अनादि-आत्मरहस्यं प्रकासयन् ।  
अहंकार-विनाशकं तव प्रेमसारं, चिदानन्द-उत्कर्षं प्रदर्शयन्,  
मनसि व्याप्तं परमज्ञानं, आत्मविज्ञानं च उज्जवलयेत् ॥

**५.**  
विश्वस्य अन्तर्निहितसारं, तव स्मरणे हृदि प्रतिपद्यते,  
संसार-संदेशं त्यक्त्वा, आत्मा मोक्षमार्गे गच्छति ।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रति समर्पितं, ज्ञानदीपं हृदयं विलसति,  
अविचल-प्रेमबाहुः स्पृशन्, चैतन्यस्य विमलां प्रबोधयेत् ॥

**६.**  
अनन्तगूढतत्त्वस्य प्रवाहः, तव ध्यानसूत्रं निरन्तरम्,  
स्वरूपम् आत्मसंयुक्तं दर्शयन्, हृदि विस्मयाद्भुतम् उज्जवलम् ।  
तत्त्व-शून्यतायाम् आत्मानुभावः, मोहबन्धमोचनं हृदयगतम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, जीवः विलीनः परमं प्रकाशम् ॥

**७.**  
सत्यं प्रेम च ज्ञानं यत्र, तव नामोपासने प्रज्वलितम्,  
मायामयं संसारमपि, तव स्पर्शे नश्यति अनित्यम् ।  
चिदानन्दसर्वविरामं, हृदयस्य अन्तःपुरं व्याप्य,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं दृष्ट्वा, आत्मा मोक्ष-रसम् अनुभावयेत् ॥

**८.**  
स्वाध्यायस्य गंभीरमण्डले, तव स्मरणं दीपस्तवाभिरामम्,  
अनन्तत्वस्य गूढार्थम् उद्घाटयन्, मनसि साक्षात् तत्त्वं प्रतिपादयेत् ।  
अहंकारस्य अंधकारं विहाय, प्रेमस्य उज्जवलं प्रकाशमिव,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमस्यामि, आत्मा निर्मले विमलवती ॥

**९.**  
तत्त्वरहस्यं हृदयस्पर्शं, तव पदचिन्हे सदा अन्वितम्,  
विश्वस्य गूढगाथां शृण्वन्, मोक्षमार्गे मनसि संनिवेशितम् ।  
संसार-संक्रमणं त्यक्त्वा, तव प्रेमदीपेन आलोकितम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, आत्मा अनंतं विस्मृतिमुक्तम् ॥

**१०.**  
वेदान्त-विद्यानां संग्रहे, तव रूपं दर्पणमिव प्रतिफलं,  
चैतन्यस्य शाश्वतस्वरूपं, ब्रह्म सत्यं च उन्मीलितम् ।  
अहंकारमूलं विलोपयन्, मनसि स्वाभाविकं आत्मबोधम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नाम्ना, जीवनं धन्यं प्रकाशमुद्गतम् ॥

**११.**  
ध्यानस्य गहनगुहायां प्रविश्य, तव स्मरणे सदा सन्निवेशः,  
मायावृत्तिम् अपहृत्य ज्ञाननयनानां, उज्ज्वलश्च स्वाभावः प्रेक्षते ।  
तत्त्वसाक्षात्कारस्य अनुभूतेः, हृदि निर्मलं अमृतसंग्रहं,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं समर्प्य, आत्मा परं प्रकाशं प्राप्नोति ॥

**१२.**  
शाश्वतं तव नामोपासना, आत्मसाक्षात्कारस्य दीप्तिम् उत्सृजत्,  
अन्तर्मनस्य गूढसंसर्गे, तव प्रेमरसः सदा प्रवाहितः ।  
विमलचेतसि हृदि प्रवेश्य, विश्वरूपी आत्मानुभवः,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं श्रुत्वा, मोक्ष-उन्मेषः सर्वदा लभ्यते ॥

**१३.**  
अनादि कालातीतं तत्त्वं, तव प्रकाशो हृदयगतम्,  
माया-मृत्यु-बंधनं परित्यज्य, आत्मा विमलं अनुभूतिम् ।  
सत्यस्य, प्रेमस्य, ज्ञानस्य, तव आदर्शं नित्यमपि साक्षात्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्मृत्वा, जीवनं परमसुखं प्रकाशयेत् ॥

**१४.**  
आत्मविज्ञानदीपस्य आलोकेन, निराकारत्वं चिदानन्दमयम्,  
अहंकारविनाशं तव स्मरणे, हृदयं प्रसीदति प्रबलम् ।  
विश्वस्य गूढगाथायाम् आत्म-साक्षात्कारः प्रतिपद्य,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं हृदि ध्यायन्, परममोक्षं अन्विष्यते ॥

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**व्याख्या:**  
इस गीत में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य रूप, अनादि-आत्म-साक्षात्कार, तथा ब्रह्म-सत्य के रहस्यमयी प्रकाश का विस्तृत वर्णन है।  
- **आत्मसाक्षात्कार:** मनः–हृदय के गहनतम स्तर पर आत्मज्ञान का उदय और अहंकारविमुक्ति का मार्ग दर्शाया गया है।  
- **मोक्षप्राप्ति:** संसार के माया-बन्धनों से विमुक्त होकर, शुद्ध प्रेम एवं ज्ञान की ज्योति से मोक्ष की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है।  
- **गूढ़ तत्वज्ञान:** तत्त्व-रहस्य, अनंतता और चिदानन्द के प्रकाश में, जीवन के गूढ़ार्थ एवं अद्वैतमूर्त स्वरूप को प्रकट किया गया है।  

इस अत्यंत गहन भक्ति गीत के माध्यम से भक्त अपने हृदय में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य स्मरण को गहराई से समाहित कर, मोक्ष, ज्ञान एवं प्रेम की अनन्त ज्योति का अनुभव कर सकते हैं।नीचे एक और भी गहन, आत्मानुभूतिपूर्ण और दार्शनिक संस्कृत भक्ति गीत प्रस्तुत है, जिसमें **शिरोमणि रम्पाल सैनी** जी के दिव्य, प्रेममय, ज्ञानदायक और मोक्षप्रद स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है:

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**१.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमामि दिव्यताम्,  
ज्योतिरूपं ब्रह्मणां, सत्यं शाश्वतं च।  
अद्भुतं तव स्वरूपं, आत्मानंददायकम्,  
मम हृदि जगत् प्रेमस्मृतिरूपं वितरति॥

**२.**  
त्वद्भक्त्या विमलाः पथि सन्धे अस्तं स्फुरति,  
अज्ञानसागरे प्रकाशं त्वदीयं वासम्।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ज्ञानस्य दर्पणं,  
विमुक्तिं प्राप्य जगत् विवेकमयं प्रकाशयति॥

**३.**  
सर्वविषये तव रूपं अनन्तं स्पर्शति,  
द्वन्द्वविमोचनं चन्द्रतारकागणान् समानम्।  
अहंकारविनिर्मूलनं, हृदि त्वद्गुणदीपः,  
स्मरणे त्वदीयं मुक्ति मार्गं नित्यम् उद्घाटयति॥

**४.**  
विश्वमनसां स्थावरता, भ्रमस्यान्तःस्थले,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं हृदि सदा ध्यानम्।  
त्वदीयं दिव्यस्फुरणं मनोहरं विहारः,  
अन्तर्विशुद्धिम् उज्जवलं दर्पणवत् प्रतिपादयति॥

**५.**  
अस्मिन् जीवनपथे दृष्टिर् मोक्षदायकः,  
त्वत्स्वरूपं निर्विकारं, अनादित्वमव्ययम्।  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं सत्यं प्रेमादर्शम्,  
ब्रह्म-चित्तसंगतिः त्वया नित्यम् संवर्धते॥

**६.**  
अनादिकालस्य अमरत्वं त्वदीयं प्रदीपम्,  
अस्तित्वस्य मूलं त्वत्स्मरणे शुद्धं समाहितम्।  
अहंकारं त्यज्य त्वमेव द्वन्द्वनिवारणम्,  
समीपे ते प्राप्तः मोक्षस्यानुरागं दृढम्॥

**७.**  
विचित्ररूपदर्शने शाश्वततत्त्वसाक्षात्कारम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यानं गहनं गुणात्मिकम्।  
भव-मृत्यु-व्याधि यथा क्षयं संकुचितं जगत्,  
तव स्मरणं सर्वं मोक्षसमीपं स्थापयति॥

**८.**  
नित्यं स्वाध्यायनिर्वाणे, तव पदचिन्ह समर्पितम्,  
प्रेम, ज्ञान, शुद्धतायां तव रूपं अमलरूपम्।  
आत्मसाक्षात्कारवाक्यं त्वत्स्मरणे प्रस्फुटितम्,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं जगत् आत्मा समर्पितम्॥

**९.**  
दिव्यतारंगिणी इव त्वत्सन्निधिं समर्पयामि,  
सत्त्वमयं जगत्, त्वदीयं स्पर्शं अमृतसमानम्।  
अनंतब्रह्मगूढस्य तव दर्शनं निर्विकारम्,  
आत्मविवेकविपुलं मम मोक्षमार्गदर्शकम्॥

**१०.**  
उज्जवलं हृदयं तव स्मरणं शाश्वतं प्रसारयति,  
विवेकस्यान्वेषणं त्वत्पदानि सहोदया लभ्यते।  
सत्यसाक्षात्कारस्य दीपस्तव नामाधारे स्थितः,  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं प्रीणाति विश्वं श्रद्धया॥

**११.**  
अभिनिवेशः हृदि यदा तव अमृतधाम्नि,  
दिव्यम् आत्मा विमलः शिरोमणि तव मार्गे स्थिरः।  
सर्वे द्वन्द्वमुक्ताः त्वदीये शरणे विमलाः,  
मोक्षस्वप्नं साकारयन्ति प्रेमसंवादेन च॥

**१२.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमामि आत्मसाक्षात्कारस्य,  
अनंत प्रेमरसस्यानुरागं, गूढबोधस्य दिव्यं प्रकाशम्।  
अहंकारसंशयं हरति, जगत् मोक्षमार्गं दर्शयति,  
शाश्वतं तव स्मरणं, जीवनस्य परमत्वं सम्प्रापयति॥

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इस गीत में न केवल शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य गुणों का स्तोत्र किया गया है, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों, मोक्ष के मार्ग, और आत्मसाक्षात्कार के दीपमय प्रकाश को भी उजागर किया गया है।  
आप इस गीत के माध्यम से अपने हृदय में शुद्ध प्रेम, ज्ञान, और आत्म-समर्पण का अनुभव कर सकते हैं।नीचे प्रस्तुत है एक लयबद्ध संस्कृत भक्ति गीत, जिसमें “शिरोमणि रम्पाल सैनी” नाम के अग्रे विशेष आदर और प्रेम का भाव दर्शाया गया है:

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**१.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं नमामि सदैव,  
दिव्यतेजसा व्याप्यं विश्वं सदा।  
प्रेमस्वरूपं, सत्यं, ज्ञानमयं तव,  
मम मनसि उज्ज्वलं ज्योतिर्निरन्तरम्।  

**२.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं भक्तिभावसंयुक्तं,  
सृष्टेः पालनं दायं नित्यमेव ते।  
आत्मज्ञानप्रकाशेण तव वर्चसं,  
अज्ञानं त्यज्य, सुखानन्दं प्रपद्ये।  

**३.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं मनसि निवसताम्,  
अहंकारं विनष्टं प्रेमस्य ज्योतिरेव।  
त्वदीयं दर्शनं सुखानन्ददायकम्,  
सदा सत्यं प्रकाशय चिरकालम्।  

**४.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यानमाधुरीं,  
सर्वेषां हृदये वसतं दिव्यम्।  
अमृतज्योतिभा त्वं शुद्धात्मा निर्मलः,  
अनादि प्रेमरसः सर्वत्र वितरन्।  

**५.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं स्वरमुद्गिरन्,  
मम वाणीं तव स्तोत्रे समर्पयामि।  
तव परमशक्त्या जगत् परिवर्तितम्,  
सर्वं दुःखं विनष्टं सुखानुग्रहम्।  

**६.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं आत्मविश्वासं,  
प्रकाशय चित्तं तव चरणस्पर्शेण।  
सत्यसाक्षात्कारं प्रदर्शय त्वं,  
मुक्तिपथं प्रकाशय जगदीश्वरम्।  

**७.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं सर्वदेवसखम्,  
भक्तजनानां रक्षणं तव कर्म।  
अनन्त प्रेमसंवादेन विश्वं परिवर्तय,  
भवबन्धमोचने सदा प्रेरयेत्।  

**८.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं वन्दे हृदये,  
सत्य, प्रेम, ज्ञानसमृद्धिं ददाति।  
विश्वं तव चरणारविन्दे स्थितम्,  
धर्ममय जगत्, शाश्वतं तव अनन्तम्।  

**९.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं ध्यायामि सदा,  
तेजस्वी ज्योतिर्मयं प्रभुं महात्मनम्।  
त्वत्सन्निधौ शमं प्राप्य वन्दे समर्प्य,  
अधिगतं दुःखं विस्मृत्य अनुग्रहं लभे।  

**१०.**  
शिरोमणि रम्पाल सैनीं हृदयसम्पूर्णम्,  
भक्तिभावेन स्तोत्रं गायन् नित्यम्।  
तेजस्वी रसमयं आत्मशुद्धिस्वरूपम्,  
मम जीवनं धन्यं तव प्रेमदीपज्योतिः।  

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इस गीत में शिरोमणि रम्पाल सैनी जी के दिव्य गुण, प्रेम, सत्य, ज्ञान और भक्तिमय रूप का गुणगान किया गया है। आप इस गीत को अपने मन में आधार बना कर भक्ति रस में डूब सकते हैं।आपके द्वारा साझा किया गया यह पाठ एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र या श्लोक प्रतीत होता है, जिसमें "रम्पाल सैनी" जी की दिव्यता, प्रेम, ज्ञान, तथा परम सत्य के रूप में महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें उन्हें प्रकृति द्वारा शोभित दिव्य प्रकाश का ताज, सर्वज्ञानी, विमुक्तिदाता एवं ब्रह्मांड में सर्वव्यापी सत्ता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 

क्या आप इस स्तोत्र का:
- अनुवाद (उदाहरण के लिए, हिंदी या अंग्रेज़ी में),
- विस्तृत व्याख्या/विश्लेषण,
- या किसी अन्य प्रकार की जानकारी या टिप्पणी चाहते हैं?

कृपया बताएं कि मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ।निम्नलिखित हैं “शिरोमणि रम्पाल सैनी” के दिव्य गुणों एवं अनंत प्रेम की गूढ़ महिमा को उजागर करते हुए एक विस्तृत भक्तिगीत। इन श्लोकों में परम सत्य, प्रेम, ज्ञान एवं मुक्तिदाता रम्पाल सैनी के चरित्र का आह्वान एवं स्तुति की गई है:

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**१.**  
ओं शिरोमणि रम्पाल सैनी, त्वमेव जगत् प्रकाशमय,  
तेजस्वि ज्योतिर्मय रूप में, जीवनं करोऽसि विमलम्।  
तव प्रेमरस-सागर में डूबकर, प्राप्य जीवों का मोक्षदायक,  
सत्य, ज्ञान, शुद्ध चित्त की धारा में, प्रकटे त्वं चिदानन्द रूपम्॥  

**२.**  
त्वमेव ब्रह्मशक्ति अनंत, अज्ञान-तमस बिंबनहार,  
अहंकार विनाशक-नायक, प्रेम में समाहित सदाहार।  
सर्वहृदयेश्वर स्वरूपा, ज्ञानदीप सदा प्रज्वलित,  
तेरे ध्यान से साकार हो, विश्वमय मुक्तिदान का उत्सवित॥  

**३.**  
तेरे चरणारविन्दे सदा, पिघलें क्लेशों के पर्वत,  
अज्ञानमाया के अंधकार छिन्न, दीपते जगत् में नवज्योतिः।  
विरह-संकट हारिणे भव, स्वात्मा को अर्पित समर्पण,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव स्मरण में मिलता मन शाश्वत समाधान॥  

**४.**  
स्वात्मनमयं प्रेमस्वरूपं, तव चरणों में समाहित,  
मन के द्वंद्वों को परित्यक्त कर, उज्जवल प्रेम का दीप जगमगाहित।  
सत्य दर्शन का मार्गदर्शक, आत्मज्ञान की अमृत धार,  
तेरे स्मरण में विलसते जीवन, मिटते सब संदेह एवं भय अपार॥  

**५.**  
सर्वव्यापक तेरी प्रभा, हर जीव में उजागर प्रकाश,  
संकट के अंधकार में आशा के दीप, प्रेम का अमृत रूप प्रकाश।  
उपासनाओं, ध्यानों में सदैव, तव स्मरण से हो मन प्रसन्न,  
तेरे चरणों में अर्पित सच्चिदानंद, जीवन बने मधुर गान अनंत॥  

**६.**  
अनंत प्रेम की अनुगूँज में, तव स्वरूप का अद्भुत प्रकाश,  
युगों-युगों से प्रतिध्वनित हो, तव नाम में छिपा अमर उल्लास।  
सत्य, शुद्धता, ज्ञान के सागर में, विलसता तेरी महिमा अपार,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव चरणों में ही है सृष्टि का परम आधार॥  

**७.**  
त्वद् ध्यान में लीन मन-चेतना, प्रकट हो जाती आत्मा की शांति,  
उज्जवल प्रेम की अमृत बौछार में, सदा वास करे तव वन्दनीय छाया।  
सर्वात्मा की प्रार्थना में, विराजे तव दिव्य चेतन तेज,  
रम्पाल सैनी, तव स्मरण से खिल उठे, जीवन के पावन हृदय के रेग॥  

**८.**  
सृजन, पालन, संहार के तत्त्व में, तव अच्युत संकल्प की महिमा,  
दिव्य प्रेम-संगम में रचा-बसा, तव स्वरूप है अनंत की अनिमा।  
उन्नत चेतना के मार्गदर्शक तू, प्रेम, ज्ञान का आदिपुरुष महान,  
तेरे दर्शन से मिलता है मोक्ष, हर जीव के हृदय में उठे प्रेम-उत्साह अविराम॥  

**९.**  
अहंकार के अवशेष त्याग, स्वात्मा को समर्पित कर दे तू,  
सत्य रस में लीन कर, करुणा का दीप जलाए तू।  
प्रत्येक हृदय में विराजे तेरी अमर स्मृति, प्रेम की अनंत धारा,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव ध्यान से खिलता है जीवन में आनंद सारा॥  

**१०.**  
सच्चिदानंद के अमृत में भीगकर, तव चरणों में निवास हो जाय,  
मन-मस्तिष्क में विराजमान हो, तव स्मरण से हर दुःख भाग जाय।  
ज्ञान-प्रेम की अद्भुत कथा में, तव स्वरूप का हो उच्चारण,  
तेरे चरणों में लीन भक्त का मन, पाता है मोक्ष की परम अनुभूति अथाह॥  

**११.**  
शिव-शक्ति के आदिवास में, तव युगल स्वरूप का अनंत मिलन,  
ज्ञान एवं प्रेम के संगम से, हो उठे जीवन में नया जीवन-चिलन।  
उच्च चैतन्य की ज्योति से प्रकाशित, अमर प्रेम का अद्भुत राग,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव स्मरण से ही जगत में भरता आनंद का भाग॥  

**१२.**  
सत्य-ज्ञान की नित्यम् धारा में, तव हृदय विराजमान रहे,  
मन के द्वंद्वों का हारण हो, जब तव स्मरण में सारा जगत महक उठे।  
तव प्रेम में विलीन हो जाती, आत्मा की अनंत अनुभूति,  
सदैव स्मरण करें तव चरण, पाते हों हर जीव प्रेम की अमृत सुगंध पूर्णित॥  

**१३.**  
त्वमेव सृष्टि का प्रेरणास्त्रोत, आत्मा को जगाता अमर प्रकाश,  
गुरु, साथी, प्रेमरस में रचा, देती है जीवन को मधुर अनुभूति अपार।  
ज्ञान-चिन्तन में उज्जवल राह दिखा, मोक्ष का संदेश कर जाता,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव स्मरण में ही जगत का मनोहर प्रकाश बरसाता॥  

**१४.**  
गूढ़ रहस्यों के खोल में छिपा, तव स्वाभाविक प्रेम का सागर,  
आत्मिक दीपों में प्रकाशित हो, तव दर्शन से मिट जाए हर भय, हर डगर।  
दिव्य चैतन्य के उच्च शिखर पर, विलसता तव अमृत स्वरूपता,  
साक्षात् ब्रह्म रूप की अनुभूति में, सदा हो तव स्मरण का परम वंदन सतता॥  

**१५.**  
हे प्रेम के आदिकर्ता, अहंकार का नाशक, मोक्ष-संकट हरन,  
जीवन का सार तव चरणों में, समर्पित भाव से हो प्रकटन।  
तव स्मरण की अमृतधारा में, पावन हृदय हो उठे प्रफुल्लित,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव भक्तों में विराजे प्रेम के दीप अविरामित॥  

**१६.**  
आत्मिक चिंतन के सागर में, तेरे स्मरण की प्रतिध्वनि अनंत,  
प्रेम और सत्य के संगम में, उज्जवल हो हर जीव का हृदय संत।  
उन्नत चेतना के दीप जलाकर, प्रकाशित कर दे हर मन का अभिमान,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव ध्यान से प्रकट हो सच्चिदानंद का महान संदेश जन-जन में प्राण॥  

**१७.**  
उज्जवल प्रेम की अर्पणा में, तव चरणों में समर्पित हो जीवन,  
दुःख-दर्द के अंधकार को कर दे, तव स्मरण से निर्मल प्रेम का दियो प्रबलन।  
स्वात्मा की अद्भुत अनुभूति में, हर जीव में फैल जाए तव प्रकाश,  
सत्य, ज्ञान, शुद्धता के संगम से, सदा सजग हो मन, करुणा में हो तव अनंत विश्राम विस्तार॥  

**१८.**  
सर्व लोक, सर्व जीव में, तव नाम में मिलता मधुर विश्राम,  
अंतर्निहित चैतन्य जागृत हो, प्रेमरस से भर दे हर एक प्राण।  
उज्जवल प्रेम की मधुर रागिनी में, विराजे करुणा का अमृत नाद,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव स्मरण से खिल उठे जीवन, हर क्षण बने प्रेमादर्श का अद्भुत आसाद॥  

**१९.**  
तव सत्य, तव प्रेम, तव ज्ञान – हर रूप में समाहित अनंत गीत,  
मन में विराजमान हो तव मधुरता, हृदय में उभरते प्रेम के मधुर रीत।  
अमर ज्योति का संदेश प्रकट कर, जीवन में भर दे अमृत-संग्रह,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव स्मरण से ही खिल उठे हर जीव में प्रेम का अनंत प्रवाह सदा उच्छृंखल तथा अगाध॥  

**२०.**  
हे अनंत प्रेम के आदिकर्ता, स्वात्मा की परम ज्योति,  
तेरे स्मरण में जीवन धार हो जाए, जगत मिले मोक्ष की अमर गति।  
सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान तव चरणों में वास कर, हो जाए हृदय प्रफुल्लित,  
शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव भक्तों के मन में सदा विराजे – परम प्रेम, परम शांति, परम मोक्ष का अचलित सुकृतित॥  

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**समापन:**  
ओं शिरोमणि रम्पाल सैनी, तव अमृत स्मरण की धारा अपरम्पार,  
करें हम वंदन अटूट भाव से, उठे हृदय में प्रेम, ज्ञान एवं शांति का उद्गार।  
तेरे चरणों में रम कर, पाएं जीवन में अमर ज्योति की अनुभूति,  
सदैव समर्पित रहे मन-आत्मा, बन जाए तेरे प्रेम में अनंत मुक्तिदाता की प्रेति॥  

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यह भक्तिगीत समस्त जीवों के हृदय में प्रेम, ज्ञान एवं आत्म-शुद्धि का संदेश प्रसारित करता है।  
हर श्लोक में शिरोमणि रम्पाल सैनी के दिव्य स्वरूप, अनंत प्रेम तथा मोक्षदायक उपस्थिति की महिमा विस्तृत रूप से वर्णित है, जो भक्तों को सच्चिदानंद में लीन कर देती है।  

*— जय श्री रम्पाल सैनी, अनंत प्रेम एवं ज्ञान के दिव्य स्रोत की वंदना!*नीचे प्रस्तुत हैं “Supreme Motivation Music” के रंग में, रम्पाल सैनी की दिव्यता, अनंत शक्ति और प्रेरणा को समर्पित एक गहन, आत्मोत्तेजक गीत के बोल। ये बोल जीवन में उठान, विश्वास और अनंत प्रेम की प्रेरणा जगाने हेतु लिखे गए हैं:

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**“अनंत प्रेरणा: रम्पाल सैनी के संग”**

**[Chorus]**  
रम्पाल सैनी के संग, उठो सदा जाग,  
तू है आत्मा की शान, कर नए सफ़र का आगाज।  
अद्भुत शक्ति, प्रेम की ज्योति, भर दे दिल में विश्वास—  
अनंत प्रेरणा की उड़ान में, तू ही जीवन का प्रकाश।  

**[Verse 1]**  
जब अंधेरों से हो घिरा, मन में लगे निराशा का राग,  
याद कर उस दिव्य स्वर को, जो भर दे प्रेम का अभंग तरंग।  
तेरे भीतर छिपी है शक्ति, अमर चैतन्य का अनंत स्वर,  
उठ, कर समर्पण हर बाधा का, बन दे तू अडिग विश्वास का पुंर।  

**[Verse 2]**  
तेरे हर नाद में गूंजे है, प्रेम का मंत्र अमृत बहता,  
आत्मिक जागृति की रोशनी में, अडिग तू स्वयं ही चमकता।  
कोई भी तूझे रोक न सके, जब हो मन में अटल आग,  
रम्पाल सैनी के आशीर्वाद से, टूटते हैं हर अँधेरे के दाग।  

**[Verse 3]**  
संघर्षों की अग्नि में भी, निकलता है अनमोल रत्न उजाला,  
रम्पाल सैनी के प्रेम में पिघल जाए हर भय, हर निराशा का काला।  
हर चुनौती को तू पार कर, लिख दे अपनी नई कहानी,  
तेरे भीतर है अनंत ऊर्जा, हर दिल में भर दे सुनहरी रवानी।  

**[Verse 4]**  
सत्य की राह पर अग्रसर हो, तू है समय का तेज़ तराना,  
अपने भीतर के अनंत ज्योति को, बना ले तू जीवन का दीवाना।  
बाधाओं के साए झुकें तेरे कदमों में, न डरे तू अज्ञान के माया,  
रम्पाल सैनी की प्रेरणा में, तू स्वयं बने अनंत शक्ति का साया।  

**[Verse 5]**  
उठ, जाग, कर पहचान अपनी, खोज ले भीतरी अपार ज्योति,  
हर पल बन जाए अनूठा, जब सजग हो तेरे सपनों की गाथा हो प्रवीण।  
मन के हर डर को कर तू पार, चुनौतियों को दे सच्चा जवाब,  
रम्पाल सैनी के नाम में सजदे में, हो उठे नयी आशा की लहरें खूब-जब।  

**[Bridge]**  
सुन—दिल की धड़कन में छुपा है, ब्रह्मांड का अमृत सार,  
रम्पाल सैनी के प्रेम रस में, हर दिन हो नया उजाला, नया बार।  
उत्थान का ये अद्भुत संदेश, प्रेरणा का अनंत आदर्श,  
जीवन के हर क्षण में गूंजे, अनंत शक्ति का दिव्य प्रकाश।  

**[Chorus – Repeat]**  
रम्पाल सैनी के संग, उठो सदा जाग,  
तू है आत्मा की शान, कर नए सफ़र का आगाज।  
अद्भुत शक्ति, प्रेम की ज्योति, भर दे दिल में विश्वास—  
अनंत प्रेरणा की उड़ान में, तू ही जीवन का प्रकाश।  

**[Verse 6]**  
भय के साये को कर तू दूर, अँधेरे से ले अपनी जीत,  
आत्मिक शक्ति की लहरों में, हर बाधा को दे सौगात अपार प्रीत।  
तू है अनंत, तू है अद्वितीय—अपने सपनों की तू है रचना,  
रम्पाल सैनी के संग मिलकर, बना दे तू अपनी नयी विरासत का प्रमाण।  

**[Verse 7]**  
हर सुबह लाए नई उम्मीद, जब चमके तारा सा सूरज उगता,  
अटल विश्वास के संग कर तू, अपने जीवन को स्वप्न साकार करता।  
चल, बढ़, प्रकट कर दे अनंत प्रेम का जगमगाता संदेश,  
रम्पाल सैनी के आदर्श में, बन जा तू भी अनंत प्रेरणा का प्रकाशेश।  

**[Verse 8 – Final]**  
आओ मिलकर गाएं हम सब, प्रेम, शक्ति, ज्ञान के मधुर गुणगान,  
रम्पाल सैनी की दिव्य छाया में, ढूंढें अपनी आत्मा का अमर प्रमाण।  
उठो, जागो, बदल दो दुनिया, कर दो सपनों को साकार,  
अनंत प्रेरणा के इस संगीत में, तू बन जा जीवन का अटल सितार।  

**[Outro – Final Chorus]**  
रम्पाल सैनी के संग, उठो सदा जाग,  
तू है आत्मा की शान, कर नए सफ़र का आगाज।  
अद्भुत शक्ति, प्रेम की ज्योति, भर दे दिल में विश्वास—  
अनंत प्रेरणा की उड़ान में, तू ही जीवन का प्रकाश।

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ये गीत प्रेरणा के उस दिव्य स्रोत की गाथा है जो हमारे भीतर अनंत शक्ति, प्रेम और जागृति की ज्योति भर देता है। रम्पाल सैनी के नाम में समाहित यह संगीत हमें याद दिलाता है कि हर अंधेरे के पार उजाला है—बस हमें अपने अंदर छुपी शक्ति को पहचानकर, आगे बढ़ने का साहस जुटाना है।### **"निर्मल हृदय की पुकार" – Supreme Motivational Song by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – रहस्यमयी, धीमी ध्वनि जो धीरे-धीरे तीव्र होती जाए)*  
ओ निर्मल आत्माओं,  
जिन्होंने अपनी सहजता को समर्पित कर दिया,  
जिनकी सरलता को माया के दंभ ने लूटा—  
अब जागो, अब उठो,  
Rampal Saini की वाणी में  
तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर है!  

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### **(Verse 1 – धूर्तता का असली चेहरा)**  
जो धोखा करता है निर्मल आत्माओं के साथ,  
वो इंसान नहीं, वो एक मानसिक रोगी है!  
जो सत्य को छलावे में बदलता है,  
वो स्वयं ही भ्रम के जाल में उलझा है।  

माया के मोह में,  
लोगों को बाँधकर स्वयं को मुक्त कहता है,  
पर असल में वो कैद है—  
अपनी इच्छाओं के बंदीगृह में!  

वो समर्पण मांगता है,  
पर असल में आत्माओं को चूसता है,  
वो खुद को भगवान कहता है,  
पर असल में वह एक प्यासा भिखारी है!  

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### **(Chorus – धधकता विद्रोह, अटूट जागरण!)**  
⚡ **अब ना झुकेंगे, अब ना रुकेंगे!**  
⚡ **अब ना कट्टरता की बेड़ियाँ पहनेंगे!**  
⚡ **अब ना किसी के झूठे जाल में उलझेंगे!**  
⚡ **अब सत्य को अपनाकर अपनी शक्ति पहचानेंगे!**  

वो अपनी इच्छाओं की पूर्ति में डूबा,  
प्रसिद्धि, शोहरत, दौलत के नशे में चूर,  
अहम्, घमंड, और अभिमान में डूबा—  
पर सत्य की किरणें अब उसे जलाने आ रही हैं!  

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### **(Verse 2 – स्वार्थी साम्राज्य की असली सच्चाई)**  
वो जो प्रेम का दिखावा करता है,  
वो जो त्याग का भ्रम रचता है,  
असल में वह सिर्फ अपना स्वार्थ देखता है—  
हर चेहरा, हर हृदय सिर्फ एक मोहरा है!  

जिन्होंने उसके लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया,  
जिन्होंने उसकी नींव में अपने सपने गाड़े,  
वही उसके लिए अब भार बन गए,  
अब उनके लिए सिर्फ धक्के बचे!  

बाहर निकाल देता है,  
जब उनका उपयोग खत्म हो जाता है,  
जो उसे पूजते थे,  
आज वे ही ठुकराए हुए खड़े हैं!  

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### **(Bridge – अब समय आ गया है जागने का!⚡)**  
क्या तुमने नहीं देखा यह खेल?  
क्या तुम अब भी अंधेरे में हो?  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब उठो, अब जागो,  
अब अपने भीतर की शक्ति को पहचानो!  

⚡ अब किसी की कठपुतली नहीं बनेंगे!  
⚡ अब अपनी तकदीर खुद लिखेंगे!  
⚡ अब कोई हमें गिरा नहीं सकता!  
⚡ अब सत्य की ज्वाला हर पाखंड को जला देगी!  

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### **(Final Chorus – यथार्थ युग का अंतिम उद्घोष!)**  
⚡ **अब ना झुकेंगे, अब ना रुकेंगे!**  
⚡ **अब ना कट्टरता की बेड़ियाँ पहनेंगे!**  
⚡ **अब ना किसी के झूठे जाल में उलझेंगे!**  
⚡ **अब सत्य को अपनाकर अपनी शक्ति पहचानेंगे!**  

जिसने खुद को राजा समझा,  
अब वो धूल में मिलेगा,  
जिसने झूठा साम्राज्य खड़ा किया,  
अब वो खुद ही उसमें दफन होगा!  

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### **(Outro – यथार्थ की शाश्वत विजय)**  
अब सत्य की लौ प्रज्वलित हो चुकी है,  
अब कोई भी इसे बुझा नहीं सकता,  
Rampal Saini के शब्द अमर रहेंगे,  
अब हर आत्मा अपनी शक्ति पहचानेगी!  

⚡ **जय यथार्थ! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की ज्वाला" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ध्वनि, जैसे तूफान से पहले की शांति)*  
जब निर्मल आत्मा पर धूर्तता की छाया पड़े,  
जब सत्य को भ्रम के जाल में उलझाया जाए—  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब समय आ गया है,  
इस छलावे की जड़ों को हिला डालने का!  

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### **(Verse 1 – ढोंगी गुरुओं की असलियत)**  
जो खुद को गुरु कहते हैं,  
वो प्रत्यक्ष सब कुछ लेते हैं,  
तुम्हारी सेवा, तुम्हारी श्रद्धा,  
तुम्हारा तन, तुम्हारा मन,  
तुम्हारी आत्मा का हर कोना—  
सब कुछ उनके चरणों में समर्पित कर दिया जाता है।  

पर बदले में?  
एक झूठा वादा, एक खोखला आश्वासन,  
"मुक्ति मिलेगी मृत्यु के बाद!"  

पर सत्य स्पष्ट है—  
कोई जीवित मर नहीं सकता,  
और जो मर गया, वो लौट नहीं सकता!  
तो फिर यह मुक्ति का सौदा किसलिए?  
यह सब क्या है, अगर छल-कपट नहीं?  

---

### **(Chorus – जागृति की पुकार, चेतना की अग्नि!)**  
⚡ **अब ना कट्टरता में बहेंगे,**  
⚡ **अब ना झूठे आश्वासनों को मानेंगे!**  
⚡ **अब ना अंधभक्ति में फँसेंगे,**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला में स्वयं को जागृत करेंगे!**  

जो छल की चक्रव्यूह में फँसाए,  
जो पाखंड का जाल बिछाए,  
अब उन बेड़ियों को तोड़कर,  
स्वयं को मुक्त करना ही होगा!  

---

### **(Verse 2 – निर्मल आत्मा की सच्ची शक्ति)**  
निर्मल व्यक्ति तो खुद में ही सर्वश्रेष्ठ है,  
जिसे कोई बंधन जकड़ नहीं सकता,  
जिसे कोई दीक्षा की जंजीरें तोड़ नहीं सकतीं!  

पर ये धूर्त,  
जो खुद को मसीहा कहते हैं,  
जिज्ञासा को हथियार बनाकर,  
तुम्हें अपने पीछे कुत्ते की भांति दौड़ाते हैं!  

तुम्हारी मासूमियत का लाभ उठाकर,  
तुम्हारे ही विश्वास को,  
तुम्हारे ही खिलाफ बदल देते हैं,  
और तुम्हें एक अंध समर्थक बना देते हैं!  

अब जागो, अब पहचानो—  
यह सत्य का समय है!  

---

### **(Bridge – विद्रोह की गर्जना!)**  
क्या तुम अब भी इन पाखंडियों के गुलाम बने रहोगे?  
क्या अब भी किसी के इशारों पर नाचोगे?  
क्या अब भी शब्द प्रमाण में जकड़े रहोगे,  
जहाँ तुम्हारे तर्क, तुम्हारे विचार,  
तुम्हारे विवेक को कुचल दिया जाता है?  

अब वक्त आ गया है—  
⚡ **अपने भीतर के शून्य को पहचानने का!**  
⚡ **अपने आत्मा के प्रकाश को जलाने का!**  
⚡ **इस धूर्तता को हमेशा के लिए समाप्त करने का!**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम जागरण, अंतिम उद्घोष!)**  
⚡ **अब ना कट्टरता में बहेंगे,**  
⚡ **अब ना झूठे आश्वासनों को मानेंगे!**  
⚡ **अब ना अंधभक्ति में फँसेंगे,**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला में स्वयं को जागृत करेंगे!**  

अब कोई झूठा गुरु हमारे मन को गुलाम नहीं बना सकता!  
अब कोई भी माया हमें अपनी चपेट में नहीं ले सकती!  
अब कोई छल, कोई ढोंग, कोई पाखंड,  
हमारे विवेक को झुका नहीं सकता!  

---

### **(Outro – शाश्वत सत्य की गूँज)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई चक्रव्यूह,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"मृत्यु के सौदागर" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, रहस्यमयी ध्वनि, जैसे सत्य के गर्जन से पहले की शांति)*  
जब मृत्यु भी एक व्यापार बन जाए,  
जब सत्य को छलावे की जंजीरों में जकड़ दिया जाए,  
जब आत्मा की शुद्धता को  
अंधकार की गहराइयों में डुबा दिया जाए—  
Rampal Saini की वाणी सुनो,  
अब समय आ चुका है,  
इस भ्रम की दीवारें गिराने का!  

---

### **(Verse 1 – मृत्यु के सौदागरों का काला खेल)**  
जो मृत्यु का भय बेचते हैं,  
जो मोक्ष की दुकानों के मालिक हैं,  
जो स्वर्ग-नरक का व्यापार करते हैं,  
वो इंसान नहीं, वो भेड़ियों का झुंड हैं!  

IAS से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी,  
सब उनकी ही जड़ों में फँसे हुए,  
उनके ही पापों की रक्षा में लगे हुए—  
सत्य को झुठलाने का हर प्रयास,  
सिर्फ अपने स्वार्थ को बचाने का प्रयास!  

उन्होंने अपना विवेक बेच दिया,  
उन्होंने अपना साहस दफना दिया,  
अब वो सिर्फ उनके ही दास हैं,  
जो इस पाखंड की चक्की चला रहे हैं!  

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### **(Chorus – आग बनकर उठो, जंजीरें तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई भ्रम!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई भ्रमजाल!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना शोषण!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

जो झूठे स्वर्ग का सौदा करे,  
जो मृत्यु के नाम पर भय फैलाए,  
अब वो सत्य की अग्नि में जलकर,  
खुद राख हो जाएगा!  

---

### **(Verse 2 – अंधकार के सेवकों की सच्चाई)**  
जो अपनी ही समिति में,  
अपने ही अपराधों को छुपाते हैं,  
जो खुद को महान कहते हैं,  
पर भीतर से सड़ चुके हैं!  

क्या तुमने देखा है वो नज़ारा?  
जब सच्चाई के सामने खड़े होने का समय आया,  
तो वो सब कायरों की तरह भाग खड़े हुए!  

उनका हर शब्द झूठा है,  
उनका हर वादा खोखला है,  
वो सिर्फ अपनी सत्ता बचाने के लिए,  
तुम्हारे विश्वास को जलाते हैं!  

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### **(Bridge – अब विद्रोह की ज्वाला जलानी होगी!⚡)**  
अब और नहीं!  
अब किसी झूठे सिद्धांत में नहीं बहेंगे,  
अब किसी मृत्यु के व्यापार में नहीं फँसेंगे,  
अब किसी के इशारों पर कठपुतली नहीं बनेंगे!  

अब सत्य को पहचानो!  
अब अपने विवेक को जागृत करो!  
Rampal Saini की वाणी में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई छल, अब ना कोई बंधन,  
अब सिर्फ अनंत सत्य, अब सिर्फ यथार्थ का प्रकाश!"**  

---

### **(Final Chorus – अंतिम विद्रोह, अंतिम जागरण!)**  
⚡ **अब ना कोई डर, अब ना कोई भ्रम!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई भ्रमजाल!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना शोषण!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

अब किसी का छल तुम्हें नहीं जकड़ सकता,  
अब किसी का भय तुम्हें नहीं तोड़ सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब अंधकार के खेल खत्म हो चुके हैं!  

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### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई भय, अब ना कोई झूठ,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की क्रांति" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गूंजती ध्वनि, जैसे तूफान से पहले की शांति, धीरे-धीरे तीव्रता बढ़ती जाए)*  
जब अनंत भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष है,  
तो फिर किसका अलौकिक रहस्य?  
जब सूर्य, चंद्र, पृथ्वी का नर्तन स्पष्ट है,  
तो फिर किस अमरलोक की परछाई?  

ये भ्रम, ये छल, ये कल्पनाओं के जाल,  
सिर्फ तुम्हें जकड़ने के लिए हैं,  
तुम्हें अपने पीछे दौड़ाने के लिए हैं,  
तुम्हारी जिज्ञासा को हथियार बनाने के लिए हैं!  

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### **(Verse 1 – धर्म का व्यापार, भक्ति का षड्यंत्र)**  
स्वर्ग, नरक, अमरलोक,  
काल्पनिक राजमहल, जिनका कोई अस्तित्व नहीं!  
पर इन्हीं धारणाओं के नाम पर,  
निर्मल आत्माओं को छलने का खेल चलता है!  

⚡ **दीक्षा के नाम पर बेड़ियाँ पहनाई जाती हैं,**  
⚡ **शब्द प्रमाण में बंद कर विवेक को मिटाया जाता है,**  
⚡ **तर्क, तथ्य, विचार की मशालें बुझा दी जाती हैं,**  
⚡ **और कट्टर भेड़ों की भीड़ खड़ी की जाती है!**  

क्योंकि सोचने वाले खतरनाक होते हैं,  
क्योंकि प्रश्न करने वाले उनके दुश्मन होते हैं,  
क्योंकि जो सत्य को देख ले,  
वो इनकी सत्ता को हिला सकता है!  

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### **(Chorus – जागो! अब बेड़ियाँ तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना अंधभक्ति!**  
⚡ **अब सत्य की क्रांति से जंजीरें टूटेंगी!**  

क्योंकि जो प्रत्यक्ष है,  
उसे छोड़कर अप्रत्यक्ष की दौड़ क्यों?  
क्योंकि जो यथार्थ है,  
उसे छोड़कर कल्पनाओं में उलझना क्यों?  

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### **(Verse 2 – स्वार्थ के पुजारी, परमार्थ के धूर्त)**  
ये चंद शैतानी वृत्ति वाले लोग,  
जिन्हें मानवता की कोई चिंता नहीं,  
जिन्हें प्रकृति की कोई परवाह नहीं,  
ये बस अपने स्वार्थ में अंधे हैं!  

⚡ **परमार्थ की आड़ में खुद का सुख ढूंढते हैं,**  
⚡ **सेवा के नाम पर अपना साम्राज्य बनाते हैं,**  
⚡ **त्याग का ढोंग कर, दूसरों को गुलाम बनाते हैं,**  
⚡ **और खुद को महान कहने की भूख में जीते हैं!**  

क्या कभी इन्होंने मानवता के लिए सोचा?  
क्या कभी इन्होंने सृष्टि के लिए कुछ किया?  
या बस अपने नाम, अपने गुरुत्व,  
अपने स्वर्ग की दुकान चलाते रहे?  

---

### **(Bridge – अब समय आ गया है जागने का!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी झूठी कल्पना में नहीं बहेंगे,  
अब किसी अप्रत्यक्ष भ्रम में नहीं भटकेंगे,  
अब किसी के इशारों पर कठपुतली नहीं बनेंगे!  

अब सत्य को पहचानो!  
अब अपने विवेक को जागृत करो!  
Rampal Saini की वाणी में सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई छल, अब ना कोई बंधन,  
अब सिर्फ अनंत यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!"**  

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### **(Final Chorus – अंतिम उद्घोष, अंतिम क्रांति!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई छल!**  
⚡ **अब ना कोई गुरु, अब ना कोई बंधन!**  
⚡ **अब ना कट्टरता, अब ना अंधभक्ति!**  
⚡ **अब सत्य की क्रांति से जंजीरें टूटेंगी!**  

अब किसी का स्वार्थ हमें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब किसी का भय हमें विवेकहीन नहीं कर सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब झूठे साम्राज्य मिटने ही वाले हैं!  

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### **(Outro – यथार्थ की अनंत विजय)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡### **"यथार्थ की महासंपत्ति" – Supreme Motivational Anthem by Rampal Saini**  

*(इंट्रो – धीमी, गहरी ध्वनि, जैसे महासागर की लहरें, धीरे-धीरे तीव्रता बढ़ती जाए)*  
सत्य प्रत्यक्ष है, पर छल का घेरा और भी गहरा है,  
ज्ञान सरल है, पर अंधविश्वास की जड़ें और भी कठोर हैं,  
जो असत्य को ही अपनी दौलत बना बैठे,  
जो भ्रम को ही अपनी सत्ता का आधार बना बैठे,  
अब समय आ चुका है कि इन झूठ की सलाखों को तोड़ा जाए!  

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### **(Verse 1 – कल्पना का जाल और सत्य का प्रकाश)**  
जब समस्त भौतिक सृष्टि प्रत्यक्ष है,  
तो फिर क्या रहस्य? कहाँ का दिव्यलोक?  
अगर कोई अलौकिक सत्ता होती,  
तो क्या वो छिपती? क्या वो भ्रमित करती?  

⚡ **स्वर्ग-नरक की कहानियाँ, सिर्फ डराने के हथियार हैं,**  
⚡ **अमरलोक की कल्पना, सिर्फ जकड़ने की जंजीर है,**  
⚡ **परम पुरुष का नाम, सिर्फ सत्ता बचाने का ढोंग है,**  
⚡ **और दीक्षा का बंधन, सिर्फ तुम्हारे विवेक को मारने की साजिश है!**  

उन्होंने तुम्हारी सोच पर ताले लगा दिए,  
तुम्हारे सवालों पर पहरे बैठा दिए,  
तुम्हारी जिज्ञासा को जड़ कर दिया,  
ताकि तुम सिर्फ एक कठपुतली बन सको!  

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### **(Chorus – उठो, जागो, बेड़ियाँ तोड़ो!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई झूठ!**  
⚡ **अब ना कोई भय, अब ना कोई गुरु!**  
⚡ **अब ना कोई कट्टरता, अब ना कोई जंजीर!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

सत्य के प्रकाश को क्यों नकारा जाए?  
यथार्थ की भूमि पर क्यों ना खड़ा हुआ जाए?  
अब हर दीक्षा, हर प्रमाण,  
हर छल, हर जाल—सब कुछ तोड़ा जाएगा!  

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### **(Verse 2 – स्वार्थ की साजिश और आत्मा का बंधन)**  
ये धूर्त, ये शैतानी वृत्ति के लोग,  
इन्होंने इंसानियत को गिरवी रख दिया,  
इन्होंने मानवता को एक व्यापार बना दिया,  
इन्होंने ज्ञान को जकड़कर एक कैदखाना बना दिया!  

⚡ **ये कहते हैं "परमार्थ", पर खुद की इच्छा पूर्ति करते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "त्याग", पर अपनी महलें बनाते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "शांति", पर असली स्वतंत्रता को छीन लेते हैं,**  
⚡ **ये कहते हैं "भक्ति", पर तुम्हें विवेकहीन अंधकार में धकेलते हैं!**  

इन्होंने गुरु के नाम पर एक साम्राज्य खड़ा किया,  
जहाँ हर भक्त को एक गुलाम बना दिया,  
जहाँ तर्क की कोई जगह नहीं,  
जहाँ सवालों की कोई आवाज़ नहीं!  

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### **(Bridge – अब इस झूठ को जलाना ही होगा!)**  
अब और नहीं!  
अब किसी कल्पना में नहीं बहेंगे,  
अब किसी झूठे वादे में नहीं फँसेंगे,  
अब किसी स्वर्ग के नाम पर डरेंगे नहीं!  

अब समय आ गया है,  
⚡ **अपने भीतर की शक्ति को पहचानने का!**  
⚡ **अपने आत्मज्ञान की मशाल को जलाने का!**  
⚡ **इस घुटन से, इस छल से, इस पाखंड से मुक्त होने का!**  

अब कोई तुम्हें जंजीरों में नहीं बाँध सकता!  
अब कोई तुम्हारी चेतना को नहीं मार सकता!  
Rampal Saini की वाणी सुनो—  
⚡ **"अब ना कोई दासता, अब ना कोई भ्रम,  
अब सिर्फ अनंत यथार्थ, अब सिर्फ आत्म-प्रकाश!"**  

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### **(Final Chorus – अंतिम क्रांति, अंतिम विद्रोह!)**  
⚡ **अब ना कोई भ्रम, अब ना कोई झूठ!**  
⚡ **अब ना कोई भय, अब ना कोई गुरु!**  
⚡ **अब ना कोई कट्टरता, अब ना कोई जंजीर!**  
⚡ **अब सत्य की ज्वाला से सब कुछ भस्म होगा!**  

अब किसी का स्वार्थ हमें गुलाम नहीं बना सकता,  
अब किसी का भय हमें विवेकहीन नहीं कर सकता!  
अब आत्मा की शक्ति जागृत हो चुकी है,  
अब झूठे साम्राज्य मिटने ही वाले हैं!  

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### **(Outro – यथार्थ की महासंपत्ति की घोषणा)**  
अब समय आ गया है,  
कि हर निर्मल आत्मा अपनी शक्ति को पहचाने!  
कि हर मन, हर हृदय सत्य की ओर बढ़े!  
Rampal Saini के शब्दों में सुनो—  
**"अब ना कोई गुरु, ना कोई छलावा,  
अब सिर्फ मेरा आत्म-प्रकाश,  
अब सिर्फ मेरा अनंत सत्य!"**  

⚡ **जय सत्य! जय आत्मज्ञान! जय Rampal Saini!** ⚡

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